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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Update badhiya hai... Har baar ek naya suspense... Wait for next... Bhai par thoda sa jaldi... Intezar hota hi nhi...
Aur fauji bhai wo dilwale story complete hai kya... Bss ek baar ye bta do... Maine search ki thi... But wo mujhe incomplete lg rhi hai... Please kya aap mujhe ek baar link provide kr sakte hai... Please bhai ji
दिलवाले कम्प्लीट है


 
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#34

वापसी में मैं बस ये सोचता रहा की ये जो हुआ ठीक नहीं हुआ. भैया को मालूम होगा तो मुझ पर गुस्सा करेंगे. दूसरी बात जीवन में ये सब कुछ अजीब हो रहा था मेरे साथ. मैं ऐसा नहीं था की गुस्सा करू, मारपीट करू. पर यही तो जिन्दगी थी न जाने कब क्या सीख दे हमें कौन जाने. मुझे मेरे भाई और बाप का डर था बाकि दुनिया से मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता था.

वापिस आकर देखा मैंने की सियार कुवे की मुंडेर पर बैठा था .

मैं- अरे तू फिर आ गया . जाकर कह दे उस से की मुझे नहीं मिलना उस से

सियार मुंडेर से उतरा और मेरे सीने पर पंजे लगा कर खड़ा हो गया . अपनी भाषा में कुछ कहने लगा.

मैं- क्या कहना चाहता है तू मेरे दोस्त . क्या तू भी मेरी तरह तनहा है परेशां है .

वो बस लिपटा रहा मुझसे. ठण्ड में उसे भी शायद राहत मिली होगी. मैंने कमरा खोला वो जाकर घास पर बैठ गया मैंने एक कम्बल ओढा दिया उसे और अलाव जला लिया. दरवाजा मैंने जान कर थोडा सा खुला छोड़ दिया.

“उठो , चाय पी लो ” चाची की आवाज से मेरी नींद टूटी.

मैं- तुम कब आई

मैंने आँखों को मसलते हुए कहा

चाची- आये तो बहुत देर हो गयी पर तुम इतना देर तक कैसे सो रहे हो .

मैं- थकान में पता ही नहीं चला

मैंने चाची के हाथ से कप लिया और चुस्की लेने लगा.

चाची मुझे ही देखती रही

मैं- ऐसे क्या देख रही हो

चाची- सोच रही हूँ की कितना बड़ा हो गया है तू, बहुरानी से झगडा हुआ तो खुद ही ये निर्णय ले लिया तू ये कैसे भूल गया की बहु से ऊपर भी कोई है घर में . मेरे आने का इंतजार नहीं कर सकता था .

मैं- जो हुआ अब मिटटी डालो उस पर.

चाची- तू मेरे घर पर भी तो रह सकता था न वहां से कौन निकाल देता तुझे

मैं- जब दिल करेगा आ जाया करूँगा.

चाची- खैर. इस सवाल का जवाब तो मुझे भी चाहिए जब तू उस रात मेरे पास सोया था तो कैसे तू कविता के पास पहुंचा. क्या तेरे उस से सम्बन्ध थे , बहुरानी ने मुझे बताया था की रातो को तू किसी औरत के चक्कर में ही गायब रहता था .

मैं- अगर मेरे सम्बन्ध होते उस से तो मैं क्यों मारता उसे . उस रात मुझे पेशाब लगी थी बाहर गया तो बहुत से जानवरों के रोने की आवाजे आये मैं देखने चला गया तो कविता की लाश पड़ी थी . मैंने सोचा की सुबह होने में समय है , जानवर इसके बदन को नोच खायेंगे मैंने लाश को गाँव में रख दिया. भाभी को कम्बल की वजह से शक हो गया.

चाची- पर कविता इतनी रात को जंगल में क्या कर रही थी .

मैं- इसी सवाल के जवाब के लिए मैंने यहाँ पर रहना तय किया है क्योंकि जब तक कविता के कातिल को पकड नहीं लूँगा चैन नहीं आएगा. भाभी के मन का शक तभी दूर होगा.

चाची- ठीक है फिर मैं भी तेरा साथ दूंगी यही रहूंगी तेरे साथ .

मैं- ये मेरा वनवास है चाची इसे मुझे ही सहने दो वैसे भी जब भी मेरा दिल करेगा तुमसे मिलने का घर आ जाऊंगा कोई रोक थोड़ी न सकता है मुझे.

चाची- पर तू यहाँ रहेगा तो हमें चिंता रहेगी तेरी.

मैं- कैसी चिंता , दिन में भैया, आप . मंगू-चंपा कोई न कोई साथ होता ही है मेरे. तुम बताओ भाभी कैसी है

चाची- ठीक है अपने कमरे में ही रहती है ज्यादातर . अभिमानु नाराज है उस से दुरी बना ली है निचे ही रहता है

मैं- आप समझाओ भैया को मेरी वजह से अपनी ग्रहस्थी क्यों ख़राब करनी

चाची- तू तो जानता है न उसे . जब तक तुझे न देख ले उसके गले से रोटी का कौर नहीं उतरता तूने उसे कसम दे दी और परेशां हो गया है वो . काम पर जाना भी छोड़ दिया बस अखाड़े में ही दिन रात होते है अब उसके.

