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अभी तो सोचना होगा आगे क्या होगाOh my god ye to syapa ho gaya bhai,
Gajab ka update
अभी तो सोचना होगा आगे क्या होगाOh my god ye to syapa ho gaya bhai,
Gajab ka update
ThanksNice
कहानी अभी बाकी है भाई, महावीर आदम खोर बना क्योंकि उसने वो वज़ह तलाश कर ली थी. याद करो रमा ने कहा था कि महावीर ही था वो जो जान गया था सोना किसका हैChampa ki story to ek line mai hi end kardiya aapna randi banakar
Mera sawal yeh hai ki pahela aadamkhor kaun bana mahavir ko paida karka sunana mar gayi thi mahavir kuch 18 saal baad bana hoga woh kaisa aadamkhor bana
बोला था न दोनो आदमखोर बन कर ही लड़ेंगे।#158
“मैंने सुना था की बाप जो बेटे के कंधो पर जाते है वो स्वर्ग जाते है पर मेरा बाप स्वर्ग नहीं जाएगा , जो पाप किये है तुमने उसका फल यही भुगतना होगा,तुम्हारे पापो को मिटाने के लिए नियति ने शायद मुझे ही चुना है ” मैंने उस पत्थर से बचते हुए कहा.
कहने को कुछ नहीं था इस खंडहर ने इस जंगल ने इतना कुछ देखा था आज थोडा और देख लेंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. रमा ने लोहे की बड़ी सी चेन मेरे गले में फंसा दी और मुझे खींचने लगी. उसकी आँखों में ज़माने भर की क्रूरता थी. आंखे चमक रही थी लालच की रौशनी में ये जानते हुए भी की अँधेरा बाहें फैलाये हुए उनका इंतज़ार कर रहा था . मैं बेडियो से खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था , जबकि पिताजी के पास पूरा मौका था मुझे काबू करने का.
“इसका ताजा खून ही वो चाबी है ” रमा बोली
मैं- इतना सस्ता नहीं मेरा खून की दो कौड़ी की रंडी उसे छीन लेगी.
मैंने पूरा जोर लगाते हुए बेडि को आगे की तरफ खींचा और साथ ही रमा को भी उठा लिया . हवा में घुमते हुए मैंने वही बेल रमा की पीठ पर खींच कर दे मारी. अब मुकाबला था दो का एक से. राय साहब भी ताकत में किसी तरह से कम नहीं था . उनकी फड़कती भुजाये मुझे पीस देना चाहती थी .
पिताजी के उस जोरदार मुक्के ने मुझे तारे ही दिखा दिए थे , सँभालने से पहले ही पिताजी ने मुझे कंधे से उठाया और सीढियों पर दे मारा. कड़क की आवाज से पुराने पत्थरों को तिड़कते हुए देखा मैंने. अगले ही पल रमा ने उछल कर मेरे सीने पर अपना घुटना दे मारा. वार इतना गहरा था की मेरे अन्दर सोये जानवर तक को धक्का लगा. वो गुर्रा उठा. उन्माद में मैंने रमा को बाजुओ से पकड़ा और उसके कंधे को उखाड़ दिया .
“aaahhhhhhhhhh ”
“राम्म्म्मम्म्म्म ” रमा और पिताजी दोनों ही चीख उठे. रमा फर्श पर गिर गयी उसका खून लबालब बहने लगा. उसका हाथ मेरे हाथ में थरथरा रहा था . ताजा रक्त की गंध जैसे ही मेरे नथुनों से टकराई मेरे अन्दर का वो आदमखोर बेकाबू होने लगा. रमा के खून में कोई तो बात थी , शायद सुनैना की बहन होने के नाते वो जानवर उस खास गंध को पहचान रहा था . मेरे घुटने कांप रहे थे. सीने में आग लग गयी थी . मैंने अपनी जैकेट उतार फेंकी. सीने को मसलने लगा. प्यास के मारे हाल बुरा था मुझे पानी चाहिए था पानी की जरुँर्ट थी मुझे. सब कुछ छोड़ कर मैं बहार भागा पर राय साहब ने मेरा पैर पकड़ लिया और मुझे वापिस से फर्श पर पटक दिया.
“तू नहीं बनेगा वो ” निशा के कहे शब्द मेरे कानो में गूंजने लगे.
“भागने की क्या जल्दी है तुझे , तेरा अंत इसी तहखाने में लिखा है ” राय साहब ने लोहे की छड का नुकीला हिस्सा मेरे पैर में घुसा दिया.
“जाने दो मुझे ” अपने आप से जूझते हुए मैंने कहा .
