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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Death Kiñg

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मंगू के पास एक बड़ा कारण था यूं रात को गायब होने का, और उसकी बात की पुष्टि अन्य किसानों ने भी कर दी है। एक बार फिर चम्पा और मंगू का मामला घूम फिरकर वहीं पहुंच गया है। क्या चम्पा ने कबीर से सच कहा भी था या नहीं? वो मंगू का ही पीछा करती हुई वहां गई थी अथवा कोई और बात है? मंगू.. उसकी बात की पुष्टि हो चुकी है तो ऐसे में उस पर संदेह करने का कोई अर्थ नहीं बनता पर सत्य ये भी है की मंगू के कारनामे हल्के नहीं हैं, अपनी ही बहन के साथ अनैतिक संबंध बनाने वाला कितना नीच कार्य कर सकता है, ये कहने की आवश्यकता नहीं।

इधर भाभी के दिमाग में क्या चल रहा है ये तो वही जाने। निशा को मंदिर में मिलने के लिए बुलाया है उसने, एक तरफ वो कबीर की चिंता होने का प्रलाप करती है तो दूसरी तरफ उसे कबीर पर विश्वास भी नहीं। एक तरफ वो कहती है की कबीर की परवरिश उसने की तो दूसरी तरफ कबीर को ही कातिल और षड्यंत्रकारी भी कहने से वो संकोच नहीं करती। षड्यंत्र की बू तो मुझे उसके निशा को मंदिर में बुलाने वाले निर्णय से आ रही है।

इधर निशा और कबीर की इस “दोस्ती" का अंजाम सोचकर ही कबीर पर दया आने लगती है। इंतज़ार है मुझे उस पल का जब एक डायन संग कबीर की दिल्लगी राय साहब जानेंगे। कबीर का घाव भरने का नाम ही नहीं ले रहा था पर अब जब निशा ने उसे दाग़ दिया है तो संभव है की वो ज़ख्म पूरी तरह भर जाए। बहरहाल, निशा मान गई है कबीर की भाभी से मिलने के लिए, मंदिर में, भरी दोपहर में, वो भी अकेले... देखते हैं इस भेंट का क्या अंजाम होगा।

बहुत ही खूबसूरत अध्याय था भाई। यदि कुछ अंतरंग दृश्यों को दरकिनार कर दिया जाए, तो इस कहानी के संवाद इसे उच्चतम कोटि की प्रेम कहानी बनते हैं। कबीर और निशा की वार्ता सीधे दिल पर असर कर जाती है।

प्रतीक्षा अगली कड़ी की...
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#45

आँख खुली तो मैंने खुद को काली मंदिर में पड़े हुए पाया. भोर हो चुकी थी पर धुंध पसरी हुई थी . मैं घर आया आते ही मैंने भाभी को सारी बात बता दी की दोपहर में निशा उस से मिलेगी तय स्थान पर . मैं कुछ खाने के लिए चाची के घर में घुसा ही था की चंपा मिल गयी मुझे

चंपा- कहाँ गायब था तू

मैं- तू तो पूछ ही मत,

चंपा- मैं नहीं तो और कौन पूछेगी .

मैं- मैं पूछने का हक़ खो दिया है तूने , तूने मुझसे झूठ बोला .

चंपा- भला मैं क्यों झूठ बोलने लगी तुझसे

मैं- तो फिर बता उस रात तू घर से बाहर क्या कर रही थी .

चंपा- बताया तो सही

मैं- मुझे सच जानना है , हर बात का दोष मंगू पर नहीं डाल सकती तू

मेरी बात सुन कर चंपा खामोश हो गयी .

मैं- दरअसल दोष तेरा नहीं है दोष मेरा है जो मैं इस काबिल नहीं बन पाया की तू अपना मन खोल सके मेरे आगे. कोई नहीं मैं नहीं पूछता

मैंने कहा और रसोई की तरफ चल दिया. चंपा की ख़ामोशी मेरा दिल तोड़ रही थी . इस सवाल का जवाब मुझे ही तलाशना था .

