• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,847
259
Good one Bhai champa ki shadi fix Ho gai. Champa bhi khush dikh rhi hai chalo kabir nahi to shekhar hi sahi. Bhune hue kaju ke sath peg lagana suroor to bnna hi tha. Jb suroor ek baar ban jaye toh samne kuch nhi dikhta ab ye samne kon agya bhoot ban ke jo sharabi se bhi na daraa sharabi se toh bhoot pret sb bhag jate hai ye kon agya? Kya action dekhne ko milega?
is surror ke nahshe me hi to kabir ki gaand toot gayi bhai
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,847
259
#29

बैठे बैठे मेरे सर में दर्द हो ने लगा था तो सोचा की क्यों न वैध जी को दिखा लिया जाये दूसरा वैध से मिलने का मेरा एक उद्देश्य और था . मैं अपने सूजे हुए लिंग के बारे में भी उस से बात करना चाहता था क्योंकि अब तो काफी दिन हो गए थे पर इसकी सूजन कम हो ही नहीं रही थी . घुमते घुमते मैं वैध के घर पहुच गया और दरवाजा खडकाया .

“कौन है ” दरवाजा खुलते ही एक मधुर आवाज मेरे कानो में टकराई

मैंने देखा दरवाजे पर वैध की बहु कविता खड़ी थी .

कविता- ओह तुम हो कुंवर जी , माफ़ करना मैं पहचान नहीं पायी .

मैं- कोई न भाभी . तुम वैध जी को बुला दो मुझे कुछ काम है

भाभी- वो तो पड़ोस के गाँव में गए है मरीज को देखने के लिए . तुम इंतज़ार कर लो कह कर तो गए थे की शाम ढलने तक आ जायेंगे. मैं चाय बना देती हूँ तुम तक.

मैं- नहीं भाभी मैं फिर आ जाऊंगा.

कविता- मैंने कहा न आते ही होंगे. वैसे कोई समस्या है तो मुझे बता सकते हो उनकी अनुपस्तिथि में मैं भी मरीज देख लेती हूँ

अब उसको मैं क्या बताता की मेरे लंड इतना मोटा हो गया है की कच्चे में भी दीखता रहता है .

मैं- भाभी समस्या ऐसी है की उनको ही बता पाउँगा

भाभी- तो फिर थोडा इंतजार कर लो , इंतजार के बहाने ही हमारी चाय पी लो

मैं- ठीक है भाभी

मैं अन्दर जाकर बैठ गया कविता भाभी थोड़ी देर में ही चाय ले आई

कविता- जखम कैसे है अब

मैं- भर जायेंगे धीरे धीरे सर में दर्द हो रहा था मैंने सोचा की टाँके कही हिल तो नहीं गए दिखा आऊ

भाभी- सही किया स्वास्थ के मामले में लापरवाही करना ठीक नहीं होता. वैसे बड़ी बहादुरी से सामना किया तुमने उस हमला करने वाले का , पिताजी बता रहे थे की कोई और होता तो प्राण देह छोड़ गए होते.

मैं- कोशिश की थी उसे पकड़ने की

ये बहन का लंड वैध जब भी मैं आता था मिलता ही नहीं था . अँधेरा भी घिरने लगा था पर ये चुतिया न जाने कब आने वाला था .

मैं- देर ज्यादा ही कर दी वैध जी ने

कविता- कहे तो थे की दिन ढलने से पहले आ जायेंगे अब क्या कहे . तुम अगर चाहो तो मैं देख लू सर के टाँके .

मैं- जैसी आपकी इच्छा

मैंने उसका मन रखने को कह दिया . वो उठी तो उसका आंचल थोडा सरक गया .ब्लाउज से बाहर को झांकती उसकी सांवली छातियो ने मुझ पर अपना असर दिखा दिया. जब वो मेरे सर को देख रही थी तो उसके बदन की छुहन ने मेरे तन में तरंग पैदा करनी शुरू कर दी. उसके हाथ मेरे सर पर थे पर सीना मेरी पीठ से रगड़ खा रहा था तो मेरा लिंग उत्तेजना महसूस करने लगा.

