• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,235
6,761
159
#92



मैंने कुछ गिलास पानी पिया और वहीँ पर बैठ गया चाची भी तबतक पास आ चुकी थी .

मैं- आज यहाँ पर कैसे.

चाची- कई दिन हो गए थे इस तरफ आना ही नहीं हुआ. सोचा की घूम आऊ खुली हवा पर थोडा हक़ मेरा भी तो है न .

मैं- मंगू, सरला नहीं आये आज.

चाची- पता नहीं मेरी कोई बात नहीं हुई उनसे. तू बता कहाँ गायब रहता है आजकल.

मैं- बस उलझा हूँ कुछ कामो में .

चाची- क्या काम है ऐसे की अब मुझसे भी नजरे चुराने लगा है

मैं- ब्याह करने वाला हूँ कुछ दिनों में उसी में उलझा हूँ

चाची- देख कबीर, बेशक अपनी पंसद की छोरी से कर ले पर एक बार जेठ जी को तो बता दे, उनको बाद में मालूम हुआ तो कहीं नाराज न हो जाये वो.

मैं- मुझे फर्क नहीं पड़ता चाची. पर क्या तू मुझे बता सकती है की रुडा और चाचा की लड़ाई किस बात पर हुई थी .

चाची- तू पहले भी पूछ चूका है ये बात, तेरे चाचा घर से बाहर क्या करते थे मैं नहीं जानती .

चाची के ब्लाउज से बहार को झांकती चुचिया मुझे ललचा रही थी की आ हमें दबा ले. मसल ले . मैं करता भी ऐसा पर मेरी नजर सरला पर पड़ी जो हमारी तरफ ही आ रही थी तो मैंने विचार बदल दिए.

मैं- चाची मैं चाहता हूँ की जब मेरी दुल्हन आये तो तू उसे अपने घर में रहने की इजाजत दे.

चाची- ये कोई कहने की बात है क्या , और मेरा घर तेरा भी है ये क्यों भूल जाता है तू.

मैंने सरला से थोडा पानी गर्म करने को कहा, मैं नहाना चाहता था . थोड़ी देर और चाची के साथ बाते करने के बाद नहा कर मैं मलिकपुर की तरफ निकल गया. रमा का ठेका आज भी बंद था उसके कमरे पर भी ताला लगा था. मैं उस से मिलना चाहता था पर वो थी नहीं . घूमते घूमते मैं प्रकाश के घर की तरफ चला गया जहाँ उसके अंतिम संस्कार की तयारी चल रही थी मैंने देखा की पिताजी और भैया भी थे वहां तो मैं वापिस मुड गया.

मैं अंजू को देखना चाहता था , जानना चाहता था की प्रकाश की मौत का कितना फर्क पड़ता है उस पर. पर अंजू थी कहाँ . रमा भी गायब , खैर वापिस आना तो था ही , तभी मुझे ध्यान आया की रमा ने बताया था की अंजू जब भी मलिकपुर आती है तो वो स्कूल में बच्चो को पढ़ाती है तो मैं वहीँ पर पहुँच गया, और किस्मत देखिये मुझे शहर में उसका पता भी मिल गया.



सहर जाते समय जिन्दगी में पहली बार मैंने सोचा की मेरे पास भी भैया के जैसे गाड़ी होनी चाहिए , खैर , उस पते पर जब मैं पहुंचा तो हैरत से मेरी आँखे फट गयी. अंजू का घर, दरअसल उसे घर कहना तोहीन होती , वो घर नहीं हवेली ही थी, अंजू अमीर थी जानता था मैं पर इतनी अमीर होगी ये नहीं सोचा था .



पर वहां कोई दरबान नहीं था . दरवाजे पर एक बड़ी सी घंटी लटकी थी जिसे जोर लगा कर मैंने बजाया तो अन्दर से एक नौकरानी आई और मुझ से सवाल करने लगी. मैंने उसे कहा की अंजू से मिलने कबीर आया है. वो अन्दर गयी और थोड़ी देर बाद दरवाजा खोल कर मुझे अदब से अपने साथ ले गयी. घर क्या था हमें तो महल ही लगता था .



दीवारों पर तरह तरह की तस्वीरे थी जो मुझे समझ नहीं आई. किताबे इधर उधर बिखरी पड़ी थी . पर बाकी सब कुछ सलीके से था . कुछ देर बाद अंजू आई, उसकी आँखे लाल थी शायद बहुत रोई होगी वो रोती भी क्यों न .....

“तुम यहाँ क्यों आये ” उसने पूछा

मैं- आपसे मिलने

अंजू- कबीर, मेरा मूड बहुत ख़राब है आज, मैं परेशान हूँ

मैं- जानता हूँ , आपके लिए सदमे से कम नहीं है

मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- जानता हु आप पर क्या बीत रही है , आप बाहर से कितना भी मजबूत क्यों न हो पर आपके मन की बेचैनी, उसकी बेदना समझता हूँ मैं इसीलिए मैं यहाँ आया. बेशक मैं इस दुःख को कम नहीं कर पाऊंगा पर फिर भी मुझे लगा की इस वक्त आपके साथ होना चाहिए मुझे. मैंने आगे बढ़ कर उसे अपने सीने से लगा लिया और तब तक लगाये रखा जब तक की उसका दर्द आंसू बन कर बह नहीं गया.

