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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#33

मैंने दरवाजा खोला तो देखा की वो सियार दरवाजे पर खड़ा था . मेरे बाजु से होते हुए वो अंदर गया और एक कोने में पड़ी सूखी घास पर जाकर बैठ गया.

“तुझे क्या चाहिए अब . जा जाकर कह दे उस से मैं नहीं मिलूँगा उस से ” मैंने उस से कहा पर उसने मेरी बात जैसे सुनी ही नहीं घास पर सो गया वो .

इसे मेरे पास भेजने का भला क्या मकसद हो सकता था निशा का सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी . सुबह चूँकि मुझे सब्जिया लेकर शहर जाना था तो मंगू समय से आ गया . हमने मंगू की बैलगाड़ी में सब्जिया लादी और शहर के लिए निकल गए.

मंगू- मुझे सब मालूम हो गया है भैया ने बता दिया

मैं- मैं क्या करू फिर

मंगू- जो हुआ गलत हुआ न

मैं- थोड़े दिन में सब सही हो जायेगा.

मंगू- पर.

मैं- पर वर कुछ नहीं यार. कोई और बात कर

मंगू- मलिकपुर में नाचने वालो का मजमा लगा है सुना है की उनके जैसा कोई नहीं नाचने वाला बिजली की रफ़्तार से प्रोग्राम होता है उनका पर क्या ही फायदा घर वाले जाने थोड़ी न देंगे कविता की मौत के बाद शाम होते ही घरो के दरवाजे बंद हो जाते है न जाने कब ये मुसीबत दूर होगी.

मैं- आज सब्जियों के ठीक दाम मिल गए तो बढ़िया रहे, दिवाली आने वाली है पैसे रहेंगे तो मजा होगा.

मंगू- क्या ही फायदा , तेरे बिना क्या होली-क्या दीवाली

मैं- ऐसा क्यों कहता है इस बार भी हम साथ ही सब कुछ करेंगे पहले के जैसे

बाते करते हुए हम शहर की सब्जी मंडी पहुँच गए . सब्जियों को बेचा . थोडा नाश्ता पानी किया . एक जानने वाले आढती कए यहाँ बैलो को छोड़ कर हम दोनों शहर में घुमने चले गए. दोपहर बाद हम वापिस चल दिए. चूँकि आज दाम बढ़िया मिले थे तो मैंने मंगू को थोड़े पैसे फालतू दिए . वापिस आकार मैं नहाने धोने लग गया मंगू घर चला गया . अकेले आदमी को खाली समय काटना भी किसी सजा जैसा ही होता है . करे तो क्या करे देखे तो क्या देखे . तभी मुझे मंगू की मलिकपुर वाली बात याद आई तो मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर का रास्ता पकड़ लिया.

वहां पहुंचा तो अँधेरा खूब हो चूका था . मैंने मालूम किया की प्रोग्राम वालो का तम्बू किधर लगा है और उधर पहुँच गया. ठण्ड बहुत थी तो मैंने चने और ताड़ी का गिलास ले लिया और पंडाल में बैठ गया . एक दो किस्से कहानियो के बाद जब लडकियों के नाचने का नम्बर आया तो मैंने महसूस किया की मंगू को गलत सुचना थी ये तो वो ही थी जिनका प्रोग्राम हमने थोड़े दिन पहले देखा था .

कुछ दारू का सुरूर , कुछ हुस्न के जलवे उनमे से एक लड़की ने मुझे पहचान लिया और ऊपर मंच पर खींच लिया मैं भी उनके साथ नाचने लगा. जेब में पैसे तो थे ही मैंने उन पर लुटाना शुरू कर दिया. मजा आ ही रहा था की तभी किसी ने मेरी जैकेट का कालर पकड़ कर खींच लिया , जिस से मेरी जैकेट फट गयी .

“क्यों बे , क्या ग़दर मचा रखा है तूने मंच पर ” जिस लड़के ने मेरी जैकेट खींची थी उसने मुझे धक्का देते हुए कहा.

मैं- तुझे क्या तकलीफ है , तू भी नाच ले किसके रोका है तुझे और ये जाकेट फट गयी इसकी भरपाई कौन करेगा.

लड़का- भरपाई तो तेरी गांड तोड़ कर कर दूंगा साले मेरे गाँव में आकार नेता बन रहा है तू

मैंने गौर से उस लड़के को देखा और बोला- गाँव तेरा है तो मैं क्या करू . तम्बू के बाहर तख्ती लगा देता की तेरे गाँव वाले ही प्रोग्राम देखेंगे .चल ठीक है तेरी बात मानी पर जो जाकेट फाड़ी तूने उसका क्या नयी जाकेट दे या फिर पैसे दे .

लड़का- दाद देनी होगी तेरी हिम्मत की सूरजभान से इस तरह अकड़ के बात कर रहा है तू. क्या तुझे डर नहीं मैं तेरा क्या हाल कर सकता हूँ

मैं- अबे चमन चूतिये. मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता की तू किस खेत की मूली है . मुझे फर्क पड़ता है तेरी घटिया हरकत से जो तूने की है . जाकेट के पैसे दे और निकल यहाँ से मेरा दिमाग फिर गया न तो मारूंगा तीन गिनूंगा एक समझा चोमू

“बहनचोद तेरी ये मजाल तू मुझे गाली देगा ” सूरजभान गुस्से में भर गया और उसने मुझे जोर का धक्का दिया. मैं मंच से निचे जाकर गिरा. चूँकि मेरे कंधे में पहले ही चोट लगी हुई थी दर्द हुआ तो मेरा सब्र भी जवाब दे गया . मैं वापिस मंच पर गया .

