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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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कबीर, निशा के लिए क्या महसूस करने लगा है उससे ना तो निशा अनभिज्ञ है और ना ही कबीर। ये पनपते हुए भाव उसे किस दिशा में ले जा रहें हैं, इसका भी ज्ञान है कबीर को परंतु जो बात मुझे चौंका गई वो थी निशा की बातें। लग तो यही रहा है कि निशा भी कबीर के लिए कुछ और ही महसूस करने लगी है। कुछ ही मुलाकातों का ऐसा असर होना, एक डायन पर चौंकाने वाला है। कुछ न कुछ तो ऐसा है जो कबीर और निशा को जोड़ता है, जिसके तार भूतकाल से जुड़ें हैं। कुछ ऐसा जिसका ज्ञान शायद राय साहब के पास हो...

खैर, कबीर के लिए जल्द ही मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। गांववालों को अपना मानता है वो,चाहे वो लोग कबीर को ही हत्यारा मान रहें हों, परंतु यदि उनका रक्त बहेगा तो पीड़ा कबीर को ही होनी है। यदि निशा इस सबकी सूत्रधार निकली, वो इस बात को स्वीकार नहीं कर रही, पर यदि वो इसके पीछे हुई तो कबीर खुद को एक ऐसे दोराहे पर पाएगा, जहां से चुनाव करना उसके लिए अत्यंत कठिन होने वाला है। निशा को ना चुनना, जहां उसके प्रेम पर हमला होगा, वहीं गांववालों के विरुद्ध जाना उसके कर्तव्य पर प्रहार होगा।

आशा यही है कि निशा इन हत्याओं के पीछे ना हो। पर सवाल ये भी है कि निशा का ओझा से मिलने का औचित्य क्या है? क्या वो और ओझा एक – दूसरे को पहले से ही जानते हैं? क्या ओझा ने कभी पहले भी निशा के प्रकोप से किसी को बचाने का कार्य किया था? पर एक बात स्पष्ट है कि कबीर और निशा के संबंध के विषय में ज़रूर जानता है ये ओझा। गांव की सीमा को कीलने का काम शुरू किया है ओझा ने परंतु लगता है कि निशा को वो नहीं रोक पाएगा।

यदि, इतने आत्मविश्वास के साथ निशा उसके सामने पहुंची है तो बेशक कुछ न कुछ तो चल ही रहा उसके दिमाग में, देखना ये है कि कहीं ये आत्मविश्वास उसपर भारी ना पद जाए। क्या गांववाले भी जान जाएंगे इस घटना के बारे में? कबीर का नाम निशा के संग यदि आता है तब शायद उन सभी ग्राम वासियों का संदेह और भी बढ़ जाएगा, जोकि आगे चलकर मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

चम्पा की बाटोंसे आहत हो हुआ होगा कबीर। कहीं न कहीं इस घटना से ये प्रश्न भी खाद हो गया है कि चम्पा के भाव प्रेम हैं या आकर्षण। बेशक, चम्पा ने वही किया जो उस समय कोई और करता, परंतु प्रेम होता, तो वो चम्पा को अन्य किसी से भी अलग खड़ा कर देता। वो अच्छे से जानती है कबीर को, उसकी सोच को, ऐसे में उसकी बातें... खैर, कबीर ने उसकी कसम उठाकर उसका संदेह शायद दूर कर ही दिया है। इधर अपने बड़े भाई संग ज़ोर आजमाइश में कबीर पर इक्कीस ही साबित हो रहा था उसका बड़ा भाई। क्या केवल कसरत का ही नतीजा है ये या फिर जो दरवाज़े पर मौजूद रक्त से संदेह उपजा था, वो सत्य था...

अब बस देखना ये है कि निशा और ओझा की मुलाकात क्या रंग लाती है, और कबीर का दिल और उसका भाग्य उसे किस ओर के जाते हैं। बहुत ही सुंदर प्रस्तुतियां थीं दोनों ही, चम्पा हो या निशा, दोनों के साथ कबीर के दृश्य बहुत ही खूबसूरत थे।

अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
कबीर और निशा के बारे मे मैं अगले भाग के बाद ही कुछ कहूँगा. जब जब कोई हत्या होगी कबीर और डायन के रिश्ते की आजमाइश होगी
 

HalfbludPrince

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गांव में हो रही हत्याओ के समय कबीर का वहा होना सभी गांव वालो के लिए संदिग्ध बना हुआ है इसी बात को जानने के लिए चंपा कबीर का पीछा करती है उसे भी कबीर पर शक है लेकिन कबीर कसम देकर विश्वास दिलाता है की उसका कोई हाथ नहीं है कबीर को भी कहीं न कहीं लगता है की डायन निशा का हत्याओं से वास्ता है, ये अलग बात है कि उसने इस बात को कबूल नहीं किया और खुद ओझा से मिलने की बात कही। अपनी बात को साबित करते हुए वो ओझा से मिलने आ भी गई, जिसे देख ओझा साहब के चेहरे का रंग उड़ा हुआ नजर आया। अब देखते हैं कि आगे उसके और ओझा के बीच क्या होता है
उम्मीद है कि अगला भाग रोमांचित करेगा आपको
 

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#21

सर्दी की उस दोपहर में सूरज का ताप जैसे थम ही गया था . मैं एक नजर निशा और दूसरी नजर ओझा को देखता .

