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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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259
#14

वो जो भी था उसने मुझे नहीं मारा . ये सवाल मुझे पागल किये हुए था.

“सोना नहीं है क्या अब ” चाची ने कहा तो मैं ख्यालो की दुनिया से बाहर आया.

मैंने रजाई में सर दिया और आँखे बंद करली पर नींद बहुत मुश्किल से आई. सुबह एक बार फिर उठते ही मैंने चंपा को सामने पाया.

मैं- इतनी सुबह तू यहाँ

चंपा- मैं तो रोज इसी समय आती हूँ

मैं- चाची कहा है

चंपा- नहा रही है . ये सब छोड़ मुझे रात की बता क्या हुआ था . गाँव में बहुत खुसर पुसर हो रही है.

मैं- गाँव वाले है ही चुतिया.

मैंने सारी बात चंपा को बता दी.

चंपा-तुझे क्या जरुरत थी अगर तुझे कुछ हो जाता तो .

मैं- कुछ हुआ तो नहीं न

चंपा- लाली वाले कांड के बाद गाँव वाले तेरे खिलाफ है वो कोई कसर नहीं छोड़ेंगे तुझे बदनाम करने की. अगर तू राय साहब का बेटा न होता तो अब तक पंच और उसके पिल्ले न जाने क्या कर चुके होते.

मैं- पंच से तो मुझे भी खुंदक है , कभी मौका मिला तो उसकी गांड जरुर तोडूंगा

चंपा- सुन तुझे चाहिए तो मैं अभी नाश्ता बना देती हूँ वर्ना फिर मैं, चाची और भाभी मंदिर जा रहे है भाभी ने कोई पूजा रखवाई है तेरे लिए तो दोपहर बाद ही आना होगा.

मैं- कोई दिक्कत नहीं . बस चाय बना दे एक कप

चंपा जब रसोई की तरफ जा रही थी तो न जाने क्यों मेरी नजर उसकी मटकती गांड से हट ही नहीं रही थी चाय पीने के बाद मैंने अपनी साइकिल उठाई और खेतो पर पहुँच गया . मुझे खेतो को नजर भर कर देखना था मैं ये नहीं चाहता था की मेरी वजह से फसल को नुकसान हो. एक ये ही काम तो था जिसे मैं दिल से करता था . हमारी जमीनों के बड़े हिस्से पर तो मजदुर काम करते थे . मैं भी उनके साथ कभी कभी काम करता .

दोपहर तक खेतो पर रहने के बाद मैं घर की तरफ जा रहा था की मैंने साइकिल जंगल की तरफ मोड़ दी. वनदेव के पत्थर के पास मैंने साइकिल खड़ी की . पत्थर को हाथ लगाकर आशीर्वाद लिया और फिर मैं पैदल ही उस तरफ चल दिया. उस तरफ जहाँ मैं एक बार फिर से जाना चाहता था . दो बार मैं भटका पर फिर भी मैं उस तालाब के पास पहुँच ही गया. उस जगह की रचना ही ऐसी थी की घने पेड़ो, झाड़ियो की वजह से पहली नजर में उसे देख पाना लगभग नामुमकिन ही था .

दिन की रौशनी में तालाब का नीला पानी इतना दिलकश था की जी करे उसे देखता ही रहे. एक तरफ से पत्थरों की दिवार जो तालाब और जंगल के बीच सरहद बनाती थी .रौशनी में वो खंडहर बताता था की किसी ज़माने में बड़ी शान रही होगी उसकी. बेशक वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण रहा होगा वो किसी ज़माने में पर मेरी दिलचस्पी किसी और में थी .

सीढिया चढ़ कर मैं ठीक उसी जगह पहुँच गया जहाँ पर मेरी मुलाकात डायन से हुई थी . हवा जैसे रुक सी गयी थी . सन्नाटा इतना गहरा की एक पत्ता भी हिले तो बम सा धमाका हो. चुने-पत्थर से बनी दीवारों का पलस्तर जगह जगह से उखड़ा हुआ था . कहीं कहीं से छत भी टूटी हुई थी . चारो तरफ घूम कर मैंने जगह का अच्छी तरह से अवलोकन किया पर ऐसा कुछ भी नहीं था जो इंसानों की आमद बता सके.



