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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#4

वापसी में मैं जंगल में रुक कर उस जगह की छानबीन करना चाहता था पर मंगू साथ था तो ये विचार त्याग दिया और घर आ गया .मैंने जल्दी से कपडे बदले और बाहर जा ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए.

भाभी- खाना खाए बिना ही जा रहे हो .

मैं- देर हो रही है भाभी , आज खेतो पर नहीं गया तो भैया की डांट खानी पड़ेगी.

भाभी- इसलिए कह रही हूँ की खाना खाकर जाओ. डांट से भला पेट थोड़ी भरता है .

भाभी ने खाना परोसा और मेरे सामने ही बैठ गयी.

भाभी- कुछ परेशान लगते हो

मैं- नहीं भाभी सब ठीक है

मैंने निवाला मुह में डालते हुए कहा . भाभी की नजरे मेरे चेहरे पर ही जमी थी .

मैं- अब यूँ न देखो सरकार

भाभी- तुम भी हमसे न छिपाओ दिल के राज

मैं- सब्जी अच्छी बनी है आज

भाभी- खाना तो रोज ही ऐसा बनता है , तुम बात न बदलो

मैं- कोई बात हो तो बताओ

इस से पहले की भाभी कुछ और कहती चाची अन्दर आ गयी .

भाभी- चाची आपको भी खाना परोस दू

चाची- नहीं बहुरानी, मैंने शाम को ही खा लिया था अब भूख नहीं है . वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी की ये समय पर मिल जायेगा.

मैं- क्या चाची . आप भी ऐसा कह रही हो

चाची- जल्दी से खाना खा ले. खेतो पर समय से पहुँच जाए तो ठीक रहेगा.

खाने के बाद मैंने गर्म कम्बल लपेटा और अपनी साइकिल उठा ली .

चाची- न बाबा न बिलकुल नहीं मैं इस पर नै बैठूंगी पिछली बार तूने मुझे गिरा दिया कितने दिन कमर में दर्द रहा था .

भाभी- गाड़ी ले जाओ देवर जी .

मैं- अपने लिए तो यही ठीक है भाभी , और चाची वो मेरी गलती से नहीं गिरी थी तुम, इतनी मोटी जो हो गयी हो मेरा क्या दोष है .

मेरी बात सुन कर भाभी हंस पड़ी .

चाची- अच्छा बच्चू, मैं तुझे मोटी लगती हूँ , इधर आ अभी बताती हूँ तुझे.

चाची ने मेरा कान खींचा. भाभी हंसती रही .

मैं- माफ़ करो चाची , और जल्दी से आओ देर हो रही है .

भाभी ने मुझे थर्मस और बैटरी दी . घर से बाहर आते हुए हम गली में मुड गए.

मैं- चाची, तुम कहाँ मेरे साथ ठण्ड में मरोगी यही रुक जाओ पानी ही तो देना है मैं दे देता हूँ .

चाची- अरे नहीं कुंवर, काम करना जरुरी है बेशक तुम सब हमेशा मेरे लिए खड़े हो पर मेरा भी कुछ फ़र्ज़ है और इसी बहाने काम में मन भी लगा रहेगा.

“आराम से बैठना ” मैंने बस इतना ही कहा

चाची के बैठने के बाद मैंने साइकिल खेतो की तरफ मोड़ दी. करीब आधा घंटा तो आराम से लग जाना ही था . मेरे दिमाग में बस हरिया ही घूम रहा था .

चाची- क्या बात है गुमसुम क्यों हो क्या हुआ है

मैं- नहीं तो चाची , ऐसी कोई बात नहीं

कुछ देर बाद गाँव पीछे रह गया . कच्ची सड़क पर झुंडो के बीच से होते हुए साइकिल चली जा रही थी . ठण्ड के मारे कभी कभी चाची मेरी पीठ को सहला देती तो बड़ी राहत मिलती . ऐसे ही हम खेतो पर पहुँच गए . मैंने साइकिल रोकी , थोड़ी दूर हमें पगडण्डी से होते हुए पैदल ही जाना था .

मैंने फटाफट से कमरा खोला . गर्मी का अहसास मेरे रोम रोम में उतर गया पर कुछ पल के लिए ही. मैंने जूते उतारे और पानी की मोटर को चालु कर दिया .

