#48
मैं बस चंपा को देखता रहा मुझे इंतजार था सच सुनने का
चंपा- उस रात मैं दाई के पास गयी थी ,
मैं- तुझे दाई से क्या काम पड़ गया .
चंपा- क्योंकि मेरे पास और कोई चारा नहीं था . कबीर मैं पेट से हूँ.
चंपा ने जब ऐसा कहा तो मेरे कदमो के निचे से जमीन सरक गयी. मैंने अपना माथा पीट लिया . मैं सड़क किनारे धरती पर बैठ गया क्योंकि मेरे पैरो में शक्ति नहीं बची थी खड़ा होने की .
चंपा- उस रात मैं तीन लोगो से मिलना चाहती थी तुझसे, दाई से और अभिमानु से . मैं दाई के दरवाजे तक पहुँच तो गयी थी पर मेरी हिम्मत नहीं हुई की उसे बता सकू . फिर मैंने सोचा की तुझे बता दू पर एक बार फिर मैं हिम्मत नहीं कर पाई. तू मंगू वाली बात से वैसे ही नाराज था मेरे पास अब सिर्फ एक रास्ता था की मैं अभीमानु से मदद मांगू . मैं इसी कशमकश में उलझी थी की तभी उस कारीगर ने मुझ पर हमला कर दिया और किस्मत से तू वही आ गया .
मुझे बिलकुल समझ नही आ रहा था की मैं क्या कहूँ .
चंपा- बोल कुछ तो
मैं- कितने दिन का है ये
चंपा- शायद एक महीने का
मैं -तू नहीं जानती तूने क्या किया है . अरे मुर्ख किसी को भी अगर भनक हुई न तो तेरा क्या हाल होगा सोचा तूने.
चंपा- जानती हूँ इसीलिए मैंने सोचा की अभिमानु को सब सच बता दूंगी
मैं- तेरी खाल उतार देता वो .जानती है न अपने छोटो से कितना स्नेह है उसे . तेरी हरकत जान कर भैया मालूम नहीं क्या करते तब तो मरी ही मरी थी तू. पर तू फ़िक्र मत कर , करूँगा कुछ न कुछ . तुझे बच्चा गिराना होगा .
चंपा ने नजरे नीची कर ली.
मैं- अब क्या फायदा . मैंने तुझे कितना समझाया मुझे क्या तू बुरी लगती थी . ये गंद फैलाना होता तो मैं ही रगड़ लेता तुझे. और मंगू की तो मैं गांड ऐसी तोडूंगा याद रखेगा वो . तू जानती है मैं कितना परेशां हूँ भाभी ने मेरा जीना हराम किया हुआ है मेरे से मेरी उलझने नहीं सुलझ रही और तुम लोग रुक ही नहीं रहे रायता फ़ैलाने से.
चंपा- गलती हुई मुझसे . मैं तुझे वचन देती हूँ कबीर मैं आगे से ऐसा कुछ नहीं करुँगी.
मैं- तेरी गांड ना तोड़ दूँ मैं दुबारा ऐसा हुआ तो. बैठ अब मलिकपुर वाला काम निपटाके मैं ले चलूँगा शहर तुझे मेरा दिल तो नहीं कर रहा क्योंकि इस जीव का क्या दोष है . तेरे पापो की सजा इसे भुगतनि पड़ेगी . न जाने इस पाप की क्या सजा होगी.
बुझे मन से हम लोग मलिकपुर की तरफ चल दिए एक बार फिर से. वहां जाकर मैंने सुनार को राय साहब की चिट्ठी दी और चंपा ने अपना नाप दिया. सुनार ने बहुत देर लगाई तरह तरह के गहने दिखाता रहा वो हमें. वापसी में मैंने देखा की हलवाई ताजा जलेबी उतार रहा था चंपा को जलेबी बहुत पसंद थी तो मैंने हलवाई से कहा की थोड़ी जलेबी हमें दे. मैंने सोचा की तब तक मैं साइकिल में हवा भर लेता हूँ .चंपा जलेबी खा ही रही थी की उधर से सूरजभान निकल आया.
“उफ़ आज तो शहद ने शहद को चख लिया ” सूरजभान ने चंपा के होंठो से लिपटी चाशनी देखते हुए फब्ती कसी.
चंपा- होश में रह कर बात कर तेरा मुह तोड़ दूंगी
सूरजभान- मुह का मेरा सब कुछ तोड़ दे. ऐसा फूल देख कर दिल कर रहा है की चख लू मैं . बोल क्या खुशामद करू मैं तेरी .