तभी मेरी नजर एक तरफ जाती छोटी सीढियों पर गयी . मैं उनसे उतरते हुए मंदिर के पीछे पहुँच गया . वहां पर मैंने एक मरे हुए हिरन को देखा जिसकी मौत को ज्यादा समय नहीं हुआ था . घंटे-डेढ़ घंटे मैं वहां रहा इंतजार किया पर शायद आज उसके दर्शन दुर्लभ थे जिसकी मुझे चाह थी . बस तस्सली इस बात की थी उस रात की मुलाकात भ्रम नहीं थी .

“फिर कभी मुलाकात होगी ” कहते हुए मैंने अपने दिल को तस्सली दी और वापिस मुड गया . तालाब के पास से गुजरते हुए मुझे एक बार अनुभव हुआ की किसी ने पानी में छलांग लगाई हो पर पीछे मुड़ने पर कोई नहीं था .

शाम होते होते मैं गाँव पहुँच गया. भाभी मेरा ही इंतजार कर रही थी .

भाभी- कहाँ गायब थे तुम. रात को रोका तो दिन में गायब हो गए. इरादे क्या हैं तुम्हारे

मैं- हम गरीबो के भी क्या इरादे भाभी. खेतो पर ही था पूरा दिन

भाभी- लगता है तुम्हारे पांवो में ऐसी जंजीर बांधनी पड़ेगी , जिस से तुम्हारे कदम घर पर रहे.

मैं- कैसी जंजीर भाभी

भाभी- यही की अब समय आ गया है हमें तुम्हारी शादी के बारे में सोचना चाहिए. कहो तो मेरी चचेरी बहन से बात चलाऊ

मैं- अभी तो मैंने ऐसा कुछ सोचा नहीं है , पर जिस दिन कोई ऐसी मिलेगी जिसके लिए दिल धड़केगा तो सबसे पहले आपको ही आकर बताऊंगा.

भाभी- हमारे यहाँ रिश्ते दिल नहीं घरवाले तय करते है .

मैं- अपना तो दिल ही तय करेगा.

जब मैंने भाभी से ये बात कही तो मेरी आँखों के सामने डायन का चेहरा आ गया .न जाने क्यों होंठो पर मुस्कान आ गयी . भाभी बस देखती रह गयी मुझे. रात को खाने-पीने के बाद एक बार फिर मैं चाची के घर आ गया. मैंने गौर किया चाची आज बड़ी प्यारी लग रही थी . नीले लहंगे और सफ़ेद ब्लाउज में अप्सरा सी लग रही थी . चूँकि ओढनी हटा राखी तो ब्लाउज में कैद गुब्बारे मचल रहे थे . मैंने एक बात और गौर की चाची कच्छी नहीं पहनती थी क्योंकि जांघो के जोड़ पर चूत की शेप बिलकुल नुमायाँ हो रही थी .

मैंने बस एक झलक देखि उसकी क्योंकि फिर वो रसोई में चली गयी थी पीछे पीछे मैं भी वही चला गया .

“क्या कर रही हो ” मैंने चाची के पीछे सटते हुए कहा

चाची- दूध गर्म कर रही हूँ तेरे लिए. गोंद के लड्डू संग पी लेना. लाडू का पीपा उतारने के बाद चाची चूल्हे पर उबलते दूध को देखने के लिए झुकी और जब वो झुकी तो मैंने क्या खूब नजारा देखा. झुकने की वजह से चाची के नितम्ब पीछे को उभर आये थे और जीवन में पहली बार मैंने उनकी मादकता को महसूस किया था . दो दो किलो मांस तो जरुर होगा उनमे.

