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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Sabse pahle ek nayi kahani ki shuruwaat karne ke liye mai aapko bahot bahot badhai dena chahta hu, do update pahle hi post chuke hai lekin pata hai mujhe sabse jaada khushi is baat ki hai ki kahani gaav se judi hui hai or aapki sabhi kahani aisi hi hai isiliye mujhe pasand hai, bhabhi ka jikra hote hi mujhe jassi ki yaad aa khair koi baat nahi abhi to shuruwaat hai maza to aage aayega...
Us ladke ki halat thik nahi lag rahi lekin raat me jungle me uske saath kya hua honga kyuki ye kisi jaanwar ki wajah se nahi hai or wah dr bhi hero ke bhai ko jald baaji me le gaya kuch gambhir hai.. dekhte hai aage kya hota hai..​
गांव का हूं तो गांव की हदों से बाहर जाऊँ कैसे, पहाड़ जंगल नदी इस तरह मन मे बसे है कि जो है बस यही है, हरिया के साथ जंगल मे क्या हुआ ये देखने वाली बात है क्योंकि इस घटना का असर दूर तक होगा
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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HalfbludPrince मुसाफिर + आपको नई रचना के प्रारंभ करने के लिए बहुत-बहुत बधाई..
क्या जानदार शुरुआत है, पहले अंक से ही रहस्य रोमांच की ऐसी बारिश कर दी है कि मन को सुकून दिला दिया है.. आप अद्भूत लेखक है व पाठकों के लिए आपने अपने लेखन को जारी रखने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र 🙏..
आप जिस तरह से जिज्ञासा को जागते है वो अविस्मरणीय व रोमांचकारी होता है...
अगले एपिसोड के इंतजार में...
धन्यवाद मित्र, मेरी असली शक्ति आप पाठक लोग ही है, आप के बिना क्या ही लिख लेता मैं
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#3

“हाय रे , तोड़ दी मेरी कमरिया आज तो ऊपर से देखो नालायक कैसे खड़ा है , मुझे तो उठा जरा ” चाची ने कराहते हुए कहा तो मेरा ध्यान गया की मैं चाची से टकरा गया था . चाची का लहंगा घुटनों तक उठ गया था जिस से सुबह की रौशनी में उनकी दुधिया जांघे चमक उठी थी . पांवो में पिंडियो पर मोटे चांदी के कड़े क्या खूब सज रहे थे . मैंने देखा की चाची के सीने से शाल हट गया था तंग चोली में से बाहर निकलने को बेताब चाची की चुचियो पर मेरी नजर पड़ी तो उठ नहीं पायी.

“रे हरामखोर मैं इधर पड़ी हूँ और तुझे परवाह ही नहीं है एक बार मुझे खड़ी कर जरा हाय रे मेरी कमर . हाथ दे जरा ” चाची ने फिर से कहा तो मैं होश में आया .

मैंने सहारा देकर चाची को खड़ी किया चाची ने एक धौल मेरी पीठ पर मारी .

चाची- जब देखो अफरा तफरी में रहता है , किसी दिन एक आधे की जान जरुर लेगा तू

मैं- चाची तुम को तो देख लेना चाहिए था न

चाची- हाँ गलती तो मेरी ही हैं न .

मैं- मेरी प्यारी चाची , तुम्हारी गलती कैसे हो सकती है . मैं आगे से ध्यान रखूँगा अभी गुस्सा न करो. इतने खूबसूरत चेहरे पर गुस्से की लाली अच्छी नहीं लगती .

मैंने चाची को मस्का मारा तो चाची हंस पड़ी .

चाची- बाते बनाना कोई तुझसे सीखे . दो दिन से कहा गायब था तू .

मैं- बस यूँ ही

चाची- कोई न बच्चू ये दिन है तेरे

मैं- चाची मैं बाद में मिलता हूँ आपसे

मैं सीधा मंगू के घर गया और दरवाजे पर ही उसकी बहन चंपा मिल गयी .

मैं- मंगू कहा है

चंपा- जब देखो मंगू, मंगू करते रहते हो इस घर में और कोई भी रहता है

मैं- तुझसे कितनी बार कहा है की मेरे साथ ये बाते मत किया कर .

