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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#159

एक कहानी का अंत हो गया था जिसमे राय साहब थे रमा थी और उनकी हवस थी . सोने को या तो उसका वारिस ही ले सकता था . वारिस के अलावा जो भी उसे लेगा दुर्भाग्य जकड लेगा उसे अपने पाश में . राय साहब ने श्राप चुना . आदमखोर बन कर वो रक्त से सींच कर उस सोने का उपयोग करते रहे. इसी सोने के लिए उन्होंने रुडा से दोस्ती तोड़ी. चाचा ने जब सोना इस्तेमाल किया तो वो भी बर्बाद हो गए. रमा वैसे तो बर्बाद ही थी पर राय साहब के संरक्षण की वजह से सुरक्षित रही . मंगू खान में गया और मारा गया. परकाश मारा गया . अब मुझे भी कुछ राज मरते दम तक सीने में दफ़न करके रखने थे.



“निशा, ” कुवे पर जाकर मैंने उसे पुकारा पर कोई जवाब नहीं आया .

मैंने फिर पुकारा बार बार पुकारा पर कोई जवाब नहीं मिला . दिल किसी अनहोनी की आशंका से धडक उठा . अगर वो यहाँ नहीं तो फिर कहा. क्यों मैंने उसे अकेला छोड़ा क्यों. बदहवासी में मैं घर पहुंचा तो गली



सुनसान पड़ी थी . हमेशा की तरह घर का गेट खुला पड़ा था . घर में अँधेरा था मैंने बत्तिया जलाई . सब शांत था . मेरी धड़कने बढ़ी थी .



“चाची, भाभी , निशा ” मैंने आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया . ऐसा बार बार हुआ . घर पर कोई भी नहीं था . कहाँ गए सब लोग मैंने खुद से सवाल किया. मैं सीढिया चढ़ते हुए भाभी के चोबारे की तरफ गया और दरवाजे पर ही मेरे कम ठिठक गए. कमरे का नजारा देख कर मेरा कलेजा मुह को आ गया . अन्दर चंपा की लाश पड़ी थी . रक्त की धारा मैं जंगल में बहा कर आया था , रक्त की धारा मेरे साथ घर तक आ गयी थी . मैंने हाथ लगा कर देखा बदन में गर्मी थी, मतलब ज्यादा समय नहीं हुआ था चंपा को मरे हुए.

“कोई है क्या ” जोर ही चिल्लाया मैं .

“कबीर ” एक घुटी सी आवाज मेरे कानो में पड़ी . ये आवाज रसोई की तरफ से आई थी . मैं वहां गया तो मेरा दिल ही टूट गया . आँखों से आंसू बह चले , कभी सोचा नहीं था की ये देखूंगा मैं . रसोई के फर्श पर भाभी पड़ी थी . बहुत हलके से आँखे खुली थी उनकी. हलके से गर्दन हिला कर उन्होंने मुझे पास बुलाया. दौड़ते हुए मैं लिपट गया भाभी से .

मै- कैसे हुआ ये किसने किया भाभी ये सब . मैं आ गया हूँ कुछ नहीं होगा आपको कुछ नहीं होगा. मैं इलाज के लिए अभी ले चलूँगा आपको . मैंने भाभी को उठाया पर उन्होंने कस कर मेरा हाथ थाम लिया.

भाभी- देर हो गयी है कबीर . वो ले गए उसे .

मैं- कौन भाभी

भाभी- नहीं बचा पाई उसे, धोखा हुआ .देर हो गयी कबीर

मैं- कुछ देर नहीं हुई भाभी मैं आ गया हूँ सब ठीक कर दूंगा

भाभी- निशा को ले गए वो .

भाभी के शब्दों ने मेरे डर को हकीकत में बदल दिया .

