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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#44

मुझे शिद्दत से मंगू का इंतज़ार था और जब वो आया तो उसके कपडे सने हुए थे कीचड़ से . हालत पस्त थी उसकी.

मैं- कहाँ गायब था बे

मंगू- भाई , खेतो की परली तरफ नहर का एक किनारा टूट गया काफी पानी भर गया है बहुत नुक्सान हो गया . किनारे की मरम्मत करने में देर हो गयी .

मैं- तू अकेला गया , मुझे बता तो सकता था न

मंगू- अकेला नहीं था उस तरफ जिनके भी खेत है सब लोग थे. तुझे इसलिए नहीं बताया की पहले ही चोट लगी है. पानी का बहाव फ़िलहाल के लिए तो रोक दिया है पर मुझे लगता नहीं की ज्यादा देर ये कोशिश कामयाब होगी , अभिमानु भाई ही मदद करेंगे अभी . मैं नहा लेता हु फिर भैया को बुलाने जाऊंगा.

मंगू के रात भर गायब होने की वजह ये थी . मैंने तस्दीक कर ली थी मंगू गाँव के और लोगो के साथ नहर के किनारे को ठीक करने में ही जुटा था . एक बार फिर से मैं घूम कर वहीँ पर आ गया था जहां से चला था . दोपहर में भाभी ने मुझसे कहा की डायन अगर मिलने को तैयार हो जाये तो वो गाँव के मंदिर में मिलना चाहेगी उस से. भाभी ने अपना दांव खेल दिया था उसने जान बुझ कर ऐसी जगह चुनी थी . पहली बार मुझे लगा की भाभी कितनी कुटिल है .



खैर उस रात को ये सुनिश्चित करने के बाद की कोई भी मेरा पीछा नहीं कर रहा मैं काले मंदिर के तालाब के पास पहुँच गया. पानी एकदम शांत था इतना शांत की जैसे तालाब था ही नहीं . सीली दिवार का सहारा लेते हुए मैं काली मंदिर की सीढिया चढ़ कर ऊपर पहुँच गया .



“माना के मेरे मुक्कद्दर में लिखे है ये अँधेरे , पर तुम क्यों अपनी राते काली करते हो ” निशा ने बिना मेरी तरफ देखे कहा. वो आज भी वैसे ही पीठ किये बैठी थी जैसा हमारी पहली मुलाकात में .

मैं- अंधियारों में तू एक जोगन और मेरा मन रमता जोगी.

निशा- जोग का रोग जो लगा बैठे न तो फिर सब से बेगाने हो जाओगे.

मैं- तू ही जाने क्या अपना क्या पराया

निशा- तू सबका तेरा कोई नहीं

मैं- तू तो है मेरी

निशा- मैं हूँ तेरी

वो हंसने लगी .

“मैं हूँ तेरी , क्या हूँ मैं तेरी मैं कुछ भी तो नहीं राख के एक ढेर के सिवा जिसे तू चिंगारी दे रहा है ” बोली वो

मैं- बस इतना जानता हूँ ये अंधियारे जितने तेरे है उतने मेरे

निशा- मत कह ऐसा . मेरी तो नियति है तू अपने उजालो से दगा मत कर

वो उठ कर मेरे पास आई . अँधेरी रात में उसकी मर्ग्नय्नी आँखे मेरे मन को टटोलने लगी.

निशा- बता क्या है मन में

मैं- बहुत कुछ , कुछ कहना है है कुछ छिपाना है .

निशा- आ बैठ पास मेरे .

निशा ने अपना सर मेरे काँधे पर रखा

मैं- आहिस्ता से, दर्द होता है .

निशा- कैसा दर्द

मैं- घाव लगा है

निशा- देखू जरा

मैं- तेरी मर्जी

निशा ने मेरा कम्बल एक तरफ किया और पट्टियों को तार तार कर दिया . उसकी सर्द सांसो ने घाव के रस्ते होते हुए दिल पर दस्तक दे दी.