खैर, अब इंतज़ार दोपहर का था मैंने व्यवस्था कर ली थी की छिप कर दोनों में क्या बात हुई सुन सकू. भाभी चूँकि, राय साब के परिवार की बहु थी मंदिर खाली करवाना उसके लिए कोई बड़ी बात थोड़ी न थी . तय समय पर भाभी मंदिर में पहुँच गयी . थोड़ी देर बीती, फिर और देर हुई और देर होती गयी . भाभी को भी अब खीज होने लगी थी . और मैं भी निशा के न आने से परेशां हो गया था .



“मैं जानती थी कोई नहीं आने वाला ” भाभी ने खुद से कहा .



तभी मंदिर के बाहर लगा घंटा जोर से गूँज उठा . अचानक से ही मेरी धडकने बढ़ सी गयी .मैंने देखा निशा सीढिय चढ़ कर उस तरफ आ रही थी जहा भाभी खड़ी थी . सफ़ेद घाघरा-चोली में निशा सर्दियों की खिली धुप सी जगमगा रही थी . माथे से होते हुए गालो को चूमती उसकी लटे अंधेरो में मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया था . उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था . ना सुख की शान न दुःख की फ़िक्र.

कोई और लम्हा होता तो मैं थाम लेता उसके हाथ को अपनेहाथ में . निशा किसी बिजली सी भाभी के नजदीक से निकली और माता की प्रतिमा के पास जाकर बैठ गयी .

“ ए लड़की किसी ने तुझे बताया नहीं की मंदिर में प्रवेश को हमने मना किया है थोड़े समय बाद आना तू ” भाभी ने कहा



“मैंने सुना है ये इश्वर का घर है और इश्वर के घर में कोई कभी भी आ जा सकता है ” निशा ने बिना भाभी की तरफ देखे कहा

भाभी- कोई और दिन होता तो मैं सहमत होती तुझसे पर आज मेरा कोई काम है तू बाद में आना

निशा- हमारे ही दीदार को तरफ रही थी आँखे तुम्हारी और हम ही से पर्दा करने को कह रही हो तुम

जैसे ही निशा ने ये कहा भाभी की आँखे हैरत से फ़ैल गयी .

“तो.... तो...... तो तुम हो वो ” भाभी बस इतना बोल पायी

निशा- तुम्हे क्या लगा , और किस्मे इतनी हिम्मत होगी की राय साहब की बहु के फरमान के बाद भी यहाँ पैर रखेगा.

भाभी ने ऊपर से निचे तक निशा का अवलोकन किया

निशा- अच्छी तरह से देख लो. मैं ही हूँ

भाभी- पर तुम ऐसी कैसे हो सकती हो

निशा- तुम ही बताओ फिर मैं कैसी हो सकती हूँ

भाभी के पास कोई जवाब नहीं था निशा की बात का .

निशा- तुमने कभी इसे भी साक्षात् नहीं देखा फिर भी इस पत्थर की मूर्त को तू पूजती है न मानती है न जब तू इसके रूप पर कोई सवाल नहीं करती तो मेरे रूप पर आपति कैसी . खैर मुद्दा ये नहीं है मुद्दा ये है की तुम क्यों मिलना चाहती थी मुझसे. आखिर ऐसी क्या वजह थी जो मुझे इन उजालो में आना पड़ा

भाभी- वजह थी , वजह है. वजह है कबीर. तुम ने न जाने क्या कर दिया है कबीर पर . वो पहले जैसा नहीं रहा .

निशा- वक्त सब को बदल देता है इसमें दोष समय का है मेरा क्या कसूर

भाभी- जब से कबीर तुझ से मिला है, वो पहले जैसा नहीं रहा . उसे तलब लगी है रक्त की , कितनी ही बार उसे पकड़ा गया है उन हालातो में जहाँ उसे बिलकुल भी नहीं होना चाहिए . ये उस पर तेरा सुरूर नहीं तो और क्या है.