मैं- मालूम कर लूँगा ये किसका काम है

अंजू- जरुरत नहीं , ये काम मैं खुद करुँगी.

मैं- कभी कभी लगता है की आपकी और मेरी मंजिल एक ही है

अंजू- कैसी मंजिल

मैं- आपको भी जंगल में किसी चीज की तलाश है मुझे भी .

अंजू- किसने कहा की मैं जंगल में कुछ ढूँढने जाती हूँ.

मैं- अनुमान है मेरा .

अंजू- मुझे भला क्या जरुरत

मैं- यही मैं जानना चाहता हूँ की क्यों नहीं जरूरत आपको किसी भी चीज की .

मैंने जेब से सोने के कुछ सिक्के निकाले और अंजू के हाथ में रख दिए.

“तो इनकी वजह से तुम यहाँ चले आये, तुमको क्या लगा था की इनके लिए मैं जंगल में जाती हूँ ” उसने मुझे घुर कर कहा.

मैं- क्या आपको इनका कोई मोह नहीं, क्या आप नहीं चाहती इनको पाना .

अंजू- नहीं , जो मेरा है उस से मुझे भला क्या मोह होगा. और जो मेरा है उसे क्या पाना

अंजू ने जो रहस्योद्घाटन किया था मेरे तमाम ख्याल , तमाम धारणाओं को ध्वस्त होते देखा मैंने .

मैं- कैसे ,,,,,,,,,,,

अंजू- मेरी माँ सुनैना, बंजारों की टोली के सबसे सिद्ध थी वो. उसने खोजा था इस सोने को. कबीर, सोना एक ऐसी चीज है जो कभी अपना नहीं हो सकता, मिला हुआ, पड़ा हुआ सोना या वो सोना जो तुम्हारा नहीं है पर तुमने कब्ज़ा लिया है तुम्हे कभी सुख नहीं देगा, मान्यता है की मिला हुआ सोना अपने साथ दुर्भाग्य लाता है . ये सत्य है . मेरी माँ की मौत का असली कारण सोना था . राय साहब जानते है इस बात को . राय साहब की कोई बहन नहीं थी ,मेरी माँ को सगी बहन से भी ज्यादा स्नेह करते थे वो. मरते हुए मेरी माँ ने राय साहब को उस सोने का राज बताया जिसकी वजह से उसकी मृत्यु हुई. राय साहब ने वक्त आने पर वो राज मुझे बताया. पर मैंने इसे नकार दिया. दुनिया इस सोने को लालच के रूप में देखेगी पर मैं इसमें मेरी माँ के खून को देखती हूँ .



मैं- पर रुडा आपकी माँ से बहुत प्रेम करता था .

अंजू- प्रेम नहीं था वो , रुडा इस सोने से प्रेम करता था , जब वक्त आया हमें अपनाने का तो उसके हाथ कमजोर पड़ गए. वो चाहते तो कोई मेरी माँ का बाल भी बांका नहीं कर सकता था .

मैं- तो क्या राय साहब से तल्खी का कारन भी ये सोना ही है

अंजू- बड़ी देर से समझे तुम.

चूँकि चालाक अंजू पर मुझे विश्वास कम ही था तो मैंने एक सवाल और पूछा .

मैं- क्या आप जानती है की ये सोना कहाँ है

अंजू- जानती हूँ , और तुम्हे भी बताती हूँ तुम्हे चाहिए तो तुम ले सकते हो . सोना मेरी माँ की समाधी के निचे है .मैंने अपना माथा पीट लिया . सोना वहां कैसे हो सकता था.

मैं- पक्का सोना वहीँ पर है

अंजू- जब मैंने आखिरी बार देखा था तो सोना वहीँ पर था .

मैं - और ये आखिरी बार कब था

अंजू- ठीक तो याद नहीं पर शायद सात-आठ साल पहले.

बहुत से सवालों का जवाब मिल चूका था मुझे.

मैं- यदि सोने से आपको कोई वास्ता नहीं तो फिर इतनी अमीर कैसे है आप .

अंजू-तुम एक बात भूल गए मैं सुनैना की बेटी हूँ , उस सुनैना की जिसे राय साहब ने बहन माना था .

इसके आगे मुझे कुछ भी कहने की जरूरत नहीं थी . मैंने अंजू से विदा ली और दरवाजे की तरफ मुड़ा ही था की सामने लगी तस्वीर ने मेरे कदम रोक लिए.......................................
Firse nayi tasveer :banghead:
 

rangeen londa

New Member
99
704
83
सबको अपने ही लूटते हैं............
आप लुटने कि बजाय लुटेरे को लूट लो .............. उसकी ज़िंदगी नर्क कर दो
मर जाने के बाद उसे नर्क मिले या ना मिले निश्चित नहीं........... जिंदा रखकर ही उसे नर्क दे दो

याद रखना मृत्यु किसी के लिए भी दण्ड नहीं होती, पुरूष्कार है....... इसलिए मरने मत दो दुश्मन को, जिंदा रखकर उसकी ज़िंदगी इतनी बर्बाद कर दो कि वो मौत कि भीख मांगे
WO TO KAR DI
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,531
34,458
219
NAHI SAJAA HOTI HE :respekt::respekt::respekt:I AM ALSO BUNDELKHANDI
bhai chambal ke beehad mein banduk ke liye licence nahi, dum chahiye....... varna licensi bandook bhi balak chheen le jayeinge :D
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,235
6,761
159
#93

