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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Naik

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#25

होश आया तो बदन दर्द से टूट रहा था . छाती पर बैलगाड़ी का पहिया पड़ा हुआ था . उसे हटाया , सर अभी भी घूम रहा था . गाडी के पहियों में लगने वाली लोहे की शाफ्ट का कुछ हिस्सा मेरी जांघ में घुसा हुआ था . दोनों बैलो के विक्षत शव जिन्हें बुरी तरफ से चीर-फाड़ा गया था मेरे पास ही पड़े थे. पहिये को हटाना चाहा तो हाथ से ताकत लगी ही नहीं दर्द हुआ सो अलग पाया की कंधे पर एक गहरा जख्म था मांस उखाड़ा गया था वहां का .

मैंने आँखे बंद कर ली और पड़े पड़े ही रात को क्या हुआ याद करने की कोशिश की पर याद आये ही नहीं . जैसे तैसे मैंने पहिये को हटाया और जांघ से वो लोहे का टुकड़ा निकाला. रक्त की मोटी धारा बह रही थी मिटटी और कपडा लगा कर मैंने खून को बहने से रोकने की कोशिश की .

उसी शाफ़्ट को पकड़ कर मैं खड़ा हुआ . मैंने देखा थोड़ी दूर वो कडाही उलटी पड़ी थी तब मुझे याद आया की कारीगर भी था मेरे साथ और अब वो दूर दूर तक नहीं दिख रहा था .

“कारीगर, कारीगर ” मैंने दो तीन बार आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया. मेरा दिल अनिष्ट की आशंका से घबराने लगा. एक बार फिर परिस्तिथिया ऐसी थी की मैं ही गुनेहगार माना जाता और इस बार तो बचाव में भी कुछ नहीं था . शाफ़्ट का सहारा लिए लिए मैं वैध जी के घर तक बड़ी मुश्किल से पहुँच गया.



“कुंवर क्या हुआ तुम्हे ” वैध ने मुझे घर के अन्दर लिया और पूछा मुझसे

मैं- पता नहीं क्या हुआ है वैध जी , आप मेरे भैया तक सुचना पहुंचा दीजिये

वैध- जरुर पर पहले मैं निरिक्षण कर लू . मरहम पट्टी कर दू.

जांघ पर टाँके लगा दिए थे पर जब वैध काँधे को देख रहा था तो उसकी आँखों में दहशत देखि मैंने.

वैध- किस जानवर से पाला पड़ा था कुंवर शिकार करते समय

मैं- मालूम नहीं वैध जी. पर इतना जरुर है की जानवर नहीं था हमला करने वाला

वैध- यहाँ पर टाँके भी काम नहीं आयेंगे . ऐसे ही भरने देना होगा इस जख्म को मरहम पट्टी के सहारे ही .

पीठ में एक बड़ी कील भी थी उसे भी वैध ने निकाला और बोला- तुम कहते हो याद नहीं है हालत देख कर लगता है की संघर्ष खूब हुआ है .

वैध क्या कह रहा था मुझे सुनाई ही नहीं दे रहा था . मैं इस बात से घबराया था की अगर ये हमलावर वो ही था जिसने हरिया और बाकी लोगो का शिकार किया था तो क्या मेरी हालत भी वैसी ही हो जाएगी. क्या मेरे पास भी अब सिमित समय ही रह गया है .



“कबीर, मेरे भाई ” भैया आन पहुंचे थे .

भैया- कबीर क्या हुआ तुझे . किसने किया ये . नाम बता मुझे उसका . मेरे भाई की तरफ आँख उठाने की किसकी हिम्मत हो गयी मैं आग लगा दूंगा उसको. उन हाथो को उखाड़ दूंगा जिन हाथो ने मेरे भाई को छूने की हिमाकत की है .

जीवन में पहली बार मैंने भैया को क्रोध में देखा था . भैया ने मुझे अपने सीने से लगाया . उनकी आँखों से बहते आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.

मैं- कुछ नहीं हुआ है भैया मामूली ज़ख्म है

भैया- मामूली जख्म भी मेरे रहते कैसे लग जायेंगे मेरे भाई को . तू बस इतना बता की क्या हुआ कौन लोग थे वो .

मैं- मुझे कुछ याद नहीं है भैया. जब होश आया तो मैं घायल था बस ये ही याद है .

शाम तक घर घर तक ये खबर पहुंच गयी थी की राय साहब के लड़के पर हमला हुआ है .सब लोग मेरे आगे पीछे फिर गए थे पर तमाम बातो के बीच कोई उस कारीगर की बात नहीं कर रहा था. जैसे की किसी को फ़िक्र ही नहीं थी की वो था या नहीं था . और मैं सब जानते हुए भी उसका जिक्र नहीं कर पा रहा था . इतना बेबस मैंने खुद को कभी नहीं पाया था .

