#5
दोनों जांघो के बीच हथेलियों को दबाये मैं जमीन पर पड़ा था . जिस्म जैसे सुन्न सा हो गया था . इतना तेज दर्द मुझे आज से पहले कभी नहीं हुआ था . मेरी चीख सुन कर चाची दौड़ते हुए मेरे पास आई.
“क्या हुआ ” चाची ने घबराते हुए पूछा
मैंने चाची को मुझे उठाने का इशारा किया . चाची मुझे कमरे के अन्दर ले आई. मेरे हाथ अब तक जांघो के बीच दबे थे .
“क्या, क्या हुआ ” चाची ने फिर पूछा
मैं- मूत रहा था की तभी ऐसा लगा की किसी ने काट लिया
ये सुनकर चाची के चेहरे पर पसीने टपक पड़े.
चाची ने मेरे हाथ हटाये और बैटरी की रौशनी में देखने लगी. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी पर मैं और करता भी तो क्या चाची ने मेरी खुली पतलून को निचे सरकाया और मेरे लिंग को अपने हाथ में ले लिया. पहली बार किसी औरत ने उसे पकड़ा था , हालात चाहे जो भी थे पर मेरे बदन में सिरहन दौड़ गयी .
चाची के गाल लाल हो गये थे . उन्होंने ऊपर से निचे तक अच्छी तरह से लिंग का अवलोकन किया और बोली- निशान तो है , हे राम, कही सांप ने तो नहीं काट लिया
चाची की बात सुनकर मेरी गांड फट गयी . सांप को भी ये ही जगह मिली थी , क्या वो जहरीला था , जहर सुन कर मैं कांपने लगा.
मैं- चाची क्या मैं मरने वाला हूँ .
चाची - कोई कीड़ा,-मकोड़ा भी हो सकता है नाजुक जगह है इसलिए तकलीफ जायदा है
चाची धीरे धीरे मेरे लिंग को सहला रही थी जिस से मुझे थोडा आराम तो मिला पर जलन उतनी ही थी . दूसरी बात ये थी की औरत के स्पर्श से वो हल्का हल्का उत्तेजित होने लगा था . हम दोनों के लिए ये बड़ी विचित्र स्तिथि थी . तभी चाची ने बैटरी बंद कर दी . शायद ये ही सही था .
कमरे में हम दोनों की भारी सांसे गूँज रही थी .
“कैसा लग रहा है ” चाची ने मेरे अन्डकोशो पर उंगलिया फेरते हुए कहा
मैं- अच्छा
चाची- कब तक ऐसे ही खड़े रहेंगे एक काम कर मेरे पास ही आजा
चाची ने मुझे अपने बिस्तर पर साथ ले लिया और रजाई ओढ़ ली. चाची के सहलाने से मुझे आराम तो मिल रहा था पर मेरे दिल में सांप वाली बात भी थी .
मैं- सच में सांप ने काट लिया होगा तो
चाची- पागल है क्या तू वो पैरो पर काटता , फिर भी तुझे ऐसा लगता है तो थोड़ी देर देख लेते है लक्षण दिखे तो तुरंत वैध जी के पास चल देंगे पर मुझे लगता है ऐसी नौबत नहीं आयेगी.
मैं- यकीन है आपको
चाची- मुझे नहीं तेरे इसको यकीन है देख कैसे तन गया है .
शुक्र है चाची ने ये बात अँधेरे में बोली थी वर्ना मैं तो पानी पानी ही हो जाता .
मैं- माफ़ी चाहूँगा चाची , मेरी वजह से आपको ये सब करना पड़ा . न जाने कैसे मिलेगी मुझे ये माफ़ी
चाची- तू मेरे लिए सबसे बढ़कर है . बस इतना ध्यान रहे ये किसी से जिक्र मत करना .
चूँकि चाची मुझसे द्विअर्थी बाते करती थी तो थोडा सहज लग रहा था वैसे मैं खुश भी था की इतनी मादक औरत मेरे लंड से खेल रही थी . पर मैं ये नहीं जानता था की इस हरकत ने चाची की टांगो के बीच में भी हलचल मचा दी थी . .
चाची का सर मेरे मुह के पास हो गया था , चाची की गर्म सांसे मेरे कानो पर पड़ रही थी .
मैं- चाची मैं अपने बिस्तर पर जाता हूँ
चाची- यहाँ कोई परेशानी है
मैं- छोटी चारपाई पर आपको मेरी वजह से परेशां होना पड़ रहा है
चाची- क्या मैंने कहा तुझसे ऐसा
चाची थोड़ी सी टेढ़ी हुई जिस से अब उसके होंठ मेरे गालों के पास आ गए थे . चाची ने बाहं आगे करके मुझे अपने से चिपका लिया . ठण्ड के इस मौसम में उस कमरे में मुझे ऐसी गर्मी मिली की फिर सुबह ही मेरी आँख खुली.
