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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Paraoh11

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भाई साहब पहली बार आपकी कहानी के हीरो से दिल मिल रहा है।
बाक़ी अब तक सारे हीरो आपके लड़कीबाज़ और धोक़ेबाज ही थे। सभी लड़कियों को प्यार भरे वादे !
मुझे आपके ये किरदार अब तक सबसे प्यारे लगे।
दिल छू लिया पहली दफ़ा से ही!!
दो प्रेमिकाओं के चक्कर में दोनो से धोका, शायद कबीर ना करे ऐसा!!
बाक़ी कहानी आपकी बहुत ही रोचक है।👌🏽
ऐसी रचना हमारी नज़र करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार 🙏🏽
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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फिर वही गाँव की मिट्टी की महक, जवानी के जोश का इन्साफ, हवस, साजिश, कत्ल और खौफ....
सब कुछ वही.... लेकिन...
फिर से डूब जाने को.. दिल चाहता है... क्योंकि तैरकर पार करने वाले, गहराई की थाह नहीं ले पाते... और राज गहराई में ही छुपे होते हैं....

देखते हैं फौजी भाई... अब हमें (कुंवर को :D) कहाँ कहाँ भटकाते हुये मन्जिल तक लेकर जाओगे
मुसाफिर की कहाँ कभी कोई मंजिल हुई है भाई
 

Death Kiñg

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हर बीतते भाग के साथ कबीर का चरित्र और भी बेहतर लगने लगा है। बढ़िया चरित्र गढ़ रहें हैं आप कहानी के नायक का।

अभी तक तो कबीर और उसके बड़े भाई के बीच एक बहुत ही गहरा बंधन नज़र आ रहा है। भाइयों से बढ़कर दोस्ती का रिश्ता.. परंतु कहीं न कहीं अंदेशा हो रहा है कि भविष्य में दोनों के मध्य एक दरार पड़ती नजर आ सकती है। कारण क्या होगा, यदि ऐसा हुआ तो? भाभी?

चाची.. मेरे ख्याल में चाची ही वो पहली महिला होगी जिसके संग कबीर प्रथम बार संभोग सुख प्राप्त करेगा। अभी तक केवल चाची और चम्पा.. दो ही स्त्रियां नज़र आईं हैं कहानी में जिनका कबीर संग ऐसा रिश्ता बनता दिख रहा है। उस अनजान प्राणी द्वारा कबीर के लिंग पर काटने के पश्चात हुई घटना, कबीर का चम्पा और चाची को देखना, कबीर का चाची को इस बात से अवगत कराना कि वो चम्पा और उनके मध्य हुई घटना देख चुका है और इस अध्याय में सुबह का दृश्य.. कहीं न कहीं सब चीज़ें एकत्र होकर इसी ओर इशारा करती नजर आ रहीं हैं कि शायद जल्द ही..

कबीर के पिता, राय साहब का रुतबा भी कुछ हद तक सामने आ रहा है। शायद गांव के सरपंच हैं वो, या शायद सरपंच से भी अधिक रसूखदार। परंतु जो स्वर आज कबीर ने उनके और पंचों के समक्ष उठाया है, चाहे कबीर की बात जायज़ थी, तब भी इस स्वर की गूंज आगे तक सुनाई देने वाली है। पिता – पुत्र के मध्य एक बार शुरू हुई खींचतान कहां रुकेगी, कहना मुश्किल है। इसका मुख्य कारण, कबीर का सच्चा होना है। यदि राय साहब ने कबीर की जायज़ बात पर भी उसे दंड दे दिया, तो बेशक कहानी और कबीर का जीवन एक नया मोड़ लेगा।

लाली के मामले में राय साहब का निर्णय ही शायद अंतिम निर्णय होगा। देखना रोचक रहेगा कि वो कबीर की बात पर क्या फ़ैसला सुनाते हैं। मेरे ख्याल में अधिक से अधिक, वो मृत्युदंड की सजा वापिस ले सकते हैं, परंतु लाली को सजा वो देंगे ही, वैसे मृत्युदंड वापिस होने के आसार भी काम ही हैं। उस लाश का मुद्दा उठना बाकी है अभी, क्या वो कबीर के ही गांव का था, या किसी और गांव का? क्या कबीर का नाम उस मामले में उछलेगा? किसीने देखा होगा कबीर को उस लाश के साथ? एक बात तो तय है कि उस जंगल के भीतर ही छुपा है वो रहस्य जो शायद कबीर का जीवन है..

बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुतियां थी दोनों ही, बिल्कुल वही पुरानी छाप आपकी रचनाओं की। परंतु इस बार लगता है कि शायद इस कहानी में नायक का चरित्र और भी सुदृढ़ होने वाला है, आपकी पिछली कहानियों के निस्बत। बढ़ते रहिए!

अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Lutgaya

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#9

ताड़ी के नशे में मेरे पैर डगमगा रहे थे फिर भी मैं उस आवाज की तरफ भागा. कभी लगता की आवाज पास से आ रही थी कभी लगता की कराहे दूर है. और जब मैं गंतव्य तक पहुंचा तो मेरी रूह तक कांप गयी .जमीन पर एक बुजुर्ग पड़ा था खून से लथपथ जिसका पेट फटा हुआ था उसकी अंतड़िया बाहर को निकली हुई थी .

“किसने, किसने किया बाबा ये ” मैंने उसे सँभालते हुए पूछा

“वो, वो ”.उसने सामने की दिशा में उंगलियों से इशारा किया और उबकाई लेते हुए प्राण त्याग दिए. आँखों में बसा सुरूर एक झटके में गायब हो गया . ये दूसरी बार था जब जंगल में किसी पर हमला हुआ था और दोनों बार मैं वहां पर मोजूद था . ये कैसा इत्तेफाक था .



ये लाश मेरे पल्ले पड़ गयी थी . मैं तो जानता भी नहीं था ये कौन था . मैं कहाँ जाता किस से कहता की भाई, तुम्हारा बुजुर्ग जंगल में मर गया है . मेरा दिल तो नहीं मान रहा था पर हालात देखते हुए मैंने उस लाश को वहीँ पर छोड़ दिया . और वापिस उस तरफ को चल दिया जो मेरे गाँव का रास्ता था .

मैंने पाया की मंगू साइकिल के पास बैठे बैठे ऊंघ रहा था . मैंने उसे जगाया और हम गाँव आ गए. प्रोग्राम देखने का सारा उत्साह ख़ाक हो चूका था . पर मैंने सोच लिया की जंगल में क्या है ये हर हाल में मालूम करके ही रहूँगा.



“कबीर उठ, कितना सोयेगा तू ”

बोझिल आँखों ने खुलते ही देखा की चाची के ब्लाउज से झांकती चुचिया मेरे चेहरे पर लटक रही है . एक पल को लगा की ये सब सपना है . पर तभी चाची ने मुझे हिला कर जगा दिया .

मैं- उठ तो रहा हूँ

चाची-तू यहाँ सोया पड़ा है गाँव में गजब हो गया .

मैं एक दम से उठ खड़ा हुआ .

मैं- कौन सी आग लग गयी गाँव में . कल तक तो सब ठीक ही था न

चाची- लखेरो की जो औरत भाग गयी थी न उसे वापिस ले आये है जिसके साथ गयी थी उसे भी . परस में पंचायत बैठने वाली है .

मैं- इसमें पंचायत की क्या जरुरत उस औरत की मर्जी जिसके साथ भी रहे .

चाची- मुझे नहीं मालूम पुरे गाँव को वहां पर बुलाया गया है तू भी चल

मैं भी पंचायत में पहुँच गया . मैंने देखा की जो औरत घर से भागी थी उसे और उसके साथी को एक खम्बे से बांधा हुआ था . दोनों की हालत देख कर साफ पता चल रहा था की खूब मार-पिटाई की गयी थी उनके साथ . कुछ देर में गाँव के मोजिजलोग अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ गए गाँव वाले धरती पर बैठ गए. मैंने पिताजी को देखा जो अपनी सुनहरी ऐनक लगाये इधर उधर देख रहे थे .