पिताजी की आंखो में मैंने पहली बार नमी देखि थी उस दिन . चाची तो बेहोश ही हो गयी थी ये खबर सुन कर. भाभी मेरे पास ही बैठी रही .



पिताजी- हमारे लाख मना करने के बावजूद भी घर से बाहर जाने की क्या मज़बूरी थी . जिसके लिए तुम अपनी जान की परवाह भी नहीं करते हो

मैं- गलती हो गयी पिताजी

पिताजी- तुम तो गलती कह कर पल्ला झाड लोगे कबीर, अगर तुम्हे कुछ भी हो जाता तो हम पर क्या बीतती एक पल सोच कर देखो. इस बूढ़े आदमी की हिम्मत की परीक्षा मत लो बेटे, इस बूढ़े में इतनी हिम्मत नहीं है की जवान बेटे की अर्थी को कंधा दे सके. अवश्य ही कोई पुन्य था जो आड़े आ गया वर्ना मारने वाले ने कमी थोड़ी न छोड़ी थी.

भाई- पिताजी मैं जल्दी ही पता कर लूँगा की कौन लोग थे इसके पीछे

पिताजी- मेरे बेटे पर हमला करने की गुस्ताखी करने वाले की हिम्मत की दाद देनी होगी पर सवाल ये है की आखिर किस की हमसे दुश्मनी हो सकती है कौन ऐसा सांप पैदा हो गया .

भाई- कुचल देंगे उस सांप को पिताजी .

मैं- आप लोग यु ही बात को बड़ी कर रहे है , कोई जानवर ही रहा होगा.

भाई- तुम चुप रहो फिलहाल

उनके जाने के बाद मैंने वैध से पूछा की घर कब जा सकता हूँ.

वैध- मुझे थोड़ी तस्सली हो जाये उसके बाद

मैं- कैसी तस्सली

वैध- तुम जानते हो

मैं समझ गया वैध देखना चाहता था की मुझमे भी बाकि लोगो जैसे लक्षण आते है या नहीं .

एक पूरी रात वैध की निगरानी में रहने के बाद मैं घर आ गया.

भाभी- जी तो करता है की मैं बहुत मारू तुमको. हमारे लाड-प्यार का आखिर कितना नाजायज फायदा उठाओगे तुम .

मैंने कुछ नहीं बोला

भाभी- अब क्यों गूंगे बने हुए हो देख लिए न मनमर्जी करने का नतीजा . घर में मेहमान आये थे पर बेगैरत को क्या पड़ी थी इनको तो चस्का लगा था उसी लड़की के पास मुह मारने गए थे न

मैं- ऐसा कुछ नहीं था भाभी . मैंने गलती मान तो ली न

भाभी- हर बार का यही नाटक है , बस गलती मान लो.

भैया- बस भी करो अब , इसे आराम करने दो

भाभी- हाँ मैं कौन होती हूँ इन्हें कुछ कहने वाली.

मैं- भाभी माफ़ी दे भी दो

भाभी- तुम्हे कुछ हो जाता तो हमारा क्या होता सोचा तुमने


भाभी ने मुझे सीने से लगाया और रोने लगी . एक मैं था जिसके लिए सारा परिवार इधर उधर भाग रहा था एक बेचारा वो कारीगर था जिसका कोई जिक्र ही नहीं था . उस लम्हे में मुझे खुद से नफरत हो गयी .
Gaye thai kariger ki madad kerne or khud aa gaye cheer faad kerwa ker lekin woh tha kon jo sabko is trah se maar raha h bechara kariger ka tow pata hi nahi kaha gaya koyi uski khoj khaber hi nahi le raha
Kabir sahab ko bhi kuch yaad nahi waha per huwa kia ....?
Baherhal dekhte h aage kia hota h
 

Naik

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#26

मुझे फ़िक्र थी तो उस कारीगर की जिसकी कोई चर्चा नहीं थी. सुबह मैं लंगड़ाते हुए ही गाँव का चक्कर लगा आया पर सब वैसा ही था जैसा की रोज होता था . जांघ की चोट के दर्द के बावजूद मैं उस स्थान पर गया जहाँ उस रात वो घटना हुई थी . बैलो के शरीर में जो कुछ बचा था उसे जानवरों ने फफेड लिया था टूटी गाडी चीख कर कह रही थी की उस रात कुछ तो हुआ था यहाँ पर क्या हुआ था ये मुझे याद नहीं आ रहा था.

