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दिलदारी ना हो जाए कविता सेKavita ka dil aa gaya hero ke hathiyar pe
Awesome update
दिलदारी ना हो जाए कविता सेKavita ka dil aa gaya hero ke hathiyar pe
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डायन का खौफ ही ऐसा है कि अच्छे अच्छो की हालत पतली हो जाए चम्पा भी ऐसी ही है, एक डायन के पास क्या ही होगा बताने के लिएGood one Bhai. Chachi ne to din dahaare mana kr diya bechara kabir mangu ke ghar gya lekin mili Champa jo bhari baithi hai lekin kabir lene ko taiyar nahi. चंपा- नहीं , क्योंकि अगर तू ठरकी होता तो अब तक चढ़ गया होता मुझ पर . वैसे सच बताना तेरा दिल नहीं करता क्या ये सब करने को .kahin champa ye na smjh le ki kabir ko ldkiyo me interest nahi hai. Wese dayan Wale zikr pe champa ka reaction mtlb dhoop deepak jalana or kehna ke naam nahi lena ghar ajati hai Ab dekhna ye hai ki champa ke Ghar ati hai? Ya nahi. Idhar kabir chachi ke sath khet wale ghar ja rha hai ab dekhna ye hai ki Palangtod hota hai Ya idhar champa Ke ghar nisha ji ati hai. Ek baat or nisha ji bhi abhi khul kr samne nahi ayi aisa Kya hua jo nisha ji ne dayan bnne ka rashta ikhtiyar kiyaa? Kabir ka bhabhi ke samne dayan ka zikr or nisha ji ka hazir hona ye ittefaq to nhi Ho skta mtlb champa ka shaq jayaz hai..?
Update to bahut Shandar Laga bhai#30
ये जो कुछ भी हुआ था मुझे उस सच के थोडा और करीब ले गया जिसे दुनिया का हर इन्सान महसूस करना चाहता था . चाची की लेकर मैंने जान लिया था की इस सुख का मजा अप्रतिम है , शायद इसी लिए कविता अपनी खावाहिशो पर काबू नहीं रख पायी थी . खाना खाने के बाद मैं और चाची खेतो के लिए चल दिए.हालाँकि मेरे इस निर्णय से भाभी बिलकुल खुश नहीं थी पर इन हालातो में जब कोई भी मजदुर खेतो की रखवाली के लिए तैयार नहीं था , ये मेरी जिम्मेदारी बनती थी . ये धरती कहने को ही माँ नहीं थी ये माँ का स्वरूप ही थी . किसान के लिए उसकी धरती से बढ़कर भला कौन हो . जो ये समझ ले उस किसान के वारे न्यारे करदे ये धरा.
लालटेन उठाये हम दोनों पैदल ही चले जा रहे थे . धुंध की वजह से थोड़ी परेशानी हो रही थी पर अब चले थे तो पहुंचना था ही . चाची को थोड़ी घबराहट सी हो रही थी उसे डर था की कहीं हम पर हमला न हो जाये और ये डर लाजमी भी थी . पर हम कोई आधे घंटे में कुवे पर पहुँच ही गए. चाची ने कमरा खोला . बिजली गुल थी तो लालटेन की रौशनी का ही सहारा था .
मैं- चाची तुम यही रुको मैं एक चक्कर लगा कर आता हूँ
मैंने खेतो का एक लम्बा चक्कर लगाया सुनिश्चित किया की अभी तो कोई जानवर खेतो में नहीं है . थोडा बहुत कोई जानवर कुछ खा ले तो कोई दीक्क्त नहीं थी पर कई बार जानवर खेतो में ही लड़ पड़ते थे जिस से नुकसान होता था . पर सब कुछ शांत था तो मैं वापिस से कमरे पर आ गया .
चाची ने बिस्तर लगा लिया था. मैंने दरवाजा बंद किया और कपडे उतार कर चाची के बिस्तर में घुस गया .
चाची- कितना ठंडा है तू
मैं-अब नहीं रहूँगा . तुम्हारे आगोश में गरम हो जाऊंगा.
मैंने चाची के ब्लाउज के बटन खोल दिए और उसकी नर्म चुचियो को मसलने लगा.