“गलती कर दी तूने भोसड़ी के ” मैंने सूरजभान को धर लिया और उसकी मरम्मत करनी शुरू कर दी. इसबार मैंने उसे उठा कर जनता के बीच फेका तो मजमा देखने वालो में अफरा तरफी मच गयी. उसके दो चार चमचे बीच में आये पर मैंने अपना काम चालू रखा . मैंने सूरजभान को उठा कर मजमे वालो की जीप के बोनट पर पटक दिया.

मैं- जाकेट के पैसे तो तेरी खाल उतार कर वसूल कर लूँगा चूतिये.

तभी उसने एक लोहे की लाइट उठा कर मेरे सर में मारी और मुझे निचे गिरा दिया जीप से

सूरजभान- अच्छा हुआ जो आज तेरा सामना मेरे साथ हुआ इतनी मार मारूंगा तुझे की हड्डिया तक कापेंगी मेरे नाम से तेरी

मैं- आजा फिर देखते है किसकी बाजुओ में कितना जोर है

मैंने पास में रखी कुर्सी उठा कर उसके पैरो पर मारी उसके गिरते ही मैंने उसके सीने पर लात रख दी . उसने फुर्ती से मुझे धकिया दिया. पीछे से उसके एक चमचे ने पीठ में लात मारी तो मैंने उसकी बाहं मोड़ दी और उसे झका दिया.

मैं- कुत्ते कभी शेर का शिकार नहीं करते आज तुम्हारा भी वहम दूर हो जायेगा.

सूरजभान- कोई बीच में नहीं आयेगा . इसके लिए मैं अकेला ही काफी हूँ

मैंने मंच के तख्तो में से एक फट्टा उखाड़ लिया और सूरजभान के सर पर देमारा. सर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. आसपास के लोगो में चीख पुकार मच गयी . खून देखते ही मुझ पर न जाने क्या हुआ मैंने फिर रहम नहीं किया

“मैंने कहा था तेरा गाँव है इस बात की धोंस मत दिखा मुझे , मैंने किसी को तंग तो नहीं किया था न प्रोग्राम देख कर चला जाता पर तेरी गांड में कीड़ा कुलबुला रहा था . पूछ कर तो देखता मेरे बारेमे , ये गुस्ताखी करने से पहले ” मैंने अपनी दोनों हाथो की उंगलिया उसके मुह में डाली और उसके गालों को फाड़ ही देता अगर वो गोली न चलती .

मैंने देखा सामने एक आदमी कुरता-पगड़ी पहने खड़ा था हाथ में बन्दूक लिया .

आदमी- अगली गोली तेरे सीने के पार होगी छोरे ,चौधरी रुडा के बेटे पर हाथ उठाने की हिमाकत की कैसे तूने .

मैं- चौधरी , ये बात अपने इस गधे बेटे से पूछ, अपनी औकात भूल कर इसने शेर का गिरेबान पकड़ा . सजा तो मिलेगी ही इसे.

रुडा- इतना अहंकार नादान तू जानता भी है यहाँ से तू जिन्दा नहीं लौट पायेगा.

रुडा ने बन्दूक मेरी तरफ तान दी .

मैं- चौधरी, इस लोहे के खिलोने से तू शेर का शिकार करने की सोच रहा है हंसी आती है तेरी मुर्खता पर मेरा जोर आजमाने की तमन्ना है तेरी तो तू भी कोशिश कर ले . गलती तेरे बेटे की थी इसने मेरी जाकेट फाड़ी . नुकसान की भरपाई तो करनी पड़ेगी .

चौधरी- मामूली से जाकेट के लिए तूने मेरे बेटे का खून बहाया

मैं- नहीं वो तो मैंने मजे के लिए बहाया . पर निराशा ही हुई तेरा खून ख़तम है चौधरी लेजा इसे जा बक्श दिया तू भी क्या यद् करेगा. खिला पिला इसे और अगर कभी तुझे फिर लगे की ये कुछ कर पायेगा तो मेरा नाम कबीर है , राज पूरा के राय साहब का बेटा हु मैं मुझे संदेसा भेज देना

मैंने सूरजभान को साइड में पटका और चौधरी रुडा के पास चल कर गया .

मैं- चौधरी तेरा गाँव है तेरी जनता है . मैं समझता हूँ मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुरा और जाने दे मुझे . तू भी जानता है तेरा बेटा कमजोर है

रुडा- तुझे यहाँ मारा तो तू कहेगा की अपनी गली में कुत्मैंता भी शेर होता है तुझे तेरे गाँव में तेरे घर में ही मारूंगा

मैं- इइश्वर करे वो दिन जल्दी ही आये जब तेरी ये इच्छा पूरी हो.


मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर से बाहर जाने वाले रस्ते पर चल दिया.
 
