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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Raj_sharma

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#40

चाची के आने के बाद हम सब ने खाना खाया . उसके बाद मैं चंपा को छोड़ने चला गया . वापसी में मैं थोड़ी देर उस पेड़ के पास बने चबूतरे पर बैठ गया जहाँ से लाली को सजा सुनाई थी . ये दुनिया बड़ी मादरचोद है मैंने सोचा . पर मैं दोष देता भी तो किसे मैं खुद अपनी चाची को चोद रहा था .दूसरी बात मंगू ने कविता को फसाया हुआ था और हरामी ने मुझे कभी बताया भी नहीं ..

बैठे बैठे मैंने सोचा की एक दिन आयेगा जब मैं भी अपनी पसंद की लड़की से ब्याह करने का कहूँगा तब भी ये जमाना मेरे खिलाफ ही जायेगा जैसे लाली के खिलाफ था एक दिन मुझे भी ऐसे ही किसी पेड़ पर लटका दिया जायेगा. खैर, कितनी देर बैठे रहते घर तो जाना ही था चाची मेरी राह ही देख रही थी .

मैंने बिस्तर पर जाते ही रजाई ओढ़ ली और आँखे बंद कर ली. कुछ ही देर में चाची भी बिस्तर में आ गयी .

चाची- क्या बात है परेशां लगते हो , शहर में डॉक्टर ने क्या बताया

मैं- डॉक्टर ने कहा सब ठीक है जल्दी ही जख्म भर जायेगा

चाची- तो फिर चेहरे पर ये चिंता किसलिए

मैं- चाची तुम चंपा की सबसे अच्छी दोस्त हो . उसका तुमसे कुछ नहीं छुपा

चाची- क्या हुआ बताएगा भी

मैं- चंपा ने मुझे बताया की मंगू उसकी लेता है

मेरी बात सुन कर चाची कुछ देर के लिए चुप हो गयी और फिर बोली---- सच है ये कबीर.

मै- तुमको पता था , तुमने खाल क्यों नहीं उतारी मंगू की

चाची- उसका कारण था , ये बात अगर गाँव में फैलती तो उन दोनों को मार दिया जाता समाज में बदनामी होती अलग

मैं- तो क्या बदनामी के डर से हम अनुचित को संरक्षण देंगे

चाची- ये दुनिया वैसी नहीं है कबीर जैसा तू समझता है . मंगू के माता पिता का क्या दोष है अगर औलाद ना लायक निकल जाये तो . मंगू और चंपा को तो एक दिन लटका दिया जाता पर उसके माँ बाप लोगो के तानो से रोज मरते . तिल तिल करके मरते वो . दूसरी बात ये दुनिया एक हमाम है कबीर जिसमे हम सब नंगे है . चम्पा और मंगू की बात क्यों करे तू मुझे और खुद को देख हम दोनों भी तो गुनेह्गर है कहीं न कहीं . कहने को हम माँ-बेटे है और बिस्तर पर लोग-लुगाई बने हुए है

.

चाची मुझे वो आइना दिखा रही थी जिसके वजूद को मैं नकार रहा था .



चाची- कबीर, मैं जानती हूँ चंपा के मन में चाहत है तेरे प्रति, तेरे अन्दर जो मंगू की दोस्ती का मान है वो भी जानती हु. चंपा की हर कोशिश तेरे करीब आने की दोस्ती की आन पर आकर रुक जाती है . और मुझे गर्व है इस बात का की मेरा बेटा रिश्तो की अहमियत समझता है . चंपा ने अपना मन तेरे सामने खोला क्योंकि वो विश्वास करती है तुझ पर अब ये तेरी जिम्मेदारी है की तू उसका मान रखे.



मैं- मंगू ने कविता को भी पटाया हुआ था .

चाची- वो उसकी जिन्दगी है , उसका निजी मामला है हमें जरुरत नहीं उसमे पड़ने की .

मैं- वो मुझे बता सकता था .