मैं- चाची तुम यही रुको . ठण्ड जयादा है

चाची - नहीं मैं भी साथ चलूंगी.

मैंने बाहर आकर लाइन बदली और खेतो में पानी छोड़ दिया सरसों की फसल में ये हमारा पहला पानी था तो पूरा लबालब करना था . ठण्ड में हाड जमा देने वाला बर्फीला पानी जब बदन पैरो पर गिरा तो कसम से जान निकली ही समझो. चाची ने अपने लहंगे को थोडा ऊँचा कर लिया जिस से उसके मांसल घुटने दिखने लगे.

घंटे भर में हमने पाला भर दिया था . लाइन बदली अभी इस तरफ पानी भरने में समय लग्न था तो मैंने कहा- थोड़ी देर आराम करते है चाची ,

चाची ने भी हां कहा और हम कुवे पर बने कमरे की तरफ चल दिए. पगडण्डी पर चलते हुए चाची के नितम्ब बड़े मादक लग रहे थे. उपर से ठण्ड का जबर मौसम .

बेशक मेरे मन में चाची के प्रति अगाध सम्मान था पर कभी कभी मैं सोचता था की मेरे नसीब में कहीं चाची के हुस्न का प्यार तो नहीं लिखा. चाची का हमेशा से ही मेरे प्रति गहरा लगाव रहा था , मुझसे खूब हंसी-मजाक करती थी कभी कभी तो वो खुल कर दोहरी बाते भी कहती थी . मैं अपनी सीमाए जानता था पर मेरे कच्छे में सर उठाता वो हथियार कहाँ इतनी समझ रखता था .

चाची- तू चल अन्दर मैं अभी आई .

मैं- कोई काम है तो मैं कर देता हूँ

चाची- ये काम मुझे ही करना होगा

मैं- कहो तो सही मुझसे

चाची- अरे पेशाब करने जा रही हूँ

चाची की हंसी मेरे दिल पर लगी .

मैंने अलाव सुलगाया और बैठ गया . कुछ देर बाद वो आई और हम चाय की चुस्किया लेने लगे.

तपती आंच में बाला की खूबसूरत लग रही थी वो .

चाची- वो हरिया को क्या हुआ है

मैं- तुम्हे किसने बताया हरिया के बारे में

चाची- मंगू की माँ मिली थी वो ही कह रही थी

मैं- शायद किसी जानवर ने काट लिया उसे

चाची- बेटा रात बेरात तुम भी मत घुमा करो, जंगल खतरनाक है . मेरा दिल घबरा गया था कहीं वो जानवर हरिया की जगह तुम पर हमला कर देता तो क्या होता.

मैं- मुझे भला क्या होगा चाची.

मैं चाची से कुछ पूछना चाहता था पर फिर नहीं पूछा. चाय पीने के बाद हम फिर से पाले को देखने लगे. ठण्ड में नंगे पाँव गीली मिटटी और ठन्डे पानी ने मेरी ले रखी थी ऐसा ही हाल चाची का था .

“आज रात में तो काम पूरा नहीं हो पायेगा.” मैंने कहा

चाची- कल फिर आना पड़ेगा फिर तो क्योंकि इधर बिजली दिन में नहीं आती .

बिजली का जैसे ही जिक्र हुआ बिजली चली गयी .

मैं- हो गया सत्यानाश

अब करने को और कुछ था नहीं . हाथ पैर धोने के बाद चाची अपनी रजाई में घुस चुकी थी. मैंने अलाव की आंच थोड़ी सी तेज की और मूतने चला गया. ठंडी में गर्म मूत की धारा अभी बड़ा सुख दे रही थी पर तभी वो हुआ जो न जाने क्यों किसलिए हुआ.

“aahhhhhhhhhhhh ” मैं बस चीखते हुए धरती पर गिर पड़ा.

 

Tiger 786

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#4

वापसी में मैं जंगल में रुक कर उस जगह की छानबीन करना चाहता था पर मंगू साथ था तो ये विचार त्याग दिया और घर आ गया .मैंने जल्दी से कपडे बदले और बाहर जा ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए.

