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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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बहुत ही सुन्दर लाजवाब और रमणीय अपडेट है पिताजी की एंट्री हो गई है लगता है चंपा और चाची बहुत ही चुदासी है दोनो को देखकर क्या कुंवर की चंपा के बारे में राय बदलेगी वापिस आते वक्त उसके सामने कोन आया है ?????

कुंवर के सामने बड़ा सा जानवर का आना क्या ये वही जानवर है क्या जो हरिया के सामने आया हो क्यो की सियार की आवाज का जिक्र हरिया ने भी किया था ?????या जंगल में कोई भूत प्रेत हो जंगल ने जानवर और मनुष्य का गायब होना लगता है जंगल में कोई तो है ?????
हरिया की मौत हो गई है उसकी मौत का कारण जानने के लिए वह जंगल में जाता है लेकिन कुछ भी नही मिला वही चाची और चंपा का भांडा फूट गया है

चाची और कबीर का ये रिश्ता कहा तक जाएगा ये पता नही लेकिन इस रिश्ते में परवाह अपनापन और एक दूसरे के प्रति प्रेम है कबीर के भाई भी अच्छे हैं जो कबीर के मन की बात जान लेते हैं और कबीर को नौटंकी में भेज देते हैं कबीर फिर उस जंगल में जाता है वहा फिर एक बार उसे चीख सुनाई देती है लेकिन उसे करने वाला अभी तक नही मिला है अब तक तो सभी अपडेट में पारिवारिक प्रेम नजर आ रहा है देखते हैं आगे भी नजर आएगा या कुछ झोल झाल होगा

जंगल में हर बार एक लाश का मिलना ये रहस्य गहराता जा रहा है की इसके पीछे कोई तो कारण हैं कबीर के फैसले से सहमत हु कम से कम कबीर ने आवाज तो उठाई लाली का भाग कर जाना ये गलत है लेकिन रामू का दारू पीना और काम नही करना ये ज्यादा गलत है समाज में ये तो आम बात हो गई है की दूसरे के घर में क्या चल रहा है उसकी काना फूसी करना लेकिन जो गलत है उसको रोकने की हिम्मत किसी में नहीं होती है पंचों को सजा रामू को देनी चाहिए क्योंकि जो हुआ है वो उसकी वजह से हुआ है अगर वो घर और लाली का ख्याल रखता तो लाली को भागने की नौबत नहीं आती


जैसा सोचा वैसा ही हुआ ???आखिर लाली और उसके प्रेमी को फांसी दे दी गई इसमें गलती किस की है लाली की या रामू की या पंचों की या कबीर के पिताजी की या समाज की जिसने ये रूढ़िवादी कुरीतिया बनाई और उनको बड़ावा दिया समाज में हमेशा स्त्री को नीचा दिखाया है जो गलत है लाली की मौत के सभी बराबर जिम्मेदार हैं कबीर ने बहुत प्रयास किया लेकिन लाली को नही बचा सका और फिर उसी जंगल में अंदर तक चला गया और वहां उसे एक इमारत मिली और उसके अंदर उसकी मुलाकात एक लड़की से हुई जिसने खुद को डायन बताया आखिर इस डायन का क्या राज है?????

बेहतरीन अपडेट है कबीर एक डायन से मिलता है और उससे कई सवाल करता है वो लड़की लोगो के मन में जो डायनों की छवि बनी है उसके बारे में कबीर को बताती हैं अब सवाल ये है कि ये लड़की कोन है???क्या सच में डायन है या कोई रूहानी शक्ति और उसका क्या कबीर से कोई संबंध है क्युकी उसने बोला था की वो उसका खून पीने जरूर आएगी और कहा की अंधेरों से दूर रहना क्या अब तक जो मौत हुई है उनकी वजह ये ही लड़की है या कोई और और इसकी भी कोई कहानी है क्या????

चाची के जिस्म की गर्मी से कबीर शांत हो गया है लेकिन फिर चंपा की मस्तियों ने फिर उसे अशांत कर दिया चंपा धीरे धीरे अपने कदम बड़ा रही है लगता है उसे मंजिल मिल ही जायेगी भाभी के साथ वह कुछ देर खुश रहता है क्योंकि भाभी उसकी फिक्र करती है फिर एक बार गली में चीख सुनाई देती है

Fantastic update
रामलाल को जिसने मारा वो इंसान तो नही है ये तो पता चल गया है उसके लंबे लंबे नाखून उसका अजीब से हुलिया लगता है वो डायन है लेकिन इस लड़की ने तो कहा था कि जब उसे रक्त की तृष्णा होगी वो उसके पास आएगी
रामलाल कबीर और उस जानवर के बीच जो हुआ उसे किसी ने भी नही देखा इसलिए रामलाल के इशारा करने पर सब कबीर को उसकी मौत का जिम्मेदार मानते है लेकिन वैध ने उनके जख्म देखकर बता दिया की उस जानवर ने ही मारा है अब सवाल ये है की उस जानवर ने कबीर को क्यो नही मारा क्या उसका इस से कोई संबंध है ??? पिताजी के कहने पर अब चाची के साथ रहेगा देखते है चाची के साथ कुछ होता है या नही
अभी तक जो भी घटनाये हुई है उनके होते समय कबीर का लगभग वहीँ पर होना एक संयोग नहीं हो सकता गांव वाले उस पर शक कर रहे है, दूसरी तरफ डायन से बार बार मिलने की इच्छा क्या कराएगी कौन जाने
 

Sanju@

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#14

वो जो भी था उसने मुझे नहीं मारा . ये सवाल मुझे पागल किये हुए था.

“सोना नहीं है क्या अब ” चाची ने कहा तो मैं ख्यालो की दुनिया से बाहर आया.

मैंने रजाई में सर दिया और आँखे बंद करली पर नींद बहुत मुश्किल से आई. सुबह एक बार फिर उठते ही मैंने चंपा को सामने पाया.

मैं- इतनी सुबह तू यहाँ

चंपा- मैं तो रोज इसी समय आती हूँ

मैं- चाची कहा है

चंपा- नहा रही है . ये सब छोड़ मुझे रात की बता क्या हुआ था . गाँव में बहुत खुसर पुसर हो रही है.

मैं- गाँव वाले है ही चुतिया.

