#46
मैं जानता था की दोनों के बीच जो भी हुआ है मंदिर में वो आने वाले वक्त में मेरे लिए मुश्किलें पैदा करेगा. वहां से मैं सीधा नहर पर पहुंचा जहाँ भैया पहले से मोजूद थे और टूटे हिस्से की पक्की मरम्मत करवा रहे थे. मैंने पाया की मेरी सब्जियों में पानी भर गया था . सरसों भी नुक्सान में थी . मेरी आँखों में आंसू भर आये. किसान की मेहनत उसकी फसल होती है जो उसके सपने पूरी करती है . और हमारी फसल फिलहाल तो बर्बाद ही समझो .
गुस्सा था पर किस पर जोर चलाते . मैं खड़ा खड़ा सोच रहा था की अब क्या करेंगे की भैया को देखा मेरी तरफ आते हुए .
भैया- क्या सोच रहा है छोटे
मैं- अपनी बर्बादी देख रहा हूँ
भैया- दिल छोटा मत. सब ठीक होगा
मैं- उम्मीद कर सकता हूँ पर एक बात समझ नहीं आई की अचानक से नहर टूटी कैसे.
भैया- मैं भी यही सोच रहा हूँ . फिलहाल पानी सूखने का इंतज़ार करते है . सुबह से काम करते करते अकड़ हो गयी है पीठ में तू चल रहा है या रुकेगा .
मैं- यही रहूँगा
भैया के जाने के बाद मैंने चारपाई निकाली और उस पर लेट गया. मन में अजीब ख्याल आ रहे थे . आँख खुली तो आसमान में काला अँधेरा छाया हुआ था .झींगुरो की आवाजे आ रही थी . मैंने ठण्ड महसूस की देखा की मैं बिना किसी कम्बल, रजाई के ही सोया हुआ था . उठ कर मैंने मुह धोया . और वहां से चल दिया.
चलते चलते मैं दोराहे पर पहुंचा जहाँ से एक रास्ता निशा की तरफ जाता था और एक गाँव की तरफ . कायदे से मुझे गाँव जाना चाहिए था पर मेरे पैर काले मंदिर की तरफ बढ़ गए. घने पेड़ो- झाड़ियो के बीच उस ठिकाने को पहली नजर में देखना अपने आप में अनोखा ही था . ऊपर से आज अँधेरा भी कुछ ज्यादा ही था .
खैर, जब मैं वहां पहुंचा तो देखा की आंच जल रही थी निशा मांस के टुकड़े भून रही थी . मुझे देख कर उसने पास आने का इशारा किया
निशा- सही समय पर आया तू, ताजा खरगोश का मजा ले
मैं- रहने दे .
निशा- बैठ तो सही .
निशा ने कुछ टुकड़े मुझे दिए मैंने एक दो मुह में भर लिए
निशा- कच्चे कलेजे का तो मजा ही अलग है
मैं- क्या बात हुई आज भाभी से
मैंने निशा के मन को टटोला
निशा- कुछ नहीं .तेरी भाभी चाहती है की मैं तेरा साथ छोड़ दू.
मैं- तूने क्या कहा फिर
निशा- मैं क्या कहती , मैंने कभी किया ही नहीं तेरा साथ .
मैं- अच्छा जी . तो तेरे मेरे बीच कुछ नहीं है
निशा- एक डाकन और मानस के बीच क्या कुछ हो सकता है कबीर
मैं- कम से कम हम दोस्त तो है
निशा- दोस्त.... मैं बहुत सोचती हूँ इस बारे में .
मैं- और तेरी सोच क्या कहती है
निशा- कबीर. वैसे तेरी भाभी सच ही तो कहती है तेरी मेरी दोस्ती कैसे हो .
मैं- ये तो नसीब जाने अपना . तू मिली मैं मिला सिलसिला हुआ मुलाकातों का
निशा- यही तो सोचती हूँ की तुझे अब दूर कैसे करू
मैं- दूर करने की जरूरत नहीं
निशा- पास भी तो नहीं आ सकती
मैं-शायद तक़दीर ने हमारे भाग में यही लिखा हो. उसका शायद यही इशारा हो .
निशा- हम दोनों की सीमाए है . और फिर ये जो नज्दिकिया बढ़ रही है न ये हानिकारक साबित होंगी हम दोनों के लिए . मन बड़ा चंचल होता है कबीर, मन तमाम दुखो का कारण है . मैं मेरी तनहइयो में तुझे सोचती हूँ . तू मेरा ख्याल करता होगा. जिस तरह से हम एक दुसरे की परवाह करने लगे है मुझे डर है कबीर.
मैं- कैसा डर
निशा- यही की एक दिन तू मेरे सामने आकर खड़ा हो जायेगा कहेगा की तू इस डाकन से प्रेम करने लगा है .
