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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#43

सियार को देख कर सारे घर वालो में अफरा तफरी मच गयी . भैया ने उसे मारने के लिए लट्ठ उठा लिया पर मैंने उन्हें रोका. सियार मेरी गोद में चढ़ गया और मेरे कानो को चाटने लगा.

मैं- भैया, ये मेरा दोस्त है .

मेरी बात सुन कर सब लोगो को हैरत हुई

भैया- पर ये जानवर पालतू नहीं हो सकता

मैं- आपके सामने ही है, दरअसल ये अपने खेतो के आस पास ही रहता है कई बार आ जाता है , फिर मुझे भी इस से लगाव हो गया . ये किसी को नुकसान नहीं करेगा भरोसा करो

मैंने कहा तो था पर मेरी बात का घरवालो को रत्ती भर भी यकीन नहीं था खासकर भाभी को . ऊपर से सियार को यहाँ वो पचा नहीं पा रही थी .

मैने सियार को पुचकारा और कहा - तू जा वापिस मैं जल्दी ही आऊंगा मिलने

भाभी- किस से मिलने की बात कर रहे हो

मैं- इसको ही कह रहा हूँ भाभी

इस से पहले की वो कुछ और कहती वैध जी ने भैया से एक तरफ आने को कहा और न जाने उन दोनों में क्या बात हुई फिर वैध और भैया घर से बाहर चले गए. भाभी की जलती नजरो से मुझे कोफ़्त होने लगी थी . मैंने सियार को इशारा किया और उसके पीछे मैं भी चल दिया .

भाभी- अब कहा चल दिए.

मैं- हम दोनों यहाँ रहेंगे तो आप को परेशानी होगी.

भाभी- मुझे परेशानी होगी , कमबख्त मेरा बस नहीं चल रहा वर्ना मैं पीट देती तुझे .

मैं- भाभी आपका दर्जा बहुत ऊँचा है मेरी नजरो में , मैंने आप से कभी झूठ नहीं बोला मैंने आपको सच बताया की मैं किस से मिलता हूँ , किस से मिलने जाता हूँ ये सियार भी उसका ही है . आप चाहे मानो या न मानो वो वैसी बिलकुल नहीं है जैसा हम किस्से-कहानियो में सुनते आये है . उसे कुछ गलत करना होता तो वो न जाने कब का कर चुकी होती .

भाभी- ये बकवास बंद कर तू मैं बस इतना जानना चाहती हूँ की तू इतनी रात को चंपा के साथ क्या कर रहा था .

मैं- चंपा को होश आये तो उस से ही पूछ लेना . चाची चलो यहाँ से

मैंने चाची का हाथ पकड़ा और उसे लेकर चाची के घर आ गया .

चाची- कबीर , मैं जानती हूँ तू मुझसे कभी झूठ नहीं बोलेगा

मैं- मैंने तुझे भी तो सच ही कहा था न की डायन मेरी दोस्त है

मेरी बात सुन कर चाची के माथे पर बल पड़ गए .

चाची- डाकन की दोस्ती माणूस से असंभव है . अगर ऐसा है भी तो उसने जरुर कुछ किया होगा तेरे ऊपर

मैं- तूने क्या बदलाव देखा मेरे अन्दर क्या मैंने किसी का जरा भी बुरा किया . मेरा बिस्वास कर मेरा कोई अहित नहीं है उसके साथ रहने में

चाची का चेहरा पूरा लाल हो गया था

“सो जा तुझे आराम की जरुरत है ” चाची ने बस इतना ही कहा .