“गाँव वालो जैसा की आप सब जानते है ये औरत लाली कुछ दिनों पहले अपने प्रेमी के साथ भाग गयी थी , ये जानते हुए भी की ये शादी-शुदा है इसका मर्द है फिर भी इसने दुसरे आदमी संग रिश्ता किया. गलत काम किया . गाँव-समाज अपने परिवार की बेइज्जती की .बहुत कोशिश करने के बाद आखिर हमने इनको पकड़ लिया और यहाँ ले आये है ताकि इंसाफ किया जा सके. पंचायत ने निर्णय लिया है की इनको इसी नीम के निचे फांसी दी जाये ताकि गाँव में फिर को भी ऐसा करने की सोचे भी न. आप सबको पंचायत का फैसला मंजूर है न , जिसको कुछ कहना है वो अपना हाथ उठाये ” पंच ने कहा.

मैंने सर हिला कर चारो तरफ देखा पुरे गाँव में एक भी आदमी ने अपना हाथ नहीं उठाया जबकि दो लोगो को फांसी देने की बात कही जा रही थी . मुझे न जाने क्या हुआ मैंने अपना हाथ उठाया और पुरे गाँव की नजरे मुझ पर जम गयी .

“मुझे कुछ कहना है ” मैंने कहा की चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया और चुपचाप बैठने का इशारा किया पर मैंने उसका हाथ झटक दिया और उठ कर पंचायत के पास गया .

मैं- मुझे आपत्ति है इस निर्णय पर

पंच- तुम अभी छोटे हो , दुनियादारी का ज्ञान नहीं है तुम्हे. ये गंभीर मुद्दे है .

मैं- दो लोगो को मारने की बात हो रही है ये क्या कम गंभीरता की बात है . पंचायत को किसी के प्राण लेने का कोई हक़ नहीं है, जन्म मृत्य इश्वर के हाथ में है . बेशक इस लाली ने घर से भागने की गलती की है पर इसकी सजा मौत नहीं हो सकती.

पंच- और इसके कारण रामू की इतनी बेइज्जती हुई. इसको कितने ताने सुनने पड़े की नामर्द है इसलिए भाग गयी. जब भी ये घर से बाहर निकलता लोग हँसते इसे देख कर . इसका जीना दुश्वार हो गया की लुगाई भाग गयी .

मैं- किस बेइज्जती की बात करते है आप पंच साहब, और कौन कर रहा था ये बेइज्जती . किसके ताने थे वो . आपके मेरे हम सब के , ये तमाम गाँव वाले जो आज चुपचाप बैठे है ये लोग ही तो रहे होंगे न ये सब ताने मारने वाले. इसके दोस्त, इसके पडोसी. हमारा ये समाज. तो फिर इन सब को भी कोई न कोई सजा तो मिलनी ही चाहिए न .



पंच- कबीर. मर्यादा की लकीर के किनारे पर खड़े हो तुम पंचायत का अपमान करने की जुर्रत न करो.

मैं- पंचायत ने इस निर्णय के खिलाफ आपत्ति मांगी थी , अब अप्त्त्ती सुनने में पंचायत को संकोच क्यों हो रहा है. क्या पंचायत में मन में कोई चोर है .

पंच- पंचायत यहाँ समाज के हित में निर्णय लेने को है .

मैं- तो मैं इस पंचायत और गाँव से कहना चाहता हूँ की लाली को इस लिए फांसी नहीं दी जा सकती की उसके भागने पर रामू को नामर्दी और बेइज्जती के ताने सुनने पड़े. असल में रामू नामर्द है .

उन्ह उन्ह पिताजी ने अपना गला खंखारा और ऐनक को उतार लिया ये उनका इशारा था की मैं चुप रहूँ पर अगर उस दिन चुप रहता तो फिर अपनी नजरो से गिर जाता.