“टाँके तो ठीक ही है कुंवर , शायद कमजोरी की वजह से दर्द हो रहा हो या फिर मौसम की वजह से तुम सर पर कुछ ओढा करो , जड़ी बूटी का लेप समय पर लगाया करो ” उसने कहा और उस तरफ गयी जहाँ पर वैध जी की दवाइयों की शीशी रखी थी .

जब वो झुकी तो मैंने उसके नितम्बो की गोलाई पर गौर किया चाची के बराबर की ही गांड थी वैध की बहु की . उसने मुझे दो पुडिया दी और बोली- गर्म दूध के साथ लेना आराम रहेगा.

मैं- भाभी वैध जी कब तक आयेंगे

कविता- तुम्हारा काम तो मैने कर दिया न अब वो जब आये तब आये.

मैं- भाभी मेरी समस्या ये सर का दर्द नहीं है कुछ और है .

भाभी- वो तो मैं तभी समझ गयी थी जब तुमने शुरू में कहा था . पर वो कहते है न की मर्ज को कभी वैध से छिपाना नहीं चाहिए . हो सकता है मैं कुछ मदद कर सकू तुम्हारी.

मैं- तुम्हे मुझ से वादा करना होगा की ये बात सिर्फ तुम ही जानोगी किसी भी सूरत में अगर ये बात किसी तीसरे को मालूम हुई तो फिर तुम जानती ही हो

कविता- तुम निसंकोच मुझ पर विश्वास कर सकते हो कुंवर.

मैं- देखो भाभी बात ये है की .....

मैंने आखिरकार पूरी बात कविता भाभी को बता दी.

भाभी- तुम्हे उसी समय आना चाहिए था न , चलो दिखाओ मुझे उसे

मैं- आपको कैसे दिखाऊ भाभी, इतनी शर्म तो है मुझमे

कविता- भाभी नहीं वैध को दिखा रहे हो तुम . बिना अवलोकन किये कैसे मालूम होगा की मर्ज क्या है , संकोच मत करो .

मैंने धीरे से अपना पायजामा निचे किया और अगले ही पल कविता की आँखों के सामने मेरा लंड झूल रहा था . मैंने पाया की कविता की आँखे उस पर जम गयी थी हट ही नहीं रही थी वहां से .

मैं- अन्दर डाल लू भाभी इसे.

कविता- रुको जरा.

कविता ने उसे अपनी उंगलियों से छुआ. लिंग की गर्मी से उसकी हथेली को जो अनुभूति हुई उसे मैं समझ सकता था . एक लगभग अड़तीस-चालीस साल की औरत मेरे लिंग को सहला रही थी औरत का स्पर्श पाते ही वो साला अपनी औकात पर आ गया और पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर फुफकारने लगा.

मैं- माफ़ करना भाभी , शर्मिंदा हूँ मैं

पर कविता ने मेरी बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया . अपनी मुट्ठी में लिए लंड को वो धीरे धीरे सहला रही थी .

मैं- भाभी क्या लगता है आपको

“तुम्हे तो उस कीड़े का आभारी होना चाहिए कुंवर ” अचानक ही भाभी के होंठो से ये शब्द निकले.

“कुर्सी पर बैठो ताकि मैं अच्छे से देख सकू ” कविता ने कहा

मैं कुर्सी पर बैठ गया वो घुटनों के बल बैठ कर मेरे लंड को देख रही थी . अपने हाथो से मसल रही थी उसे सहला रही थी . उसने अपने चेहरे को मेरे लंड के इतने पास ले आयी की उसकी सांसे लिंग की खाल पर पड़ने लगी. उसके होंठ मेरे लंड को छू ही गए थे की तभी बाहर से साइकिल की घंटी बजी तो वो तुंरत हट गयी मैने भी पायजामा ऊपर कर लिया .

वैध जी आ गए गए. कविता ने जाते जाते इतना ही कहा की बाबा को इस बारे में कुछ मत बताना दोपहर को आना उस से मिलने फिर वो इलाज करेगी . मैंने वैध के आगे वो ही सरदर्द का बहाना बताया और वहां से निकल गया .