सुबह आँख खुली तो बदन दर्द से टूट रहा था . सामने कुर्सी पर भाभी बैठी थी . मैंने उससे कोई बात नहीं की उठ कर बदन पर एक शाल लपेटा और घर से बाहर निकल ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए

भाभी- मैं उस डायन से मिलना चाहती हूँ

मैं- उसकी मर्जी होगी तो जरुर मिलेगी आप से

भाभी- तुम लेकर चलो मुझे उस के पास

मैं- मैंने कहा न जब उसका जी करेगा वो जरुर मिलेगी

भाभी- कुंवर, तुम्हे यूँ देख कर मुझे तकलीफ होती है सोचती हूँ की मेरी परवरिश में कहाँ कमी रह गयी

मैं- मुझे गर्व है की आपने मेरी परवरिश की और एक दिन आयेगा जब आप मुझे समझेगी और अपने आँचल तले ले लेंगी .

भाभी- मैं सिर्फ इतना कह रही हूँ की अपनी दोस्त से मुझे मिलवाने में क्या परेशानी है तुझे

मैं- मैंने कहा न उसकी इच्छा होगी तो जरुर मिलेगी

भाभी- और कब होगी उसकी इच्छा

मैं- ये तो वो जाने .

भाभी- कुंवर, ये जो भो षड्यंत्र तुम रच रहे हो न इसका पर्दाफाश मैं जरुर करुँगी , मैंने चंपा से भी पूछा उसने कहा की उसे याद नहीं . मैंने कुछ रोज पहले चंपा को तुम्हारी बाँहों में देखा था . दुआ करना मेरा शक गलत साबित हो .

मैं- चंपा को गले लगाना गलत है क्या . आप भी जानती है उसे .

भाभी - तो फिर क्यों नहीं बताया उसने की रात में घर से बाहर क्यों थी वो

मैं- शायद उसने जरुरी नहीं समझा होगा.

भाभी - इतनी बड़ी नहीं हुई है वो अभी

मैं- मुझे जाना है बाहर

खुली हवा में आकर मैंने सांस ली तो करार मिला. भैया अखाड़े में थे मैं वही चला गया .

भाई- अरे छोटे, आराम करना चाहिए न

मैं- आराम ही है भैया

भैया- मैं नहा लेता हु फिर तुझे वापिस शहर ले चलता हूँ डॉक्टर के पास

मैं- ठीक है भैया , बस पट्टी ही तो करवानी है वैध कर देगा

भैया- वैसे कल अच्छी बहादुरी दिखाई तूने

मैं- आप न होते तो मामला हाथ से निकल ही गया था

भैया- उठा पटक की आवाज ने नींद तोड़ दी . मैंने खिड़की से देखा की दरवाजा खुला पड़ा है उसे बंद करने ही आया था की तुम लोगो की चीख पुकार सुनी भैया पर वो कारीगर को हुआ क्या था कुछ समझ नही आया

मैं- मुझे भी तलाश है इस सवाल के जवाब की

भैया- तू फ़िक्र मत कर मैं मालूम कर ही लूँगा.

मैं चंपा के पास गया वो लेटी हुई थी उसकी माँ को मैंने एक कप चाय के लिए कहा और चंपा से मुखातिब हुआ

मैं- बस एक ही सवाल है मेरा और सच सुनना चाहता हूँ , इतनी रात को घर से बाहर क्या कर रही थी तू.

चंपा- मैं सोयी पड़ी थी , अचानक से एक आहट से मेरी आँख खुल गयी मैंने देखा की आँगन में एक छाया है . गौर किया तो मालूम हुआ की मंगू था जो घर से बाहर जा रहा था .

मैं- इतनी रात को कहाँ जा रहा था वो .

चंपा- यही सवाल मेरे मन में भी था मैं भी उसके पीछे दबे पाँव हो ली . गली में पहुची इतने वो गायब हो चूका था . मैंने सोचा की इधर उधर देखूं उसे की तभी न जाने कहाँ से वो कारीगर आ गया और मुझे दबोच लिया ये तो शुक्र था की तू मिल गया

मैं- अभी कहा है मंगू.

चंपा मालूम नहीं लौट कर आया नहीं वो .