निशा- ओझा, किस बात की देर है अब शिकारी भी है शिकार भी है . मौका भी है दस्तूर भी है जिसके दर्शन की चाह थी तुझे तेरे सामने है . तड़प रही हूँ मैं तेरी उन सिद्धियों के ताप में पिघलने के लिए . अब देर न कर. मैं बड़ी हसरत लेकर आई हु तेरे स्थान से अगर मैं खाली गयी तो फिर तेरी ही रुसवाई होगी.

कुछ पलो के लिए अजब सी कशमकश रही और फिर वो हुआ जिसकी मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी .

ओझा ने अपने कदम आगे बढ़ाये और अपना सर निशा के कदमो में झुका दिया .

“मुझसे भूल हुई ” ओझा ने हाथ जोड़ कर कहा

मैं ये देख कर हैरान रह गयी .

निशा-ये धूर्तता का धंधा जो तुम जैसो ने खोल रखा है . भोले इंसानों की श्रधा का सौदा करते हो तुम लोग. आस्था जैसी पवित्र भावना को चंद सिक्को , अपनी ठाठ-बाठ के लिए तुम लोग इस्तेमाल करते हो . दो चार झूठे मूठे मन्त्र सीख कर तुम लोग जो करते हो न उसे पाप कहते है ओझा. मैं चाहूँ तो इसी वक्त गाँव वालो के सामने तेरा ऐसा जलूस निकालू तेरा की तेरी सात पीढ़िया तंत्र के नाम से कांपे . ये लोग तुझे यहाँ लाये क्योंकि इनको विश्वास था और विश्वास घात करने वाला तू, रात होते होते अपनी इस दूकान को बंद करके तू नो दो ग्यारह नहीं हुआ न तो मैं फिर आउंगी और ऐसा हुआ तो अगले दिन का सूरज तेरे भाग्य में नहीं होगा.

“चल कबीर यहाँ से ” निशा ने कहा और हम वहां से आ गये.

मैं- मुझे तो मालूम ही नहीं था की ये ठग है .

निशा- छोड़ उस बात को अब बता

मैं- मैं क्या बताऊ सरकार .समझ ही नहीं आ रहा की क्या कहूँ

निशा- तेरे गाँव आई हूँ . तेरी मेहमान हूँ.

मैं- बता फिर कैसे मेहमान नवाजी करू सरकार तेरी .

निशा-दिखा मुझे तेरा गाँव , दिखा यहाँ की रोनके

मैं- सच में तेरी ये इच्छा है

निशा- तुझे क्या लगता है

निशा को दिन दिहाड़े साथ लेकर घूमना थोडा मुश्किल क्या पूरा ही मुश्किल था मेरे लिए. गाँव वालो ने हमें साथ देख ही लेना था . परेशानी खड़ी हो जानी थी मेरे लिए .

निशा- क्या हुआ किस सोच में डूब गए कोई परेशानी है क्या .

मैं- नहीं बिलकुल नहीं. साइकिल पर बैठेगी मेरी

निशा- आगे बैठूंगी

उसने जिस दिलकश अंदाज से जो कहा कसम से उसी लम्हे में मैं अपना दिल हार गया था . लहराती हुई हवाओ ने अपनी बाहें खोल दी थी हमारे लिए. निशा की लहराती जुल्फे मेरे गालो को चूम रही थी . बढ़ी शोखियो से साइकिल के हैंडल को थामे वो बस उस लम्हे को जी रही थी . जब उसका जी करता वो साइकिल की घंटी को जोर जोर से बजाती . उसके चेहरे पर जो ख़ुशी थी मेरे दिल को मालूम हुआ की करार क्या होता है. गाँव के आदमी औरते हमें देखते पर अब किसे परवाह थी .



गाँव की कुछ खास जगह जैसे की जोहड़. डाक खाना और हमारा मंदिर उसे दिखाया . वापसी में हम हलवाई की दूकान के पास से गुजरे मैंने उस से जलेबी चखने को कहा पर उसने मना किया . फिर हम गाँव की उस हद तक आ पहुंचे जहाँ से हमारे रस्ते अलग होते थे . उसने मेरे काँधे पर हाथ रखा और बोली- कबीर, कसम से आज बहुत अच्छा लगा मुझे .

मैं- तेरा जब दिल करे तू आ जाया कर

निशा- नहीं कबीर ये मुमकिन नहीं है ये उजाले मेरे लिए नहीं है

मैं- तो फिर ये राते तो अपनी है न तू बस इशारा कर मुझे ये गाँव रातो को भी बड़ा खूबसूरत लगता है .

निश मेरी बात सुन कर मुस्कुरा पड़ी .

