brego4
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भाई स्टोरी अच्छी जा रही है#7
मेरे सामने एक बड़ा सा जानवर खड़ा था जिसकी बिल्लोरी आँखे मुझे घूर रही थी . कड़ाके की ठण्ड में ऊपर से लेकर निचे तक मैंने पसीने को बहते हुए महसूस किया. सियार नहीं सियार तो नहीं था ये . उसकी ऊंचाई किसी भैंस के पाडे जितनी थी , हे भगवान् ये तो भेड़िया था . हूकते हुए वो मुझे देखे जा रहा था और मैं उसे .
एक एक पल बड़ी मुश्किल से बीत रहा था . किसी भी पल वो हमला कर सकता था मैंने अपनी साइकिल हाथो में उठा ली ताकि वो लपके तो तुरंत उस पर दे मारू. पर ऐसा करने की नौबत नहीं आई . वो मुड़ा और जंगल की तरफ भाग गया. मैंने चैन की सांस ली.
सांसो को दुरुस्त करने के बाद मैं उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ हमें हरिया मिला था . धरती पर पड़े पत्ते मेरे जूतों के निचे आकर चुर्र चुर्र कर रहे थे . चाँद की रौशनी में मैं घूम घूम कर कुछ ऐसा तलाश रहा था जिस से मालूम हो की हरिया के साथ हुआ क्या था . घूमते घूमते मैं वन देवता के पत्थर के पास तक पहुँच गया . ये एक बड़ा सा पत्थर था जिसे वन देवता के रूप में गाँव वाले पूजते थे, ये एक तरह की हद थी इंसानों के , इसके आगे गाँव वाले कभी भी जंगल में नहीं जाते थे . क्योंकि अन्दर के जंगल में जानवरों का राज था , एक तरह की सीमा थी ये इंसानों और जानवरों की .
कच्ची सड़क से मैं करीब तीन कोस अंदर आ गया था पर कुछ भी ऐसा नहीं मिला. हार कर मैंने ये सोचा की शायद हरिया ने भी उसी भेडिये या वैसे ही किसी जानवर का खौफ खाया हो .दिल को बस इसी ख्याल से तसल्ली दी जा सकती थी .
“देवर जी , देवर जी उठो जल्दी ” भाभी ने लगभग मुझे बिस्तर से घसीट ही लिया था .
“आन्ह क्या हुआ भाभी सोने दो न ” मैंने बिना आँखों को खोले ही प्रतिकार किया
भाभी- हरिया की मौत हो गयी है
ये सुनते ही मेरी नींद तुरंत गायब हो गयी .
“कब कैसे ” मैंने एक ही सांस में पूछ डाला
भाभी- कल रात , प्राण त्याग दिए उसने
जब तक मैं हरिया के घर पहुंचा लगभग गाँव जमा हो चूका था . रोना पीटना मचा था . मेरा मन द्रवित हो गया . मुझे देख कर मंगू मेरे पास आया.
मैं- मंगू इसके कातिल को मैं सजा दूंगा जरुर
मंगू- दिल पर मत ले भाई, ये तो किस्मत थी ये हमें मिल गया वर्ना जंगल में लाश कितने दिन पड़ी रहती कब जानवर खा जाते किसे मालूम होता.
मैं- एक इन्सान की जान गयी है मंगू और तू ऐसी बाते कर रहा है
मंगू- ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ है भाई. गाय-बैल. बकरिया और कभी कभी इन्सान भी जंगल में गायब होते रहते है . कभी गाँव वाले जानवरों का शिकार करते है कभी जानवर गाँव वालो का .
एक हद तक मंगू की बात सही थी पर मुझे बस एक बात खटक रही थी , नजाकत देखते हुए मैंने चुप रहना मुनासिब समझा.दोपहर तक उसको चिता दे दी गयी थी . नहा धोकर मैं मंगू के घर गया तो एक बार फिर से चंपा से मुलाकात हो गयी . गहरे गुलाबी रंग के सूट में ताजा गुलाब लग रही थी वो . मुझे देख कर वो भी मुस्कुराई . अचानक से कल रात की बात मुझे याद आ गयी .
चंपा- सही समय पर आये हो . मैं चाय बना ही रही थी .
मैं- चाय के साथ कुछ खाने को भी ले आ और मंगू कहा है
चंपा- चक्की पे गया है आता ही होगा.
मैं चारपाई पर लेट गया . आँखों में नींद की खुमारी थी . तुरंत ही चंपा चाय और मट्ठी ले आई.