कोई तो मिले. कोई तो बताये की ये साला मामला क्या था. गाँव में इस से पहले तो ये सब कभी नहीं हुआ था . क्या हुआ जो कभी दो चार साल में किसी के पशु को जंगली जानवरों ने हमला कर दिया हो पर इंसानों के साथ बहुत कम ऐसी वारदाते हुई थी और अब रुक ही नहीं रही थी .

वापिस आकर मैं चाची के पास बैठ गया .

चाची- घायल है फिर भी चैन नहीं है तुमको

मैं- हाथ पैर जुड़ न जाये इसलिए थोडा टहलने गया था बस वैसे भी इतनी गहरी चोटे नहीं है. और फिर तुम हो न पास मेरे . तुम जब अपने लबो का रस मुझे पिलाओगी तो फिर मैं देखना कैसे ठीक हो जाऊंगा.

चाची ने मेरी बात सुनकर इधर उधर देखा और बोली- ये सब बाते तभी करना जब हम दोनों अकेले हो . दीवारों के भी कान होते है .

मैं- हाँ पर बोलो न रस पिलाओगी न

चाची- हाँ बाबा हाँ

मैं- और निचे के होंठो का

मेरी बात सुनकर चाची का चेहरा शर्म से लाल हो गया .

चाची- धत बेशर्म

मैं- बोलो न तुम्हे मेरी कसम

चाची- तुझे जो भी पीना है पी लेना बस

मैं- ऐसे नहीं वैसे बोलो जैसे मैं सुनना चाहता हूँ

चाची- मौका लगते ही मेरी चूत का रस पी लेना

जब चाची ने ऐसा कहा तो उनके होंठो की कंपकंपाहट ने बता दिया की टांगो के बीच में कुछ गीला हो चला है .

मैं- चाची आपको क्या लगता है गाँव वालो पर कौन हमले कर रहा है

चाची- अभिमानु ने दिन रात एक कर दिया है उसे पकड़ने को . जब से तुम पर हमला हुआ है वो एक पल को भी चैन नहीं लिया है . राय साहब ने भी रातो को गश्त बढ़ा दी है . गाँव में अफवाहे अलग ही है .

मैं- गाँव वाले तो चुतिया है

चाची- पर हम लोग तो नहीं है न गाँव को आग लग जाये हमें फर्क नहीं पड़ता पर तुमको आंच भी आई तो हमें बहुत फर्क पड़ेगा.

मैं- कोई सुराग भी तो नहीं लग रहा है . ऊपर से पिताजी ने सख्त कहा है की रात को बाहर नहीं निकलना तुम ही बताओ मैं क्या करू

चाची- तुम्हे कुछ करने की जरुरत नहीं है अभिमानु और जेठ जी देख लेंगे इस मामले को . आज तक गाँव की हर समस्या को जेठ जी ने सुलझाया है इसे भी सुलझा लेंगे. एक वो न लायक मंगू कहाँ रह गया , उस से कहा था की दो मुर्गे ले आना

मैं- आ जायेगा थोड़ी बहुत देर में उलझ गया होगा किसी काम से .

काम से मुझे याद आया खेतो का .

मैं- चाची अब खेतो पर मैं अकेला ही रहूँगा . इन हालातो में मजदुर वहां रुकना नहीं चाहते जो की जायज भी है

चाची- भाड़ में गयी खेती तुझे अकेले जाने दूंगी तूने सोचा भी कैसे.

मैं- नुकसान बहुत होगा.

चाची- तो फिर मैं भी तेरे साथ ही चलूंगी

मैं- यहाँ तुम्हे आराम है

चाची- वहां भी आराम ही रहेगा. वैसे भी जेठ जी ने तुम्हारी जिम्मेदारी मुझे दी हुई है. जब तुम ठीक हो जाओगे तो फिर हम चलेंगे वहां

तभी मंगू आ गया.

चाची- कहाँ रह गया था रे तू

मंगू- मुर्गा पकड़ा. काटा साफ़ किया समय तो लगे ही .

चाची- हाँ समय की कीमत तू ही जाने है बस .

चाची मुर्गा लेकर अन्दर चली गयी . रह गए हम दोनों

मंगू- भाई, तू ये सब मत कर. मैं जानता हूँ तेरे दिल में गाँव वालो के लिए फ़िक्र है पर इन मादरचोदो के लिए अपनी जान को दांव पर लगाना कहाँ की बहादुरी है . मैं वैध के दरवाजे पर ही बैठा रहा अन्दर आने की हिम्मत ही न हुई मेरी . तुझे कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा.