मैंने सारी बात चंपा को बता दी.

चंपा-तुझे क्या जरुरत थी अगर तुझे कुछ हो जाता तो .

मैं- कुछ हुआ तो नहीं न

चंपा- लाली वाले कांड के बाद गाँव वाले तेरे खिलाफ है वो कोई कसर नहीं छोड़ेंगे तुझे बदनाम करने की. अगर तू राय साहब का बेटा न होता तो अब तक पंच और उसके पिल्ले न जाने क्या कर चुके होते.

मैं- पंच से तो मुझे भी खुंदक है , कभी मौका मिला तो उसकी गांड जरुर तोडूंगा

चंपा- सुन तुझे चाहिए तो मैं अभी नाश्ता बना देती हूँ वर्ना फिर मैं, चाची और भाभी मंदिर जा रहे है भाभी ने कोई पूजा रखवाई है तेरे लिए तो दोपहर बाद ही आना होगा.

मैं- कोई दिक्कत नहीं . बस चाय बना दे एक कप

चंपा जब रसोई की तरफ जा रही थी तो न जाने क्यों मेरी नजर उसकी मटकती गांड से हट ही नहीं रही थी चाय पीने के बाद मैंने अपनी साइकिल उठाई और खेतो पर पहुँच गया . मुझे खेतो को नजर भर कर देखना था मैं ये नहीं चाहता था की मेरी वजह से फसल को नुकसान हो. एक ये ही काम तो था जिसे मैं दिल से करता था . हमारी जमीनों के बड़े हिस्से पर तो मजदुर काम करते थे . मैं भी उनके साथ कभी कभी काम करता .

दोपहर तक खेतो पर रहने के बाद मैं घर की तरफ जा रहा था की मैंने साइकिल जंगल की तरफ मोड़ दी. वनदेव के पत्थर के पास मैंने साइकिल खड़ी की . पत्थर को हाथ लगाकर आशीर्वाद लिया और फिर मैं पैदल ही उस तरफ चल दिया. उस तरफ जहाँ मैं एक बार फिर से जाना चाहता था . दो बार मैं भटका पर फिर भी मैं उस तालाब के पास पहुँच ही गया. उस जगह की रचना ही ऐसी थी की घने पेड़ो, झाड़ियो की वजह से पहली नजर में उसे देख पाना लगभग नामुमकिन ही था .

दिन की रौशनी में तालाब का नीला पानी इतना दिलकश था की जी करे उसे देखता ही रहे. एक तरफ से पत्थरों की दिवार जो तालाब और जंगल के बीच सरहद बनाती थी .रौशनी में वो खंडहर बताता था की किसी ज़माने में बड़ी शान रही होगी उसकी. बेशक वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण रहा होगा वो किसी ज़माने में पर मेरी दिलचस्पी किसी और में थी .

सीढिया चढ़ कर मैं ठीक उसी जगह पहुँच गया जहाँ पर मेरी मुलाकात डायन से हुई थी . हवा जैसे रुक सी गयी थी . सन्नाटा इतना गहरा की एक पत्ता भी हिले तो बम सा धमाका हो. चुने-पत्थर से बनी दीवारों का पलस्तर जगह जगह से उखड़ा हुआ था . कहीं कहीं से छत भी टूटी हुई थी . चारो तरफ घूम कर मैंने जगह का अच्छी तरह से अवलोकन किया पर ऐसा कुछ भी नहीं था जो इंसानों की आमद बता सके.



तभी मेरी नजर एक तरफ जाती छोटी सीढियों पर गयी . मैं उनसे उतरते हुए मंदिर के पीछे पहुँच गया . वहां पर मैंने एक मरे हुए हिरन को देखा जिसकी मौत को ज्यादा समय नहीं हुआ था . घंटे-डेढ़ घंटे मैं वहां रहा इंतजार किया पर शायद आज उसके दर्शन दुर्लभ थे जिसकी मुझे चाह थी . बस तस्सली इस बात की थी उस रात की मुलाकात भ्रम नहीं थी .

“फिर कभी मुलाकात होगी ” कहते हुए मैंने अपने दिल को तस्सली दी और वापिस मुड गया . तालाब के पास से गुजरते हुए मुझे एक बार अनुभव हुआ की किसी ने पानी में छलांग लगाई हो पर पीछे मुड़ने पर कोई नहीं था .

शाम होते होते मैं गाँव पहुँच गया. भाभी मेरा ही इंतजार कर रही थी .

भाभी- कहाँ गायब थे तुम. रात को रोका तो दिन में गायब हो गए. इरादे क्या हैं तुम्हारे

मैं- हम गरीबो के भी क्या इरादे भाभी. खेतो पर ही था पूरा दिन

भाभी- लगता है तुम्हारे पांवो में ऐसी जंजीर बांधनी पड़ेगी , जिस से तुम्हारे कदम घर पर रहे.

मैं- कैसी जंजीर भाभी

भाभी- यही की अब समय आ गया है हमें तुम्हारी शादी के बारे में सोचना चाहिए. कहो तो मेरी चचेरी बहन से बात चलाऊ

मैं- अभी तो मैंने ऐसा कुछ सोचा नहीं है , पर जिस दिन कोई ऐसी मिलेगी जिसके लिए दिल धड़केगा तो सबसे पहले आपको ही आकर बताऊंगा.

भाभी- हमारे यहाँ रिश्ते दिल नहीं घरवाले तय करते है .

मैं- अपना तो दिल ही तय करेगा.

जब मैंने भाभी से ये बात कही तो मेरी आँखों के सामने डायन का चेहरा आ गया .न जाने क्यों होंठो पर मुस्कान आ गयी . भाभी बस देखती रह गयी मुझे. रात को खाने-पीने के बाद एक बार फिर मैं चाची के घर आ गया. मैंने गौर किया चाची आज बड़ी प्यारी लग रही थी . नीले लहंगे और सफ़ेद ब्लाउज में अप्सरा सी लग रही थी . चूँकि ओढनी हटा राखी तो ब्लाउज में कैद गुब्बारे मचल रहे थे . मैंने एक बात और गौर की चाची कच्छी नहीं पहनती थी क्योंकि जांघो के जोड़ पर चूत की शेप बिलकुल नुमायाँ हो रही थी .