मैं- कौन थे वो भाभी

भाभी ने अपने कांपते हाथो से अपने गले में पड़े मंगलसूत्र को तोडा और मुझे दे दिया. मैंने अपनी आँखे मींच ली भाभी ने हिचकी ली और मेरी बाँहों में दम तोड़ दिया. कयामत ही गुजर गयी थी मुझ पर . प्रेम वफ़ा, रिश्ते-नाते सब कुछ बेमानी थे इस परिवार के आगे. मैंने कदम घर से आगे बढाए मैं जानता था की मंजिल कहाँ पर होगी. लाशो के बोझ से मेरे कदम बोझिल जरुर थे पर डगमगा नहीं रहे थे . निशा और भाभी पर हुआ ये वार मेरे दिल में इतनी आग भर गया था की अगर मैं दुनिया भी जला देता तो गम नहीं था.

मैं सोने की खान में पहुंचा मशालो की रौशनी में चमकती उस आभा से मुझे कितनी नफरत थी ये बस मैं ही जानता था . मैंने रक्त से सनी निशा को देखा को तडप रही थी , लटके हुए . उसके बदन से टपकता लहू निचे एक सरोखे में इकट्ठा हो रहा था .

“कबीर ” बोझिल आँखों से मुझे देखते हुए वो बस इतना ही बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी सरकार . मैं आ गया हूँ जिसने भी ये किया है मुझे कसम है तेरे बदन से गिरी एक एक बूंद की, सूद समेत हिसाब लूँगा.

मैं निशा के पास गया और उसे कैद से आजाद किया . अपनी बाँहों में जो लिया उसे दुनिया भर का करार आ गया मुझे .

“सब कुछ योजना के मुताबिक ही हुआ था कबीर , मैंने अंजू को धर भी लिया था पर फिर किसी ने मुझ पर वार किया और होश आया तो मैं यहाँ पर कैद में थी ” निशा बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी जान . मैं आ गया हूँ न सबका हिसाब हो गा . भाभी और चंपा को भी मार दिया गया है . चाची न जाने कहाँ है . और मैं जान गया हूँ की अंजू के साथ इस काण्ड में कौन शामिल है .

निशा- अभिमानु

मैं- हाँ निशा वो अभिमानु जिसकी मिसाले दी जाती है . भाभी को मार कर जो पाप किया है मैंने बरसो पहले अपनी माँ को खोया था आज फिर से मैंने अपनी माँ को खोया है मुझे कसम है निशा रहम नहीं होगा . तुझे छूने की हिम्मत कैसे हुई उनकी .

मैं निशा को वहां से बाहर लेकर गया . कुवे के कमरे में रखी मरहम पट्टी से उसके जख्मो को थोडा बहुत ढका. आसमान में तारो को देखते हुए मैं सोच रहा था की ये रात साली आती ही नहीं तो ठीक रहता पर जैसा मैंने पहले कहा आज की रात क़यामत की रात थी , मैं निशा के जख्मो को देख ही रहा था की एक चीख ने मेरी आत्मा को हिला दिया .
 

Mehup

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#159

एक कहानी का अंत हो गया था जिसमे राय साहब थे रमा थी और उनकी हवस थी . सोने को या तो उसका वारिस ही ले सकता था . वारिस के अलावा जो भी उसे लेगा दुर्भाग्य जकड लेगा उसे अपने पाश में . राय साहब ने श्राप चुना . आदमखोर बन कर वो रक्त से सींच कर उस सोने का उपयोग करते रहे. इसी सोने के लिए उन्होंने रुडा से दोस्ती तोड़ी. चाचा ने जब सोना इस्तेमाल किया तो वो भी बर्बाद हो गए. रमा वैसे तो बर्बाद ही थी पर राय साहब के संरक्षण की वजह से सुरक्षित रही . मंगू खान में गया और मारा गया. परकाश मारा गया . अब मुझे भी कुछ राज मरते दम तक सीने में दफ़न करके रखने थे.



“निशा, ” कुवे पर जाकर मैंने उसे पुकारा पर कोई जवाब नहीं आया .

मैंने फिर पुकारा बार बार पुकारा पर कोई जवाब नहीं मिला . दिल किसी अनहोनी की आशंका से धडक उठा . अगर वो यहाँ नहीं तो फिर कहा. क्यों मैंने उसे अकेला छोड़ा क्यों. बदहवासी में मैं घर पहुंचा तो गली



सुनसान पड़ी थी . हमेशा की तरह घर का गेट खुला पड़ा था . घर में अँधेरा था मैंने बत्तिया जलाई . सब शांत था . मेरी धड़कने बढ़ी थी .