मैं- कुछ नहीं होगा मंगू सब ठीक है

मंगू- पर ऐसा क्या है जो रातो को ही निकलना जरुरी है

मैं- मुझे भी नहीं मालूम पर जब मालूम होगा तो सब से पहले तुझे बताऊंगा. सुन रात को खाना साथ ही खायेंगे

मंगू- नहीं भाई, घर पर भी एक मुर्गा दे आया हूँ

मैं- मौज है फिर तो .

तभी मैंने सामने से भाभी को आते देखा

भाभी- क्या खुराफात कर रहे हो दोनों

मंगू- कुछ नहीं भाभी सा , बस ऐसे ही बाते चल रही थी .

भाभी- अगर मुझे मालूम हुआ की घर से बाहर रात को जाने की कोई भी योजना है तो दोनों की खाल उधेड़ दूंगी.

मैं- भाभी आप जब चाहे चेक कर लेना यही सोता हुआ मिलूँगा आपको

भाभी- बेहतर रहेगा. चाची कहाँ है

मैं - अन्दर है

भाभी के जाने के बाद मैं मंगू से मुखातिब हुआ और उसके आगे कारीगर का जिक्र किया .

मंगू- भाई, उसका कोई पक्का ठिकाना नहीं है , परिवार है या नहीं कोई नहीं जानता हलवाई के पास काफी समय से काम कर रहा था और एक नुम्बर का दारुबाज है . चला गया होगा कहीं दारू के चक्कर में .



मैं- वो चाहे जैसा भी हो वो अपने घर काम करने आया था उसकी सुरक्षा अपनी जिमेदारी थी मेरे भाई .

मंगू- थी तो सही पर अब कहाँ तलाश करे उसकी .

मैंने मंगू की पीठ पर धौल जमाई तो वो कराह उठा .

मैं- क्या हुआ

मंगू- कुछ नहीं बड़े भैया के साथ अखाड़े गया था . उन्होंने उठा कर पटक दिया तो दर्द सा हो रहा है . भैया इतनी कसरत कर कर के कतई पहाड़ हो रखे है .

मैं- हाँ यार, मुझे भी ऐसे लगा था पहले तो मैं कई बार उनको पछाड़ देता था पर अब तो वो काबू में ही नहीं आ रहे.

मंगू- मैंने तो सोच लिया है बड़े भैया का आशीर्वाद लेकर दुगुनी कसरत करूँगा.

मैं- भैया में और अपने में फर्क है मेरे दोस्त. भैया सेठ व्यापारी आदमी है अपन है किसान . अपन तो खेती में ही टूट लेते है तू बता भैया कब जाते है खेतो में .

मंगू- बात तो सही है पर ताकत तो बढ़ानी ही है

मैं- सो तो है

फिर मंगू वापिस चला गया . करने को कुछ खास था नहीं तो खाना खाने के बाद मैंने बिस्तर पकड़ लिया . बेशक मैं चाची की लेना चाहता था पर चाची चाहती थी की थोडा ठीक होने के बाद ही किया जाये. चाची के गर्म बदन को बाँहों में लिए मैं गहरी नींद में सोया पड़ा की जानवरों की आवाजो से मेरी नींद उचट गयी . कानो में सियारों के रोने की आवाज आ रही थी .

“गाँव में सियार ” मैंने अपने आप से कहा और बिस्तर से उठ कर बाहर आया . मैंने दरवाजा बंद किया और लालटेन को रोशन किया. रौशनी की उस लहर में मेरी नींद से भरी आँखों ने गली के बीचो बीच जो देखा बस देखता ही रह गया ...................
Bahot behtareen shaandaar update bhai
Chachi bhabi mangi bhayya pita ji sab log mana ker rehe h baher mat jao lekin.lekim yeh bhai maane nahi ab siyar bole ya kuch kia zaroorat h baher jaane ki ab kia dekh lia gali.jise dekh ker hawa nikal gayi
Baherhal dekhte h kia ho gaya
Badhiya update shaandaar
 

Pankaj Tripathi_PT

Love is a sweet poison
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#19

मैं- नियति शायद यही चाहती थी .

मैने भी डायन के जैसे बात नियति पर डाल दी.

ओझा मेरी बात सुनकर मुस्कुरा पड़ा.

ओझा- सही कहा तुमने नियति पर इतने लोगो पर संकट है कुछ मारे गए कुछ मारे जायेंगे. क्या तब भी तुम नियति का ही बहाना लोगे.

मैं- इन्ही गाँव वालो ने दो मासूमो को फांसी से लटका दिया सिर्फ इस कसूर के लिए की वो प्रेम कर बैठे थे . उनकी नियति क्या फांसी थी .