निशा ने जब ये कहा तो मेरा दिल किया की आज अभी मैं उसे बता दू की मैं करने लगा हूँ प्रेम उस से
मैं- तब की तब देखेंगे निशा
निशा- ये वक्त अपनी स्याही से न जाने क्या लिख रहा है पर इतना जानती हूँ की आने वाले तूफान को रोकना होगा.
मैं- तू खुद को मुझसे जुदा नहीं कर सकती मैं करने ही नहीं दूंगा
निशा- तू समझ तो सही
मैं- तू समझ निशा, ये आंच जो तेरे मेरे दरमियान जल रही है . कहते है अग्नि से पवित्र कुछ नहीं मैं इसे ही साक्षी मान कर कहता हूँ कोई भी , ये दुनिया ये नियम मुझे तुझसे जुदा नहीं कर पायेंगे. जब तक तू मेरा हाथ थामे रहेगी मैं लड़ जाऊंगा इस ज़माने से . कितने ही पहरे लगे तेरा मेरा रिश्ता और गहरा होता जायेगा.
निशा- तू समझता क्यों नहीं तेरा मेरा साथ असंभव है
मैं- तू वो ही निशा है न जो भाभी के सामने इतनी बड़ी बड़ी बाते कर रही थी मेरे लिए तो फिर मेरे सामने इस सच को क्यों नहीं मानती
निशा- क्योंकि मैं उस पथ पर नहीं चल पाउंगी जिसकी मंजिल के तू सपने संजो रहा है .
मैं- तो मत सोच इस बारे में . दोस्त है दोस्ती का हक़ तो दे मुझे कभी तेरा दिल मोहब्बत के लिए धडके तो बताना वर्ना नसीब के सहारे तो है ही
मेरी बात सुन कर निशा मुस्कुरा पड़ी.
निशा- एक डाकन से मोहब्बत करने की सोच रहा है तू .
मैंने निशा की कमर में हाथ डाला और उसको अपने सीने से लगा लिया.
“मोहब्बत करने लगा हूँ तुझसे ” मैंने कहा और अपने होंठ निशा के लबो पर रख दिए.
“छोड़, छोड़ मुझे ” पहली बार मैंने निशा की आवाज को लरजते हुए महसूस किया .
निशा- मत दिखा मुझे ये सपने . रहने दे मुझे इन अंधियारों में . इस डाकन , इस जोगन के लिए कोई मायने नहीं है इन सपनो के
मैं- मैं कोई सपना नहीं हूँ जाना, मैं वो हकीकत हूँ जो तू देख रही है .
निशा- मैं आज के बाद नहीं आउंगी यहाँ पर छोड़ जाउंगी इस जगह को
मैं- बिलकुल ऐसा कर सकती है तू , पर जहाँ भी जायेगी मेरे दिल का एक हिस्सा अपने साथ ले जाएगी . तू मुझे अपनी नजरो से दूर कर सकती है पर मेरे ख्याल को कैसे निकालेगी अपने दिल से . मैं हर पल तुझे याद आऊंगा.
निशा- यही तो मैं नहीं चाहती. तू मुझसे वादा कर की बस दोस्ती ही रहेगी मोहब्बत नहीं होगी .
मैं- मोहब्बत हो चुकी है जाना, तुझसे मोहब्बत हो चुकी है .
निशा- मैं इस लायक नहीं हूँ . मैं नहीं चल पाऊँगी तेरे साथ इस सफ़र पर .
निशा ने मेरे माथे को चूमा . उसकी आँखों से कुछ आंसू मेरे चेहरे पर गिरे.
निशा ने मेरे जख्म को देखा और बोली- आज अमावस की रात है , कल से चांदनी शुरू होगी . कुछ दिन बड़े मुश्किल होंगे और पूनम के चाँद को तू यहाँ आ जाना पूरी रात यही रहना रात मुश्किल होगी पर बीत जायेगी. जब जोर न चले तो इस तालाब का आसरा लेना . पर इस हद में ही रहना . एक खूबसूरत ख्वाब समझ कर भुला देना मुझे.
निशा ने आंच बुझाई और बोली- मुझे जाना होगा कबीर.
मैं- तू छोड़ कर जा रही है मुझे
निशा- जाना पड़ेगा मेरे दोस्त
मैंने दौड़ कर निशा को गले लगा लिया. मैं रोने लगा . वो आहिस्ता से मेरे आगोश से निकल गयी .
निशा- ये ठिकाना तेरे हवाले छोड़ कर जा रही हूँ . देख करना इसकी
मैं- मत जा
वो मुड़ी , मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई और अंधेरो की तरफ बढ़ गयी . बहुत देर तक मैं वही बैठे रहा और जब मैं वापिस गाँव के लिए चला तो दिल का एक टुकड़ा कम सा लगा मुझे.