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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Sagar sahab

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#149

“तुमने सोचा भी कैसे की मेरे होते हुए तुम कबीर को नुक्सान पहुंचा पाओगे,बाबा . तुमने कबीर पर नहीं मेरी आत्मा पर वार किया है, कबीर मेरा गुरुर है जिन्दगी है मेरी और कोई भी मेरी जिन्दगी मुझसे छीन ले ये मैं होने नहीं दूंगी. आज नहीं कल नहीं कभी भी नहीं.” निशा ने लगातार रुडा पर लट्ठ से वार किये.

पेट पर हाथ रखे मैं उठा , और जाकेट को कस कर पेट के जख्म पर बान्ध लिया.

निशा- सोचा था की कम से कम तुमने मुझे समझा पर तुम , तुम तो सबसे घटिया निकले . अपने हाथो से मेरी मांग का सिंदूर उजाड़ दिया तुमने. पर आज नहीं आज तुमको अपने पापो का हिसाब देना होगा . आठ साल मैं भटकती रही ,सोचती रही की कौन होगा वो जिसने मेरे जीवन में अँधेरा कर दिया पर काश , काश मैं पहले ही समझ पाती की दिए तले हो अँधेरा होता है

मैं- रुक जा निशा

निशा- आज नहीं कबीर , आज रुकी तो फिर खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाउंगी कबीर .

मैं- इसे माफ़ी नहीं देनी निशा,इसे तू जो चाहे सजा दे पर कुछ सवाल है जिनके जवाब अभी बाकि है

निशा- जवाब तो मांगूंगी ही मैं .

निशा ने पलक झपकते ही रुडा के पाँव को तोड़ दिया. जंगल में उसकी चीख गूंजने लगी.

“चीख, कभी इस जंगल में महावीर की चीखे सुनी होंगी आज ये जंगल उसके कातिल की चीख सुनेगा. तेरे कर्म आज तुझे वही पर ले आये है . चिंता मत कर तुझे इतनी आसान मौत नहीं दूंगी मैं ” निशा ने उस पर थूका और मेरे पास आई मुझे अपने आगोश में भर लिया मरजानी ने .

निशा- सोच तो लिया होता सरकार तेरे पीछे एक जिन्दगी और है तुझे कुछ हो जायेगा तो मेरा क्या होगा . जीना है मुझे तेरे साथ .

मैं- तुझसे वादा किया है मेरी जान . ये जन्म अगला जनम हर जन्म मेरी जान जीना तेरे साथ मरना तेरी बाँहों में .

निशा- रो पडूँगी अगर मरने की बात की तो .

निशा न मेरा जख्म देखा और बोली- तेरे छिपे हुए रूप के बारे में सोच जख्म पर असर होगा

मैं- जानता हूँ पर ये बता तू यहाँ कैसे पहुँच गयी .

निशा- जासूस छोड़ रखा है तेरे पीछे. इतना तो जान गयी थी की तू परेशां है पर क्यों ये नहीं जान पायी और शुक्र है ये सही समय पर मुझे यहाँ ले आया .

निशा ने सियार की तरफ देखा . जो लपक कर हम दोनों से लिपट गया .

मैं- तो जब सुनैना से प्यार वाली कहानी झूठी है तो अब बताओ की असल में उसके साथ हुआ क्या था .

रुडा- बहुत सुन्दर थी वो , मादकता से भरा ऐसा जाम . स्वर्ग से जैसे कोई अप्सरा ही उतर आई हो . बंजारों की लड़की का ऐसा सौन्दर्य अपने आप में अनोखा था. जो भी देखे उसे देखता ही रह जाए. उसे हर कोई पाना चाहता था पर वो भरोसा करती थी हम दोनों पर और उसका वही भरोसा उसका श्राप बन गया . कब वो हम दोस्तों के बीच की खाई बन गयी मालूम ही नहीं हुआ. सब सही था, अगर वो पेट से ना होती . पर उस से भी माहत्वपूर्ण उसने सोना तलाश लिया था . दिक्कत सिर्फ ये थी की सोना वो निकाल सकती थी . चाह कर भी उस से पीछा नहीं छुड्वाया जा सकता था . पर न जाने क्यों बिशम्भर का मन बदल गया . वो टूटती डोर को थामना चाहता था . पर न जाने कैसे वो जान गया की वो षड्यंत्र मैंने ही रचा था . बहुत झगडा हुआ उसका और मेरा. उसकी गोद में दो नवजात थे , मैं उनको रस्ते से हटा देना चाहता था पर वो नहीं माना. मुर्ख था वो . सारी उम्र जिसने किसी रिश्ते की लिहाज नहीं किया ना जाने क्यों वो उन दो नवजातो का मोह नहीं छोड़ पा रहा था



मैं- इतनी ही नफरत थी तो क्यों पाला तुमने, क्यों नाम दिया उनको अपना .