चंपा- तो कैसी बाते करू तुम ही बताओ फिर.

मैं- चंपा. मंगू कहा है

चंपा- अन्दर है मिल लो

मैं सीधा मंगू के कमरे में गया पर वो वहां नहीं था मैं पलट ही रहा था की तभी चंपा आकर मुझसे लिपट गयी. तो ये इसकी चाल थी मंगू घर पर था ही नहीं . मैंने झटके से उसे दूर किया

मैं- चंपा हम दोनों को अपनी अपनी हदों में रहना चाहिए. आखिर तू समझती क्यों नहीं .

चंपा- आधा गाँव मेरी जवानी पर फ़िदा है पर मैं तुझ पर फ़िदा हूँ और तू है की मेरी तरफ देखता भी नहीं . ये मेरे रसीले होंठ तड़प रहे है की कब तू इनका रस निचोड़ ले. ये मेरा हुस्न बेताब है तेरे आगोश में पिघलने को .

मैं- खुद पर काबू रख , थोड़े दिन में तेरा ब्याह हो ही जायेगा फिर अपने पति को जी भर कर इस जवानी का रस पिलाना

चंपा- तू बस एक बार कह अभी तुझे अपना पति मान कर सब कुछ अर्पण कर दूंगी.

चंपा मेरे पास आई और मेरे गालो को चूम लिया .

मैं- तू समझती क्यों नहीं . मंगू भाई जैसा है मेरा. मैं तुझे हमेशा पवित्र नजरो से देखता हूँ . तेरे साथ सोकर मंगू की पीठ में छुरा मारा तो दोस्ती बदनाम होगी. मैं तेरी बहुत इज्जत करता हूँ चंपा क्योंकि तेरा मन साफ़ है पर तू मुझे मजबूर मत कर .

चंपा- और मेरे मन का क्या . इस दिल का क्या कसूर है जो ये तेरे लिए ही पागल है .

मैं-दिल तो पागल ही होता है .तू तो पागल मत बन . जल्दी ही तेरा ब्याह होगा , हंसी-खुशी तेरी डोली उठेगी. एक बार तेरा घर बस जायेगा तो फिर ये सब बेमानी तेरा पति तुझे इतना सुख देगा की तू सुख की बारिश में भीग जाएगी. मैं जानता हूँ की तेरे मन में ये हवस नहीं है वर्ना गाँव में और भी लड़के है . इसलिए ही तेरा इतना मान है मुझे .

मैंने चंपा के माथे को चूमा और उसे गले से लगा लिया.

मैं- अब तो बता दे कहा है मंगू

चंपा- खेत में गया है माँ बाबा संग.

खेत में जाने से पहले मैं वैध जी के घर गया हरिया को देखने . उसकी हालत में कोई खास सुधार नहीं था , बदन पीला पड़ा था जिससे की खून की कमी हो गई हो उसे. बार बार गर्दन को झटक रहा था , हाथो से अजीब अजीब इशारे कर रहा था .मैंने हरिया के परिवार वालो को देखा जो बस रोये जा रहे थे उसकी हालत को देख कर.

मैं- वैध जी क्या लगता है आपको

वैध- शहर में बड़े डॉक्टर को दिखाना चाहिए , खून की कमी लगातार हो रही है , आँखे तक पीली पड़ गयी है.

मैं- तो देर किस बात की ले चलते है इसे शहर

वैध- इसके परिवार के पास इतने पैसे नहीं है

मैं- तो क्या पैसो के पीछे इसे मरने देंगे. आप इसे लेकर अभी के अभी शहर पहुँचिये . मैं पैसे लेकर आता हूँ .

मैंने घर जाकर भाभी को बताया की हरिया को एडमिट करवाना है और पैसे चाहिए . भाभी ने तुरंत मेरी मदद की. शाम तक मैं और मंगू शहर के हॉस्पिटल में पहुँच गए. मालूम हुआ की हरिया को खून चढ़ाया गया है . बुखार भी थोडा काबू में है . पर बड़े डॉक्टर भी बता नहीं पा रहे थे की उसे हुआ क्या है .