मैं- मर्दानगी ये नहीं होती की औरत को जब दिल किया अपने निचे ले लिया . मर्दानगी होती है औरत का सम्मान करना. औरत जो अपना सब कुछ छोड़ कर आती है ताकि हमारे घर को घर बना सके,क्या नहीं करती वो परिवार के लिए. ये रामू जब देखो दारू पिए पड़ा रहता है . कमाई करता नहीं . घर-गुजारा कैसे होगा. तीसरे दिन ये लाली को पीटता . तब कोई पंचायत का सदस्य लाली के लिए निर्णय करने नहीं आया.

पंच- रामू की लुगाई है वो चाहे जैसे रखे उसका हक़ है .

मैं- लुगाई है गुलाम नहीं . एक सम्मानजनक जीवन जीने का लाली का हक़ भी उतना ही है जितना की आप सब का . मैं मानता हूँ की घर से भागना अनुचित है उसके लिए लाली को सजा दी जाये पर किसीको भी झूठी शान के लिए मार देना अन्याय है .



पंच- पंचायत ने निर्णय कर दिया है समाज के हितो की रक्षा के लिए ये फैसला ऐतिहासिक होगा. आने वाली पीढियों के लिए मिसाल होगी.

मैं-मैं नहीं मानता इस निर्णय को

पंच- राय साहब आपका बेटा पंचायत का अपमान कर रहा है आप समझिए इसे.

पिताजी अपनी कुर्सी से उठे और मुझसे बोले- घर जाओ अभी के अभी

मैं- जब तक मेरी आपत्ति मानी नहीं जाती मैं हिलूंगा भी नहीं यहाँ से .

जिन्दगी में पहली बार ऐसा हुआ था की राय साहब की बात किसी ने काटी हो. पुरे गाँव के सामने खुद राय साहब ने भी नहीं सोचा होगा की उनका खुद का बेटा उनके सामने ऐसे खड़ा होगा. ..........




कर दिया बगावत का झण्डा खडा जबकि खुद का डण्डा तो सूजा पडा है।
हीरोइन तो दो ही होती है आपकी कहानी में एक चंपा तो दूसरी काैन?
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#10

“इस गाँव का हर घर मेरा है , हर आदमी मेरा भाई-बेटा है . हर औरत मेरी बहन-बेटी है . इस गाँव की खुशहाली के लिए हम सब ने मिलकर कुछ नियम बनाये है ताकि भाई-चारा बना रहे. इस गाँव में बहुत सी जाती के लोग बसे हुए है पर आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे किसी भी गाँव वाले का सर झुका हो. इस प्रेम प्यार का एकमात्र कारण है हमारे उसूल जिन पर हम सब चलते आ रहे है . लाली हम में से एक थी पर उसने पर पुरुष का साथ किया जो की अनुचित है . चूँकि पंचायत के माननीय सदस्यों ने निर्णय कर ही लिया तो हम सब को निर्णय का उच्चित सम्मान करना चाहिए ” पिताजी ने कहा .

पिताजी की बात सुनकर मुझ बहुत गहरा धक्का लगा राय चंद जी एक अनुचित काम को समर्थन दे रहे थे .

“पंचायत के निर्णय को मैं अपनी जुती की नोक पर रखता हूँ , मैं देखता हूँ कौन हाथ लगाता है मेरे होते हुए इन दोनों को ” मैंने गुस्से से कहा .

“तुम अपनी सीमा लांघ रहे हो कबीर ” पिताजी की आवाज में तल्खी थी.

“कुंवर, आपको हमारे लिए इन लोगो से झगडा करने की जरुरत नहीं है . आपने हमें समझा यही बड़ी बात है , ये झूठी शान में जीने वाले लोग कभी प्रेम को नहीं समझ सकते. हमारी नियति में जो है वो हमें मिलेगा.” लाली ने अपने हाथ मेरे सामने जोड़ते हुए कहा .

मैं- जीवन इश्वर का अनमोल तोहफा है और किसी को भी हक़ नहीं उसे नष्ट करने का सिवाय इश्वर के.

इस से पहले की मेरी बात ख़तम होती पिताजी का थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ चूका था . जिस पिता ने कभी ऊँगली तक मेरी तरफ नहीं की थी उसने पुरे गाँव के सामने मुझे थप्पड़ मारा था .