तभी चाची उठी और पलटते ही मेरे से टकरा गयी चाची की छातिया मेरे सीने से आ लगी. मैंने चाची की कमर में हाथ डाला और चाची को थाम लिया. अपना हाथ ले जाकर मैंने चाची के चूतडो पर फेरा तो चाची के बदन में सिरहन दौड़ गयी . ये वो लम्हा था जिसने चाची और मेरे दरमियान एक नए रिश्ते की नींव रख दी थी . मैंने चाची के कुलहो को अपने दोनों हाथो में थाम लिया और अपने होंठ चाची के होंठो पर रख दिया. चंपा के बाद चाची दूसरी औरत थी जिसके होंठ मैंने चुसे थे . पर जैसे किसी सपने सा ये चुम्बन तुरंत ही टूट गया .



“कबीर कबीर ” बाहर से कोई दरवाजा पीट रहा था .
 

Tiger 786

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Be
#14

वो जो भी था उसने मुझे नहीं मारा . ये सवाल मुझे पागल किये हुए था.

“सोना नहीं है क्या अब ” चाची ने कहा तो मैं ख्यालो की दुनिया से बाहर आया.

मैंने रजाई में सर दिया और आँखे बंद करली पर नींद बहुत मुश्किल से आई. सुबह एक बार फिर उठते ही मैंने चंपा को सामने पाया.

मैं- इतनी सुबह तू यहाँ

चंपा- मैं तो रोज इसी समय आती हूँ

मैं- चाची कहा है

चंपा- नहा रही है . ये सब छोड़ मुझे रात की बता क्या हुआ था . गाँव में बहुत खुसर पुसर हो रही है.

मैं- गाँव वाले है ही चुतिया.

मैंने सारी बात चंपा को बता दी.

चंपा-तुझे क्या जरुरत थी अगर तुझे कुछ हो जाता तो .

मैं- कुछ हुआ तो नहीं न

चंपा- लाली वाले कांड के बाद गाँव वाले तेरे खिलाफ है वो कोई कसर नहीं छोड़ेंगे तुझे बदनाम करने की. अगर तू राय साहब का बेटा न होता तो अब तक पंच और उसके पिल्ले न जाने क्या कर चुके होते.

मैं- पंच से तो मुझे भी खुंदक है , कभी मौका मिला तो उसकी गांड जरुर तोडूंगा

चंपा- सुन तुझे चाहिए तो मैं अभी नाश्ता बना देती हूँ वर्ना फिर मैं, चाची और भाभी मंदिर जा रहे है भाभी ने कोई पूजा रखवाई है तेरे लिए तो दोपहर बाद ही आना होगा.

मैं- कोई दिक्कत नहीं . बस चाय बना दे एक कप

चंपा जब रसोई की तरफ जा रही थी तो न जाने क्यों मेरी नजर उसकी मटकती गांड से हट ही नहीं रही थी चाय पीने के बाद मैंने अपनी साइकिल उठाई और खेतो पर पहुँच गया . मुझे खेतो को नजर भर कर देखना था मैं ये नहीं चाहता था की मेरी वजह से फसल को नुकसान हो. एक ये ही काम तो था जिसे मैं दिल से करता था . हमारी जमीनों के बड़े हिस्से पर तो मजदुर काम करते थे . मैं भी उनके साथ कभी कभी काम करता .

दोपहर तक खेतो पर रहने के बाद मैं घर की तरफ जा रहा था की मैंने साइकिल जंगल की तरफ मोड़ दी. वनदेव के पत्थर के पास मैंने साइकिल खड़ी की . पत्थर को हाथ लगाकर आशीर्वाद लिया और फिर मैं पैदल ही उस तरफ चल दिया. उस तरफ जहाँ मैं एक बार फिर से जाना चाहता था . दो बार मैं भटका पर फिर भी मैं उस तालाब के पास पहुँच ही गया. उस जगह की रचना ही ऐसी थी की घने पेड़ो, झाड़ियो की वजह से पहली नजर में उसे देख पाना लगभग नामुमकिन ही था .