 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
2,599
10,489
159
#29

बैठे बैठे मेरे सर में दर्द हो ने लगा था तो सोचा की क्यों न वैध जी को दिखा लिया जाये दूसरा वैध से मिलने का मेरा एक उद्देश्य और था . मैं अपने सूजे हुए लिंग के बारे में भी उस से बात करना चाहता था क्योंकि अब तो काफी दिन हो गए थे पर इसकी सूजन कम हो ही नहीं रही थी . घुमते घुमते मैं वैध के घर पहुच गया और दरवाजा खडकाया .

“कौन है ” दरवाजा खुलते ही एक मधुर आवाज मेरे कानो में टकराई

मैंने देखा दरवाजे पर वैध की बहु कविता खड़ी थी .

कविता- ओह तुम हो कुंवर जी , माफ़ करना मैं पहचान नहीं पायी .

मैं- कोई न भाभी . तुम वैध जी को बुला दो मुझे कुछ काम है

भाभी- वो तो पड़ोस के गाँव में गए है मरीज को देखने के लिए . तुम इंतज़ार कर लो कह कर तो गए थे की शाम ढलने तक आ जायेंगे. मैं चाय बना देती हूँ तुम तक.

मैं- नहीं भाभी मैं फिर आ जाऊंगा.

कविता- मैंने कहा न आते ही होंगे. वैसे कोई समस्या है तो मुझे बता सकते हो उनकी अनुपस्तिथि में मैं भी मरीज देख लेती हूँ

अब उसको मैं क्या बताता की मेरे लंड इतना मोटा हो गया है की कच्चे में भी दीखता रहता है .

मैं- भाभी समस्या ऐसी है की उनको ही बता पाउँगा

भाभी- तो फिर थोडा इंतजार कर लो , इंतजार के बहाने ही हमारी चाय पी लो

मैं- ठीक है भाभी

मैं अन्दर जाकर बैठ गया कविता भाभी थोड़ी देर में ही चाय ले आई

कविता- जखम कैसे है अब

मैं- भर जायेंगे धीरे धीरे सर में दर्द हो रहा था मैंने सोचा की टाँके कही हिल तो नहीं गए दिखा आऊ

भाभी- सही किया स्वास्थ के मामले में लापरवाही करना ठीक नहीं होता. वैसे बड़ी बहादुरी से सामना किया तुमने उस हमला करने वाले का , पिताजी बता रहे थे की कोई और होता तो प्राण देह छोड़ गए होते.

मैं- कोशिश की थी उसे पकड़ने की

ये बहन का लंड वैध जब भी मैं आता था मिलता ही नहीं था . अँधेरा भी घिरने लगा था पर ये चुतिया न जाने कब आने वाला था .

मैं- देर ज्यादा ही कर दी वैध जी ने

कविता- कहे तो थे की दिन ढलने से पहले आ जायेंगे अब क्या कहे . तुम अगर चाहो तो मैं देख लू सर के टाँके .

मैं- जैसी आपकी इच्छा

मैंने उसका मन रखने को कह दिया . वो उठी तो उसका आंचल थोडा सरक गया .ब्लाउज से बाहर को झांकती उसकी सांवली छातियो ने मुझ पर अपना असर दिखा दिया. जब वो मेरे सर को देख रही थी तो उसके बदन की छुहन ने मेरे तन में तरंग पैदा करनी शुरू कर दी. उसके हाथ मेरे सर पर थे पर सीना मेरी पीठ से रगड़ खा रहा था तो मेरा लिंग उत्तेजना महसूस करने लगा.

“टाँके तो ठीक ही है कुंवर , शायद कमजोरी की वजह से दर्द हो रहा हो या फिर मौसम की वजह से तुम सर पर कुछ ओढा करो , जड़ी बूटी का लेप समय पर लगाया करो ” उसने कहा और उस तरफ गयी जहाँ पर वैध जी की दवाइयों की शीशी रखी थी .