“मार डालो इसे ”दर्द से तड़पती रमा ने चिल्ला कर कहा.
मैं- भोसड़ी की , मैं यहाँ रहा तो वो अनर्थ हो जायेगा जो तू सोच भी नहीं सकती .
पिताजी का अगला वार पैर के आर पार हो गया. और मेरा सब्र टूट गया . एक झटके से मैंने वो छड अपने पैर से निकाली और रमा की तरफ दे मारी. पलक झपकते ही रमा के बदन के आर पार निकल गयी वो . रमा की आँखे फटी की फटी रह गयी .
रमा ” पिताजी चीख पड़े और इस बार ये चीख को मामूली नहीं थी . मैंने वो देखा जो देखने के लिए मजबूत कलेजा चाहिए था . पिताजी एक पल को झुके और अगले ही पल उस तहखाने में तूफ़ान आ गया . जो वार मुझ पर हुआ था वो किसी इन्सान का नहीं था बल्कि उस जानवर का था जिसने गाँव की माँ चोद रखी थी . दिवार के सहारे वाले खम्बे पर गिरने से पहले मैंने देखा की वो आदमखोर दौड़ कर रमा के पास गया और उसे अपनी गोद में उठा लिया. रमा का बेजान शरीर झूल गया आदमखोर की बाहों में .
कुछ पल आदमखोर रमा को देखता रहा और फिर उसने अपने होंठ रमा के ताजे रक्त पर अलग दिए और उसे पीने लगा. फिर उसने झटके से रमा की लाश को फेंक दिया जैसे परवाह ही नहीं हो और मेरी तरफ लपका. मैंने भरकस कोशिश की पर आदमखोर की शक्ति बहुत ज्यादा थी . और उसका उन्माद मेरी जान लेने को आतुर. बदन तार तार ही हो गया था उम्मीद टूटने लगी थी और फिर वो हुआ जो मैं कभी नहीं चाहता था , कभी नहीं.
मेरी आत्मा पर बोझ गिर गया . बदन के हर हिस्से को टूटते हुए मैंने महसूस किया . मेरा परिवर्तन हो रहा था . मैंने बहुत रोकने की कोशिश की पर शायद वो जानवर जान गया था की अब नहीं तो फिर कभी नहीं, क्योंकि फिर कुछ बचना ही नहीं था . अपने अंतर्मन से जूझते हुए मैं पूरी कोसिस कर रहा था की मैं वो ना बनू पर इस बार , इस बार नियति मेरे साथ नहीं थी.
चीखते हुए मैं वो बन गया जो मैं नहीं था , कभी नहीं था . राय साहब बने आदमखोर की उन आंखो में मैंने चमक सी देखि और फिर मामला आरपार का हो गया . लम्बे नुकीले नाखून एक दुसरे के बदन को चीर रहे थे , नुकीले दांत एक दुसरे के मांस को फाड़ देना चाहते थे. कभी वो हावी कभी मैं . इस रात ने इतना तो तय कर दिया था की इस तहखाने से अगली सुबह हम में से कोई एक ही देखेगा. ये ऐसी जंग थी जिसमे क्रूरता ही जितने वाली थी मेरे अन्दर का जानवर ये बात बहुत अच्छे से जानता था . उसने राय साहब के पैरो को पकड़ा और एक झटके में मोड़ दिया. गुर्राहट भरी चीख खंडहर में गूँज उठी . राय साहब पीछे जाकर गिरे. मैं उनकी छाती के ऊपर खड़ा था मेरी उंगलिया उस गर्दन को उखाड़ ही फेंकने वाली थी की मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी . अपने अन्दर के जानवर को काबू कर लिया मैंने.
कबीर के रूप में आते ही मैंने वो लोहे की बेल उठाई और राय साहब के गले में लपेट दी
मैं- इतनी आसान मौत कैसे होगी राय साहब , इतनी सस्ती जान तो नहीं न . याद करो वो दिन जब आपने लाली को फांसी का फरमान का समर्थन किया था . कहते है की कर्मो का फल यही इसी धरा पर चुकाना पड़ता है , समय आ गया है . मैंने बेल को ऊपर फंसे हुक में फेंका और अपने बाप को लटका दिया. पर मेरे हाथ जरा भी नहीं कांपे. . पर वो राय साहब था इतनी आसानी से कैसे मर जाता . तब मैंने गले से वो लाकेट उतारा और उसे चाकू बनाते हुए राय साहब के सीने के आर पार कर दिया . उन्होंने डकार सी ली और फिर सब शांत हो गया .