निशा के चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गयी .

निशा- तो फिर रोक लो न उसे, मुझसे तो वो कुछ समय पहले मिला है तेरे साथ तो वो बचपन से रहा है . क्या तेरा हक़ इतना कमजोर हो गया ठकुराइन .

निशा की बात भाभी को बड़ी जोर से चुभी .

भाभी- दाद देती हूँ इस गुस्ताखी की ये जानते हुए भी की तू कहाँ खड़ी है

निशा- समझना तो तुम्हे चाहिए . जब तुमने यहाँ मिलने की शर्त राखी थी मैं तभी तुम्हारे मन के खोट को जान गयी थी पर देख लो मैं यहाँ खड़ी हु.

भाभी- यही तो एक डाकन का यहाँ होना अनोखा है

निशा- मुझे हमेशा से इंसानों की बुद्धिमता पर शक रहा है . तुम्हे देख कर और पुख्ता हो गया .

निशा ने जैसे भाभी का मजाक ही उड़ाया

निशा- जानती है तेरा देवर क्यों साथ है मेरे. क्योंकि उसका मन पवित्र है उसने मेरी हकीकत जानने के बाद भी मुझसे घृणा नहीं की. उसे मुझसे कोई डर नहीं है जैसा वो तेरे साथ है वैसे ही मेरे साथ . वो उस पहली मुलाकात से जानता था की मैं डाकन हु. न जाने वो मुझमे क्या देखता है पर मैं उसमे एक सच्चा इन्सान देखती हूँ . तुझे तो अभिमान होना चाहिए तेरी परवरिश पर , पर तू न जाने किस भाव से ग्रसित है

भाभी- मैं अपनी परवरिश को संभाल लुंगी . तुझसे मैं इतना चाहती हूँ तू कबीर को अपने चंगुल से आजाद कर . कुछ ऐसा कर की वो भूल जाये की कभी तुझसे मिला भी था वो . बदले में तुझे जो चाहिए वो दूंगी मैं तू चाहे जो मांग ले .

भाभी की बात सुन कर निशा जोर जोर से हंसने लगी. उसकी हंसी मंदिर में गूंजने लगी .

निशा- क्या ही देगी तू मुझे . हैं ही क्या तेरे पास देने को. ठकुराइन , मै अच्छी तरह से जानती हूँ एक डाकन और इन्सान का कोई मेल नहीं . मैं अपनी सीमाए समझती हूँ और तेरा देवर अपनी हदे जानता है . तू उसकी नेकी पर शक मत कर . ये दुनिया इस पत्थर की मूर्त को पुजती है वो तुझे पूजता है . इसके बराबर का दर्जा है उसके मन में तेरा .



भाभी- फिर भी मैं चाहती हूँ की तू उसकी जिन्दगी से निकल जा. दूर हो जा उस से.

निशा- इस पर मेरा कोई जोर नहीं ये नियति के हाथ में है

भाभी- कबीर की नियति मैं लिखूंगी

निशा- कर ले कोशिश कौन रोक रहा है तुझे.

भाभी- तू देखेगी, मैं देखूंगी और ये सारी दुनिया देखेगी .

निशा- फ़िलहाल तो मुझे तेरी झुंझलाहट दिख रही है ठकुराइन

भाभी- मेरे सब्र का इम्तिहान मत ले डाकन

निशा- मुद्दत हुई मेरा सब्र टूटे तेरी अगर यही जिद है तो तू भी कर ले अपने मन की , मुझे चुनोती देने का अंजाम भी समझ लेना . डायन एक घर छोडती है वो घर कबीर का था ........... सुन रही है न तू वो घर कबीर का था .