जब वो झुकी तो मैंने उसके नितम्बो की गोलाई पर गौर किया चाची के बराबर की ही गांड थी वैध की बहु की . उसने मुझे दो पुडिया दी और बोली- गर्म दूध के साथ लेना आराम रहेगा.

मैं- भाभी वैध जी कब तक आयेंगे

कविता- तुम्हारा काम तो मैने कर दिया न अब वो जब आये तब आये.

मैं- भाभी मेरी समस्या ये सर का दर्द नहीं है कुछ और है .

भाभी- वो तो मैं तभी समझ गयी थी जब तुमने शुरू में कहा था . पर वो कहते है न की मर्ज को कभी वैध से छिपाना नहीं चाहिए . हो सकता है मैं कुछ मदद कर सकू तुम्हारी.

मैं- तुम्हे मुझ से वादा करना होगा की ये बात सिर्फ तुम ही जानोगी किसी भी सूरत में अगर ये बात किसी तीसरे को मालूम हुई तो फिर तुम जानती ही हो

कविता- तुम निसंकोच मुझ पर विश्वास कर सकते हो कुंवर.

मैं- देखो भाभी बात ये है की .....

मैंने आखिरकार पूरी बात कविता भाभी को बता दी.

भाभी- तुम्हे उसी समय आना चाहिए था न , चलो दिखाओ मुझे उसे

मैं- आपको कैसे दिखाऊ भाभी, इतनी शर्म तो है मुझमे

कविता- भाभी नहीं वैध को दिखा रहे हो तुम . बिना अवलोकन किये कैसे मालूम होगा की मर्ज क्या है , संकोच मत करो .

मैंने धीरे से अपना पायजामा निचे किया और अगले ही पल कविता की आँखों के सामने मेरा लंड झूल रहा था . मैंने पाया की कविता की आँखे उस पर जम गयी थी हट ही नहीं रही थी वहां से .

मैं- अन्दर डाल लू भाभी इसे.

कविता- रुको जरा.

कविता ने उसे अपनी उंगलियों से छुआ. लिंग की गर्मी से उसकी हथेली को जो अनुभूति हुई उसे मैं समझ सकता था . एक लगभग अड़तीस-चालीस साल की औरत मेरे लिंग को सहला रही थी औरत का स्पर्श पाते ही वो साला अपनी औकात पर आ गया और पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर फुफकारने लगा.

मैं- माफ़ करना भाभी , शर्मिंदा हूँ मैं

पर कविता ने मेरी बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया . अपनी मुट्ठी में लिए लंड को वो धीरे धीरे सहला रही थी .

मैं- भाभी क्या लगता है आपको

“तुम्हे तो उस कीड़े का आभारी होना चाहिए कुंवर ” अचानक ही भाभी के होंठो से ये शब्द निकले.

“कुर्सी पर बैठो ताकि मैं अच्छे से देख सकू ” कविता ने कहा

मैं कुर्सी पर बैठ गया वो घुटनों के बल बैठ कर मेरे लंड को देख रही थी . अपने हाथो से मसल रही थी उसे सहला रही थी . उसने अपने चेहरे को मेरे लंड के इतने पास ले आयी की उसकी सांसे लिंग की खाल पर पड़ने लगी. उसके होंठ मेरे लंड को छू ही गए थे की तभी बाहर से साइकिल की घंटी बजी तो वो तुंरत हट गयी मैने भी पायजामा ऊपर कर लिया .

वैध जी आ गए गए. कविता ने जाते जाते इतना ही कहा की बाबा को इस बारे में कुछ मत बताना दोपहर को आना उस से मिलने फिर वो इलाज करेगी . मैंने वैध के आगे वो ही सरदर्द का बहाना बताया और वहां से निकल गया .


Wah Fauzi Bhai,

Vaidh ki bahu Kavita ka to man garden garden ho gaya Kabir ka ling dekhkar, dopahar ko bulaya he................. akele me............ ab to badhiya ILAAZ hoga


Keep posting Bhai
 
Top