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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Lutgaya

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मिलों कभी फिर डायन से
हमारी तो पढकर ही फटी पडी है , खून भी वहीं से भरा है बोतल में 🍑🍉
 

Naik

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#19

मैं- नियति शायद यही चाहती थी .

मैने भी डायन के जैसे बात नियति पर डाल दी.

ओझा मेरी बात सुनकर मुस्कुरा पड़ा.

ओझा- सही कहा तुमने नियति पर इतने लोगो पर संकट है कुछ मारे गए कुछ मारे जायेंगे. क्या तब भी तुम नियति का ही बहाना लोगे.

मैं- इन्ही गाँव वालो ने दो मासूमो को फांसी से लटका दिया सिर्फ इस कसूर के लिए की वो प्रेम कर बैठे थे . उनकी नियति क्या फांसी थी .

ओझा- तो क्या इसी कुंठा के कारण तुम उसका साथ दे रहे हो.

मैं- मैं किसी का साथी नहीं हूँ, गाँव में हुई प्रत्येक मौत का दुःख है मुझे . और फिर ये मेरा काम नहीं है गाँव वालो ने समाधान के लिए आपको बुलाया है आप उपाय करो .

ओझा- जितना मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा. पर मेरा प्रश्न अब भी यही है की उसने तुम्हे क्यों छोड़ दिया.

मैं-जब उस से मिलो तो पूछ लेना महराज.

ओझा के यहाँ से मैं आ तो गया था पर मेरे मन में बेचैनी थी . मन कही लग ही नहीं रहा था . मैं जानता था की ओझा देर सवेर उसे तलास कर ही लेगा. दिल के किसी कोने में निशा को लेकर फ़िक्र सी होने लगी थी . दूसरी तरफ आस-पास के गाँवो के लोग भी आज आने वाले थे . सामूहिक बैठक करने ताकि इस मुसीबत का कोई हल निकाला जाये.



निशा से मिलना बहुत जरुरी था पर घर से बाहर कैसे जाऊ मैं ये समस्या भी मेरे लिए तैयार खड़ी थी .

“क्या बात है देवर जी कुछ परेशां से लगते हो ” भाभी ने पूछा मुझसे

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं भाभी

भाभी- तो फिर चेहरे पर ये उदासी क्यों

मैं- मुझे आपकी आज्ञा चाहिए

भाभी- किसलिए

मैं- मुझे थोड़ी देर के लिए जाना है कही रात को , वादा करता हूँ जल्दी ही वापिस आ जाऊंगा.

भाभी- ये मेरे हाथ में नहीं है पिताजी ने तुम पर बंदिश लगाई है , उनके हुकुम की तामिल न हुई तो फिर तुम जानते ही हो

मैं- भाभी, मेरा जाना जरुरी है .

भाभी- गाँव का माहौल इतना तनावपूर्ण है तुम्हे अब भी बाहर घुमने की पड़ी है . घर में किसी को भी मालूम होगा तो फिर डांट मुझे ही पड़ेगी वैसे ही लोग कहते है की मेरे लाड ने बिगाड़ दिया है तुम्हे.

मैं-ठीक है भाभी मैं नहीं जाता

भाभी- तुम तो नाराज हो गए. सुनो रात को पिताजी और तुम्हारे भैया जब ओझा के पास जायेंगे तो तुम निकल जाना पर समय से वापिस आ जाना पर तुम वादा करो तुम जिस से भी मिलते हो जो भी करते हो उस से परिवार की प्रतिस्ठा पर कोई आंच नहीं आएगी

मैं- मुझे ख्याल है परिवार का भाभी .



पर ये रात भी मेरी परीक्षा लेने वाली थी आज क्योंकि पिताजी अकेले ही गए ओझा के पास भैया घर पर ही रह गए थे . खैर, मैंने बहुत इंतजार के बाद ये सुनिश्चित कर लिया की सब लोग गहरी नींद में है तो मैं घर से निकल गया और गाँव को पार करके अपनी मंजिल की तरफ दौड़ गया.



एक बार फिर से वो तालाब और काली मंदिर मेरी आँखों के सामने थे . कड़ाके की ठण्ड में भी मेरा गला खुश्क था . मैं तालाब से पानी पी ही रहा था की अचानक से पानी में से एक साया ऊपर उठ कर सामने आ गया .

“कबीर ” बोली वो

कसम से मेरा दिल को दौरा ही आ गया था . जिस तरह से वो सामने आई थी मेरी नसे फट ही जाती .

“जान ही लेनी है तो सीधा ही ले लो न ऐसे डराने की क्या जरूरत थी ” मैंने हाँफते हुए कहा .