“चाची, भाभी , निशा ” मैंने आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया . ऐसा बार बार हुआ . घर पर कोई भी नहीं था . कहाँ गए सब लोग मैंने खुद से सवाल किया. मैं सीढिया चढ़ते हुए भाभी के चोबारे की तरफ गया और दरवाजे पर ही मेरे कम ठिठक गए. कमरे का नजारा देख कर मेरा कलेजा मुह को आ गया . अन्दर चंपा की लाश पड़ी थी . रक्त की धारा मैं जंगल में बहा कर आया था , रक्त की धारा मेरे साथ घर तक आ गयी थी . मैंने हाथ लगा कर देखा बदन में गर्मी थी, मतलब ज्यादा समय नहीं हुआ था चंपा को मरे हुए.

“कोई है क्या ” जोर ही चिल्लाया मैं .

“कबीर ” एक घुटी सी आवाज मेरे कानो में पड़ी . ये आवाज रसोई की तरफ से आई थी . मैं वहां गया तो मेरा दिल ही टूट गया . आँखों से आंसू बह चले , कभी सोचा नहीं था की ये देखूंगा मैं . रसोई के फर्श पर भाभी पड़ी थी . बहुत हलके से आँखे खुली थी उनकी. हलके से गर्दन हिला कर उन्होंने मुझे पास बुलाया. दौड़ते हुए मैं लिपट गया भाभी से .

मै- कैसे हुआ ये किसने किया भाभी ये सब . मैं आ गया हूँ कुछ नहीं होगा आपको कुछ नहीं होगा. मैं इलाज के लिए अभी ले चलूँगा आपको . मैंने भाभी को उठाया पर उन्होंने कस कर मेरा हाथ थाम लिया.

भाभी- देर हो गयी है कबीर . वो ले गए उसे .

मैं- कौन भाभी

भाभी- नहीं बचा पाई उसे, धोखा हुआ .देर हो गयी कबीर

मैं- कुछ देर नहीं हुई भाभी मैं आ गया हूँ सब ठीक कर दूंगा

भाभी- निशा को ले गए वो .

भाभी के शब्दों ने मेरे डर को हकीकत में बदल दिया .

मैं- कौन थे वो भाभी

भाभी ने अपने कांपते हाथो से अपने गले में पड़े मंगलसूत्र को तोडा और मुझे दे दिया. मैंने अपनी आँखे मींच ली भाभी ने हिचकी ली और मेरी बाँहों में दम तोड़ दिया. कयामत ही गुजर गयी थी मुझ पर . प्रेम वफ़ा, रिश्ते-नाते सब कुछ बेमानी थे इस परिवार के आगे. मैंने कदम घर से आगे बढाए मैं जानता था की मंजिल कहाँ पर होगी. लाशो के बोझ से मेरे कदम बोझिल जरुर थे पर डगमगा नहीं रहे थे . निशा और भाभी पर हुआ ये वार मेरे दिल में इतनी आग भर गया था की अगर मैं दुनिया भी जला देता तो गम नहीं था.

मैं सोने की खान में पहुंचा मशालो की रौशनी में चमकती उस आभा से मुझे कितनी नफरत थी ये बस मैं ही जानता था . मैंने रक्त से सनी निशा को देखा को तडप रही थी , लटके हुए . उसके बदन से टपकता लहू निचे एक सरोखे में इकट्ठा हो रहा था .

“कबीर ” बोझिल आँखों से मुझे देखते हुए वो बस इतना ही बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी सरकार . मैं आ गया हूँ जिसने भी ये किया है मुझे कसम है तेरे बदन से गिरी एक एक बूंद की, सूद समेत हिसाब लूँगा.

मैं निशा के पास गया और उसे कैद से आजाद किया . अपनी बाँहों में जो लिया उसे दुनिया भर का करार आ गया मुझे .

“सब कुछ योजना के मुताबिक ही हुआ था कबीर , मैंने अंजू को धर भी लिया था पर फिर किसी ने मुझ पर वार किया और होश आया तो मैं यहाँ पर कैद में थी ” निशा बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी जान . मैं आ गया हूँ न सबका हिसाब हो गा . भाभी और चंपा को भी मार दिया गया है . चाची न जाने कहाँ है . और मैं जान गया हूँ की अंजू के साथ इस काण्ड में कौन शामिल है .

