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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

PkPasi

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कबीर सुनैना का बेटा है तो जरूरी कि वो रूडा का बेटा है राव साहब का भी हो सकता है और वो भी हो सकता है जिसके साथ सुनैना ने अपनी आत्मा का सौदा किया था
अब तक कि जितनी भी कहानी है उसमे सब ने अपनी अपनी झूठी कहानी सुनाई इस कहानी मे सिर्फ एक सच मिला कि कबीर सुनैना का बेटा है और उसके बाप का कुछ भी पता नही
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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जैसे Harry Potter की कहानी में Harry basilisk साँप की गुफा तक पहुँच पाया था क्यूँकि वो सर्प भाषा बोल सकता था lord voldemort की तरह!
इसी लिए गुफा ने उसे वोल्डमॉर्ट का वारिस मन लिया था!!
Kuch vaisa hi
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#157

रमा की आँखों में इतनी हैरत थी की वो अगर फट भी जाती तो कोई बात नहीं थी.

रमा- नहीं ये नहीं हो सकता . असंभव है. तू सुनैना का बेटा नहीं हो सकता ये मुमकिन नहीं

मैं- तेरी सदा ये ही तो दिक्कत रही तू कभी समझ ही नहीं पायी . मैंने कहा मैं हु उसकी आत्मा का अंश, उसका वारिस . वारिस जिसे नियति ने चुना है . खुद सुनैना ने चुना है . जानती है रमा हक क्या होता है . हक़ कभी किसी को खुद से नहीं मिलता. उसके लिए काबिल होना पड़ता है . मैं आज तक हैरान परेशान था क्योंकि मैं आदमखोर के बारे में सोचत था पर आदमखोर तो बस एक पड़ाव था , ताकि सच को छिपाया जा सके. पर तुम लोगो का क्या ही कहना आदमखोर की आड़ में तुम लोगो ने अपना खेल खेला. प्र अब ये खेल बंद होगा . मैं करूँगा इसे बंद .

रमा- कोशिश करके देख लो.इतना आगे निकल आई हूँ की अपना हक़ लिए बिना पीछे लौटने का सवाल ही नहीं है .

मैं- हक़, उसके लिए काबिल होना पड़ता है मैंने तुझे अभी अभी बताया न, और तू तो इतनी काबिल है की तुने अपनी हवस और लालच में अपनी ही बहन की बलि चढ़ा दी.

रमा- रिश्तो की डोर बड़ी नाजुक होती है कुंवर , रिश्तो को खून से सींचा जाता पर खून ही जब खून को पहचानने से मना कर दे तो उस खून को ही साफ़ कर देना चाहिए मैंने बस वही किया.

मैं- उस डोर को तू कभी थाम ही न सकी मुर्ख औरत तू अब भी नहीं समझ पायी. मरते समय सुनैना भरोसा टूटने से इतना आहत थी की उसकी वेदना , उसकी करुना श्राप में बदल गयी . जिस सोने के लिए उसके अपनों ने उसके साथ धोखा किया , वो सोना तुम्हारी असीम चाहत बन कर रह गया. महावीर और अंजू को जन्म देते समय भी वो जानती थी की तुम उसकी औलादों का इस्तेमाल करोगे इस सोने को पाने के लिए इसलिए ही शायद राय साहब ने उन दोनों की परिवरिश की व्यवस्था की .

रमा- इतना सब कैसे जाना , जो कोई भी नहीं जान पाया .

मैं- बताऊंगा तुझे पर मेरे एक सवाल का जवाब दे तू आदमखोर का क्या रोल है इस कहानी में .

रमा- श्राप है वो , सुनैना ने चूँकि अपना वचन नहीं निभाया था वो सोने के अंतिम पथ को पार नहीं कर पाई थी . जब तक सोना अपने वारिस को पहचान नहीं लेता ये व्यवस्था टूट नहीं जाती रक्त से सींचा जाता रहेगा उस स्वर्ण आभा को . कोई ना कोई आदमखोर बन कर ये करता रहेगा पर यहाँ भी एक झोल हो गया .