ओझा- तो क्या इसी कुंठा के कारण तुम उसका साथ दे रहे हो.

मैं- मैं किसी का साथी नहीं हूँ, गाँव में हुई प्रत्येक मौत का दुःख है मुझे . और फिर ये मेरा काम नहीं है गाँव वालो ने समाधान के लिए आपको बुलाया है आप उपाय करो .

ओझा- जितना मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा. पर मेरा प्रश्न अब भी यही है की उसने तुम्हे क्यों छोड़ दिया.

मैं-जब उस से मिलो तो पूछ लेना महराज.

ओझा के यहाँ से मैं आ तो गया था पर मेरे मन में बेचैनी थी . मन कही लग ही नहीं रहा था . मैं जानता था की ओझा देर सवेर उसे तलास कर ही लेगा. दिल के किसी कोने में निशा को लेकर फ़िक्र सी होने लगी थी . दूसरी तरफ आस-पास के गाँवो के लोग भी आज आने वाले थे . सामूहिक बैठक करने ताकि इस मुसीबत का कोई हल निकाला जाये.



निशा से मिलना बहुत जरुरी था पर घर से बाहर कैसे जाऊ मैं ये समस्या भी मेरे लिए तैयार खड़ी थी .

“क्या बात है देवर जी कुछ परेशां से लगते हो ” भाभी ने पूछा मुझसे

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं भाभी

भाभी- तो फिर चेहरे पर ये उदासी क्यों

मैं- मुझे आपकी आज्ञा चाहिए

भाभी- किसलिए

मैं- मुझे थोड़ी देर के लिए जाना है कही रात को , वादा करता हूँ जल्दी ही वापिस आ जाऊंगा.

भाभी- ये मेरे हाथ में नहीं है पिताजी ने तुम पर बंदिश लगाई है , उनके हुकुम की तामिल न हुई तो फिर तुम जानते ही हो

मैं- भाभी, मेरा जाना जरुरी है .

भाभी- गाँव का माहौल इतना तनावपूर्ण है तुम्हे अब भी बाहर घुमने की पड़ी है . घर में किसी को भी मालूम होगा तो फिर डांट मुझे ही पड़ेगी वैसे ही लोग कहते है की मेरे लाड ने बिगाड़ दिया है तुम्हे.

मैं-ठीक है भाभी मैं नहीं जाता

भाभी- तुम तो नाराज हो गए. सुनो रात को पिताजी और तुम्हारे भैया जब ओझा के पास जायेंगे तो तुम निकल जाना पर समय से वापिस आ जाना पर तुम वादा करो तुम जिस से भी मिलते हो जो भी करते हो उस से परिवार की प्रतिस्ठा पर कोई आंच नहीं आएगी

मैं- मुझे ख्याल है परिवार का भाभी .



पर ये रात भी मेरी परीक्षा लेने वाली थी आज क्योंकि पिताजी अकेले ही गए ओझा के पास भैया घर पर ही रह गए थे . खैर, मैंने बहुत इंतजार के बाद ये सुनिश्चित कर लिया की सब लोग गहरी नींद में है तो मैं घर से निकल गया और गाँव को पार करके अपनी मंजिल की तरफ दौड़ गया.



एक बार फिर से वो तालाब और काली मंदिर मेरी आँखों के सामने थे . कड़ाके की ठण्ड में भी मेरा गला खुश्क था . मैं तालाब से पानी पी ही रहा था की अचानक से पानी में से एक साया ऊपर उठ कर सामने आ गया .

“कबीर ” बोली वो

कसम से मेरा दिल को दौरा ही आ गया था . जिस तरह से वो सामने आई थी मेरी नसे फट ही जाती .

“जान ही लेनी है तो सीधा ही ले लो न ऐसे डराने की क्या जरूरत थी ” मैंने हाँफते हुए कहा .

निशा-मैं तो नहा रही थी मुझे क्या मालूम था तुम ऐसे आ निकलोगे

मैं- मुझे तो आना ही तुमसे मिलने

निशा- आओ फिर

निशा तालाब की दिवार पर ही बैठ गयी . मैं भी उसके पास गया .

मैं- ठण्ड में पानी में जाने की क्या जरुरत थी तुम्हे

वो- मुझे फर्क नहीं पड़ता

मैं- फिर भी ,

निशा- ठीक है अपना कम्बल दे दो मुझे , राहत के लिए

मैंने अपना कम्बल उसे ओढा दिया .