मैंने बस एक झलक देखि उसकी क्योंकि फिर वो रसोई में चली गयी थी पीछे पीछे मैं भी वही चला गया .

“क्या कर रही हो ” मैंने चाची के पीछे सटते हुए कहा

चाची- दूध गर्म कर रही हूँ तेरे लिए. गोंद के लड्डू संग पी लेना. लाडू का पीपा उतारने के बाद चाची चूल्हे पर उबलते दूध को देखने के लिए झुकी और जब वो झुकी तो मैंने क्या खूब नजारा देखा. झुकने की वजह से चाची के नितम्ब पीछे को उभर आये थे और जीवन में पहली बार मैंने उनकी मादकता को महसूस किया था . दो दो किलो मांस तो जरुर होगा उनमे.

तभी चाची उठी और पलटते ही मेरे से टकरा गयी चाची की छातिया मेरे सीने से आ लगी. मैंने चाची की कमर में हाथ डाला और चाची को थाम लिया. अपना हाथ ले जाकर मैंने चाची के चूतडो पर फेरा तो चाची के बदन में सिरहन दौड़ गयी . ये वो लम्हा था जिसने चाची और मेरे दरमियान एक नए रिश्ते की नींव रख दी थी . मैंने चाची के कुलहो को अपने दोनों हाथो में थाम लिया और अपने होंठ चाची के होंठो पर रख दिया. चंपा के बाद चाची दूसरी औरत थी जिसके होंठ मैंने चुसे थे . पर जैसे किसी सपने सा ये चुम्बन तुरंत ही टूट गया .




“कबीर कबीर ” बाहर से कोई दरवाजा पीट रहा था .
Awesome update
पंचायत पर सवाल करने के कारण गांव वालो का कबीर की तरफ देखने का नजरिया बदल गया चंपा ने बताया कि गांव वाले कैसी कानाफूसी कर रहे हैं ये चंपा भी अपनी मंजिल पाने में लगी है दिन में फिर कबीर हवेली में चला गया लेकिन वहा उसे वो डायन नही मिली लगता है उस हवेली की भी कोई कहानी रही होगी लेकिन अभी तक किसी ने भी हवेली का जिक्र नहीं किया है
आखिर चाची की मनमोहक अदाओं ने कबीर पर असर दिखा ही दिया उसने चाची को आगोश में लेकर चुम्बन कर रह था की किसी ने दरवाजा बजा कर उनका चुम्बन तोड़ दिया देखते हैं कोन है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#19

मैं- नियति शायद यही चाहती थी .

मैने भी डायन के जैसे बात नियति पर डाल दी.

ओझा मेरी बात सुनकर मुस्कुरा पड़ा.

ओझा- सही कहा तुमने नियति पर इतने लोगो पर संकट है कुछ मारे गए कुछ मारे जायेंगे. क्या तब भी तुम नियति का ही बहाना लोगे.

मैं- इन्ही गाँव वालो ने दो मासूमो को फांसी से लटका दिया सिर्फ इस कसूर के लिए की वो प्रेम कर बैठे थे . उनकी नियति क्या फांसी थी .

ओझा- तो क्या इसी कुंठा के कारण तुम उसका साथ दे रहे हो.

मैं- मैं किसी का साथी नहीं हूँ, गाँव में हुई प्रत्येक मौत का दुःख है मुझे . और फिर ये मेरा काम नहीं है गाँव वालो ने समाधान के लिए आपको बुलाया है आप उपाय करो .

ओझा- जितना मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा. पर मेरा प्रश्न अब भी यही है की उसने तुम्हे क्यों छोड़ दिया.

मैं-जब उस से मिलो तो पूछ लेना महराज.

ओझा के यहाँ से मैं आ तो गया था पर मेरे मन में बेचैनी थी . मन कही लग ही नहीं रहा था . मैं जानता था की ओझा देर सवेर उसे तलास कर ही लेगा. दिल के किसी कोने में निशा को लेकर फ़िक्र सी होने लगी थी . दूसरी तरफ आस-पास के गाँवो के लोग भी आज आने वाले थे . सामूहिक बैठक करने ताकि इस मुसीबत का कोई हल निकाला जाये.



निशा से मिलना बहुत जरुरी था पर घर से बाहर कैसे जाऊ मैं ये समस्या भी मेरे लिए तैयार खड़ी थी .

“क्या बात है देवर जी कुछ परेशां से लगते हो ” भाभी ने पूछा मुझसे

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं भाभी

भाभी- तो फिर चेहरे पर ये उदासी क्यों

मैं- मुझे आपकी आज्ञा चाहिए

भाभी- किसलिए

मैं- मुझे थोड़ी देर के लिए जाना है कही रात को , वादा करता हूँ जल्दी ही वापिस आ जाऊंगा.

भाभी- ये मेरे हाथ में नहीं है पिताजी ने तुम पर बंदिश लगाई है , उनके हुकुम की तामिल न हुई तो फिर तुम जानते ही हो

मैं- भाभी, मेरा जाना जरुरी है .

भाभी- गाँव का माहौल इतना तनावपूर्ण है तुम्हे अब भी बाहर घुमने की पड़ी है . घर में किसी को भी मालूम होगा तो फिर डांट मुझे ही पड़ेगी वैसे ही लोग कहते है की मेरे लाड ने बिगाड़ दिया है तुम्हे.

मैं-ठीक है भाभी मैं नहीं जाता

भाभी- तुम तो नाराज हो गए. सुनो रात को पिताजी और तुम्हारे भैया जब ओझा के पास जायेंगे तो तुम निकल जाना पर समय से वापिस आ जाना पर तुम वादा करो तुम जिस से भी मिलते हो जो भी करते हो उस से परिवार की प्रतिस्ठा पर कोई आंच नहीं आएगी

मैं- मुझे ख्याल है परिवार का भाभी .



पर ये रात भी मेरी परीक्षा लेने वाली थी आज क्योंकि पिताजी अकेले ही गए ओझा के पास भैया घर पर ही रह गए थे . खैर, मैंने बहुत इंतजार के बाद ये सुनिश्चित कर लिया की सब लोग गहरी नींद में है तो मैं घर से निकल गया और गाँव को पार करके अपनी मंजिल की तरफ दौड़ गया.