भाभी- मुझे चाहे को करना पड़े. एक से एक तांत्रिक, ओझा बुला लाऊंगी . पर इस गाँव और मेरे देवर पर आये संकट को जड से उखाड़ फेंकुंगी मैं

निशा- मैं इंतज़ार करुँगी .और तुम दुआ करना की दुबारा मुझे अंधेरो से इन उजालो की राह न देखनी पड़े................
 

Sanju@

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#44

मुझे शिद्दत से मंगू का इंतज़ार था और जब वो आया तो उसके कपडे सने हुए थे कीचड़ से . हालत पस्त थी उसकी.

मैं- कहाँ गायब था बे

मंगू- भाई , खेतो की परली तरफ नहर का एक किनारा टूट गया काफी पानी भर गया है बहुत नुक्सान हो गया . किनारे की मरम्मत करने में देर हो गयी .

मैं- तू अकेला गया , मुझे बता तो सकता था न

मंगू- अकेला नहीं था उस तरफ जिनके भी खेत है सब लोग थे. तुझे इसलिए नहीं बताया की पहले ही चोट लगी है. पानी का बहाव फ़िलहाल के लिए तो रोक दिया है पर मुझे लगता नहीं की ज्यादा देर ये कोशिश कामयाब होगी , अभिमानु भाई ही मदद करेंगे अभी . मैं नहा लेता हु फिर भैया को बुलाने जाऊंगा.

मंगू के रात भर गायब होने की वजह ये थी . मैंने तस्दीक कर ली थी मंगू गाँव के और लोगो के साथ नहर के किनारे को ठीक करने में ही जुटा था . एक बार फिर से मैं घूम कर वहीँ पर आ गया था जहां से चला था . दोपहर में भाभी ने मुझसे कहा की डायन अगर मिलने को तैयार हो जाये तो वो गाँव के मंदिर में मिलना चाहेगी उस से. भाभी ने अपना दांव खेल दिया था उसने जान बुझ कर ऐसी जगह चुनी थी . पहली बार मुझे लगा की भाभी कितनी कुटिल है .



खैर उस रात को ये सुनिश्चित करने के बाद की कोई भी मेरा पीछा नहीं कर रहा मैं काले मंदिर के तालाब के पास पहुँच गया. पानी एकदम शांत था इतना शांत की जैसे तालाब था ही नहीं . सीली दिवार का सहारा लेते हुए मैं काली मंदिर की सीढिया चढ़ कर ऊपर पहुँच गया .



“माना के मेरे मुक्कद्दर में लिखे है ये अँधेरे , पर तुम क्यों अपनी राते काली करते हो ” निशा ने बिना मेरी तरफ देखे कहा. वो आज भी वैसे ही पीठ किये बैठी थी जैसा हमारी पहली मुलाकात में .

मैं- अंधियारों में तू एक जोगन और मेरा मन रमता जोगी.

निशा- जोग का रोग जो लगा बैठे न तो फिर सब से बेगाने हो जाओगे.

मैं- तू ही जाने क्या अपना क्या पराया

निशा- तू सबका तेरा कोई नहीं

मैं- तू तो है मेरी

निशा- मैं हूँ तेरी

वो हंसने लगी .

“मैं हूँ तेरी , क्या हूँ मैं तेरी मैं कुछ भी तो नहीं राख के एक ढेर के सिवा जिसे तू चिंगारी दे रहा है ” बोली वो

मैं- बस इतना जानता हूँ ये अंधियारे जितने तेरे है उतने मेरे

निशा- मत कह ऐसा . मेरी तो नियति है तू अपने उजालो से दगा मत कर

वो उठ कर मेरे पास आई . अँधेरी रात में उसकी मर्ग्नय्नी आँखे मेरे मन को टटोलने लगी.

निशा- बता क्या है मन में

मैं- बहुत कुछ , कुछ कहना है है कुछ छिपाना है .

निशा- आ बैठ पास मेरे .