मैं- आदमखोर खुद पर काबू नहीं रख पाया. तुम अपने हुस्न के जाल में फंसा कर शिकार ला रही थी . इस खेल में तुमने अपनी दो सहेलियों की और मदद ली पर फिर मामला बिगड़ गया. महावीर तुम्हारे लिए अड़चन बन गया और फिर शुरू हुई जंग . हक़ की जंग वो खुद को वारिस समझने लगा . सुनैना का बेटा होने की वजह से उसका ऐसा सोचना ठीक ही था . समस्या तब शुरू हुई जब आदमखोर का राज खुलता ही चला गया . माहवीर जब इस संक्रमण से ग्रस्त हुआ तब दो अलग कहानिया चल रही थी एक तुम्हारी और दूसरी छोटे ठाकुर की . महावीर दोनों कहानियो में शरीक था . उसकी और चाचा की दुश्मनी , चूत के चक्कर में साले सब बर्बाद हुए . उसने शायद गुस्से में चाचा को काट लिया हो . इसीलिए चाचा मर नहीं पाया था पर तुम लोगो ने उसका भी फायदा उठाया.

रमा- तुम्हारा बाप बहुत चाहता था अपने भाई को .

मैं- इस कहानी में साले सब एक दुसरे को चाह ही तो रहे है . किस किस्म की चाहत है ये जो सबको बर्बाद कर गयी. बाप चुतिया ने चाचा को कैदी बना कर रखा , उसका इस्तेमाल किया चंपा के ब्याह को बर्बाद करने में. समझ नही आता जब ब्याह को बर्बाद करना ही था तो ब्याह करवाने की क्या जरुरत थी .

रमा- राय साहब का उस घटना से कुछ लेना देना नहीं है.

मैं- तो किसका है .

रमा- नहीं जानती , अब ये खेल उस मुकाम पर पहुँच चूका है जहाँ पर कौन किस पर वार करे कौन जाने. पर अब जब तुम सब जानते हो मैं सब कुछ जानती हूँ तो फिर इस खेल को आज ही खत्म करना चाहिए. काश मैं पहले जान जाती .

मैं- समय बलवान............

आगे के शब्द चीख में बदल गए किसी ने पीछे से सर पर वार किया . सर्दी की रात में वैसे ही सब कुछ जमा हुआ था सर पर हुए वार ने एक झटके में ही पस्त कर दिया मुझे . मैं जमीं पर गिर गया. मैंने देखा पीछे हाथ में लोहे की छड लिए मेरा बाप खड़ा था .

“”बहुत देर से बक बक सुन रहा था इसकी “ पिताजी ने रमा से कहा.

बाप ने एक बार फिर से मुझ पर वार किया .

पिताजी- न जाने क्या दिक्कत थी इस न लायक की. इसके ब्याह को भी मान्यता दी सोचा की लुगाई के घाघरे में घुसा रहेगा पर इसकी गांड में कीड़े कुल्बुला रहे थे . मैंने सोचा था की किसानी में लगा रहेगा पर इसको तो जासूस बनना है . कदम कदम पर हमारे गुरुर को चुनोती देने लगा ये. हमारे टुकडो पर पलने वाला हमारे सामने सर उठा कर खड़ा होने की सोच रहा था ये .



इस बार का वार बहुत जोर से मेरे घुटने की हड्डी पर लगा.

मैं - तो ये है राय साहब के नकाब की सच्चाई.

पिताजी- दुनिया में सच और झूठ जैसा कुछ भी नहीं होता चुतिया नंदन

मैं- चंपा को क्यों फंसाया फिर

पिताजी- वो साली खुद आई थी मेरे पास. उसकी गांड में आग लगी थी . उसे बिस्तर पर कोई ऐसा चाहिए था जो उसे रौंद सके उसकी इच्छा हमने पूरी की .

पिताजी ने एक बार फिर मुझ पर वार किया , इस बार मैंने छड़ी को पकड़ लिया और पिताजी को धक्का दिया . रमा बीच में आई मैंने खींच कर एक लात मारी उसके पेट में वो सिरोखे के टूटे टुकडो पर जाकर गिरी. पिताजी ने मेरी गर्दन को पकड़ लिया और मारने लगे मुझ को.

मैं- इतना भी मत गिरो राय साहब , की बची कुची शर्म भी खत्म हो जाये.

पिताजी- अब हम तुम जिस मुकाम पर आ गए है कुछ बचा ही नहीं है .रिश्तो की डोर न हमारे लिए कभी थी ना आगे होगी.

मैं- अपने सर पर बाप की हत्या का पाप नहीं लेना चाहता मैं

पिताजी- पर मुझे कोई गम नहीं तुझे मारने में .

पिताजी ने मुझे उठा कर पटका, झटका इतनी जोर का था की हड्डिया कडक ही उठी मेरी.