निशा-मैं तो नहा रही थी मुझे क्या मालूम था तुम ऐसे आ निकलोगे

मैं- मुझे तो आना ही तुमसे मिलने

निशा- आओ फिर

निशा तालाब की दिवार पर ही बैठ गयी . मैं भी उसके पास गया .

मैं- ठण्ड में पानी में जाने की क्या जरुरत थी तुम्हे

वो- मुझे फर्क नहीं पड़ता

मैं- फिर भी ,

निशा- ठीक है अपना कम्बल दे दो मुझे , राहत के लिए

मैंने अपना कम्बल उसे ओढा दिया .

निशा- इतनी बेचैनी क्यों मुझसे मिलने के लिए

मैं- कुछ सवालो ने मुझे पागल किया हुआ हैं

निशा- मेरे पास कोई जवाब नहीं तेरे सवालो का

मैं- दुनिया कहती है की ये तमाम क़त्ल डायन कर रही है .

निशा- कुछ तो लोग कहेंगे.

मैं- वो एक छोटा सा बच्चा था . अपने हाथो से दफनाया मैंने उसे .

निशा खामोश रही .

मैं- निशा, मैं जानता हूँ तू अलग है . मैं नहीं जानता की डायन कैसी होती है वैसी जो दुनिया मानती है या फिर वैसी जो मेरे साथ बैठी है. तूने मुझे कुछ नहीं किया . दो मुलाकातों में अपनी सी लगी मुझे . तेरे साथ उस सुनहरी आंच को तापना . तेरे साथ इस बियाबान में होना ये लम्हे बहुत खास है . पर गाँव में होती मौतों को भी नहीं झुठला सकता मैं . तू भी बता मैं क्या करू

निशा- कुछ मत कर. कुछ मत कह कबीर.

मैं- वो मौते कैसे रुकेंगी निशा. जब एक आदमी मरता है तो वो अकेला नहीं मरता उसके साथ उसका परिवार जो उस पर आश्रित होता है वो भी मरता है हर रोज मरता है .

निशा- तेरे मन की बात समझती हूँ मैं

मैं- निशा, तू चाहे तो तू मेरा रक्त पी ले. तू जब भी चाहे मैं हाज़िर हो जाऊंगा. तेरी प्यास तू मेरे रक्त से बुझा पर गाँव वालो का अहित मत कर.

मैंने अपनी जेब से उस्तरा निकाला और अपनी हथेली काट कर निशा के सामने कर दी.

रक्त की धारा को देख कर निशा की आँखों में आई चमक को मैंने अन्दर तक महसूस किया पर बस एक लम्हे के लिए .

“कबीर, पागल हुआ है क्या तू ” निशा ने तुरंत अपनी ओढनी के किनारे को फाड़ा और मेरी हथेली पर बाँध दिया .

“क्या हुआ निशा, मेरा खून उतना मीठा नहीं क्या जो तुझे पसंद नहीं आया. ” मैंने कहा

निशा - कबीर तू जा यहाँ से

मैं- मैं नहीं जानता तेरा मेरा क्या नाता होगा. पर निशा मैं इस से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता . गाँव वालो ने ओझा बुलाया है . वो आज नहीं तो कल तेरे बारे में मालूम कर ही लेगा. मैं हरगिज नहीं चाहता तुझे कोई भी नुकसान हो .

निशा- एक डायन की इतनी परवाह किसलिए कबीर

मैं- डायन नहीं होती तब भी इतनी ही फ़िक्र होती तेरी.

निशा- मुझे इतना मानता है तो मेरी भी सुनेगा क्या

मैं- तेरी ही तो सुनने आया हूँ.

निशा- तो फिर विशबास कर मुझ पर

मैं- बिसबास है इसीलिए तो तेरे साथ यहाँ पर हूँ

निशा- तो फिर ठीक है कल दोपहर को मैं तेरे गाँव में आउंगी . उस ओझा से मुलाकात करुँगी . अगर उसके इल्जाम साबित हुए कबीर तो इस डायन का वादा है तुझसे ये सूरत फिर न दिखाउंगी तुझे.

मैं- नहीं निशा, तू ऐसा कुछ नहीं करेगी ओझा गाँव की हद , गाँव की हर दिशा को कील रहा है .

