सीने के जख्म जो ताजा थे दर्द उतर आया उनमे. न चाहते हुए भी मेरे होंठो से आह निकल गयी.
निशा- क्या हुआ
मैं- कुछ नहीं चोट का दर्द है ठीक हो जायेगा.
निशा- मैं चलती हूँ
मैं- मैं भी , क्या तुम मोड़ तक मेरे साथ चलना पसंद करोगी.
निशा- ठीक है
खामोश कदमो से वो मेरे बराबर चल रही थी . काले घाघरे-चोली में उसके खुले बाल . सच कहूँ तो दिल चाहता था की उसे बस देखता रहूँ. इतनी प्यारी लग रही थी वो की नजर हटे ही नहीं उस चेहरे से.
निशा- क्या सोच रहा है
मैं- यही की किसी दोपहर , किसी पनघट पर तेरी-मेरी मुलाकात हो . मैं ओक लगाऊ तू मटके को मेरी तरफ करे. तेरी खनकती चूडियो से वो पनघट में हलचल मच जाये. तेरे आँचल से अपने भीगे चेहरे को पोंछु मैं .
निशा ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- ये भरम पालने का क्या फायदा . मैं खुद हैरान हूँ , इन दो मुलाकातों के बारे में सोच कर .
मैं- तू क्यों सोचती है जब तूने सब कुछ नियति पर ही छोड़ा हुआ है तो इस मामले को भी नियति के हवाले कर दे.
निशा- हम दोनों की अपनी अपनी हदे है . मेरी हद ये जंगल है . तेरी हद वो गाँव है . इनके बीच जो फासला है वो बना रहना चाहिए इसी में सबकी नेकी है.
बातो ही बातो में हम उस रस्ते पर आ गए थे जहाँ से एक तरफ उसे जाना था तो एक तरफ मुझे. उसने एक बार भी पलट कर नहीं देखा मैंने उसे तब तक देखा जब तक की धुंध ने उसे लील नहीं लिया. पूरा गाँव सुनसान पड़ा था , यहाँ तक की कुत्ते भी दुबके हुए थे. मैंने चाची को जगाना उचित नहीं समझा और अपने चोबारे की तरफ जाने लगा. मैंने देखा की भाभी के कमरे की बत्ती जल रही थी . जैसे ही मैं सीढिया चढ़ने लगा भाभी ने मुझे पकड़ लिया.
भाभी- तो कैसी रही आवारागर्दी के लिए एक और रात
मैं- आप सोयी नहीं अभी तक
भाभी- जिस घर के दो जवान बेटे घर से बाहर हो तो किसी को तो नींद नहीं आयेगी न.
मैं- हमेशा आप पकड़ लेती है मुझे
भाभी- तुम्हे, तुमसे ज्यादा जानती हूँ .
मैं- सो तो है
भाभी- चूँकि तुम शहर नहीं गए तो तुम्हे संकोच नहीं होना चाहिए ये बताने में की इतनी रात तक तुम कहाँ थे .तमाम वो सम्भावनाये जिन पर मैं विचार कर सकती थी मैंने तलाश ली है .
मैं- भाभी आप जैसा सोच रही है वैसा बिलकुल भी नहीं है
भाभी- तो फिर बताओ न मुझे की आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसमे एक जवान लड़का रात रात भर जब और दुनिया रजाई में दुबकी ठण्ड से जूझ रही है , लड़का इन ठिठुरती रातो में घूम रहा है . ऐसी क्या वजह है जो तुम्हे राय साहब की भी परवाह नहीं है . मैं बहुत उत्सुक हूँ उस वजह को जानने के लिए.
मैं-सच कहूँ तो भाभी इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं है
भाभी- क्या मेरा देवर गाँव की किसी लड़की या औरत के सम्पर्क में है
मैं- नहीं भाभी बिलकुल नहीं
भाभी- अगर ऐसा हुआ तो मैं उसे तलाश लुंगी देवर जी, और फिर जो होगा उसके लिए अगर कोई जिम्मेदार होगा तो सिर्फ तुम
मैंने भाभी के चरणों को हाथ लगाया और चोबारे में घुस गया . बिस्तर पर लेटे लेटे मैं बस निशा के बारे में ही सोच रहा था . जब भी आँखे बंद करता वो चेहरा मेरी नींद चुरा लेता. और होता भी क्यों न जब वो जाग रही थी तो मुझे भला नींद कैसे आती.
सुबह मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और फिर खेतो के लिए घर से निकलने लगा. मैंने देखा की पिताजी घर पर नहीं थे . रस्ते में मुझे चंपा मिल गयी.
“रोक रोक साइकिल ” उसने कहा
मैं- क्या काम है जल्दी बोल
चंपा- खेतो पर जा रहा है तो मुझे बिठा ले चल
मैं- पैदल आ जाना तू मुझे जल्दी है
चंपा- मुझे भी जल्दी है , बिठा ले इतने भी क्या नखरे तेरे
मैं- ठीक है
चंपा- आगे बैठूंगी.
मैं- तू भी न , कोई देखेगा तो क्या सोचेगा
चंपा- यहाँ से लेकर खेतो तक न के बराबर लोग ही मिलेंगे हमें रस्ते में
चंपा से जिद करने का मतलब था खुद के सर में हथोडा मारना तो मैंने चुपचाप उसे आगे डंडे पर बिठा लिया. और साइकिल चलाने लगा.
मैं- डंडे पर क्या आराम मिलेगा तुझे पीछे आराम से बैठती.
मेरे पैर उसकी जांघो और कुलहो पर रगड़ खा रहे थे .
चंपा- डंडे पर ही तो बैठने का मजा है निर्मोही पर तू है की कुछ समझता ही नहीं .
मैं- ऐसी बाते करेगी तो यही उतार दूंगा.
चंपा - मेरी ऐसी बातो से तेरा डंडा झटके खाता है . वैसे तेरा डंडा है मजेदार
मैं- तेरे होने वाले पति का भी ऐसा ही होगा उस पर दिन रात बैठे रहना कोई नहीं रोकेगा तुझे.
चंपा- अभी तो बस तू और मैं है न
मैं- यही तो मुश्किल है
चंपा- चल छोड़ फिर ये बता पंच के लड़के को क्या हुआ है
मैं- मुझे क्या मालूम
चंपा- कल रात को एक काकी कह रही थी की हो न हो कुंवर पर ही किसी का साया है , कुंवर ही ये सारे हमले कर रहा है .
मैं- फिर तो तूने गलती की इस सुनसान में मैंने तुझ पर हमला कर दिया तो कौन बचाएगा तुझे.
चम्पा- मैं तो तरस रही हूँ उस दिन के लिए की तू कब मुझ पर चढ़ जाये.
उसकी बात सुन कर मुझे हंसी आ गयी .
चंपा- वैसे कबीर, अगर कभी ऐसा हमला मुझ पर हो गया तो तू क्या करेगा .
मैं- शुभ शुभ बोल चंपा. दुआ कर वो दिन कभी न आये. कभी न आये. तू हमारा परिवार है
चंपा - मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी .
बाते करते करते हम खेतो पर आ गए. मैंने साइकिल रोकी और पगडण्डी से होते हुए कुवे पर बने कमरे तक आ पहुंचे . जैसे हम उस जगह पर आये जहाँ मैं कल निशा के साथ था वहां कुछ ऐसा देखा की चंपा खुद को रोक नहीं पायी और उलटिया करने लगी................