मैं- भाभी को लगता है की रात में तू मुझसे मिलने आई थी

चंपा- सच में

मैं- तेरी कसम

चंपा- सच तू जानता तो है

मैं- तेरे मेरे कहने से क्या होता है , कल को भाभी ये आरोप लगा दे की तू मुझसे चुदने आई थी रात को तो कोई हैरानी नहीं

चंपा- मैं भाभी से बात करुँगी

मैं- पिछले कुछ दिनों में मंगू के व्यवहार में किसी तरह का परिवर्तन लगा है क्या तुझे

चंपा- कुछ खास नहीं बस आजकल वो तेरे साथ खेतो पर नहीं रहता रातो को

मैं - कहाँ कटती है उसकी राते

चंपा यही घर पर ही . कभी कभी दारु की दूकान पर जरुर जाता है पर समय से ही लौट आता है .

दारू की दुकान का सुन कर मुझे दारा की याद आयी . मुझे लगा की कहीं सूरजभान ने ही तो मंगू को अपने जाल में फंसा लिया हो मुझसे दुश्मनी के चलते . पर क्या ये मेरा वहम हो सकता था जो भी था मुझे सच की तलाश करनी ही थी .
 

Studxyz

Well-Known Member
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कहानी के कई रूप सामने आये और अब शायद कहानी इन्ही से आगे बढ़ेगी भाभी ही का निशा डायन जी से मिलने का आग्रह एक ज़बरदस्त आकर्षक बदलाव है और ये मिलन अजूबा व् रोमाँचक होने वाला है

भोसडी वाला मंगु शक के दायरे में नंबर 1 पर है फिर चची या भाभी या भाई या फिर कबीर का पिता कहाँ है सब पर शक करना चाहिए लेकिन बहुत से सस्पैंस निशा ही खोल सकती है
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Bhabhi toh haat dho kar peche padgai Kabeer ke, aur yeh mangu kabhi kuch samajh se bahar hai
Lagta hai vaidyaji Ko insab gatana kram ki kuchh toh jankari ho, dekte hai agey kyaa hoga!!
 

Game888

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सियार को देख कर सारे घर वालो में अफरा तफरी मच गयी . भैया ने उसे मारने के लिए लट्ठ उठा लिया पर मैंने उन्हें रोका. सियार मेरी गोद में चढ़ गया और मेरे कानो को चाटने लगा.

मैं- भैया, ये मेरा दोस्त है .

मेरी बात सुन कर सब लोगो को हैरत हुई

भैया- पर ये जानवर पालतू नहीं हो सकता

मैं- आपके सामने ही है, दरअसल ये अपने खेतो के आस पास ही रहता है कई बार आ जाता है , फिर मुझे भी इस से लगाव हो गया . ये किसी को नुकसान नहीं करेगा भरोसा करो

मैंने कहा तो था पर मेरी बात का घरवालो को रत्ती भर भी यकीन नहीं था खासकर भाभी को . ऊपर से सियार को यहाँ वो पचा नहीं पा रही थी .

मैने सियार को पुचकारा और कहा - तू जा वापिस मैं जल्दी ही आऊंगा मिलने

भाभी- किस से मिलने की बात कर रहे हो

मैं- इसको ही कह रहा हूँ भाभी

इस से पहले की वो कुछ और कहती वैध जी ने भैया से एक तरफ आने को कहा और न जाने उन दोनों में क्या बात हुई फिर वैध और भैया घर से बाहर चले गए. भाभी की जलती नजरो से मुझे कोफ़्त होने लगी थी . मैंने सियार को इशारा किया और उसके पीछे मैं भी चल दिया .

भाभी- अब कहा चल दिए.

मैं- हम दोनों यहाँ रहेंगे तो आप को परेशानी होगी.

भाभी- मुझे परेशानी होगी , कमबख्त मेरा बस नहीं चल रहा वर्ना मैं पीट देती तुझे .

मैं- भाभी आपका दर्जा बहुत ऊँचा है मेरी नजरो में , मैंने आप से कभी झूठ नहीं बोला मैंने आपको सच बताया की मैं किस से मिलता हूँ , किस से मिलने जाता हूँ ये सियार भी उसका ही है . आप चाहे मानो या न मानो वो वैसी बिलकुल नहीं है जैसा हम किस्से-कहानियो में सुनते आये है . उसे कुछ गलत करना होता तो वो न जाने कब का कर चुकी होती .