चंपा- लगता है रात को नींद नहीं आई.
मैं- लगता है की किसी ने मेरी नींद चुरा ली है
चंपा- किसकी इतनी हिम्मत हो गई जो मेरे होते हुए ये कर सके , नाम बता उसका , खबर लेती हूँ
मैं- अरे तू भी न क्या से क्या सोच लेती है . मैं बस सो नहीं पाया था टेंशन के मारे
चंपा- कहो तो टेंशन दूर कर दू, मौका भी है
मैं- तुझे बस ये सब ही सूझता है क्या
चंपा- देख कबीर, बचपन से तू साथ रहा है तू चाहे मेरे बारे में कुछ भी सोच मैंने तुझे अपना माना है . तू चाहे तो मुझसे अपनी परेशानी बता सकता है
मैंने चाय की चुस्की ली . उसे देखते हुए मुझे नंगी चंपा ही दिख रही थी .उसने भी मेरी नजरो को ताड़ लिया.
चंपा- आजत तेरी नजरे कुछ और देख रही है मुझमे.
मैं- छोड़, ये बता कल खेत में पानी पूरा हो गया .
चंपा-लगभग. एक खेत बचा है बस . आज हो जायेगा
मैं- तू आराम करना आज मैं देख लूँगा वैसे भी कल थक गयी होगी तू.
चंपा- हाँ थक तो गयी ऊपर से कड़ाके की ठण्ड पर काम भी जरुरी है .
मैं- सुन चंपा तू आज भी चाची के साथ खेत पर जाना मुझे कुछ जरुरी काम है मैं घर से ये कहके निकलूंगा की मैं जा रहा हूँ चाची के साथ पर जाएगी तू. समझी न
चंपा - पर तू कहाँ जायेगा.
मैं- भरोसा है मुझ पर
चंपा- खुदसे ज्यादा
मैं- तो फिर इतना काम करना मेरा और हाँ याद से कमरे का बल्ब बुझा लेना ...
जैसे ही मैंने ये बात कही चंपा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- मुझे भरोसा है तुझ पर . पर कल जो मैंने देखा कोई और नहीं देखे . तुम दोनों मान हो मेरा.
चंपा- तू कल था वहां पर फिर आवाज क्यों नहीं दी.
मैं- फिर वो जरुरी काम कैसे करती तुम . वैसे एक बात कहूँ हद से ज्यादा खूब सूरत है तू . तेरा पति किस्मत वाला ही होगा.
बुरी तरह से शमाते हुए चंपा मेरे सीने से लग गयी . काफी देर तक मंगू नहीं लौटा तो मैं वापिस घर चला गया . वहां जाकर देखा की पिताजी कुछ गाँव वालो के साथ बाते कर रहे थे . मैं सीधा भाभी के पास चला गया .
भाभी- कुछ पता चला
मैं- अभी नहीं पर जल्दी ही मालूम कर लूँगा.
भाभी- आराम कर लो थोडा .
हम बाते कर ही रहे थे की तभी चाची आ गयी मुझे देखते ही बोली- कल कहाँ थे तुम .
“इसको भाभी के सामने ही पूछनी थी ये बात ” मैंने मन ही मन कहा
मैं- पिताजी को लाने के बाद खेत पर पहुँच तो गया था चाची
चाची- तो फिर मुझे याद क्यों नहीं है
मैं- उम्र हो गयी है तुम्हारी चाची , भाभी चाची के बादाम बढ़ा दो अरे चाची जब तुम और चंपा आराम कर रही थी तभी तो आया था मैं .
मेरा इतना कहते ही चाची की गांड फट गयी और भाभी शंकित निगाहों से मुझे देखने लगी.
Superb update#5
दोनों जांघो के बीच हथेलियों को दबाये मैं जमीन पर पड़ा था . जिस्म जैसे सुन्न सा हो गया था . इतना तेज दर्द मुझे आज से पहले कभी नहीं हुआ था . मेरी चीख सुन कर चाची दौड़ते हुए मेरे पास आई.
“क्या हुआ ” चाची ने घबराते हुए पूछा
मैंने चाची को मुझे उठाने का इशारा किया . चाची मुझे कमरे के अन्दर ले आई. मेरे हाथ अब तक जांघो के बीच दबे थे .
“क्या, क्या हुआ ” चाची ने फिर पूछा
मैं- मूत रहा था की तभी ऐसा लगा की किसी ने काट लिया
ये सुनकर चाची के चेहरे पर पसीने टपक पड़े.