चाची- कबीर समझ लो कुछ बाते निजी होती है अब देखो तुम्हारी भाभी और यहाँ तक मुझे भी लगता है की तुम्हारे किसी लड़की से चक्कर है जिससे मिलने को तुम रात रात भर गायब रहते हो हमारे लाख पूछने पर भी तुमने हमें नहीं बताया क्योंकि तुम समझते हो ये निजी मामला है तुम्हारा. बेशक मंगू और तुम बचपन से एक साथ रहे हो पर कुछ चीजे दोस्तों से भी छिपाई जाती है . सो जाओ अब , सुबह हमें पूजा के लिए चलना है .

चाची ने पीठ मोड़ ली मैंने एक बार उसकी गांड पर हाथ फेरा और फेर कर ही रह गया क्योंकि तभी मेरे कंधे में दर्द हो गया मुड़ने से . मैंने कंधे के निचे तकिया लगाया और सोने की कोशिश करने लगा. सुबह अँधेरे ही चाची ने मुझे उठा दिया . थोड़ी देर में ही मैं तैयार हो गया . और हम लोग चल दिए.

चौपाल पर पहुँचने के बाद हम लोग उस रस्ते पर मुडने लगे जो गाँव से बाहर जंगल की तरफ जाता था .

मैं- मंदिर दूसरी तरफ है

भाभी- चुपचाप चलते रहो .

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था .

चाची- पूजा, वनदेव के पत्थर पर होगी. बहुरानी को लगता है की जंगल में वनदेव ही सुरक्षित रखेंगे तुम्हे.

मैं- इतनी सी बात के लिए इतनी ठंडी सुबह में ले जा रहे हो मुझे

चाची- देवता के बारे में कुछ मत बोलो

खैर हम लोग वनदेव के पत्थर के पास पहुंचे मैंने हसरत भरी नजरो से उस तरफ देखा जो निशा की मिलकियत तक जाता था . न जाने क्यों दिल को अच्छा लगा. गाँव का पुजारी पहले से ही वहां पर मोजूद था . एक चटाई सी बिछा कर पूजा की तैयारिया शुरू की गयी . पुजारी ने अग्नि जलाई और मन्त्र पढने शुरू किये उसने मेरे माथे पर टीका लगाया और फिर मुझे अपना हाथ आगे करने को कहा जैसे ही मैंने अपना हाथ आगे किया पुजारी के मन्त्र रुक गए उसके माथे पर पसीना बहने लगा. इधर-उधर देखने लगा वो

भाभी- क्या हुआ पुजारी जी

पुजारी- ये शुभ मुहूर्त नहीं है

भाभी- ये क्या कह रहे है आप. आपने ही तो पंचांग देख कर गणना की थी

पुजारी- मुझसे भूल हुई होगी.

भाभी- भूल नहीं हुई आपसे आप कुछ छिपा रहे है हमसे . जो भी बात है वो बताई जाये

अब राय साहब की बहु को भला कौन मना करे. पुजारी ने मेरा हाथ पकड़ा और भाभी के सामने कर दिया. जलती आंच के ताप में मेरी कलाई में बंधा धागा झिलमिलाने लगा और भाभी की त्योरिया चढ़ती गयी .

भाभी- पुजारी जी आप जाइये अभी , आपकी दक्षिणा हम भिजवा देंगे

मैं भी उठने लगा तो भाभी बोली- तुम यही रुको कुंवर.

मैं- जब पूजा होने ही नहीं वाली तो क्या फायदा रुकने का वैसे भी ठण्ड बहुत है

“हमें दुबारा कहने की जरुरत नहीं है ” भाभी ने थोड़े गुस्से से कहा

चाची- आराम से बहु,

भाभी- आप हमें आराम से रहने को कह रही है ,ये देखने के बाद भी ....

मैं- क्या कह रही हो मुझे बताओ तो सही .........