मैं- नियति न जाने क्या दिन दिखा रही है.

चाची- कुछ कपडे और छोटा-मोटा सामान ले आई हूँ जरुरत के .

मैं उठ कर बाहर गया . हाथ मुह धोया . थोड़ी देर घुमने चला गया . नहाने लगा तो मैंने देखा की सूरजभान की वजह से मेरे कंधे का जख्म फिर से हरा हो गया था . खैर मैं वापिस चाची के पास गया .

मैं- गाँव वालो को भी लगता है क्या मैंने ही कविता को मारा है

चाची- नहीं , बहुरानी के सिवाय किसी के मन में भी ये ख्याल नहीं है

मैं- ठीक है , क्योंकि मुझे वैध की जरुरत है मेरे कंधे का जख्म हरा हो गया है .

चाची- मिल लेना उस से

मैं- फ़िलहाल तो मेरे मर्ज का इलाज तुम ही करोगी

मैंने अपनी पेंट खोली और लंड को बाहर निकाल लिया.

चाची- क्या कर रहा है अन्दर कर इसे. कोई आ गया तो मर जायेंगे

मैं- कोई नहीं आएगा तुम आओ तो सही .देखो तुम्हे देखते ही कैसे तन गया है ये. तुम्हारे हुस्न का नशा इस कदर चढ़ गया है की जब तुम पास होती हो तो खुद को रोकना मुश्किल हो जाता है .

मैंने चाची को दिवार के सहारे खड़ा किया और चाची के लहंगे को उठा कर कुलहो तक कर लिया. गोरे कुलहो के बीच चाची की काली चूत जो मेरे लंड की रगड़ से ही पनिया गयी थी क्या गजब नजारा था .

“तू मरवा के छोड़ेगा मुझे ” चाची बोली .

पर किसे परवाह थी मैंने लंड को झटका दिया और चाची की चुदाई शुरू कर दी. चूँकि दिन का समय था तो बस जल्दी जल्दी ही करना पड़ा . पर जब हम हटे तो दोनों पसीने से भीगे थे. चाची के चेहरे पर संतुष्टि की रौनक थी . चाची ने चुदाई के बाद मेरे गालो को चूमा और बाहर चली गयी .

चाची से साथ मैं गाँव में आया. एक बार फिर वैध जी मादरचोद न जाने कहा गायब था . आखिर ये जाता कहा था सोच कर मैं हैरान था . मैं मंगू के घर चला गया . चंपा खाना बना रही थी मैं भी खाने बैठ गया.

मैं- काकी, पिताजी कह कर गए थे की चंपा को सुनार के पास ले जाऊ नाप के लिए पर ये मान नहीं रही आप ही कहो.

काकी- बेटा, इसका कहना भी सही है राय साहब के इतने अहसान है हम पर शेखर बाबु जैसे सज्जन से रिश्ता करवाया इसका और हमें क्या चाहिए

मैं- वो तो भाग है इसके पर पिताजी को जब मालूम होगा तो वो मुझे ही गुस्सा करेंगे.

काकी- चंपा के पिता बात करेंगे राय साहब से जब वो आ जायेंगे

मैं- तब की तब देखेंगे पर तुम इस से कह दो की कल मेरे साथ मलिकपुर जाएगी सुनार के सामने

मलिकपुर का जिक्र होते ही मुझे खांसी उठ गयी. रात वाली घटना मेरी आँखों के सामने घूम गयी .

“क्या हुआ .” चंपा ने मुझे पानी का गिलास देते हुए कहा

मैं- क्या हुआ सब्जी में इतनी मिर्च डाली है , और पूछती है की क्या हुआ

चंपा- मिर्च, पर तू तो घी के साथ रोटी खा रहा है .

वो जोर जोर से हंसने लगी ..

“लगता है तेरी उस दोस्त के साथ रह रह कर तु सब्जी और घी में फर्क करना भूल गया है . क्या कर दिया उसने तेरा ” चंपा धीरे से बोली.

मेरी आँखों के सामने निशा की तस्वीर आ गयी . जब वो कविता का खून पी रही थी . ..........खैर, मैंने सर को झटका और रोटी खाने लगा की तभी बाहर से मंगू भागते हुए आया और बोला-कबीर , चल मेरे साथ . अभी चलना होगा.

चंपा- रोटी तो खा लेने दे इसे

मंगू- तू चुप रह , कबीर भाई चल अभी के अभी


मंगू के हावभाव देख कर लग रहा था की कुछ तो गड़बड़ है मेरा मन किसी अनिष्ट की आशंका से घबराने लगा.
Ye siyaar vapis aagaya ek siyaar ki dosti insaan se kuch to gadbad hai ye siyaar kiss aur ishara kar raha hai kyu aaraha hai ye baar baar kabir ke pass kabir bhi bahut ijjat karta hai ghar valon ki sahi keh raha hai jab ghar valon ko pata padega to kya hoga chachi itni subah subah aai hai aur uthaya bhi der se kyu par isme kuch ajeeb nahi hai isme? Chalo chachi ki chudai ho hi gayi vapis se jaldi hi sahi lekin chudai to kari chachi ki ye gao me vapis gaya kabir vedh ke pass vedh jab dekho gayab hi rehta hai iska kissa kuch samajh nahi aata ye konsi nayi musibat ki leke aaya hai sath me mangu aisa kya dekh liya isne
Badiya suspence bana rahe ho bhaiya
 