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Mastmalang

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#33

मैंने दरवाजा खोला तो देखा की वो सियार दरवाजे पर खड़ा था . मेरे बाजु से होते हुए वो अंदर गया और एक कोने में पड़ी सूखी घास पर जाकर बैठ गया.

“तुझे क्या चाहिए अब . जा जाकर कह दे उस से मैं नहीं मिलूँगा उस से ” मैंने उस से कहा पर उसने मेरी बात जैसे सुनी ही नहीं घास पर सो गया वो .

इसे मेरे पास भेजने का भला क्या मकसद हो सकता था निशा का सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी . सुबह चूँकि मुझे सब्जिया लेकर शहर जाना था तो मंगू समय से आ गया . हमने मंगू की बैलगाड़ी में सब्जिया लादी और शहर के लिए निकल गए.

मंगू- मुझे सब मालूम हो गया है भैया ने बता दिया

मैं- मैं क्या करू फिर

मंगू- जो हुआ गलत हुआ न

मैं- थोड़े दिन में सब सही हो जायेगा.

मंगू- पर.

मैं- पर वर कुछ नहीं यार. कोई और बात कर

मंगू- मलिकपुर में नाचने वालो का मजमा लगा है सुना है की उनके जैसा कोई नहीं नाचने वाला बिजली की रफ़्तार से प्रोग्राम होता है उनका पर क्या ही फायदा घर वाले जाने थोड़ी न देंगे कविता की मौत के बाद शाम होते ही घरो के दरवाजे बंद हो जाते है न जाने कब ये मुसीबत दूर होगी.

मैं- आज सब्जियों के ठीक दाम मिल गए तो बढ़िया रहे, दिवाली आने वाली है पैसे रहेंगे तो मजा होगा.

मंगू- क्या ही फायदा , तेरे बिना क्या होली-क्या दीवाली

मैं- ऐसा क्यों कहता है इस बार भी हम साथ ही सब कुछ करेंगे पहले के जैसे

बाते करते हुए हम शहर की सब्जी मंडी पहुँच गए . सब्जियों को बेचा . थोडा नाश्ता पानी किया . एक जानने वाले आढती कए यहाँ बैलो को छोड़ कर हम दोनों शहर में घुमने चले गए. दोपहर बाद हम वापिस चल दिए. चूँकि आज दाम बढ़िया मिले थे तो मैंने मंगू को थोड़े पैसे फालतू दिए . वापिस आकार मैं नहाने धोने लग गया मंगू घर चला गया . अकेले आदमी को खाली समय काटना भी किसी सजा जैसा ही होता है . करे तो क्या करे देखे तो क्या देखे . तभी मुझे मंगू की मलिकपुर वाली बात याद आई तो मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर का रास्ता पकड़ लिया.

वहां पहुंचा तो अँधेरा खूब हो चूका था . मैंने मालूम किया की प्रोग्राम वालो का तम्बू किधर लगा है और उधर पहुँच गया. ठण्ड बहुत थी तो मैंने चने और ताड़ी का गिलास ले लिया और पंडाल में बैठ गया . एक दो किस्से कहानियो के बाद जब लडकियों के नाचने का नम्बर आया तो मैंने महसूस किया की मंगू को गलत सुचना थी ये तो वो ही थी जिनका प्रोग्राम हमने थोड़े दिन पहले देखा था .

कुछ दारू का सुरूर , कुछ हुस्न के जलवे उनमे से एक लड़की ने मुझे पहचान लिया और ऊपर मंच पर खींच लिया मैं भी उनके साथ नाचने लगा. जेब में पैसे तो थे ही मैंने उन पर लुटाना शुरू कर दिया. मजा आ ही रहा था की तभी किसी ने मेरी जैकेट का कालर पकड़ कर खींच लिया , जिस से मेरी जैकेट फट गयी .

“क्यों बे , क्या ग़दर मचा रखा है तूने मंच पर ” जिस लड़के ने मेरी जैकेट खींची थी उसने मुझे धक्का देते हुए कहा.

मैं- तुझे क्या तकलीफ है , तू भी नाच ले किसके रोका है तुझे और ये जाकेट फट गयी इसकी भरपाई कौन करेगा.

लड़का- भरपाई तो तेरी गांड तोड़ कर कर दूंगा साले मेरे गाँव में आकार नेता बन रहा है तू

मैंने गौर से उस लड़के को देखा और बोला- गाँव तेरा है तो मैं क्या करू . तम्बू के बाहर तख्ती लगा देता की तेरे गाँव वाले ही प्रोग्राम देखेंगे .चल ठीक है तेरी बात मानी पर जो जाकेट फाड़ी तूने उसका क्या नयी जाकेट दे या फिर पैसे दे .

लड़का- दाद देनी होगी तेरी हिम्मत की सूरजभान से इस तरह अकड़ के बात कर रहा है तू. क्या तुझे डर नहीं मैं तेरा क्या हाल कर सकता हूँ

मैं- अबे चमन चूतिये. मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता की तू किस खेत की मूली है . मुझे फर्क पड़ता है तेरी घटिया हरकत से जो तूने की है . जाकेट के पैसे दे और निकल यहाँ से मेरा दिमाग फिर गया न तो मारूंगा तीन गिनूंगा एक समझा चोमू

“बहनचोद तेरी ये मजाल तू मुझे गाली देगा ” सूरजभान गुस्से में भर गया और उसने मुझे जोर का धक्का दिया. मैं मंच से निचे जाकर गिरा. चूँकि मेरे कंधे में पहले ही चोट लगी हुई थी दर्द हुआ तो मेरा सब्र भी जवाब दे गया . मैं वापिस मंच पर गया .