चाची- ये सब करने के लिए मुझे यहा लाया है न तू
मैं- तुम खुद आई हो मैंने तो कहा था की अकेले ही जाना चाहता हूँ
चाची ने मेरी जांघ पर अपनी जांघ चढ़ाई और बोली- अकेले रहता तो फिर तुझे गर्म कौन करता
चाची ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रखे और मुझे चूमने लगी . मैं चाची की नंगी पीठ को सहलाने लगा. .चूमते चूमते चाची का हाथ मेरे लंड पर पहुँच गया था चाची ने मेरे पायजामे को उतार कर फेंक दिया और मेरे लंड से खेलने लगी. कविता के स्पर्श से वो पहले ही उत्तेजित था ऊपर से अब चाची की शरारतो ने उसे और गरम कर दिया था .
“चाची , मुह में लो न इसे ” मेरे होंठो से अपने आप निकल गया . कविता के होंठो की तपिश अब तक मेरे जिस्म को सुलगा रही थी .
चाची थोडा सा निचे को सरकी और अपने चेहरे को मेरे लंड पर झुका दिया. चाची की गीली लिजलिजी जीभ की रगड़ जैसे ही मेरे सुपाडे पर पड़ी आँखे मस्ती के मारे बंद हो गयी .
“आह चाची ” मैं मस्त हो गया .
चाची की पोजिशन इस प्रकार की थी की वो बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई मेरा लंड चूस रही थी मैंने चाची के चूतडो को सहलाना शुरू किया गद्देदार गांड का मुलायम अहसास क्या ही कहना . मेरी उंगलिया चाची की गांड के छेद को छूने लगी. जब जब मेरी उंगलिया वहां छूती चाची के बदन में कम्पन होता. चाची अब मेरी गोलियों को अपने दांतों से काट रही थी . बदन में ऐसी मस्ती कभी महसूस नहीं हुई थी .
बेशक मेरे कंधे पर चोट लगी थी पर उस पल किसे परवाह थी . मैंने चाची की भरी जांघो को उठाया और उसे अपनी तरफ खींच लिया चाची की भारी गांड मेरे चेहरे पर आ टिकी.
“पुच ” मैंने चाची की चूत का एक चुम्बन लिया और चाची समझ गयी की आगे क्या होने वाला था . उसने चुतड ऊपर किये और अपनी चूत को मेरे होंठो पर लगा दिया. मुख मैथुन का असली मजा क्या होता है मैंने उस रात में जाना था जब औरत और मर्द एक साथ एक दुसरे के अंगो को चुमते है चूसते है तो बिस्तर पर जो समां बंधता है उसके बताने के लिए शब्द होते ही नहीं .
जब उसकी गांड हिलती तो मेरी जीभ गांड के छेद से टकराती जब जब ऐसा होता चाची अपने दांतों से मेरे लंड को काटती . और फिर एक लम्हा ऐसा भी आया जब मैने उसके चूतडो को मजबूती से थामे हुए कवर गांड के छेद पर ही अपनी जीभ रगडनी शुरू कर दी. सेक्स का ऐसा अद्भुद मजा मैं तो अनजान ही था इस से. चंपा सही ही कहती थी की कबीर एक बार तू इस रसको चख कर तो देख . और उस पल मेरे मन में पहली बार ये ख्याल आया की चंपा को इस सुख का इतना ज्ञान कैसे , क्या चाची के साथ ये सब करके या फिर वो भी लंड खा चुकी थी , अगर ऐसा था तो किसका . मैंने ये पता लगाने का निर्णय किया.
तभी चाची ने मेरे लंड को मुह से निकाला और आगे को सरक गयी. चाची ने थूक से सने लंड को अपनी चूत पर लगाया और उस पर ऊपर निचे होने लगी.
“आह कबीर आःह ” चाची की सिस्कारिया लगतार कमरे में गूंजने लगी. पूरा लंड अन्दर लेने के बाद जब वो अपने कुल्हे हिला हिला कर जो मजा दे रही थी मुझे लगा की जल्दी ही पिघल जाऊंगा मैं . जोश जोश में मैं बिलकुल भूल गया था की मेरी जांघ में ताजा जख्म है जिसका दर्द भी मीठा लग रहा था मुझे.
जी भर कर चुदाई का मजा लेने के बाद हम दोनों लगभग साथ साथ ही झड़ गए थे . गर्म वीर्य की बोछारो ने चाची की चूत को भिगो कर रख दिया. जैसे ही हमारा स्खलन हुआ चाची उठ कर बाहर भागी . इसको क्या हुआ सोचते हुए मैं उसके पीछे गया तो देखा की वो मूत रही थी .