रुडा- मज़बूरी मेरी मज़बूरी. लालच .सौदा जो बिशम्भर ने मुझसे किया था .

निशा-कैसा सौदा.

रुडा- उसने सौदा किया की यदि मैं इन दोनों को पालू तो वो सारा सोना मुझे दे देगा.

मैं- राय साहब खुद सम्पन्न थे उनके लिए क्या मुश्किल था दो बच्चो का पालन पोषण फिर उन्होंने ये सौदा क्यों किया.

रुडा- आज तक नहीं समझ पाया मैं ये बात

मैं- चाचा जरनैल से क्या पंगा था तुम्हारा .

रुडा- उसे लगता था की रमा पर उसका हक़ था वो चुतिया नहीं जानता था की रमा तो कब से हमारी थी .

मैं-उसकी मौत में किसका हाथ था .

रुडा- नहीं जानता , उसकी मौत हुई ये भी तुमने ही बताया

बाते बहुत हद तक साफ़ थी . खंडहर एक ऐसी जगह थी जहाँ पर राय साहब और रुडा अपनी हवस मिटाते थे. वो तमाम सामान इन दोनों का ही था , इनोहोने ही ऐसी वयवस्था बनाई की वहां पर कोई परिंदा भी पर ना मार सके. पर अय्याशी में खलल पड़ा जब महावीर का लगाव हुआ उस जगह से , महावीर ने ही वो जगह अभिमानु और प्रकाश को बताई होगी. जिनका प्रयोग बाद में उन्होंने किया. कविता और सरला उस जगह के बारे में कभी नहीं जान पाई क्योंकि वो कभी गयी ही नहीं और रमा ने उस जगह के बारे में कबी नहीं बताया क्योंकि मैंने उस से हमेशा पूछा की चाचा ने उसे कहा चोदा , चाचा की अय्याशी बस कुवे तक ही सिमित रही .



“अपने ही हाथो से तूने मेरा हाथ कबीर के हाथ में देकर दुआ की थी मेरी नयी जिन्दगी के लिए और अपने ही हाथो से तू मेरे नसीब की लकीर मिटा देना चाहता था . क्यों ” निशा ने कहा

रुडा- मैं पीछा छुड़ाना चाहता था तुझसे. मुझ अलग की ये ही सही रहेगा क्योंकि कबीर जिस तरह से अपनी खोजबीन में लगा हुआ था मैं जानता था की देर सबेर ये अतीत का वो पन्ना तलाश लेगा जो खून से रंगे है .

निशा - तूने बहुत जवाब दिए बस इतना बता जब वो मरा तो उसने क्या कहा था .


रुडा- उसने तेरा नाम लिया था .
"डायन"...!!!
 
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रूडा ही सारे फसाद का जड़ था , हजम नही हुआ। वो जमींदर था , रइस था फिर भी सोने के लालच मे अपनी प्रेमिका और दो बच्चों की मां की हत्या कर दी। उसकी हत्या कर दी जिसे वो प्रेम करता था और जिसके लिए अपने पिता और समाज से बगावत करने पर उतारू हो गया था।

चलो यह भी मान लेते हैं कि वो सुनैना से नही बल्कि उसके जिस्म से प्यार करता था पर यह कैसे मान ले कि उसने अपने ही पुत्र की हत्या भी कर दी थी।
मै अभी तक समझ नही पा रहा हूं कि उसने अपने पुत्र की हत्या किस वजह से की थी ! क्या इसलिए कि वो एक वेयरवोल्फ बन चुका था या इसलिए कि वो सुनैना का पुत्र था ?

राय साहब तो बिल्कुल ही बेदाग बच निकले ! इन के खिलाफ हर चीज जाता था। ये सुनैना के कातिल भी हो सकते थे और उसके साथ उनके पुत्र महावीर के भी। आखिर इन्होने अपने नाजायज औलाद की हत्या करवाई भी थी। सोने पर इनका पूर्ण नियंत्रण भी था।

कैसी बिडम्बना है कि दोनो दोस्त अपने ही पुत्र के जान के दुश्मन निकले। और दोनो ही हवस के गुलाम।

बहुत खुबसूरत अपडेट फौजी भाई।
Outstanding & Amazing.
 