मैं- एक बार फिर कहता हूँ मैं पिताजी

पिताजी ने पास पड़ा एक पत्थर उठा कर मेरी तरफ फेंका.
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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#157

रमा की आँखों में इतनी हैरत थी की वो अगर फट भी जाती तो कोई बात नहीं थी.

रमा- नहीं ये नहीं हो सकता . असंभव है. तू सुनैना का बेटा नहीं हो सकता ये मुमकिन नहीं

मैं- तेरी सदा ये ही तो दिक्कत रही तू कभी समझ ही नहीं पायी . मैंने कहा मैं हु उसकी आत्मा का अंश, उसका वारिस . वारिस जिसे नियति ने चुना है . खुद सुनैना ने चुना है . जानती है रमा हक क्या होता है . हक़ कभी किसी को खुद से नहीं मिलता. उसके लिए काबिल होना पड़ता है . मैं आज तक हैरान परेशान था क्योंकि मैं आदमखोर के बारे में सोचत था पर आदमखोर तो बस एक पड़ाव था , ताकि सच को छिपाया जा सके. पर तुम लोगो का क्या ही कहना आदमखोर की आड़ में तुम लोगो ने अपना खेल खेला. प्र अब ये खेल बंद होगा . मैं करूँगा इसे बंद .

रमा- कोशिश करके देख लो.इतना आगे निकल आई हूँ की अपना हक़ लिए बिना पीछे लौटने का सवाल ही नहीं है .

मैं- हक़, उसके लिए काबिल होना पड़ता है मैंने तुझे अभी अभी बताया न, और तू तो इतनी काबिल है की तुने अपनी हवस और लालच में अपनी ही बहन की बलि चढ़ा दी.

रमा- रिश्तो की डोर बड़ी नाजुक होती है कुंवर , रिश्तो को खून से सींचा जाता पर खून ही जब खून को पहचानने से मना कर दे तो उस खून को ही साफ़ कर देना चाहिए मैंने बस वही किया.

मैं- उस डोर को तू कभी थाम ही न सकी मुर्ख औरत तू अब भी नहीं समझ पायी. मरते समय सुनैना भरोसा टूटने से इतना आहत थी की उसकी वेदना , उसकी करुना श्राप में बदल गयी . जिस सोने के लिए उसके अपनों ने उसके साथ धोखा किया , वो सोना तुम्हारी असीम चाहत बन कर रह गया. महावीर और अंजू को जन्म देते समय भी वो जानती थी की तुम उसकी औलादों का इस्तेमाल करोगे इस सोने को पाने के लिए इसलिए ही शायद राय साहब ने उन दोनों की परिवरिश की व्यवस्था की .

रमा- इतना सब कैसे जाना , जो कोई भी नहीं जान पाया .

मैं- बताऊंगा तुझे पर मेरे एक सवाल का जवाब दे तू आदमखोर का क्या रोल है इस कहानी में .

रमा- श्राप है वो , सुनैना ने चूँकि अपना वचन नहीं निभाया था वो सोने के अंतिम पथ को पार नहीं कर पाई थी . जब तक सोना अपने वारिस को पहचान नहीं लेता ये व्यवस्था टूट नहीं जाती रक्त से सींचा जाता रहेगा उस स्वर्ण आभा को . कोई ना कोई आदमखोर बन कर ये करता रहेगा पर यहाँ भी एक झोल हो गया .

मैं- आदमखोर खुद पर काबू नहीं रख पाया. तुम अपने हुस्न के जाल में फंसा कर शिकार ला रही थी . इस खेल में तुमने अपनी दो सहेलियों की और मदद ली पर फिर मामला बिगड़ गया. महावीर तुम्हारे लिए अड़चन बन गया और फिर शुरू हुई जंग . हक़ की जंग वो खुद को वारिस समझने लगा . सुनैना का बेटा होने की वजह से उसका ऐसा सोचना ठीक ही था . समस्या तब शुरू हुई जब आदमखोर का राज खुलता ही चला गया . माहवीर जब इस संक्रमण से ग्रस्त हुआ तब दो अलग कहानिया चल रही थी एक तुम्हारी और दूसरी छोटे ठाकुर की . महावीर दोनों कहानियो में शरीक था . उसकी और चाचा की दुश्मनी , चूत के चक्कर में साले सब बर्बाद हुए . उसने शायद गुस्से में चाचा को काट लिया हो . इसीलिए चाचा मर नहीं पाया था पर तुम लोगो ने उसका भी फायदा उठाया.

रमा- तुम्हारा बाप बहुत चाहता था अपने भाई को .