भाभी- ये बकवास बंद कर तू मैं बस इतना जानना चाहती हूँ की तू इतनी रात को चंपा के साथ क्या कर रहा था .

मैं- चंपा को होश आये तो उस से ही पूछ लेना . चाची चलो यहाँ से

मैंने चाची का हाथ पकड़ा और उसे लेकर चाची के घर आ गया .

चाची- कबीर , मैं जानती हूँ तू मुझसे कभी झूठ नहीं बोलेगा

मैं- मैंने तुझे भी तो सच ही कहा था न की डायन मेरी दोस्त है

मेरी बात सुन कर चाची के माथे पर बल पड़ गए .

चाची- डाकन की दोस्ती माणूस से असंभव है . अगर ऐसा है भी तो उसने जरुर कुछ किया होगा तेरे ऊपर

मैं- तूने क्या बदलाव देखा मेरे अन्दर क्या मैंने किसी का जरा भी बुरा किया . मेरा बिस्वास कर मेरा कोई अहित नहीं है उसके साथ रहने में

चाची का चेहरा पूरा लाल हो गया था

“सो जा तुझे आराम की जरुरत है ” चाची ने बस इतना ही कहा .

सुबह आँख खुली तो बदन दर्द से टूट रहा था . सामने कुर्सी पर भाभी बैठी थी . मैंने उससे कोई बात नहीं की उठ कर बदन पर एक शाल लपेटा और घर से बाहर निकल ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए

भाभी- मैं उस डायन से मिलना चाहती हूँ

मैं- उसकी मर्जी होगी तो जरुर मिलेगी आप से

भाभी- तुम लेकर चलो मुझे उस के पास

मैं- मैंने कहा न जब उसका जी करेगा वो जरुर मिलेगी

भाभी- कुंवर, तुम्हे यूँ देख कर मुझे तकलीफ होती है सोचती हूँ की मेरी परवरिश में कहाँ कमी रह गयी

मैं- मुझे गर्व है की आपने मेरी परवरिश की और एक दिन आयेगा जब आप मुझे समझेगी और अपने आँचल तले ले लेंगी .

भाभी- मैं सिर्फ इतना कह रही हूँ की अपनी दोस्त से मुझे मिलवाने में क्या परेशानी है तुझे

मैं- मैंने कहा न उसकी इच्छा होगी तो जरुर मिलेगी

भाभी- और कब होगी उसकी इच्छा

मैं- ये तो वो जाने .

भाभी- कुंवर, ये जो भो षड्यंत्र तुम रच रहे हो न इसका पर्दाफाश मैं जरुर करुँगी , मैंने चंपा से भी पूछा उसने कहा की उसे याद नहीं . मैंने कुछ रोज पहले चंपा को तुम्हारी बाँहों में देखा था . दुआ करना मेरा शक गलत साबित हो .

मैं- चंपा को गले लगाना गलत है क्या . आप भी जानती है उसे .

भाभी - तो फिर क्यों नहीं बताया उसने की रात में घर से बाहर क्यों थी वो

मैं- शायद उसने जरुरी नहीं समझा होगा.

भाभी - इतनी बड़ी नहीं हुई है वो अभी

मैं- मुझे जाना है बाहर

खुली हवा में आकर मैंने सांस ली तो करार मिला. भैया अखाड़े में थे मैं वही चला गया .