निशा- अभिमानु

मैं- हाँ निशा वो अभिमानु जिसकी मिसाले दी जाती है . भाभी को मार कर जो पाप किया है मैंने बरसो पहले अपनी माँ को खोया था आज फिर से मैंने अपनी माँ को खोया है मुझे कसम है निशा रहम नहीं होगा . तुझे छूने की हिम्मत कैसे हुई उनकी .


मैं निशा को वहां से बाहर लेकर गया . कुवे के कमरे में रखी मरहम पट्टी से उसके जख्मो को थोडा बहुत ढका. आसमान में तारो को देखते हुए मैं सोच रहा था की ये रात साली आती ही नहीं तो ठीक रहता पर जैसा मैंने पहले कहा आज की रात क़यामत की रात थी , मैं निशा के जख्मो को देख ही रहा था की एक चीख ने मेरी आत्मा को हिला दिया .
Lajawab
 

rangeen londa

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एक कहानी का अंत हो गया था जिसमे राय साहब थे रमा थी और उनकी हवस थी . सोने को या तो उसका वारिस ही ले सकता था . वारिस के अलावा जो भी उसे लेगा दुर्भाग्य जकड लेगा उसे अपने पाश में . राय साहब ने श्राप चुना . आदमखोर बन कर वो रक्त से सींच कर उस सोने का उपयोग करते रहे. इसी सोने के लिए उन्होंने रुडा से दोस्ती तोड़ी. चाचा ने जब सोना इस्तेमाल किया तो वो भी बर्बाद हो गए. रमा वैसे तो बर्बाद ही थी पर राय साहब के संरक्षण की वजह से सुरक्षित रही . मंगू खान में गया और मारा गया. परकाश मारा गया . अब मुझे भी कुछ राज मरते दम तक सीने में दफ़न करके रखने थे.



“निशा, ” कुवे पर जाकर मैंने उसे पुकारा पर कोई जवाब नहीं आया .

मैंने फिर पुकारा बार बार पुकारा पर कोई जवाब नहीं मिला . दिल किसी अनहोनी की आशंका से धडक उठा . अगर वो यहाँ नहीं तो फिर कहा. क्यों मैंने उसे अकेला छोड़ा क्यों. बदहवासी में मैं घर पहुंचा तो गली



सुनसान पड़ी थी . हमेशा की तरह घर का गेट खुला पड़ा था . घर में अँधेरा था मैंने बत्तिया जलाई . सब शांत था . मेरी धड़कने बढ़ी थी .



“चाची, भाभी , निशा ” मैंने आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया . ऐसा बार बार हुआ . घर पर कोई भी नहीं था . कहाँ गए सब लोग मैंने खुद से सवाल किया. मैं सीढिया चढ़ते हुए भाभी के चोबारे की तरफ गया और दरवाजे पर ही मेरे कम ठिठक गए. कमरे का नजारा देख कर मेरा कलेजा मुह को आ गया . अन्दर चंपा की लाश पड़ी थी . रक्त की धारा मैं जंगल में बहा कर आया था , रक्त की धारा मेरे साथ घर तक आ गयी थी . मैंने हाथ लगा कर देखा बदन में गर्मी थी, मतलब ज्यादा समय नहीं हुआ था चंपा को मरे हुए.

“कोई है क्या ” जोर ही चिल्लाया मैं .

“कबीर ” एक घुटी सी आवाज मेरे कानो में पड़ी . ये आवाज रसोई की तरफ से आई थी . मैं वहां गया तो मेरा दिल ही टूट गया . आँखों से आंसू बह चले , कभी सोचा नहीं था की ये देखूंगा मैं . रसोई के फर्श पर भाभी पड़ी थी . बहुत हलके से आँखे खुली थी उनकी. हलके से गर्दन हिला कर उन्होंने मुझे पास बुलाया. दौड़ते हुए मैं लिपट गया भाभी से .