निशा बस मुस्कुरा दी . निशा ने कल गाँव में आने का कह दिया था . ओझा के सामने जब वो आयेगी तो क्या होगा ये सोच कर मैं घबरा गया था पर असली घबराहट क्या होती है ये मुझे तब मालूम हुआ जब मैं वनदेव के पत्थर के पास पहुंचा ..... मैंने देखा. मैंने देखा की.................
Kbir bhai sahab ki hawa nikal gayi kaleja muh ko aa gaya jan Nisha achanak se paani k ander se nikli yeh scene bahot hi zaberdast tha
Baherhal dekhte h jab Nisha sabke samne aayegi tab kia hota h lekin usse pehle ban dev k patther k paas kia dekh lia
Bahot behtareen shaandaar update bhai
 

brego4

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निशा का क्या प्रयोजन हो सकता है ओझा से मिलने का ये मैं काफि देर तक सोचता रहा. अब मैं सोचता हूं कि कहानी मे प्रेम किस तरह लाया जाए

Prem has already blossomed in kabir for nisha bas ab nisha ki feelings nahi pata

more challenging for writer would be how to covnicingly show love between dayan and human so that villagers are not up in arms and do not try to harm kabir
 

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
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धम्म से मैं बेंच से निचे गिर पड़ा था . खुमारी आँखों में चढ़ी थी जेहन में वो ही सपना था . उठ कर कपड़ो को झाड़ते हुए मैंने आस पास देखा . चाय की दुकान पर अकेला चाय वाला बैठा था , इक्का-दुक्की कुली थे और मैं. जैकेट की जेब में हाथ घुसाए मैं स्टेशन की उस बड़ी सी घडी में समय देखने गया मालूम हुआ की रेल आने में थोडा समय और था . मैंने थोडा पानी पिया और सर्दी में ऊपर से पानी पीते ही निचे से मूत का जोर हो गया .

पेशाबघर में मूतते हुए मैंने अपने लिंग को देखा जो उसी तरह सुजा हुआ था . ये एक और अजीब समस्या हो गयी थी जिसे किसी को बता न सके और छुपा भी न सके. वो मादरचोद क्या जानवर था जिसने अपना जहर इधर ही उतार दिया था .पूरा शरीर एकदम सही था पर एक ये अंग ही साला परेशां किये हुए था .

मैं वापिस से उसी बेंच पर जाकर बैठ गया और रेल का इंतजार करने लगा. सर्दी की रात भी साली इतनी लम्बी हो जाती है की क्या ही कहे. खैर जब रेल आई तो मैं डिब्बो की तरफ भागा और जल्दी ही मैंने पिताजी को उतरते देखा.

आँखों पर सुनहरी ऐनक लगाये. चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछे . लम्बा शरीर . गले तक का बंद कोट पहने राय बहादुर विशम्बर दयाल जंच रहे थे . मैं दौड़ कर उनके पास गया और चरणों को हाथ लगाया. संदूक उठा लिया मैंने .

जल्दी ही हम लोग गाँव के रस्ते में थे , पिताजी हमेशा की तरह खामोश थे . बस बीच बीच में हाँ-हूँ कर देते थे मेरी बातो पर . एक बार फिर हम उसी रस्ते से गुजरे जहाँ पर हमें हरिया मिला था . न जाने क्यों मेरे बदन में सिरहन सी दौड़ गयी और मैंने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी. वापिस आते आते रात आधी बीत गयी थी . पिताजी ने सबसे दुआ सलाम की और अपने कमरे में चले गए.

भाभी- खाना खाकर तुम भी आराम करो

मैं- बाकि सब लोग का खाना हुआ .

भाभी- तुम्हारे भैया अभी तक लौटे नहीं है और चाची खेतो पर गयी है .

मैं- क्या , किसके साथ

भाभी- अकेली.

मैं- पर क्यों . मजदूरो को भेज देती खुद अकेली वहां जाने की क्या जरुरत थी

भाभी- अरे इतनी फ़िक्र मत करो. तुम्हे क्या लगता है की मैं उन्हें अकेले जाने देती , चंपा साथ गयी है उनके . मैं तो बस देख रही थी की तुम्हे परिवार की चिंता है भी या बस यूँ ही करते फिरते हो .

मैं- भाभी, आज के बाद ऐसा मत कहना परिवार है तो मैं हूँ .

भाभी- अच्छा बाबा. अब कहो तो खाना परोस दू या फिर सोने ही जाना है

मैं- नहीं, मैं खेतो पर जा रहा हूँ . वहां उनको मेरी जरूरत पड़ेगी. सुबह अगर पिताजी को मालूम हुआ की वो दोनों अकेली थी तो सबसे पहले मेरी खाल ही उधेद्नी है उनको.

मैंने तुरंत साइकिल उठाई और अपना रास्ता पकड़ लिया. गुनगुनाते हुए मैं तेजी से खेतो की तरफ जा रहा था . लगता था की मुझे छोड़ कर पूरा जहाँ ही सोया हुआ था और होता भी क्यों न रात आधी से ज्यादा जो बीत गयी थी . कुछ दूर बाद बस्ती पीछे रह गयी , पथरीली कच्ची सड़क ही मेरी साथी थी पर इस घने अँधेरे में मुझसे एक गलती हो गयी थी मैं बैटरी लाना भूल गया था . वैसे तो कोई खास बात नहीं थी बस अचानक से कोई नीलगाय या जंगली सूअर सामने आ गया तो चोट लगने का खतरा था .