भाई- अरे छोटे, आराम करना चाहिए न

मैं- आराम ही है भैया

भैया- मैं नहा लेता हु फिर तुझे वापिस शहर ले चलता हूँ डॉक्टर के पास

मैं- ठीक है भैया , बस पट्टी ही तो करवानी है वैध कर देगा

भैया- वैसे कल अच्छी बहादुरी दिखाई तूने

मैं- आप न होते तो मामला हाथ से निकल ही गया था

भैया- उठा पटक की आवाज ने नींद तोड़ दी . मैंने खिड़की से देखा की दरवाजा खुला पड़ा है उसे बंद करने ही आया था की तुम लोगो की चीख पुकार सुनी भैया पर वो कारीगर को हुआ क्या था कुछ समझ नही आया

मैं- मुझे भी तलाश है इस सवाल के जवाब की

भैया- तू फ़िक्र मत कर मैं मालूम कर ही लूँगा.

मैं चंपा के पास गया वो लेटी हुई थी उसकी माँ को मैंने एक कप चाय के लिए कहा और चंपा से मुखातिब हुआ

मैं- बस एक ही सवाल है मेरा और सच सुनना चाहता हूँ , इतनी रात को घर से बाहर क्या कर रही थी तू.

चंपा- मैं सोयी पड़ी थी , अचानक से एक आहट से मेरी आँख खुल गयी मैंने देखा की आँगन में एक छाया है . गौर किया तो मालूम हुआ की मंगू था जो घर से बाहर जा रहा था .

मैं- इतनी रात को कहाँ जा रहा था वो .

चंपा- यही सवाल मेरे मन में भी था मैं भी उसके पीछे दबे पाँव हो ली . गली में पहुची इतने वो गायब हो चूका था . मैंने सोचा की इधर उधर देखूं उसे की तभी न जाने कहाँ से वो कारीगर आ गया और मुझे दबोच लिया ये तो शुक्र था की तू मिल गया

मैं- अभी कहा है मंगू.

चंपा मालूम नहीं लौट कर आया नहीं वो .

मैं- भाभी को लगता है की रात में तू मुझसे मिलने आई थी

चंपा- सच में

मैं- तेरी कसम

चंपा- सच तू जानता तो है

मैं- तेरे मेरे कहने से क्या होता है , कल को भाभी ये आरोप लगा दे की तू मुझसे चुदने आई थी रात को तो कोई हैरानी नहीं

चंपा- मैं भाभी से बात करुँगी

मैं- पिछले कुछ दिनों में मंगू के व्यवहार में किसी तरह का परिवर्तन लगा है क्या तुझे

चंपा- कुछ खास नहीं बस आजकल वो तेरे साथ खेतो पर नहीं रहता रातो को

मैं - कहाँ कटती है उसकी राते

चंपा यही घर पर ही . कभी कभी दारु की दूकान पर जरुर जाता है पर समय से ही लौट आता है .


दारू की दुकान का सुन कर मुझे दारा की याद आयी . मुझे लगा की कहीं सूरजभान ने ही तो मंगू को अपने जाल में फंसा लिया हो मुझसे दुश्मनी के चलते . पर क्या ये मेरा वहम हो सकता था जो भी था मुझे सच की तलाश करनी ही थी .
Interesting update bro 💐
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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सियार को देख कर सारे घर वालो में अफरा तफरी मच गयी . भैया ने उसे मारने के लिए लट्ठ उठा लिया पर मैंने उन्हें रोका. सियार मेरी गोद में चढ़ गया और मेरे कानो को चाटने लगा.

मैं- भैया, ये मेरा दोस्त है .

मेरी बात सुन कर सब लोगो को हैरत हुई

भैया- पर ये जानवर पालतू नहीं हो सकता

मैं- आपके सामने ही है, दरअसल ये अपने खेतो के आस पास ही रहता है कई बार आ जाता है , फिर मुझे भी इस से लगाव हो गया . ये किसी को नुकसान नहीं करेगा भरोसा करो

मैंने कहा तो था पर मेरी बात का घरवालो को रत्ती भर भी यकीन नहीं था खासकर भाभी को . ऊपर से सियार को यहाँ वो पचा नहीं पा रही थी .