मैं- इस कहानी में साले सब एक दुसरे को चाह ही तो रहे है . किस किस्म की चाहत है ये जो सबको बर्बाद कर गयी. बाप चुतिया ने चाचा को कैदी बना कर रखा , उसका इस्तेमाल किया चंपा के ब्याह को बर्बाद करने में. समझ नही आता जब ब्याह को बर्बाद करना ही था तो ब्याह करवाने की क्या जरुरत थी .

रमा- राय साहब का उस घटना से कुछ लेना देना नहीं है.

मैं- तो किसका है .

रमा- नहीं जानती , अब ये खेल उस मुकाम पर पहुँच चूका है जहाँ पर कौन किस पर वार करे कौन जाने. पर अब जब तुम सब जानते हो मैं सब कुछ जानती हूँ तो फिर इस खेल को आज ही खत्म करना चाहिए. काश मैं पहले जान जाती .

मैं- समय बलवान............

आगे के शब्द चीख में बदल गए किसी ने पीछे से सर पर वार किया . सर्दी की रात में वैसे ही सब कुछ जमा हुआ था सर पर हुए वार ने एक झटके में ही पस्त कर दिया मुझे . मैं जमीं पर गिर गया. मैंने देखा पीछे हाथ में लोहे की छड लिए मेरा बाप खड़ा था .

“”बहुत देर से बक बक सुन रहा था इसकी “ पिताजी ने रमा से कहा.

बाप ने एक बार फिर से मुझ पर वार किया .

पिताजी- न जाने क्या दिक्कत थी इस न लायक की. इसके ब्याह को भी मान्यता दी सोचा की लुगाई के घाघरे में घुसा रहेगा पर इसकी गांड में कीड़े कुल्बुला रहे थे . मैंने सोचा था की किसानी में लगा रहेगा पर इसको तो जासूस बनना है . कदम कदम पर हमारे गुरुर को चुनोती देने लगा ये. हमारे टुकडो पर पलने वाला हमारे सामने सर उठा कर खड़ा होने की सोच रहा था ये .



इस बार का वार बहुत जोर से मेरे घुटने की हड्डी पर लगा.

मैं - तो ये है राय साहब के नकाब की सच्चाई.

पिताजी- दुनिया में सच और झूठ जैसा कुछ भी नहीं होता चुतिया नंदन

मैं- चंपा को क्यों फंसाया फिर

पिताजी- वो साली खुद आई थी मेरे पास. उसकी गांड में आग लगी थी . उसे बिस्तर पर कोई ऐसा चाहिए था जो उसे रौंद सके उसकी इच्छा हमने पूरी की .

पिताजी ने एक बार फिर मुझ पर वार किया , इस बार मैंने छड़ी को पकड़ लिया और पिताजी को धक्का दिया . रमा बीच में आई मैंने खींच कर एक लात मारी उसके पेट में वो सिरोखे के टूटे टुकडो पर जाकर गिरी. पिताजी ने मेरी गर्दन को पकड़ लिया और मारने लगे मुझ को.

मैं- इतना भी मत गिरो राय साहब , की बची कुची शर्म भी खत्म हो जाये.

पिताजी- अब हम तुम जिस मुकाम पर आ गए है कुछ बचा ही नहीं है .रिश्तो की डोर न हमारे लिए कभी थी ना आगे होगी.

मैं- अपने सर पर बाप की हत्या का पाप नहीं लेना चाहता मैं

पिताजी- पर मुझे कोई गम नहीं तुझे मारने में .

पिताजी ने मुझे उठा कर पटका, झटका इतनी जोर का था की हड्डिया कडक ही उठी मेरी.

मैं- एक बार फिर कहता हूँ मैं पिताजी


पिताजी ने पास पड़ा एक पत्थर उठा कर मेरी तरफ फेंका.
aage bhi likho

kabeer ke ye rishton ki dor wale chutiyape wale dialogue se to ye kahani bhari padi hai.............

koi matlab ki baat bhi samne ane do

aur ye baap marna nahin chahiye.......... ab
pahle maar diya hota to theek tha............shuru mein hi

ab to ise jinda aur beijjat hokar jindgi bhar ghisatna chahiye......

warna kahani nahin..........chutiyapa lagega.....padhne ke bad .......readers ko
 
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rangeen londa

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aage bhi likho

kabeer ke ye rishton ki do wale chutiyape wale dialogue se to ye kahani bhari padi hai.............

koi matlab ki baat bhi samne ane dor

aur ye baap marna nahin chahiye.......... ab
pahle maar diya hota to theek tha............shuru mein hi

ab to ise jinda aur beijjat hokar jindgi bhar ghisatna chahiye......

warna kahani nahin..........chutiyapa lagega.....padhne ke bad .......readers ko
naa ise agneepath ke kancha bhaau ki tarah ped tak laao and taang do

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,

चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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#157

रमा की आँखों में इतनी हैरत थी की वो अगर फट भी जाती तो कोई बात नहीं थी.