निशा ने अपना सर मेरे काँधे पर रखा

मैं- आहिस्ता से, दर्द होता है .

निशा- कैसा दर्द

मैं- घाव लगा है

निशा- देखू जरा

मैं- तेरी मर्जी

निशा ने मेरा कम्बल एक तरफ किया और पट्टियों को तार तार कर दिया . उसकी सर्द सांसो ने घाव के रस्ते होते हुए दिल पर दस्तक दे दी.

निशा- कब हुआ ये

मैं- थोड़े दिन बीते

निशा- दो मिनट रुक

वो उस तरफ गयी जहाँ वो बैठी थी वापसी में एक झोला लेकर आई . उसमे से कुछ निकाला और बोली- दर्द होगा सह पायेगा .

मैं- मर्द को दर्द नहीं होता जाना

निशा- ठीक है फिर

उसने मेरे कंधे में कुछ नुकीली छुरी सा घुसा दिया और मैं लगभग चीख ही पड़ा था की उसने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- मर्द जी , ये तो शुरुआत है .

मुझे लगा की वो मेरे मांस को काट रही है . दर्द बहुत हो रहा था पर मैं कमजोर नहीं पड़ा . उसने झोले से एक शीशी निकाली और मेरे घाव के छेद में उड़ेलने लगी. मैंने महसूस किया की मेरे तन में आग लग गई हो.

पर ये तो शुरुआत थी . उसने आग जलाई और एक चाक़ू को गर्म करने लगी.

निशा- शोर मत करना . मुझे पसंद नहीं है .

मैं- क्या करने वाली है तू

निशा- जान जायेगा उसने अपनी चुनर उतारी और बोली- मुह में दबा ले .

मेरे वैसा करते ही उसने सुलगते चाकू को मेरे काँधे में धंसा दिया . उफफ्फ्फ्फ़ कसम से मर ही गया था मैं तो . निशा ने जख्म को दाग दिया था.

“बस हो गया ” उसने बेताक्लुफ्फी से कहा और कम्बल वापिस ओढा दिया मुझे .

मैं- जान लेनी थी तो वैसे ही ले लेती .

निशा- क्या करुँगी मैं इतनी सस्ती जान का

मैं- ये तेरी कमी हुई जो तूने सस्ती जान का सौदा किया

निशा- छोड़ इन बातो को मुझे मालूम हुआ कुछ परेशानी है तुझे

मैं- परेशानी तो जिन्दगी भर रहनी ही हैं .तुझे तो मालूम है की मेरी भाभी ने मेरा जीना मुश्किल किया हुआ है . उसे लगता है की गाँव में जो भी ये हो रहा है मैं कातिल हूँ

निशा- सच कहती है तेरी भाभी कातिल तो तू है

मैं- मैं कातिल हूँ ये तू समझती है वो नहीं

निशा- तो समझा उसे

मैं- मैंने उसे बताया सब कुछ बताया अब उसकी जिद है की वो तुझसे मिलेगी .

निशा-डाकन से मिल कर क्या करेगी वो

मैं- मैंने भी यही कहा उसे पर वो जिद किये हुई है

निशा- ठीक है फिर तेरी भाभी की जिद पूरी कर देती हूँ उस से कहना की तेरे कुवे पर मिलूंगी मैं उस से पर वो अकेली आयेगी.

मैं- तुझे कोई जरुरत नहीं है उसके सामने आने की

निशा- तू साथी है मेरा इन अधियारो में जब कोई नहीं था तू ही तो था . मेरी वजह से तुझे परेशानी हो . तू तकलीफ में होगा तो मैं चैन कैसे पाऊँगी . और फिर एक मुलाकात की ही तो बात है

मैं- तू समझ नहीं रही है

निशा- समझा फिर

मैं- भाभी तुझसे गाँव के मंदिर में मिलना चाहती है

मेरी बात सुन कर निशा थोड़ी देर के लिए खामोश हो गयी मैं उसके चेहरे की तरफ देखता रहा .