खैर मैं कुवे पर पहुंचा तो देखा पानी अपनी लाइन से खेत की प्यासबुझा रहा था पर चंपा और चाची दोनों नहीं थी .

“शायद कमर सीढ़ी कर रही होंगी, एक बार बता देता हूँ की मैं आ गया हूँ अगर सोयी भी होंगी तो सोने दूंगा .मैं ही लगा दूंगा पानी ” अपने आप से कहते हुए मैं कमरे के पास पंहुचा ही था की अन्दर से आती हंसी सुन कर मेरे कान चोकन्ना हो गए. इतनी रात को क्या हंसी-ठिठोली हो रही है . मैंने दरवाजा खडकाने की जगह पल्ले की झिर्री से अन्दर देखा और देखता ही रह गया .

कमरे में जलते लट्टू की पीली रौशनी में क्या गजब नजारा था चाची अपनी गदराई जांघो को खोले पड़ी थी और पूर्ण रूप से नग्न चंपा ने अपना मुह चाची की जांघो के बीच दिया हुआ था . चाची के चेहरे को मैं देख नहीं पा रहा था क्योंकि चंपा का बदन उसके ऊपर था .

पर जो चीज मैं देख पा रहा था वो भी बड़ी गजब थी . चंपा ने चुतड ऊपर को उठे हुए थे जिस से की काले बालो के बीच घिरी उसकी हलकी गुलाबी चूत मुझे अपना जलवा दिखा रही थी वो भी पूरी उत्तेजित थी क्योंकि चंपा की चूत के बाल लिस्लिसे द्रव में सने हुए थे.

“आह , धीरे कुतिया . इतना जोर से क्यों काटती है ” चाची ने चंपा को गाली दी .

चंपा- इसी में तो मजा है मेरी प्यारी .

सामने चंपा की खूबसूरत चूत होने के बावजूद मेरे मन का चोर चाची की चूत भी देखना चाहता था पर अभी उसे देखना किस्मत में नहीं था शायद.

“चंपा कहती तो सही ही है की एक बार लेकर तो देखूं उसकी ” मैंने उसके हुस्न से प्रभावित होकर मन ही मन कहा .

मेरा हाथ मेर लिंग पर चला गया जो की की फूल कर कुप्पा हो गया था . मैंने पेंट खोल कर उसे ताजी हवा का अहसास करवाया . अन्दर का बेहंद गर्म नजारा देख कर मैं बाहर की ठण्ड भूल गया था तभी चाची ने अपने पैरो में चंपा की गर्दन जकड ली और अपने कुल्हे ऊपर उठा लिए. कुछ पल बाद वो धम्म से निचे गिरी और लम्बी- लम्बी सांसे भरने लगी.

चंपा भी उठ पर चाची के पास बैठ गयी . मैंने चंपा के उन्नत उभारो को देखा जो पर्वतो की चोटियों जैसे तने हुए थे.

“”मजा आया मेरी प्यारी चंपा ने चाची से कहा

चाची- एक तू ही तो मेरा सहारा है चंपा.

चंपा- चाची तू इतनी मस्त औरत है तेरी प्यास मेरी उंगलिया और जीभ नहीं बुझा सकती तुझे तगड़े लंड की जरुरत है जो दिन रात तेरी भोसड़ी में घुसा रहे.

चाची- तुझे तो सब पता ही है चंपा. जो चल रहा है ये भी ठीक ही है,मेरी छोड़ तू बता कुंवर संग तेरा प्यार आगे बढ़ा क्या .

चंपा- कहाँ प्यारी, उसके सामने तो घाघरा खोल दू तब भी वो मेरी नहीं लेगा. कितनी ही कोशिश की है मैंने पर क्या मजाल जो वो मेरी तरफ देखे. कहता है मंगू की बहन है इसलिए नहीं करेगा.तू ही बता मंगू की बहन हूँ तो क्या चुदु नहीं . गाँव के लोंडे आगे पीछे है मेरे पर मेरी भी जिद है चुदना तो उस से ही है वर्ना भाग्य में जो है उसको तो देनी ही हैं.

चाची- वो अनोखा है .

चंपा- सो तो है .