एक बार फिर से वो तालाब और काली मंदिर मेरी आँखों के सामने थे . कड़ाके की ठण्ड में भी मेरा गला खुश्क था . मैं तालाब से पानी पी ही रहा था की अचानक से पानी में से एक साया ऊपर उठ कर सामने आ गया .

“कबीर ” बोली वो

कसम से मेरा दिल को दौरा ही आ गया था . जिस तरह से वो सामने आई थी मेरी नसे फट ही जाती .

“जान ही लेनी है तो सीधा ही ले लो न ऐसे डराने की क्या जरूरत थी ” मैंने हाँफते हुए कहा .

निशा-मैं तो नहा रही थी मुझे क्या मालूम था तुम ऐसे आ निकलोगे

मैं- मुझे तो आना ही तुमसे मिलने

निशा- आओ फिर

निशा तालाब की दिवार पर ही बैठ गयी . मैं भी उसके पास गया .

मैं- ठण्ड में पानी में जाने की क्या जरुरत थी तुम्हे

वो- मुझे फर्क नहीं पड़ता

मैं- फिर भी ,

निशा- ठीक है अपना कम्बल दे दो मुझे , राहत के लिए

मैंने अपना कम्बल उसे ओढा दिया .

निशा- इतनी बेचैनी क्यों मुझसे मिलने के लिए

मैं- कुछ सवालो ने मुझे पागल किया हुआ हैं

निशा- मेरे पास कोई जवाब नहीं तेरे सवालो का

मैं- दुनिया कहती है की ये तमाम क़त्ल डायन कर रही है .

निशा- कुछ तो लोग कहेंगे.

मैं- वो एक छोटा सा बच्चा था . अपने हाथो से दफनाया मैंने उसे .

निशा खामोश रही .

मैं- निशा, मैं जानता हूँ तू अलग है . मैं नहीं जानता की डायन कैसी होती है वैसी जो दुनिया मानती है या फिर वैसी जो मेरे साथ बैठी है. तूने मुझे कुछ नहीं किया . दो मुलाकातों में अपनी सी लगी मुझे . तेरे साथ उस सुनहरी आंच को तापना . तेरे साथ इस बियाबान में होना ये लम्हे बहुत खास है . पर गाँव में होती मौतों को भी नहीं झुठला सकता मैं . तू भी बता मैं क्या करू

निशा- कुछ मत कर. कुछ मत कह कबीर.

मैं- वो मौते कैसे रुकेंगी निशा. जब एक आदमी मरता है तो वो अकेला नहीं मरता उसके साथ उसका परिवार जो उस पर आश्रित होता है वो भी मरता है हर रोज मरता है .

निशा- तेरे मन की बात समझती हूँ मैं

मैं- निशा, तू चाहे तो तू मेरा रक्त पी ले. तू जब भी चाहे मैं हाज़िर हो जाऊंगा. तेरी प्यास तू मेरे रक्त से बुझा पर गाँव वालो का अहित मत कर.

मैंने अपनी जेब से उस्तरा निकाला और अपनी हथेली काट कर निशा के सामने कर दी.

रक्त की धारा को देख कर निशा की आँखों में आई चमक को मैंने अन्दर तक महसूस किया पर बस एक लम्हे के लिए .

“कबीर, पागल हुआ है क्या तू ” निशा ने तुरंत अपनी ओढनी के किनारे को फाड़ा और मेरी हथेली पर बाँध दिया .

“क्या हुआ निशा, मेरा खून उतना मीठा नहीं क्या जो तुझे पसंद नहीं आया. ” मैंने कहा

निशा - कबीर तू जा यहाँ से

मैं- मैं नहीं जानता तेरा मेरा क्या नाता होगा. पर निशा मैं इस से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता . गाँव वालो ने ओझा बुलाया है . वो आज नहीं तो कल तेरे बारे में मालूम कर ही लेगा. मैं हरगिज नहीं चाहता तुझे कोई भी नुकसान हो .

निशा- एक डायन की इतनी परवाह किसलिए कबीर

मैं- डायन नहीं होती तब भी इतनी ही फ़िक्र होती तेरी.

निशा- मुझे इतना मानता है तो मेरी भी सुनेगा क्या

मैं- तेरी ही तो सुनने आया हूँ.

निशा- तो फिर विशबास कर मुझ पर

मैं- बिसबास है इसीलिए तो तेरे साथ यहाँ पर हूँ

निशा- तो फिर ठीक है कल दोपहर को मैं तेरे गाँव में आउंगी . उस ओझा से मुलाकात करुँगी . अगर उसके इल्जाम साबित हुए कबीर तो इस डायन का वादा है तुझसे ये सूरत फिर न दिखाउंगी तुझे.

मैं- नहीं निशा, तू ऐसा कुछ नहीं करेगी ओझा गाँव की हद , गाँव की हर दिशा को कील रहा है .

निशा बस मुस्कुरा दी . निशा ने कल गाँव में आने का कह दिया था . ओझा के सामने जब वो आयेगी तो क्या होगा ये सोच कर मैं घबरा गया था पर असली घबराहट क्या होती है ये मुझे तब मालूम हुआ जब मैं वनदेव के पत्थर के पास पहुंचा ..... मैंने देखा. मैंने देखा की.................






 

Lutgaya

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#19

मैं- नियति शायद यही चाहती थी .

मैने भी डायन के जैसे बात नियति पर डाल दी.

ओझा मेरी बात सुनकर मुस्कुरा पड़ा.

ओझा- सही कहा तुमने नियति पर इतने लोगो पर संकट है कुछ मारे गए कुछ मारे जायेंगे. क्या तब भी तुम नियति का ही बहाना लोगे.

मैं- इन्ही गाँव वालो ने दो मासूमो को फांसी से लटका दिया सिर्फ इस कसूर के लिए की वो प्रेम कर बैठे थे . उनकी नियति क्या फांसी थी .

ओझा- तो क्या इसी कुंठा के कारण तुम उसका साथ दे रहे हो.

मैं- मैं किसी का साथी नहीं हूँ, गाँव में हुई प्रत्येक मौत का दुःख है मुझे . और फिर ये मेरा काम नहीं है गाँव वालो ने समाधान के लिए आपको बुलाया है आप उपाय करो .

ओझा- जितना मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा. पर मेरा प्रश्न अब भी यही है की उसने तुम्हे क्यों छोड़ दिया.