मै- कैसे हुआ ये किसने किया भाभी ये सब . मैं आ गया हूँ कुछ नहीं होगा आपको कुछ नहीं होगा. मैं इलाज के लिए अभी ले चलूँगा आपको . मैंने भाभी को उठाया पर उन्होंने कस कर मेरा हाथ थाम लिया.

भाभी- देर हो गयी है कबीर . वो ले गए उसे .

मैं- कौन भाभी

भाभी- नहीं बचा पाई उसे, धोखा हुआ .देर हो गयी कबीर

मैं- कुछ देर नहीं हुई भाभी मैं आ गया हूँ सब ठीक कर दूंगा

भाभी- निशा को ले गए वो .

भाभी के शब्दों ने मेरे डर को हकीकत में बदल दिया .

मैं- कौन थे वो भाभी

भाभी ने अपने कांपते हाथो से अपने गले में पड़े मंगलसूत्र को तोडा और मुझे दे दिया. मैंने अपनी आँखे मींच ली भाभी ने हिचकी ली और मेरी बाँहों में दम तोड़ दिया. कयामत ही गुजर गयी थी मुझ पर . प्रेम वफ़ा, रिश्ते-नाते सब कुछ बेमानी थे इस परिवार के आगे. मैंने कदम घर से आगे बढाए मैं जानता था की मंजिल कहाँ पर होगी. लाशो के बोझ से मेरे कदम बोझिल जरुर थे पर डगमगा नहीं रहे थे . निशा और भाभी पर हुआ ये वार मेरे दिल में इतनी आग भर गया था की अगर मैं दुनिया भी जला देता तो गम नहीं था.

मैं सोने की खान में पहुंचा मशालो की रौशनी में चमकती उस आभा से मुझे कितनी नफरत थी ये बस मैं ही जानता था . मैंने रक्त से सनी निशा को देखा को तडप रही थी , लटके हुए . उसके बदन से टपकता लहू निचे एक सरोखे में इकट्ठा हो रहा था .

“कबीर ” बोझिल आँखों से मुझे देखते हुए वो बस इतना ही बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी सरकार . मैं आ गया हूँ जिसने भी ये किया है मुझे कसम है तेरे बदन से गिरी एक एक बूंद की, सूद समेत हिसाब लूँगा.

मैं निशा के पास गया और उसे कैद से आजाद किया . अपनी बाँहों में जो लिया उसे दुनिया भर का करार आ गया मुझे .

“सब कुछ योजना के मुताबिक ही हुआ था कबीर , मैंने अंजू को धर भी लिया था पर फिर किसी ने मुझ पर वार किया और होश आया तो मैं यहाँ पर कैद में थी ” निशा बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी जान . मैं आ गया हूँ न सबका हिसाब हो गा . भाभी और चंपा को भी मार दिया गया है . चाची न जाने कहाँ है . और मैं जान गया हूँ की अंजू के साथ इस काण्ड में कौन शामिल है .

निशा- अभिमानु

मैं- हाँ निशा वो अभिमानु जिसकी मिसाले दी जाती है . भाभी को मार कर जो पाप किया है मैंने बरसो पहले अपनी माँ को खोया था आज फिर से मैंने अपनी माँ को खोया है मुझे कसम है निशा रहम नहीं होगा . तुझे छूने की हिम्मत कैसे हुई उनकी .


मैं निशा को वहां से बाहर लेकर गया . कुवे के कमरे में रखी मरहम पट्टी से उसके जख्मो को थोडा बहुत ढका. आसमान में तारो को देखते हुए मैं सोच रहा था की ये रात साली आती ही नहीं तो ठीक रहता पर जैसा मैंने पहले कहा आज की रात क़यामत की रात थी , मैं निशा के जख्मो को देख ही रहा था की एक चीख ने मेरी आत्मा को हिला दिया .
sab to gaye ab kaun chikha
 

Devilrudra

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एक कहानी का अंत हो गया था जिसमे राय साहब थे रमा थी और उनकी हवस थी . सोने को या तो उसका वारिस ही ले सकता था . वारिस के अलावा जो भी उसे लेगा दुर्भाग्य जकड लेगा उसे अपने पाश में . राय साहब ने श्राप चुना . आदमखोर बन कर वो रक्त से सींच कर उस सोने का उपयोग करते रहे. इसी सोने के लिए उन्होंने रुडा से दोस्ती तोड़ी. चाचा ने जब सोना इस्तेमाल किया तो वो भी बर्बाद हो गए. रमा वैसे तो बर्बाद ही थी पर राय साहब के संरक्षण की वजह से सुरक्षित रही . मंगू खान में गया और मारा गया. परकाश मारा गया . अब मुझे भी कुछ राज मरते दम तक सीने में दफ़न करके रखने थे.