वो तस्वीर जिसे भैया ने गायब कर दिया था वो तस्वीर यहाँ अंजू के घर टंगी हुई थी . ये तस्वीर भी साली जी का जंजाल बन गयी थी . अंजू के घर होना इस तस्वीर का अपने आप में एक राज था .मैं वापिस मुड़ा और अंजू के पास फिर से गया .पर वो जा चुकी थी नौकरानी ने कहा की अब वो नहीं मिलेगी . क्या भैया और अंजू दुनिया की नजरो में भाई बहन बने हुए थे और असली में कुछ और रिश्ता था दोनों का. ये सवाल न चाहते हुए भी मेरे मन में खटक रहा था.

वापस आया तो देखा की सरला अभी भी थी खेतो पर . इतनी देर तक क्यों रहती है यहाँ ये जबकि मैंने इस से कई बार कहा हुआ है की तू समय से लौट जाया कर. ये भी नहीं सुनती मेरी.

मैं- तुझे कितनी बार कहा है की समय से घर जाया कर. अभी अंधेरा होने वाला है

सरला- तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी कुंवर मैं

मैं- कोई काम था क्या

सरला- कुछ बताना था तुमको .

मैं- क्या

सरला- तुम्हारे दोस्त मंगू का रमा के साथ चक्कर चल रहा है मैंने दोनों को चुदाई करते हुए देखा .

सरला की बात सुनकर मेरा माथा और ख़राब हो गया. मंगू तो कहता था की वो कविता से प्यार करता था पर ये साला रमा के साथ लगा हुआ है.

मैं- दोनों की मंजूरी है तो चलने दो चक्कर हमें क्या लेना-देना.

सरला- मुझे लगा की तुम्हे बताना चाहिए.

मैं- तूने कहा देखा उनको .

सरला- दोपहर को चाची मुझे खेतो में दूर तक साथ ले गयी घुमने के लिए फिर वापसी में वो गाँव की तरफ चली गयी मैं इधर आई तो कमरा अन्दर से बंद था, मैंने सोचा तुम लौट आये होगे. अन्दर से आती आवाजो से लगा की बात कुछ और है तो मैंने दरवाजे की झिर्रियो से देखा और दंग रह गयी.

बेशक सरला की कही बात सामान्य थी पर उसने मुझे सोचने के लिए बहुत कुछ दे दिया था . मैंने उस से चाय बनाने के लिए कहा और सोचने लगा. प्रकाश कुवे के आसपास था , अंजू भी थी . मंगू रातो को कहाँ जाता था ये मैं समझ गया था . सारी कडिया मेरे सामने थी. रमा थी वो कड़ी. रमा मंगू से भी चुद रही थी , प्रकाश जिस औरत को चोद रहा था वो रमा थी. रमा दोनों को चुतिया बना रही थी एक साथ. अंजू भी मेरी तरह उसी समय जंगल में थी , उसने भी चुदाई देखि होगी बस उसने अपनी कहानी में रमा की जगह खुद को रख कर मेरे सामने पेश कर दिया था .



एक महत्वपूर्ण सवाल प्रकाश ने चुदाई करते हुए कहा था की मैं तुझे गाड़ी से तेरे घर छोड़ आऊंगा. मतलब रमा के पुराने घर इसलिए ही गाडी गाँव की तरफ गयी थी . मंगू को मालूम होगा की रमा रात को उसके पुराने घर पर मिलेगी, रात को वाही गया होगा वो उसे चोदने के लिए. और ये मुमकिन भी था क्योंकि जब जब रमा यहाँ इनके साथ रही होगी तभी मैं उस से मिलने मलिकपुर गया जहाँ पर ताला था .



क़त्ल वाली रात प्रकाश रमा से ही मिलने आया होगा, या फिर उसका ही इन्तजार कर रहा होगा. कडिया जुड़ रही थी सिवाय एक के की, क्या अंजू सच में प्रकाश से प्यार करती थी , अगर नहीं करती थी तो उसने क्यों कहा मुझसे की वो चाहती है प्रकाश को और वो चुडिया , चुदाई के बीच खनकती चुडिया. चूँकि मैंने प्रकाश के घर काफी ऐसा सामान देखा था तो मान लिया की ये शौक रखता हो वो औरत को सजा-धजा के चोदने का.



“कुंवर , चाय ” सरला की आवाज ने मुझे धरातल पर ला पटका.

मैं- भाभी एक बात बता, जब चाचा तेरी लेता था तो क्या वो फरमाइश करता था की तू सज-धज कर चुदे , क्या वो तुझसे तस्वीरों वाली हरकते करता था .

सरला-हाँ, छोटे ठाकुर को साफ़ सुथरी औरते पसंद थी . बगलों में और निचे एक भी बाल नहीं रखने देते थे वो. तरह तरह की पोशाके लाते वो , किताबो को देख कर वही सब करवाते थे , शुरू में तो अजीब लगता था फिर बाद में अच्छा लगने लगा.