मैं-जब उस से मिलो तो पूछ लेना महराज.

ओझा के यहाँ से मैं आ तो गया था पर मेरे मन में बेचैनी थी . मन कही लग ही नहीं रहा था . मैं जानता था की ओझा देर सवेर उसे तलास कर ही लेगा. दिल के किसी कोने में निशा को लेकर फ़िक्र सी होने लगी थी . दूसरी तरफ आस-पास के गाँवो के लोग भी आज आने वाले थे . सामूहिक बैठक करने ताकि इस मुसीबत का कोई हल निकाला जाये.



निशा से मिलना बहुत जरुरी था पर घर से बाहर कैसे जाऊ मैं ये समस्या भी मेरे लिए तैयार खड़ी थी .

“क्या बात है देवर जी कुछ परेशां से लगते हो ” भाभी ने पूछा मुझसे

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं भाभी

भाभी- तो फिर चेहरे पर ये उदासी क्यों

मैं- मुझे आपकी आज्ञा चाहिए

भाभी- किसलिए

मैं- मुझे थोड़ी देर के लिए जाना है कही रात को , वादा करता हूँ जल्दी ही वापिस आ जाऊंगा.

भाभी- ये मेरे हाथ में नहीं है पिताजी ने तुम पर बंदिश लगाई है , उनके हुकुम की तामिल न हुई तो फिर तुम जानते ही हो

मैं- भाभी, मेरा जाना जरुरी है .

भाभी- गाँव का माहौल इतना तनावपूर्ण है तुम्हे अब भी बाहर घुमने की पड़ी है . घर में किसी को भी मालूम होगा तो फिर डांट मुझे ही पड़ेगी वैसे ही लोग कहते है की मेरे लाड ने बिगाड़ दिया है तुम्हे.

मैं-ठीक है भाभी मैं नहीं जाता

भाभी- तुम तो नाराज हो गए. सुनो रात को पिताजी और तुम्हारे भैया जब ओझा के पास जायेंगे तो तुम निकल जाना पर समय से वापिस आ जाना पर तुम वादा करो तुम जिस से भी मिलते हो जो भी करते हो उस से परिवार की प्रतिस्ठा पर कोई आंच नहीं आएगी

मैं- मुझे ख्याल है परिवार का भाभी .



पर ये रात भी मेरी परीक्षा लेने वाली थी आज क्योंकि पिताजी अकेले ही गए ओझा के पास भैया घर पर ही रह गए थे . खैर, मैंने बहुत इंतजार के बाद ये सुनिश्चित कर लिया की सब लोग गहरी नींद में है तो मैं घर से निकल गया और गाँव को पार करके अपनी मंजिल की तरफ दौड़ गया.



एक बार फिर से वो तालाब और काली मंदिर मेरी आँखों के सामने थे . कड़ाके की ठण्ड में भी मेरा गला खुश्क था . मैं तालाब से पानी पी ही रहा था की अचानक से पानी में से एक साया ऊपर उठ कर सामने आ गया .

“कबीर ” बोली वो

कसम से मेरा दिल को दौरा ही आ गया था . जिस तरह से वो सामने आई थी मेरी नसे फट ही जाती .

“जान ही लेनी है तो सीधा ही ले लो न ऐसे डराने की क्या जरूरत थी ” मैंने हाँफते हुए कहा .

निशा-मैं तो नहा रही थी मुझे क्या मालूम था तुम ऐसे आ निकलोगे

मैं- मुझे तो आना ही तुमसे मिलने

निशा- आओ फिर

निशा तालाब की दिवार पर ही बैठ गयी . मैं भी उसके पास गया .

मैं- ठण्ड में पानी में जाने की क्या जरुरत थी तुम्हे

वो- मुझे फर्क नहीं पड़ता

मैं- फिर भी ,

निशा- ठीक है अपना कम्बल दे दो मुझे , राहत के लिए

मैंने अपना कम्बल उसे ओढा दिया .

निशा- इतनी बेचैनी क्यों मुझसे मिलने के लिए

मैं- कुछ सवालो ने मुझे पागल किया हुआ हैं

निशा- मेरे पास कोई जवाब नहीं तेरे सवालो का

मैं- दुनिया कहती है की ये तमाम क़त्ल डायन कर रही है .

निशा- कुछ तो लोग कहेंगे.

मैं- वो एक छोटा सा बच्चा था . अपने हाथो से दफनाया मैंने उसे .

निशा खामोश रही .

मैं- निशा, मैं जानता हूँ तू अलग है . मैं नहीं जानता की डायन कैसी होती है वैसी जो दुनिया मानती है या फिर वैसी जो मेरे साथ बैठी है. तूने मुझे कुछ नहीं किया . दो मुलाकातों में अपनी सी लगी मुझे . तेरे साथ उस सुनहरी आंच को तापना . तेरे साथ इस बियाबान में होना ये लम्हे बहुत खास है . पर गाँव में होती मौतों को भी नहीं झुठला सकता मैं . तू भी बता मैं क्या करू

निशा- कुछ मत कर. कुछ मत कह कबीर.

मैं- वो मौते कैसे रुकेंगी निशा. जब एक आदमी मरता है तो वो अकेला नहीं मरता उसके साथ उसका परिवार जो उस पर आश्रित होता है वो भी मरता है हर रोज मरता है .

निशा- तेरे मन की बात समझती हूँ मैं

मैं- निशा, तू चाहे तो तू मेरा रक्त पी ले. तू जब भी चाहे मैं हाज़िर हो जाऊंगा. तेरी प्यास तू मेरे रक्त से बुझा पर गाँव वालो का अहित मत कर.

मैंने अपनी जेब से उस्तरा निकाला और अपनी हथेली काट कर निशा के सामने कर दी.

रक्त की धारा को देख कर निशा की आँखों में आई चमक को मैंने अन्दर तक महसूस किया पर बस एक लम्हे के लिए .

“कबीर, पागल हुआ है क्या तू ” निशा ने तुरंत अपनी ओढनी के किनारे को फाड़ा और मेरी हथेली पर बाँध दिया .