मैने सियार को पुचकारा और कहा - तू जा वापिस मैं जल्दी ही आऊंगा मिलने

भाभी- किस से मिलने की बात कर रहे हो

मैं- इसको ही कह रहा हूँ भाभी

इस से पहले की वो कुछ और कहती वैध जी ने भैया से एक तरफ आने को कहा और न जाने उन दोनों में क्या बात हुई फिर वैध और भैया घर से बाहर चले गए. भाभी की जलती नजरो से मुझे कोफ़्त होने लगी थी . मैंने सियार को इशारा किया और उसके पीछे मैं भी चल दिया .

भाभी- अब कहा चल दिए.

मैं- हम दोनों यहाँ रहेंगे तो आप को परेशानी होगी.

भाभी- मुझे परेशानी होगी , कमबख्त मेरा बस नहीं चल रहा वर्ना मैं पीट देती तुझे .

मैं- भाभी आपका दर्जा बहुत ऊँचा है मेरी नजरो में , मैंने आप से कभी झूठ नहीं बोला मैंने आपको सच बताया की मैं किस से मिलता हूँ , किस से मिलने जाता हूँ ये सियार भी उसका ही है . आप चाहे मानो या न मानो वो वैसी बिलकुल नहीं है जैसा हम किस्से-कहानियो में सुनते आये है . उसे कुछ गलत करना होता तो वो न जाने कब का कर चुकी होती .

भाभी- ये बकवास बंद कर तू मैं बस इतना जानना चाहती हूँ की तू इतनी रात को चंपा के साथ क्या कर रहा था .

मैं- चंपा को होश आये तो उस से ही पूछ लेना . चाची चलो यहाँ से

मैंने चाची का हाथ पकड़ा और उसे लेकर चाची के घर आ गया .

चाची- कबीर , मैं जानती हूँ तू मुझसे कभी झूठ नहीं बोलेगा

मैं- मैंने तुझे भी तो सच ही कहा था न की डायन मेरी दोस्त है

मेरी बात सुन कर चाची के माथे पर बल पड़ गए .

चाची- डाकन की दोस्ती माणूस से असंभव है . अगर ऐसा है भी तो उसने जरुर कुछ किया होगा तेरे ऊपर

मैं- तूने क्या बदलाव देखा मेरे अन्दर क्या मैंने किसी का जरा भी बुरा किया . मेरा बिस्वास कर मेरा कोई अहित नहीं है उसके साथ रहने में

चाची का चेहरा पूरा लाल हो गया था

“सो जा तुझे आराम की जरुरत है ” चाची ने बस इतना ही कहा .

सुबह आँख खुली तो बदन दर्द से टूट रहा था . सामने कुर्सी पर भाभी बैठी थी . मैंने उससे कोई बात नहीं की उठ कर बदन पर एक शाल लपेटा और घर से बाहर निकल ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए

भाभी- मैं उस डायन से मिलना चाहती हूँ

मैं- उसकी मर्जी होगी तो जरुर मिलेगी आप से

भाभी- तुम लेकर चलो मुझे उस के पास

मैं- मैंने कहा न जब उसका जी करेगा वो जरुर मिलेगी

भाभी- कुंवर, तुम्हे यूँ देख कर मुझे तकलीफ होती है सोचती हूँ की मेरी परवरिश में कहाँ कमी रह गयी

मैं- मुझे गर्व है की आपने मेरी परवरिश की और एक दिन आयेगा जब आप मुझे समझेगी और अपने आँचल तले ले लेंगी .

भाभी- मैं सिर्फ इतना कह रही हूँ की अपनी दोस्त से मुझे मिलवाने में क्या परेशानी है तुझे

मैं- मैंने कहा न उसकी इच्छा होगी तो जरुर मिलेगी

भाभी- और कब होगी उसकी इच्छा

मैं- ये तो वो जाने .

भाभी- कुंवर, ये जो भो षड्यंत्र तुम रच रहे हो न इसका पर्दाफाश मैं जरुर करुँगी , मैंने चंपा से भी पूछा उसने कहा की उसे याद नहीं . मैंने कुछ रोज पहले चंपा को तुम्हारी बाँहों में देखा था . दुआ करना मेरा शक गलत साबित हो .