“गलती कर दी तूने भोसड़ी के ” मैंने सूरजभान को धर लिया और उसकी मरम्मत करनी शुरू कर दी. इसबार मैंने उसे उठा कर जनता के बीच फेका तो मजमा देखने वालो में अफरा तरफी मच गयी. उसके दो चार चमचे बीच में आये पर मैंने अपना काम चालू रखा . मैंने सूरजभान को उठा कर मजमे वालो की जीप के बोनट पर पटक दिया.

मैं- जाकेट के पैसे तो तेरी खाल उतार कर वसूल कर लूँगा चूतिये.

तभी उसने एक लोहे की लाइट उठा कर मेरे सर में मारी और मुझे निचे गिरा दिया जीप से

सूरजभान- अच्छा हुआ जो आज तेरा सामना मेरे साथ हुआ इतनी मार मारूंगा तुझे की हड्डिया तक कापेंगी मेरे नाम से तेरी

मैं- आजा फिर देखते है किसकी बाजुओ में कितना जोर है

मैंने पास में रखी कुर्सी उठा कर उसके पैरो पर मारी उसके गिरते ही मैंने उसके सीने पर लात रख दी . उसने फुर्ती से मुझे धकिया दिया. पीछे से उसके एक चमचे ने पीठ में लात मारी तो मैंने उसकी बाहं मोड़ दी और उसे झका दिया.

मैं- कुत्ते कभी शेर का शिकार नहीं करते आज तुम्हारा भी वहम दूर हो जायेगा.

सूरजभान- कोई बीच में नहीं आयेगा . इसके लिए मैं अकेला ही काफी हूँ

मैंने मंच के तख्तो में से एक फट्टा उखाड़ लिया और सूरजभान के सर पर देमारा. सर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. आसपास के लोगो में चीख पुकार मच गयी . खून देखते ही मुझ पर न जाने क्या हुआ मैंने फिर रहम नहीं किया

“मैंने कहा था तेरा गाँव है इस बात की धोंस मत दिखा मुझे , मैंने किसी को तंग तो नहीं किया था न प्रोग्राम देख कर चला जाता पर तेरी गांड में कीड़ा कुलबुला रहा था . पूछ कर तो देखता मेरे बारेमे , ये गुस्ताखी करने से पहले ” मैंने अपनी दोनों हाथो की उंगलिया उसके मुह में डाली और उसके गालों को फाड़ ही देता अगर वो गोली न चलती .

मैंने देखा सामने एक आदमी कुरता-पगड़ी पहने खड़ा था हाथ में बन्दूक लिया .

आदमी- अगली गोली तेरे सीने के पार होगी छोरे ,चौधरी रुडा के बेटे पर हाथ उठाने की हिमाकत की कैसे तूने .

मैं- चौधरी , ये बात अपने इस गधे बेटे से पूछ, अपनी औकात भूल कर इसने शेर का गिरेबान पकड़ा . सजा तो मिलेगी ही इसे.

रुडा- इतना अहंकार नादान तू जानता भी है यहाँ से तू जिन्दा नहीं लौट पायेगा.

रुडा ने बन्दूक मेरी तरफ तान दी .

मैं- चौधरी, इस लोहे के खिलोने से तू शेर का शिकार करने की सोच रहा है हंसी आती है तेरी मुर्खता पर मेरा जोर आजमाने की तमन्ना है तेरी तो तू भी कोशिश कर ले . गलती तेरे बेटे की थी इसने मेरी जाकेट फाड़ी . नुकसान की भरपाई तो करनी पड़ेगी .

चौधरी- मामूली से जाकेट के लिए तूने मेरे बेटे का खून बहाया

मैं- नहीं वो तो मैंने मजे के लिए बहाया . पर निराशा ही हुई तेरा खून ख़तम है चौधरी लेजा इसे जा बक्श दिया तू भी क्या यद् करेगा. खिला पिला इसे और अगर कभी तुझे फिर लगे की ये कुछ कर पायेगा तो मेरा नाम कबीर है , चन्दन पुर के राय साहब का बेटा हु मैं मुझे संदेसा भेज देना

मैंने सूरजभान को साइड में पटका और चौधरी रुडा के पास चल कर गया .

मैं- चौधरी तेरा गाँव है तेरी जनता है . मैं समझता हूँ मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुरा और जाने दे मुझे . तू भी जानता है तेरा बेटा कमजोर है

रुडा- तुझे यहाँ मारा तो तू कहेगा की अपनी गली में कुत्मैंता भी शेर होता है तुझे तेरे गाँव में तेरे घर में ही मारूंगा

मैं- इइश्वर करे वो दिन जल्दी ही आये जब तेरी ये इच्छा पूरी हो.


मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर से बाहर जाने वाले रस्ते पर चल दिया.
Ye kya ho gaya
Ghumte ghumte Ye kaha pahuch gaya or ek naya hangama bhi ho gaya Ab dekhna hoga ki aage kya hota hai
 

agmr66608

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मस्त अनुच्छेद है मित्र। कहानी का रंग धीरे धीरे ही सही लेकिन रंग पड़ना शुरू हुआ है। उस कुत्ते को सबक बढ़िया से सीखाना होगा। यह मसला नायक का मसलेके साथ कैसे जुड़ेगा वो देखने के लिए इंतजार करेंगे। धन्यबाद।
 

Studxyz

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कबीर के घर निकाले के बाद कहानी और भी रोमांचक होती जा रही है क्यों भी अब ये रातों को भी खुला हर तरफ घूम सकता है और नए नए बवाल खड़े कर सकता है

लेकिन सवाल ये है की सियार जो की निशा डायन जी का डाकिया है वो कबीर के साथ रहने क्यों आ गया ? पक्का निशा ने भेजा होगा ताकि कोई गाँव वाला कबीर पर हमला ना कर सके या फिर कोई और भी खतरा है जैसे की क़ातिल निशा ना हो कोई और ही हो ?

बेसब्री से इंतज़ार उन पलों का जब निशा के साथ रोमांस भरे पल चालू होंगे जैसे की मीता के साथ होते थे और चूमा-चाटी का भी इंतज़ार है लेकिन डायन के ठंडे शरीर के साथ ये सब होगा कैसे बाकि चोदम-चुदाई तो कबीर भूल ही जाये निशा डायन जो ठहरी इसलिए अच्छा होगा की चम्पा-वम्पा जैसीयों को पटा कर रखे और हो सके तो चाची से भी सुलह सफायी कर ले और नहीं तो अपने सूजे लंड के खातिर ही सही :vhappy1:
 

Naik

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मैंने दरवाजा खोला तो देखा की वो सियार दरवाजे पर खड़ा था . मेरे बाजु से होते हुए वो अंदर गया और एक कोने में पड़ी सूखी घास पर जाकर बैठ गया.

“तुझे क्या चाहिए अब . जा जाकर कह दे उस से मैं नहीं मिलूँगा उस से ” मैंने उस से कहा पर उसने मेरी बात जैसे सुनी ही नहीं घास पर सो गया वो .

इसे मेरे पास भेजने का भला क्या मकसद हो सकता था निशा का सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी . सुबह चूँकि मुझे सब्जिया लेकर शहर जाना था तो मंगू समय से आ गया . हमने मंगू की बैलगाड़ी में सब्जिया लादी और शहर के लिए निकल गए.

मंगू- मुझे सब मालूम हो गया है भैया ने बता दिया

मैं- मैं क्या करू फिर

मंगू- जो हुआ गलत हुआ न

मैं- थोड़े दिन में सब सही हो जायेगा.

मंगू- पर.

मैं- पर वर कुछ नहीं यार. कोई और बात कर

मंगू- मलिकपुर में नाचने वालो का मजमा लगा है सुना है की उनके जैसा कोई नहीं नाचने वाला बिजली की रफ़्तार से प्रोग्राम होता है उनका पर क्या ही फायदा घर वाले जाने थोड़ी न देंगे कविता की मौत के बाद शाम होते ही घरो के दरवाजे बंद हो जाते है न जाने कब ये मुसीबत दूर होगी.

मैं- आज सब्जियों के ठीक दाम मिल गए तो बढ़िया रहे, दिवाली आने वाली है पैसे रहेंगे तो मजा होगा.

मंगू- क्या ही फायदा , तेरे बिना क्या होली-क्या दीवाली

मैं- ऐसा क्यों कहता है इस बार भी हम साथ ही सब कुछ करेंगे पहले के जैसे

बाते करते हुए हम शहर की सब्जी मंडी पहुँच गए . सब्जियों को बेचा . थोडा नाश्ता पानी किया . एक जानने वाले आढती कए यहाँ बैलो को छोड़ कर हम दोनों शहर में घुमने चले गए. दोपहर बाद हम वापिस चल दिए. चूँकि आज दाम बढ़िया मिले थे तो मैंने मंगू को थोड़े पैसे फालतू दिए . वापिस आकार मैं नहाने धोने लग गया मंगू घर चला गया . अकेले आदमी को खाली समय काटना भी किसी सजा जैसा ही होता है . करे तो क्या करे देखे तो क्या देखे . तभी मुझे मंगू की मलिकपुर वाली बात याद आई तो मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर का रास्ता पकड़ लिया.

वहां पहुंचा तो अँधेरा खूब हो चूका था . मैंने मालूम किया की प्रोग्राम वालो का तम्बू किधर लगा है और उधर पहुँच गया. ठण्ड बहुत थी तो मैंने चने और ताड़ी का गिलास ले लिया और पंडाल में बैठ गया . एक दो किस्से कहानियो के बाद जब लडकियों के नाचने का नम्बर आया तो मैंने महसूस किया की मंगू को गलत सुचना थी ये तो वो ही थी जिनका प्रोग्राम हमने थोड़े दिन पहले देखा था .

कुछ दारू का सुरूर , कुछ हुस्न के जलवे उनमे से एक लड़की ने मुझे पहचान लिया और ऊपर मंच पर खींच लिया मैं भी उनके साथ नाचने लगा. जेब में पैसे तो थे ही मैंने उन पर लुटाना शुरू कर दिया. मजा आ ही रहा था की तभी किसी ने मेरी जैकेट का कालर पकड़ कर खींच लिया , जिस से मेरी जैकेट फट गयी .

