#34
वापसी में मैं बस ये सोचता रहा की ये जो हुआ ठीक नहीं हुआ. भैया को मालूम होगा तो मुझ पर गुस्सा करेंगे. दूसरी बात जीवन में ये सब कुछ अजीब हो रहा था मेरे साथ. मैं ऐसा नहीं था की गुस्सा करू, मारपीट करू. पर यही तो जिन्दगी थी न जाने कब क्या सीख दे हमें कौन जाने. मुझे मेरे भाई और बाप का डर था बाकि दुनिया से मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता था.
वापिस आकर देखा मैंने की सियार कुवे की मुंडेर पर बैठा था .
मैं- अरे तू फिर आ गया . जाकर कह दे उस से की मुझे नहीं मिलना उस से
सियार मुंडेर से उतरा और मेरे सीने पर पंजे लगा कर खड़ा हो गया . अपनी भाषा में कुछ कहने लगा.
मैं- क्या कहना चाहता है तू मेरे दोस्त . क्या तू भी मेरी तरह तनहा है परेशां है .
वो बस लिपटा रहा मुझसे. ठण्ड में उसे भी शायद राहत मिली होगी. मैंने कमरा खोला वो जाकर घास पर बैठ गया मैंने एक कम्बल ओढा दिया उसे और अलाव जला लिया. दरवाजा मैंने जान कर थोडा सा खुला छोड़ दिया.
“उठो , चाय पी लो ” चाची की आवाज से मेरी नींद टूटी.
मैं- तुम कब आई
मैंने आँखों को मसलते हुए कहा
चाची- आये तो बहुत देर हो गयी पर तुम इतना देर तक कैसे सो रहे हो .
मैं- थकान में पता ही नहीं चला
मैंने चाची के हाथ से कप लिया और चुस्की लेने लगा.
चाची मुझे ही देखती रही
मैं- ऐसे क्या देख रही हो
चाची- सोच रही हूँ की कितना बड़ा हो गया है तू, बहुरानी से झगडा हुआ तो खुद ही ये निर्णय ले लिया तू ये कैसे भूल गया की बहु से ऊपर भी कोई है घर में . मेरे आने का इंतजार नहीं कर सकता था .
मैं- जो हुआ अब मिटटी डालो उस पर.
चाची- तू मेरे घर पर भी तो रह सकता था न वहां से कौन निकाल देता तुझे
मैं- जब दिल करेगा आ जाया करूँगा.
चाची- खैर. इस सवाल का जवाब तो मुझे भी चाहिए जब तू उस रात मेरे पास सोया था तो कैसे तू कविता के पास पहुंचा. क्या तेरे उस से सम्बन्ध थे , बहुरानी ने मुझे बताया था की रातो को तू किसी औरत के चक्कर में ही गायब रहता था .
मैं- अगर मेरे सम्बन्ध होते उस से तो मैं क्यों मारता उसे . उस रात मुझे पेशाब लगी थी बाहर गया तो बहुत से जानवरों के रोने की आवाजे आये मैं देखने चला गया तो कविता की लाश पड़ी थी . मैंने सोचा की सुबह होने में समय है , जानवर इसके बदन को नोच खायेंगे मैंने लाश को गाँव में रख दिया. भाभी को कम्बल की वजह से शक हो गया.
चाची- पर कविता इतनी रात को जंगल में क्या कर रही थी .
मैं- इसी सवाल के जवाब के लिए मैंने यहाँ पर रहना तय किया है क्योंकि जब तक कविता के कातिल को पकड नहीं लूँगा चैन नहीं आएगा. भाभी के मन का शक तभी दूर होगा.
चाची- ठीक है फिर मैं भी तेरा साथ दूंगी यही रहूंगी तेरे साथ .
मैं- ये मेरा वनवास है चाची इसे मुझे ही सहने दो वैसे भी जब भी मेरा दिल करेगा तुमसे मिलने का घर आ जाऊंगा कोई रोक थोड़ी न सकता है मुझे.
चाची- पर तू यहाँ रहेगा तो हमें चिंता रहेगी तेरी.
मैं- कैसी चिंता , दिन में भैया, आप . मंगू-चंपा कोई न कोई साथ होता ही है मेरे. तुम बताओ भाभी कैसी है
चाची- ठीक है अपने कमरे में ही रहती है ज्यादातर . अभिमानु नाराज है उस से दुरी बना ली है निचे ही रहता है
मैं- आप समझाओ भैया को मेरी वजह से अपनी ग्रहस्थी क्यों ख़राब करनी
चाची- तू तो जानता है न उसे . जब तक तुझे न देख ले उसके गले से रोटी का कौर नहीं उतरता तूने उसे कसम दे दी और परेशां हो गया है वो . काम पर जाना भी छोड़ दिया बस अखाड़े में ही दिन रात होते है अब उसके.