“क्या हुआ निशा, मेरा खून उतना मीठा नहीं क्या जो तुझे पसंद नहीं आया. ” मैंने कहा

निशा - कबीर तू जा यहाँ से

मैं- मैं नहीं जानता तेरा मेरा क्या नाता होगा. पर निशा मैं इस से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता . गाँव वालो ने ओझा बुलाया है . वो आज नहीं तो कल तेरे बारे में मालूम कर ही लेगा. मैं हरगिज नहीं चाहता तुझे कोई भी नुकसान हो .

निशा- एक डायन की इतनी परवाह किसलिए कबीर

मैं- डायन नहीं होती तब भी इतनी ही फ़िक्र होती तेरी.

निशा- मुझे इतना मानता है तो मेरी भी सुनेगा क्या

मैं- तेरी ही तो सुनने आया हूँ.

निशा- तो फिर विशबास कर मुझ पर

मैं- बिसबास है इसीलिए तो तेरे साथ यहाँ पर हूँ

निशा- तो फिर ठीक है कल दोपहर को मैं तेरे गाँव में आउंगी . उस ओझा से मुलाकात करुँगी . अगर उसके इल्जाम साबित हुए कबीर तो इस डायन का वादा है तुझसे ये सूरत फिर न दिखाउंगी तुझे.

मैं- नहीं निशा, तू ऐसा कुछ नहीं करेगी ओझा गाँव की हद , गाँव की हर दिशा को कील रहा है .

निशा बस मुस्कुरा दी . निशा ने कल गाँव में आने का कह दिया था . ओझा के सामने जब वो आयेगी तो क्या होगा ये सोच कर मैं घबरा गया था पर असली घबराहट क्या होती है ये मुझे तब मालूम हुआ जब मैं वनदेव के पत्थर के पास पहुंचा ..... मैंने देखा. मैंने देखा की.................






आएगा आने वाला
सैक्सी डायन निशा

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ऐसी डायन होगी तो लोग खुशी खुशी जान दे देंगे
Aur jese aap Nisha ke bare mein bta rahe hein janab woh iss se kamm nhi jyada hi hogi..... :blush1:
 

Dhansu2

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#19

मैं- नियति शायद यही चाहती थी .

मैने भी डायन के जैसे बात नियति पर डाल दी.

ओझा मेरी बात सुनकर मुस्कुरा पड़ा.

ओझा- सही कहा तुमने नियति पर इतने लोगो पर संकट है कुछ मारे गए कुछ मारे जायेंगे. क्या तब भी तुम नियति का ही बहाना लोगे.

मैं- इन्ही गाँव वालो ने दो मासूमो को फांसी से लटका दिया सिर्फ इस कसूर के लिए की वो प्रेम कर बैठे थे . उनकी नियति क्या फांसी थी .

ओझा- तो क्या इसी कुंठा के कारण तुम उसका साथ दे रहे हो.

मैं- मैं किसी का साथी नहीं हूँ, गाँव में हुई प्रत्येक मौत का दुःख है मुझे . और फिर ये मेरा काम नहीं है गाँव वालो ने समाधान के लिए आपको बुलाया है आप उपाय करो .

ओझा- जितना मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा. पर मेरा प्रश्न अब भी यही है की उसने तुम्हे क्यों छोड़ दिया.

मैं-जब उस से मिलो तो पूछ लेना महराज.

ओझा के यहाँ से मैं आ तो गया था पर मेरे मन में बेचैनी थी . मन कही लग ही नहीं रहा था . मैं जानता था की ओझा देर सवेर उसे तलास कर ही लेगा. दिल के किसी कोने में निशा को लेकर फ़िक्र सी होने लगी थी . दूसरी तरफ आस-पास के गाँवो के लोग भी आज आने वाले थे . सामूहिक बैठक करने ताकि इस मुसीबत का कोई हल निकाला जाये.



निशा से मिलना बहुत जरुरी था पर घर से बाहर कैसे जाऊ मैं ये समस्या भी मेरे लिए तैयार खड़ी थी .

“क्या बात है देवर जी कुछ परेशां से लगते हो ” भाभी ने पूछा मुझसे

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं भाभी

भाभी- तो फिर चेहरे पर ये उदासी क्यों

मैं- मुझे आपकी आज्ञा चाहिए

भाभी- किसलिए

मैं- मुझे थोड़ी देर के लिए जाना है कही रात को , वादा करता हूँ जल्दी ही वापिस आ जाऊंगा.

भाभी- ये मेरे हाथ में नहीं है पिताजी ने तुम पर बंदिश लगाई है , उनके हुकुम की तामिल न हुई तो फिर तुम जानते ही हो

मैं- भाभी, मेरा जाना जरुरी है .

भाभी- गाँव का माहौल इतना तनावपूर्ण है तुम्हे अब भी बाहर घुमने की पड़ी है . घर में किसी को भी मालूम होगा तो फिर डांट मुझे ही पड़ेगी वैसे ही लोग कहते है की मेरे लाड ने बिगाड़ दिया है तुम्हे.

मैं-ठीक है भाभी मैं नहीं जाता

भाभी- तुम तो नाराज हो गए. सुनो रात को पिताजी और तुम्हारे भैया जब ओझा के पास जायेंगे तो तुम निकल जाना पर समय से वापिस आ जाना पर तुम वादा करो तुम जिस से भी मिलते हो जो भी करते हो उस से परिवार की प्रतिस्ठा पर कोई आंच नहीं आएगी

मैं- मुझे ख्याल है परिवार का भाभी .



पर ये रात भी मेरी परीक्षा लेने वाली थी आज क्योंकि पिताजी अकेले ही गए ओझा के पास भैया घर पर ही रह गए थे . खैर, मैंने बहुत इंतजार के बाद ये सुनिश्चित कर लिया की सब लोग गहरी नींद में है तो मैं घर से निकल गया और गाँव को पार करके अपनी मंजिल की तरफ दौड़ गया.



एक बार फिर से वो तालाब और काली मंदिर मेरी आँखों के सामने थे . कड़ाके की ठण्ड में भी मेरा गला खुश्क था . मैं तालाब से पानी पी ही रहा था की अचानक से पानी में से एक साया ऊपर उठ कर सामने आ गया .

“कबीर ” बोली वो

कसम से मेरा दिल को दौरा ही आ गया था . जिस तरह से वो सामने आई थी मेरी नसे फट ही जाती .