चाची - ये धागा किसने दिया तुम्हे

मैं- ये धागा ......... ये ये तो........
Ab dhage me aisi kya baat thi bhai wo bhi bata dete. Kya sone ka dhaga tha wo foji bhai
 

Raj_sharma

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किस किस को एक अपडेट और चाहिए, क्या बोलते भाई लोग रात रंगीन की जाए
Bilkul chahiye bhai jitne marji post karte jao mai to padh unga.
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#41

मैं- ये धागा तो मैंने ऐसे ही बाँध लिया था . दुकान से लिया था

मेरा ऐसा कहते ही भाभी ने खींच कर एक तमाचा मारा मुझे

चाची- बहुरानी ये क्या कर रही हो तुम

भाभी- चाची, मैं करू तो क्या करू आपके सामने भी ये झूठ पे झूठ बोले जा रहा है . मुझे तो शर्म आ रही है की मेरी परवरिश इतनी नालायक कैसे हो गयी .

चाची- कबीर , सच बता ये धागा तुझे किसने दिया

मैं- मामूली से धागे के पीछे पड़ गए हो आप लोग आखिर क्या फर्क पड़ता है इस धागे से

चाची- फर्क पड़ता है

मैं- तो तुम ही बताओ क्या है ऐसा इस धागे में

भाभी- ये डाकन का धागा है . इसे मनहूसियत माना जाता है

भाभी के चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा था की बस रो ही पड़ेगी .

भाभी- सच सच बता तुझे कैसे मिला ये

मैं- कहा न दूकान से ख़रीदा था शहर गया जब . हो सकता है की ये कुछ मिलता जुलता धागा हो

भाभी- मेरी आँखे धोखा खा सकती है , चाची की आँखे धोखा खा सकती पर क्या पुजारी भी झूठा है

मैं- मुझे नहीं मालूम

भाभी- तू समझ नहीं रहा नादान . अब तो मुझे और यकीन हो गया है की वो सारे पाप तू उसके वश में होकर ही कर रहा है

मैं- तिल का ताड़ मत बनाओ भाभी . ऐसा वैसा जो भी तुम सोच रही हो कुछ भी नहीं है .

चाची- बहुरानी हमें घर चल कर बात करनी चाहिए.

घर आकर भी भाभी का रोना-धोना चालू ही रहा . दिल तो किया की भाभी का मन रखने के लिए इस धागे को उतार कर फेंक दू पर निशा ने इतने मान से ये धागा दिया था इसे उतार देता तो उसकी तोहीन होती अब करे भी तो क्या करे. जब कुछ नहीं सूझा तो मैंने रजाई ओढ़ी और सो गया . न जाने कितनी देर तक भाभी का रुदन चला होगा.



दोपहर को ही उठा फिर मैं . खाना खाके डॉक्टर की दवाई ली . घर से बाहर निकला ही था की मंगू मिल गया वो जाल और काँटा लिए जा रहा था .

मैं- अरे कहाँ

मंगू- बड़े भैया ने कहा की आज शाम के लिए मछली पकड़ लाऊ

मैं- चल मैं भी चलता हूँ .

हम दोनों गाँव के जोहड़ पर आ गए .

मंगू ने जाल फेंका और हम बाते करने लगे.

मंगू- कन्धा कब तक ठीक होगा

मैं- थोडा समय लगेगा तब तक तू थोडा खेतो का काम देख लेगा न

मंगू- ये भी कोई कहने की बात है .

मैं- मंगू यार मैं क्या सोचता हूँ अपनी उम्र के लड़के साले किसी न किसी को पटाये तो होंगे ही .वो लाली भी आशिक पाले हुई थी . अपनी जिन्दगी में कोई ऐसी आएगी या फिर घरवाले जब ब्याह करेंगे तभी कुछ हो पायेगा.

मंगू- गाँव में दो तीन चालू औरते तो है जिनके बारे में कहा जाता है की वो आशिकी करती है पर जब से लाली वाला काण्ड हुआ है न तब से इस मामले में ख़ामोशी सी ही है .

मैं- तुझे नहीं लगता की हमें भी कोई दे दे तो हम भी थोडा मजा कर ले.

मंगू- भाई तुझे तो फिर भी कोई न कोई दे ही देगी मैं तो किसान हूँ मेरी तरफ कौन देखेगी .