चाची ने मेरे हाथ हटाये और बैटरी की रौशनी में देखने लगी. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी पर मैं और करता भी तो क्या चाची ने मेरी खुली पतलून को निचे सरकाया और मेरे लिंग को अपने हाथ में ले लिया. पहली बार किसी औरत ने उसे पकड़ा था , हालात चाहे जो भी थे पर मेरे बदन में सिरहन दौड़ गयी .
चाची के गाल लाल हो गये थे . उन्होंने ऊपर से निचे तक अच्छी तरह से लिंग का अवलोकन किया और बोली- निशान तो है , हे राम, कही सांप ने तो नहीं काट लिया
चाची की बात सुनकर मेरी गांड फट गयी . सांप को भी ये ही जगह मिली थी , क्या वो जहरीला था , जहर सुन कर मैं कांपने लगा.
मैं- चाची क्या मैं मरने वाला हूँ .
चाची - कोई कीड़ा,-मकोड़ा भी हो सकता है नाजुक जगह है इसलिए तकलीफ जायदा है
चाची धीरे धीरे मेरे लिंग को सहला रही थी जिस से मुझे थोडा आराम तो मिला पर जलन उतनी ही थी . दूसरी बात ये थी की औरत के स्पर्श से वो हल्का हल्का उत्तेजित होने लगा था . हम दोनों के लिए ये बड़ी विचित्र स्तिथि थी . तभी चाची ने बैटरी बंद कर दी . शायद ये ही सही था .
कमरे में हम दोनों की भारी सांसे गूँज रही थी .
“कैसा लग रहा है ” चाची ने मेरे अन्डकोशो पर उंगलिया फेरते हुए कहा
मैं- अच्छा
चाची- कब तक ऐसे ही खड़े रहेंगे एक काम कर मेरे पास ही आजा
चाची ने मुझे अपने बिस्तर पर साथ ले लिया और रजाई ओढ़ ली. चाची के सहलाने से मुझे आराम तो मिल रहा था पर मेरे दिल में सांप वाली बात भी थी .
मैं- सच में सांप ने काट लिया होगा तो
चाची- पागल है क्या तू वो पैरो पर काटता , फिर भी तुझे ऐसा लगता है तो थोड़ी देर देख लेते है लक्षण दिखे तो तुरंत वैध जी के पास चल देंगे पर मुझे लगता है ऐसी नौबत नहीं आयेगी.
मैं- यकीन है आपको
चाची- मुझे नहीं तेरे इसको यकीन है देख कैसे तन गया है .
शुक्र है चाची ने ये बात अँधेरे में बोली थी वर्ना मैं तो पानी पानी ही हो जाता .
मैं- माफ़ी चाहूँगा चाची , मेरी वजह से आपको ये सब करना पड़ा . न जाने कैसे मिलेगी मुझे ये माफ़ी
चाची- तू मेरे लिए सबसे बढ़कर है . बस इतना ध्यान रहे ये किसी से जिक्र मत करना .
चूँकि चाची मुझसे द्विअर्थी बाते करती थी तो थोडा सहज लग रहा था वैसे मैं खुश भी था की इतनी मादक औरत मेरे लंड से खेल रही थी . पर मैं ये नहीं जानता था की इस हरकत ने चाची की टांगो के बीच में भी हलचल मचा दी थी . .
चाची का सर मेरे मुह के पास हो गया था , चाची की गर्म सांसे मेरे कानो पर पड़ रही थी .
मैं- चाची मैं अपने बिस्तर पर जाता हूँ
चाची- यहाँ कोई परेशानी है
मैं- छोटी चारपाई पर आपको मेरी वजह से परेशां होना पड़ रहा है
चाची- क्या मैंने कहा तुझसे ऐसा
चाची थोड़ी सी टेढ़ी हुई जिस से अब उसके होंठ मेरे गालों के पास आ गए थे . चाची ने बाहं आगे करके मुझे अपने से चिपका लिया . ठण्ड के इस मौसम में उस कमरे में मुझे ऐसी गर्मी मिली की फिर सुबह ही मेरी आँख खुली.
मैंने सबसे पहले मेरे लिंग को देखा जो सूज कर किसी खीरे जैसा हो गया था . उस पर जो नीली नसे उभर आई थी मेरे मन में पका शक हो गया था की कोई जहरीला तत्व ही रहा होगा. खैर मैं बाहर आया तो देखा की चाची नहीं थी. मैं थोड़ी देर अलाव के पास ही बैठा रहा. थोड़ी देर में चाची आ गयी .