मैं- क्या उन्होंने तुमको अपने किसी दोस्त से भी चुदवाया

सरला- क्या बात कर रहे हो कुंवर, छोटे ठाकुर हम पर हक़ समझते थे अपना वो ऐसा कैसे करते.

मैं- क्या मंगू ने तुझे पटाने की कोशिश की .

सरला- कभी कभी देखता तो है वो पर ऐसा नहीं लगता मुझे.

मैं- तो एक काम कर मंगू को अपनी चूत के जाल में फंसा ले.

सरला- कुंवर, क्या कह रहे हो तुम

मै- जो तू सुन रही है , समझ मेरी बात मैं ये नहीं कह रहा की तू चुद जा उस से, तू बस उसे अहसास करवा की तू चाहती है उसे, कुछ बाते है जो तू तेरे हुस्न के जरिये उगलवा ले उससे.

सरला- अपने ही दोस्त की जासूसी करवा रहे हो

मैं- तू भी तो मेरी ही है न , तूने वादा किया है मेरी मदद करने का

सरला- वादा निभाऊंगी

मैं- तो कर दे ये काम

सरला- एक बात और बतानी भूल ही गयी थी . रमा ने मंगू को आज रात उसके पुराने घर पर बुलाया है .

मैं- ठीक है हम भी वहीँ चलेंगे. तू मुझे वही पर मिलना.

सरला- मैं ,,,,,,,

मैं- आ जाना, कुछ भी करके. तेरे घर पर मालूम तो है ही की तुम हमारे यहाँ काम करती है , बहाना कर लेना की चाची के पास रुकना है .

सरला- आ जाउंगी पर क्या करने वाले हो तुम

मैं- समझ जायेगी.

बाते करते हुए हम दोनों गाँव की तरफ चल दिए. मैंने सरला को उसके घर छोड़ा और चौपाल के चबूतरे पर बैठ कर सोचने लगा की रमा क्या खेल खेलना चाहती थी, अगर उसके प्रकाश से अवैध सम्बन्ध थे तो उसने क्यों मुझे प्रकाश की ऐसी छवि दिखाई क्यों मुझे उसके घर ले गए. कितना आसान था रमा का मुझे उसके घर ले जाना, उसने मुझे वही दिखाया जो वो दिखाना चाहती थी , क्या उसकी कहानी झूठी थी. क्या था उसके मन में वो ही बताने वाली थी अब तो.



मंगू मेरा सबसे करीबी था उसे चूत के जाल में कविता ने फंसाया और अब रमा ने पर किसलिए. मंगू से क्या जानकारी चाहती थी वो . और अगर प्रकाश भी इनके साथ शामिल था तो क्या साजिश हो रही थी . एक बात और मैं जान गया था की उस रात कविता प्रकाश से गांड मरवाने ही गयी थी जंगल में .



आज की रात बड़ी महत्वपूर्ण होने वाली थी . घर पर भैया और पिताजी अभी तक नहीं लौटे थे. भाभी से मैं कुछ जरुरी बात करना चाहता था पर वो चंपा और चाची के साथ बैठी थी तो मैंने फिर कभी करने का सोचा और जब सब सो गए तो मैं रमा के पुराने घर की तरफ निकल गया. सरला मुझे पेड़ो के झुरमुट के पास ही मिल गयी .हम दोनों रमा के पुराने घर पर पहुंचे . घर के नए दरवाजे बंद थे पर खिड़की का एक पल्ला खुला था हमने जब अन्दर झाँका तो.................................
Kya baat hai :claps: yaha har koi har kisi ka kaate he ja raha he . Par sabse badhiya agar kisi ne kata tha to wo kida he tha jisne kabir ke vishesh sthan par he kata , aur kata to kata aisa kata ke abtak nahi thik hua :lol:
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,235
6,761
159
#94

अन्दर के नज़ारे को देख कर मेरे साथ साथ सरला की भी आँखे फटी की फटी रह गयी.

“अयाशी खून में दौड़ती है ” मेरे कानो में नंदिनी भाभी की आवाज गूँज रही थी .

“ये तो .............. ” मैंने सरला के मुह पर हाथ रखा और उसे चुप रहने को कहा. जरा सी आवाज भी काम बिगाड़ सकती थी. अन्दर कमरे में बिस्तर पर रमा नंगी होकर राय साहब की गोद में बैठी थी , रमा के गले में सोने की चेन, कमर पर तगड़ी और हाथो में चुडिया थी,एक विधवा को सजा कर अपनी ख्वाहिश पूरी करने वाले थे राय साहब. बाप का ये रूप देख कर मियन समझ गया था की भाभी ने सच कहा था चंपा को भी चोदता है ये.



मैं और सरला आँखे फाड़े राय साहब और रमा की चुदाई देख रहे थे, तभी मेरी नजर मंगू पर पड़ी जो वही एक कोने में बैठा था . खुद चुदाई करना और किसी दुसरे को चुदाई करते हुए देखना अपने आप में अलग सी फीलिंग थी . पर मैं खिड़की से हटा नहीं , बेशर्मो की तरफ अपने बाप की रासलीला देखता रहा .

जब राय साहब का मन भर गया तो वो बिस्तर से उठे और रमा के हाथ में नोटों की गड्डी देकर वहां से चले गए. उनके जाते ही मंगू ने अपनी धोती खोली और रमा पर चढ़ गया . रमा ने जरा भी प्रतिकार नहीं किया मंगू का और मैं खिड़की से हट गया. ऊपर दिमाग में दर्द हो गया था निचे लंड में ,

आखिरकार सरला ने चुप्पी को तोडा.