“हमने कहा था न की अपनी सीमा मत लाँघो कबीर. इस दुनिया में किसी की भी हिम्मत नहीं की हमारी बात काट सके.पंचायत की निर्णय की तुरंत तामिल की जाए ” पिताजी की गरजती आवाज चौपाल में गूँज रही थी .

तुंरत ही कुछ लोग लाली की तरफ लपके .

मैं- खबरदार जो इन दोनों को किसी ने भी हाथ लगाया जो हाथ लाली की तरफ बढेगा उस हाथ को उखाड़ दूंगा मैं.

पिताजी- निर्णय की पालना में यदि कोई भी अडचन डालता है तो खुली छूट है उसे सबक सिखाने की .

पिताजी का निर्णय गाँव वालो के लिए पत्थर की लकीर थी पर मेरी रगों में भी राय साहब का खून था. जिन गाँव वालो के साथ मैं बचपन से खेलता आ रहा था जिनके साथ हंसी खुशी में मैं शामिल था उनसे भीड़ गया था मैं. दो चार को तो धर लिया था मैंने पर मैं कोई बलशाली भीम नहीं था भीड़ मुझ पर हावी होने वाली थी . मेरी पूरी कोशिश थी की लाली को कोई हाथ भी नहीं लगा पाए.

मैंने एक पंच की कुर्सी उठा ली और उसे अपना हथियार बना लिया. जो भी जहाँ भी जिसे भी लगे मुझे परवाह नहीं थी . पंचायत की जिद थी तो मेरी भी जिद थी मेरे रहते वो लोग लाली को फांसी नहीं दे सकते थे . पर तभी अचानक से सब कुछ बदल गया . मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया . पीछे से किसी ने मेरे सर पर मारा था . वार जोरदार था . मैंने खुद को गिरते हुए देखा और फिर मुझे कुछ याद नहीं रहा.

आँख खुली तो मैंने खुद को अपने चौबारे में पाया . चाची, भाभी, मंगू, चंपा सब लोग आस पास बैठे हुए थे . मैं तुरंत बिस्तर से उठ बैठा .

“लाली , ” मैंने बस इतना कहा

भाभी- शांत हो जाओ देवर जी, चोट लगी है तुम्हे

भाभी ने एक गिलास पानी का मुझे दिया कुछ घूँट भरे मैंने पाया की सर पर पट्टी बंधी थी और दर्द बेशुमार था .

“लाली के साथ क्या किया उन्होंने ” मैंने कहा

चंपा- भाड़ में गयी लाली, हमारे लिए तुम महत्वपूर्ण हो कबीर. क्या जरुरत थी तुम्हे फसाद करने की मालूम है कितनी चोट लगी है तुम्हे.

चाची की आँखों में आंसू थे पर मेरा दिल जोर से धडक रहा था .मैं बिस्तर से उतरा और एक शाल लपेट पर चोबारे से बाहर निकल गया .

“कहाँ जा रहे हो भाई ” मंगू ने कहा पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया. साइकिल उठा कर मैं चौपाल पर पहुंचा जहाँ पर पेड़ से दो लाशे लटक रही थी . मेरी आँखों से झर झर आंसू गिरने लगे. बेशक लाली और उसका प्रेमी मेरे कुछ नहीं लगते थे पर मुझे दुःख था .

“माफ़ करना मुझे , मैं तुम्हे बचा नहीं पाया ” मैंने लाली के पांवो को हाथ लगा कर माफ़ी मांगी. मेरा दिल बहुत दुखी था . . मन कच्चा हो गया था मेरा. बहुत देर तक मैं उधर ही बैठा रहा .सोचता रहा की कैसा सितमगर जमाना है ये . क्या दस्तूर है इसके.

जब सहन नहीं हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल गया . ब्यथित मन में बहुत कुछ था कहने को. बेखुदी में भटकते हुए न जाने कब मैं जंगल में उधर ही पहुच गया जहाँ दो बार मैं इत्तेफाक से था. दुखी मन थोडा और विद्रोही हो गया . मैंने साइकिल उधर ही पटकी और पैदल ही भटकने लगा जंगल में.