अलसाई भोर में ओस से भीगी किसी फूल सी लग रही थी वो .
“ठीक हो ” चाची ने पूछा
मैंने हाँ में गर्दन हिला दी जबकि मेरी फटी पड़ी थी की ये क्या हो गया . घर आने के बाद मैं सोचता रहा की वैध को दिखाने जाऊ या नहीं. सूज कर वो इतना फूल गया था की कच्छे में उसका उभार छिपाए नहीं छिप रहा था .दोपहर में भैया ने मुझे बुलाया
भैया- सुनो, कुछ लोगो ने समय से अपना कर्जा वापिस नहीं किया है . मुझे किसी जरुरी काम से शहर जाना है तो तो तुम आज ही उनके पास जाना और बकाया ले आना
मैं- भैया मेरे बस का नहीं है ये सब करना
भैया- आज नहीं तो कल जिम्मेदारी संभालनी पड़ेगी न , थोडा थोडा काम सीखेगा
मैं- जो लोग हमसे पैसे लेते है कभी वो मज़बूरी के तहत समय पर नहीं दे पाते. उनकी मजबूर आँखे शर्मिंदगी से भरी होती है मेरा मन विचलित होता है
भैया- ये दुनिया का दस्तूर है भाई. खैर, तेरी मर्जी है तो मेरी जगह तू शहर चले जा . रात वाली गाड़ी से पिताजी आ रहे है उनको भी साथ ले आना . और हाँ मेरी गाड़ी ले जाना
मैंने हाँ में सर हिलाया . बहुत कम अवसर होते थे जब भैया अपनी गाडी को खुद से दूर करते थे . खैर मैं शाम को शहर के लिए निकल गया . ट्रेन आने में समय था तो मैं हॉस्पिटल चला गया .
मैं- डॉक्टर साहब कुछ सुधार हुआ क्या हरिया में
डॉक्टर- तीन बार इसे खून की बोतले चढ़ा चूका हूँ पर मालूम नहीं क्या बात है खून इसके शरीर में जाते ही गायब हो जाता है . पीलिया टूट नहीं रहा इसका.
मैं- आप तो बड़े डॉक्टर है आप ही समाधान कीजिये
डॉक्टर- कुछ समझ आये तो मैं करू. ऐसा ही चलता रहा तो मुश्किल होगी खून का इंतजाम भी एक तय मात्रा में ही हो सकता है .
तभी वहां पर हरिया की जोरू आ गयी और बोली- कुंवर, आप इसे छुट्टी दिला दो हम हरिया को ओझा के पास ले जायेंगे .
मैं उसकी बात सुनकर हैरान हो गया .
मैं- ओझा क्या करेगा भला
पर हरिया के घर वालो ने जिद ही पकड़ ली तो मेरे पास भी और कोई चारा नहीं था . मुझे बहुत बुरा लग रहा था पर क्या किया जाये. मैं वहां से रेलवे स्टेशन चला गया . जहाँ पर इक्का दुक्का लोग ही थे. मैंने चाय का कुल्हड़ लिया और अपनी जैकेट को ऊपर तक कर लिया . लैंप के निचे बेंच पर बैठे मैं चुसकिया लेते हुए सोच रहा था की हरिया कुछ तो कहना चाह रहा था इशारो से पर क्या........ उसने क्या देखा था . इस सवाल ने मेरे मन में इतनी हलचल मचा दी थी की मैं क्या बताऊ.
सोचते सोचते दो पल के लिए मेरी आँखे बंद हो गयी . शायद वो हलकी सी नींद का झोंका था . मेरी आँखों के सामने वो द्रश्य था जब मैं और मंगू दावत से आ रहे थे . हम दोनों ठीक उसी जगह पर पहुचे जहाँ पर हमें कोचवान की गाडी मिली थी . मैंने देखा की धुंध ने चाँद से नाता तोड़ लिया था और चांदनी रात में मैंने अलाव के पार.............................. .
Superb updatela#5
दोनों जांघो के बीच हथेलियों को दबाये मैं जमीन पर पड़ा था . जिस्म जैसे सुन्न सा हो गया था . इतना तेज दर्द मुझे आज से पहले कभी नहीं हुआ था . मेरी चीख सुन कर चाची दौड़ते हुए मेरे पास आई.
“क्या हुआ ” चाची ने घबराते हुए पूछा
मैंने चाची को मुझे उठाने का इशारा किया . चाची मुझे कमरे के अन्दर ले आई. मेरे हाथ अब तक जांघो के बीच दबे थे .