भाभी- खाना खाए बिना ही जा रहे हो .

मैं- देर हो रही है भाभी , आज खेतो पर नहीं गया तो भैया की डांट खानी पड़ेगी.

भाभी- इसलिए कह रही हूँ की खाना खाकर जाओ. डांट से भला पेट थोड़ी भरता है .

भाभी ने खाना परोसा और मेरे सामने ही बैठ गयी.

भाभी- कुछ परेशान लगते हो

मैं- नहीं भाभी सब ठीक है

मैंने निवाला मुह में डालते हुए कहा . भाभी की नजरे मेरे चेहरे पर ही जमी थी .

मैं- अब यूँ न देखो सरकार

भाभी- तुम भी हमसे न छिपाओ दिल के राज

मैं- सब्जी अच्छी बनी है आज

भाभी- खाना तो रोज ही ऐसा बनता है , तुम बात न बदलो

मैं- कोई बात हो तो बताओ

इस से पहले की भाभी कुछ और कहती चाची अन्दर आ गयी .

भाभी- चाची आपको भी खाना परोस दू

चाची- नहीं बहुरानी, मैंने शाम को ही खा लिया था अब भूख नहीं है . वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी की ये समय पर मिल जायेगा.

मैं- क्या चाची . आप भी ऐसा कह रही हो

चाची- जल्दी से खाना खा ले. खेतो पर समय से पहुँच जाए तो ठीक रहेगा.

खाने के बाद मैंने गर्म कम्बल लपेटा और अपनी साइकिल उठा ली .

चाची- न बाबा न बिलकुल नहीं मैं इस पर नै बैठूंगी पिछली बार तूने मुझे गिरा दिया कितने दिन कमर में दर्द रहा था .

भाभी- गाड़ी ले जाओ देवर जी .

मैं- अपने लिए तो यही ठीक है भाभी , और चाची वो मेरी गलती से नहीं गिरी थी तुम, इतनी मोटी जो हो गयी हो मेरा क्या दोष है .

मेरी बात सुन कर भाभी हंस पड़ी .

चाची- अच्छा बच्चू, मैं तुझे मोटी लगती हूँ , इधर आ अभी बताती हूँ तुझे.

चाची ने मेरा कान खींचा. भाभी हंसती रही .

मैं- माफ़ करो चाची , और जल्दी से आओ देर हो रही है .

भाभी ने मुझे थर्मस और बैटरी दी . घर से बाहर आते हुए हम गली में मुड गए.

मैं- चाची, तुम कहाँ मेरे साथ ठण्ड में मरोगी यही रुक जाओ पानी ही तो देना है मैं दे देता हूँ .

चाची- अरे नहीं कुंवर, काम करना जरुरी है बेशक तुम सब हमेशा मेरे लिए खड़े हो पर मेरा भी कुछ फ़र्ज़ है और इसी बहाने काम में मन भी लगा रहेगा.

“आराम से बैठना ” मैंने बस इतना ही कहा

चाची के बैठने के बाद मैंने साइकिल खेतो की तरफ मोड़ दी. करीब आधा घंटा तो आराम से लग जाना ही था . मेरे दिमाग में बस हरिया ही घूम रहा था .

चाची- क्या बात है गुमसुम क्यों हो क्या हुआ है

मैं- नहीं तो चाची , ऐसी कोई बात नहीं

कुछ देर बाद गाँव पीछे रह गया . कच्ची सड़क पर झुंडो के बीच से होते हुए साइकिल चली जा रही थी . ठण्ड के मारे कभी कभी चाची मेरी पीठ को सहला देती तो बड़ी राहत मिलती . ऐसे ही हम खेतो पर पहुँच गए . मैंने साइकिल रोकी , थोड़ी दूर हमें पगडण्डी से होते हुए पैदल ही जाना था .

मैंने फटाफट से कमरा खोला . गर्मी का अहसास मेरे रोम रोम में उतर गया पर कुछ पल के लिए ही. मैंने जूते उतारे और पानी की मोटर को चालु कर दिया .

मैं- चाची तुम यही रुको . ठण्ड जयादा है

चाची - नहीं मैं भी साथ चलूंगी.