सरला- कुंवर, ये तो मामला ही उल्टा हो गया .

मैं- तूने जो भी देखा ये बात बाहर नहीं जानी चाहिए.

सरला- भरोसा रखिये.

मैं- मंगू पिताजी के लिए काम कर रहा है , उसे तोडना जरुरी होगा .

सरला- मैं पूरी कोशिश करुँगी उस से बाते निकलवाने की

मैं- रमा को प्रकाश भी चोद रहा था पिताजी भी . कुछ तो गहराई की बात है .

मेरे दिमाग में अचानक से ही बहुत सवाल उभर आये थे पर सरला के सामने जाहिर नहीं करना चाहता था. पेड़ो के झुरमुट के पास बैठे हम दोनों अपने अपने दिमाग में सवालो का ताना बुन रहे थे .

मैं- तुझे घर छोड़ आता हूँ

सरला- घर कैसे जाउंगी, घर पर तो कह आई न की छोटी ठकुराइन के पास रुकुंगी आज.

मैं- कुवे पर चलते है फिर.

वहां पहुँचने के बाद , हम दोनों बिस्तर में घुस गए. बेशक मैं नहीं करना चाहता था पर ठण्ड की रात में सरला जैसी गदराई औरत मेरी रजाई में थी जो खुद भी चुदना चाहती थी . सरला ने अपना हाथ मेरे लंड पर रखा और उसे सहलाने लगी.

मैं- सो जा न

सरला- अब मौका मिला है तो कर लो न कुंवर.

मुझे चाचा पर गुस्सा आता था की भोसड़ी वाले ने इन औरतो में इतनी हवस भर दी थी की क्या ही कहे. खैर नजाकत तो ये ही थी . मैंने सरला के होंठ चूमने शुरू किये तो वो भी गीली होने लगी. जल्दी ही हम दोनों नंगे थे और मेरा लंड सरला के मुह में था . थूक से सनी जीभ को जब वो मेरे सुपाडे पर रगडती तो मैं ठण्ड को आने जिस्म में घुसने से रोक ही नहीं पाया.

उसके सर को अपने लंड पर दबाते हुए मैं पूरी तल्लीनता से इस अजीब सुख का आनंद उठा रहा था . सरला की ये बात मुझे बेहद पसंद थी की वो जब चुदती थी तो हद टूट कर चुदती थी .मेरे ऊपर चढ़ कर जब वो अपनी गांड को हिलाते हुए ऊपर निचे हो रही थी . मेरे सीने पर फिरते उसके हाथ उफ्फ्फ क्या गर्म अहसास दे रहे थे. सरला की आँखों की खुमारी बता रही थी की वो भी रमा और राय शाब की चुदाई देख कर पागल हो गयी थी.

उस रात मैंने और सरला ने दो बार एक दुसरे के जिस्मो की प्यास बुझाई. पर मेरे मन में एक सवाल घर जरुर कर गया था की अगर रमा को राय सहाब चोदते थे तो फिर जरुर वो कबिता और सरला को भी पेलते होंगे.

मैं- क्या राय साहब ने तुझे भी चोदा है भाभी

सरला- नहीं . मुझे तो आज ही मालूम हुआ की राय सहाब भी ऐसे शौक करते है .

राय साहब सीधा ही चले गए थे रमा को चोद कर कुछ बातचीत करते उस से तो शायद कुछ सुन लेता मैं.

मै- कल से तू पूरा ध्यान मंगू पर रख भाभी, उस से कैसे भी करके रमा और राय साहब के बीच ये सम्बन्ध कैसे बने उगलवा ले.

सरला- तुम्हारे लिए कुछ भी करुँगी कुंवर.

मैं- कहीं राय साहब और चाचा के बीच झगडा इस बात को लेकर तो नहीं था की चाचा को मालूम हो गया हो की उनकी प्रेमिकाओ का भोग पिताजी भी लगाना चाहते थे .

सरला- नहीं ये नहीं हो सकता , चूत के लिए दोनों भाई क्यों लड़ेंगे, और राय साहब का ये रूप सिर्फ मैंने और तुमने देखा है , ये मत भूलो की गाँव में और इलाके में राय साहब को कैसे पूजते है लोग. उनके दर से कोई खाली हाथ नहीं जाता. सबके सुख दुःख में शामिल होने वाले राय साहब की छवि बहुत महान है .

मैं- पर असली छवि तेरे सामने थी

सरला- अगर मैंने देखा नहीं होता तो मैं मानती ही नहीं इस बात को.

एक बात तो माननी थी की चाचा ने इन तीन औरतो को कुछ सोच कर ही पसंद किया होगा तीनो हद खूबसूरत थी, जिस्मो की संरचना ऐसी की चोदने वाले को पागल ही कर दे. कविता, रमा और सरला हुस्न का ऐसा नशा को चढ़े जो उतरे ना.

खैर, सुबह समय से ही हम लोग गाँव पहुँच गए. घर पर आने के बाद मैंने हाथ मुह धोये और देखा की भाभी रसोई में थी मैं वहीं पर पहुँच गया .