निशा- कब हुआ ये

मैं- थोड़े दिन बीते

निशा- दो मिनट रुक

वो उस तरफ गयी जहाँ वो बैठी थी वापसी में एक झोला लेकर आई . उसमे से कुछ निकाला और बोली- दर्द होगा सह पायेगा .

मैं- मर्द को दर्द नहीं होता जाना

निशा- ठीक है फिर

उसने मेरे कंधे में कुछ नुकीली छुरी सा घुसा दिया और मैं लगभग चीख ही पड़ा था की उसने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- मर्द जी , ये तो शुरुआत है .

मुझे लगा की वो मेरे मांस को काट रही है . दर्द बहुत हो रहा था पर मैं कमजोर नहीं पड़ा . उसने झोले से एक शीशी निकाली और मेरे घाव के छेद में उड़ेलने लगी. मैंने महसूस किया की मेरे तन में आग लग गई हो.

पर ये तो शुरुआत थी . उसने आग जलाई और एक चाक़ू को गर्म करने लगी.

निशा- शोर मत करना . मुझे पसंद नहीं है .

मैं- क्या करने वाली है तू

निशा- जान जायेगा उसने अपनी चुनर उतारी और बोली- मुह में दबा ले .

मेरे वैसा करते ही उसने सुलगते चाकू को मेरे काँधे में धंसा दिया . उफफ्फ्फ्फ़ कसम से मर ही गया था मैं तो . निशा ने जख्म को दाग दिया था.

“बस हो गया ” उसने बेताक्लुफ्फी से कहा और कम्बल वापिस ओढा दिया मुझे .

मैं- जान लेनी थी तो वैसे ही ले लेती .

निशा- क्या करुँगी मैं इतनी सस्ती जान का

मैं- ये तेरी कमी हुई जो तूने सस्ती जान का सौदा किया

निशा- छोड़ इन बातो को मुझे मालूम हुआ कुछ परेशानी है तुझे

मैं- परेशानी तो जिन्दगी भर रहनी ही हैं .तुझे तो मालूम है की मेरी भाभी ने मेरा जीना मुश्किल किया हुआ है . उसे लगता है की गाँव में जो भी ये हो रहा है मैं कातिल हूँ

निशा- सच कहती है तेरी भाभी कातिल तो तू है

मैं- मैं कातिल हूँ ये तू समझती है वो नहीं

निशा- तो समझा उसे

मैं- मैंने उसे बताया सब कुछ बताया अब उसकी जिद है की वो तुझसे मिलेगी .

निशा-डाकन से मिल कर क्या करेगी वो

मैं- मैंने भी यही कहा उसे पर वो जिद किये हुई है

निशा- ठीक है फिर तेरी भाभी की जिद पूरी कर देती हूँ उस से कहना की तेरे कुवे पर मिलूंगी मैं उस से पर वो अकेली आयेगी.

मैं- तुझे कोई जरुरत नहीं है उसके सामने आने की

निशा- तू साथी है मेरा इन अधियारो में जब कोई नहीं था तू ही तो था . मेरी वजह से तुझे परेशानी हो . तू तकलीफ में होगा तो मैं चैन कैसे पाऊँगी . और फिर एक मुलाकात की ही तो बात है

मैं- तू समझ नहीं रही है

निशा- समझा फिर

मैं- भाभी तुझसे गाँव के मंदिर में मिलना चाहती है

मेरी बात सुन कर निशा थोड़ी देर के लिए खामोश हो गयी मैं उसके चेहरे की तरफ देखता रहा .

निशा- बस इतनी सी बात , चलो ये भी सही . भाभी से कहना की मैं उसकी हसरत जरुर पूरी करुँगी पर मेरी भी एक शर्त है की मैं उस से निखट दुपहरी में मिलने आउंगी और जब ये मुलाकात होगी तो मंदिर में उसके और मेरे सिवा कोई तीसरा नहीं होगा. यदि उस समय किसी और की आमद हुई तो फिर ठीक नहीं रहेगा

मैं- तुझे ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, मेरी वजह से तू मंदिर में कदम नहीं रखेगी .

निशा- ये तो शुरआत है दोस्त . रास्ता बड़ा लम्बा है ......