दिन की रौशनी में तालाब का नीला पानी इतना दिलकश था की जी करे उसे देखता ही रहे. एक तरफ से पत्थरों की दिवार जो तालाब और जंगल के बीच सरहद बनाती थी .रौशनी में वो खंडहर बताता था की किसी ज़माने में बड़ी शान रही होगी उसकी. बेशक वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण रहा होगा वो किसी ज़माने में पर मेरी दिलचस्पी किसी और में थी .

सीढिया चढ़ कर मैं ठीक उसी जगह पहुँच गया जहाँ पर मेरी मुलाकात डायन से हुई थी . हवा जैसे रुक सी गयी थी . सन्नाटा इतना गहरा की एक पत्ता भी हिले तो बम सा धमाका हो. चुने-पत्थर से बनी दीवारों का पलस्तर जगह जगह से उखड़ा हुआ था . कहीं कहीं से छत भी टूटी हुई थी . चारो तरफ घूम कर मैंने जगह का अच्छी तरह से अवलोकन किया पर ऐसा कुछ भी नहीं था जो इंसानों की आमद बता सके.



तभी मेरी नजर एक तरफ जाती छोटी सीढियों पर गयी . मैं उनसे उतरते हुए मंदिर के पीछे पहुँच गया . वहां पर मैंने एक मरे हुए हिरन को देखा जिसकी मौत को ज्यादा समय नहीं हुआ था . घंटे-डेढ़ घंटे मैं वहां रहा इंतजार किया पर शायद आज उसके दर्शन दुर्लभ थे जिसकी मुझे चाह थी . बस तस्सली इस बात की थी उस रात की मुलाकात भ्रम नहीं थी .

“फिर कभी मुलाकात होगी ” कहते हुए मैंने अपने दिल को तस्सली दी और वापिस मुड गया . तालाब के पास से गुजरते हुए मुझे एक बार अनुभव हुआ की किसी ने पानी में छलांग लगाई हो पर पीछे मुड़ने पर कोई नहीं था .

शाम होते होते मैं गाँव पहुँच गया. भाभी मेरा ही इंतजार कर रही थी .

भाभी- कहाँ गायब थे तुम. रात को रोका तो दिन में गायब हो गए. इरादे क्या हैं तुम्हारे

मैं- हम गरीबो के भी क्या इरादे भाभी. खेतो पर ही था पूरा दिन

भाभी- लगता है तुम्हारे पांवो में ऐसी जंजीर बांधनी पड़ेगी , जिस से तुम्हारे कदम घर पर रहे.

मैं- कैसी जंजीर भाभी

भाभी- यही की अब समय आ गया है हमें तुम्हारी शादी के बारे में सोचना चाहिए. कहो तो मेरी चचेरी बहन से बात चलाऊ

मैं- अभी तो मैंने ऐसा कुछ सोचा नहीं है , पर जिस दिन कोई ऐसी मिलेगी जिसके लिए दिल धड़केगा तो सबसे पहले आपको ही आकर बताऊंगा.

भाभी- हमारे यहाँ रिश्ते दिल नहीं घरवाले तय करते है .

मैं- अपना तो दिल ही तय करेगा.

जब मैंने भाभी से ये बात कही तो मेरी आँखों के सामने डायन का चेहरा आ गया .न जाने क्यों होंठो पर मुस्कान आ गयी . भाभी बस देखती रह गयी मुझे. रात को खाने-पीने के बाद एक बार फिर मैं चाची के घर आ गया. मैंने गौर किया चाची आज बड़ी प्यारी लग रही थी . नीले लहंगे और सफ़ेद ब्लाउज में अप्सरा सी लग रही थी . चूँकि ओढनी हटा राखी तो ब्लाउज में कैद गुब्बारे मचल रहे थे . मैंने एक बात और गौर की चाची कच्छी नहीं पहनती थी क्योंकि जांघो के जोड़ पर चूत की शेप बिलकुल नुमायाँ हो रही थी .