“सुर्र्रर्र्र ” चाची की चूत से पेशाब की धार बह रही थी . फिर चाची ने पानी से अपने बदन को साफ़ किया और बोली- जब तेरा निकलने को हो तो मुझे बता दिया कर , अन्दर मत छोड़ना आगे से .
मैं- ठीक है .
एक तो मेरी हालत नासाज थी ऊपर से चाची जैसी गर्म माल को रगड़ने के बाद थकान होनी थी . मैंने चाची को बाँहों में लिया सो गए. पर बहन की लोडी तक़दीर ने उस रात में कुछ ऐसा लिख दिया था की क्या ही कहूँ. रात को न जाने क्या समय रहा होगा मूत की त्रीव इच्छा की वजह से आँख खुल गयी . मैं बाहर मूतने के लिए आया तो देखा की कुत्ते जोर जोर से रो रहे थे. ऐसा रुदन मैंने कभी नहीं देखा था .
“इन मादरचोदो को क्या हुआ है ” मैंने अपने आप से कहा और उनको भागने के लिए लट्ठ उठा कर उस दिशा में चल दिया जिधर से उनकी आवाजे आ रही थी . जितना मैं चलता आवाजे और दूर हो जाती .पीछा करते करते मैं ठीक उसी जगह पर आन पहुंचा था जहाँ पर उस रात हरिया को मैंने देखा था .
मैंने लालटेन की लौ और ऊंची की ताकि धुंध में ठीक से देख सकू और जब मेरी आँखे कुछ देखने लायक हुई तो उलटी ही आ गयी मुझे. सड़क के बीचो बीच कविता भाभी पड़ी थी उसका पेट खुला हुआ था आंते बाहर को बिखरी हुई थी . वो सिसक रही थी दर्द में और जो सक्श उसके ऊपर झुका हुआ था उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था और जब हमारी नजरे मिली .................
मैंने पहले ही कहा था कि ये अपडेट कहानी को नयी दिशा देगा. कुछ सवाल उठेंगे पर एक सवाल ऐसा भी होगा जिस पर गौर करना बेहद जरूरी होगाUpdate to bahut Shandar Laga bhai
per Kavita ka yah Roop dekhne ki ummid bilkul hi nahin thi ..
Jab aap kah rahe the ki kavita kahani ki Disha Badal Degi
to Ek Bar yah Laga tha ki ho sakta hai ki... Kunwar ke land per Kisi Kali Shakti ka prakop pada Ho
Jis vajah Se usmein Sujan abhi bhi barkrar hai
aur yah Baat Kavita samajh gai hai lekin aapane Jis tarike se कविता को लास्ट सीन में दिखाया है वह हृदय विदारक है बाकी तो अब अगले अपडेट में ही सही से मालूम हो पाएगा
अगले अपडेट की बहुत बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी
कविता की ये हालत देख कर कबीर आगे क्या करेगा देखना दिलचस्प रहेगाग़ज़ब की चाची की ग़ज़ब की ताबड़ तोड़ चुदाई हुई और उधर दोपहर को चुदने वाली कविता को किस ने टपका दिया निशा डायन जी तो नहीं लगती
शायद अब की बार कबीर उसे पहचान गया है
Abe ye kya hua ye to pura pasa hi palat gaya kavita bhabhi ko koi maar diya kon tha vo chaiye dekhte hai agle update me jiski najar mili kabir se kon tha vo waiting for next#30
ये जो कुछ भी हुआ था मुझे उस सच के थोडा और करीब ले गया जिसे दुनिया का हर इन्सान महसूस करना चाहता था . चाची की लेकर मैंने जान लिया था की इस सुख का मजा अप्रतिम है , शायद इसी लिए कविता अपनी खावाहिशो पर काबू नहीं रख पायी थी . खाना खाने के बाद मैं और चाची खेतो के लिए चल दिए.हालाँकि मेरे इस निर्णय से भाभी बिलकुल खुश नहीं थी पर इन हालातो में जब कोई भी मजदुर खेतो की रखवाली के लिए तैयार नहीं था , ये मेरी जिम्मेदारी बनती थी . ये धरती कहने को ही माँ नहीं थी ये माँ का स्वरूप ही थी . किसान के लिए उसकी धरती से बढ़कर भला कौन हो . जो ये समझ ले उस किसान के वारे न्यारे करदे ये धरा.