“क्यों बे , क्या ग़दर मचा रखा है तूने मंच पर ” जिस लड़के ने मेरी जैकेट खींची थी उसने मुझे धक्का देते हुए कहा.

मैं- तुझे क्या तकलीफ है , तू भी नाच ले किसके रोका है तुझे और ये जाकेट फट गयी इसकी भरपाई कौन करेगा.

लड़का- भरपाई तो तेरी गांड तोड़ कर कर दूंगा साले मेरे गाँव में आकार नेता बन रहा है तू

मैंने गौर से उस लड़के को देखा और बोला- गाँव तेरा है तो मैं क्या करू . तम्बू के बाहर तख्ती लगा देता की तेरे गाँव वाले ही प्रोग्राम देखेंगे .चल ठीक है तेरी बात मानी पर जो जाकेट फाड़ी तूने उसका क्या नयी जाकेट दे या फिर पैसे दे .

लड़का- दाद देनी होगी तेरी हिम्मत की सूरजभान से इस तरह अकड़ के बात कर रहा है तू. क्या तुझे डर नहीं मैं तेरा क्या हाल कर सकता हूँ

मैं- अबे चमन चूतिये. मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता की तू किस खेत की मूली है . मुझे फर्क पड़ता है तेरी घटिया हरकत से जो तूने की है . जाकेट के पैसे दे और निकल यहाँ से मेरा दिमाग फिर गया न तो मारूंगा तीन गिनूंगा एक समझा चोमू

“बहनचोद तेरी ये मजाल तू मुझे गाली देगा ” सूरजभान गुस्से में भर गया और उसने मुझे जोर का धक्का दिया. मैं मंच से निचे जाकर गिरा. चूँकि मेरे कंधे में पहले ही चोट लगी हुई थी दर्द हुआ तो मेरा सब्र भी जवाब दे गया . मैं वापिस मंच पर गया .

“गलती कर दी तूने भोसड़ी के ” मैंने सूरजभान को धर लिया और उसकी मरम्मत करनी शुरू कर दी. इसबार मैंने उसे उठा कर जनता के बीच फेका तो मजमा देखने वालो में अफरा तरफी मच गयी. उसके दो चार चमचे बीच में आये पर मैंने अपना काम चालू रखा . मैंने सूरजभान को उठा कर मजमे वालो की जीप के बोनट पर पटक दिया.

मैं- जाकेट के पैसे तो तेरी खाल उतार कर वसूल कर लूँगा चूतिये.

तभी उसने एक लोहे की लाइट उठा कर मेरे सर में मारी और मुझे निचे गिरा दिया जीप से

सूरजभान- अच्छा हुआ जो आज तेरा सामना मेरे साथ हुआ इतनी मार मारूंगा तुझे की हड्डिया तक कापेंगी मेरे नाम से तेरी

मैं- आजा फिर देखते है किसकी बाजुओ में कितना जोर है

मैंने पास में रखी कुर्सी उठा कर उसके पैरो पर मारी उसके गिरते ही मैंने उसके सीने पर लात रख दी . उसने फुर्ती से मुझे धकिया दिया. पीछे से उसके एक चमचे ने पीठ में लात मारी तो मैंने उसकी बाहं मोड़ दी और उसे झका दिया.

मैं- कुत्ते कभी शेर का शिकार नहीं करते आज तुम्हारा भी वहम दूर हो जायेगा.

सूरजभान- कोई बीच में नहीं आयेगा . इसके लिए मैं अकेला ही काफी हूँ

मैंने मंच के तख्तो में से एक फट्टा उखाड़ लिया और सूरजभान के सर पर देमारा. सर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. आसपास के लोगो में चीख पुकार मच गयी . खून देखते ही मुझ पर न जाने क्या हुआ मैंने फिर रहम नहीं किया

“मैंने कहा था तेरा गाँव है इस बात की धोंस मत दिखा मुझे , मैंने किसी को तंग तो नहीं किया था न प्रोग्राम देख कर चला जाता पर तेरी गांड में कीड़ा कुलबुला रहा था . पूछ कर तो देखता मेरे बारेमे , ये गुस्ताखी करने से पहले ” मैंने अपनी दोनों हाथो की उंगलिया उसके मुह में डाली और उसके गालों को फाड़ ही देता अगर वो गोली न चलती .

मैंने देखा सामने एक आदमी कुरता-पगड़ी पहने खड़ा था हाथ में बन्दूक लिया .

आदमी- अगली गोली तेरे सीने के पार होगी छोरे ,चौधरी रुडा के बेटे पर हाथ उठाने की हिमाकत की कैसे तूने .

मैं- चौधरी , ये बात अपने इस गधे बेटे से पूछ, अपनी औकात भूल कर इसने शेर का गिरेबान पकड़ा . सजा तो मिलेगी ही इसे.

रुडा- इतना अहंकार नादान तू जानता भी है यहाँ से तू जिन्दा नहीं लौट पायेगा.

रुडा ने बन्दूक मेरी तरफ तान दी .

