कबीर, निशा के लिए क्या महसूस करने लगा है उससे ना तो निशा अनभिज्ञ है और ना ही कबीर। ये पनपते हुए भाव उसे किस दिशा में ले जा रहें हैं, इसका भी ज्ञान है कबीर को परंतु जो बात मुझे चौंका गई वो थी निशा की बातें। लग तो यही रहा है कि निशा भी कबीर के लिए कुछ और ही महसूस करने लगी है। कुछ ही मुलाकातों का ऐसा असर होना, एक डायन पर चौंकाने वाला है। कुछ न कुछ तो ऐसा है जो कबीर और निशा को जोड़ता है, जिसके तार भूतकाल से जुड़ें हैं। कुछ ऐसा जिसका ज्ञान शायद राय साहब के पास हो...
खैर, कबीर के लिए जल्द ही मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। गांववालों को अपना मानता है वो,चाहे वो लोग कबीर को ही हत्यारा मान रहें हों, परंतु यदि उनका रक्त बहेगा तो पीड़ा कबीर को ही होनी है। यदि निशा इस सबकी सूत्रधार निकली, वो इस बात को स्वीकार नहीं कर रही, पर यदि वो इसके पीछे हुई तो कबीर खुद को एक ऐसे दोराहे पर पाएगा, जहां से चुनाव करना उसके लिए अत्यंत कठिन होने वाला है। निशा को ना चुनना, जहां उसके प्रेम पर हमला होगा, वहीं गांववालों के विरुद्ध जाना उसके कर्तव्य पर प्रहार होगा।
आशा यही है कि निशा इन हत्याओं के पीछे ना हो। पर सवाल ये भी है कि निशा का ओझा से मिलने का औचित्य क्या है? क्या वो और ओझा एक – दूसरे को पहले से ही जानते हैं? क्या ओझा ने कभी पहले भी निशा के प्रकोप से किसी को बचाने का कार्य किया था? पर एक बात स्पष्ट है कि कबीर और निशा के संबंध के विषय में ज़रूर जानता है ये ओझा। गांव की सीमा को कीलने का काम शुरू किया है ओझा ने परंतु लगता है कि निशा को वो नहीं रोक पाएगा।
यदि, इतने आत्मविश्वास के साथ निशा उसके सामने पहुंची है तो बेशक कुछ न कुछ तो चल ही रहा उसके दिमाग में, देखना ये है कि कहीं ये आत्मविश्वास उसपर भारी ना पद जाए। क्या गांववाले भी जान जाएंगे इस घटना के बारे में? कबीर का नाम निशा के संग यदि आता है तब शायद उन सभी ग्राम वासियों का संदेह और भी बढ़ जाएगा, जोकि आगे चलकर मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
चम्पा की बाटोंसे आहत हो हुआ होगा कबीर। कहीं न कहीं इस घटना से ये प्रश्न भी खाद हो गया है कि चम्पा के भाव प्रेम हैं या आकर्षण। बेशक, चम्पा ने वही किया जो उस समय कोई और करता, परंतु प्रेम होता, तो वो चम्पा को अन्य किसी से भी अलग खड़ा कर देता। वो अच्छे से जानती है कबीर को, उसकी सोच को, ऐसे में उसकी बातें... खैर, कबीर ने उसकी कसम उठाकर उसका संदेह शायद दूर कर ही दिया है। इधर अपने बड़े भाई संग ज़ोर आजमाइश में कबीर पर इक्कीस ही साबित हो रहा था उसका बड़ा भाई। क्या केवल कसरत का ही नतीजा है ये या फिर जो दरवाज़े पर मौजूद रक्त से संदेह उपजा था, वो सत्य था...
अब बस देखना ये है कि निशा और ओझा की मुलाकात क्या रंग लाती है, और कबीर का दिल और उसका भाग्य उसे किस ओर के जाते हैं। बहुत ही सुंदर प्रस्तुतियां थीं दोनों ही, चम्पा हो या निशा, दोनों के साथ कबीर के दृश्य बहुत ही खूबसूरत थे।
अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...