लालटेन उठाये हम दोनों पैदल ही चले जा रहे थे . धुंध की वजह से थोड़ी परेशानी हो रही थी पर अब चले थे तो पहुंचना था ही . चाची को थोड़ी घबराहट सी हो रही थी उसे डर था की कहीं हम पर हमला न हो जाये और ये डर लाजमी भी थी . पर हम कोई आधे घंटे में कुवे पर पहुँच ही गए. चाची ने कमरा खोला . बिजली गुल थी तो लालटेन की रौशनी का ही सहारा था .
मैं- चाची तुम यही रुको मैं एक चक्कर लगा कर आता हूँ
मैंने खेतो का एक लम्बा चक्कर लगाया सुनिश्चित किया की अभी तो कोई जानवर खेतो में नहीं है . थोडा बहुत कोई जानवर कुछ खा ले तो कोई दीक्क्त नहीं थी पर कई बार जानवर खेतो में ही लड़ पड़ते थे जिस से नुकसान होता था . पर सब कुछ शांत था तो मैं वापिस से कमरे पर आ गया .
चाची ने बिस्तर लगा लिया था. मैंने दरवाजा बंद किया और कपडे उतार कर चाची के बिस्तर में घुस गया .
चाची- कितना ठंडा है तू
मैं-अब नहीं रहूँगा . तुम्हारे आगोश में गरम हो जाऊंगा.
मैंने चाची के ब्लाउज के बटन खोल दिए और उसकी नर्म चुचियो को मसलने लगा.
चाची- ये सब करने के लिए मुझे यहा लाया है न तू
मैं- तुम खुद आई हो मैंने तो कहा था की अकेले ही जाना चाहता हूँ
चाची ने मेरी जांघ पर अपनी जांघ चढ़ाई और बोली- अकेले रहता तो फिर तुझे गर्म कौन करता
चाची ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रखे और मुझे चूमने लगी . मैं चाची की नंगी पीठ को सहलाने लगा. .चूमते चूमते चाची का हाथ मेरे लंड पर पहुँच गया था चाची ने मेरे पायजामे को उतार कर फेंक दिया और मेरे लंड से खेलने लगी. कविता के स्पर्श से वो पहले ही उत्तेजित था ऊपर से अब चाची की शरारतो ने उसे और गरम कर दिया था .
“चाची , मुह में लो न इसे ” मेरे होंठो से अपने आप निकल गया . कविता के होंठो की तपिश अब तक मेरे जिस्म को सुलगा रही थी .
चाची थोडा सा निचे को सरकी और अपने चेहरे को मेरे लंड पर झुका दिया. चाची की गीली लिजलिजी जीभ की रगड़ जैसे ही मेरे सुपाडे पर पड़ी आँखे मस्ती के मारे बंद हो गयी .
“आह चाची ” मैं मस्त हो गया .
चाची की पोजिशन इस प्रकार की थी की वो बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई मेरा लंड चूस रही थी मैंने चाची के चूतडो को सहलाना शुरू किया गद्देदार गांड का मुलायम अहसास क्या ही कहना . मेरी उंगलिया चाची की गांड के छेद को छूने लगी. जब जब मेरी उंगलिया वहां छूती चाची के बदन में कम्पन होता. चाची अब मेरी गोलियों को अपने दांतों से काट रही थी . बदन में ऐसी मस्ती कभी महसूस नहीं हुई थी .
बेशक मेरे कंधे पर चोट लगी थी पर उस पल किसे परवाह थी . मैंने चाची की भरी जांघो को उठाया और उसे अपनी तरफ खींच लिया चाची की भारी गांड मेरे चेहरे पर आ टिकी.
“पुच ” मैंने चाची की चूत का एक चुम्बन लिया और चाची समझ गयी की आगे क्या होने वाला था . उसने चुतड ऊपर किये और अपनी चूत को मेरे होंठो पर लगा दिया. मुख मैथुन का असली मजा क्या होता है मैंने उस रात में जाना था जब औरत और मर्द एक साथ एक दुसरे के अंगो को चुमते है चूसते है तो बिस्तर पर जो समां बंधता है उसके बताने के लिए शब्द होते ही नहीं .