पर अभी भी कुछ करना बाकि था . मैंने वो लाकेट लिया उसे उस राख की बनी तस्वीर में घुसा दिया . और जैसे भूकम्प सा ही आ गया खंडहर कांपने लगा भरभरा कर गिरने लगा. मैं बहार की तरफ दौड़ा. जंगल की ताजा हवा ने जैसे नया जीवन दिया मुझे. पल भर में ही सब कुछ तबाह हो गया रह गया तो मैं और वो मलबा जिसमे मेरी यादे भी दफन हो गयी थी .
Behtareen#158
“मैंने सुना था की बाप जो बेटे के कंधो पर जाते है वो स्वर्ग जाते है पर मेरा बाप स्वर्ग नहीं जाएगा , जो पाप किये है तुमने उसका फल यही भुगतना होगा,तुम्हारे पापो को मिटाने के लिए नियति ने शायद मुझे ही चुना है ” मैंने उस पत्थर से बचते हुए कहा.
कहने को कुछ नहीं था इस खंडहर ने इस जंगल ने इतना कुछ देखा था आज थोडा और देख लेंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. रमा ने लोहे की बड़ी सी चेन मेरे गले में फंसा दी और मुझे खींचने लगी. उसकी आँखों में ज़माने भर की क्रूरता थी. आंखे चमक रही थी लालच की रौशनी में ये जानते हुए भी की अँधेरा बाहें फैलाये हुए उनका इंतज़ार कर रहा था . मैं बेडियो से खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था , जबकि पिताजी के पास पूरा मौका था मुझे काबू करने का.
“इसका ताजा खून ही वो चाबी है ” रमा बोली
मैं- इतना सस्ता नहीं मेरा खून की दो कौड़ी की रंडी उसे छीन लेगी.
मैंने पूरा जोर लगाते हुए बेडि को आगे की तरफ खींचा और साथ ही रमा को भी उठा लिया . हवा में घुमते हुए मैंने वही बेल रमा की पीठ पर खींच कर दे मारी. अब मुकाबला था दो का एक से. राय साहब भी ताकत में किसी तरह से कम नहीं था . उनकी फड़कती भुजाये मुझे पीस देना चाहती थी .
पिताजी के उस जोरदार मुक्के ने मुझे तारे ही दिखा दिए थे , सँभालने से पहले ही पिताजी ने मुझे कंधे से उठाया और सीढियों पर दे मारा. कड़क की आवाज से पुराने पत्थरों को तिड़कते हुए देखा मैंने. अगले ही पल रमा ने उछल कर मेरे सीने पर अपना घुटना दे मारा. वार इतना गहरा था की मेरे अन्दर सोये जानवर तक को धक्का लगा. वो गुर्रा उठा. उन्माद में मैंने रमा को बाजुओ से पकड़ा और उसके कंधे को उखाड़ दिया .
“aaahhhhhhhhhh ”
“राम्म्म्मम्म्म्म ” रमा और पिताजी दोनों ही चीख उठे. रमा फर्श पर गिर गयी उसका खून लबालब बहने लगा. उसका हाथ मेरे हाथ में थरथरा रहा था . ताजा रक्त की गंध जैसे ही मेरे नथुनों से टकराई मेरे अन्दर का वो आदमखोर बेकाबू होने लगा. रमा के खून में कोई तो बात थी , शायद सुनैना की बहन होने के नाते वो जानवर उस खास गंध को पहचान रहा था . मेरे घुटने कांप रहे थे. सीने में आग लग गयी थी . मैंने अपनी जैकेट उतार फेंकी. सीने को मसलने लगा. प्यास के मारे हाल बुरा था मुझे पानी चाहिए था पानी की जरुँर्ट थी मुझे. सब कुछ छोड़ कर मैं बहार भागा पर राय साहब ने मेरा पैर पकड़ लिया और मुझे वापिस से फर्श पर पटक दिया.
“तू नहीं बनेगा वो ” निशा के कहे शब्द मेरे कानो में गूंजने लगे.
“भागने की क्या जल्दी है तुझे , तेरा अंत इसी तहखाने में लिखा है ” राय साहब ने लोहे की छड का नुकीला हिस्सा मेरे पैर में घुसा दिया.
“जाने दो मुझे ” अपने आप से जूझते हुए मैंने कहा .
“मार डालो इसे ”दर्द से तड़पती रमा ने चिल्ला कर कहा.
मैं- भोसड़ी की , मैं यहाँ रहा तो वो अनर्थ हो जायेगा जो तू सोच भी नहीं सकती .