मैंने सबसे पहले मेरे लिंग को देखा जो सूज कर किसी खीरे जैसा हो गया था . उस पर जो नीली नसे उभर आई थी मेरे मन में पका शक हो गया था की कोई जहरीला तत्व ही रहा होगा. खैर मैं बाहर आया तो देखा की चाची नहीं थी. मैं थोड़ी देर अलाव के पास ही बैठा रहा. थोड़ी देर में चाची आ गयी .
अलसाई भोर में ओस से भीगी किसी फूल सी लग रही थी वो .
“ठीक हो ” चाची ने पूछा
मैंने हाँ में गर्दन हिला दी जबकि मेरी फटी पड़ी थी की ये क्या हो गया . घर आने के बाद मैं सोचता रहा की वैध को दिखाने जाऊ या नहीं. सूज कर वो इतना फूल गया था की कच्छे में उसका उभार छिपाए नहीं छिप रहा था .दोपहर में भैया ने मुझे बुलाया
भैया- सुनो, कुछ लोगो ने समय से अपना कर्जा वापिस नहीं किया है . मुझे किसी जरुरी काम से शहर जाना है तो तो तुम आज ही उनके पास जाना और बकाया ले आना
मैं- भैया मेरे बस का नहीं है ये सब करना
भैया- आज नहीं तो कल जिम्मेदारी संभालनी पड़ेगी न , थोडा थोडा काम सीखेगा
मैं- जो लोग हमसे पैसे लेते है कभी वो मज़बूरी के तहत समय पर नहीं दे पाते. उनकी मजबूर आँखे शर्मिंदगी से भरी होती है मेरा मन विचलित होता है
भैया- ये दुनिया का दस्तूर है भाई. खैर, तेरी मर्जी है तो मेरी जगह तू शहर चले जा . रात वाली गाड़ी से पिताजी आ रहे है उनको भी साथ ले आना . और हाँ मेरी गाड़ी ले जाना
मैंने हाँ में सर हिलाया . बहुत कम अवसर होते थे जब भैया अपनी गाडी को खुद से दूर करते थे . खैर मैं शाम को शहर के लिए निकल गया . ट्रेन आने में समय था तो मैं हॉस्पिटल चला गया .
मैं- डॉक्टर साहब कुछ सुधार हुआ क्या हरिया में
डॉक्टर- तीन बार इसे खून की बोतले चढ़ा चूका हूँ पर मालूम नहीं क्या बात है खून इसके शरीर में जाते ही गायब हो जाता है . पीलिया टूट नहीं रहा इसका.
मैं- आप तो बड़े डॉक्टर है आप ही समाधान कीजिये
डॉक्टर- कुछ समझ आये तो मैं करू. ऐसा ही चलता रहा तो मुश्किल होगी खून का इंतजाम भी एक तय मात्रा में ही हो सकता है .
तभी वहां पर हरिया की जोरू आ गयी और बोली- कुंवर, आप इसे छुट्टी दिला दो हम हरिया को ओझा के पास ले जायेंगे .
मैं उसकी बात सुनकर हैरान हो गया .
मैं- ओझा क्या करेगा भला
पर हरिया के घर वालो ने जिद ही पकड़ ली तो मेरे पास भी और कोई चारा नहीं था . मुझे बहुत बुरा लग रहा था पर क्या किया जाये. मैं वहां से रेलवे स्टेशन चला गया . जहाँ पर इक्का दुक्का लोग ही थे. मैंने चाय का कुल्हड़ लिया और अपनी जैकेट को ऊपर तक कर लिया . लैंप के निचे बेंच पर बैठे मैं चुसकिया लेते हुए सोच रहा था की हरिया कुछ तो कहना चाह रहा था इशारो से पर क्या........ उसने क्या देखा था . इस सवाल ने मेरे मन में इतनी हलचल मचा दी थी की मैं क्या बताऊ.
सोचते सोचते दो पल के लिए मेरी आँखे बंद हो गयी . शायद वो हलकी सी नींद का झोंका था . मेरी आँखों के सामने वो द्रश्य था जब मैं और मंगू दावत से आ रहे थे . हम दोनों ठीक उसी जगह पर पहुचे जहाँ पर हमें कोचवान की गाडी मिली थी . मैंने देखा की धुंध ने चाँद से नाता तोड़ लिया था और चांदनी रात में मैंने अलाव के पार.............................. .