चाय की टापरी पर बैठे हुए मैं गहरी सोच में डूबा था .

मैं- यार मंगू, जंगल में क्या हुआ इसके साथ . अगर किसी ने लूट खसूट की होती तो घोड़े भी ले जाता . बहनचोद मामला समझ नहीं आ रहा .

मंगू- भूत-प्रेत देख लिया हो हरिया ने शायद

मैं मंगू की बात को झुठला नहीं सकता था बचपन से हम सुनते आये थे की जंगल में ये है वो है एक तय समय के बाद गाँव वाले जंगल की तरफ रुख करते भी नहीं थे.

मंगू- देख भाई, अपन इसके लिए जितना कर रहे है कोई नहीं करता. ये तो इसकी किस्मत थी की हम को मिला ये वर्ना क्या मालूम इसकी लाश ही मिलती

मैं- यही तो बात है की ये हम को मिला मंगू. अब इसको बचाने की जिम्मेदारी अपनी है

तभी मुझे जिम्मेदारी से याद आया की आज रात चाची के साथ खेतो पर जाना है

मैं- मंगू साइकिल उठा , अभी वापिस चलना होगा हमें

मैं हरिया की पत्नी से मिलकर आया उसे आश्वश्त किया की हम आते रहेंगे उसे कुछ पैसे दिए और फिर सांझ ढलते गाँव के लिए चल पड़े. गाँव हमारा कोई बारह कोस पड़ता है शहर से. और सर्दी के मौसम में अँधेरा तो पूछो ही मत कब हो जाता है फिर भी हम दोनों चल दिए.

सीटी बजाते हुए, गाने गाते हुए हम अपनी मस्ती में चले जा रहे थे पर हमें कहाँ मालूम था की मंजिल कितनी दूर है ............
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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“हाय रे , तोड़ दी मेरी कमरिया आज तो ऊपर से देखो नालायक कैसे खड़ा है , मुझे तो उठा जरा ” चाची ने कराहते हुए कहा तो मेरा ध्यान गया की मैं चाची से टकरा गया था . चाची का लहंगा घुटनों तक उठ गया था जिस से सुबह की रौशनी में उनकी दुधिया जांघे चमक उठी थी . पांवो में पिंडियो पर मोटे चांदी के कड़े क्या खूब सज रहे थे . मैंने देखा की चाची के सीने से शाल हट गया था तंग चोली में से बाहर निकलने को बेताब चाची की चुचियो पर मेरी नजर पड़ी तो उठ नहीं पायी.

“रे हरामखोर मैं इधर पड़ी हूँ और तुझे परवाह ही नहीं है एक बार मुझे खड़ी कर जरा हाय रे मेरी कमर . हाथ दे जरा ” चाची ने फिर से कहा तो मैं होश में आया .

मैंने सहारा देकर चाची को खड़ी किया चाची ने एक धौल मेरी पीठ पर मारी .

चाची- जब देखो अफरा तफरी में रहता है , किसी दिन एक आधे की जान जरुर लेगा तू

मैं- चाची तुम को तो देख लेना चाहिए था न

चाची- हाँ गलती तो मेरी ही हैं न .

मैं- मेरी प्यारी चाची , तुम्हारी गलती कैसे हो सकती है . मैं आगे से ध्यान रखूँगा अभी गुस्सा न करो. इतने खूबसूरत चेहरे पर गुस्से की लाली अच्छी नहीं लगती .

मैंने चाची को मस्का मारा तो चाची हंस पड़ी .

चाची- बाते बनाना कोई तुझसे सीखे . दो दिन से कहा गायब था तू .

मैं- बस यूँ ही

चाची- कोई न बच्चू ये दिन है तेरे

मैं- चाची मैं बाद में मिलता हूँ आपसे

मैं सीधा मंगू के घर गया और दरवाजे पर ही उसकी बहन चंपा मिल गयी .

मैं- मंगू कहा है

चंपा- जब देखो मंगू, मंगू करते रहते हो इस घर में और कोई भी रहता है

मैं- तुझसे कितनी बार कहा है की मेरे साथ ये बाते मत किया कर .