वन देव की मूर्ति के पास बैठे बैठे कब मेरा सर भारी हो गया मालूम ही नहीं हुआ. पर जब तन्द्रा टूटी तो मैंने खुद को अन्धकार में पाया. गहरी धुंध मेरे चारो तरफ छाई हुई थी और मैं ठण्ड से कांप रहा था . रात न जाने कितनी बीती कितनी बाकि थी. सर के दर्द के बीच थोडा समय जरुर लगा समझने में की मैं कहाँ पर हूँ. आँखों के सामने बार बार लाली, हरिया और वो बुजुर्ग जिसे मैं नहीं जानता था के चेहरे आ रहे थे .मैंने उसी पल जंगल में अन्दर जाने का निर्णय लिया.

दूर कहीं झींगुरो की आवाज आ रही थी . कभी सियारों और जंगली कुत्तो की आवाजे आती पर मैं चले जा रहा था . कंटीली झाडिया उलझी कभी कांटे चुभे पर फिर मैंने एक ऐसी जगह देखि जो यहाँ थी कम से कम मैं तो नहीं जानता था .

वो एक तालाब था . जंगल की न जाने किस हिस्से में वो तालाब जिसमे लहरे हिलोरे मार रही थी . वो पक्का तालाब जिसकी एक दिवार मेरे सामने खड़ी थी किसी हदबंदी की तरह और तालाब के पार वो काली ईमारत जिसका वहां अपने आप में अजूबा था . चाँद की रौशनी में तालाब का पानी बहुत काला लग रहा था .

तालाब के पास से होते हुए मैं उस ईमारत की तरफ लगभग आधी दुरी तय कर चूका था की पानी में जोर से छापक की आवाज हुई . मैंने मुड कर देखा पानी में कोई नहीं था बस लहरे उठ रही थी . शायद मछलिय होंगी इसमें मैंने खुद को तसल्ली दी और इमारत की सीढिया चढ़ते हुए ऊपर चला गया .

प्रांगन में जाते ही मैं समझ गया की ये कोई प्राचीन मंदिर रहा होगा जिसे वक्त ने और हम जैसो ने भुला दिया . हर तरफ जाले ही जाले लगे थे . सिल के पत्थरों की नक्काशी चांदनी में चमक रही थी . खम्बो से चुना झड़ रहा था . मैं थोडा और आगे बढ़ा . मैंने देखा की चार छोटे खम्बो पर टिकी छत के निचे कोई मेरी तरफ पीठ किये बैठा था . मेरी आँखे जो देख रही थी वो यकीन करना मुश्किल था . कड़कती ठण्ड की रात में जब धुंध ने हर किसी को अपने आगोश में लिए हुए था. इस सुनसान जगह पर कोई शांति से बैठा था . पर किसलिए. मेरे दिल में हजारो सवाल एक साथ उठ गए थे .

“रातो को यूँ भटकना ठीक नहीं होता ” उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा. न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

उसकी आवाज इतनी सर्द थी की ठण्ड मेरी रीढ़ की हड्डी में उतर गयी .

“कौन हो तुम ” मैंने पूछा

वो साया उठा और मेरी तरफ. मेरे पास आया. मैंने देखा की वो एक लड़की थी .काली साडी में माथे पर गोल बिंदी लगाये. कुलहो तक आते उसके काले बाल. चांदनी रात किसी आबनूस सी चमकती वो लड़की एक पल को मैं उसमे खो सा गया पर फिर मैंने पूछा- कौन हो तुम

वो मेरे पास आई और बोली- डायन ............................


 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Wah Fauzi Bhai, Amazing update

Jungle ka rahasay abhi suljha nahi hain, Bagawat shuru ho gayi he, apne self respect ke liye, Sahi baat ke liye anyay injustice ke khilaf aawaj buland ho gayi he Kunwar ki........ ab Rai Sahab inka kya haal karenge.....

Waiting for the next update Bhai
New update is available
 
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