मैं- चौधरी, इस लोहे के खिलोने से तू शेर का शिकार करने की सोच रहा है हंसी आती है तेरी मुर्खता पर मेरा जोर आजमाने की तमन्ना है तेरी तो तू भी कोशिश कर ले . गलती तेरे बेटे की थी इसने मेरी जाकेट फाड़ी . नुकसान की भरपाई तो करनी पड़ेगी .

चौधरी- मामूली से जाकेट के लिए तूने मेरे बेटे का खून बहाया

मैं- नहीं वो तो मैंने मजे के लिए बहाया . पर निराशा ही हुई तेरा खून ख़तम है चौधरी लेजा इसे जा बक्श दिया तू भी क्या यद् करेगा. खिला पिला इसे और अगर कभी तुझे फिर लगे की ये कुछ कर पायेगा तो मेरा नाम कबीर है , चन्दन पुर के राय साहब का बेटा हु मैं मुझे संदेसा भेज देना

मैंने सूरजभान को साइड में पटका और चौधरी रुडा के पास चल कर गया .

मैं- चौधरी तेरा गाँव है तेरी जनता है . मैं समझता हूँ मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुरा और जाने दे मुझे . तू भी जानता है तेरा बेटा कमजोर है

रुडा- तुझे यहाँ मारा तो तू कहेगा की अपनी गली में कुत्मैंता भी शेर होता है तुझे तेरे गाँव में तेरे घर में ही मारूंगा

मैं- इइश्वर करे वो दिन जल्दी ही आये जब तेरी ये इच्छा पूरी हो.


मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर से बाहर जाने वाले रस्ते पर चल दिया.
Tow woh siyar tha jo darwaza khat khata raha tha lekin woh kamre aaker chup chap baith kyon gaya kia nisha n Kabir ki pehre dari k liye bheja tha use iska matlab saaf h ker koyi or raha h or ilzam nisha per lag raha h baherhal dekhte aage kia hota h
Idher mangu ki baat sunker pahoch bhai sahab naach dekhne waha ek or bawal ho gaya lekin mast dhoya chaudhary k bete ko khoon dekh ker tow bhai sahab k ooper or ziada khoon sawar ho. gaya.ager chaudhri goli na chalata tow kabir use maar ker hi wapas laut ta ek or dushman bana lia
Dekhte h yeh dushmani ab kia gul khilati h
Badhiya shaandaar update bhai
 
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Sanju@

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#27

गली के बीचो बीच एक सियार खड़ा था जो मुझे देखते ही उच्छल कर चबूतरे पर चढ़ गया और मेरे पास आकर बैठ गया . अपने पंजो को बार बार धरती पर रगड़ कर वो कुछ इशारा सा कर रहा था और फिर वो गली में आगे की तरफ चला गया मैंने लाठी का सहारा लिया और उसके पीछे पीछे हो लिया . जल्दी ही मैं एक बार फिर से गाँव के बाहर उस रस्ते पर था जो जंगल की तरफ जाता था . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था . सियार न जाने कहाँ गायब हो गया था . चलते चलते एक बार फिर मैं उस जगह पर था जहाँ से ये सब शुरू हुआ था .



“कबीर ” अंधेरो में से किसी ने मेरा नाम पुकारा और मैंने तुरंत ही इस आवाज को पहचान लिया .

“निशा , कहा हो तुम ” मैंने जवाब दिया

निशा- तुम्हारे पास ही हूँ.

अचानक से ही वो मेरे सामने आ गयी .

निशा- कैसे हो तुम

मैं- बढ़िया तुम्हे देख कर और बढ़िया

निशा मुस्कुराई .

मैं- ऐसा लग रहा है जैसे मुद्दतो बाद मिले है

निशा- मुद्दतो बाद ही तो मिल रहे है .कोशिश तो थी की पन्द्रह दिन बाद ही मुलाकात होती पर देखो एक बार फिर हम यहाँ है .

मैं- हाँ तो ठीक ही हैं न , मुलाकाते होती रहनी चाहिए न .वैसे तुम्हे परेशानी न हो तो मेरे कुवे पर चले . ठण्ड बहुत है वहां आराम रहेगा.

निशा- क्यों नहीं .

कुवे पर आकर मैंने अलाव जलाया और कमरे का दरवाजा बंद कर लिया .

निशा- ऐसे क्या देख रहा है

मैं- क्यों न देखू ऐसे, इस चेहरे से मेरी नजर हटती ही नहीं

निशा- उफ्फ्फ ये बहाने तारीफों के .

मैं- बता नहीं सकता कितनी शिद्दत से तुमसे मिलना चाहता था .

निशा- ये चाह भी न कमाल ही हैं न एक इन्सान को डायन के दर्शनों की इतनी गहरी अभिलाषा और एक डायन के तस्सवुर में इन्सान का अक्स. हे नियति तेरे खेल निराले.

मैं- एक डायन इन्सान की दोस्त नहीं हो सकती क्या



निशा- हो सकती क्या हो गयी है दोस्त, तभी तो अपने अँधेरे तुमसे बाँट रही है .

मैंने देखा की निशा के चेहरे पर वो नूर नहीं था .

मैं- कुछ थकी थकी सी लगती हो

निशा- उजालो में जाने की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है न

मैं- बताओ कुछ अपने बारे में

निशा- क्या बताऊ मैं वो अँधेरा हूँ जिसका कोई उजाला नहीं

मैं- अंधेरो में जला एक दिया ज़माने भर को रौशनी की नयी दिशा दिखा सकता है .