चंपा- तो कैसी बाते करू तुम ही बताओ फिर.

मैं- चंपा. मंगू कहा है

चंपा- अन्दर है मिल लो

मैं सीधा मंगू के कमरे में गया पर वो वहां नहीं था मैं पलट ही रहा था की तभी चंपा आकर मुझसे लिपट गयी. तो ये इसकी चाल थी मंगू घर पर था ही नहीं . मैंने झटके से उसे दूर किया

मैं- चंपा हम दोनों को अपनी अपनी हदों में रहना चाहिए. आखिर तू समझती क्यों नहीं .

चंपा- आधा गाँव मेरी जवानी पर फ़िदा है पर मैं तुझ पर फ़िदा हूँ और तू है की मेरी तरफ देखता भी नहीं . ये मेरे रसीले होंठ तड़प रहे है की कब तू इनका रस निचोड़ ले. ये मेरा हुस्न बेताब है तेरे आगोश में पिघलने को .

मैं- खुद पर काबू रख , थोड़े दिन में तेरा ब्याह हो ही जायेगा फिर अपने पति को जी भर कर इस जवानी का रस पिलाना

चंपा- तू बस एक बार कह अभी तुझे अपना पति मान कर सब कुछ अर्पण कर दूंगी.

चंपा मेरे पास आई और मेरे गालो को चूम लिया .

मैं- तू समझती क्यों नहीं . मंगू भाई जैसा है मेरा. मैं तुझे हमेशा पवित्र नजरो से देखता हूँ . तेरे साथ सोकर मंगू की पीठ में छुरा मारा तो दोस्ती बदनाम होगी. मैं तेरी बहुत इज्जत करता हूँ चंपा क्योंकि तेरा मन साफ़ है पर तू मुझे मजबूर मत कर .

चंपा- और मेरे मन का क्या . इस दिल का क्या कसूर है जो ये तेरे लिए ही पागल है .

मैं-दिल तो पागल ही होता है .तू तो पागल मत बन . जल्दी ही तेरा ब्याह होगा , हंसी-खुशी तेरी डोली उठेगी. एक बार तेरा घर बस जायेगा तो फिर ये सब बेमानी तेरा पति तुझे इतना सुख देगा की तू सुख की बारिश में भीग जाएगी. मैं जानता हूँ की तेरे मन में ये हवस नहीं है वर्ना गाँव में और भी लड़के है . इसलिए ही तेरा इतना मान है मुझे .

मैंने चंपा के माथे को चूमा और उसे गले से लगा लिया.

मैं- अब तो बता दे कहा है मंगू

चंपा- खेत में गया है माँ बाबा संग.

खेत में जाने से पहले मैं वैध जी के घर गया हरिया को देखने . उसकी हालत में कोई खास सुधार नहीं था , बदन पीला पड़ा था जिससे की खून की कमी हो गई हो उसे. बार बार गर्दन को झटक रहा था , हाथो से अजीब अजीब इशारे कर रहा था .मैंने हरिया के परिवार वालो को देखा जो बस रोये जा रहे थे उसकी हालत को देख कर.

मैं- वैध जी क्या लगता है आपको

वैध- शहर में बड़े डॉक्टर को दिखाना चाहिए , खून की कमी लगातार हो रही है , आँखे तक पीली पड़ गयी है.

मैं- तो देर किस बात की ले चलते है इसे शहर

वैध- इसके परिवार के पास इतने पैसे नहीं है

मैं- तो क्या पैसो के पीछे इसे मरने देंगे. आप इसे लेकर अभी के अभी शहर पहुँचिये . मैं पैसे लेकर आता हूँ .

मैंने घर जाकर भाभी को बताया की हरिया को एडमिट करवाना है और पैसे चाहिए . भाभी ने तुरंत मेरी मदद की. शाम तक मैं और मंगू शहर के हॉस्पिटल में पहुँच गए. मालूम हुआ की हरिया को खून चढ़ाया गया है . बुखार भी थोडा काबू में है . पर बड़े डॉक्टर भी बता नहीं पा रहे थे की उसे हुआ क्या है .