मैं- भोसड़ी में मैं भी तेरे साथ ही खेती करता हूँ न .

मंगू- पर तू राय साहब का बेटा है

मैं- तो राय साहब के नाम से कोई भी चुद जाएगी मुझसे

मंगू- ऐसा नहीं है पर तू कोशिश करेगा तो कोई न कोई फंस ही जाएगी.

मैं मंगू को बातो में लगा कर उस से कुछ उगलवाना चाहता था पर वो सहज था मेरे साथ . मुझे चाची की बात याद आ रही थी .

मैं- मंगू तू किसी ऐसी को मिले जो देने को तैयार हो तो मुझे मिलवा देना

मंगू- अरे ये भी कोई कहने की बात है भाई .

बात करते करते मंगू ने जाल में मोटी मछलिया फंसा ली और हम वापिस आ गए. मेरे मन में एक ही सवाल था की क्या उस रात कविता मंगू से मिलने तो नहीं गयी थी जंगल में . पर इतना दूर जाने की क्या जरुरत थी मंगू कविता के घर में घुस जाता वैध को तो कुछ मालूम वैसे भी नहीं होना था . इस सवाल ने मुझे परेशान कर दिया.



तमाम सवालो के बीच एक राहत थी की पिछले कुछ दिनों से मामला शांत था कोई नया हमला नहीं हुआ था हालाँकि भाभी ऐसा मानती थी की निगरानी की वजह से मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ. रात को एक बार फिर मैं चाची के साथ अकेला था बिस्तर पर . चाची मुझ पर झुकी हुई मेरे होंठ चूस रही थी और मेरे नंगे लंड को हाथ में लेकर मसल रही थी .

मैं- आराम से कंधे में दर्द न हो जाये

चाची- थोडा दर्द सहना सीख

मैं- ज़ख्म ताजा है न इसलिए

चाची -कोई बात नहीं जब तू पूरी तरह ठीक हो जायेगा तब ही करेंगे

मैं- और अभी जो ये खड़ा होकर झूल रहा है इसका क्या .

चाची- मैं क्या जानू इसके बारे में

मैं- और जो तुम्हारी जांघो के बिच छुपी है उसके बारे में तो जानती हो न

चाची- अश्लील बहुत हो गया है तू

मैं- मजा आता है न गन्दी बाते करने में

मैं दिलो जान से चाची की लेना चाहता था पर ये साला हाथ उपर हो नही पाता था पट्टियों की वजह से अजीब ही समस्या थी . चाची लिपट कर मुझसे सो गयी . सर्दी में गर्म औरत पास हो तो चुदाई न भी हो तब भी मजा आता ही है .

न जाने कितनी रात बीती थी दरवाजे पर ही अजीब दस्तक से मेरी आँख खुल गयी . इतनी रात को कौन होगा सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला तो देखा की चबूतरे पर सियार बैठा था . मुझे देखते ही वो लपक कर आया और मेरे सीने पर अपने पंजे रख दिए

मैं- आहिस्ता से , चोट लगी है न

वो चबूतरे से कूदा और गली में सडक के बीचो बीच खड़ा हो गया . मैं समझ गया .

मैं- आता हु

मैंने कम्बल ओढा और दरवाजे को इस तरह से बंद किया की लगे अन्दर से बंद है मैं जानता था की मुझे कहाँ जाना है . दो गली पार करके मैं आगे हुआ ही था की एक चीख ने मुझे हिलाकर रख दिया . कोई भागते हुए मेरी तरफ आया और जोर से मुझ से लिपट गया ............................
 

Studxyz

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कहानी में तगड़े लोचे ओर लोचे हो रहे हैं पंडित भोसड़ी वाला सब को बता देगा की कबीर के साथ कुछ गड़बड़ है और अब तो भाभी व् चाची भी जान गयी है कबीर का बुरा समय चालू होने में कुछ ही समय शेष है

सियार निशा डायन जी का है पर ये साला हर बार दरवाज़ा खड़का कर कबीर को बाहर बुलवा कर क़त्ल करवा देता है और उसमे कबीर फसता जाता है ये क्या राज़ है ?