“क्या, क्या हुआ ” चाची ने फिर पूछा
मैं- मूत रहा था की तभी ऐसा लगा की किसी ने काट लिया
ये सुनकर चाची के चेहरे पर पसीने टपक पड़े.
चाची ने मेरे हाथ हटाये और बैटरी की रौशनी में देखने लगी. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी पर मैं और करता भी तो क्या चाची ने मेरी खुली पतलून को निचे सरकाया और मेरे लिंग को अपने हाथ में ले लिया. पहली बार किसी औरत ने उसे पकड़ा था , हालात चाहे जो भी थे पर मेरे बदन में सिरहन दौड़ गयी .
चाची के गाल लाल हो गये थे . उन्होंने ऊपर से निचे तक अच्छी तरह से लिंग का अवलोकन किया और बोली- निशान तो है , हे राम, कही सांप ने तो नहीं काट लिया
चाची की बात सुनकर मेरी गांड फट गयी . सांप को भी ये ही जगह मिली थी , क्या वो जहरीला था , जहर सुन कर मैं कांपने लगा.
मैं- चाची क्या मैं मरने वाला हूँ .
चाची - कोई कीड़ा,-मकोड़ा भी हो सकता है नाजुक जगह है इसलिए तकलीफ जायदा है
चाची धीरे धीरे मेरे लिंग को सहला रही थी जिस से मुझे थोडा आराम तो मिला पर जलन उतनी ही थी . दूसरी बात ये थी की औरत के स्पर्श से वो हल्का हल्का उत्तेजित होने लगा था . हम दोनों के लिए ये बड़ी विचित्र स्तिथि थी . तभी चाची ने बैटरी बंद कर दी . शायद ये ही सही था .
कमरे में हम दोनों की भारी सांसे गूँज रही थी .
“कैसा लग रहा है ” चाची ने मेरे अन्डकोशो पर उंगलिया फेरते हुए कहा
मैं- अच्छा
चाची- कब तक ऐसे ही खड़े रहेंगे एक काम कर मेरे पास ही आजा
चाची ने मुझे अपने बिस्तर पर साथ ले लिया और रजाई ओढ़ ली. चाची के सहलाने से मुझे आराम तो मिल रहा था पर मेरे दिल में सांप वाली बात भी थी .
मैं- सच में सांप ने काट लिया होगा तो
चाची- पागल है क्या तू वो पैरो पर काटता , फिर भी तुझे ऐसा लगता है तो थोड़ी देर देख लेते है लक्षण दिखे तो तुरंत वैध जी के पास चल देंगे पर मुझे लगता है ऐसी नौबत नहीं आयेगी.
मैं- यकीन है आपको
चाची- मुझे नहीं तेरे इसको यकीन है देख कैसे तन गया है .
शुक्र है चाची ने ये बात अँधेरे में बोली थी वर्ना मैं तो पानी पानी ही हो जाता .
मैं- माफ़ी चाहूँगा चाची , मेरी वजह से आपको ये सब करना पड़ा . न जाने कैसे मिलेगी मुझे ये माफ़ी
चाची- तू मेरे लिए सबसे बढ़कर है . बस इतना ध्यान रहे ये किसी से जिक्र मत करना .
चूँकि चाची मुझसे द्विअर्थी बाते करती थी तो थोडा सहज लग रहा था वैसे मैं खुश भी था की इतनी मादक औरत मेरे लंड से खेल रही थी . पर मैं ये नहीं जानता था की इस हरकत ने चाची की टांगो के बीच में भी हलचल मचा दी थी . .
चाची का सर मेरे मुह के पास हो गया था , चाची की गर्म सांसे मेरे कानो पर पड़ रही थी .
मैं- चाची मैं अपने बिस्तर पर जाता हूँ
चाची- यहाँ कोई परेशानी है
मैं- छोटी चारपाई पर आपको मेरी वजह से परेशां होना पड़ रहा है
चाची- क्या मैंने कहा तुझसे ऐसा
चाची थोड़ी सी टेढ़ी हुई जिस से अब उसके होंठ मेरे गालों के पास आ गए थे . चाची ने बाहं आगे करके मुझे अपने से चिपका लिया . ठण्ड के इस मौसम में उस कमरे में मुझे ऐसी गर्मी मिली की फिर सुबह ही मेरी आँख खुली.
