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#33
मैंने दरवाजा खोला तो देखा की वो सियार दरवाजे पर खड़ा था . मेरे बाजु से होते हुए वो अंदर गया और एक कोने में पड़ी सूखी घास पर जाकर बैठ गया.
“तुझे क्या चाहिए अब . जा जाकर कह दे उस से मैं नहीं मिलूँगा उस से ” मैंने उस से कहा पर उसने मेरी बात जैसे सुनी ही नहीं घास पर सो गया वो .
इसे मेरे पास भेजने का भला क्या मकसद हो सकता था निशा का सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी . सुबह चूँकि मुझे सब्जिया लेकर शहर जाना था तो मंगू समय से आ गया . हमने मंगू की बैलगाड़ी में सब्जिया लादी और शहर के लिए निकल गए.
मंगू- मुझे सब मालूम हो गया है भैया ने बता दिया
मैं- मैं क्या करू फिर
मंगू- जो हुआ गलत हुआ न
मैं- थोड़े दिन में सब सही हो जायेगा.
मंगू- पर.
मैं- पर वर कुछ नहीं यार. कोई और बात कर
मंगू- मलिकपुर में नाचने वालो का मजमा लगा है सुना है की उनके जैसा कोई नहीं नाचने वाला बिजली की रफ़्तार से प्रोग्राम होता है उनका पर क्या ही फायदा घर वाले जाने थोड़ी न देंगे कविता की मौत के बाद शाम होते ही घरो के दरवाजे बंद हो जाते है न जाने कब ये मुसीबत दूर होगी.
मैं- आज सब्जियों के ठीक दाम मिल गए तो बढ़िया रहे, दिवाली आने वाली है पैसे रहेंगे तो मजा होगा.
मंगू- क्या ही फायदा , तेरे बिना क्या होली-क्या दीवाली
मैं- ऐसा क्यों कहता है इस बार भी हम साथ ही सब कुछ करेंगे पहले के जैसे
बाते करते हुए हम शहर की सब्जी मंडी पहुँच गए . सब्जियों को बेचा . थोडा नाश्ता पानी किया . एक जानने वाले आढती कए यहाँ बैलो को छोड़ कर हम दोनों शहर में घुमने चले गए. दोपहर बाद हम वापिस चल दिए. चूँकि आज दाम बढ़िया मिले थे तो मैंने मंगू को थोड़े पैसे फालतू दिए . वापिस आकार मैं नहाने धोने लग गया मंगू घर चला गया . अकेले आदमी को खाली समय काटना भी किसी सजा जैसा ही होता है . करे तो क्या करे देखे तो क्या देखे . तभी मुझे मंगू की मलिकपुर वाली बात याद आई तो मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर का रास्ता पकड़ लिया.
वहां पहुंचा तो अँधेरा खूब हो चूका था . मैंने मालूम किया की प्रोग्राम वालो का तम्बू किधर लगा है और उधर पहुँच गया. ठण्ड बहुत थी तो मैंने चने और ताड़ी का गिलास ले लिया और पंडाल में बैठ गया . एक दो किस्से कहानियो के बाद जब लडकियों के नाचने का नम्बर आया तो मैंने महसूस किया की मंगू को गलत सुचना थी ये तो वो ही थी जिनका प्रोग्राम हमने थोड़े दिन पहले देखा था .
कुछ दारू का सुरूर , कुछ हुस्न के जलवे उनमे से एक लड़की ने मुझे पहचान लिया और ऊपर मंच पर खींच लिया मैं भी उनके साथ नाचने लगा. जेब में पैसे तो थे ही मैंने उन पर लुटाना शुरू कर दिया. मजा आ ही रहा था की तभी किसी ने मेरी जैकेट का कालर पकड़ कर खींच लिया , जिस से मेरी जैकेट फट गयी .
“क्यों बे , क्या ग़दर मचा रखा है तूने मंच पर ” जिस लड़के ने मेरी जैकेट खींची थी उसने मुझे धक्का देते हुए कहा.
मैं- तुझे क्या तकलीफ है , तू भी नाच ले किसके रोका है तुझे और ये जाकेट फट गयी इसकी भरपाई कौन करेगा.