चाची- एक बार पाने को देख आते है फिर तेरी भी आग बुझती हूँ


वो दोनों कपडे पहनने लगी. मैं वहां से हट गया और साइकिल लेकर वापिस मुड गया क्योंकि मैं उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहता था पर अब घर जा नहीं सकते , यहाँ रुक नहीं सकते रात बाकी तो जाये तो कहाँ जाये. और तभी मैंने कुछ सोचा और साइकिल को पथरीली सड़क पर मोड़ दिया.... दो मोड़ मुड़ने के बाद मैंने कच्ची सड़क ले ली थोड़ी ही दूर गया था की तभी अचानक से मैंने अपने सामने .........................
अद्भुत, ये अंश चंपा और चाची के नाम, एक अलग ही दृश्य देखने को मिला इस अंश मे, चंपा और चाची के बीच का शरीरिक रिश्ता...
हालांकी हलचल तो कुंवर के पतलून मे भी होने लगी थी, पर बंदा था एकदम सख्त...
वो बोलते है न की, "झुकेगा नही साला ! "
एक ओर जहाँ कुंवर अपने पतलून मे छुपे दो गोटे बाले बंदूक को लेकर परेशान है... की उसके नोजल मे किस कीड़े ने अपना ज़हर रिस दिया....
वहीँ दूसरी तरफ आज, जनाब के पिता श्री भी देखने को मिले....
अब देखते है की कहानी मे राय बहादुर विषम्बर दयाल जी का क्या योगदान रहता है....

बाकी, अंश शानदार था...
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#20



मैंने देखा की वनदेव के पत्थर के पास चंपा बैठी थी. उन्हें वहां देख कर मेरा दिल धक से रह गया . हम दोनों की नजरे मिली.

मैं- चंपा. पागल हुई है क्या तू, इतनी रात को जंगल में अकेले क्या करने आई तू.

चंपा- तू भी तो अकेला ही आया न .

मैं- मेरी बात और है . मुझे कुछ काम था .

चंपा- मुझे भी कुछ काम था कबीर

मैंने देखा की चंपा की आँखे मुझ पर जमी हुई थी वो बहुत गौर से मेरा विश्लेषण कर रही थी .

मैं- किसी को मालूम हुआ की तू ऐसे जंगल में है कोई क्या सोचेगा.

चंपा- मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कबीर.

मेरे मन का चोर समझ रहा था की चंपा ने कही मुझे निशा संग न देख लिया हो . दूसरा उसकी जंगल में उपस्तिथि से मैं घबरा गया था . यहाँ उसे कुछ हो जाता तो ये सोच कर ही मैं कांप उठा था .

मैं- तो अब क्या

चंपा- तू ही बता अब क्या

मैं- मैं क्या बताऊ घर चलते है और क्या

चंपा -कबीर तू कुछ ऐसा वैसा तो नहीं कर रहा है न

मैं- तुझे ऐसा क्यों लगता है चंपा

चंपा- गाँव में एक घटना और हुई है इस रात चक्की वाले चंदर पर हमला हुआ , उसकी किस्मत बढ़िया थी जो वो बच गया पर कातिल उसके घोड़े को मार गया .

मैं- गलत हुआ ये . पर जब तुझे मालूम है की राते सुरक्षित नहीं है तो तू क्यों जंगल तक आई .

चंपा- मैं तेरा पीछा करते हुए आई कबीर.

मेरा माथा घूम गया .

मैं- मेरा पीछा पर क्यों चंपा

चंपा- क्योकि जब वो हमलावर चक्की से भागा तो हल्ला हो गया मैंने तुझे जाते हुए देखा और तेरा पीछा करते करते यहाँ तक आ गयी .

मैं- तो तू शक कर रही है मुझ पर

चंपा- मेरी आँखे कुछ कह रही है दिल कुछ और कह रहा है . तुझ पर शक करना खुद पर शक करने जैसा है पर आँखों ने जो देखा वो झुठला भी तो नहीं सकती न मैं और फिर जब जब ये घटनाये हुई है तुम्हारा वहां होना संयोग तो नहीं न . कबीर तू मेरी कसम खा , मुझे विश्वास दिला तेरा इन सब से कुछ लेना देना नहीं है.

मैं चंपा के पास गया और बोला- मैं तुझे कैसे यकीन दिलाऊ चंपा. बचपन से तू जानती है मुझे . मैंने आजतक एक चींटी को भी नहीं दुःख दिया. तू ही बता मैं क्या करू जिस से तुझे यकीन हो जाये.

चंपा- तो फिर तू अकेला जंगल में क्या कर रहा था .

मैं- उस वजह को तलाश रहा था जिसने हरिया और उन सब को मारा.

चंपा- मुझे कुछ समझ नही आ रहा .

मैं- घर चल पहले. फिर तू चाहे कितने ही सवाल कर लेना . पर मैं फिर कहूँगा की मैं बेकसूर हूँ , आज बेशक सबूत नहीं है मेरे पास पर एक दिन उस कातिल को घसीट कर गाँव वालो के सामने जरुर लेकर आऊंगा.

न चाहते हुए भी मैंने चंपा की आँखों में अविश्वास ही देखा . रस्ते भर वो डरी सी रही उसे लगा होगा की मैं कही उस पर हमला ना कर दू.