पिताजी का अगला वार पैर के आर पार हो गया. और मेरा सब्र टूट गया . एक झटके से मैंने वो छड अपने पैर से निकाली और रमा की तरफ दे मारी. पलक झपकते ही रमा के बदन के आर पार निकल गयी वो . रमा की आँखे फटी की फटी रह गयी .
रमा ” पिताजी चीख पड़े और इस बार ये चीख को मामूली नहीं थी . मैंने वो देखा जो देखने के लिए मजबूत कलेजा चाहिए था . पिताजी एक पल को झुके और अगले ही पल उस तहखाने में तूफ़ान आ गया . जो वार मुझ पर हुआ था वो किसी इन्सान का नहीं था बल्कि उस जानवर का था जिसने गाँव की माँ चोद रखी थी . दिवार के सहारे वाले खम्बे पर गिरने से पहले मैंने देखा की वो आदमखोर दौड़ कर रमा के पास गया और उसे अपनी गोद में उठा लिया. रमा का बेजान शरीर झूल गया आदमखोर की बाहों में .
कुछ पल आदमखोर रमा को देखता रहा और फिर उसने अपने होंठ रमा के ताजे रक्त पर अलग दिए और उसे पीने लगा. फिर उसने झटके से रमा की लाश को फेंक दिया जैसे परवाह ही नहीं हो और मेरी तरफ लपका. मैंने भरकस कोशिश की पर आदमखोर की शक्ति बहुत ज्यादा थी . और उसका उन्माद मेरी जान लेने को आतुर. बदन तार तार ही हो गया था उम्मीद टूटने लगी थी और फिर वो हुआ जो मैं कभी नहीं चाहता था , कभी नहीं.
मेरी आत्मा पर बोझ गिर गया . बदन के हर हिस्से को टूटते हुए मैंने महसूस किया . मेरा परिवर्तन हो रहा था . मैंने बहुत रोकने की कोशिश की पर शायद वो जानवर जान गया था की अब नहीं तो फिर कभी नहीं, क्योंकि फिर कुछ बचना ही नहीं था . अपने अंतर्मन से जूझते हुए मैं पूरी कोसिस कर रहा था की मैं वो ना बनू पर इस बार , इस बार नियति मेरे साथ नहीं थी.
चीखते हुए मैं वो बन गया जो मैं नहीं था , कभी नहीं था . राय साहब बने आदमखोर की उन आंखो में मैंने चमक सी देखि और फिर मामला आरपार का हो गया . लम्बे नुकीले नाखून एक दुसरे के बदन को चीर रहे थे , नुकीले दांत एक दुसरे के मांस को फाड़ देना चाहते थे. कभी वो हावी कभी मैं . इस रात ने इतना तो तय कर दिया था की इस तहखाने से अगली सुबह हम में से कोई एक ही देखेगा. ये ऐसी जंग थी जिसमे क्रूरता ही जितने वाली थी मेरे अन्दर का जानवर ये बात बहुत अच्छे से जानता था . उसने राय साहब के पैरो को पकड़ा और एक झटके में मोड़ दिया. गुर्राहट भरी चीख खंडहर में गूँज उठी . राय साहब पीछे जाकर गिरे. मैं उनकी छाती के ऊपर खड़ा था मेरी उंगलिया उस गर्दन को उखाड़ ही फेंकने वाली थी की मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी . अपने अन्दर के जानवर को काबू कर लिया मैंने.
कबीर के रूप में आते ही मैंने वो लोहे की बेल उठाई और राय साहब के गले में लपेट दी
मैं- इतनी आसान मौत कैसे होगी राय साहब , इतनी सस्ती जान तो नहीं न . याद करो वो दिन जब आपने लाली को फांसी का फरमान का समर्थन किया था . कहते है की कर्मो का फल यही इसी धरा पर चुकाना पड़ता है , समय आ गया है . मैंने बेल को ऊपर फंसे हुक में फेंका और अपने बाप को लटका दिया. पर मेरे हाथ जरा भी नहीं कांपे. . पर वो राय साहब था इतनी आसानी से कैसे मर जाता . तब मैंने गले से वो लाकेट उतारा और उसे चाकू बनाते हुए राय साहब के सीने के आर पार कर दिया . उन्होंने डकार सी ली और फिर सब शांत हो गया .