लड़का- भरपाई तो तेरी गांड तोड़ कर कर दूंगा साले मेरे गाँव में आकार नेता बन रहा है तू
मैंने गौर से उस लड़के को देखा और बोला- गाँव तेरा है तो मैं क्या करू . तम्बू के बाहर तख्ती लगा देता की तेरे गाँव वाले ही प्रोग्राम देखेंगे .चल ठीक है तेरी बात मानी पर जो जाकेट फाड़ी तूने उसका क्या नयी जाकेट दे या फिर पैसे दे .
लड़का- दाद देनी होगी तेरी हिम्मत की सूरजभान से इस तरह अकड़ के बात कर रहा है तू. क्या तुझे डर नहीं मैं तेरा क्या हाल कर सकता हूँ
मैं- अबे चमन चूतिये. मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता की तू किस खेत की मूली है . मुझे फर्क पड़ता है तेरी घटिया हरकत से जो तूने की है . जाकेट के पैसे दे और निकल यहाँ से मेरा दिमाग फिर गया न तो मारूंगा तीन गिनूंगा एक समझा चोमू
“बहनचोद तेरी ये मजाल तू मुझे गाली देगा ” सूरजभान गुस्से में भर गया और उसने मुझे जोर का धक्का दिया. मैं मंच से निचे जाकर गिरा. चूँकि मेरे कंधे में पहले ही चोट लगी हुई थी दर्द हुआ तो मेरा सब्र भी जवाब दे गया . मैं वापिस मंच पर गया .
“गलती कर दी तूने भोसड़ी के ” मैंने सूरजभान को धर लिया और उसकी मरम्मत करनी शुरू कर दी. इसबार मैंने उसे उठा कर जनता के बीच फेका तो मजमा देखने वालो में अफरा तरफी मच गयी. उसके दो चार चमचे बीच में आये पर मैंने अपना काम चालू रखा . मैंने सूरजभान को उठा कर मजमे वालो की जीप के बोनट पर पटक दिया.
मैं- जाकेट के पैसे तो तेरी खाल उतार कर वसूल कर लूँगा चूतिये.
तभी उसने एक लोहे की लाइट उठा कर मेरे सर में मारी और मुझे निचे गिरा दिया जीप से
सूरजभान- अच्छा हुआ जो आज तेरा सामना मेरे साथ हुआ इतनी मार मारूंगा तुझे की हड्डिया तक कापेंगी मेरे नाम से तेरी
मैं- आजा फिर देखते है किसकी बाजुओ में कितना जोर है
मैंने पास में रखी कुर्सी उठा कर उसके पैरो पर मारी उसके गिरते ही मैंने उसके सीने पर लात रख दी . उसने फुर्ती से मुझे धकिया दिया. पीछे से उसके एक चमचे ने पीठ में लात मारी तो मैंने उसकी बाहं मोड़ दी और उसे झका दिया.
मैं- कुत्ते कभी शेर का शिकार नहीं करते आज तुम्हारा भी वहम दूर हो जायेगा.
सूरजभान- कोई बीच में नहीं आयेगा . इसके लिए मैं अकेला ही काफी हूँ
मैंने मंच के तख्तो में से एक फट्टा उखाड़ लिया और सूरजभान के सर पर देमारा. सर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. आसपास के लोगो में चीख पुकार मच गयी . खून देखते ही मुझ पर न जाने क्या हुआ मैंने फिर रहम नहीं किया
“मैंने कहा था तेरा गाँव है इस बात की धोंस मत दिखा मुझे , मैंने किसी को तंग तो नहीं किया था न प्रोग्राम देख कर चला जाता पर तेरी गांड में कीड़ा कुलबुला रहा था . पूछ कर तो देखता मेरे बारेमे , ये गुस्ताखी करने से पहले ” मैंने अपनी दोनों हाथो की उंगलिया उसके मुह में डाली और उसके गालों को फाड़ ही देता अगर वो गोली न चलती .
मैंने देखा सामने एक आदमी कुरता-पगड़ी पहने खड़ा था हाथ में बन्दूक लिया .
आदमी- अगली गोली तेरे सीने के पार होगी छोरे ,चौधरी रुडा के बेटे पर हाथ उठाने की हिमाकत की कैसे तूने .