धागे की सच्चाई जानने के बाद अब की बार भाभी को पूरा यकीन होगा की ये काण्ड कबीर करवा रहा है उधर निशा खुल कर इसकी मदद को आगे भी नहीं आ रही
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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चाची के आने के बाद हम सब ने खाना खाया . उसके बाद मैं चंपा को छोड़ने चला गया . वापसी में मैं थोड़ी देर उस पेड़ के पास बने चबूतरे पर बैठ गया जहाँ से लाली को सजा सुनाई थी . ये दुनिया बड़ी मादरचोद है मैंने सोचा . पर मैं दोष देता भी तो किसे मैं खुद अपनी चाची को चोद रहा था .दूसरी बात मंगू ने कविता को फसाया हुआ था और हरामी ने मुझे कभी बताया भी नहीं ..

बैठे बैठे मैंने सोचा की एक दिन आयेगा जब मैं भी अपनी पसंद की लड़की से ब्याह करने का कहूँगा तब भी ये जमाना मेरे खिलाफ ही जायेगा जैसे लाली के खिलाफ था एक दिन मुझे भी ऐसे ही किसी पेड़ पर लटका दिया जायेगा. खैर, कितनी देर बैठे रहते घर तो जाना ही था चाची मेरी राह ही देख रही थी .

मैंने बिस्तर पर जाते ही रजाई ओढ़ ली और आँखे बंद कर ली. कुछ ही देर में चाची भी बिस्तर में आ गयी .

चाची- क्या बात है परेशां लगते हो , शहर में डॉक्टर ने क्या बताया

मैं- डॉक्टर ने कहा सब ठीक है जल्दी ही जख्म भर जायेगा

चाची- तो फिर चेहरे पर ये चिंता किसलिए

मैं- चाची तुम चंपा की सबसे अच्छी दोस्त हो . उसका तुमसे कुछ नहीं छुपा

चाची- क्या हुआ बताएगा भी

मैं- चंपा ने मुझे बताया की मंगू उसकी लेता है

मेरी बात सुन कर चाची कुछ देर के लिए चुप हो गयी और फिर बोली---- सच है ये कबीर.

मै- तुमको पता था , तुमने खाल क्यों नहीं उतारी मंगू की

चाची- उसका कारण था , ये बात अगर गाँव में फैलती तो उन दोनों को मार दिया जाता समाज में बदनामी होती अलग

मैं- तो क्या बदनामी के डर से हम अनुचित को संरक्षण देंगे

चाची- ये दुनिया वैसी नहीं है कबीर जैसा तू समझता है . मंगू के माता पिता का क्या दोष है अगर औलाद ना लायक निकल जाये तो . मंगू और चंपा को तो एक दिन लटका दिया जाता पर उसके माँ बाप लोगो के तानो से रोज मरते . तिल तिल करके मरते वो . दूसरी बात ये दुनिया एक हमाम है कबीर जिसमे हम सब नंगे है . चम्पा और मंगू की बात क्यों करे तू मुझे और खुद को देख हम दोनों भी तो गुनेह्गर है कहीं न कहीं . कहने को हम माँ-बेटे है और बिस्तर पर लोग-लुगाई बने हुए है

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चाची मुझे वो आइना दिखा रही थी जिसके वजूद को मैं नकार रहा था .



चाची- कबीर, मैं जानती हूँ चंपा के मन में चाहत है तेरे प्रति, तेरे अन्दर जो मंगू की दोस्ती का मान है वो भी जानती हु. चंपा की हर कोशिश तेरे करीब आने की दोस्ती की आन पर आकर रुक जाती है . और मुझे गर्व है इस बात का की मेरा बेटा रिश्तो की अहमियत समझता है . चंपा ने अपना मन तेरे सामने खोला क्योंकि वो विश्वास करती है तुझ पर अब ये तेरी जिम्मेदारी है की तू उसका मान रखे.