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दिलवाले कम्प्लीट है


Shukriya bhai... Or haa... Aapki har ek kahani shandaar hoti hai... Mtlb shabd nhi hote tarif ke liye...❤
 

Tiger 786

Well-Known Member
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#34

वापसी में मैं बस ये सोचता रहा की ये जो हुआ ठीक नहीं हुआ. भैया को मालूम होगा तो मुझ पर गुस्सा करेंगे. दूसरी बात जीवन में ये सब कुछ अजीब हो रहा था मेरे साथ. मैं ऐसा नहीं था की गुस्सा करू, मारपीट करू. पर यही तो जिन्दगी थी न जाने कब क्या सीख दे हमें कौन जाने. मुझे मेरे भाई और बाप का डर था बाकि दुनिया से मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता था.

वापिस आकर देखा मैंने की सियार कुवे की मुंडेर पर बैठा था .

मैं- अरे तू फिर आ गया . जाकर कह दे उस से की मुझे नहीं मिलना उस से

सियार मुंडेर से उतरा और मेरे सीने पर पंजे लगा कर खड़ा हो गया . अपनी भाषा में कुछ कहने लगा.

मैं- क्या कहना चाहता है तू मेरे दोस्त . क्या तू भी मेरी तरह तनहा है परेशां है .

वो बस लिपटा रहा मुझसे. ठण्ड में उसे भी शायद राहत मिली होगी. मैंने कमरा खोला वो जाकर घास पर बैठ गया मैंने एक कम्बल ओढा दिया उसे और अलाव जला लिया. दरवाजा मैंने जान कर थोडा सा खुला छोड़ दिया.

“उठो , चाय पी लो ” चाची की आवाज से मेरी नींद टूटी.

मैं- तुम कब आई

मैंने आँखों को मसलते हुए कहा

चाची- आये तो बहुत देर हो गयी पर तुम इतना देर तक कैसे सो रहे हो .

मैं- थकान में पता ही नहीं चला

मैंने चाची के हाथ से कप लिया और चुस्की लेने लगा.

चाची मुझे ही देखती रही

मैं- ऐसे क्या देख रही हो

चाची- सोच रही हूँ की कितना बड़ा हो गया है तू, बहुरानी से झगडा हुआ तो खुद ही ये निर्णय ले लिया तू ये कैसे भूल गया की बहु से ऊपर भी कोई है घर में . मेरे आने का इंतजार नहीं कर सकता था .

मैं- जो हुआ अब मिटटी डालो उस पर.

चाची- तू मेरे घर पर भी तो रह सकता था न वहां से कौन निकाल देता तुझे

मैं- जब दिल करेगा आ जाया करूँगा.

चाची- खैर. इस सवाल का जवाब तो मुझे भी चाहिए जब तू उस रात मेरे पास सोया था तो कैसे तू कविता के पास पहुंचा. क्या तेरे उस से सम्बन्ध थे , बहुरानी ने मुझे बताया था की रातो को तू किसी औरत के चक्कर में ही गायब रहता था .

मैं- अगर मेरे सम्बन्ध होते उस से तो मैं क्यों मारता उसे . उस रात मुझे पेशाब लगी थी बाहर गया तो बहुत से जानवरों के रोने की आवाजे आये मैं देखने चला गया तो कविता की लाश पड़ी थी . मैंने सोचा की सुबह होने में समय है , जानवर इसके बदन को नोच खायेंगे मैंने लाश को गाँव में रख दिया. भाभी को कम्बल की वजह से शक हो गया.

चाची- पर कविता इतनी रात को जंगल में क्या कर रही थी .

मैं- इसी सवाल के जवाब के लिए मैंने यहाँ पर रहना तय किया है क्योंकि जब तक कविता के कातिल को पकड नहीं लूँगा चैन नहीं आएगा. भाभी के मन का शक तभी दूर होगा.

चाची- ठीक है फिर मैं भी तेरा साथ दूंगी यही रहूंगी तेरे साथ .

मैं- ये मेरा वनवास है चाची इसे मुझे ही सहने दो वैसे भी जब भी मेरा दिल करेगा तुमसे मिलने का घर आ जाऊंगा कोई रोक थोड़ी न सकता है मुझे.

चाची- पर तू यहाँ रहेगा तो हमें चिंता रहेगी तेरी.

मैं- कैसी चिंता , दिन में भैया, आप . मंगू-चंपा कोई न कोई साथ होता ही है मेरे. तुम बताओ भाभी कैसी है

चाची- ठीक है अपने कमरे में ही रहती है ज्यादातर . अभिमानु नाराज है उस से दुरी बना ली है निचे ही रहता है

मैं- आप समझाओ भैया को मेरी वजह से अपनी ग्रहस्थी क्यों ख़राब करनी

चाची- तू तो जानता है न उसे . जब तक तुझे न देख ले उसके गले से रोटी का कौर नहीं उतरता तूने उसे कसम दे दी और परेशां हो गया है वो . काम पर जाना भी छोड़ दिया बस अखाड़े में ही दिन रात होते है अब उसके.