मैंने बाहर आकर लाइन बदली और खेतो में पानी छोड़ दिया सरसों की फसल में ये हमारा पहला पानी था तो पूरा लबालब करना था . ठण्ड में हाड जमा देने वाला बर्फीला पानी जब बदन पैरो पर गिरा तो कसम से जान निकली ही समझो. चाची ने अपने लहंगे को थोडा ऊँचा कर लिया जिस से उसके मांसल घुटने दिखने लगे.

घंटे भर में हमने पाला भर दिया था . लाइन बदली अभी इस तरफ पानी भरने में समय लग्न था तो मैंने कहा- थोड़ी देर आराम करते है चाची ,

चाची ने भी हां कहा और हम कुवे पर बने कमरे की तरफ चल दिए. पगडण्डी पर चलते हुए चाची के नितम्ब बड़े मादक लग रहे थे. उपर से ठण्ड का जबर मौसम .

बेशक मेरे मन में चाची के प्रति अगाध सम्मान था पर कभी कभी मैं सोचता था की मेरे नसीब में कहीं चाची के हुस्न का प्यार तो नहीं लिखा. चाची का हमेशा से ही मेरे प्रति गहरा लगाव रहा था , मुझसे खूब हंसी-मजाक करती थी कभी कभी तो वो खुल कर दोहरी बाते भी कहती थी . मैं अपनी सीमाए जानता था पर मेरे कच्छे में सर उठाता वो हथियार कहाँ इतनी समझ रखता था .

चाची- तू चल अन्दर मैं अभी आई .

मैं- कोई काम है तो मैं कर देता हूँ

चाची- ये काम मुझे ही करना होगा

मैं- कहो तो सही मुझसे

चाची- अरे पेशाब करने जा रही हूँ

चाची की हंसी मेरे दिल पर लगी .

मैंने अलाव सुलगाया और बैठ गया . कुछ देर बाद वो आई और हम चाय की चुस्किया लेने लगे.

तपती आंच में बाला की खूबसूरत लग रही थी वो .

चाची- वो हरिया को क्या हुआ है

मैं- तुम्हे किसने बताया हरिया के बारे में

चाची- मंगू की माँ मिली थी वो ही कह रही थी

मैं- शायद किसी जानवर ने काट लिया उसे

चाची- बेटा रात बेरात तुम भी मत घुमा करो, जंगल खतरनाक है . मेरा दिल घबरा गया था कहीं वो जानवर हरिया की जगह तुम पर हमला कर देता तो क्या होता.

मैं- मुझे भला क्या होगा चाची.

मैं चाची से कुछ पूछना चाहता था पर फिर नहीं पूछा. चाय पीने के बाद हम फिर से पाले को देखने लगे. ठण्ड में नंगे पाँव गीली मिटटी और ठन्डे पानी ने मेरी ले रखी थी ऐसा ही हाल चाची का था .

“आज रात में तो काम पूरा नहीं हो पायेगा.” मैंने कहा

चाची- कल फिर आना पड़ेगा फिर तो क्योंकि इधर बिजली दिन में नहीं आती .

बिजली का जैसे ही जिक्र हुआ बिजली चली गयी .

मैं- हो गया सत्यानाश

अब करने को और कुछ था नहीं . हाथ पैर धोने के बाद चाची अपनी रजाई में घुस चुकी थी. मैंने अलाव की आंच थोड़ी सी तेज की और मूतने चला गया. ठंडी में गर्म मूत की धारा अभी बड़ा सुख दे रही थी पर तभी वो हुआ जो न जाने क्यों किसलिए हुआ.

“aahhhhhhhhhhhh ” मैं बस चीखते हुए धरती पर गिर पड़ा.
Superb update
 

Maverick_Sam

The DP says it all...Highly Promiscous!
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Superb update

#4

वापसी में मैं जंगल में रुक कर उस जगह की छानबीन करना चाहता था पर मंगू साथ था तो ये विचार त्याग दिया और घर आ गया .मैंने जल्दी से कपडे बदले और बाहर जा ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए.

भाभी- खाना खाए बिना ही जा रहे हो .

मैं- देर हो रही है भाभी , आज खेतो पर नहीं गया तो भैया की डांट खानी पड़ेगी.