मेरी दूसरी चिंता थी की कोई गाँव वाला एक जवान लड़की को मेरे साथ इतनी रात को देखता तो लांछन लगता ही लगता तो पूरी सावधानी से मैंने उसे छोड़ा और फिर सोने चला गया. मैं चाह कर भी चंपा को दोष नहीं दे सकता था उसकी जगह कोई और होता तो वो भी ये ही समझता .



सुबह थोड़ी देर से उठा तो देखा की चंपा रसोई में थी .

मैं- तू रसोई में भाभी , चाची कहाँ है

चंपा-मंदिर गयी है

मैं- तू अभी तक रात वाली बात पर ही अटकी है क्या

चंपा- पूरी रात नींद नहीं आई मुझे .

मैंने चंपा की कमर में हाथ डाला और उसे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में ये पहली बार था जब मैंने उसके साथ ऐसी हरकत की थी . मैंने अपना हाथ उसके सर पर रखा और बोला- मैं तेरे सर की कसम खाकर कहता हूँ चंपा, मैं निर्दोष हूँ . तेरी मेरी दोस्ती की कसम खाकर कहता हूँ मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिस से तेरी नजरो में गिर जाऊ.

मैंने उसके माथे को चूमा और रसोई से बाहर निकल गया. आँगन में भैया मुगदर फिरा रहे थे.

मैं- इतनी मेहनत सुबह सुबह भैया

भैया- कई दिन हो गए थे . तू भी तो न जाने कहाँ भागता फिरता है

मैं- आओ फिर दो दो हाथ करते है बहुत दिन हुए मेरा बदन भी टुटा टुटा सा है

भैया- तो देर किस बात की चल अखाड़े में

मैं भैया की पीठ पर बैठ गया और हम दोनों अखाड़े में आ गए.

“मजा नहीं आ रहा है लगता है तेरा जोर कम हो गया है ” भैया ने मुझे पटखनी देते हुए कहा .

मैं- थोड़ी देर तो बड़े भाई का लिहाज करना ही है एक दम से हरा दिया तो फिर दिन भर ये कहते फिरोगे की छोटे भाई से तो हारना ही था न

भैया- अच्छा बच्चू आ फिर अबकी बार.

भैया ने फिर से मुझे उठा कर मिटटी में फेंक दिया. इस बार मुझे थोड़ी हैरानी हुई. ताकत में मैं भैया से इतना भी कम नहीं था .अगले दांव में मैंने भैया को काबू में कर लिया पर थोड़ी देर के लिए ही

मैं- क्या बात है भैया आज तो बड़ी फॉर्म में हो

भैया- काफी दिनों बाद खेल रहे है न तो थोडा जोश ज्यादा है .

मैंने हँसते हुए भैया के पैर को पकड़ा और उन्हें लगभग चित ही कर दिया था की पिताजी की आवाज से मेरा ध्यान भटका और फिर बाज़ी भैया ने मार ली.

मैं- क्या पिताजी आप भी न .मैं जीत ही गया था

भैया- फिर कोशिश कर लेना छोटे

पिताजी- इतने बड़े हो गए हो अभी तक नादानी नहीं गयी तुम्हारी .तुम मेरे साथ आओ अभी

पिताजी ने भैया को बुलाया और वो दोनों वहां से चले गए. थोड़ी देर मैंने और कसरत की और फिर मैं भी नहाने चला गया . दोपहर को मैं ओझा के स्थान पर पहुँच गया . मेरे दिल में बेचैनी थी .ओझा मुझे देख कर मुस्कुराया.

मैं- महाराज, आपने गाँव की हद को कील दिया तब भी चक्की वाले पर हमला हुआ.

ओझा- कीलने का काम अभी अपूर्ण है वत्स

मैं- एक बात कहनी थी , वो आज आ रही है तुमसे मिलने

जैसे ही मैंने ओझा को ये बात कही उसकी भ्र्कुतिया तन गयी .

ओझा- चलो तुमने मेरी मेहनत आसान कर दी . गाँव वालो का संकट आज ही दूर हो जायेगा.

ओझा की बात में मुझे उपहास सा लगा. मैं थोडा घबराया भी था की क्या होगा जब निशा और ओझा का सामना होगा. दोपहर थोड़ी और बीती एक समय ऐसा आया जब ओझा और मैं ही उस स्थान पर रह गए थे .

तभी पायल की झंकार ने मेरा ध्यान अपनित तरफ खींचा मैंने पलट कर देखा और देखता ही रह गया . निशा स्थान की दहलीज पर खड़ी थी . कसम से उसे उस लम्हे में जो भी देखता कोई मान ही नहीं सकता था की वो एक डायन थी . सफ़ेद साडी में उसे देखना जैसे की स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो.