मैं- नियति न जाने क्या दिन दिखा रही है.

चाची- कुछ कपडे और छोटा-मोटा सामान ले आई हूँ जरुरत के .

मैं उठ कर बाहर गया . हाथ मुह धोया . थोड़ी देर घुमने चला गया . नहाने लगा तो मैंने देखा की सूरजभान की वजह से मेरे कंधे का जख्म फिर से हरा हो गया था . खैर मैं वापिस चाची के पास गया .

मैं- गाँव वालो को भी लगता है क्या मैंने ही कविता को मारा है

चाची- नहीं , बहुरानी के सिवाय किसी के मन में भी ये ख्याल नहीं है

मैं- ठीक है , क्योंकि मुझे वैध की जरुरत है मेरे कंधे का जख्म हरा हो गया है .

चाची- मिल लेना उस से

मैं- फ़िलहाल तो मेरे मर्ज का इलाज तुम ही करोगी

मैंने अपनी पेंट खोली और लंड को बाहर निकाल लिया.

चाची- क्या कर रहा है अन्दर कर इसे. कोई आ गया तो मर जायेंगे

मैं- कोई नहीं आएगा तुम आओ तो सही .देखो तुम्हे देखते ही कैसे तन गया है ये. तुम्हारे हुस्न का नशा इस कदर चढ़ गया है की जब तुम पास होती हो तो खुद को रोकना मुश्किल हो जाता है .

मैंने चाची को दिवार के सहारे खड़ा किया और चाची के लहंगे को उठा कर कुलहो तक कर लिया. गोरे कुलहो के बीच चाची की काली चूत जो मेरे लंड की रगड़ से ही पनिया गयी थी क्या गजब नजारा था .

“तू मरवा के छोड़ेगा मुझे ” चाची बोली .

पर किसे परवाह थी मैंने लंड को झटका दिया और चाची की चुदाई शुरू कर दी. चूँकि दिन का समय था तो बस जल्दी जल्दी ही करना पड़ा . पर जब हम हटे तो दोनों पसीने से भीगे थे. चाची के चेहरे पर संतुष्टि की रौनक थी . चाची ने चुदाई के बाद मेरे गालो को चूमा और बाहर चली गयी .

चाची से साथ मैं गाँव में आया. एक बार फिर वैध जी मादरचोद न जाने कहा गायब था . आखिर ये जाता कहा था सोच कर मैं हैरान था . मैं मंगू के घर चला गया . चंपा खाना बना रही थी मैं भी खाने बैठ गया.

मैं- काकी, पिताजी कह कर गए थे की चंपा को सुनार के पास ले जाऊ नाप के लिए पर ये मान नहीं रही आप ही कहो.

काकी- बेटा, इसका कहना भी सही है राय साहब के इतने अहसान है हम पर शेखर बाबु जैसे सज्जन से रिश्ता करवाया इसका और हमें क्या चाहिए

मैं- वो तो भाग है इसके पर पिताजी को जब मालूम होगा तो वो मुझे ही गुस्सा करेंगे.

काकी- चंपा के पिता बात करेंगे राय साहब से जब वो आ जायेंगे

मैं- तब की तब देखेंगे पर तुम इस से कह दो की कल मेरे साथ मलिकपुर जाएगी सुनार के सामने

मलिकपुर का जिक्र होते ही मुझे खांसी उठ गयी. रात वाली घटना मेरी आँखों के सामने घूम गयी .

“क्या हुआ .” चंपा ने मुझे पानी का गिलास देते हुए कहा

मैं- क्या हुआ सब्जी में इतनी मिर्च डाली है , और पूछती है की क्या हुआ

चंपा- मिर्च, पर तू तो घी के साथ रोटी खा रहा है .

वो जोर जोर से हंसने लगी ..

“लगता है तेरी उस दोस्त के साथ रह रह कर तु सब्जी और घी में फर्क करना भूल गया है . क्या कर दिया उसने तेरा ” चंपा धीरे से बोली.

मेरी आँखों के सामने निशा की तस्वीर आ गयी . जब वो कविता का खून पी रही थी . ..........खैर, मैंने सर को झटका और रोटी खाने लगा की तभी बाहर से मंगू भागते हुए आया और बोला-कबीर , चल मेरे साथ . अभी चलना होगा.

चंपा- रोटी तो खा लेने दे इसे

मंगू- तू चुप रह , कबीर भाई चल अभी के अभी


मंगू के हावभाव देख कर लग रहा था की कुछ तो गड़बड़ है मेरा मन किसी अनिष्ट की आशंका से घबराने लगा.
Superb update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,847
259
#35

मैं मंगू के साथ बाहर गया तो देखा की नाचने गाने वाली वो लडकिया और उनके साथ दो आदमी थे जिनकी हालत ठीक नहीं लग रही थी . मुझे देखते ही वो लोग मेरे कदमो में गिर गए और रोने लगे.

मैंने उन्हें उठाया और पूछा की क्या हुआ .

आदमी जिसका नाम लाखा था .