Moon Light

Prime
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#149

लट्ठ मारने वाली निशा ही थी,
और उसको पता दिया इस बात का सियार ने,

अब जब उसे उसके पहले पति के हत्यारे का पता लग चुका है
तो फिर रूडा के साथ वो क्या करेगी ये देखने वाली बात होगी
खतरनाक मौत का दावेदार तो है वैसे रूडा..!!!

कबीर ने कहा सुनैना के प्यार की बात झूठी है, तब असल बात ये थी रूडा को जिस्म और सोने से प्यार था..!!
और मिला हुआ सोना कभी भी किसी को फायदेमंद नहीं हुआ है तो भला रूडा को कैसे हो सकता था ।

कबीर के पिताजी के कारनामों के क्रेडिट ऐसे थोड़ी ना बांटे जा सकते हैं
उनके भी काले कारनामों को उजागर किया जाए जल्द,
वो भी तो हवस के पुजारी रहें हैं
:hyper:
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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होगा वहीं जो नियति ने लिखा होगा !

अब ये तो फौजी साहेब ही बताएंगे अगले भाग
हम तो बस अंदाज़ा लगा सकते हैं,

ये भी हो सकता है,
कबीर के पिताजी आएं हो
हां वो हो सकता है, क्योंकि अभी तक का सबसे छिपा चरित्र वही है, बाकी तो सब कबीर को धोखा ही दे रहे हैं।
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#150



“क्या कहा था उसने मरने से पहले ”निशा ने चीखते हुए रुडा के सर पर लट्ठ मारा . चीखती रही वो मारती रही. बरसो से उसके मन में भरा दर्द आज क्रोध बन कर बह रहा था . मेरे सामने वो कत्ल कर रही थी पर मैंने उसे रोका नहीं, ये दर्द, ये गम बह जाना चाहिए था .निशा जब थमी तो मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया. कुवे पर आकर मैंने उसे खून साफ़ करने को कहा. मैंने अपने जख्म को देखा. ऐतिहत के लिए मैंने उस पर पट्टी बाँध ली. घर जाने को अब समय भी नहीं था . हम लोग वही पर सो गए.



“उठ भी जाओ , चाय लो ” निशा ने मुझे जगाते हुए कहा. मैंने कप लिया उसके हाथ से और बाहर कुवे की मुंडेर पर आकर बैठ गया . महावीर का कातिल, खंडहर के कमरों का रहस्य खुल गया था . पर अभी भी काफी सवाल बाकी थे. कहानी में रुडा का पक्ष जान लिया था अब बारी थी राय साहब के नकाब उतारने की. जब मैं जानता था की महावीर वो आदमखोर नहीं था तो फिर भैया-भाभी-अंजू ने क्यों जोर देकर कहा की महावीर ही था इस बात की पुष्टि करनी थी . अब किसी पर भी यकीन नहीं करना था ये साले सब एक दुसरे से जुड़े थे , सब झूठे थे.



“क्या सोच रहे हो ” निशा ने मेरे पास बैठते हुए कहा.

मैं- हमें शहर जाना होगा अंजू के घर .

निशा- वहां पर क्यों

मैं- अंजू के बारे में तुम कितना जानती हो. कल रात के बाद अब लगता है की उसकी सकशियत सिर्फ ये नहीं है की वो अमीर जमींदार की बेटी है . वो कुछ और भी है . राय साहब ने महावीर और अंजू को अपने संरक्षण में लिया तो क्यों लिया , आखिर क्यों चाहते थे वो की ये दोनों बच्चे बड़े हो जिए इस दुनिया में .

निशा- जहाँ भी चलना है चल पर अबसे मैं तुझे एक पल भी अकेला नहीं छोडूंगी

मैं-हाय मेरी जान

मैंने निशा को अपनी बाँहों में उठाया और कमरे में लेकर घुस गया .

घर पहुंचे तो भाभी आँगन में ही थी. हमें देख कर बोली- कहाँ थी जोड़ी रात भर .

मैं- कुवे पर थे . हमको ये घर कहाँ रास आता है .

भाभी- बता कर जाया करो जहाँ भी जाना हो .

मैं- नाहा कर आता हूँ

भाभी- निशा यहाँ आओ

भाभी निशा को लेकर अन्दर चली गयी . मैं जब नहा कर आया तो देखा की चाची, निशा और भाभी बाते कर रही थी ..