मैंने बस एक झलक देखि उसकी क्योंकि फिर वो रसोई में चली गयी थी पीछे पीछे मैं भी वही चला गया .

“क्या कर रही हो ” मैंने चाची के पीछे सटते हुए कहा

चाची- दूध गर्म कर रही हूँ तेरे लिए. गोंद के लड्डू संग पी लेना. लाडू का पीपा उतारने के बाद चाची चूल्हे पर उबलते दूध को देखने के लिए झुकी और जब वो झुकी तो मैंने क्या खूब नजारा देखा. झुकने की वजह से चाची के नितम्ब पीछे को उभर आये थे और जीवन में पहली बार मैंने उनकी मादकता को महसूस किया था . दो दो किलो मांस तो जरुर होगा उनमे.

तभी चाची उठी और पलटते ही मेरे से टकरा गयी चाची की छातिया मेरे सीने से आ लगी. मैंने चाची की कमर में हाथ डाला और चाची को थाम लिया. अपना हाथ ले जाकर मैंने चाची के चूतडो पर फेरा तो चाची के बदन में सिरहन दौड़ गयी . ये वो लम्हा था जिसने चाची और मेरे दरमियान एक नए रिश्ते की नींव रख दी थी . मैंने चाची के कुलहो को अपने दोनों हाथो में थाम लिया और अपने होंठ चाची के होंठो पर रख दिया. चंपा के बाद चाची दूसरी औरत थी जिसके होंठ मैंने चुसे थे . पर जैसे किसी सपने सा ये चुम्बन तुरंत ही टूट गया .




“कबीर कबीर ” बाहर से कोई दरवाजा पीट रहा था .
Behtreen update
 
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#14

वो जो भी था उसने मुझे नहीं मारा . ये सवाल मुझे पागल किये हुए था.

“सोना नहीं है क्या अब ” चाची ने कहा तो मैं ख्यालो की दुनिया से बाहर आया.

मैंने रजाई में सर दिया और आँखे बंद करली पर नींद बहुत मुश्किल से आई. सुबह एक बार फिर उठते ही मैंने चंपा को सामने पाया.

मैं- इतनी सुबह तू यहाँ

चंपा- मैं तो रोज इसी समय आती हूँ

मैं- चाची कहा है

चंपा- नहा रही है . ये सब छोड़ मुझे रात की बता क्या हुआ था . गाँव में बहुत खुसर पुसर हो रही है.

मैं- गाँव वाले है ही चुतिया.

मैंने सारी बात चंपा को बता दी.

चंपा-तुझे क्या जरुरत थी अगर तुझे कुछ हो जाता तो .

मैं- कुछ हुआ तो नहीं न

चंपा- लाली वाले कांड के बाद गाँव वाले तेरे खिलाफ है वो कोई कसर नहीं छोड़ेंगे तुझे बदनाम करने की. अगर तू राय साहब का बेटा न होता तो अब तक पंच और उसके पिल्ले न जाने क्या कर चुके होते.

मैं- पंच से तो मुझे भी खुंदक है , कभी मौका मिला तो उसकी गांड जरुर तोडूंगा

चंपा- सुन तुझे चाहिए तो मैं अभी नाश्ता बना देती हूँ वर्ना फिर मैं, चाची और भाभी मंदिर जा रहे है भाभी ने कोई पूजा रखवाई है तेरे लिए तो दोपहर बाद ही आना होगा.

मैं- कोई दिक्कत नहीं . बस चाय बना दे एक कप

चंपा जब रसोई की तरफ जा रही थी तो न जाने क्यों मेरी नजर उसकी मटकती गांड से हट ही नहीं रही थी चाय पीने के बाद मैंने अपनी साइकिल उठाई और खेतो पर पहुँच गया . मुझे खेतो को नजर भर कर देखना था मैं ये नहीं चाहता था की मेरी वजह से फसल को नुकसान हो. एक ये ही काम तो था जिसे मैं दिल से करता था . हमारी जमीनों के बड़े हिस्से पर तो मजदुर काम करते थे . मैं भी उनके साथ कभी कभी काम करता .