निशा- बस इतनी सी बात , चलो ये भी सही . भाभी से कहना की मैं उसकी हसरत जरुर पूरी करुँगी पर मेरी भी एक शर्त है की मैं उस से निखट दुपहरी में मिलने आउंगी और जब ये मुलाकात होगी तो मंदिर में उसके और मेरे सिवा कोई तीसरा नहीं होगा. यदि उस समय किसी और की आमद हुई तो फिर ठीक नहीं रहेगा

मैं- तुझे ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, मेरी वजह से तू मंदिर में कदम नहीं रखेगी .

निशा- ये तो शुरआत है दोस्त . रास्ता बड़ा लम्बा है ......

निशा ने मेरे कंधे पर सर रखा थोडा कम्बल खुद ओढा और आँखों को बंद कर लिया .........
हमने मंगू पर शक किया लेकिन उसके पास ठोस सबूत है कि वह गांव वालो के साथ नहर ठीक कर रहा था जिस पर शक कर रहे हैं उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिल रह है बल्कि कोई नया बखेड़ा खड़ा हो जाता है
भाभी निशा से मिलना चाहती है वो भी मंदिर में । मंदिर में मिलने का क्या प्रयोजन क्या है ये तो अभी पता नही है ये तो मिलने पर ही पता चलेगा ???? शायद कुछ तो बात है निशा ने भी एक शर्त रख दी कि निखट दोपहर में वो भी अकेली देखते हैं इसका क्या कारण है????
 

Little

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आँख खुली तो मैंने खुद को काली मंदिर में पड़े हुए पाया. भोर हो चुकी थी पर धुंध पसरी हुई थी . मैं घर आया आते ही मैंने भाभी को सारी बात बता दी की दोपहर में निशा उस से मिलेगी तय स्थान पर . मैं कुछ खाने के लिए चाची के घर में घुसा ही था की चंपा मिल गयी मुझे

चंपा- कहाँ गायब था तू

मैं- तू तो पूछ ही मत,

चंपा- मैं नहीं तो और कौन पूछेगी .

मैं- मैं पूछने का हक़ खो दिया है तूने , तूने मुझसे झूठ बोला .

चंपा- भला मैं क्यों झूठ बोलने लगी तुझसे

मैं- तो फिर बता उस रात तू घर से बाहर क्या कर रही थी .

चंपा- बताया तो सही

मैं- मुझे सच जानना है , हर बात का दोष मंगू पर नहीं डाल सकती तू

मेरी बात सुन कर चंपा खामोश हो गयी .

मैं- दरअसल दोष तेरा नहीं है दोष मेरा है जो मैं इस काबिल नहीं बन पाया की तू अपना मन खोल सके मेरे आगे. कोई नहीं मैं नहीं पूछता

मैंने कहा और रसोई की तरफ चल दिया. चंपा की ख़ामोशी मेरा दिल तोड़ रही थी . इस सवाल का जवाब मुझे ही तलाशना था .

खैर, अब इंतज़ार दोपहर का था मैंने व्यवस्था कर ली थी की छिप कर दोनों में क्या बात हुई सुन सकू. भाभी चूँकि, राय साब के परिवार की बहु थी मंदिर खाली करवाना उसके लिए कोई बड़ी बात थोड़ी न थी . तय समय पर भाभी मंदिर में पहुँच गयी . थोड़ी देर बीती, फिर और देर हुई और देर होती गयी . भाभी को भी अब खीज होने लगी थी . और मैं भी निशा के न आने से परेशां हो गया था .



“मैं जानती थी कोई नहीं आने वाला ” भाभी ने खुद से कहा .