चाय की टापरी पर बैठे हुए मैं गहरी सोच में डूबा था .

मैं- यार मंगू, जंगल में क्या हुआ इसके साथ . अगर किसी ने लूट खसूट की होती तो घोड़े भी ले जाता . बहनचोद मामला समझ नहीं आ रहा .

मंगू- भूत-प्रेत देख लिया हो हरिया ने शायद

मैं मंगू की बात को झुठला नहीं सकता था बचपन से हम सुनते आये थे की जंगल में ये है वो है एक तय समय के बाद गाँव वाले जंगल की तरफ रुख करते भी नहीं थे.

मंगू- देख भाई, अपन इसके लिए जितना कर रहे है कोई नहीं करता. ये तो इसकी किस्मत थी की हम को मिला ये वर्ना क्या मालूम इसकी लाश ही मिलती

मैं- यही तो बात है की ये हम को मिला मंगू. अब इसको बचाने की जिम्मेदारी अपनी है

तभी मुझे जिम्मेदारी से याद आया की आज रात चाची के साथ खेतो पर जाना है

मैं- मंगू साइकिल उठा , अभी वापिस चलना होगा हमें

मैं हरिया की पत्नी से मिलकर आया उसे आश्वश्त किया की हम आते रहेंगे उसे कुछ पैसे दिए और फिर सांझ ढलते गाँव के लिए चल पड़े. गाँव हमारा कोई बारह कोस पड़ता है शहर से. और सर्दी के मौसम में अँधेरा तो पूछो ही मत कब हो जाता है फिर भी हम दोनों चल दिए.


सीटी बजाते हुए, गाने गाते हुए हम अपनी मस्ती में चले जा रहे थे पर हमें कहाँ मालूम था की मंजिल कितनी दूर है ..........
Thanks, bahut hi accha
 

Rajizexy

punjabi doc
Supreme
43,422
42,908
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#3

“हाय रे , तोड़ दी मेरी कमरिया आज तो ऊपर से देखो नालायक कैसे खड़ा है , मुझे तो उठा जरा ” चाची ने कराहते हुए कहा तो मेरा ध्यान गया की मैं चाची से टकरा गया था . चाची का लहंगा घुटनों तक उठ गया था जिस से सुबह की रौशनी में उनकी दुधिया जांघे चमक उठी थी . पांवो में पिंडियो पर मोटे चांदी के कड़े क्या खूब सज रहे थे . मैंने देखा की चाची के सीने से शाल हट गया था तंग चोली में से बाहर निकलने को बेताब चाची की चुचियो पर मेरी नजर पड़ी तो उठ नहीं पायी.

“रे हरामखोर मैं इधर पड़ी हूँ और तुझे परवाह ही नहीं है एक बार मुझे खड़ी कर जरा हाय रे मेरी कमर . हाथ दे जरा ” चाची ने फिर से कहा तो मैं होश में आया .

मैंने सहारा देकर चाची को खड़ी किया चाची ने एक धौल मेरी पीठ पर मारी .

चाची- जब देखो अफरा तफरी में रहता है , किसी दिन एक आधे की जान जरुर लेगा तू

मैं- चाची तुम को तो देख लेना चाहिए था न

चाची- हाँ गलती तो मेरी ही हैं न .

मैं- मेरी प्यारी चाची , तुम्हारी गलती कैसे हो सकती है . मैं आगे से ध्यान रखूँगा अभी गुस्सा न करो. इतने खूबसूरत चेहरे पर गुस्से की लाली अच्छी नहीं लगती .

मैंने चाची को मस्का मारा तो चाची हंस पड़ी .

चाची- बाते बनाना कोई तुझसे सीखे . दो दिन से कहा गायब था तू .

मैं- बस यूँ ही

चाची- कोई न बच्चू ये दिन है तेरे

मैं- चाची मैं बाद में मिलता हूँ आपसे

मैं सीधा मंगू के घर गया और दरवाजे पर ही उसकी बहन चंपा मिल गयी .