लाखा- कुंवर साहब, आपके जाने के बाद चौधरी रुडा के आदमियों ने हम लोगो को बहुत मारा . ये लडकिया आपके साथ नाची थी देखिये इनका क्या हाल किया है .

उस आदमी ने लडकियों की पीठ मुझे दिखाई जो कोड़ो की मार से उधड गयी थी.

लाखा- आप ही इन्सान करो हमारा. बिना किसी कसूर के हमें ये सजा क्यों मिली .

मैं- लाखा तू आज रात मेरे साथ चलेगा और उस आदमी को पहचान लेना जिसने इन की पीठ पर कोड़े मारे है मैं तुझसे वादा करता हूँ उसकी खाल उतार कर लाऊंगा इस कृत्य के लिए.

“मंगू इन लोगो को वैध जी के पास लेकर जा इनका इलाज करवा और जो भी मदद हमसे हो कर इनकी .” मैंने मंगू को निर्देश दिया.

मंगू- हो जायेगा पर भाई, कल क्या हुआ था और तूने क्या किया

मैंने मंगू को सारी बात बताई .

मंगू- रुडा बहुत नीच किस्म का आदमी है . मलिकपुर के लोगो को कीड़े-मकोडो से जायदा कुछ नहीं समझता है वो . लोगो को ब्याज में पैसा देता है और फिर जो चूका नहीं पाता उनकी बहन-बेटिया भरपाई करती है पैसो की. उस से पंगा लेना उचित नहीं

मैं- हमें किसकी फ़िक्र . झांट नहीं समझता मैं उसे .

मंगू- भाई, कुछ भी करने से पहले अभिमानु भाई से बात कर लेते है एक बार

मैं- छोटी मोटी बातो के लिए उनको क्या परेशां करना

मंगू- पर जब उनको मालूम होगा तो हम पर ही नाराज होंगे सो पहले बताना ठीक रहेगा.

मैं- तू फिलहाल इनको वैध जी के पास लेकर जा और जब तक मैं न कहूँ ये बात किसी को भी मालूम नहीं हो .

मंगू कुछ कहना चाहता था पर फिर चुप हो गया. दुश्मनी मुझसे करनी थी तो मुझ पर वार करते इन गरीबो पर क्या जोर दिखाया . मैं अपनी योजना बनाने लगा रुडा के आदमियों को सरे आम मारना ठीक नहीं था उस से रंजिश और पक्की होती . क्या पता वो ऐसा ही हमला मेरे अपनों पर कर दे तो . मन में ये विचार भी था.

लाखा ने मुझे बताया की जिस आदमी ने उन्हें मारा था उसका नाम दारा था और वो रोज रात को ताड़ी की दूकान पर जरुर जाता था . मैंने तमाम बातो पर विचार किया और अंत में लाखा को भी हटा दिया क्योंकि मैं नहीं चाहता था की बाद में उस पर भी कोई मुसीबत आ जाये.



तय समय पर मैं छिपते छिपाते मलिकपुर की ताड़ी की दूकान पर नजर रखे हुए था . दारा बहुत देर तक ताड़ी पीते हुए वही किसी से बाते करता रहा फिर वो वहां से चल दिया मैं दबे पाँव उसका पीछा करने लगा. गाँव को पार करके वो जंगल की तरफ चल दिया.

“ये भोसड़ी का जंगल में क्या करने जा रहा है ” मैंने सोचा क्योंकि इतनी रात में जंगल में भला कोई क्यों जायेगा. कोई आधा किलोमीटर या उसके आस पास जाने के बाद वो ऐसी जगह पहुंचा जहाँ पर कुछ खानाबदोश रहते थे . मैंने देखा की दारा ने एक आदमी को कुछ पैसे दिए और एक तम्बू में घुस गया . मौका देख कर मैं भी उस तरफ गया . तम्बू में एक औरत थी शायद वो पैसे लेकर चुदाई करवाती होगी क्योंकि तम्बू में रास लीला चल रही थी .

फिर कुछ देर बाद वो औरत तम्बू से निकल कर बाहर चली गयी . मैंने तम्बू में झांककर देखा की दारा नग्न अवस्था में पलंग पर पड़ा था. मेरे लिए यही मौका था उसे अगवा करने का. मैं तम्बू में घुस गया और अपने हाथो से उसका मुह भींच लिया दारा तडपने लगा पर मैं जानता था की शांतिपूर्वक अगवाई के लिए एकमात्र यही मौका था . जैसे तैसे मैंने उसे बेहोश किया और उसके नग्न बदन को काँधे पर लाद कर वहां से न जाने किस दिशा में चल दिया.

एक तो इस इलाके में मैं अनजान था ऊपर से रात का वक्त कुछ दूर चलने पर मुझे एक पगडण्डी दिखी तो मैं उस पर ही चल दिया . आस पास घने झंखाड़ थे . धीरे धीरे वो पगडण्डी गायब हो गयी और मेरे कानो में हिलोरे लेटे पानी की आवाज आई . थोडा और आगे बढ़ने पर मैं समझ गया की मैं कहाँ हूँ. मैं निशा के काले मंदिर के ठीक पीछे पहुँच गया था .