तभी मंदिर के बाहर लगा घंटा जोर से गूँज उठा . अचानक से ही मेरी धडकने बढ़ सी गयी .मैंने देखा निशा सीढिय चढ़ कर उस तरफ आ रही थी जहा भाभी खड़ी थी . सफ़ेद घाघरा-चोली में निशा सर्दियों की खिली धुप सी जगमगा रही थी . माथे से होते हुए गालो को चूमती उसकी लटे अंधेरो में मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया था . उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था . ना सुख की शान न दुःख की फ़िक्र.

कोई और लम्हा होता तो मैं थाम लेता उसके हाथ को अपनेहाथ में . निशा किसी बिजली सी भाभी के नजदीक से निकली और माता की प्रतिमा के पास जाकर बैठ गयी .

“ ए लड़की किसी ने तुझे बताया नहीं की मंदिर में प्रवेश को हमने मना किया है थोड़े समय बाद आना तू ” भाभी ने कहा



“मैंने सुना है ये इश्वर का घर है और इश्वर के घर में कोई कभी भी आ जा सकता है ” निशा ने बिना भाभी की तरफ देखे कहा

भाभी- कोई और दिन होता तो मैं सहमत होती तुझसे पर आज मेरा कोई काम है तू बाद में आना

निशा- हमारे ही दीदार को तरफ रही थी आँखे तुम्हारी और हम ही से पर्दा करने को कह रही हो तुम

जैसे ही निशा ने ये कहा भाभी की आँखे हैरत से फ़ैल गयी .

“तो.... तो...... तो तुम हो वो ” भाभी बस इतना बोल पायी

निशा- तुम्हे क्या लगा , और किस्मे इतनी हिम्मत होगी की राय साहब की बहु के फरमान के बाद भी यहाँ पैर रखेगा.

भाभी ने ऊपर से निचे तक निशा का अवलोकन किया

निशा- अच्छी तरह से देख लो. मैं ही हूँ

भाभी- पर तुम ऐसी कैसे हो सकती हो

निशा- तुम ही बताओ फिर मैं कैसी हो सकती हूँ

भाभी के पास कोई जवाब नहीं था निशा की बात का .

निशा- तुमने कभी इसे भी साक्षात् नहीं देखा फिर भी इस पत्थर की मूर्त को तू पूजती है न मानती है न जब तू इसके रूप पर कोई सवाल नहीं करती तो मेरे रूप पर आपति कैसी . खैर मुद्दा ये नहीं है मुद्दा ये है की तुम क्यों मिलना चाहती थी मुझसे. आखिर ऐसी क्या वजह थी जो मुझे इन उजालो में आना पड़ा

भाभी- वजह थी , वजह है. वजह है कबीर. तुम ने न जाने क्या कर दिया है कबीर पर . वो पहले जैसा नहीं रहा .

निशा- वक्त सब को बदल देता है इसमें दोष समय का है मेरा क्या कसूर

भाभी- जब से कबीर तुझ से मिला है, वो पहले जैसा नहीं रहा . उसे तलब लगी है रक्त की , कितनी ही बार उसे पकड़ा गया है उन हालातो में जहाँ उसे बिलकुल भी नहीं होना चाहिए . ये उस पर तेरा सुरूर नहीं तो और क्या है.

निशा के चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गयी .

निशा- तो फिर रोक लो न उसे, मुझसे तो वो कुछ समय पहले मिला है तेरे साथ तो वो बचपन से रहा है . क्या तेरा हक़ इतना कमजोर हो गया ठकुराइन .

निशा की बात भाभी को बड़ी जोर से चुभी .

भाभी- दाद देती हूँ इस गुस्ताखी की ये जानते हुए भी की तू कहाँ खड़ी है

निशा- समझना तो तुम्हे चाहिए . जब तुमने यहाँ मिलने की शर्त राखी थी मैं तभी तुम्हारे मन के खोट को जान गयी थी पर देख लो मैं यहाँ खड़ी हु.