पर अभी भी कुछ करना बाकि था . मैंने वो लाकेट लिया उसे उस राख की बनी तस्वीर में घुसा दिया . और जैसे भूकम्प सा ही आ गया खंडहर कांपने लगा भरभरा कर गिरने लगा. मैं बहार की तरफ दौड़ा. जंगल की ताजा हवा ने जैसे नया जीवन दिया मुझे. पल भर में ही सब कुछ तबाह हो गया रह गया तो मैं और वो मलबा जिसमे मेरी यादे भी दफन हो गयी थी .
Hmm to wo bada wala aadamkhor ray sahaab he the par humko kahani ke end ke saath ek recap bhi chahiye , bina uske adhura lagega#158
“मैंने सुना था की बाप जो बेटे के कंधो पर जाते है वो स्वर्ग जाते है पर मेरा बाप स्वर्ग नहीं जाएगा , जो पाप किये है तुमने उसका फल यही भुगतना होगा,तुम्हारे पापो को मिटाने के लिए नियति ने शायद मुझे ही चुना है ” मैंने उस पत्थर से बचते हुए कहा.
कहने को कुछ नहीं था इस खंडहर ने इस जंगल ने इतना कुछ देखा था आज थोडा और देख लेंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. रमा ने लोहे की बड़ी सी चेन मेरे गले में फंसा दी और मुझे खींचने लगी. उसकी आँखों में ज़माने भर की क्रूरता थी. आंखे चमक रही थी लालच की रौशनी में ये जानते हुए भी की अँधेरा बाहें फैलाये हुए उनका इंतज़ार कर रहा था . मैं बेडियो से खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था , जबकि पिताजी के पास पूरा मौका था मुझे काबू करने का.
“इसका ताजा खून ही वो चाबी है ” रमा बोली
मैं- इतना सस्ता नहीं मेरा खून की दो कौड़ी की रंडी उसे छीन लेगी.
मैंने पूरा जोर लगाते हुए बेडि को आगे की तरफ खींचा और साथ ही रमा को भी उठा लिया . हवा में घुमते हुए मैंने वही बेल रमा की पीठ पर खींच कर दे मारी. अब मुकाबला था दो का एक से. राय साहब भी ताकत में किसी तरह से कम नहीं था . उनकी फड़कती भुजाये मुझे पीस देना चाहती थी .
पिताजी के उस जोरदार मुक्के ने मुझे तारे ही दिखा दिए थे , सँभालने से पहले ही पिताजी ने मुझे कंधे से उठाया और सीढियों पर दे मारा. कड़क की आवाज से पुराने पत्थरों को तिड़कते हुए देखा मैंने. अगले ही पल रमा ने उछल कर मेरे सीने पर अपना घुटना दे मारा. वार इतना गहरा था की मेरे अन्दर सोये जानवर तक को धक्का लगा. वो गुर्रा उठा. उन्माद में मैंने रमा को बाजुओ से पकड़ा और उसके कंधे को उखाड़ दिया .
“aaahhhhhhhhhh ”
“राम्म्म्मम्म्म्म ” रमा और पिताजी दोनों ही चीख उठे. रमा फर्श पर गिर गयी उसका खून लबालब बहने लगा. उसका हाथ मेरे हाथ में थरथरा रहा था . ताजा रक्त की गंध जैसे ही मेरे नथुनों से टकराई मेरे अन्दर का वो आदमखोर बेकाबू होने लगा. रमा के खून में कोई तो बात थी , शायद सुनैना की बहन होने के नाते वो जानवर उस खास गंध को पहचान रहा था . मेरे घुटने कांप रहे थे. सीने में आग लग गयी थी . मैंने अपनी जैकेट उतार फेंकी. सीने को मसलने लगा. प्यास के मारे हाल बुरा था मुझे पानी चाहिए था पानी की जरुँर्ट थी मुझे. सब कुछ छोड़ कर मैं बहार भागा पर राय साहब ने मेरा पैर पकड़ लिया और मुझे वापिस से फर्श पर पटक दिया.
“तू नहीं बनेगा वो ” निशा के कहे शब्द मेरे कानो में गूंजने लगे.
“भागने की क्या जल्दी है तुझे , तेरा अंत इसी तहखाने में लिखा है ” राय साहब ने लोहे की छड का नुकीला हिस्सा मेरे पैर में घुसा दिया.
“जाने दो मुझे ” अपने आप से जूझते हुए मैंने कहा .
“मार डालो इसे ”दर्द से तड़पती रमा ने चिल्ला कर कहा.
मैं- भोसड़ी की , मैं यहाँ रहा तो वो अनर्थ हो जायेगा जो तू सोच भी नहीं सकती .