“ओझा, मालूम हुआ मुझे की तुझे बड़ी शिद्दत थी मुझसे मुलाकात करने की . ” उसने कहा

उसने अपना पैर दहलीज पर रखा और मैंने देखा ओझा के माथे से पसीना बह चला....

“मैं आ गयी हूँ , जो जो बाते तूने कही है उनको प्रमाणित करने का समय आ गया है ” निशा के शब्दों से वातावरण को थर्राते हुए मैंने महसूस किया.




 

Dhansu2

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मैंने देखा की वनदेव के पत्थर के पास चंपा बैठी थी. उन्हें वहां देख कर मेरा दिल धक से रह गया . हम दोनों की नजरे मिली.

मैं- चंपा. पागल हुई है क्या तू, इतनी रात को जंगल में अकेले क्या करने आई तू.

चंपा- तू भी तो अकेला ही आया न .

मैं- मेरी बात और है . मुझे कुछ काम था .

चंपा- मुझे भी कुछ काम था कबीर

मैंने देखा की चंपा की आँखे मुझ पर जमी हुई थी वो बहुत गौर से मेरा विश्लेषण कर रही थी .

मैं- किसी को मालूम हुआ की तू ऐसे जंगल में है कोई क्या सोचेगा.

चंपा- मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कबीर.

मेरे मन का चोर समझ रहा था की चंपा ने कही मुझे निशा संग न देख लिया हो . दूसरा उसकी जंगल में उपस्तिथि से मैं घबरा गया था . यहाँ उसे कुछ हो जाता तो ये सोच कर ही मैं कांप उठा था .

मैं- तो अब क्या

चंपा- तू ही बता अब क्या

मैं- मैं क्या बताऊ घर चलते है और क्या

चंपा -कबीर तू कुछ ऐसा वैसा तो नहीं कर रहा है न

मैं- तुझे ऐसा क्यों लगता है चंपा

चंपा- गाँव में एक घटना और हुई है इस रात चक्की वाले चंदर पर हमला हुआ , उसकी किस्मत बढ़िया थी जो वो बच गया पर कातिल उसके घोड़े को मार गया .

मैं- गलत हुआ ये . पर जब तुझे मालूम है की राते सुरक्षित नहीं है तो तू क्यों जंगल तक आई .

चंपा- मैं तेरा पीछा करते हुए आई कबीर.

मेरा माथा घूम गया .

मैं- मेरा पीछा पर क्यों चंपा

चंपा- क्योकि जब वो हमलावर चक्की से भागा तो हल्ला हो गया मैंने तुझे जाते हुए देखा और तेरा पीछा करते करते यहाँ तक आ गयी .

मैं- तो तू शक कर रही है मुझ पर

चंपा- मेरी आँखे कुछ कह रही है दिल कुछ और कह रहा है . तुझ पर शक करना खुद पर शक करने जैसा है पर आँखों ने जो देखा वो झुठला भी तो नहीं सकती न मैं और फिर जब जब ये घटनाये हुई है तुम्हारा वहां होना संयोग तो नहीं न . कबीर तू मेरी कसम खा , मुझे विश्वास दिला तेरा इन सब से कुछ लेना देना नहीं है.

मैं चंपा के पास गया और बोला- मैं तुझे कैसे यकीन दिलाऊ चंपा. बचपन से तू जानती है मुझे . मैंने आजतक एक चींटी को भी नहीं दुःख दिया. तू ही बता मैं क्या करू जिस से तुझे यकीन हो जाये.

चंपा- तो फिर तू अकेला जंगल में क्या कर रहा था .

मैं- उस वजह को तलाश रहा था जिसने हरिया और उन सब को मारा.

चंपा- मुझे कुछ समझ नही आ रहा .

मैं- घर चल पहले. फिर तू चाहे कितने ही सवाल कर लेना . पर मैं फिर कहूँगा की मैं बेकसूर हूँ , आज बेशक सबूत नहीं है मेरे पास पर एक दिन उस कातिल को घसीट कर गाँव वालो के सामने जरुर लेकर आऊंगा.

न चाहते हुए भी मैंने चंपा की आँखों में अविश्वास ही देखा . रस्ते भर वो डरी सी रही उसे लगा होगा की मैं कही उस पर हमला ना कर दू.



मेरी दूसरी चिंता थी की कोई गाँव वाला एक जवान लड़की को मेरे साथ इतनी रात को देखता तो लांछन लगता ही लगता तो पूरी सावधानी से मैंने उसे छोड़ा और फिर सोने चला गया. मैं चाह कर भी चंपा को दोष नहीं दे सकता था उसकी जगह कोई और होता तो वो भी ये ही समझता .



सुबह थोड़ी देर से उठा तो देखा की चंपा रसोई में थी .

मैं- तू रसोई में भाभी , चाची कहाँ है

चंपा-मंदिर गयी है

मैं- तू अभी तक रात वाली बात पर ही अटकी है क्या

चंपा- पूरी रात नींद नहीं आई मुझे .