मैंने सबसे पहले मेरे लिंग को देखा जो सूज कर किसी खीरे जैसा हो गया था . उस पर जो नीली नसे उभर आई थी मेरे मन में पका शक हो गया था की कोई जहरीला तत्व ही रहा होगा. खैर मैं बाहर आया तो देखा की चाची नहीं थी. मैं थोड़ी देर अलाव के पास ही बैठा रहा. थोड़ी देर में चाची आ गयी .
अलसाई भोर में ओस से भीगी किसी फूल सी लग रही थी वो .
“ठीक हो ” चाची ने पूछा
मैंने हाँ में गर्दन हिला दी जबकि मेरी फटी पड़ी थी की ये क्या हो गया . घर आने के बाद मैं सोचता रहा की वैध को दिखाने जाऊ या नहीं. सूज कर वो इतना फूल गया था की कच्छे में उसका उभार छिपाए नहीं छिप रहा था .दोपहर में भैया ने मुझे बुलाया
भैया- सुनो, कुछ लोगो ने समय से अपना कर्जा वापिस नहीं किया है . मुझे किसी जरुरी काम से शहर जाना है तो तो तुम आज ही उनके पास जाना और बकाया ले आना
मैं- भैया मेरे बस का नहीं है ये सब करना
भैया- आज नहीं तो कल जिम्मेदारी संभालनी पड़ेगी न , थोडा थोडा काम सीखेगा
मैं- जो लोग हमसे पैसे लेते है कभी वो मज़बूरी के तहत समय पर नहीं दे पाते. उनकी मजबूर आँखे शर्मिंदगी से भरी होती है मेरा मन विचलित होता है
भैया- ये दुनिया का दस्तूर है भाई. खैर, तेरी मर्जी है तो मेरी जगह तू शहर चले जा . रात वाली गाड़ी से पिताजी आ रहे है उनको भी साथ ले आना . और हाँ मेरी गाड़ी ले जाना
मैंने हाँ में सर हिलाया . बहुत कम अवसर होते थे जब भैया अपनी गाडी को खुद से दूर करते थे . खैर मैं शाम को शहर के लिए निकल गया . ट्रेन आने में समय था तो मैं हॉस्पिटल चला गया .
मैं- डॉक्टर साहब कुछ सुधार हुआ क्या हरिया में
डॉक्टर- तीन बार इसे खून की बोतले चढ़ा चूका हूँ पर मालूम नहीं क्या बात है खून इसके शरीर में जाते ही गायब हो जाता है . पीलिया टूट नहीं रहा इसका.
मैं- आप तो बड़े डॉक्टर है आप ही समाधान कीजिये
डॉक्टर- कुछ समझ आये तो मैं करू. ऐसा ही चलता रहा तो मुश्किल होगी खून का इंतजाम भी एक तय मात्रा में ही हो सकता है .
तभी वहां पर हरिया की जोरू आ गयी और बोली- कुंवर, आप इसे छुट्टी दिला दो हम हरिया को ओझा के पास ले जायेंगे .
मैं उसकी बात सुनकर हैरान हो गया .
मैं- ओझा क्या करेगा भला
पर हरिया के घर वालो ने जिद ही पकड़ ली तो मेरे पास भी और कोई चारा नहीं था . मुझे बहुत बुरा लग रहा था पर क्या किया जाये. मैं वहां से रेलवे स्टेशन चला गया . जहाँ पर इक्का दुक्का लोग ही थे. मैंने चाय का कुल्हड़ लिया और अपनी जैकेट को ऊपर तक कर लिया . लैंप के निचे बेंच पर बैठे मैं चुसकिया लेते हुए सोच रहा था की हरिया कुछ तो कहना चाह रहा था इशारो से पर क्या........ उसने क्या देखा था . इस सवाल ने मेरे मन में इतनी हलचल मचा दी थी की मैं क्या बताऊ.
सोचते सोचते दो पल के लिए मेरी आँखे बंद हो गयी . शायद वो हलकी सी नींद का झोंका था . मेरी आँखों के सामने वो द्रश्य था जब मैं और मंगू दावत से आ रहे थे . हम दोनों ठीक उसी जगह पर पहुचे जहाँ पर हमें कोचवान की गाडी मिली थी . मैंने देखा की धुंध ने चाँद से नाता तोड़ लिया था और चांदनी रात में मैंने अलाव के पार.............................. .