निशा ने मेरे कंधे पर सर रखा थोडा कम्बल खुद ओढा और आँखों को बंद कर लिया .........

 

brego4

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“माना के मेरे मुक्कद्दर में लिखे है ये अँधेरे , पर तुम क्यों अपनी राते काली करते हो ”

अंधियारों में तू एक जोगन और मेरा मन रमता जोगी............
such dialogues between kabir and nisha takes thie story to the top of romantic heights

Bhabhi shreef nahi nisha ko mandir me hi kyon bulaya gaya ?

mandir me kuch lafda hoyenga zaroor
 
Last edited:

Studxyz

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वाह भाई जब जब निशा डायन जी कबीर से मिलती है कहानी बेहद रोमांचक व् प्यार भरी हो जाती है

भाभी गेम पर खेल पर खेल रही है इसके शक के पीछे भी कोई राज़ होगा मेरी मानो तो इसे अभिमानु से ही चुदवा दो कुछ तो शांत रहेगी कबीर से तो इसका भाभी माँ वाला ही रिश्ता लगता है |

अगर शातिर भाभी ने मंदिर में निशा से मिलने के समय किसी तांत्रिक या फिर किसी पंडित को बुलवा लिया तो नया कांड होना तय है निशा ने कबीर के ये कैसा इलाज किया है ?

मंगू फिर से सबूत समेत निर्दोष साबित हुआ पर असल में तो अपनी सगी बहन व् कविता को चोदता रहा है वो भी कबीर से छुपा कर अब देखो कहीं चम्पा भी झूटी ना हो और कबीर के भाई से भी चुदती हो ?
 
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Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Samjh me nahi aa raha hai jispar hume shak hota hai uske khilaf koi saboot nahi hote hai or koi kadi bhi nahi mil ragi hai, Bhabhi ne milne ke liye mandir me kaha to isse koi problem nahi honi chahiye kyuki nisha abhi bhi to mandir me hi rahti hai, yah jaana dilchasp honga ki bhabhi kyu nisha se milna chahti hai or unke man hai aakhir hai kya...

Kabir ko nisha jab saath hote hai sabkuch pyaara sa ho jaata hai or saath me jab bemisaal swaand ho to ye or bhi jaada khubsurat lagta hai.

“माना के मेरे मुक्कद्दर में लिखे है ये अँधेरे , पर तुम क्यों अपनी राते काली करते हो "

अंधियारों में तू एक जोगन और मेरा मन रमता जोगी.

जोग का रोग जो लगा बैठे न तो फिर सब से बेगाने हो जाओगे.​

Lajawab :love2:

In khubsurat shabdo ko read karne ke baad hume aapke dawara hi likhe kuch shabd yaad aa gaye...

ये भटकाव अच्छा नहीं इश्क बुरी बला होती है लग जाये तो आसानी से पीछा नहीं छूटता हम तुम्हे मना तो नहीं कर सकते पर इतना जरुर कहेंगे की प्रीत का स्वाद जो चखा जुबान ने फिर बेगाने हुए जग से समझो ..

Intzaar rahega...
 

Though_Guy

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#44

मुझे शिद्दत से मंगू का इंतज़ार था और जब वो आया तो उसके कपडे सने हुए थे कीचड़ से . हालत पस्त थी उसकी.

मैं- कहाँ गायब था बे

मंगू- भाई , खेतो की परली तरफ नहर का एक किनारा टूट गया काफी पानी भर गया है बहुत नुक्सान हो गया . किनारे की मरम्मत करने में देर हो गयी .

मैं- तू अकेला गया , मुझे बता तो सकता था न

मंगू- अकेला नहीं था उस तरफ जिनके भी खेत है सब लोग थे. तुझे इसलिए नहीं बताया की पहले ही चोट लगी है. पानी का बहाव फ़िलहाल के लिए तो रोक दिया है पर मुझे लगता नहीं की ज्यादा देर ये कोशिश कामयाब होगी , अभिमानु भाई ही मदद करेंगे अभी . मैं नहा लेता हु फिर भैया को बुलाने जाऊंगा.