मैंने चंपा की कमर में हाथ डाला और उसे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में ये पहली बार था जब मैंने उसके साथ ऐसी हरकत की थी . मैंने अपना हाथ उसके सर पर रखा और बोला- मैं तेरे सर की कसम खाकर कहता हूँ चंपा, मैं निर्दोष हूँ . तेरी मेरी दोस्ती की कसम खाकर कहता हूँ मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिस से तेरी नजरो में गिर जाऊ.

मैंने उसके माथे को चूमा और रसोई से बाहर निकल गया. आँगन में भैया मुगदर फिरा रहे थे.

मैं- इतनी मेहनत सुबह सुबह भैया

भैया- कई दिन हो गए थे . तू भी तो न जाने कहाँ भागता फिरता है

मैं- आओ फिर दो दो हाथ करते है बहुत दिन हुए मेरा बदन भी टुटा टुटा सा है

भैया- तो देर किस बात की चल अखाड़े में

मैं भैया की पीठ पर बैठ गया और हम दोनों अखाड़े में आ गए.

“मजा नहीं आ रहा है लगता है तेरा जोर कम हो गया है ” भैया ने मुझे पटखनी देते हुए कहा .

मैं- थोड़ी देर तो बड़े भाई का लिहाज करना ही है एक दम से हरा दिया तो फिर दिन भर ये कहते फिरोगे की छोटे भाई से तो हारना ही था न

भैया- अच्छा बच्चू आ फिर अबकी बार.

भैया ने फिर से मुझे उठा कर मिटटी में फेंक दिया. इस बार मुझे थोड़ी हैरानी हुई. ताकत में मैं भैया से इतना भी कम नहीं था .अगले दांव में मैंने भैया को काबू में कर लिया पर थोड़ी देर के लिए ही

मैं- क्या बात है भैया आज तो बड़ी फॉर्म में हो

भैया- काफी दिनों बाद खेल रहे है न तो थोडा जोश ज्यादा है .

मैंने हँसते हुए भैया के पैर को पकड़ा और उन्हें लगभग चित ही कर दिया था की पिताजी की आवाज से मेरा ध्यान भटका और फिर बाज़ी भैया ने मार ली.

मैं- क्या पिताजी आप भी न .मैं जीत ही गया था

भैया- फिर कोशिश कर लेना छोटे

पिताजी- इतने बड़े हो गए हो अभी तक नादानी नहीं गयी तुम्हारी .तुम मेरे साथ आओ अभी

पिताजी ने भैया को बुलाया और वो दोनों वहां से चले गए. थोड़ी देर मैंने और कसरत की और फिर मैं भी नहाने चला गया . दोपहर को मैं ओझा के स्थान पर पहुँच गया . मेरे दिल में बेचैनी थी .ओझा मुझे देख कर मुस्कुराया.

मैं- महाराज, आपने गाँव की हद को कील दिया तब भी चक्की वाले पर हमला हुआ.

ओझा- कीलने का काम अभी अपूर्ण है वत्स

मैं- एक बात कहनी थी , वो आज आ रही है तुमसे मिलने

जैसे ही मैंने ओझा को ये बात कही उसकी भ्र्कुतिया तन गयी .

ओझा- चलो तुमने मेरी मेहनत आसान कर दी . गाँव वालो का संकट आज ही दूर हो जायेगा.

ओझा की बात में मुझे उपहास सा लगा. मैं थोडा घबराया भी था की क्या होगा जब निशा और ओझा का सामना होगा. दोपहर थोड़ी और बीती एक समय ऐसा आया जब ओझा और मैं ही उस स्थान पर रह गए थे .

तभी पायल की झंकार ने मेरा ध्यान अपनित तरफ खींचा मैंने पलट कर देखा और देखता ही रह गया . निशा स्थान की दहलीज पर खड़ी थी . कसम से उसे उस लम्हे में जो भी देखता कोई मान ही नहीं सकता था की वो एक डायन थी . सफ़ेद साडी में उसे देखना जैसे की स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो.

“ओझा, मालूम हुआ मुझे की तुझे बड़ी शिद्दत थी मुझसे मुलाकात करने की . ” उसने कहा

उसने अपना पैर दहलीज पर रखा और मैंने देखा ओझा के माथे से पसीना बह चला....

“मैं आ गयी हूँ , जो जो बाते तूने कही है उनको प्रमाणित करने का समय आ गया है ” निशा के शब्दों से वातावरण को थर्राते हुए मैंने महसूस किया.
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भाई साहिब फोजी जी बहुत गांड फाड़ू अपडेट ख़ास कर के निशा डायन जी की एंट्री कमाल का असली अहसास हुआ ग़ज़ब की लेखनी है


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