“जान ही लेनी है तो सीधा ही ले लो न ऐसे डराने की क्या जरूरत थी ” मैंने हाँफते हुए कहा .

निशा-मैं तो नहा रही थी मुझे क्या मालूम था तुम ऐसे आ निकलोगे

मैं- मुझे तो आना ही तुमसे मिलने

निशा- आओ फिर

निशा तालाब की दिवार पर ही बैठ गयी . मैं भी उसके पास गया .

मैं- ठण्ड में पानी में जाने की क्या जरुरत थी तुम्हे

वो- मुझे फर्क नहीं पड़ता

मैं- फिर भी ,

निशा- ठीक है अपना कम्बल दे दो मुझे , राहत के लिए

मैंने अपना कम्बल उसे ओढा दिया .

निशा- इतनी बेचैनी क्यों मुझसे मिलने के लिए

मैं- कुछ सवालो ने मुझे पागल किया हुआ हैं

निशा- मेरे पास कोई जवाब नहीं तेरे सवालो का

मैं- दुनिया कहती है की ये तमाम क़त्ल डायन कर रही है .

निशा- कुछ तो लोग कहेंगे.

मैं- वो एक छोटा सा बच्चा था . अपने हाथो से दफनाया मैंने उसे .

निशा खामोश रही .

मैं- निशा, मैं जानता हूँ तू अलग है . मैं नहीं जानता की डायन कैसी होती है वैसी जो दुनिया मानती है या फिर वैसी जो मेरे साथ बैठी है. तूने मुझे कुछ नहीं किया . दो मुलाकातों में अपनी सी लगी मुझे . तेरे साथ उस सुनहरी आंच को तापना . तेरे साथ इस बियाबान में होना ये लम्हे बहुत खास है . पर गाँव में होती मौतों को भी नहीं झुठला सकता मैं . तू भी बता मैं क्या करू

निशा- कुछ मत कर. कुछ मत कह कबीर.

मैं- वो मौते कैसे रुकेंगी निशा. जब एक आदमी मरता है तो वो अकेला नहीं मरता उसके साथ उसका परिवार जो उस पर आश्रित होता है वो भी मरता है हर रोज मरता है .

निशा- तेरे मन की बात समझती हूँ मैं

मैं- निशा, तू चाहे तो तू मेरा रक्त पी ले. तू जब भी चाहे मैं हाज़िर हो जाऊंगा. तेरी प्यास तू मेरे रक्त से बुझा पर गाँव वालो का अहित मत कर.

मैंने अपनी जेब से उस्तरा निकाला और अपनी हथेली काट कर निशा के सामने कर दी.

रक्त की धारा को देख कर निशा की आँखों में आई चमक को मैंने अन्दर तक महसूस किया पर बस एक लम्हे के लिए .

“कबीर, पागल हुआ है क्या तू ” निशा ने तुरंत अपनी ओढनी के किनारे को फाड़ा और मेरी हथेली पर बाँध दिया .

“क्या हुआ निशा, मेरा खून उतना मीठा नहीं क्या जो तुझे पसंद नहीं आया. ” मैंने कहा

निशा - कबीर तू जा यहाँ से

मैं- मैं नहीं जानता तेरा मेरा क्या नाता होगा. पर निशा मैं इस से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता . गाँव वालो ने ओझा बुलाया है . वो आज नहीं तो कल तेरे बारे में मालूम कर ही लेगा. मैं हरगिज नहीं चाहता तुझे कोई भी नुकसान हो .

निशा- एक डायन की इतनी परवाह किसलिए कबीर

मैं- डायन नहीं होती तब भी इतनी ही फ़िक्र होती तेरी.

निशा- मुझे इतना मानता है तो मेरी भी सुनेगा क्या

मैं- तेरी ही तो सुनने आया हूँ.

निशा- तो फिर विशबास कर मुझ पर

मैं- बिसबास है इसीलिए तो तेरे साथ यहाँ पर हूँ

निशा- तो फिर ठीक है कल दोपहर को मैं तेरे गाँव में आउंगी . उस ओझा से मुलाकात करुँगी . अगर उसके इल्जाम साबित हुए कबीर तो इस डायन का वादा है तुझसे ये सूरत फिर न दिखाउंगी तुझे.

मैं- नहीं निशा, तू ऐसा कुछ नहीं करेगी ओझा गाँव की हद , गाँव की हर दिशा को कील रहा है .

निशा बस मुस्कुरा दी . निशा ने कल गाँव में आने का कह दिया था . ओझा के सामने जब वो आयेगी तो क्या होगा ये सोच कर मैं घबरा गया था पर असली घबराहट क्या होती है ये मुझे तब मालूम हुआ जब मैं वनदेव के पत्थर के पास पहुंचा ..... मैंने देखा. मैंने देखा की.................
Jabardast ek ek update romanch or suspense se bhara hua
 

Tiger 786

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#18



आँख खुली तो मैंने देखा की मेरे ऊपर कम्बल पड़ा था. निचे चाची और चंपा सो रही थी . मेरी नजर घडी पर पड़ी रात के दो बज रहे थे . मुझे महसूस हुआ की खाना खाना है . चंपा और चाची दोनों गहरी नींद में सोयी पड़ी थी . उन्हें जगाना उचित नहीं था पर किसी न किसी को तो रसोई खोलनी ही थी . मैं रसोई में गया और अपने लिए खाना निकाला . मैं वापिस ऊपर आ ही रहा था की कुछ आवाजो ने मेरा ध्यान खींच लिया. मैंने देखा हमारा दरवाजा हमेशा की तरह खुला ही पड़ा था .



“इसे बंद क्यों नहीं करते ” मैंने अपने आप से कहा और थाली को रख कर दरवाजे की तरफ चल दिया.मैं दरवाजे को बंद कर ही रहा था की कुछ गीला गीला सा मेरे हाथ पर लगा. ओस समझ कर मैंने उसे अपनी शर्ट से साफ़ किया और फिर कुण्डी लगा कर वापिस आ गया. मैंने शांति से अपना खाना खाया और अपने कमरे में आकर सो गया.

अगला दिन बड़ा खूबसूरत था , धुंध इतनी घनी थी की मुझे छज्जे से निचे आँगन नहीं दिख रहा था . ओस की वजह से सब कुछ इतना गीला गीला था की जैसे रात में बारिश हुई हो. मैं निचे गया तो चाची से मुलाकात हो गयी .