मैं- मंगू ने कविता को भी पटाया हुआ था .

चाची- वो उसकी जिन्दगी है , उसका निजी मामला है हमें जरुरत नहीं उसमे पड़ने की .

मैं- वो मुझे बता सकता था .

चाची- कबीर समझ लो कुछ बाते निजी होती है अब देखो तुम्हारी भाभी और यहाँ तक मुझे भी लगता है की तुम्हारे किसी लड़की से चक्कर है जिससे मिलने को तुम रात रात भर गायब रहते हो हमारे लाख पूछने पर भी तुमने हमें नहीं बताया क्योंकि तुम समझते हो ये निजी मामला है तुम्हारा. बेशक मंगू और तुम बचपन से एक साथ रहे हो पर कुछ चीजे दोस्तों से भी छिपाई जाती है . सो जाओ अब , सुबह हमें पूजा के लिए चलना है .

चाची ने पीठ मोड़ ली मैंने एक बार उसकी गांड पर हाथ फेरा और फेर कर ही रह गया क्योंकि तभी मेरे कंधे में दर्द हो गया मुड़ने से . मैंने कंधे के निचे तकिया लगाया और सोने की कोशिश करने लगा. सुबह अँधेरे ही चाची ने मुझे उठा दिया . थोड़ी देर में ही मैं तैयार हो गया . और हम लोग चल दिए.

चौपाल पर पहुँचने के बाद हम लोग उस रस्ते पर मुडने लगे जो गाँव से बाहर जंगल की तरफ जाता था .

मैं- मंदिर दूसरी तरफ है

भाभी- चुपचाप चलते रहो .

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था .

चाची- पूजा, वनदेव के पत्थर पर होगी. बहुरानी को लगता है की जंगल में वनदेव ही सुरक्षित रखेंगे तुम्हे.

मैं- इतनी सी बात के लिए इतनी ठंडी सुबह में ले जा रहे हो मुझे

चाची- देवता के बारे में कुछ मत बोलो

खैर हम लोग वनदेव के पत्थर के पास पहुंचे मैंने हसरत भरी नजरो से उस तरफ देखा जो निशा की मिलकियत तक जाता था . न जाने क्यों दिल को अच्छा लगा. गाँव का पुजारी पहले से ही वहां पर मोजूद था . एक चटाई सी बिछा कर पूजा की तैयारिया शुरू की गयी . पुजारी ने अग्नि जलाई और मन्त्र पढने शुरू किये उसने मेरे माथे पर टीका लगाया और फिर मुझे अपना हाथ आगे करने को कहा जैसे ही मैंने अपना हाथ आगे किया पुजारी के मन्त्र रुक गए उसके माथे पर पसीना बहने लगा. इधर-उधर देखने लगा वो

भाभी- क्या हुआ पुजारी जी

पुजारी- ये शुभ मुहूर्त नहीं है

भाभी- ये क्या कह रहे है आप. आपने ही तो पंचांग देख कर गणना की थी

पुजारी- मुझसे भूल हुई होगी.

भाभी- भूल नहीं हुई आपसे आप कुछ छिपा रहे है हमसे . जो भी बात है वो बताई जाये

अब राय साहब की बहु को भला कौन मना करे. पुजारी ने मेरा हाथ पकड़ा और भाभी के सामने कर दिया. जलती आंच के ताप में मेरी कलाई में बंधा धागा झिलमिलाने लगा और भाभी की त्योरिया चढ़ती गयी .

भाभी- पुजारी जी आप जाइये अभी , आपकी दक्षिणा हम भिजवा देंगे

मैं भी उठने लगा तो भाभी बोली- तुम यही रुको कुंवर.

मैं- जब पूजा होने ही नहीं वाली तो क्या फायदा रुकने का वैसे भी ठण्ड बहुत है

“हमें दुबारा कहने की जरुरत नहीं है ” भाभी ने थोड़े गुस्से से कहा

चाची- आराम से बहु,

भाभी- आप हमें आराम से रहने को कह रही है ,ये देखने के बाद भी ....