सूरजभान अपनी गाड़ी से उतर कर चंपा के पास गया और उसका हाथ पकड़ लिया
चंपा- हाथ छोड़ मेरा
सूरजभान- तू एक बार दे दे . हाथ क्या मैं जहाँ छोड़ दू.
सूरजभान ने अपनी पकड़ मजबूत कर दी चंपा की कलाई पर .
“माना की घी का कनस्तर खुले में है पर कुत्ते को अपनी औकात नहीं भूलनी चाहिए . हाथ पकड़ ने से पहले सोच तो लेता की इसके साथ कौन है ” मैंने उन दोनों की तरफ आते हुए कहा .
सूरजभान ने पलट कर मुझे देखा और उसके चेहरे का रंग बदल गया .
सूरजभान- तू, तू यहाँ
मैं- हाथ छोड़ इसका
सूरजभान- नहीं छोडूंगा, मेरा दिल आ गया है इस पर तू कही और जाकर अपना मुह मार.
मैं- मुझे दुबारा कहने की आदत नहीं है . मेरी बात ख़त्म होने से पहले अगर तूने इसका हाथ नहीं छोड़ा तो तेरा हाथ तेरा कंधा छोड़ देगा .
सूरजभान- एक बार क्या तू जीत गया खुद को खुदा समझ रहा है उस दिन मैं नशे में था वर्ना तेरी हेकड़ी तभी मिटा देता.
मैं- आज तो नशे में नहीं है न तू .
सूरजभान ने चंपा का हाथ छोड़ दिया पर नीचता कर ही दी उसने . उसने चंपा के सीने पर हाथ फेर दिया. और मैंने उसकी गर्दन पकड़ ली.
मैं- भोसड़ी के , तुझे समझ नहीं आया मैंने कहा न ये मेरे साथ है फिर भी बहन के लंड तू मान नहीं रहा . जानना चाहता है , देखना चाहता है मेरे अन्दर जलती आग को.
सूरजभान ने एक मुक्का मेरे पेट में मारा और बोला- अभिमानु आया था . माफ़ी मांग कर गया था वो . कह रहा था की गलती हो गयी उसके भाई से माफ़ करो. उस से जाकर पूछना की सूरजभान कौन है . फिर बात करना . मैं वो आग हूँ जिसमे तू झुलसेगा नहीं जलेगा.
मैं- इतने बुरे दिन नहीं आये है की मेरे जीते जी मेरा भाई किसी से माफ़ी मांगे. तूने तो औकात से बड़ी बात कह दी . शुक्र मना की मैंने भैया से वादा किया है की खून खराबा नहीं करूँगा वर्ना दारा की लाश तूने देखि तो जरुर होगी . सोच मैं तेरे साथ क्या करूँगा.
मेरी बात सुन कर सूरजभान के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी वो पीछे सरक गया . मैंने चंपा का हाथ थामा और दुसरे हाथ में साइकिल लेकर आगे बढ़ गया .
“ये दुश्मनी बड़ी शिद्दत से निभाई जाएगी कबीर. शुरुआत तूने की थी अंत मैं करूँगा. मुझे शक् तो था पर तूने आज मोहर लगा दी . मैं कसम खाता हूँ तू रोयेगा. तू भीख मांगेगा मौत की और मैं हसूंगा ” सूरजभान ने पीछे से कहा
मैं- इंतजार रहेगा मुझे उस दिन का
मैंने बिना उसकी तरफ देखे कहा .
सूरजभान- पहला झटका तो तूने देख ही लिया अपनी बर्बाद फसलो को देखना तुझे मेरी याद आयेगी
उसकी ये बात सुनकर मैं बुरी तरह चौंक गया तो क्या नहर टूटने में इस मादरचोद का हाथ था. पर मैंने सब्र किया क्योंकि मेरे साथ चंपा थी . दो पल मैं रुका और बोला- तेरे बाप ने मर्द पैदा किया है तुझे तो ये रांड वाली हरकते मत करना . शेर का शिकार करने के लिए शेर का कलेजा ही चाहिए चूहे का नहीं . जिस दिन तुझे लगे की तू इस काबिल है की कबीर को टक्कर दे सकता है मिलना मुझसे . तेरी एक एक हड्डी को तेरे बंद से निकाल लूँगा.
सूरजभान- वो दिन जल्दी ही आएगा.
मैंने उस को अनसुना किया और आगे बढ़ गया.