मैं- चंपा को गले लगाना गलत है क्या . आप भी जानती है उसे .

भाभी - तो फिर क्यों नहीं बताया उसने की रात में घर से बाहर क्यों थी वो

मैं- शायद उसने जरुरी नहीं समझा होगा.

भाभी - इतनी बड़ी नहीं हुई है वो अभी

मैं- मुझे जाना है बाहर

खुली हवा में आकर मैंने सांस ली तो करार मिला. भैया अखाड़े में थे मैं वही चला गया .

भाई- अरे छोटे, आराम करना चाहिए न

मैं- आराम ही है भैया

भैया- मैं नहा लेता हु फिर तुझे वापिस शहर ले चलता हूँ डॉक्टर के पास

मैं- ठीक है भैया , बस पट्टी ही तो करवानी है वैध कर देगा

भैया- वैसे कल अच्छी बहादुरी दिखाई तूने

मैं- आप न होते तो मामला हाथ से निकल ही गया था

भैया- उठा पटक की आवाज ने नींद तोड़ दी . मैंने खिड़की से देखा की दरवाजा खुला पड़ा है उसे बंद करने ही आया था की तुम लोगो की चीख पुकार सुनी भैया पर वो कारीगर को हुआ क्या था कुछ समझ नही आया

मैं- मुझे भी तलाश है इस सवाल के जवाब की

भैया- तू फ़िक्र मत कर मैं मालूम कर ही लूँगा.

मैं चंपा के पास गया वो लेटी हुई थी उसकी माँ को मैंने एक कप चाय के लिए कहा और चंपा से मुखातिब हुआ

मैं- बस एक ही सवाल है मेरा और सच सुनना चाहता हूँ , इतनी रात को घर से बाहर क्या कर रही थी तू.

चंपा- मैं सोयी पड़ी थी , अचानक से एक आहट से मेरी आँख खुल गयी मैंने देखा की आँगन में एक छाया है . गौर किया तो मालूम हुआ की मंगू था जो घर से बाहर जा रहा था .

मैं- इतनी रात को कहाँ जा रहा था वो .

चंपा- यही सवाल मेरे मन में भी था मैं भी उसके पीछे दबे पाँव हो ली . गली में पहुची इतने वो गायब हो चूका था . मैंने सोचा की इधर उधर देखूं उसे की तभी न जाने कहाँ से वो कारीगर आ गया और मुझे दबोच लिया ये तो शुक्र था की तू मिल गया

मैं- अभी कहा है मंगू.

चंपा मालूम नहीं लौट कर आया नहीं वो .

मैं- भाभी को लगता है की रात में तू मुझसे मिलने आई थी

चंपा- सच में

मैं- तेरी कसम

चंपा- सच तू जानता तो है

मैं- तेरे मेरे कहने से क्या होता है , कल को भाभी ये आरोप लगा दे की तू मुझसे चुदने आई थी रात को तो कोई हैरानी नहीं

चंपा- मैं भाभी से बात करुँगी

मैं- पिछले कुछ दिनों में मंगू के व्यवहार में किसी तरह का परिवर्तन लगा है क्या तुझे

चंपा- कुछ खास नहीं बस आजकल वो तेरे साथ खेतो पर नहीं रहता रातो को

मैं - कहाँ कटती है उसकी राते

चंपा यही घर पर ही . कभी कभी दारु की दूकान पर जरुर जाता है पर समय से ही लौट आता है .


दारू की दुकान का सुन कर मुझे दारा की याद आयी . मुझे लगा की कहीं सूरजभान ने ही तो मंगू को अपने जाल में फंसा लिया हो मुझसे दुश्मनी के चलते . पर क्या ये मेरा वहम हो सकता था जो भी था मुझे सच की तलाश करनी ही थी .
मंगू कहां चला गया भाई??

निशा भी आस पास ही है, जल्दी ही मिलेगी वो भाभी से।
 
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