निशा- मेरे अँधेरे इतने गहरे है की रौशनी ने भी उम्मीद छोड़ दी है . जब से तुमसे मिली हूँ बाते करने लगी हूँ

मैं- तुम बाकि लोगो में घुल-मिल नहीं सकती क्या

निशा- ये इंसानी कौम बड़ी मतलब परस्त होती है कबीर. अपने फायदे के लिए तो ये किसी के आगे भी झुक जाते है और काम होने के बाद मैं कौन तो खामखा. तूने देखा नहीं कैसे लोग पागल है पीर-फकीरों के पीछे मैं पूछती हूँ भला किसलिए .

मैं- सहमत हूँ पर तुम चाहो तो लोगो के मन में जो डायन के प्रति जो सोच है वो बदल सकती हो . तुम उन्हें बता सकती हो की डायन वैसी नहीं जो वो सोचते है . डायन वैसी होती है जो मेरे सामने है

निशा- जैसे हर इन्सान एक जैसा नहीं होता वैसे हर डायन भी सामान नहीं होती . हो सकता है की मैं तुम्हारे प्रति नरम हु बाकि दुनिया के लिए क्रूर .

मैं- मैं जिस डायन को जानता हूँ वो कभी क्रूर नहीं हो सकती ये मेरा मन कहता है

निशा- मन बावरा होता है

उसने मेरे काँधे पर सर रखा और मैंने उसके ऊपर कम्बल डाल दिया . अलाव की अलख चिटकती रही . जब आँख खुली तो मैंने खुद को अकेले पाया. भोर होने में थोड़ी ही देर थी मैं वापिस गाँव के लिए चल दिया. घर पहुंचा तो चाची जाग चुकी थी . मैंने बहाना बनाया की टहलने चला गया था . पर उनकी आँखे बता रही थी की वो सहमत नहीं थी मेरी बात से.

“ये किसके ख्याल है जो अब तुम्हे मालूम भी नहीं होता की कोई आया है ” भाभी ने चाय का कप मेरे पास रखते हुए कहा .

मैं- भाभी कब आई आप

भाभी- वो ही तो हमने पूछा की आहट तक भूल गए हो हमारी तुम

मैं- क्या भाभी आप भी

भाभी- हम सोचते है की चंपा के ब्याह के बाद तुम्हारा नम्बर भी लगा ही दे

मैं- शायद हम इस बारे में बात कर चुके है भाभी

भाभी- बाते तो होती ही रहेंगी तुम बताओ कैसी लड़की पसंद आएगी तुम्हे

मैं- सुबह सुबह क्यों मेरी टांग खींच रही है आप

भाभी- कोई तो होगा ख्याल तुम्हारा अब यूँ ही तो नहीं कोई खोया रहता .

मैं- भाभी सुनना चाहती हो तो सुनो मुझे डायन पसंद है .

मेरी बात सुन कर भाभी के हाथो में जो चाय का कप था वो निचे गिर गया . भाभी की आँखों में दहशत देखि मैंने और मुझे समझ आया की गलती हो गयी है

मैं- मैं मजाक कर रहा था भाभी, मुझे भला किसी को पसंद करने की क्या जरूरत है जब आप हो इस काम के लिए. आप ले आना आपकी ही परछाई कोई

मैंने माहौल को हल्का करने की कोशिश की . तभी पिताजी की आवाज आई तो मैं उनके पास चला गया.

पिताजी- कबीर हम काम के सिलसिले में बाहर जा रहे है आने में कुछ वक्त लगेगा पर इसका मतलब ये मत समझना की तुम्हे छूट रहेगी मनमर्जी की समझ रहे हो न

मैंने हाँ में सर हिलाया.

पिताजी- दूसरी बात चंपा को लेकर मलिकपुर जाना वहां का सुनार हमारा पुराना जानकार है वो जो भी पसंद करे वो गहने बनाने का कहना सुनार को . न जाने कब शेखर बाबु के यहाँ से ब्याह का संदेसा आ जाये गहने बनाने में समय तो लगेगा ही .

मैंने फिर से हाँ में सर हिलाया.

पिताजी- सबसे महत्वपूर्ण बात ये हमारा गाँव है इसका हर परिवार हमारा अपना परिवार है . इसकी सुरक्षा हमारा दायित्व है रात को चोकिदारी टूटनी नहीं चाहिए.

मैं- जी वैसा ही होगा.


दोपहर होते होते पिताजी चले गए . भैया-भाभी के साथ थे मैंने मौका सही समझा और चाची को पकड़ लिया.........
बेहतरीन अपडेट हमने तो सोचा था कि कोई कांड होने वाला है लेकिन यहां तो एक सियार कबीर को बुलाने आता है और उसके साथ जाने से निशा से मुलाकात होती है निशा ने ये बात बिल्कुल सही कही है कि इंसान सब से मतलबी होता है जिस से जरूरत हो उसके आगे सिर झुकाता है और मतलब निकलने के बाद तू कौन??? भाभी डायन का नाम सुनकर डर जाती है पिताजी कबीर को चंपा के लिए गहने बनवाने के लिए बोल देते हैं क्या कबीर जा पाएगा या कोई अनहोनी होगी ????
 
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