पिताजी का अगला वार पैर के आर पार हो गया. और मेरा सब्र टूट गया . एक झटके से मैंने वो छड अपने पैर से निकाली और रमा की तरफ दे मारी. पलक झपकते ही रमा के बदन के आर पार निकल गयी वो . रमा की आँखे फटी की फटी रह गयी .
रमा ” पिताजी चीख पड़े और इस बार ये चीख को मामूली नहीं थी . मैंने वो देखा जो देखने के लिए मजबूत कलेजा चाहिए था . पिताजी एक पल को झुके और अगले ही पल उस तहखाने में तूफ़ान आ गया . जो वार मुझ पर हुआ था वो किसी इन्सान का नहीं था बल्कि उस जानवर का था जिसने गाँव की माँ चोद रखी थी . दिवार के सहारे वाले खम्बे पर गिरने से पहले मैंने देखा की वो आदमखोर दौड़ कर रमा के पास गया और उसे अपनी गोद में उठा लिया. रमा का बेजान शरीर झूल गया आदमखोर की बाहों में .
कुछ पल आदमखोर रमा को देखता रहा और फिर उसने अपने होंठ रमा के ताजे रक्त पर अलग दिए और उसे पीने लगा. फिर उसने झटके से रमा की लाश को फेंक दिया जैसे परवाह ही नहीं हो और मेरी तरफ लपका. मैंने भरकस कोशिश की पर आदमखोर की शक्ति बहुत ज्यादा थी . और उसका उन्माद मेरी जान लेने को आतुर. बदन तार तार ही हो गया था उम्मीद टूटने लगी थी और फिर वो हुआ जो मैं कभी नहीं चाहता था , कभी नहीं.
मेरी आत्मा पर बोझ गिर गया . बदन के हर हिस्से को टूटते हुए मैंने महसूस किया . मेरा परिवर्तन हो रहा था . मैंने बहुत रोकने की कोशिश की पर शायद वो जानवर जान गया था की अब नहीं तो फिर कभी नहीं, क्योंकि फिर कुछ बचना ही नहीं था . अपने अंतर्मन से जूझते हुए मैं पूरी कोसिस कर रहा था की मैं वो ना बनू पर इस बार , इस बार नियति मेरे साथ नहीं थी.
चीखते हुए मैं वो बन गया जो मैं नहीं था , कभी नहीं था . राय साहब बने आदमखोर की उन आंखो में मैंने चमक सी देखि और फिर मामला आरपार का हो गया . लम्बे नुकीले नाखून एक दुसरे के बदन को चीर रहे थे , नुकीले दांत एक दुसरे के मांस को फाड़ देना चाहते थे. कभी वो हावी कभी मैं . इस रात ने इतना तो तय कर दिया था की इस तहखाने से अगली सुबह हम में से कोई एक ही देखेगा. ये ऐसी जंग थी जिसमे क्रूरता ही जितने वाली थी मेरे अन्दर का जानवर ये बात बहुत अच्छे से जानता था . उसने राय साहब के पैरो को पकड़ा और एक झटके में मोड़ दिया. गुर्राहट भरी चीख खंडहर में गूँज उठी . राय साहब पीछे जाकर गिरे. मैं उनकी छाती के ऊपर खड़ा था मेरी उंगलिया उस गर्दन को उखाड़ ही फेंकने वाली थी की मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी . अपने अन्दर के जानवर को काबू कर लिया मैंने.
कबीर के रूप में आते ही मैंने वो लोहे की बेल उठाई और राय साहब के गले में लपेट दी
मैं- इतनी आसान मौत कैसे होगी राय साहब , इतनी सस्ती जान तो नहीं न . याद करो वो दिन जब आपने लाली को फांसी का फरमान का समर्थन किया था . कहते है की कर्मो का फल यही इसी धरा पर चुकाना पड़ता है , समय आ गया है . मैंने बेल को ऊपर फंसे हुक में फेंका और अपने बाप को लटका दिया. पर मेरे हाथ जरा भी नहीं कांपे. . पर वो राय साहब था इतनी आसानी से कैसे मर जाता . तब मैंने गले से वो लाकेट उतारा और उसे चाकू बनाते हुए राय साहब के सीने के आर पार कर दिया . उन्होंने डकार सी ली और फिर सब शांत हो गया .
पर अभी भी कुछ करना बाकि था . मैंने वो लाकेट लिया उसे उस राख की बनी तस्वीर में घुसा दिया . और जैसे भूकम्प सा ही आ गया खंडहर कांपने लगा भरभरा कर गिरने लगा. मैं बहार की तरफ दौड़ा. जंगल की ताजा हवा ने जैसे नया जीवन दिया मुझे. पल भर में ही सब कुछ तबाह हो गया रह गया तो मैं और वो मलबा जिसमे मेरी यादे भी दफन हो गयी थी .