मैं- चौधरी , ये बात अपने इस गधे बेटे से पूछ, अपनी औकात भूल कर इसने शेर का गिरेबान पकड़ा . सजा तो मिलेगी ही इसे.
रुडा- इतना अहंकार नादान तू जानता भी है यहाँ से तू जिन्दा नहीं लौट पायेगा.
रुडा ने बन्दूक मेरी तरफ तान दी .
मैं- चौधरी, इस लोहे के खिलोने से तू शेर का शिकार करने की सोच रहा है हंसी आती है तेरी मुर्खता पर मेरा जोर आजमाने की तमन्ना है तेरी तो तू भी कोशिश कर ले . गलती तेरे बेटे की थी इसने मेरी जाकेट फाड़ी . नुकसान की भरपाई तो करनी पड़ेगी .
चौधरी- मामूली से जाकेट के लिए तूने मेरे बेटे का खून बहाया
मैं- नहीं वो तो मैंने मजे के लिए बहाया . पर निराशा ही हुई तेरा खून ख़तम है चौधरी लेजा इसे जा बक्श दिया तू भी क्या यद् करेगा. खिला पिला इसे और अगर कभी तुझे फिर लगे की ये कुछ कर पायेगा तो मेरा नाम कबीर है , राज पूरा के राय साहब का बेटा हु मैं मुझे संदेसा भेज देना
मैंने सूरजभान को साइड में पटका और चौधरी रुडा के पास चल कर गया .
मैं- चौधरी तेरा गाँव है तेरी जनता है . मैं समझता हूँ मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुरा और जाने दे मुझे . तू भी जानता है तेरा बेटा कमजोर है
रुडा- तुझे यहाँ मारा तो तू कहेगा की अपनी गली में कुत्मैंता भी शेर होता है तुझे तेरे गाँव में तेरे घर में ही मारूंगा
मैं- इइश्वर करे वो दिन जल्दी ही आये जब तेरी ये इच्छा पूरी हो.
मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर से बाहर जाने वाले रस्ते पर चल दिया.
मैंने दरवाजा खोला तो देखा की वो सियार दरवाजे पर खड़ा था . मेरे बाजु से होते हुए वो अंदर गया और एक कोने में पड़ी सूखी घास पर जाकर बैठ गया.
“तुझे क्या चाहिए अब . जा जाकर कह दे उस से मैं नहीं मिलूँगा उस से ” मैंने उस से कहा पर उसने मेरी बात जैसे सुनी ही नहीं घास पर सो गया वो .
इसे मेरे पास भेजने का भला क्या मकसद हो सकता था निशा का सोचते सोचते मेरी आँख लग गयी . सुबह चूँकि मुझे सब्जिया लेकर शहर जाना था तो मंगू समय से आ गया . हमने मंगू की बैलगाड़ी में सब्जिया लादी और शहर के लिए निकल गए.
मंगू- मुझे सब मालूम हो गया है भैया ने बता दिया
मैं- मैं क्या करू फिर
मंगू- जो हुआ गलत हुआ न
मैं- थोड़े दिन में सब सही हो जायेगा.
मंगू- पर.
मैं- पर वर कुछ नहीं यार. कोई और बात कर
मंगू- मलिकपुर में नाचने वालो का मजमा लगा है सुना है की उनके जैसा कोई नहीं नाचने वाला बिजली की रफ़्तार से प्रोग्राम होता है उनका पर क्या ही फायदा घर वाले जाने थोड़ी न देंगे कविता की मौत के बाद शाम होते ही घरो के दरवाजे बंद हो जाते है न जाने कब ये मुसीबत दूर होगी.
मैं- आज सब्जियों के ठीक दाम मिल गए तो बढ़िया रहे, दिवाली आने वाली है पैसे रहेंगे तो मजा होगा.