मैं- नियति न जाने क्या दिन दिखा रही है.
चाची- कुछ कपडे और छोटा-मोटा सामान ले आई हूँ जरुरत के .
मैं उठ कर बाहर गया . हाथ मुह धोया . थोड़ी देर घुमने चला गया . नहाने लगा तो मैंने देखा की सूरजभान की वजह से मेरे कंधे का जख्म फिर से हरा हो गया था . खैर मैं वापिस चाची के पास गया .
मैं- गाँव वालो को भी लगता है क्या मैंने ही कविता को मारा है
चाची- नहीं , बहुरानी के सिवाय किसी के मन में भी ये ख्याल नहीं है
मैं- ठीक है , क्योंकि मुझे वैध की जरुरत है मेरे कंधे का जख्म हरा हो गया है .
चाची- मिल लेना उस से
मैं- फ़िलहाल तो मेरे मर्ज का इलाज तुम ही करोगी
मैंने अपनी पेंट खोली और लंड को बाहर निकाल लिया.
चाची- क्या कर रहा है अन्दर कर इसे. कोई आ गया तो मर जायेंगे
मैं- कोई नहीं आएगा तुम आओ तो सही .देखो तुम्हे देखते ही कैसे तन गया है ये. तुम्हारे हुस्न का नशा इस कदर चढ़ गया है की जब तुम पास होती हो तो खुद को रोकना मुश्किल हो जाता है .
मैंने चाची को दिवार के सहारे खड़ा किया और चाची के लहंगे को उठा कर कुलहो तक कर लिया. गोरे कुलहो के बीच चाची की काली चूत जो मेरे लंड की रगड़ से ही पनिया गयी थी क्या गजब नजारा था .
“तू मरवा के छोड़ेगा मुझे ” चाची बोली .
पर किसे परवाह थी मैंने लंड को झटका दिया और चाची की चुदाई शुरू कर दी. चूँकि दिन का समय था तो बस जल्दी जल्दी ही करना पड़ा . पर जब हम हटे तो दोनों पसीने से भीगे थे. चाची के चेहरे पर संतुष्टि की रौनक थी . चाची ने चुदाई के बाद मेरे गालो को चूमा और बाहर चली गयी .
चाची से साथ मैं गाँव में आया. एक बार फिर वैध जी मादरचोद न जाने कहा गायब था . आखिर ये जाता कहा था सोच कर मैं हैरान था . मैं मंगू के घर चला गया . चंपा खाना बना रही थी मैं भी खाने बैठ गया.
मैं- काकी, पिताजी कह कर गए थे की चंपा को सुनार के पास ले जाऊ नाप के लिए पर ये मान नहीं रही आप ही कहो.
काकी- बेटा, इसका कहना भी सही है राय साहब के इतने अहसान है हम पर शेखर बाबु जैसे सज्जन से रिश्ता करवाया इसका और हमें क्या चाहिए
मैं- वो तो भाग है इसके पर पिताजी को जब मालूम होगा तो वो मुझे ही गुस्सा करेंगे.
काकी- चंपा के पिता बात करेंगे राय साहब से जब वो आ जायेंगे
मैं- तब की तब देखेंगे पर तुम इस से कह दो की कल मेरे साथ मलिकपुर जाएगी सुनार के सामने
मलिकपुर का जिक्र होते ही मुझे खांसी उठ गयी. रात वाली घटना मेरी आँखों के सामने घूम गयी .
“क्या हुआ .” चंपा ने मुझे पानी का गिलास देते हुए कहा
मैं- क्या हुआ सब्जी में इतनी मिर्च डाली है , और पूछती है की क्या हुआ
चंपा- मिर्च, पर तू तो घी के साथ रोटी खा रहा है .
वो जोर जोर से हंसने लगी ..
“लगता है तेरी उस दोस्त के साथ रह रह कर तु सब्जी और घी में फर्क करना भूल गया है . क्या कर दिया उसने तेरा ” चंपा धीरे से बोली.
मेरी आँखों के सामने निशा की तस्वीर आ गयी . जब वो कविता का खून पी रही थी . ..........खैर, मैंने सर को झटका और रोटी खाने लगा की तभी बाहर से मंगू भागते हुए आया और बोला-कबीर , चल मेरे साथ . अभी चलना होगा.
चंपा- रोटी तो खा लेने दे इसे
मंगू- तू चुप रह , कबीर भाई चल अभी के अभी
मंगू के हावभाव देख कर लग रहा था की कुछ तो गड़बड़ है मेरा मन किसी अनिष्ट की आशंका से घबराने लगा.