Bahut khoob....to shraap ka ye logoc tha....kabir ne bahut kuch gawakar niyati ka daam chukaaya hai.#158
“मैंने सुना था की बाप जो बेटे के कंधो पर जाते है वो स्वर्ग जाते है पर मेरा बाप स्वर्ग नहीं जाएगा , जो पाप किये है तुमने उसका फल यही भुगतना होगा,तुम्हारे पापो को मिटाने के लिए नियति ने शायद मुझे ही चुना है ” मैंने उस पत्थर से बचते हुए कहा.
कहने को कुछ नहीं था इस खंडहर ने इस जंगल ने इतना कुछ देखा था आज थोडा और देख लेंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. रमा ने लोहे की बड़ी सी चेन मेरे गले में फंसा दी और मुझे खींचने लगी. उसकी आँखों में ज़माने भर की क्रूरता थी. आंखे चमक रही थी लालच की रौशनी में ये जानते हुए भी की अँधेरा बाहें फैलाये हुए उनका इंतज़ार कर रहा था . मैं बेडियो से खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था , जबकि पिताजी के पास पूरा मौका था मुझे काबू करने का.
“इसका ताजा खून ही वो चाबी है ” रमा बोली
मैं- इतना सस्ता नहीं मेरा खून की दो कौड़ी की रंडी उसे छीन लेगी.
मैंने पूरा जोर लगाते हुए बेडि को आगे की तरफ खींचा और साथ ही रमा को भी उठा लिया . हवा में घुमते हुए मैंने वही बेल रमा की पीठ पर खींच कर दे मारी. अब मुकाबला था दो का एक से. राय साहब भी ताकत में किसी तरह से कम नहीं था . उनकी फड़कती भुजाये मुझे पीस देना चाहती थी .
पिताजी के उस जोरदार मुक्के ने मुझे तारे ही दिखा दिए थे , सँभालने से पहले ही पिताजी ने मुझे कंधे से उठाया और सीढियों पर दे मारा. कड़क की आवाज से पुराने पत्थरों को तिड़कते हुए देखा मैंने. अगले ही पल रमा ने उछल कर मेरे सीने पर अपना घुटना दे मारा. वार इतना गहरा था की मेरे अन्दर सोये जानवर तक को धक्का लगा. वो गुर्रा उठा. उन्माद में मैंने रमा को बाजुओ से पकड़ा और उसके कंधे को उखाड़ दिया .
“aaahhhhhhhhhh ”
“राम्म्म्मम्म्म्म ” रमा और पिताजी दोनों ही चीख उठे. रमा फर्श पर गिर गयी उसका खून लबालब बहने लगा. उसका हाथ मेरे हाथ में थरथरा रहा था . ताजा रक्त की गंध जैसे ही मेरे नथुनों से टकराई मेरे अन्दर का वो आदमखोर बेकाबू होने लगा. रमा के खून में कोई तो बात थी , शायद सुनैना की बहन होने के नाते वो जानवर उस खास गंध को पहचान रहा था . मेरे घुटने कांप रहे थे. सीने में आग लग गयी थी . मैंने अपनी जैकेट उतार फेंकी. सीने को मसलने लगा. प्यास के मारे हाल बुरा था मुझे पानी चाहिए था पानी की जरुँर्ट थी मुझे. सब कुछ छोड़ कर मैं बहार भागा पर राय साहब ने मेरा पैर पकड़ लिया और मुझे वापिस से फर्श पर पटक दिया.
“तू नहीं बनेगा वो ” निशा के कहे शब्द मेरे कानो में गूंजने लगे.
“भागने की क्या जल्दी है तुझे , तेरा अंत इसी तहखाने में लिखा है ” राय साहब ने लोहे की छड का नुकीला हिस्सा मेरे पैर में घुसा दिया.
“जाने दो मुझे ” अपने आप से जूझते हुए मैंने कहा .
“मार डालो इसे ”दर्द से तड़पती रमा ने चिल्ला कर कहा.
मैं- भोसड़ी की , मैं यहाँ रहा तो वो अनर्थ हो जायेगा जो तू सोच भी नहीं सकती .
पिताजी का अगला वार पैर के आर पार हो गया. और मेरा सब्र टूट गया . एक झटके से मैंने वो छड अपने पैर से निकाली और रमा की तरफ दे मारी. पलक झपकते ही रमा के बदन के आर पार निकल गयी वो . रमा की आँखे फटी की फटी रह गयी .