मंगू- क्या ही फायदा , तेरे बिना क्या होली-क्या दीवाली
मैं- ऐसा क्यों कहता है इस बार भी हम साथ ही सब कुछ करेंगे पहले के जैसे
बाते करते हुए हम शहर की सब्जी मंडी पहुँच गए . सब्जियों को बेचा . थोडा नाश्ता पानी किया . एक जानने वाले आढती कए यहाँ बैलो को छोड़ कर हम दोनों शहर में घुमने चले गए. दोपहर बाद हम वापिस चल दिए. चूँकि आज दाम बढ़िया मिले थे तो मैंने मंगू को थोड़े पैसे फालतू दिए . वापिस आकार मैं नहाने धोने लग गया मंगू घर चला गया . अकेले आदमी को खाली समय काटना भी किसी सजा जैसा ही होता है . करे तो क्या करे देखे तो क्या देखे . तभी मुझे मंगू की मलिकपुर वाली बात याद आई तो मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर का रास्ता पकड़ लिया.
वहां पहुंचा तो अँधेरा खूब हो चूका था . मैंने मालूम किया की प्रोग्राम वालो का तम्बू किधर लगा है और उधर पहुँच गया. ठण्ड बहुत थी तो मैंने चने और ताड़ी का गिलास ले लिया और पंडाल में बैठ गया . एक दो किस्से कहानियो के बाद जब लडकियों के नाचने का नम्बर आया तो मैंने महसूस किया की मंगू को गलत सुचना थी ये तो वो ही थी जिनका प्रोग्राम हमने थोड़े दिन पहले देखा था .
कुछ दारू का सुरूर , कुछ हुस्न के जलवे उनमे से एक लड़की ने मुझे पहचान लिया और ऊपर मंच पर खींच लिया मैं भी उनके साथ नाचने लगा. जेब में पैसे तो थे ही मैंने उन पर लुटाना शुरू कर दिया. मजा आ ही रहा था की तभी किसी ने मेरी जैकेट का कालर पकड़ कर खींच लिया , जिस से मेरी जैकेट फट गयी .
“क्यों बे , क्या ग़दर मचा रखा है तूने मंच पर ” जिस लड़के ने मेरी जैकेट खींची थी उसने मुझे धक्का देते हुए कहा.
मैं- तुझे क्या तकलीफ है , तू भी नाच ले किसके रोका है तुझे और ये जाकेट फट गयी इसकी भरपाई कौन करेगा.
लड़का- भरपाई तो तेरी गांड तोड़ कर कर दूंगा साले मेरे गाँव में आकार नेता बन रहा है तू
मैंने गौर से उस लड़के को देखा और बोला- गाँव तेरा है तो मैं क्या करू . तम्बू के बाहर तख्ती लगा देता की तेरे गाँव वाले ही प्रोग्राम देखेंगे .चल ठीक है तेरी बात मानी पर जो जाकेट फाड़ी तूने उसका क्या नयी जाकेट दे या फिर पैसे दे .
लड़का- दाद देनी होगी तेरी हिम्मत की सूरजभान से इस तरह अकड़ के बात कर रहा है तू. क्या तुझे डर नहीं मैं तेरा क्या हाल कर सकता हूँ
मैं- अबे चमन चूतिये. मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता की तू किस खेत की मूली है . मुझे फर्क पड़ता है तेरी घटिया हरकत से जो तूने की है . जाकेट के पैसे दे और निकल यहाँ से मेरा दिमाग फिर गया न तो मारूंगा तीन गिनूंगा एक समझा चोमू
“बहनचोद तेरी ये मजाल तू मुझे गाली देगा ” सूरजभान गुस्से में भर गया और उसने मुझे जोर का धक्का दिया. मैं मंच से निचे जाकर गिरा. चूँकि मेरे कंधे में पहले ही चोट लगी हुई थी दर्द हुआ तो मेरा सब्र भी जवाब दे गया . मैं वापिस मंच पर गया .
“गलती कर दी तूने भोसड़ी के ” मैंने सूरजभान को धर लिया और उसकी मरम्मत करनी शुरू कर दी. इसबार मैंने उसे उठा कर जनता के बीच फेका तो मजमा देखने वालो में अफरा तरफी मच गयी. उसके दो चार चमचे बीच में आये पर मैंने अपना काम चालू रखा . मैंने सूरजभान को उठा कर मजमे वालो की जीप के बोनट पर पटक दिया.
मैं- जाकेट के पैसे तो तेरी खाल उतार कर वसूल कर लूँगा चूतिये.