चाची- सही समय पर उठे हो चाय बन ही रही है .

मैं- हाथ-मुह धोकर आता हूँ

मैंने शाल को उतार कर चाची को दिया और नलके की तरफ जा ही रहा था की चाची ने मुझे टोक दिया.

चाची- ये तेरी शर्ट पर क्या लगा है

मैं- क्या लगा है

कहते हुए मैंने देखा इ शर्ट पर लाल निशान थे . तभी मुझे ध्यान आया की शर्ट से मैंने रात को हाथ साफ़ किया था . मेरे दिमाग में घंटिया सी बजने लगी. चाची मुझे ही देख रही थी .

मैं- कुछ लग गया होगा.

मैं तुरंत दरवाजे के पास गया देखा की कुण्डी पर भी सुर्ख लाल रंग चिपका हुआ था और मुझे कोई ताज्जुब नहीं था ये समझने में की ये खून है. मेरा माथा ठनका दरवाजे पर खून कैसे आया जबकि किसी को भी कोई चोट नहीं लगी थी . सोचते हुए मैंने दरवाजे को साफ़ किया और शर्ट को धोने के लिए डाल दी.

चाय पीते हुए मेरी आँखे एक बार फिर से चाची की कटीली जवानी को निहार रही थी कौन कह सकता था की ये पैंतीस बरस की ये गदराई हुई औरत ना विधवा थी न सुहागन. खिले हुए ताजा गुलाब पर जैसे ओस पूरी रात बरसी हो चाची का यौवन ठीक वैसा ही था .

चाची- क्या देख रहा है ऐसे

मैं- बड़ी प्यारी लग रही हो तुम.

चाची- ये तो तू रोज ही कहता है

मैं- सच ही तो कहता हूँ मैं

चाची- मेरी तारीफ छोड़ और जा भाभी के लिए नाश्ता ले जा. बहुरानी से कहना की उसे निचे आने की जरुरत नहीं है वो आराम ही करे.

मैं नाश्ता लेकर गया . भाभी खिड़की से बाहर देख रही थी .

भाभी- देवर जी तुम ये क्यों लाये

मैं- सारे घर का भार आप पर हैं , इतना तो मेरा भी फर्ज है न भाभी .

भाभी मुस्कुराई.

मैं- अब तबियत कैसी है

भाभी- बेहतर है .

तभी बाहर से गाड़ी की आवाज आई . मैंने देखा भैया सहर से लौट आये थे तो मैं दौड़ के उनके पास गया .

मैं- लड़का कैसा है भैया

भैया- डॉक्टर के पास कोई तोड़ नहीं है . खून की बोतले चढ़ती है और उसका शरीर निचोड़ लेता है . डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए है . पिताजी ने सुचना भिजवाई थी की कोई ओझा आने वाला है तो हम लड़के को गाँव ले आये है वो ही अब कुछ समाधान करेगा.

मैं- आपको क्या लगता है

भैया- मेरे आदमियों ने बहुत तलाश की जंगल में . आसपास के तमाम इलाको में पर हाथ खाली ही रहा . रात को आस पास के गाँवो के मोजिज लोगो की सभा होगी जिसमे देखेंगे की क्या निष्कर्ष निकलता है . मैं बहुत थका हु, खाने को कुछ है तो ले आओ मैं सोऊंगा थोड़ी देर.



दोपहर होते होते ओझा भी गाँव आ पहुंचा . अपने दो चेलो संग. पिताजी ने उसके रहने-सहने की व्यवस्था पहले ही करवा दी थी . ओझा ने जलपान करने के बाद अपना स्थान बना लिया . एक छोटी सी पूजा करने के बाद उसने अपनी कार्यवाही शुरू की . न जाने क्या पढ़ रहा था वो कभी इधर देखता कभी उधर फिर उसने पंच के लड़के को देखा . उसकी नब्ज़ टटोली उसकी काली पड़ गयी आँखों में देखा और शांत हो गया.

“कुछ तो बोलिए महाराज ” पंच ने आग्रह किया

ओझा- ये लड़का तीन दिन के भीतर मर जायेगा.

ओझा ने जैसे ही कहा पंच के परिवार का रोना-पीटना शुरू हो गया. माहौल गमजदा हो गया .

पिताजी- महराज कोई तो उपाय होगा.

ओझा- इस मुर्ख ने स्वयं अपना खून अर्पित किया है . इसने वचन दिया है रक्त की बूँद बूँददेने का वचन की पालना हो रही है .

ओझा की बात तमाम लोगो के सर के ऊपर से गयी.

“किसको रक्त देने का वचन दिया है इसने ” मैंने ओझा से पूछा

ओझा ने जवाब देने में बहुत समय लिया तब तक उसकी नजरे मुझ पर जमी रही फिर वो बोला-लालच, कामना व्यक्ति के सबसे बड़े शत्रु है . इसके हालात भी कुछ ऐसे रहे होंगे की ये सच और झूठ का फर्क नहीं कर पाया और जीवन-मृत्यु के फेर में उलझ गया .

मैं- पर किसको वचन दिया इसने ये तो बताओ

ओझा-धीरज रखो. समय आने पर मालूम हो जायेगा. मैं इसकी मृत्यु नहीं टाल पाऊंगा . कोई भी नहीं टाल पायेगा पर मैं गाँव की सुरक्षा के उपाय जरुर करूँगा. गाँव वाले मेरे बनाये नियमो का पालन करेंगे तो मेरा वचन है सुरक्षित रहेंगे. मैं गाँव की हद को कील दूंगा.

गाँव वालो को ओझा के आश्वासन ने राहत तो मिली पर लड़के मी मौत हो ही जाएगी इस से दुःख भी था . पिताजी ने कुछ समय बाद सबको जाने के लिए कहा और खुद भी चले गए मैं भी वहां से निकल ही रहा था की ओझा ने मुझे रोक लिया.

ओझा- रुको कुंवर

मैं- जी कहिये.


ओझा- उसने तुम्हे क्यों छोड़ दिया...............
Behtreen update
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Har update ke last me jo suspense create karte ho na writer Sahab, readers Ko bechain kar deta ho agle update tak
As usual excellent updates
 
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