निशा- इतनी बेचैनी क्यों मुझसे मिलने के लिए

मैं- कुछ सवालो ने मुझे पागल किया हुआ हैं

निशा- मेरे पास कोई जवाब नहीं तेरे सवालो का

मैं- दुनिया कहती है की ये तमाम क़त्ल डायन कर रही है .

निशा- कुछ तो लोग कहेंगे.

मैं- वो एक छोटा सा बच्चा था . अपने हाथो से दफनाया मैंने उसे .

निशा खामोश रही .

मैं- निशा, मैं जानता हूँ तू अलग है . मैं नहीं जानता की डायन कैसी होती है वैसी जो दुनिया मानती है या फिर वैसी जो मेरे साथ बैठी है. तूने मुझे कुछ नहीं किया . दो मुलाकातों में अपनी सी लगी मुझे . तेरे साथ उस सुनहरी आंच को तापना . तेरे साथ इस बियाबान में होना ये लम्हे बहुत खास है . पर गाँव में होती मौतों को भी नहीं झुठला सकता मैं . तू भी बता मैं क्या करू

निशा- कुछ मत कर. कुछ मत कह कबीर.

मैं- वो मौते कैसे रुकेंगी निशा. जब एक आदमी मरता है तो वो अकेला नहीं मरता उसके साथ उसका परिवार जो उस पर आश्रित होता है वो भी मरता है हर रोज मरता है .

निशा- तेरे मन की बात समझती हूँ मैं

मैं- निशा, तू चाहे तो तू मेरा रक्त पी ले. तू जब भी चाहे मैं हाज़िर हो जाऊंगा. तेरी प्यास तू मेरे रक्त से बुझा पर गाँव वालो का अहित मत कर.

मैंने अपनी जेब से उस्तरा निकाला और अपनी हथेली काट कर निशा के सामने कर दी.

रक्त की धारा को देख कर निशा की आँखों में आई चमक को मैंने अन्दर तक महसूस किया पर बस एक लम्हे के लिए .

“कबीर, पागल हुआ है क्या तू ” निशा ने तुरंत अपनी ओढनी के किनारे को फाड़ा और मेरी हथेली पर बाँध दिया .

“क्या हुआ निशा, मेरा खून उतना मीठा नहीं क्या जो तुझे पसंद नहीं आया. ” मैंने कहा

निशा - कबीर तू जा यहाँ से

मैं- मैं नहीं जानता तेरा मेरा क्या नाता होगा. पर निशा मैं इस से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता . गाँव वालो ने ओझा बुलाया है . वो आज नहीं तो कल तेरे बारे में मालूम कर ही लेगा. मैं हरगिज नहीं चाहता तुझे कोई भी नुकसान हो .

निशा- एक डायन की इतनी परवाह किसलिए कबीर

मैं- डायन नहीं होती तब भी इतनी ही फ़िक्र होती तेरी.

निशा- मुझे इतना मानता है तो मेरी भी सुनेगा क्या

मैं- तेरी ही तो सुनने आया हूँ.

निशा- तो फिर विशबास कर मुझ पर

मैं- बिसबास है इसीलिए तो तेरे साथ यहाँ पर हूँ

निशा- तो फिर ठीक है कल दोपहर को मैं तेरे गाँव में आउंगी . उस ओझा से मुलाकात करुँगी . अगर उसके इल्जाम साबित हुए कबीर तो इस डायन का वादा है तुझसे ये सूरत फिर न दिखाउंगी तुझे.

मैं- नहीं निशा, तू ऐसा कुछ नहीं करेगी ओझा गाँव की हद , गाँव की हर दिशा को कील रहा है .

निशा बस मुस्कुरा दी . निशा ने कल गाँव में आने का कह दिया था . ओझा के सामने जब वो आयेगी तो क्या होगा ये सोच कर मैं घबरा गया था पर असली घबराहट क्या होती है ये मुझे तब मालूम हुआ जब मैं वनदेव के पत्थर के पास पहुंचा ..... मैंने देखा. मैंने देखा की.................
Ojha bhi lgta hai pahuncha hua hai ek jhalak me hi smjh gya kabir ke or uss narbhakshi ya dayan jo bhi hai uske bich kuch smbandh hai. Ojha kabir ke ke Mann ki baat lena chahta hai. Or
Bhabhi bhi kabir ke Mann ko janna chahti hai. Kabir nisha sundari ke fikr me nisha ji ke paas khincha chala gya. Or haa bhai write sahab nisha ji ko smjhaiye yun aise achanak prakat na
Hua kre bechara kabir ko hrt attack askta hai. Or nisha ji bhi kabir ke bhawnaon me beh kr gaon ane ka bol chuki hai. Kahin nisha ko glt na Ho jaye. Ab kabir ne wandev patthar ke paas kiska dikh liya. Dekhte hai Kya hota hai
 