भाभी- इसलिए कह रही हूँ की खाना खाकर जाओ. डांट से भला पेट थोड़ी भरता है .

भाभी ने खाना परोसा और मेरे सामने ही बैठ गयी.

भाभी- कुछ परेशान लगते हो

मैं- नहीं भाभी सब ठीक है

मैंने निवाला मुह में डालते हुए कहा . भाभी की नजरे मेरे चेहरे पर ही जमी थी .

मैं- अब यूँ न देखो सरकार

भाभी- तुम भी हमसे न छिपाओ दिल के राज

मैं- सब्जी अच्छी बनी है आज

भाभी- खाना तो रोज ही ऐसा बनता है , तुम बात न बदलो

मैं- कोई बात हो तो बताओ

इस से पहले की भाभी कुछ और कहती चाची अन्दर आ गयी .

भाभी- चाची आपको भी खाना परोस दू

चाची- नहीं बहुरानी, मैंने शाम को ही खा लिया था अब भूख नहीं है . वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी की ये समय पर मिल जायेगा.

मैं- क्या चाची . आप भी ऐसा कह रही हो

चाची- जल्दी से खाना खा ले. खेतो पर समय से पहुँच जाए तो ठीक रहेगा.

खाने के बाद मैंने गर्म कम्बल लपेटा और अपनी साइकिल उठा ली .

चाची- न बाबा न बिलकुल नहीं मैं इस पर नै बैठूंगी पिछली बार तूने मुझे गिरा दिया कितने दिन कमर में दर्द रहा था .

भाभी- गाड़ी ले जाओ देवर जी .

मैं- अपने लिए तो यही ठीक है भाभी , और चाची वो मेरी गलती से नहीं गिरी थी तुम, इतनी मोटी जो हो गयी हो मेरा क्या दोष है .

मेरी बात सुन कर भाभी हंस पड़ी .

चाची- अच्छा बच्चू, मैं तुझे मोटी लगती हूँ , इधर आ अभी बताती हूँ तुझे.

चाची ने मेरा कान खींचा. भाभी हंसती रही .

मैं- माफ़ करो चाची , और जल्दी से आओ देर हो रही है .

भाभी ने मुझे थर्मस और बैटरी दी . घर से बाहर आते हुए हम गली में मुड गए.

मैं- चाची, तुम कहाँ मेरे साथ ठण्ड में मरोगी यही रुक जाओ पानी ही तो देना है मैं दे देता हूँ .

चाची- अरे नहीं कुंवर, काम करना जरुरी है बेशक तुम सब हमेशा मेरे लिए खड़े हो पर मेरा भी कुछ फ़र्ज़ है और इसी बहाने काम में मन भी लगा रहेगा.

“आराम से बैठना ” मैंने बस इतना ही कहा

चाची के बैठने के बाद मैंने साइकिल खेतो की तरफ मोड़ दी. करीब आधा घंटा तो आराम से लग जाना ही था . मेरे दिमाग में बस हरिया ही घूम रहा था .

चाची- क्या बात है गुमसुम क्यों हो क्या हुआ है

मैं- नहीं तो चाची , ऐसी कोई बात नहीं

कुछ देर बाद गाँव पीछे रह गया . कच्ची सड़क पर झुंडो के बीच से होते हुए साइकिल चली जा रही थी . ठण्ड के मारे कभी कभी चाची मेरी पीठ को सहला देती तो बड़ी राहत मिलती . ऐसे ही हम खेतो पर पहुँच गए . मैंने साइकिल रोकी , थोड़ी दूर हमें पगडण्डी से होते हुए पैदल ही जाना था .

मैंने फटाफट से कमरा खोला . गर्मी का अहसास मेरे रोम रोम में उतर गया पर कुछ पल के लिए ही. मैंने जूते उतारे और पानी की मोटर को चालु कर दिया .

मैं- चाची तुम यही रुको . ठण्ड जयादा है

चाची - नहीं मैं भी साथ चलूंगी.