दोपहर तक खेतो पर रहने के बाद मैं घर की तरफ जा रहा था की मैंने साइकिल जंगल की तरफ मोड़ दी. वनदेव के पत्थर के पास मैंने साइकिल खड़ी की . पत्थर को हाथ लगाकर आशीर्वाद लिया और फिर मैं पैदल ही उस तरफ चल दिया. उस तरफ जहाँ मैं एक बार फिर से जाना चाहता था . दो बार मैं भटका पर फिर भी मैं उस तालाब के पास पहुँच ही गया. उस जगह की रचना ही ऐसी थी की घने पेड़ो, झाड़ियो की वजह से पहली नजर में उसे देख पाना लगभग नामुमकिन ही था .

दिन की रौशनी में तालाब का नीला पानी इतना दिलकश था की जी करे उसे देखता ही रहे. एक तरफ से पत्थरों की दिवार जो तालाब और जंगल के बीच सरहद बनाती थी .रौशनी में वो खंडहर बताता था की किसी ज़माने में बड़ी शान रही होगी उसकी. बेशक वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण रहा होगा वो किसी ज़माने में पर मेरी दिलचस्पी किसी और में थी .

सीढिया चढ़ कर मैं ठीक उसी जगह पहुँच गया जहाँ पर मेरी मुलाकात डायन से हुई थी . हवा जैसे रुक सी गयी थी . सन्नाटा इतना गहरा की एक पत्ता भी हिले तो बम सा धमाका हो. चुने-पत्थर से बनी दीवारों का पलस्तर जगह जगह से उखड़ा हुआ था . कहीं कहीं से छत भी टूटी हुई थी . चारो तरफ घूम कर मैंने जगह का अच्छी तरह से अवलोकन किया पर ऐसा कुछ भी नहीं था जो इंसानों की आमद बता सके.



तभी मेरी नजर एक तरफ जाती छोटी सीढियों पर गयी . मैं उनसे उतरते हुए मंदिर के पीछे पहुँच गया . वहां पर मैंने एक मरे हुए हिरन को देखा जिसकी मौत को ज्यादा समय नहीं हुआ था . घंटे-डेढ़ घंटे मैं वहां रहा इंतजार किया पर शायद आज उसके दर्शन दुर्लभ थे जिसकी मुझे चाह थी . बस तस्सली इस बात की थी उस रात की मुलाकात भ्रम नहीं थी .

“फिर कभी मुलाकात होगी ” कहते हुए मैंने अपने दिल को तस्सली दी और वापिस मुड गया . तालाब के पास से गुजरते हुए मुझे एक बार अनुभव हुआ की किसी ने पानी में छलांग लगाई हो पर पीछे मुड़ने पर कोई नहीं था .

शाम होते होते मैं गाँव पहुँच गया. भाभी मेरा ही इंतजार कर रही थी .

भाभी- कहाँ गायब थे तुम. रात को रोका तो दिन में गायब हो गए. इरादे क्या हैं तुम्हारे

मैं- हम गरीबो के भी क्या इरादे भाभी. खेतो पर ही था पूरा दिन

भाभी- लगता है तुम्हारे पांवो में ऐसी जंजीर बांधनी पड़ेगी , जिस से तुम्हारे कदम घर पर रहे.

मैं- कैसी जंजीर भाभी

भाभी- यही की अब समय आ गया है हमें तुम्हारी शादी के बारे में सोचना चाहिए. कहो तो मेरी चचेरी बहन से बात चलाऊ

मैं- अभी तो मैंने ऐसा कुछ सोचा नहीं है , पर जिस दिन कोई ऐसी मिलेगी जिसके लिए दिल धड़केगा तो सबसे पहले आपको ही आकर बताऊंगा.