वो- अभी जाना होगा मुझे

मैं- तालाब तक चलू मैं

निशा- नहीं . तुझे याद है ना अब पन्द्रह दिन मैं तुझसे हरगिज नहीं मिलूंगी तू अपना वादा याद रखना

मैं- ये पन्द्रह दिन कितनी सालो से बीतेंगे मेरे लिए

निशा- इतनी भी आदत मत डाल कबीर. एक बात हमेशा याद रखना तेरे मेरे बीच वो दिवार है जो कभी नहीं टूट पायेगी. मैं चलती हूँ अब तू भी जा

दिल चाहता था की दौड़ कर मैं उसे अपने आगोश में भर लू और फिर कभी खुद से दूर नहीं जाने दू पर ये मुमकिन नहीं था तो मैंने भी साइकिल गाँव की तरफ मोड़ दी और घर पहुँच गया . न जाने क्यों सब कुछ महका महका सा लग रहा था . मैंने अपना रेडियो चालू किया और छज्जे पर रख कर आवाज कुछ ऊंची कर दी.

ढलती शाम में शाम में किशोर के नगमे सुनना उस वक्त मेरे लिए सब से सुख था . खुमारी में हमे तो ये मालूम भी न हुआ की कब भाभी सीढियों पर खड़ी हमें देख कर ही मुस्कुरा रही थी .

“ये जानते हुए भी की राय साहब घर पर है बरखुरदार इतनी ऊँची आवाज में रेडियो बजा रहे हो . ” भाभी ने मेरे पास आते हुए कहा .

मैं- हमको क्या डर है राय साहब का . अपनी मर्जी के मालिक है हम भाभी

भाभी- अच्छा जी ,हमें तो मालूम ही नहीं था ये वैसे आज से पहले ये हुआ नहीं कभी .

मैं- दिल किया भाभी कभी कभी दिल की भी सुननी चाहिए न

भाभी- दिल की इतनी शिद्दत से भी न सुनो देवर जी की पूरा गाँव ही गवाह हो जाये.



भाभी की ये बात सुन कर मेरे होंठो की मुस्कान गायब हो गयी .

भाभी- हमारे देवर की शिद्दत को पुरे गाँव ने महसूस किया है आज . जब हमें मालूम हुआ है तो फिर किसी से छुपा तो रहा नहीं न कुंवर जी . वो वजह जिसके लिए हमारा देवर रातो को गायब रहता था आज मालूम हो ही गया . तो अब बिना देर किये बता भी दो क्या नाम है उस बला का जिसने हमारे देवर की नींद चुराई हुई है .

मैं- ऐसा कुछ भी नहीं है भाभी , वो लड़की को मुसाफिर थी राह पूछ रही थी मैंने बस उसकी मदद की थी उसे मंजिल पर पहुँचाने में .

भाभी- उफ्फ्फ ये बहाने. चलो कोई नहीं मत बताओ पर इतना ध्यान रखना ये जो भी है दिल्ल्ल्गी ही रहे. आशिकी से आगे मत बढ़ना . मोहब्बते रास नहीं आती इस ज़माने को उस रस्ते पर चलने की सोचना भी मत . सोचना भी मत .

मैं- मैंने कहा न भाभी ऐसा वैसा कुछ भी नहीं है .

मैं सीढियों से उतरा ही था की तभी किसी ने खींच कर मुक्का मारा मुझे और मेरा संतुलन बिगड़ गया . .................


 

Studxyz

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ग़ज़ब का अपडेट ग़ज़ब की कहानी ग़ज़ब की निशा डायन जी और ये भोसड़ी का ग़ज़ब का मुक्का ये राय साहब या फिर भाई ने मारा होगा और ये ग़ज़ब तरीके से अपडेट खत्म :vhappy:

जैसा उम्मीद थी निशा ने तो ओझा की गांड बंद कर के पैक उप करवा दिया उसका लेकिन कबीर को अभी ज़माने से और मुक्के वाले घर वालों से भी लड़ना होगा
 
Last edited:

Ajju Landwalia

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Shandar update Fauzi Bhai,

Nisha ne Ojha ki sari pol khol di, dhurt bhag jayega ab..........

Leking gaanv walo par ho rahe hamlo ka jimmewar kaun he, ye abhi bhi pata nahi chala???

Nisha ke saath bitaye ye pal, Kabir ki zindagi me ek naya adhyay likhenge......

Mukka jarur Champa ne mara hoga.......

Waiting for the next update
 

brego4

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मैं- मैं क्या बताऊ सरकार .समझ ही नहीं आ रहा की क्या कहूँ

निशा- तेरे गाँव आई हूँ . तेरी मेहमान हूँ.

मैं- बता फिर कैसे मेहमान नवाजी करू सरकार तेरी .

निशा-दिखा मुझे तेरा गाँव , दिखा यहाँ की रोनके.....
super natural writing from heart, ojha ka haal dekh kar to kabir bhi stunned hai ki ab kya bole :lotpot:

Kabir ne to hud kar di share aam publically romance chaloo aur nisha to waise hi be-khoff dayan hai aur wo be kabir se jaise pyar karne lagi hai

In sum this story is wholesome entertainer with romance, erotica, suspense and horror as well, specially in explaining romance manish bhai you are the best
 
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