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#27

गली के बीचो बीच एक सियार खड़ा था जो मुझे देखते ही उच्छल कर चबूतरे पर चढ़ गया और मेरे पास आकर बैठ गया . अपने पंजो को बार बार धरती पर रगड़ कर वो कुछ इशारा सा कर रहा था और फिर वो गली में आगे की तरफ चला गया मैंने लाठी का सहारा लिया और उसके पीछे पीछे हो लिया . जल्दी ही मैं एक बार फिर से गाँव के बाहर उस रस्ते पर था जो जंगल की तरफ जाता था . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था . सियार न जाने कहाँ गायब हो गया था . चलते चलते एक बार फिर मैं उस जगह पर था जहाँ से ये सब शुरू हुआ था .



“कबीर ” अंधेरो में से किसी ने मेरा नाम पुकारा और मैंने तुरंत ही इस आवाज को पहचान लिया .

“निशा , कहा हो तुम ” मैंने जवाब दिया

निशा- तुम्हारे पास ही हूँ.

अचानक से ही वो मेरे सामने आ गयी .

निशा- कैसे हो तुम

मैं- बढ़िया तुम्हे देख कर और बढ़िया

निशा मुस्कुराई .

मैं- ऐसा लग रहा है जैसे मुद्दतो बाद मिले है

निशा- मुद्दतो बाद ही तो मिल रहे है .कोशिश तो थी की पन्द्रह दिन बाद ही मुलाकात होती पर देखो एक बार फिर हम यहाँ है .

मैं- हाँ तो ठीक ही हैं न , मुलाकाते होती रहनी चाहिए न .वैसे तुम्हे परेशानी न हो तो मेरे कुवे पर चले . ठण्ड बहुत है वहां आराम रहेगा.

निशा- क्यों नहीं .

कुवे पर आकर मैंने अलाव जलाया और कमरे का दरवाजा बंद कर लिया .

निशा- ऐसे क्या देख रहा है

मैं- क्यों न देखू ऐसे, इस चेहरे से मेरी नजर हटती ही नहीं

निशा- उफ्फ्फ ये बहाने तारीफों के .

मैं- बता नहीं सकता कितनी शिद्दत से तुमसे मिलना चाहता था .

निशा- ये चाह भी न कमाल ही हैं न एक इन्सान को डायन के दर्शनों की इतनी गहरी अभिलाषा और एक डायन के तस्सवुर में इन्सान का अक्स. हे नियति तेरे खेल निराले.

मैं- एक डायन इन्सान की दोस्त नहीं हो सकती क्या



निशा- हो सकती क्या हो गयी है दोस्त, तभी तो अपने अँधेरे तुमसे बाँट रही है .

मैंने देखा की निशा के चेहरे पर वो नूर नहीं था .

मैं- कुछ थकी थकी सी लगती हो

निशा- उजालो में जाने की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है न

मैं- बताओ कुछ अपने बारे में

निशा- क्या बताऊ मैं वो अँधेरा हूँ जिसका कोई उजाला नहीं

मैं- अंधेरो में जला एक दिया ज़माने भर को रौशनी की नयी दिशा दिखा सकता है .

निशा- मेरे अँधेरे इतने गहरे है की रौशनी ने भी उम्मीद छोड़ दी है . जब से तुमसे मिली हूँ बाते करने लगी हूँ

मैं- तुम बाकि लोगो में घुल-मिल नहीं सकती क्या

निशा- ये इंसानी कौम बड़ी मतलब परस्त होती है कबीर. अपने फायदे के लिए तो ये किसी के आगे भी झुक जाते है और काम होने के बाद मैं कौन तो खामखा. तूने देखा नहीं कैसे लोग पागल है पीर-फकीरों के पीछे मैं पूछती हूँ भला किसलिए .

मैं- सहमत हूँ पर तुम चाहो तो लोगो के मन में जो डायन के प्रति जो सोच है वो बदल सकती हो . तुम उन्हें बता सकती हो की डायन वैसी नहीं जो वो सोचते है . डायन वैसी होती है जो मेरे सामने है

निशा- जैसे हर इन्सान एक जैसा नहीं होता वैसे हर डायन भी सामान नहीं होती . हो सकता है की मैं तुम्हारे प्रति नरम हु बाकि दुनिया के लिए क्रूर .