मैं- क्या कह रही हो मुझे बताओ तो सही .........

चाची - ये धागा किसने दिया तुम्हे

मैं- ये धागा ......... ये ये तो........
निशा आने वाली है.....
 

Riky007

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किस किस को एक अपडेट और चाहिए, क्या बोलते भाई लोग रात रंगीन की जाए
नेकी और पूंछ पूंछ??

I mean


पूछ पूछ
 

Riky007

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मैं- ये धागा तो मैंने ऐसे ही बाँध लिया था . दुकान से लिया था

मेरा ऐसा कहते ही भाभी ने खींच कर एक तमाचा मारा मुझे

चाची- बहुरानी ये क्या कर रही हो तुम

भाभी- चाची, मैं करू तो क्या करू आपके सामने भी ये झूठ पे झूठ बोले जा रहा है . मुझे तो शर्म आ रही है की मेरी परवरिश इतनी नालायक कैसे हो गयी .

चाची- कबीर , सच बता ये धागा तुझे किसने दिया

मैं- मामूली से धागे के पीछे पड़ गए हो आप लोग आखिर क्या फर्क पड़ता है इस धागे से

चाची- फर्क पड़ता है

मैं- तो तुम ही बताओ क्या है ऐसा इस धागे में

भाभी- ये डाकन का धागा है . इसे मनहूसियत माना जाता है

भाभी के चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा था की बस रो ही पड़ेगी .

भाभी- सच सच बता तुझे कैसे मिला ये

मैं- कहा न दूकान से ख़रीदा था शहर गया जब . हो सकता है की ये कुछ मिलता जुलता धागा हो

भाभी- मेरी आँखे धोखा खा सकती है , चाची की आँखे धोखा खा सकती पर क्या पुजारी भी झूठा है

मैं- मुझे नहीं मालूम

भाभी- तू समझ नहीं रहा नादान . अब तो मुझे और यकीन हो गया है की वो सारे पाप तू उसके वश में होकर ही कर रहा है

मैं- तिल का ताड़ मत बनाओ भाभी . ऐसा वैसा जो भी तुम सोच रही हो कुछ भी नहीं है .

चाची- बहुरानी हमें घर चल कर बात करनी चाहिए.

घर आकर भी भाभी का रोना-धोना चालू ही रहा . दिल तो किया की भाभी का मन रखने के लिए इस धागे को उतार कर फेंक दू पर निशा ने इतने मान से ये धागा दिया था इसे उतार देता तो उसकी तोहीन होती अब करे भी तो क्या करे. जब कुछ नहीं सूझा तो मैंने रजाई ओढ़ी और सो गया . न जाने कितनी देर तक भाभी का रुदन चला होगा.



दोपहर को ही उठा फिर मैं . खाना खाके डॉक्टर की दवाई ली . घर से बाहर निकला ही था की मंगू मिल गया वो जाल और काँटा लिए जा रहा था .

मैं- अरे कहाँ

मंगू- बड़े भैया ने कहा की आज शाम के लिए मछली पकड़ लाऊ

मैं- चल मैं भी चलता हूँ .

हम दोनों गाँव के जोहड़ पर आ गए .

मंगू ने जाल फेंका और हम बाते करने लगे.

मंगू- कन्धा कब तक ठीक होगा

मैं- थोडा समय लगेगा तब तक तू थोडा खेतो का काम देख लेगा न

मंगू- ये भी कोई कहने की बात है .

मैं- मंगू यार मैं क्या सोचता हूँ अपनी उम्र के लड़के साले किसी न किसी को पटाये तो होंगे ही .वो लाली भी आशिक पाले हुई थी . अपनी जिन्दगी में कोई ऐसी आएगी या फिर घरवाले जब ब्याह करेंगे तभी कुछ हो पायेगा.

मंगू- गाँव में दो तीन चालू औरते तो है जिनके बारे में कहा जाता है की वो आशिकी करती है पर जब से लाली वाला काण्ड हुआ है न तब से इस मामले में ख़ामोशी सी ही है .