जब उसकी गांड हिलती तो मेरी जीभ गांड के छेद से टकराती जब जब ऐसा होता चाची अपने दांतों से मेरे लंड को काटती . और फिर एक लम्हा ऐसा भी आया जब मैने उसके चूतडो को मजबूती से थामे हुए कवर गांड के छेद पर ही अपनी जीभ रगडनी शुरू कर दी. सेक्स का ऐसा अद्भुद मजा मैं तो अनजान ही था इस से. चंपा सही ही कहती थी की कबीर एक बार तू इस रसको चख कर तो देख . और उस पल मेरे मन में पहली बार ये ख्याल आया की चंपा को इस सुख का इतना ज्ञान कैसे , क्या चाची के साथ ये सब करके या फिर वो भी लंड खा चुकी थी , अगर ऐसा था तो किसका . मैंने ये पता लगाने का निर्णय किया.
तभी चाची ने मेरे लंड को मुह से निकाला और आगे को सरक गयी. चाची ने थूक से सने लंड को अपनी चूत पर लगाया और उस पर ऊपर निचे होने लगी.
“आह कबीर आःह ” चाची की सिस्कारिया लगतार कमरे में गूंजने लगी. पूरा लंड अन्दर लेने के बाद जब वो अपने कुल्हे हिला हिला कर जो मजा दे रही थी मुझे लगा की जल्दी ही पिघल जाऊंगा मैं . जोश जोश में मैं बिलकुल भूल गया था की मेरी जांघ में ताजा जख्म है जिसका दर्द भी मीठा लग रहा था मुझे.
जी भर कर चुदाई का मजा लेने के बाद हम दोनों लगभग साथ साथ ही झड़ गए थे . गर्म वीर्य की बोछारो ने चाची की चूत को भिगो कर रख दिया. जैसे ही हमारा स्खलन हुआ चाची उठ कर बाहर भागी . इसको क्या हुआ सोचते हुए मैं उसके पीछे गया तो देखा की वो मूत रही थी .
“सुर्र्रर्र्र ” चाची की चूत से पेशाब की धार बह रही थी . फिर चाची ने पानी से अपने बदन को साफ़ किया और बोली- जब तेरा निकलने को हो तो मुझे बता दिया कर , अन्दर मत छोड़ना आगे से .
मैं- ठीक है .
एक तो मेरी हालत नासाज थी ऊपर से चाची जैसी गर्म माल को रगड़ने के बाद थकान होनी थी . मैंने चाची को बाँहों में लिया सो गए. पर बहन की लोडी तक़दीर ने उस रात में कुछ ऐसा लिख दिया था की क्या ही कहूँ. रात को न जाने क्या समय रहा होगा मूत की त्रीव इच्छा की वजह से आँख खुल गयी . मैं बाहर मूतने के लिए आया तो देखा की कुत्ते जोर जोर से रो रहे थे. ऐसा रुदन मैंने कभी नहीं देखा था .
“इन मादरचोदो को क्या हुआ है ” मैंने अपने आप से कहा और उनको भागने के लिए लट्ठ उठा कर उस दिशा में चल दिया जिधर से उनकी आवाजे आ रही थी . जितना मैं चलता आवाजे और दूर हो जाती .पीछा करते करते मैं ठीक उसी जगह पर आन पहुंचा था जहाँ पर उस रात हरिया को मैंने देखा था .
मैंने लालटेन की लौ और ऊंची की ताकि धुंध में ठीक से देख सकू और जब मेरी आँखे कुछ देखने लायक हुई तो उलटी ही आ गयी मुझे. सड़क के बीचो बीच कविता भाभी पड़ी थी उसका पेट खुला हुआ था आंते बाहर को बिखरी हुई थी . वो सिसक रही थी दर्द में और जो सक्श उसके ऊपर झुका हुआ था उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था और जब हमारी नजरे मिली .................