मैं- जरुरी बात करनी है

भाभी- हाँ

मैं- आपने सही कहा था पिताजी और चंपा के बारे में

भाभी- मुझे गलत बता कर मिलता भी क्या

मैं-समय आ गया है की अब आप बिना किसी लाग लपेट के इस घर का काला सच मुझे बताये.

भाभी- बताया तो सही की राय साहब और चंपा का रिश्ता अनितिक है

मैं- सिर्फ ये नहीं और भी बहुत कुछ बताना है आपको

भाभी- और क्या

मैं- मेरे शब्दों के लिए माफ़ी चाहूँगा भाभी , पर ये मुह से निकल कर ही रहेंगे.

भाभी देखने लगी मुझे.

मैं- जंगल में मैंने प्रकाश को एक औरत के साथ चुदाई करते हुए देखा. फिर अंजू मुझे मिली अपने कुवे वाले कमरे पर , अंजू ने कहा की वो ही थी परकाश के साथ , पर सच में उस रात रमा थी प्रकाश के साथ ,

चुदाई सुन कर भाभी के गाल लाल हो गए थे. मैंने उनको तमाम बात बताई की कैसे पिताजी कल रात रमा को चोद रहे थे फिर मंगू ने चोदा उसे.

मेरी बात सुनकर भाभी गहरी सोच में डूब गयी .

मैं - कुछ तो बोलो सरकार,

भाभी- सारी बाते एक तरफ पर अंजू और राय साहब के भी अनैतिक सम्बन्ध होंगे ये नहीं मान सकती मैं .

मैं- क्यों भाभी,

भाभी- क्योंकि................................
Ab konsa bum futega bhabhi ke muh se ? :scared2:
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,847
259
#147

“फिर क्या हुआ ” मैंने थोड़ी अधीरता से पूछा

रुडा- तुम्हे क्या लगता है वो सोना कहा होगा

रुडा मेरे मन की थाह लेना चाहता था .

मैंने ख़ामोशी से समाधी के पत्थर हटाये और वो मिटटी का कलश निकाल लिया

रुडा ने उसे देखा लौ की रौशनी में टिमटिमाती पीली चमक क्या ही कहने .

रुडा- ये कलश चेतावनी थी , पर किसे समझ थी चढ़ती उम्र बड़ी दुस्सहासी होती है . नियति की चेतावनी की इस पर ही मान जाओ आगे का पथ बड़ा कठिन होगा. पर किस को परवाह थी . कीमत, किसने सोचा होगा की क्या कीमत होगी उस चीज को लेने की जो तुम्हारी नहीं है .

मैं- और क्या थी वो कीमत

रुडा- बड़े बेसब्रे हो तुम कबीर. अभी तो बात बाकि है ये रात बाकी है . कौन समझ सकता है की कर्मो के लेख कैसे चुकाए जाते है . कीमत जरुरी नहीं थी की रूपये-पैसो में ही चुकाई जाये, हमारे मामले में वो कीमत थी रिश्ते जो टूटते गए. बिशम्भर को जैसे जूनून हो गया था . सुनैना और वो दोनों बहुत वक्त साथ बिताने लगे थे. उनके साथ दिन रात होकर भी उनके साथ बेगाना होने लगा था मैं. उन दोनों का जूनून हमारी दोस्ती की नींव कमजोर कर रहा था .

साथ होकर भी साथ नहीं रहना इस से बड़ा दर्द कोई नहीं . बेशक मैं और सुनैना प्रेम पथ पर चल रहे थे , पर इस सोने ने उस पथ को तहस नहस करना शुरू कर दिया था . एक दिन अचानक बिशम्भर गायब हो गया .

मेरे लिए ये नयी जानकारी थी .

मैं- गायब मतलब

रुडा- गायब , कोई खबर नहीं उसकी , मैंने और सुनैना ने दिन रात एक कर दिया कोई कोना नहीं , कोई दिशा नहीं जहाँ पर उसकी तलाश नहीं की . मेरे प्यार की जानकारी डेरे में हो गयी थी . और मेरे घर पर भी . दोनों तरफ के लोग गुस्सा थे. लोग कहा समझते उस समय की प्रेम क्या होता है . एक बिशम्भर की चिंता दूसरी फ़िक्र अपनी मोहब्बत को पाने की . पर ये तो शरूआत थी कहानी तो बहुत बाकि थी .

मैं- कैसी शुरुआत.

रुडा- सुनैना पेट से हो गयी . ख़ुशी तो बहुत थी की हमारे प्यार की निशानी इस दुनिया में आने वाली थी . पर परेशानी ये थी की उस प्यार को कोई भी नहीं समझ पा रहा था . मेरे बाप की झूठी शान मेरे पैरो का बंधन बन् रही थी पर मैंने वादा किया था सुनैना से की हाथ कभी नहीं छुटेगा उसके हाथ से. दिन बीत रहे थे . सबको मालूम हो गया था की सुनैना के पेट में मेरी औलाद पल रही है. डेरे वाले हमारे घर आये और इंसाफ की मांग करने लगे. कुंवारी लड़की का गर्भवती होना ऐसा पाप था जिसका कोई प्रयाश्चित नहीं था . लगा की जब सारे रास्ते बंद हो गए तब उम्मीद की लौ फूटी बिशम्भर लौट आया. हमारी ढाल बन कर खड़ा हुआ वो .