जंगल की अजीब भूलभुलैया . मेरे काँधे पर एक बेहोश आदमी था और मैं डायन के ठिकाने पर वो मुझे देखती तो क्या समझती . खैर मैं दारा को लेकर प्रांगन में आया तो देखा की सब कुछ शांत था निशा की उपस्तिथि के कोई निशान नहीं . तभी दारा को होश आने लगा. तो मैंने उसे निचे पटक दिया. खुद को ऐसी हालत में और सामने मुझे पाकर उसे समझ नहीं आया की क्या हुआ है .

दारा- कौन है तू और मैं कहाँ हु

मैं- मैं वो हु जिसने कल सूरजभान की गांड तोड़ी थी और आज तेरी

दारा- अच्छा तो तू है वो . पर ये कायरो जैसी हरकत क्यों की गांड में दम था तो आमने सामने लड़ता

मैं- तेरी गांड में तो इतना दम है की तूने मासूम नाचने वालो की पीठ पर कोड़े मारे. तू मर्द होता तो मुझे तलाश करता . नामर्द सूरजभान की संगत में रह रह कर तू भी हिजड़ा हो गया .

दारा- तेरा ही काम तमाम करना था मुझे और देख मेरी किस्मत तू मुझे खुद से मिल गया .

मैं- तो देर किस बात की आजा फिर.

दारा मेरी तरफ लपका पर मैं तैयार था मैंने झुक कर अपना बचाव किया और उसके पैरो में टांग लगा दी . वो गिरा गिरते ही मैं उसकी पीठ पर कूद गया वो डकारा मैंने उसका हाथ मोड़ दिया. कट की आवाज आई और दारा की जोर की चीख उस काले मंदिर में गूंजने लगी.

“तेरे पापो का घड़ा भर गया है दारा. जितने कोड़े तूने उन मजलूमों को मारे थे उनका हिसाब लूँगा . तेरी पीठ की खाल उतारूंगा मैं .” मैंने कहा मैंने अपनी जेब से एक चाकू निकाला और दारा के कंधे के थोडा निचे कट लगाया . दारा चीखने लगा. एक तो वो दारू के नशे में था ऊपर से हाथ टुटा हुआ कब तक प्रतिरोध करता मेरा. मेरी उंगलिया उसके खून से सनने लगी. मुझे पक्का विश्वास था की इस शांत रात में दारा की चीखे दूर तक सुनी जाएँगी अगर को सुनने वाला हुआ तो .

मैं- क्या हुआ खुद पर बीत रही है तो दर्द हो रहा है . मजलूमों की चीखे सुन कर तो तुझे मजा आता है

दारा- चौधरी सहाब इसका बदला जरुर लेंगे.

मैं- माँ चोद देंगे तुम्हारे चौधरी की . जैसे जैसे मैं उसकी पीठ काट रहा था मुझे अजीब सा सुकून मिल रहा था . मेरा दिल रुकने को किया ही नहीं यहाँ तक की मैंने उसकी पीठ से हड्डिया तक काट दी . रक्त की ताजा महक में मैं ऐसा खोया की कब दारा के प्राण निकल गए मालूम ही नहीं हुआ. जब होश किया तो मैं दारा के खून से भीगा हुआ निशा के ठिकाने पर बैठा था . पर ये सब यही नहीं रुकना था . मैंने दारा की लाश को वापिस लादा और पगडण्डी से होते हुए मलिकपुर पहुच गया .

एक जूनून जैसे मुझे प्रेरित कर रहा था ये सब करने को . सारा गाँव ठण्ड की चादर में दुबका हुआ था . सब कुछ इतना शांत था की कई बार मुझे मेरे ही कदमो से डर लगा. मैंने गाँव के बीचोबीच दारा की कटी फटी लाश को रखा और फिर वापिस मुड गया .

कबीर जिसने थोड़े दिन पहले तक एक मच्छर भी नहीं मारा था उसने आज एक क़त्ल कर दिया था परिस्तिथि चाहे जो भी रही हो. मैं आज सच में एक कातिल बन गया था मैं चाहे खुद को झूठी तसल्ली देता की उन मजलूमों का बदला लिया मैंने पर सच तो ये ही था की मैंने एक क़त्ल कर दिया था . और इस पाप की आगे जाकर न जाने क्या कीमत चुकानी थी कौन जाने....................


 

Though_Guy

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#35

मैं मंगू के साथ बाहर गया तो देखा की नाचने गाने वाली वो लडकिया और उनके साथ दो आदमी थे जिनकी हालत ठीक नहीं लग रही थी . मुझे देखते ही वो लोग मेरे कदमो में गिर गए और रोने लगे.

मैंने उन्हें उठाया और पूछा की क्या हुआ .

आदमी जिसका नाम लाखा था .

लाखा- कुंवर साहब, आपके जाने के बाद चौधरी रुडा के आदमियों ने हम लोगो को बहुत मारा . ये लडकिया आपके साथ नाची थी देखिये इनका क्या हाल किया है .

उस आदमी ने लडकियों की पीठ मुझे दिखाई जो कोड़ो की मार से उधड गयी थी.

लाखा- आप ही इन्सान करो हमारा. बिना किसी कसूर के हमें ये सजा क्यों मिली .