मैं- मंगू कहा है

चंपा- जब देखो मंगू, मंगू करते रहते हो इस घर में और कोई भी रहता है

मैं- तुझसे कितनी बार कहा है की मेरे साथ ये बाते मत किया कर .

चंपा- तो कैसी बाते करू तुम ही बताओ फिर.

मैं- चंपा. मंगू कहा है

चंपा- अन्दर है मिल लो

मैं सीधा मंगू के कमरे में गया पर वो वहां नहीं था मैं पलट ही रहा था की तभी चंपा आकर मुझसे लिपट गयी. तो ये इसकी चाल थी मंगू घर पर था ही नहीं . मैंने झटके से उसे दूर किया

मैं- चंपा हम दोनों को अपनी अपनी हदों में रहना चाहिए. आखिर तू समझती क्यों नहीं .

चंपा- आधा गाँव मेरी जवानी पर फ़िदा है पर मैं तुझ पर फ़िदा हूँ और तू है की मेरी तरफ देखता भी नहीं . ये मेरे रसीले होंठ तड़प रहे है की कब तू इनका रस निचोड़ ले. ये मेरा हुस्न बेताब है तेरे आगोश में पिघलने को .

मैं- खुद पर काबू रख , थोड़े दिन में तेरा ब्याह हो ही जायेगा फिर अपने पति को जी भर कर इस जवानी का रस पिलाना

चंपा- तू बस एक बार कह अभी तुझे अपना पति मान कर सब कुछ अर्पण कर दूंगी.

चंपा मेरे पास आई और मेरे गालो को चूम लिया .

मैं- तू समझती क्यों नहीं . मंगू भाई जैसा है मेरा. मैं तुझे हमेशा पवित्र नजरो से देखता हूँ . तेरे साथ सोकर मंगू की पीठ में छुरा मारा तो दोस्ती बदनाम होगी. मैं तेरी बहुत इज्जत करता हूँ चंपा क्योंकि तेरा मन साफ़ है पर तू मुझे मजबूर मत कर .

चंपा- और मेरे मन का क्या . इस दिल का क्या कसूर है जो ये तेरे लिए ही पागल है .

मैं-दिल तो पागल ही होता है .तू तो पागल मत बन . जल्दी ही तेरा ब्याह होगा , हंसी-खुशी तेरी डोली उठेगी. एक बार तेरा घर बस जायेगा तो फिर ये सब बेमानी तेरा पति तुझे इतना सुख देगा की तू सुख की बारिश में भीग जाएगी. मैं जानता हूँ की तेरे मन में ये हवस नहीं है वर्ना गाँव में और भी लड़के है . इसलिए ही तेरा इतना मान है मुझे .

मैंने चंपा के माथे को चूमा और उसे गले से लगा लिया.

मैं- अब तो बता दे कहा है मंगू

चंपा- खेत में गया है माँ बाबा संग.

खेत में जाने से पहले मैं वैध जी के घर गया हरिया को देखने . उसकी हालत में कोई खास सुधार नहीं था , बदन पीला पड़ा था जिससे की खून की कमी हो गई हो उसे. बार बार गर्दन को झटक रहा था , हाथो से अजीब अजीब इशारे कर रहा था .मैंने हरिया के परिवार वालो को देखा जो बस रोये जा रहे थे उसकी हालत को देख कर.

मैं- वैध जी क्या लगता है आपको

वैध- शहर में बड़े डॉक्टर को दिखाना चाहिए , खून की कमी लगातार हो रही है , आँखे तक पीली पड़ गयी है.

मैं- तो देर किस बात की ले चलते है इसे शहर

वैध- इसके परिवार के पास इतने पैसे नहीं है

मैं- तो क्या पैसो के पीछे इसे मरने देंगे. आप इसे लेकर अभी के अभी शहर पहुँचिये . मैं पैसे लेकर आता हूँ .

मैंने घर जाकर भाभी को बताया की हरिया को एडमिट करवाना है और पैसे चाहिए . भाभी ने तुरंत मेरी मदद की. शाम तक मैं और मंगू शहर के हॉस्पिटल में पहुँच गए. मालूम हुआ की हरिया को खून चढ़ाया गया है . बुखार भी थोडा काबू में है . पर बड़े डॉक्टर भी बता नहीं पा रहे थे की उसे हुआ क्या है .