रमा ” पिताजी चीख पड़े और इस बार ये चीख को मामूली नहीं थी . मैंने वो देखा जो देखने के लिए मजबूत कलेजा चाहिए था . पिताजी एक पल को झुके और अगले ही पल उस तहखाने में तूफ़ान आ गया . जो वार मुझ पर हुआ था वो किसी इन्सान का नहीं था बल्कि उस जानवर का था जिसने गाँव की माँ चोद रखी थी . दिवार के सहारे वाले खम्बे पर गिरने से पहले मैंने देखा की वो आदमखोर दौड़ कर रमा के पास गया और उसे अपनी गोद में उठा लिया. रमा का बेजान शरीर झूल गया आदमखोर की बाहों में .
कुछ पल आदमखोर रमा को देखता रहा और फिर उसने अपने होंठ रमा के ताजे रक्त पर अलग दिए और उसे पीने लगा. फिर उसने झटके से रमा की लाश को फेंक दिया जैसे परवाह ही नहीं हो और मेरी तरफ लपका. मैंने भरकस कोशिश की पर आदमखोर की शक्ति बहुत ज्यादा थी . और उसका उन्माद मेरी जान लेने को आतुर. बदन तार तार ही हो गया था उम्मीद टूटने लगी थी और फिर वो हुआ जो मैं कभी नहीं चाहता था , कभी नहीं.
मेरी आत्मा पर बोझ गिर गया . बदन के हर हिस्से को टूटते हुए मैंने महसूस किया . मेरा परिवर्तन हो रहा था . मैंने बहुत रोकने की कोशिश की पर शायद वो जानवर जान गया था की अब नहीं तो फिर कभी नहीं, क्योंकि फिर कुछ बचना ही नहीं था . अपने अंतर्मन से जूझते हुए मैं पूरी कोसिस कर रहा था की मैं वो ना बनू पर इस बार , इस बार नियति मेरे साथ नहीं थी.
चीखते हुए मैं वो बन गया जो मैं नहीं था , कभी नहीं था . राय साहब बने आदमखोर की उन आंखो में मैंने चमक सी देखि और फिर मामला आरपार का हो गया . लम्बे नुकीले नाखून एक दुसरे के बदन को चीर रहे थे , नुकीले दांत एक दुसरे के मांस को फाड़ देना चाहते थे. कभी वो हावी कभी मैं . इस रात ने इतना तो तय कर दिया था की इस तहखाने से अगली सुबह हम में से कोई एक ही देखेगा. ये ऐसी जंग थी जिसमे क्रूरता ही जितने वाली थी मेरे अन्दर का जानवर ये बात बहुत अच्छे से जानता था . उसने राय साहब के पैरो को पकड़ा और एक झटके में मोड़ दिया. गुर्राहट भरी चीख खंडहर में गूँज उठी . राय साहब पीछे जाकर गिरे. मैं उनकी छाती के ऊपर खड़ा था मेरी उंगलिया उस गर्दन को उखाड़ ही फेंकने वाली थी की मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी . अपने अन्दर के जानवर को काबू कर लिया मैंने.
कबीर के रूप में आते ही मैंने वो लोहे की बेल उठाई और राय साहब के गले में लपेट दी
मैं- इतनी आसान मौत कैसे होगी राय साहब , इतनी सस्ती जान तो नहीं न . याद करो वो दिन जब आपने लाली को फांसी का फरमान का समर्थन किया था . कहते है की कर्मो का फल यही इसी धरा पर चुकाना पड़ता है , समय आ गया है . मैंने बेल को ऊपर फंसे हुक में फेंका और अपने बाप को लटका दिया. पर मेरे हाथ जरा भी नहीं कांपे. . पर वो राय साहब था इतनी आसानी से कैसे मर जाता . तब मैंने गले से वो लाकेट उतारा और उसे चाकू बनाते हुए राय साहब के सीने के आर पार कर दिया . उन्होंने डकार सी ली और फिर सब शांत हो गया .
पर अभी भी कुछ करना बाकि था . मैंने वो लाकेट लिया उसे उस राख की बनी तस्वीर में घुसा दिया . और जैसे भूकम्प सा ही आ गया खंडहर कांपने लगा भरभरा कर गिरने लगा. मैं बहार की तरफ दौड़ा. जंगल की ताजा हवा ने जैसे नया जीवन दिया मुझे. पल भर में ही सब कुछ तबाह हो गया रह गया तो मैं और वो मलबा जिसमे मेरी यादे भी दफन हो गयी थी .