मैं- लाखा तू आज रात मेरे साथ चलेगा और उस आदमी को पहचान लेना जिसने इन की पीठ पर कोड़े मारे है मैं तुझसे वादा करता हूँ उसकी खाल उतार कर लाऊंगा इस कृत्य के लिए.

“मंगू इन लोगो को वैध जी के पास लेकर जा इनका इलाज करवा और जो भी मदद हमसे हो कर इनकी .” मैंने मंगू को निर्देश दिया.

मंगू- हो जायेगा पर भाई, कल क्या हुआ था और तूने क्या किया

मैंने मंगू को सारी बात बताई .

मंगू- रुडा बहुत नीच किस्म का आदमी है . मलिकपुर के लोगो को कीड़े-मकोडो से जायदा कुछ नहीं समझता है वो . लोगो को ब्याज में पैसा देता है और फिर जो चूका नहीं पाता उनकी बहन-बेटिया भरपाई करती है पैसो की. उस से पंगा लेना उचित नहीं

मैं- हमें किसकी फ़िक्र . झांट नहीं समझता मैं उसे .

मंगू- भाई, कुछ भी करने से पहले अभिमानु भाई से बात कर लेते है एक बार

मैं- छोटी मोटी बातो के लिए उनको क्या परेशां करना

मंगू- पर जब उनको मालूम होगा तो हम पर ही नाराज होंगे सो पहले बताना ठीक रहेगा.

मैं- तू फिलहाल इनको वैध जी के पास लेकर जा और जब तक मैं न कहूँ ये बात किसी को भी मालूम नहीं हो .

मंगू कुछ कहना चाहता था पर फिर चुप हो गया. दुश्मनी मुझसे करनी थी तो मुझ पर वार करते इन गरीबो पर क्या जोर दिखाया . मैं अपनी योजना बनाने लगा रुडा के आदमियों को सरे आम मारना ठीक नहीं था उस से रंजिश और पक्की होती . क्या पता वो ऐसा ही हमला मेरे अपनों पर कर दे तो . मन में ये विचार भी था.

लाखा ने मुझे बताया की जिस आदमी ने उन्हें मारा था उसका नाम दारा था और वो रोज रात को ताड़ी की दूकान पर जरुर जाता था . मैंने तमाम बातो पर विचार किया और अंत में लाखा को भी हटा दिया क्योंकि मैं नहीं चाहता था की बाद में उस पर भी कोई मुसीबत आ जाये.



तय समय पर मैं छिपते छिपाते मलिकपुर की ताड़ी की दूकान पर नजर रखे हुए था . दारा बहुत देर तक ताड़ी पीते हुए वही किसी से बाते करता रहा फिर वो वहां से चल दिया मैं दबे पाँव उसका पीछा करने लगा. गाँव को पार करके वो जंगल की तरफ चल दिया.

“ये भोसड़ी का जंगल में क्या करने जा रहा है ” मैंने सोचा क्योंकि इतनी रात में जंगल में भला कोई क्यों जायेगा. कोई आधा किलोमीटर या उसके आस पास जाने के बाद वो ऐसी जगह पहुंचा जहाँ पर कुछ खानाबदोश रहते थे . मैंने देखा की दारा ने एक आदमी को कुछ पैसे दिए और एक तम्बू में घुस गया . मौका देख कर मैं भी उस तरफ गया . तम्बू में एक औरत थी शायद वो पैसे लेकर चुदाई करवाती होगी क्योंकि तम्बू में रास लीला चल रही थी .

फिर कुछ देर बाद वो औरत तम्बू से निकल कर बाहर चली गयी . मैंने तम्बू में झांककर देखा की दारा नग्न अवस्था में पलंग पर पड़ा था. मेरे लिए यही मौका था उसे अगवा करने का. मैं तम्बू में घुस गया और अपने हाथो से उसका मुह भींच लिया दारा तडपने लगा पर मैं जानता था की शांतिपूर्वक अगवाई के लिए एकमात्र यही मौका था . जैसे तैसे मैंने उसे बेहोश किया और उसके नग्न बदन को काँधे पर लाद कर वहां से न जाने किस दिशा में चल दिया.

एक तो इस इलाके में मैं अनजान था ऊपर से रात का वक्त कुछ दूर चलने पर मुझे एक पगडण्डी दिखी तो मैं उस पर ही चल दिया . आस पास घने झंखाड़ थे . धीरे धीरे वो पगडण्डी गायब हो गयी और मेरे कानो में हिलोरे लेटे पानी की आवाज आई . थोडा और आगे बढ़ने पर मैं समझ गया की मैं कहाँ हूँ. मैं निशा के काले मंदिर के ठीक पीछे पहुँच गया था .

जंगल की अजीब भूलभुलैया . मेरे काँधे पर एक बेहोश आदमी था और मैं डायन के ठिकाने पर वो मुझे देखती तो क्या समझती . खैर मैं दारा को लेकर प्रांगन में आया तो देखा की सब कुछ शांत था निशा की उपस्तिथि के कोई निशान नहीं . तभी दारा को होश आने लगा. तो मैंने उसे निचे पटक दिया. खुद को ऐसी हालत में और सामने मुझे पाकर उसे समझ नहीं आया की क्या हुआ है .