चाची- कबीर, वो मालूम कर न सरला क्यों नहीं आ रही . मैंने कल भी बुलावा भेजा था पर वो आई नहीं.

मैं-वो नहीं आएगी उसने काम करने से मना कर दिया . ब्याह वाले दिन जो हुआ उसके बाद डर गयी वो.

चाची- समझती हूँ . पर ये मंगू भी न जाने कहाँ गायब है न घर पे आया न यहाँ पे आया. कोई बताता भी नहीं किस काम गया है वो . पता नहीं क्यों ऐसा लगता है की सब कामचोर हो गए है .

मैं- आ जायेगा चाची, वैसे भी कई कई दिन वो गायब रहता है गया होगा यही कहीं, खैर, मैं मालूम करूँगा.

मैं- अंजू न दिख रही .

भाभी- वो तो कल ही शहर लौट गयी.

चोबारे में आईने के सामने खड़ा मैं कपडे बदल रहा था मेरे सीने में लटकता चांदी का लाकेट झूल रहा था .माहवीर का ये लाकेट कुछ तो कहना चाहता था मुझसे. अंजू के अनुसार उसने गोलिया मारी थी उसे. अक्सर हम उन चीजो से दूर भागते है जिनके लिए हमारे मन में पश्चाताप होता है , हम पश्चाताप की कोई निशानी नहीं रखते तो फिर क्या वजह थी जो अंजू इस लाकेट को पहनती थी जो हर पल उसे महावीर की याद दिलाता अपने किये कर्म की याद दिलाता. क्या कारण था फिर अंजू का ये लाकेट पहनने का.

क्या था ये लाकेट, क्या कहानी थी इसकी. इस लाकेट ने मुझे खंडहर के छिपे कमरे दिखाए थे क्या पता ये लाकेट कुछ ऐसा भी जानता हो जो छिपा हो.

“सच बड़ा अनोखा होता है , सच बड़ा घिनोना होता है ” रुडा के कहे शब्द मैंने सीने में उतरते महसूस किये. महावीर इसलिए मरा की वो कुछ जान गया था , सच पर कैसा सच किसका सच. मैंने कपडे पहने और तुरंत निचे आया और भाभी के पास गया सीधा- मैं भैया की गाडी चाहिए मुझे

भाभी- इसमें पूछने की क्या जरुरत .

मैं- आज तक उसे कभी हाथ नहीं लगाया न

भाभी- चाबी खूँटी पर होगी वैसे कहाँ जाने का सोचा है .

मैं- निशा को घुमा कर लाना चाहता हूँ

भाभी- एक मिनट रुको जरा

भाभी अन्दर गयी और नोटों की गड्डी लेकर आई.

मैं- इसकी जरुरत नहीं

भाभी- रख लो.

भाभी ने मेरे सर पर हलके से हाथ मारा और बोली- नई शुरुआत है जिन्दगी की रात को समय से लौट जाया करो.

मैंने निशा को इशारा किया और हम लोग गाँव से बाहर निकल गए.

निशा- कहाँ

मैं- वहां जहा बहुत पहले जाना चाहिए था .बंजारों के डेरे पर.

निशा- डेरा तो बरसो पहले तबाह हो गया.

मैं- तबाही के निशान ही तो देखने है सरकार. अभी भी कुछ ऐसा है जो छिपा है

निशा- तू छोड़ क्यों नहीं देता ये जिद, तू कहे तो हम यहाँ से दूर चले जाएँगे . एक छोटा सा घर कहीं और बसा लेंगे जहाँ कोई नहीं होगा. कोई अतीत नहीं , होगा तो बस आने वाला खूबसूरत कल.

मैं- यहाँ से कहाँ जायेंगे सरकार. इस मिटटी में जिए है इसी में मरेंगे . तेरे कहने से गाँव छोड़ दूंगा पर दिल से कैसे निकाल पाऊंगा इसको . किसान हूँ यहाँ की मिटटी को पसीने से सींचा है . जहाँ भी जायेंगे इस मिटटी की महक साथ रहेगी .

निशा-क्यों है तू ऐसा.

मैं- नियति जाने .

मैंने गाड़ी की रफ़्तार और तेज कर दी. जल्दी से जल्दी हम उस जगह पर जाना चाहते थे जहाँ डेरा होता था कभी और जब हम वहां पर पहुंचे तो .......................
 
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