मैंने बाहर आकर लाइन बदली और खेतो में पानी छोड़ दिया सरसों की फसल में ये हमारा पहला पानी था तो पूरा लबालब करना था . ठण्ड में हाड जमा देने वाला बर्फीला पानी जब बदन पैरो पर गिरा तो कसम से जान निकली ही समझो. चाची ने अपने लहंगे को थोडा ऊँचा कर लिया जिस से उसके मांसल घुटने दिखने लगे.

घंटे भर में हमने पाला भर दिया था . लाइन बदली अभी इस तरफ पानी भरने में समय लग्न था तो मैंने कहा- थोड़ी देर आराम करते है चाची ,

चाची ने भी हां कहा और हम कुवे पर बने कमरे की तरफ चल दिए. पगडण्डी पर चलते हुए चाची के नितम्ब बड़े मादक लग रहे थे. उपर से ठण्ड का जबर मौसम .

बेशक मेरे मन में चाची के प्रति अगाध सम्मान था पर कभी कभी मैं सोचता था की मेरे नसीब में कहीं चाची के हुस्न का प्यार तो नहीं लिखा. चाची का हमेशा से ही मेरे प्रति गहरा लगाव रहा था , मुझसे खूब हंसी-मजाक करती थी कभी कभी तो वो खुल कर दोहरी बाते भी कहती थी . मैं अपनी सीमाए जानता था पर मेरे कच्छे में सर उठाता वो हथियार कहाँ इतनी समझ रखता था .

चाची- तू चल अन्दर मैं अभी आई .

मैं- कोई काम है तो मैं कर देता हूँ

चाची- ये काम मुझे ही करना होगा

मैं- कहो तो सही मुझसे

चाची- अरे पेशाब करने जा रही हूँ

चाची की हंसी मेरे दिल पर लगी .

मैंने अलाव सुलगाया और बैठ गया . कुछ देर बाद वो आई और हम चाय की चुस्किया लेने लगे.

तपती आंच में बाला की खूबसूरत लग रही थी वो .

चाची- वो हरिया को क्या हुआ है

मैं- तुम्हे किसने बताया हरिया के बारे में

चाची- मंगू की माँ मिली थी वो ही कह रही थी

मैं- शायद किसी जानवर ने काट लिया उसे

चाची- बेटा रात बेरात तुम भी मत घुमा करो, जंगल खतरनाक है . मेरा दिल घबरा गया था कहीं वो जानवर हरिया की जगह तुम पर हमला कर देता तो क्या होता.

मैं- मुझे भला क्या होगा चाची.

मैं चाची से कुछ पूछना चाहता था पर फिर नहीं पूछा. चाय पीने के बाद हम फिर से पाले को देखने लगे. ठण्ड में नंगे पाँव गीली मिटटी और ठन्डे पानी ने मेरी ले रखी थी ऐसा ही हाल चाची का था .

“आज रात में तो काम पूरा नहीं हो पायेगा.” मैंने कहा

चाची- कल फिर आना पड़ेगा फिर तो क्योंकि इधर बिजली दिन में नहीं आती .

बिजली का जैसे ही जिक्र हुआ बिजली चली गयी .

मैं- हो गया सत्यानाश

अब करने को और कुछ था नहीं . हाथ पैर धोने के बाद चाची अपनी रजाई में घुस चुकी थी. मैंने अलाव की आंच थोड़ी सी तेज की और मूतने चला गया. ठंडी में गर्म मूत की धारा अभी बड़ा सुख दे रही थी पर तभी वो हुआ जो न जाने क्यों किसलिए हुआ.

“aahhhhhhhhhhhh ” मैं बस चीखते हुए धरती पर गिर पड़ा.
आज चाची की चूत की सिंचाई होगी क्या..?? 😍😍😉
 

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अब करने को और कुछ था नहीं . हाथ पैर धोने के बाद चाची अपनी रजाई में घुस चुकी थी. मैंने अलाव की आंच थोड़ी सी तेज की और मूतने चला गया. ठंडी में गर्म मूत की धारा अभी बड़ा सुख दे रही थी पर तभी वो हुआ जो न जाने क्यों किसलिए हुआ.

“aahhhhhhhhhhhh ” मैं बस चीखते हुए धरती पर गिर पड़ा.
Aur wohi chit parichit Suspence ke sath update khatm..... Shaandar Bhai....
 
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