Lazwaab update#
धम्म से मैं बेंच से निचे गिर पड़ा था . खुमारी आँखों में चढ़ी थी जेहन में वो ही सपना था . उठ कर कपड़ो को झाड़ते हुए मैंने आस पास देखा . चाय की दुकान पर अकेला चाय वाला बैठा था , इक्का-दुक्की कुली थे और मैं. जैकेट की जेब में हाथ घुसाए मैं स्टेशन की उस बड़ी सी घडी में समय देखने गया मालूम हुआ की रेल आने में थोडा समय और था . मैंने थोडा पानी पिया और सर्दी में ऊपर से पानी पीते ही निचे से मूत का जोर हो गया .
पेशाबघर में मूतते हुए मैंने अपने लिंग को देखा जो उसी तरह सुजा हुआ था . ये एक और अजीब समस्या हो गयी थी जिसे किसी को बता न सके और छुपा भी न सके. वो मादरचोद क्या जानवर था जिसने अपना जहर इधर ही उतार दिया था .पूरा शरीर एकदम सही था पर एक ये अंग ही साला परेशां किये हुए था .
मैं वापिस से उसी बेंच पर जाकर बैठ गया और रेल का इंतजार करने लगा. सर्दी की रात भी साली इतनी लम्बी हो जाती है की क्या ही कहे. खैर जब रेल आई तो मैं डिब्बो की तरफ भागा और जल्दी ही मैंने पिताजी को उतरते देखा.
आँखों पर सुनहरी ऐनक लगाये. चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछे . लम्बा शरीर . गले तक का बंद कोट पहने राय बहादुर विशम्बर दयाल जंच रहे थे . मैं दौड़ कर उनके पास गया और चरणों को हाथ लगाया. संदूक उठा लिया मैंने .
जल्दी ही हम लोग गाँव के रस्ते में थे , पिताजी हमेशा की तरह खामोश थे . बस बीच बीच में हाँ-हूँ कर देते थे मेरी बातो पर . एक बार फिर हम उसी रस्ते से गुजरे जहाँ पर हमें हरिया मिला था . न जाने क्यों मेरे बदन में सिरहन सी दौड़ गयी और मैंने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी. वापिस आते आते रात आधी बीत गयी थी . पिताजी ने सबसे दुआ सलाम की और अपने कमरे में चले गए.
भाभी- खाना खाकर तुम भी आराम करो
मैं- बाकि सब लोग का खाना हुआ .
भाभी- तुम्हारे भैया अभी तक लौटे नहीं है और चाची खेतो पर गयी है .
मैं- क्या , किसके साथ
भाभी- अकेली.
मैं- पर क्यों . मजदूरो को भेज देती खुद अकेली वहां जाने की क्या जरुरत थी
भाभी- अरे इतनी फ़िक्र मत करो. तुम्हे क्या लगता है की मैं उन्हें अकेले जाने देती , चंपा साथ गयी है उनके . मैं तो बस देख रही थी की तुम्हे परिवार की चिंता है भी या बस यूँ ही करते फिरते हो .
मैं- भाभी, आज के बाद ऐसा मत कहना परिवार है तो मैं हूँ .
भाभी- अच्छा बाबा. अब कहो तो खाना परोस दू या फिर सोने ही जाना है
मैं- नहीं, मैं खेतो पर जा रहा हूँ . वहां उनको मेरी जरूरत पड़ेगी. सुबह अगर पिताजी को मालूम हुआ की वो दोनों अकेली थी तो सबसे पहले मेरी खाल ही उधेद्नी है उनको.
मैंने तुरंत साइकिल उठाई और अपना रास्ता पकड़ लिया. गुनगुनाते हुए मैं तेजी से खेतो की तरफ जा रहा था . लगता था की मुझे छोड़ कर पूरा जहाँ ही सोया हुआ था और होता भी क्यों न रात आधी से ज्यादा जो बीत गयी थी . कुछ दूर बाद बस्ती पीछे रह गयी , पथरीली कच्ची सड़क ही मेरी साथी थी पर इस घने अँधेरे में मुझसे एक गलती हो गयी थी मैं बैटरी लाना भूल गया था . वैसे तो कोई खास बात नहीं थी बस अचानक से कोई नीलगाय या जंगली सूअर सामने आ गया तो चोट लगने का खतरा था .
खैर मैं कुवे पर पहुंचा तो देखा पानी अपनी लाइन से खेत की प्यासबुझा रहा था पर चंपा और चाची दोनों नहीं थी .