मंगू के रात भर गायब होने की वजह ये थी . मैंने तस्दीक कर ली थी मंगू गाँव के और लोगो के साथ नहर के किनारे को ठीक करने में ही जुटा था . एक बार फिर से मैं घूम कर वहीँ पर आ गया था जहां से चला था . दोपहर में भाभी ने मुझसे कहा की डायन अगर मिलने को तैयार हो जाये तो वो गाँव के मंदिर में मिलना चाहेगी उस से. भाभी ने अपना दांव खेल दिया था उसने जान बुझ कर ऐसी जगह चुनी थी . पहली बार मुझे लगा की भाभी कितनी कुटिल है .



खैर उस रात को ये सुनिश्चित करने के बाद की कोई भी मेरा पीछा नहीं कर रहा मैं काले मंदिर के तालाब के पास पहुँच गया. पानी एकदम शांत था इतना शांत की जैसे तालाब था ही नहीं . सीली दिवार का सहारा लेते हुए मैं काली मंदिर की सीढिया चढ़ कर ऊपर पहुँच गया .



“माना के मेरे मुक्कद्दर में लिखे है ये अँधेरे , पर तुम क्यों अपनी राते काली करते हो ” निशा ने बिना मेरी तरफ देखे कहा. वो आज भी वैसे ही पीठ किये बैठी थी जैसा हमारी पहली मुलाकात में .

मैं- अंधियारों में तू एक जोगन और मेरा मन रमता जोगी.

निशा- जोग का रोग जो लगा बैठे न तो फिर सब से बेगाने हो जाओगे.

मैं- तू ही जाने क्या अपना क्या पराया

निशा- तू सबका तेरा कोई नहीं

मैं- तू तो है मेरी

निशा- मैं हूँ तेरी

वो हंसने लगी .

“मैं हूँ तेरी , क्या हूँ मैं तेरी मैं कुछ भी तो नहीं राख के एक ढेर के सिवा जिसे तू चिंगारी दे रहा है ” बोली वो

मैं- बस इतना जानता हूँ ये अंधियारे जितने तेरे है उतने मेरे

निशा- मत कह ऐसा . मेरी तो नियति है तू अपने उजालो से दगा मत कर

वो उठ कर मेरे पास आई . अँधेरी रात में उसकी मर्ग्नय्नी आँखे मेरे मन को टटोलने लगी.

निशा- बता क्या है मन में

मैं- बहुत कुछ , कुछ कहना है है कुछ छिपाना है .

निशा- आ बैठ पास मेरे .

निशा ने अपना सर मेरे काँधे पर रखा

मैं- आहिस्ता से, दर्द होता है .

निशा- कैसा दर्द

मैं- घाव लगा है

निशा- देखू जरा

मैं- तेरी मर्जी

निशा ने मेरा कम्बल एक तरफ किया और पट्टियों को तार तार कर दिया . उसकी सर्द सांसो ने घाव के रस्ते होते हुए दिल पर दस्तक दे दी.

निशा- कब हुआ ये

मैं- थोड़े दिन बीते

निशा- दो मिनट रुक

वो उस तरफ गयी जहाँ वो बैठी थी वापसी में एक झोला लेकर आई . उसमे से कुछ निकाला और बोली- दर्द होगा सह पायेगा .

मैं- मर्द को दर्द नहीं होता जाना

निशा- ठीक है फिर

उसने मेरे कंधे में कुछ नुकीली छुरी सा घुसा दिया और मैं लगभग चीख ही पड़ा था की उसने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- मर्द जी , ये तो शुरुआत है .

मुझे लगा की वो मेरे मांस को काट रही है . दर्द बहुत हो रहा था पर मैं कमजोर नहीं पड़ा . उसने झोले से एक शीशी निकाली और मेरे घाव के छेद में उड़ेलने लगी. मैंने महसूस किया की मेरे तन में आग लग गई हो.

पर ये तो शुरुआत थी . उसने आग जलाई और एक चाक़ू को गर्म करने लगी.

निशा- शोर मत करना . मुझे पसंद नहीं है .