तभी उसने एक लोहे की लाइट उठा कर मेरे सर में मारी और मुझे निचे गिरा दिया जीप से
सूरजभान- अच्छा हुआ जो आज तेरा सामना मेरे साथ हुआ इतनी मार मारूंगा तुझे की हड्डिया तक कापेंगी मेरे नाम से तेरी
मैं- आजा फिर देखते है किसकी बाजुओ में कितना जोर है
मैंने पास में रखी कुर्सी उठा कर उसके पैरो पर मारी उसके गिरते ही मैंने उसके सीने पर लात रख दी . उसने फुर्ती से मुझे धकिया दिया. पीछे से उसके एक चमचे ने पीठ में लात मारी तो मैंने उसकी बाहं मोड़ दी और उसे झका दिया.
मैं- कुत्ते कभी शेर का शिकार नहीं करते आज तुम्हारा भी वहम दूर हो जायेगा.
सूरजभान- कोई बीच में नहीं आयेगा . इसके लिए मैं अकेला ही काफी हूँ
मैंने मंच के तख्तो में से एक फट्टा उखाड़ लिया और सूरजभान के सर पर देमारा. सर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. आसपास के लोगो में चीख पुकार मच गयी . खून देखते ही मुझ पर न जाने क्या हुआ मैंने फिर रहम नहीं किया
“मैंने कहा था तेरा गाँव है इस बात की धोंस मत दिखा मुझे , मैंने किसी को तंग तो नहीं किया था न प्रोग्राम देख कर चला जाता पर तेरी गांड में कीड़ा कुलबुला रहा था . पूछ कर तो देखता मेरे बारेमे , ये गुस्ताखी करने से पहले ” मैंने अपनी दोनों हाथो की उंगलिया उसके मुह में डाली और उसके गालों को फाड़ ही देता अगर वो गोली न चलती .
मैंने देखा सामने एक आदमी कुरता-पगड़ी पहने खड़ा था हाथ में बन्दूक लिया .
आदमी- अगली गोली तेरे सीने के पार होगी छोरे ,चौधरी रुडा के बेटे पर हाथ उठाने की हिमाकत की कैसे तूने .
मैं- चौधरी , ये बात अपने इस गधे बेटे से पूछ, अपनी औकात भूल कर इसने शेर का गिरेबान पकड़ा . सजा तो मिलेगी ही इसे.
रुडा- इतना अहंकार नादान तू जानता भी है यहाँ से तू जिन्दा नहीं लौट पायेगा.
रुडा ने बन्दूक मेरी तरफ तान दी .
मैं- चौधरी, इस लोहे के खिलोने से तू शेर का शिकार करने की सोच रहा है हंसी आती है तेरी मुर्खता पर मेरा जोर आजमाने की तमन्ना है तेरी तो तू भी कोशिश कर ले . गलती तेरे बेटे की थी इसने मेरी जाकेट फाड़ी . नुकसान की भरपाई तो करनी पड़ेगी .
चौधरी- मामूली से जाकेट के लिए तूने मेरे बेटे का खून बहाया
मैं- नहीं वो तो मैंने मजे के लिए बहाया . पर निराशा ही हुई तेरा खून ख़तम है चौधरी लेजा इसे जा बक्श दिया तू भी क्या यद् करेगा. खिला पिला इसे और अगर कभी तुझे फिर लगे की ये कुछ कर पायेगा तो मेरा नाम कबीर है , राज पूरा के राय साहब का बेटा हु मैं मुझे संदेसा भेज देना
मैंने सूरजभान को साइड में पटका और चौधरी रुडा के पास चल कर गया .
मैं- चौधरी तेरा गाँव है तेरी जनता है . मैं समझता हूँ मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुरा और जाने दे मुझे . तू भी जानता है तेरा बेटा कमजोर है
रुडा- तुझे यहाँ मारा तो तू कहेगा की अपनी गली में कुत्मैंता भी शेर होता है तुझे तेरे गाँव में तेरे घर में ही मारूंगा
मैं- इइश्वर करे वो दिन जल्दी ही आये जब तेरी ये इच्छा पूरी हो.
मैंने साइकिल उठाई और मलिकपुर से बाहर जाने वाले रस्ते पर चल दिया.
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