भाभी- हमारे यहाँ रिश्ते दिल नहीं घरवाले तय करते है .

मैं- अपना तो दिल ही तय करेगा.

जब मैंने भाभी से ये बात कही तो मेरी आँखों के सामने डायन का चेहरा आ गया .न जाने क्यों होंठो पर मुस्कान आ गयी . भाभी बस देखती रह गयी मुझे. रात को खाने-पीने के बाद एक बार फिर मैं चाची के घर आ गया. मैंने गौर किया चाची आज बड़ी प्यारी लग रही थी . नीले लहंगे और सफ़ेद ब्लाउज में अप्सरा सी लग रही थी . चूँकि ओढनी हटा राखी तो ब्लाउज में कैद गुब्बारे मचल रहे थे . मैंने एक बात और गौर की चाची कच्छी नहीं पहनती थी क्योंकि जांघो के जोड़ पर चूत की शेप बिलकुल नुमायाँ हो रही थी .

मैंने बस एक झलक देखि उसकी क्योंकि फिर वो रसोई में चली गयी थी पीछे पीछे मैं भी वही चला गया .

“क्या कर रही हो ” मैंने चाची के पीछे सटते हुए कहा

चाची- दूध गर्म कर रही हूँ तेरे लिए. गोंद के लड्डू संग पी लेना. लाडू का पीपा उतारने के बाद चाची चूल्हे पर उबलते दूध को देखने के लिए झुकी और जब वो झुकी तो मैंने क्या खूब नजारा देखा. झुकने की वजह से चाची के नितम्ब पीछे को उभर आये थे और जीवन में पहली बार मैंने उनकी मादकता को महसूस किया था . दो दो किलो मांस तो जरुर होगा उनमे.

तभी चाची उठी और पलटते ही मेरे से टकरा गयी चाची की छातिया मेरे सीने से आ लगी. मैंने चाची की कमर में हाथ डाला और चाची को थाम लिया. अपना हाथ ले जाकर मैंने चाची के चूतडो पर फेरा तो चाची के बदन में सिरहन दौड़ गयी . ये वो लम्हा था जिसने चाची और मेरे दरमियान एक नए रिश्ते की नींव रख दी थी . मैंने चाची के कुलहो को अपने दोनों हाथो में थाम लिया और अपने होंठ चाची के होंठो पर रख दिया. चंपा के बाद चाची दूसरी औरत थी जिसके होंठ मैंने चुसे थे . पर जैसे किसी सपने सा ये चुम्बन तुरंत ही टूट गया .




“कबीर कबीर ” बाहर से कोई दरवाजा पीट रहा था .
Good update kuch kuch changes aane lage hai kabir ke andar jabse vo dayan ke pass se aaya hai ek to vo uss se attraction ho gaya hai dusra Chachi se bhi attract hone laga hai aaj to usne kiss hi kar di par ye sammohan thoda ghar ke bahar se pit rahe darvaje se chaliye dekhte hai kon tha ye jo darvaja pit raha tha aur kyu ab kya nayi buri khabar intezar kar rahi hai kabir ka
 

Studxyz

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मुश्किल से चाची के चूतड़ पर हाथों की और होठों पर चुमन की नौबत आयी थी लेकिन बीच में कौन भोसड़ीवाला आ गया और क्या नया काण्ड हो गया ?

देखा जाये तो कबीर बाज़ नहीं आएगा चाची को पटा के ये रातों को फिर भागेगा और किसी लफड़े में ज़रूर पड़ेगा वैसे भी इसका डायन पर दिल जो आ गया है तभी तो भाभी के सामने मंद मंद मुस्कुरा रहा था | वो भी कबीर पर फ़िदा है लेकिन दिखा नहीं रही है नया नया प्यार है तो शर्मा रही है :vhappy1:

डायन वाला सस्पेंस भी कोई तगता काण्ड वाला राज़ ही निकलने वाला लगता है
 
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