रमा- नहीं ये नहीं हो सकता . असंभव है. तू सुनैना का बेटा नहीं हो सकता ये मुमकिन नहीं

मैं- तेरी सदा ये ही तो दिक्कत रही तू कभी समझ ही नहीं पायी . मैंने कहा मैं हु उसकी आत्मा का अंश, उसका वारिस . वारिस जिसे नियति ने चुना है . खुद सुनैना ने चुना है . जानती है रमा हक क्या होता है . हक़ कभी किसी को खुद से नहीं मिलता. उसके लिए काबिल होना पड़ता है . मैं आज तक हैरान परेशान था क्योंकि मैं आदमखोर के बारे में सोचत था पर आदमखोर तो बस एक पड़ाव था , ताकि सच को छिपाया जा सके. पर तुम लोगो का क्या ही कहना आदमखोर की आड़ में तुम लोगो ने अपना खेल खेला. प्र अब ये खेल बंद होगा . मैं करूँगा इसे बंद .

रमा- कोशिश करके देख लो.इतना आगे निकल आई हूँ की अपना हक़ लिए बिना पीछे लौटने का सवाल ही नहीं है .

मैं- हक़, उसके लिए काबिल होना पड़ता है मैंने तुझे अभी अभी बताया न, और तू तो इतनी काबिल है की तुने अपनी हवस और लालच में अपनी ही बहन की बलि चढ़ा दी.

रमा- रिश्तो की डोर बड़ी नाजुक होती है कुंवर , रिश्तो को खून से सींचा जाता पर खून ही जब खून को पहचानने से मना कर दे तो उस खून को ही साफ़ कर देना चाहिए मैंने बस वही किया.

मैं- उस डोर को तू कभी थाम ही न सकी मुर्ख औरत तू अब भी नहीं समझ पायी. मरते समय सुनैना भरोसा टूटने से इतना आहत थी की उसकी वेदना , उसकी करुना श्राप में बदल गयी . जिस सोने के लिए उसके अपनों ने उसके साथ धोखा किया , वो सोना तुम्हारी असीम चाहत बन कर रह गया. महावीर और अंजू को जन्म देते समय भी वो जानती थी की तुम उसकी औलादों का इस्तेमाल करोगे इस सोने को पाने के लिए इसलिए ही शायद राय साहब ने उन दोनों की परिवरिश की व्यवस्था की .

रमा- इतना सब कैसे जाना , जो कोई भी नहीं जान पाया .

मैं- बताऊंगा तुझे पर मेरे एक सवाल का जवाब दे तू आदमखोर का क्या रोल है इस कहानी में .

रमा- श्राप है वो , सुनैना ने चूँकि अपना वचन नहीं निभाया था वो सोने के अंतिम पथ को पार नहीं कर पाई थी . जब तक सोना अपने वारिस को पहचान नहीं लेता ये व्यवस्था टूट नहीं जाती रक्त से सींचा जाता रहेगा उस स्वर्ण आभा को . कोई ना कोई आदमखोर बन कर ये करता रहेगा पर यहाँ भी एक झोल हो गया .

मैं- आदमखोर खुद पर काबू नहीं रख पाया. तुम अपने हुस्न के जाल में फंसा कर शिकार ला रही थी . इस खेल में तुमने अपनी दो सहेलियों की और मदद ली पर फिर मामला बिगड़ गया. महावीर तुम्हारे लिए अड़चन बन गया और फिर शुरू हुई जंग . हक़ की जंग वो खुद को वारिस समझने लगा . सुनैना का बेटा होने की वजह से उसका ऐसा सोचना ठीक ही था . समस्या तब शुरू हुई जब आदमखोर का राज खुलता ही चला गया . माहवीर जब इस संक्रमण से ग्रस्त हुआ तब दो अलग कहानिया चल रही थी एक तुम्हारी और दूसरी छोटे ठाकुर की . महावीर दोनों कहानियो में शरीक था . उसकी और चाचा की दुश्मनी , चूत के चक्कर में साले सब बर्बाद हुए . उसने शायद गुस्से में चाचा को काट लिया हो . इसीलिए चाचा मर नहीं पाया था पर तुम लोगो ने उसका भी फायदा उठाया.