मैंने बाप की हवेली छोड़ दी. मामला बहुत गर्म था पर हम दिन काट रहे थे . एक रोज़ मेरा बाप आया और बोला की उसे मेरा और सुनैना का रिश्ता मंजूर है , मेरे लिए इस से बड़ी ख़ुशी और क्या होती. बाप ने मुझे किसी काम से बाहर भेजा. मैने मेरे लौटने तक सुनैना की जिम्मेदारी बिशम्भर को दी. पर जब मैं लौट कर आया तो ............



कुछ पलो के लिए गहरा सन्नाटा छा गया .

मैं- और जब आप लौट कर आये तो .

रुडा- दुनिया बिखर चुकी थी . सुनैना पर हमला हुआ था समाज के ठेकेदारों ने उसे मार डाला.

रुडा के कहे ये शब्द , इन शब्दों में इतनी वेदना थी की मैंने अपने कलेजे को जलते हुए महसूस किया.

मैं- राय साहब ने अपना वचन नहीं निभाया सुनैना की रक्षा करने का.

रुडा- उसे जो ठीक लगा उसने वो किया

मैं- ऐसा क्या किया था पिताजी ने .

रुडा- जब सुनैना पर हमला हुआ तो उसे प्रसव वेदना शुरू हो गयी . बिशम्भर बहुत घबरा गया था . उसे हमला भी रोकना था और सुनैना को बचाना भी था . वो घायल थी और प्रसव की तकलीफ में भी . जब तक बिशम्भर उसके पास पहुंचा हालात और बिगड़ गए थे . उसने सुनैना का प्रसव करवाया , जरुरी इंतजाम नहीं थे, खून ज्यादा बह गया . सुनैना की मौत हो गयी . वो तो चली गयी पर अपनी निशानी छोड़ गयी .

मैं- अंजू

रुडा- अंजू . जो कभी नहीं समझ पायी की बाप होना क्या होता है .

मैं - फिर क्या हुआ

रुडा- एक रात डेरा तबाह हो गया. कैसे, किसने किया आज तक कोई नहीं जान पाया. एक रात क़यामत आई और अपने साथ डेरे को ले गयी.

मैं- उसी दौरान आपके पिता की भी मृत्यु हो गयी.

रुडा- कोई नहीं जान पाया वो कैसे मरे, इसी जंगल में लाश पायी गयी उनकी .

मैं-दो दोस्तों में दुरी आने की असली वजह क्या थी .

रुडा- लालच और हवस. विशम्भर जब से लौटा था वो पहले जैसा नहीं रहा था , वो मेरा दोस्त नहीं रहा था . रिश्ते-नाते उसके लिए बेगाने हो गए थे .उसे न जाने किस चीज की तलाश थी . अकेले रहने का कैसा जूनून था उसे. और फिर वो दौर आया जब आसपास के इलाके में लोग गायब हो ने लगे. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था . जंगल पहली बार सुरक्षित नहीं था . कुछ दिन गुजरते फिर कुछ दिन रक्त का तांडव मच जाता. मुझ पर गाँव की जिमेदारी थी , मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की . पर जिस बात ने मुझे सबसे जायदा परेशान किया हुआ था वो थी की जब जब मैं जंगल में घुमती मौत के पास पहुंचे को होता ही था तब तब बिशम्भर मिल जाता मुझे . एक समय के बाद मुझे भी लगने लगा था की बिशम्भर जानता था उस आफत के बारे में . वो कुछ तो मुझसे छिपा रहा था . हमारा झगडा इसी बात को लेकर हुआ था . ऐसा क्या था जो वो मुझसे छिपा रहा था . बताना नहीं चाहता था वो मुझसे.

मैं- क्या छिपा रहे थे वो आपसे .

रुडा- पता नहीं , पर उस झगडे के बाद जंगल शांत हो गया . बहुत साल वो शांत रहा पर इस साल से वो सब दुबारा होने लगा.

मैं- क्या आपको मालूम है की सोना कहा है.

रुडा-वो सोना नहीं श्राप है किसी को भी नहीं जानना चाहिए वो कहा है .

मै समझ गया रुडा जानता था उस जगह के बारे में .

मैं- आप तीनो की आलावा भी उस सोने की उपस्तिथि को कोई और भी जान गया था .

रुडा- जिसने भी वो सोना चुराया चैन नहीं पाया. कबीर, मैं तुमसे भी यही अपेक्षा करूँगा की तुम चाहे जो करना उस सोने का लालच मत करना.

मैं- बस दो सवाल और . पहला डेरा कहाँ था मुझे वो जगह देखनी है दूसरा सवाल रमा क पति को क्यों मारा आपने...................

 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,235
6,761
159
#95

भाभी- क्योंकि अंजू इस दुनिया की सबसे खुशनसीब बहन है , उसके सर पर अभिमानु ठाकुर का हाथ है. अभिमानु ठाकुर वो नाम है जिसने इस घर को थाम कर रखा है . अंजू की ढाल है तुम्हारे भैया.

भाभी की बात ने हम दोनों के बीच एक गहरी ख़ामोशी पैदा कर दी. ऐसी ख़ामोशी जो चीख रही थी .