कविता तो चुदने से पहले ही निकल ली कुंवर से#30
ये जो कुछ भी हुआ था मुझे उस सच के थोडा और करीब ले गया जिसे दुनिया का हर इन्सान महसूस करना चाहता था . चाची की लेकर मैंने जान लिया था की इस सुख का मजा अप्रतिम है , शायद इसी लिए कविता अपनी खावाहिशो पर काबू नहीं रख पायी थी . खाना खाने के बाद मैं और चाची खेतो के लिए चल दिए.हालाँकि मेरे इस निर्णय से भाभी बिलकुल खुश नहीं थी पर इन हालातो में जब कोई भी मजदुर खेतो की रखवाली के लिए तैयार नहीं था , ये मेरी जिम्मेदारी बनती थी . ये धरती कहने को ही माँ नहीं थी ये माँ का स्वरूप ही थी . किसान के लिए उसकी धरती से बढ़कर भला कौन हो . जो ये समझ ले उस किसान के वारे न्यारे करदे ये धरा.
लालटेन उठाये हम दोनों पैदल ही चले जा रहे थे . धुंध की वजह से थोड़ी परेशानी हो रही थी पर अब चले थे तो पहुंचना था ही . चाची को थोड़ी घबराहट सी हो रही थी उसे डर था की कहीं हम पर हमला न हो जाये और ये डर लाजमी भी थी . पर हम कोई आधे घंटे में कुवे पर पहुँच ही गए. चाची ने कमरा खोला . बिजली गुल थी तो लालटेन की रौशनी का ही सहारा था .
मैं- चाची तुम यही रुको मैं एक चक्कर लगा कर आता हूँ
मैंने खेतो का एक लम्बा चक्कर लगाया सुनिश्चित किया की अभी तो कोई जानवर खेतो में नहीं है . थोडा बहुत कोई जानवर कुछ खा ले तो कोई दीक्क्त नहीं थी पर कई बार जानवर खेतो में ही लड़ पड़ते थे जिस से नुकसान होता था . पर सब कुछ शांत था तो मैं वापिस से कमरे पर आ गया .
चाची ने बिस्तर लगा लिया था. मैंने दरवाजा बंद किया और कपडे उतार कर चाची के बिस्तर में घुस गया .
चाची- कितना ठंडा है तू
मैं-अब नहीं रहूँगा . तुम्हारे आगोश में गरम हो जाऊंगा.
मैंने चाची के ब्लाउज के बटन खोल दिए और उसकी नर्म चुचियो को मसलने लगा.
चाची- ये सब करने के लिए मुझे यहा लाया है न तू
मैं- तुम खुद आई हो मैंने तो कहा था की अकेले ही जाना चाहता हूँ
चाची ने मेरी जांघ पर अपनी जांघ चढ़ाई और बोली- अकेले रहता तो फिर तुझे गर्म कौन करता
चाची ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रखे और मुझे चूमने लगी . मैं चाची की नंगी पीठ को सहलाने लगा. .चूमते चूमते चाची का हाथ मेरे लंड पर पहुँच गया था चाची ने मेरे पायजामे को उतार कर फेंक दिया और मेरे लंड से खेलने लगी. कविता के स्पर्श से वो पहले ही उत्तेजित था ऊपर से अब चाची की शरारतो ने उसे और गरम कर दिया था .
“चाची , मुह में लो न इसे ” मेरे होंठो से अपने आप निकल गया . कविता के होंठो की तपिश अब तक मेरे जिस्म को सुलगा रही थी .
चाची थोडा सा निचे को सरकी और अपने चेहरे को मेरे लंड पर झुका दिया. चाची की गीली लिजलिजी जीभ की रगड़ जैसे ही मेरे सुपाडे पर पड़ी आँखे मस्ती के मारे बंद हो गयी .
“आह चाची ” मैं मस्त हो गया .
चाची की पोजिशन इस प्रकार की थी की वो बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई मेरा लंड चूस रही थी मैंने चाची के चूतडो को सहलाना शुरू किया गद्देदार गांड का मुलायम अहसास क्या ही कहना . मेरी उंगलिया चाची की गांड के छेद को छूने लगी. जब जब मेरी उंगलिया वहां छूती चाची के बदन में कम्पन होता. चाची अब मेरी गोलियों को अपने दांतों से काट रही थी . बदन में ऐसी मस्ती कभी महसूस नहीं हुई थी .
बेशक मेरे कंधे पर चोट लगी थी पर उस पल किसे परवाह थी . मैंने चाची की भरी जांघो को उठाया और उसे अपनी तरफ खींच लिया चाची की भारी गांड मेरे चेहरे पर आ टिकी.