मैं- तुझे नहीं लगता की हमें भी कोई दे दे तो हम भी थोडा मजा कर ले.

मंगू- भाई तुझे तो फिर भी कोई न कोई दे ही देगी मैं तो किसान हूँ मेरी तरफ कौन देखेगी .

मैं- भोसड़ी में मैं भी तेरे साथ ही खेती करता हूँ न .

मंगू- पर तू राय साहब का बेटा है

मैं- तो राय साहब के नाम से कोई भी चुद जाएगी मुझसे

मंगू- ऐसा नहीं है पर तू कोशिश करेगा तो कोई न कोई फंस ही जाएगी.

मैं मंगू को बातो में लगा कर उस से कुछ उगलवाना चाहता था पर वो सहज था मेरे साथ . मुझे चाची की बात याद आ रही थी .

मैं- मंगू तू किसी ऐसी को मिले जो देने को तैयार हो तो मुझे मिलवा देना

मंगू- अरे ये भी कोई कहने की बात है भाई .

बात करते करते मंगू ने जाल में मोटी मछलिया फंसा ली और हम वापिस आ गए. मेरे मन में एक ही सवाल था की क्या उस रात कविता मंगू से मिलने तो नहीं गयी थी जंगल में . पर इतना दूर जाने की क्या जरुरत थी मंगू कविता के घर में घुस जाता वैध को तो कुछ मालूम वैसे भी नहीं होना था . इस सवाल ने मुझे परेशान कर दिया.



तमाम सवालो के बीच एक राहत थी की पिछले कुछ दिनों से मामला शांत था कोई नया हमला नहीं हुआ था हालाँकि भाभी ऐसा मानती थी की निगरानी की वजह से मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ. रात को एक बार फिर मैं चाची के साथ अकेला था बिस्तर पर . चाची मुझ पर झुकी हुई मेरे होंठ चूस रही थी और मेरे नंगे लंड को हाथ में लेकर मसल रही थी .

मैं- आराम से कंधे में दर्द न हो जाये

चाची- थोडा दर्द सहना सीख

मैं- ज़ख्म ताजा है न इसलिए

चाची -कोई बात नहीं जब तू पूरी तरह ठीक हो जायेगा तब ही करेंगे

मैं- और अभी जो ये खड़ा होकर झूल रहा है इसका क्या .

चाची- मैं क्या जानू इसके बारे में

मैं- और जो तुम्हारी जांघो के बिच छुपी है उसके बारे में तो जानती हो न

चाची- अश्लील बहुत हो गया है तू

मैं- मजा आता है न गन्दी बाते करने में

मैं दिलो जान से चाची की लेना चाहता था पर ये साला हाथ उपर हो नही पाता था पट्टियों की वजह से अजीब ही समस्या थी . चाची लिपट कर मुझसे सो गयी . सर्दी में गर्म औरत पास हो तो चुदाई न भी हो तब भी मजा आता ही है .

न जाने कितनी रात बीती थी दरवाजे पर ही अजीब दस्तक से मेरी आँख खुल गयी . इतनी रात को कौन होगा सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला तो देखा की चबूतरे पर सियार बैठा था . मुझे देखते ही वो लपक कर आया और मेरे सीने पर अपने पंजे रख दिए

मैं- आहिस्ता से , चोट लगी है न

वो चबूतरे से कूदा और गली में सडक के बीचो बीच खड़ा हो गया . मैं समझ गया .

मैं- आता हु


मैंने कम्बल ओढा और दरवाजे को इस तरह से बंद किया की लगे अन्दर से बंद है मैं जानता था की मुझे कहाँ जाना है . दो गली पार करके मैं आगे हुआ ही था की एक चीख ने मुझे हिलाकर रख दिया . कोई भागते हुए मेरी तरफ आया और जोर से मुझ से लिपट गया ............................
फिर फंसा कबीर।

अब तो भाभी इसका पिछवाड़ा तोड़ेगी।
 
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