“निशा, ” कुवे पर जाकर मैंने उसे पुकारा पर कोई जवाब नहीं आया .

मैंने फिर पुकारा बार बार पुकारा पर कोई जवाब नहीं मिला . दिल किसी अनहोनी की आशंका से धडक उठा . अगर वो यहाँ नहीं तो फिर कहा. क्यों मैंने उसे अकेला छोड़ा क्यों. बदहवासी में मैं घर पहुंचा तो गली



सुनसान पड़ी थी . हमेशा की तरह घर का गेट खुला पड़ा था . घर में अँधेरा था मैंने बत्तिया जलाई . सब शांत था . मेरी धड़कने बढ़ी थी .



“चाची, भाभी , निशा ” मैंने आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया . ऐसा बार बार हुआ . घर पर कोई भी नहीं था . कहाँ गए सब लोग मैंने खुद से सवाल किया. मैं सीढिया चढ़ते हुए भाभी के चोबारे की तरफ गया और दरवाजे पर ही मेरे कम ठिठक गए. कमरे का नजारा देख कर मेरा कलेजा मुह को आ गया . अन्दर चंपा की लाश पड़ी थी . रक्त की धारा मैं जंगल में बहा कर आया था , रक्त की धारा मेरे साथ घर तक आ गयी थी . मैंने हाथ लगा कर देखा बदन में गर्मी थी, मतलब ज्यादा समय नहीं हुआ था चंपा को मरे हुए.

“कोई है क्या ” जोर ही चिल्लाया मैं .

“कबीर ” एक घुटी सी आवाज मेरे कानो में पड़ी . ये आवाज रसोई की तरफ से आई थी . मैं वहां गया तो मेरा दिल ही टूट गया . आँखों से आंसू बह चले , कभी सोचा नहीं था की ये देखूंगा मैं . रसोई के फर्श पर भाभी पड़ी थी . बहुत हलके से आँखे खुली थी उनकी. हलके से गर्दन हिला कर उन्होंने मुझे पास बुलाया. दौड़ते हुए मैं लिपट गया भाभी से .

मै- कैसे हुआ ये किसने किया भाभी ये सब . मैं आ गया हूँ कुछ नहीं होगा आपको कुछ नहीं होगा. मैं इलाज के लिए अभी ले चलूँगा आपको . मैंने भाभी को उठाया पर उन्होंने कस कर मेरा हाथ थाम लिया.

भाभी- देर हो गयी है कबीर . वो ले गए उसे .

मैं- कौन भाभी

भाभी- नहीं बचा पाई उसे, धोखा हुआ .देर हो गयी कबीर

मैं- कुछ देर नहीं हुई भाभी मैं आ गया हूँ सब ठीक कर दूंगा

भाभी- निशा को ले गए वो .

भाभी के शब्दों ने मेरे डर को हकीकत में बदल दिया .

मैं- कौन थे वो भाभी

भाभी ने अपने कांपते हाथो से अपने गले में पड़े मंगलसूत्र को तोडा और मुझे दे दिया. मैंने अपनी आँखे मींच ली भाभी ने हिचकी ली और मेरी बाँहों में दम तोड़ दिया. कयामत ही गुजर गयी थी मुझ पर . प्रेम वफ़ा, रिश्ते-नाते सब कुछ बेमानी थे इस परिवार के आगे. मैंने कदम घर से आगे बढाए मैं जानता था की मंजिल कहाँ पर होगी. लाशो के बोझ से मेरे कदम बोझिल जरुर थे पर डगमगा नहीं रहे थे . निशा और भाभी पर हुआ ये वार मेरे दिल में इतनी आग भर गया था की अगर मैं दुनिया भी जला देता तो गम नहीं था.