रमा- तुम्हारा बाप बहुत चाहता था अपने भाई को .

मैं- इस कहानी में साले सब एक दुसरे को चाह ही तो रहे है . किस किस्म की चाहत है ये जो सबको बर्बाद कर गयी. बाप चुतिया ने चाचा को कैदी बना कर रखा , उसका इस्तेमाल किया चंपा के ब्याह को बर्बाद करने में. समझ नही आता जब ब्याह को बर्बाद करना ही था तो ब्याह करवाने की क्या जरुरत थी .

रमा- राय साहब का उस घटना से कुछ लेना देना नहीं है.

मैं- तो किसका है .

रमा- नहीं जानती , अब ये खेल उस मुकाम पर पहुँच चूका है जहाँ पर कौन किस पर वार करे कौन जाने. पर अब जब तुम सब जानते हो मैं सब कुछ जानती हूँ तो फिर इस खेल को आज ही खत्म करना चाहिए. काश मैं पहले जान जाती .

मैं- समय बलवान............

आगे के शब्द चीख में बदल गए किसी ने पीछे से सर पर वार किया . सर्दी की रात में वैसे ही सब कुछ जमा हुआ था सर पर हुए वार ने एक झटके में ही पस्त कर दिया मुझे . मैं जमीं पर गिर गया. मैंने देखा पीछे हाथ में लोहे की छड लिए मेरा बाप खड़ा था .

“”बहुत देर से बक बक सुन रहा था इसकी “ पिताजी ने रमा से कहा.

बाप ने एक बार फिर से मुझ पर वार किया .

पिताजी- न जाने क्या दिक्कत थी इस न लायक की. इसके ब्याह को भी मान्यता दी सोचा की लुगाई के घाघरे में घुसा रहेगा पर इसकी गांड में कीड़े कुल्बुला रहे थे . मैंने सोचा था की किसानी में लगा रहेगा पर इसको तो जासूस बनना है . कदम कदम पर हमारे गुरुर को चुनोती देने लगा ये. हमारे टुकडो पर पलने वाला हमारे सामने सर उठा कर खड़ा होने की सोच रहा था ये .



इस बार का वार बहुत जोर से मेरे घुटने की हड्डी पर लगा.

मैं - तो ये है राय साहब के नकाब की सच्चाई.

पिताजी- दुनिया में सच और झूठ जैसा कुछ भी नहीं होता चुतिया नंदन

मैं- चंपा को क्यों फंसाया फिर

पिताजी- वो साली खुद आई थी मेरे पास. उसकी गांड में आग लगी थी . उसे बिस्तर पर कोई ऐसा चाहिए था जो उसे रौंद सके उसकी इच्छा हमने पूरी की .

पिताजी ने एक बार फिर मुझ पर वार किया , इस बार मैंने छड़ी को पकड़ लिया और पिताजी को धक्का दिया . रमा बीच में आई मैंने खींच कर एक लात मारी उसके पेट में वो सिरोखे के टूटे टुकडो पर जाकर गिरी. पिताजी ने मेरी गर्दन को पकड़ लिया और मारने लगे मुझ को.

मैं- इतना भी मत गिरो राय साहब , की बची कुची शर्म भी खत्म हो जाये.

पिताजी- अब हम तुम जिस मुकाम पर आ गए है कुछ बचा ही नहीं है .रिश्तो की डोर न हमारे लिए कभी थी ना आगे होगी.

मैं- अपने सर पर बाप की हत्या का पाप नहीं लेना चाहता मैं

पिताजी- पर मुझे कोई गम नहीं तुझे मारने में .

पिताजी ने मुझे उठा कर पटका, झटका इतनी जोर का था की हड्डिया कडक ही उठी मेरी.

मैं- एक बार फिर कहता हूँ मैं पिताजी


पिताजी ने पास पड़ा एक पत्थर उठा कर मेरी तरफ फेंका.
फिर साला डायलॉग मार रहा है, निकल आदमखोर को बाहर और बाप को अधमरा करके जिंदा लाश बना दे।

इसका मरना सही नही होगा इस कहानी में।

वैसे बाकी तो नियति जाने, क्या पता फौजी भाई दो आदमखोर की लड़ाई बना कर कबीर जैसे नौसिखिए आदमखोर को ही मरवा दे।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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