“पुच ” मैंने चाची की चूत का एक चुम्बन लिया और चाची समझ गयी की आगे क्या होने वाला था . उसने चुतड ऊपर किये और अपनी चूत को मेरे होंठो पर लगा दिया. मुख मैथुन का असली मजा क्या होता है मैंने उस रात में जाना था जब औरत और मर्द एक साथ एक दुसरे के अंगो को चुमते है चूसते है तो बिस्तर पर जो समां बंधता है उसके बताने के लिए शब्द होते ही नहीं .
जब उसकी गांड हिलती तो मेरी जीभ गांड के छेद से टकराती जब जब ऐसा होता चाची अपने दांतों से मेरे लंड को काटती . और फिर एक लम्हा ऐसा भी आया जब मैने उसके चूतडो को मजबूती से थामे हुए कवर गांड के छेद पर ही अपनी जीभ रगडनी शुरू कर दी. सेक्स का ऐसा अद्भुद मजा मैं तो अनजान ही था इस से. चंपा सही ही कहती थी की कबीर एक बार तू इस रसको चख कर तो देख . और उस पल मेरे मन में पहली बार ये ख्याल आया की चंपा को इस सुख का इतना ज्ञान कैसे , क्या चाची के साथ ये सब करके या फिर वो भी लंड खा चुकी थी , अगर ऐसा था तो किसका . मैंने ये पता लगाने का निर्णय किया.
तभी चाची ने मेरे लंड को मुह से निकाला और आगे को सरक गयी. चाची ने थूक से सने लंड को अपनी चूत पर लगाया और उस पर ऊपर निचे होने लगी.
“आह कबीर आःह ” चाची की सिस्कारिया लगतार कमरे में गूंजने लगी. पूरा लंड अन्दर लेने के बाद जब वो अपने कुल्हे हिला हिला कर जो मजा दे रही थी मुझे लगा की जल्दी ही पिघल जाऊंगा मैं . जोश जोश में मैं बिलकुल भूल गया था की मेरी जांघ में ताजा जख्म है जिसका दर्द भी मीठा लग रहा था मुझे.
जी भर कर चुदाई का मजा लेने के बाद हम दोनों लगभग साथ साथ ही झड़ गए थे . गर्म वीर्य की बोछारो ने चाची की चूत को भिगो कर रख दिया. जैसे ही हमारा स्खलन हुआ चाची उठ कर बाहर भागी . इसको क्या हुआ सोचते हुए मैं उसके पीछे गया तो देखा की वो मूत रही थी .
“सुर्र्रर्र्र ” चाची की चूत से पेशाब की धार बह रही थी . फिर चाची ने पानी से अपने बदन को साफ़ किया और बोली- जब तेरा निकलने को हो तो मुझे बता दिया कर , अन्दर मत छोड़ना आगे से .
मैं- ठीक है .
एक तो मेरी हालत नासाज थी ऊपर से चाची जैसी गर्म माल को रगड़ने के बाद थकान होनी थी . मैंने चाची को बाँहों में लिया सो गए. पर बहन की लोडी तक़दीर ने उस रात में कुछ ऐसा लिख दिया था की क्या ही कहूँ. रात को न जाने क्या समय रहा होगा मूत की त्रीव इच्छा की वजह से आँख खुल गयी . मैं बाहर मूतने के लिए आया तो देखा की कुत्ते जोर जोर से रो रहे थे. ऐसा रुदन मैंने कभी नहीं देखा था .
“इन मादरचोदो को क्या हुआ है ” मैंने अपने आप से कहा और उनको भागने के लिए लट्ठ उठा कर उस दिशा में चल दिया जिधर से उनकी आवाजे आ रही थी . जितना मैं चलता आवाजे और दूर हो जाती .पीछा करते करते मैं ठीक उसी जगह पर आन पहुंचा था जहाँ पर उस रात हरिया को मैंने देखा था .
मैंने लालटेन की लौ और ऊंची की ताकि धुंध में ठीक से देख सकू और जब मेरी आँखे कुछ देखने लायक हुई तो उलटी ही आ गयी मुझे. सड़क के बीचो बीच कविता भाभी पड़ी थी उसका पेट खुला हुआ था आंते बाहर को बिखरी हुई थी . वो सिसक रही थी दर्द में और जो सक्श उसके ऊपर झुका हुआ था उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था और जब हमारी नजरे मिली .................