मैं सोने की खान में पहुंचा मशालो की रौशनी में चमकती उस आभा से मुझे कितनी नफरत थी ये बस मैं ही जानता था . मैंने रक्त से सनी निशा को देखा को तडप रही थी , लटके हुए . उसके बदन से टपकता लहू निचे एक सरोखे में इकट्ठा हो रहा था .

“कबीर ” बोझिल आँखों से मुझे देखते हुए वो बस इतना ही बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी सरकार . मैं आ गया हूँ जिसने भी ये किया है मुझे कसम है तेरे बदन से गिरी एक एक बूंद की, सूद समेत हिसाब लूँगा.

मैं निशा के पास गया और उसे कैद से आजाद किया . अपनी बाँहों में जो लिया उसे दुनिया भर का करार आ गया मुझे .

“सब कुछ योजना के मुताबिक ही हुआ था कबीर , मैंने अंजू को धर भी लिया था पर फिर किसी ने मुझ पर वार किया और होश आया तो मैं यहाँ पर कैद में थी ” निशा बोली

मैं- कुछ मत बोल मेरी जान . मैं आ गया हूँ न सबका हिसाब हो गा . भाभी और चंपा को भी मार दिया गया है . चाची न जाने कहाँ है . और मैं जान गया हूँ की अंजू के साथ इस काण्ड में कौन शामिल है .

निशा- अभिमानु

मैं- हाँ निशा वो अभिमानु जिसकी मिसाले दी जाती है . भाभी को मार कर जो पाप किया है मैंने बरसो पहले अपनी माँ को खोया था आज फिर से मैंने अपनी माँ को खोया है मुझे कसम है निशा रहम नहीं होगा . तुझे छूने की हिम्मत कैसे हुई उनकी .


मैं निशा को वहां से बाहर लेकर गया . कुवे के कमरे में रखी मरहम पट्टी से उसके जख्मो को थोडा बहुत ढका. आसमान में तारो को देखते हुए मैं सोच रहा था की ये रात साली आती ही नहीं तो ठीक रहता पर जैसा मैंने पहले कहा आज की रात क़यामत की रात थी , मैं निशा के जख्मो को देख ही रहा था की एक चीख ने मेरी आत्मा को हिला दिया .
👍👍👍
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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फौजी भाई आग लगा दिए हो, बवाल काटा है

मैं ना कहता था की ज्यादा मीठा मधुमेह का कारण बनता है।
इतने सारे कारण थे पर कभी कबीर ने अभीमानु पर शक नही किया
आज रो रहा है की उसकी भाभी चली गई इसका कारण सिर्फ और सिर्फ कबीर है।
उसके नासमझी और चूतियापे का हर्जाना नंदिनी को अपनी जान से चुकाना पड़ा।
शायद अभिमानु भी आदमखोर है, कबीर के परिवार के सब आदमखोर है(मर्द)

अब बस देखना हैं की वो कौन सा कारण है जिसके लिए अभिमानु ने इतना कत्लेआम मचाया हैं।
वो चीखने की आवाज सरला की होगी
और शायद अभिमानु के साथ चाची और अंजू दोनो हो
दोनो को ही अभिमानु use कर रहा हो।

नंदनी के मरने से ये सवाल अधूरा रह गया की वो विशंभर दयाल के खिलाफ धीरे धीरे क्यों भड़का रही थी
और चंपा के मरने से ये समझ नही आ रहा की उसके पेट में क्या अभिमनु का बच्चा था

खैर देखते है क्या होता है
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अब क्या??

मतलब इस कहानी में सबको कहानी ही है, लालच की, सबको सोना चाहिए, पर किसके लिए??

अपनों को ही मार दोगे तो क्या सोने की बत्ती बना कर अपने पिछवाड़े में डालोगे क्या बे??

पहले लगा रूड़ा सबसे कमीना है, फिर राय का लगा, अब अभिमानु सबसे बड़ा कमीना निकला, अपनी बहन जैसी के साथ मिल कर हवस का नंगा नाच खेल रहा था, मंगू सच में इसी का चेला होगा, राय का नही।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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