दारा- कौन है तू और मैं कहाँ हु

मैं- मैं वो हु जिसने कल सूरजभान की गांड तोड़ी थी और आज तेरी

दारा- अच्छा तो तू है वो . पर ये कायरो जैसी हरकत क्यों की गांड में दम था तो आमने सामने लड़ता

मैं- तेरी गांड में तो इतना दम है की तूने मासूम नाचने वालो की पीठ पर कोड़े मारे. तू मर्द होता तो मुझे तलाश करता . नामर्द सूरजभान की संगत में रह रह कर तू भी हिजड़ा हो गया .

दारा- तेरा ही काम तमाम करना था मुझे और देख मेरी किस्मत तू मुझे खुद से मिल गया .

मैं- तो देर किस बात की आजा फिर.

दारा मेरी तरफ लपका पर मैं तैयार था मैंने झुक कर अपना बचाव किया और उसके पैरो में टांग लगा दी . वो गिरा गिरते ही मैं उसकी पीठ पर कूद गया वो डकारा मैंने उसका हाथ मोड़ दिया. कट की आवाज आई और दारा की जोर की चीख उस काले मंदिर में गूंजने लगी.

“तेरे पापो का घड़ा भर गया है दारा. जितने कोड़े तूने उन मजलूमों को मारे थे उनका हिसाब लूँगा . तेरी पीठ की खाल उतारूंगा मैं .” मैंने कहा मैंने अपनी जेब से एक चाकू निकाला और दारा के कंधे के थोडा निचे कट लगाया . दारा चीखने लगा. एक तो वो दारू के नशे में था ऊपर से हाथ टुटा हुआ कब तक प्रतिरोध करता मेरा. मेरी उंगलिया उसके खून से सनने लगी. मुझे पक्का विश्वास था की इस शांत रात में दारा की चीखे दूर तक सुनी जाएँगी अगर को सुनने वाला हुआ तो .

मैं- क्या हुआ खुद पर बीत रही है तो दर्द हो रहा है . मजलूमों की चीखे सुन कर तो तुझे मजा आता है

दारा- चौधरी सहाब इसका बदला जरुर लेंगे.

मैं- माँ चोद देंगे तुम्हारे चौधरी की . जैसे जैसे मैं उसकी पीठ काट रहा था मुझे अजीब सा सुकून मिल रहा था . मेरा दिल रुकने को किया ही नहीं यहाँ तक की मैंने उसकी पीठ से हड्डिया तक काट दी . रक्त की ताजा महक में मैं ऐसा खोया की कब दारा के प्राण निकल गए मालूम ही नहीं हुआ. जब होश किया तो मैं दारा के खून से भीगा हुआ निशा के ठिकाने पर बैठा था . पर ये सब यही नहीं रुकना था . मैंने दारा की लाश को वापिस लादा और पगडण्डी से होते हुए मलिकपुर पहुच गया .

एक जूनून जैसे मुझे प्रेरित कर रहा था ये सब करने को . सारा गाँव ठण्ड की चादर में दुबका हुआ था . सब कुछ इतना शांत था की कई बार मुझे मेरे ही कदमो से डर लगा. मैंने गाँव के बीचोबीच दारा की कटी फटी लाश को रखा और फिर वापिस मुड गया .

कबीर जिसने थोड़े दिन पहले तक एक मच्छर भी नहीं मारा था उसने आज एक क़त्ल कर दिया था परिस्तिथि चाहे जो भी रही हो. मैं आज सच में एक कातिल बन गया था मैं चाहे खुद को झूठी तसल्ली देता की उन मजलूमों का बदला लिया मैंने पर सच तो ये ही था की मैंने एक क़त्ल कर दिया था . और इस पाप की आगे जाकर न जाने क्या कीमत चुकानी थी कौन जाने....................
Zabardast Update Bhai
 

Studxyz

Well-Known Member
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बेहद खतरनाक फाडू अपडेट रहा दारा का क़त्ल बेरहमी से हुआ पर ये सब निशा डायन जी के अड्डे पर हुआ खून भी भ पर वो तो आयी भी नहीं काम से काम फ्री का खून ही पी लेती ?

कबीर भी एक खूंखार इंसान बनता जा रहा है अब आगे चल कर निशा से इसी आदत के कारन दोस्ती ना हो जाये ?
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Ye siyaar vapis aagaya ek siyaar ki dosti insaan se kuch to gadbad hai ye siyaar kiss aur ishara kar raha hai kyu aaraha hai ye baar baar kabir ke pass kabir bhi bahut ijjat karta hai ghar valon ki sahi keh raha hai jab ghar valon ko pata padega to kya hoga chachi itni subah subah aai hai aur uthaya bhi der se kyu par isme kuch ajeeb nahi hai isme? Chalo chachi ki chudai ho hi gayi vapis se jaldi hi sahi lekin chudai to kari chachi ki ye gao me vapis gaya kabir vedh ke pass vedh jab dekho gayab hi rehta hai iska kissa kuch samajh nahi aata ye konsi nayi musibat ki leke aaya hai sath me mangu aisa kya dekh liya isne
Badiya suspence bana rahe ho bhaiya
Read update no 35
 
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