भाभी- यही तो एक डाकन का यहाँ होना अनोखा है

निशा- मुझे हमेशा से इंसानों की बुद्धिमता पर शक रहा है . तुम्हे देख कर और पुख्ता हो गया .

निशा ने जैसे भाभी का मजाक ही उड़ाया

निशा- जानती है तेरा देवर क्यों साथ है मेरे. क्योंकि उसका मन पवित्र है उसने मेरी हकीकत जानने के बाद भी मुझसे घृणा नहीं की. उसे मुझसे कोई डर नहीं है जैसा वो तेरे साथ है वैसे ही मेरे साथ . वो उस पहली मुलाकात से जानता था की मैं डाकन हु. न जाने वो मुझमे क्या देखता है पर मैं उसमे एक सच्चा इन्सान देखती हूँ . तुझे तो अभिमान होना चाहिए तेरी परवरिश पर , पर तू न जाने किस भाव से ग्रसित है

भाभी- मैं अपनी परवरिश को संभाल लुंगी . तुझसे मैं इतना चाहती हूँ तू कबीर को अपने चंगुल से आजाद कर . कुछ ऐसा कर की वो भूल जाये की कभी तुझसे मिला भी था वो . बदले में तुझे जो चाहिए वो दूंगी मैं तू चाहे जो मांग ले .

भाभी की बात सुन कर निशा जोर जोर से हंसने लगी. उसकी हंसी मंदिर में गूंजने लगी .

निशा- क्या ही देगी तू मुझे . हैं ही क्या तेरे पास देने को. ठकुराइन , मै अच्छी तरह से जानती हूँ एक डाकन और इन्सान का कोई मेल नहीं . मैं अपनी सीमाए समझती हूँ और तेरा देवर अपनी हदे जानता है . तू उसकी नेकी पर शक मत कर . ये दुनिया इस पत्थर की मूर्त को पुजती है वो तुझे पूजता है . इसके बराबर का दर्जा है उसके मन में तेरा .



भाभी- फिर भी मैं चाहती हूँ की तू उसकी जिन्दगी से निकल जा. दूर हो जा उस से.

निशा- इस पर मेरा कोई जोर नहीं ये नियति के हाथ में है

भाभी- कबीर की नियति मैं लिखूंगी

निशा- कर ले कोशिश कौन रोक रहा है तुझे.

भाभी- तू देखेगी, मैं देखूंगी और ये सारी दुनिया देखेगी .

निशा- फ़िलहाल तो मुझे तेरी झुंझलाहट दिख रही है ठकुराइन

भाभी- मेरे सब्र का इम्तिहान मत ले डाकन

निशा- मुद्दत हुई मेरा सब्र टूटे तेरी अगर यही जिद है तो तू भी कर ले अपने मन की , मुझे चुनोती देने का अंजाम भी समझ लेना . डायन एक घर छोडती है वो घर कबीर का था ........... सुन रही है न तू वो घर कबीर का था .

भाभी- मुझे चाहे को करना पड़े. एक से एक तांत्रिक, ओझा बुला लाऊंगी . पर इस गाँव और मेरे देवर पर आये संकट को जड से उखाड़ फेंकुंगी मैं


निशा- मैं इंतज़ार करुँगी .और तुम दुआ करना की दुबारा मुझे अंधेरो से इन उजालो की राह न देखनी पड़े................
Awsome
 

Studxyz

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चम्पा झूटी है इसका शक तो पहले ही था अब कबीर को ही सच खोजना पड़ेगा चम्पा तो तगड़ी चुदास से भरी लगती है

भाभी का निशा डायन जी से मिलना अति रोमांचक रहा पर भाभी ने अपने बड्डपन का कोई सबूत नहीं दिया अपने गरूर में ज्यादा रही और निशा ने एक जमीन से जुडी लड़की वाला होने वाला व्यवहार किया भाभी का गरूर ज़रूर टूटना चाहिए शुक्र मनाये भाभी की निशा डायन जी इतनी अच्छी है
 
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