“शायद कमर सीढ़ी कर रही होंगी, एक बार बता देता हूँ की मैं आ गया हूँ अगर सोयी भी होंगी तो सोने दूंगा .मैं ही लगा दूंगा पानी ” अपने आप से कहते हुए मैं कमरे के पास पंहुचा ही था की अन्दर से आती हंसी सुन कर मेरे कान चोकन्ना हो गए. इतनी रात को क्या हंसी-ठिठोली हो रही है . मैंने दरवाजा खडकाने की जगह पल्ले की झिर्री से अन्दर देखा और देखता ही रह गया .
कमरे में जलते लट्टू की पीली रौशनी में क्या गजब नजारा था चाची अपनी गदराई जांघो को खोले पड़ी थी और पूर्ण रूप से नग्न चंपा ने अपना मुह चाची की जांघो के बीच दिया हुआ था . चाची के चेहरे को मैं देख नहीं पा रहा था क्योंकि चंपा का बदन उसके ऊपर था .
पर जो चीज मैं देख पा रहा था वो भी बड़ी गजब थी . चंपा ने चुतड ऊपर को उठे हुए थे जिस से की काले बालो के बीच घिरी उसकी हलकी गुलाबी चूत मुझे अपना जलवा दिखा रही थी वो भी पूरी उत्तेजित थी क्योंकि चंपा की चूत के बाल लिस्लिसे द्रव में सने हुए थे.
“आह , धीरे कुतिया . इतना जोर से क्यों काटती है ” चाची ने चंपा को गाली दी .
चंपा- इसी में तो मजा है मेरी प्यारी .
सामने चंपा की खूबसूरत चूत होने के बावजूद मेरे मन का चोर चाची की चूत भी देखना चाहता था पर अभी उसे देखना किस्मत में नहीं था शायद.
“चंपा कहती तो सही ही है की एक बार लेकर तो देखूं उसकी ” मैंने उसके हुस्न से प्रभावित होकर मन ही मन कहा .
मेरा हाथ मेर लिंग पर चला गया जो की की फूल कर कुप्पा हो गया था . मैंने पेंट खोल कर उसे ताजी हवा का अहसास करवाया . अन्दर का बेहंद गर्म नजारा देख कर मैं बाहर की ठण्ड भूल गया था तभी चाची ने अपने पैरो में चंपा की गर्दन जकड ली और अपने कुल्हे ऊपर उठा लिए. कुछ पल बाद वो धम्म से निचे गिरी और लम्बी- लम्बी सांसे भरने लगी.
चंपा भी उठ पर चाची के पास बैठ गयी . मैंने चंपा के उन्नत उभारो को देखा जो पर्वतो की चोटियों जैसे तने हुए थे.
“”मजा आया मेरी प्यारी चंपा ने चाची से कहा
चाची- एक तू ही तो मेरा सहारा है चंपा.
चंपा- चाची तू इतनी मस्त औरत है तेरी प्यास मेरी उंगलिया और जीभ नहीं बुझा सकती तुझे तगड़े लंड की जरुरत है जो दिन रात तेरी भोसड़ी में घुसा रहे.
चाची- तुझे तो सब पता ही है चंपा. जो चल रहा है ये भी ठीक ही है,मेरी छोड़ तू बता कुंवर संग तेरा प्यार आगे बढ़ा क्या .
चंपा- कहाँ प्यारी, उसके सामने तो घाघरा खोल दू तब भी वो मेरी नहीं लेगा. कितनी ही कोशिश की है मैंने पर क्या मजाल जो वो मेरी तरफ देखे. कहता है मंगू की बहन है इसलिए नहीं करेगा.तू ही बता मंगू की बहन हूँ तो क्या चुदु नहीं . गाँव के लोंडे आगे पीछे है मेरे पर मेरी भी जिद है चुदना तो उस से ही है वर्ना भाग्य में जो है उसको तो देनी ही हैं.
चाची- वो अनोखा है .
चंपा- सो तो है .
चाची- एक बार पाने को देख आते है फिर तेरी भी आग बुझती हूँ
वो दोनों कपडे पहनने लगी. मैं वहां से हट गया और साइकिल लेकर वापिस मुड गया क्योंकि मैं उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहता था पर अब घर जा नहीं सकते , यहाँ रुक नहीं सकते रात बाकी तो जाये तो कहाँ जाये. और तभी मैंने कुछ सोचा और साइकिल को पथरीली सड़क पर मोड़ दिया.... दो मोड़ मुड़ने के बाद मैंने कच्ची सड़क ले ली थोड़ी ही दूर गया था की तभी अचानक से मैंने अपने सामने .........................