चाय की टापरी पर बैठे हुए मैं गहरी सोच में डूबा था .

मैं- यार मंगू, जंगल में क्या हुआ इसके साथ . अगर किसी ने लूट खसूट की होती तो घोड़े भी ले जाता . बहनचोद मामला समझ नहीं आ रहा .

मंगू- भूत-प्रेत देख लिया हो हरिया ने शायद

मैं मंगू की बात को झुठला नहीं सकता था बचपन से हम सुनते आये थे की जंगल में ये है वो है एक तय समय के बाद गाँव वाले जंगल की तरफ रुख करते भी नहीं थे.

मंगू- देख भाई, अपन इसके लिए जितना कर रहे है कोई नहीं करता. ये तो इसकी किस्मत थी की हम को मिला ये वर्ना क्या मालूम इसकी लाश ही मिलती

मैं- यही तो बात है की ये हम को मिला मंगू. अब इसको बचाने की जिम्मेदारी अपनी है

तभी मुझे जिम्मेदारी से याद आया की आज रात चाची के साथ खेतो पर जाना है

मैं- मंगू साइकिल उठा , अभी वापिस चलना होगा हमें

मैं हरिया की पत्नी से मिलकर आया उसे आश्वश्त किया की हम आते रहेंगे उसे कुछ पैसे दिए और फिर सांझ ढलते गाँव के लिए चल पड़े. गाँव हमारा कोई बारह कोस पड़ता है शहर से. और सर्दी के मौसम में अँधेरा तो पूछो ही मत कब हो जाता है फिर भी हम दोनों चल दिए.


सीटी बजाते हुए, गाने गाते हुए हम अपनी मस्ती में चले जा रहे थे पर हमें कहाँ मालूम था की मंजिल कितनी दूर है ............
Nice update 👌👌👌
 
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Congratulations for another story Fauji bhai.

अब तक जो पढ़ा , उससे लगता है इस कहानी में भी सुपर नेचुरल मौजूद है । शायद भुत प्रेत या कोई जादू टोना । क्योंकि हरिया की जो फिजिकल पोजीशन हो गई है वो बिमारी तो लगा नहीं मुझे । जरूर उस जंगल में उसकी बुरी शक्तियों से मुलाकात हो गई थी ।
लेकिन ऐसा भी लग रहा है यह बुरी शक्ती अभी हाल फिलहाल में ही एक्टिव हुई है । पहले यह अस्तित्व में नहीं थी । देखते हैं इसकी कहानी क्या है !

नायक का नाम कुंवर है । इस लड़के का कैरेक्टर तो बहुत ही बढ़िया है । दोस्त की बहन और दोस्त की पत्नी का सम्मान एक अच्छे इंसान की पहचान है । उसने अपने दोस्त मंगू के साथ सच्ची दोस्ती निभाई।
इस लड़के की एक और खूबी मुझे बहुत पसंद आया और वो है " परहित सरिस धर्म नहिं भाई " की भावना । गरीब हरिया को वैद्य के पास ले जाना और फिर खुद के पैसे से उसका इलाज करवाना ... यही तो एक भले मानुष का धर्म है।

भाभी जी का किरदार भी मुझे बहुत बढ़िया लगा । अपने देवर की देर रात तक घर न आने पर चिंता करना....हरिया के लिए एक क्षण देर किए बिना रूपये निकाल कर देना.... आउटस्टैंडिंग ।

कहानी में आप भौतिक वातावरण का वर्णन बहुत ही बेहतरीन करते हैं और इसके लिए आपको साधुवाद फौजी भाई । संवाद भी सहज और सरल होता है जो मुझे बहुत पसंद है ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट अपडेट्स फौजी भाई ।
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
Staff member
Divine
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गांव का हूं तो गांव की हदों से बाहर जाऊँ कैसे, पहाड़ जंगल नदी इस तरह मन मे बसे है कि जो है बस यही है
Gaav ki yahi khubsurati to dil ko sukun deti hai :love3:
 
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