मैं- मैं जिस डायन को जानता हूँ वो कभी क्रूर नहीं हो सकती ये मेरा मन कहता है

निशा- मन बावरा होता है

उसने मेरे काँधे पर सर रखा और मैंने उसके ऊपर कम्बल डाल दिया . अलाव की अलख चिटकती रही . जब आँख खुली तो मैंने खुद को अकेले पाया. भोर होने में थोड़ी ही देर थी मैं वापिस गाँव के लिए चल दिया. घर पहुंचा तो चाची जाग चुकी थी . मैंने बहाना बनाया की टहलने चला गया था . पर उनकी आँखे बता रही थी की वो सहमत नहीं थी मेरी बात से.

“ये किसके ख्याल है जो अब तुम्हे मालूम भी नहीं होता की कोई आया है ” भाभी ने चाय का कप मेरे पास रखते हुए कहा .

मैं- भाभी कब आई आप

भाभी- वो ही तो हमने पूछा की आहट तक भूल गए हो हमारी तुम

मैं- क्या भाभी आप भी

भाभी- हम सोचते है की चंपा के ब्याह के बाद तुम्हारा नम्बर भी लगा ही दे

मैं- शायद हम इस बारे में बात कर चुके है भाभी

भाभी- बाते तो होती ही रहेंगी तुम बताओ कैसी लड़की पसंद आएगी तुम्हे

मैं- सुबह सुबह क्यों मेरी टांग खींच रही है आप

भाभी- कोई तो होगा ख्याल तुम्हारा अब यूँ ही तो नहीं कोई खोया रहता .

मैं- भाभी सुनना चाहती हो तो सुनो मुझे डायन पसंद है .

मेरी बात सुन कर भाभी के हाथो में जो चाय का कप था वो निचे गिर गया . भाभी की आँखों में दहशत देखि मैंने और मुझे समझ आया की गलती हो गयी है

मैं- मैं मजाक कर रहा था भाभी, मुझे भला किसी को पसंद करने की क्या जरूरत है जब आप हो इस काम के लिए. आप ले आना आपकी ही परछाई कोई

मैंने माहौल को हल्का करने की कोशिश की . तभी पिताजी की आवाज आई तो मैं उनके पास चला गया.

पिताजी- कबीर हम काम के सिलसिले में बाहर जा रहे है आने में कुछ वक्त लगेगा पर इसका मतलब ये मत समझना की तुम्हे छूट रहेगी मनमर्जी की समझ रहे हो न

मैंने हाँ में सर हिलाया.

पिताजी- दूसरी बात चंपा को लेकर मलिकपुर जाना वहां का सुनार हमारा पुराना जानकार है वो जो भी पसंद करे वो गहने बनाने का कहना सुनार को . न जाने कब शेखर बाबु के यहाँ से ब्याह का संदेसा आ जाये गहने बनाने में समय तो लगेगा ही .

मैंने फिर से हाँ में सर हिलाया.

पिताजी- सबसे महत्वपूर्ण बात ये हमारा गाँव है इसका हर परिवार हमारा अपना परिवार है . इसकी सुरक्षा हमारा दायित्व है रात को चोकिदारी टूटनी नहीं चाहिए.

मैं- जी वैसा ही होगा.

दोपहर होते होते पिताजी चले गए . भैया-भाभी के साथ थे मैंने मौका सही समझा और चाची को पकड़ लिया.........
 

brego4

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मैं- क्यों न देखू ऐसे, इस चेहरे से मेरी नजर हटती ही नहीं

निशा- उफ्फ्फ ये बहाने तारीफों के ............. wow dear no one can write romance in simple effective words as you do

nisha ki entry se fir se mausam romantic ho gya ye writer ki hai quality hai ki ek dayan aur insaan ki love story has engrossed all readers and has also arisen immense interest in this story that we are seeing many new users commenting on this magnificent story


Great story in making dear writer, hats off to you
 
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Studxyz

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वाह भाई फौजी एक और ज़बरदस्त धमाकेदार अपडेट निशा डायन जी की एंट्री ने तो कहानी में नया जोश भर दिया और सियार तो निशा डायन जी का डाकिया लगता है

निशा भी कबीर की तरफ आकर्षित हो चुकी है लेकिन अपने भूतकाल का कोई ज़िक्र नहीं करती और ना ही उसने कबीर पर हमला करने वाले का ज़िक्र छेड़ा ?

और ना ही कबीर के ज़ख्मो के बारे में पुछा ?

ये लव स्टोरी तो दोनों तरफ से चालू है लेकिन इसका आगे चल कर असली अंजाम निशा डायन जी से ज़्यादा शायद कबीर को भुगतना पड़ेगा और अभी तो ना जाने निशा का क्या इतिहास निकल कर सामने आता है
 
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