मैं- क्या करने वाली है तू

निशा- जान जायेगा उसने अपनी चुनर उतारी और बोली- मुह में दबा ले .

मेरे वैसा करते ही उसने सुलगते चाकू को मेरे काँधे में धंसा दिया . उफफ्फ्फ्फ़ कसम से मर ही गया था मैं तो . निशा ने जख्म को दाग दिया था.

“बस हो गया ” उसने बेताक्लुफ्फी से कहा और कम्बल वापिस ओढा दिया मुझे .

मैं- जान लेनी थी तो वैसे ही ले लेती .

निशा- क्या करुँगी मैं इतनी सस्ती जान का

मैं- ये तेरी कमी हुई जो तूने सस्ती जान का सौदा किया

निशा- छोड़ इन बातो को मुझे मालूम हुआ कुछ परेशानी है तुझे

मैं- परेशानी तो जिन्दगी भर रहनी ही हैं .तुझे तो मालूम है की मेरी भाभी ने मेरा जीना मुश्किल किया हुआ है . उसे लगता है की गाँव में जो भी ये हो रहा है मैं कातिल हूँ

निशा- सच कहती है तेरी भाभी कातिल तो तू है

मैं- मैं कातिल हूँ ये तू समझती है वो नहीं

निशा- तो समझा उसे

मैं- मैंने उसे बताया सब कुछ बताया अब उसकी जिद है की वो तुझसे मिलेगी .

निशा-डाकन से मिल कर क्या करेगी वो

मैं- मैंने भी यही कहा उसे पर वो जिद किये हुई है

निशा- ठीक है फिर तेरी भाभी की जिद पूरी कर देती हूँ उस से कहना की तेरे कुवे पर मिलूंगी मैं उस से पर वो अकेली आयेगी.

मैं- तुझे कोई जरुरत नहीं है उसके सामने आने की

निशा- तू साथी है मेरा इन अधियारो में जब कोई नहीं था तू ही तो था . मेरी वजह से तुझे परेशानी हो . तू तकलीफ में होगा तो मैं चैन कैसे पाऊँगी . और फिर एक मुलाकात की ही तो बात है

मैं- तू समझ नहीं रही है

निशा- समझा फिर

मैं- भाभी तुझसे गाँव के मंदिर में मिलना चाहती है

मेरी बात सुन कर निशा थोड़ी देर के लिए खामोश हो गयी मैं उसके चेहरे की तरफ देखता रहा .

निशा- बस इतनी सी बात , चलो ये भी सही . भाभी से कहना की मैं उसकी हसरत जरुर पूरी करुँगी पर मेरी भी एक शर्त है की मैं उस से निखट दुपहरी में मिलने आउंगी और जब ये मुलाकात होगी तो मंदिर में उसके और मेरे सिवा कोई तीसरा नहीं होगा. यदि उस समय किसी और की आमद हुई तो फिर ठीक नहीं रहेगा

मैं- तुझे ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, मेरी वजह से तू मंदिर में कदम नहीं रखेगी .

निशा- ये तो शुरआत है दोस्त . रास्ता बड़ा लम्बा है ......

निशा ने मेरे कंधे पर सर रखा थोडा कम्बल खुद ओढा और आँखों को बंद कर लिया .........
Zabardast Update Sir Ji
 

lpncc7m5

New Member
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Romanchak update bro ab dayan jayegi milne bhabhi se but ye hamesha akele me hi milne ko kyu bolti hai ek se hi sirf ek insaan ho aas pass



मैं- परेशानी तो जिन्दगी भर रहनी ही हैं .तुझे तो मालूम है की मेरी भाभी ने मेरा जीना मुश्किल किया हुआ है . उसे लगता है की गाँव में जो भी ये हो रहा है मैं कातिल हूँ

निशा- सच कहती है तेरी भाभी कातिल तो तू है

मैं- मैं कातिल हूँ ये तू समझती है वो नहीं
Ye saamjh nahi aaya isme tum Dayan keh rahi hai tum hi katil ho vo bhi accept kar raha hai ye kya locha hai
 
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