मैं- तो फिर भैया क्यों नहीं बताते मुझे अतीत के बारे में क्यों ढो रहे है अपने मन के बोझ को वो अकेले.

भाभी- क्योकि वो बड़े है , बड़ा भाई छोटो के लिए बाप समान होता है , जो काम बाप नहीं कर पाया वो अभिमानु कर रहे है . तुम्हे चाहे लाख शिकायते होंगी उनसे पर उन्होंने सबकी गलतिया माफ़ की है , तुमने उन्हें बस बड़े भाई के रूप में देखा है मैंने उन्हें एक साथी के रूप में जाना है वो साथी जो तनहा है , वो साथी जो हर रोज टूटता है और अगले दिन फिर इस परिवार के लिए उठ खड़ा होता है . क्या लगता है की उनको अपने बाप की हरकते मालूम नहीं है पर इस घर को घर बनाये रखने के लिए वो घुट गए अपने ही अन्दर. तुमको क्या लगता है की ये विद्रोही तेवर तुम्हारे अन्दर ही उबाल मार रहे है , अभिमानु ने बरसो पहले अपने इस उबाल को ठंडा कर दिया. तुम अक्सर पूछते हो न की तुम्हारे भैया की कोई इच्छा क्यों नहीं , क्यों उन्होंने अपनी तमाम इच्छाओ को छोड़ दिया. इस घर के लिए, रिश्तो की जिस डोर को तुम बेताब हो तोड़ने के लिए. उस डोर को अभिमानु ने अपने खून से सींचा है.



मैंने भाभी से फिर कुछ नहीं कहा रसोई से बाहर निकल गया. भाभी ने मेरे दिल पर ऐसा पत्थर रख दिया था जिसके बोझ से मैं धरती में धंसने लगा था . कम्बल ओढ़े मैं गहरी सोच में डूब गया था आखिर ऐसी क्या वजह थी की अंजू को अपनाया था अभिमानु भैया ने.

“कबीर चाय ” चंपा की आवाज ने मेरा ध्यान वापिस लाया.

उसने जैसे ही कप पास में रखा मैंने खींच कर एक थप्पड़ जड दिया उसके गाल पर. एक और फिर एक और .

“ऐसी क्या वजह थी जो राय साहब से गांड मरवानी पड़ी तुझे. ऐसा क्या चाहिए था तुझे , मैं था न यहाँ पर मुझसे एक बार कहा तो होता तूने. आज सारे जहाँ में रुसवा खड़ा हूँ मैं पर मुझे परवाह नहीं पर तू , मेरे बचपन की साथी तू , तूने छला मुझे . खुद से ज्यादा तुझ पर नाज था मुझे और तू ..... क्यों किया तूने ऐसा ” मेरे अन्दर का गुस्सा आज चंपा पर फट ही पड़ा.

चंपा- मैं बस इस घर के अहसानों की कीमत चुका रही थी . जो अहसान इस घर ने मुझे पालने के लिए किये उनकी छोटी सी कीमत है ये. जिस राय साहब की वजह से मैं आज मेरा परिवार सुख में है उस सुख की थोड़ी कीमत मैंने चुका दी तो क्या हुआ .



मैंने एक थप्पड़ और मारा उसके गाल पर .

मैं- किस अहसान की बात करती है तू . ये घर तुझ पर अहसान करेगा. तूने कही कैसे ये बात. इस घर की नौकरानी नहीं है तू, न कभी थी . तू इस घर में इसलिए नहीं है की तेरे माँ-बाप हमारे यहाँ काम करते है तू इस घर में है क्योंकि तू मेरी दोस्त है . जितना ये घर मेरा है उतना ही तेरा. और अपने ही घर में कैसा अहसान , इस घर की बेटी रही तू सदा. मेरे बाप ने तुझे कहा और तू मान गयी, मैं मर थोड़ी न गया था , तू क्यों नहीं आई मेरे पास .मुझ पर भरोसा तो किया होता पर तूने इतना हक़ दिया ही नहीं .



चंपा ने एक गहरी साँस ली और बोली- जितना था मैंने तुझे बता दिया .जीवन में कभी कभी कुछ समझौते करने पड़ते है तू आज नहीं समझेगा मेरी बात पर समझ जायेगा.

मैं- ये बहाने कमजोर है तू अगर न चाहती तो राय साहब की क्या मजाल थी जो तुझे हाथ भी लगा देते मैं देखता

चंपा-इसलिए ही तो नहीं कह पाई तुझसे. मेरी वजह से बाप-बेटे में तकरार होती ,मैं जानती हूँ तेरे गुस्से को इसलिए चुप रही .

मैं- फिर भी क्या तू छिपा पाई मुझसे. और मंगू इस बहनचोद ने अपनी ही बहन पर हाथ साफ़ कर दिया. साले दोस्ती के नाम पर तुम कलंक मिले हो मुझ को . दिल तो करता है तुम दोनों का वो हाल करू की याद रखो तुम सारी उम्र.

चंपा- मंगू को देनी पड़ी राय साहब की वजह से , राय साहब ने मुझसे खुद कहा था की मंगू से भी कर ले. और वो नीच , उसने एक पल भी न सोचा की कैसे चढ़ रहा है अपनी बहन पर . जब वो गिर गया तो मैं तो पहले से ही गिरी हुई थी . तू भी कर ले अपने मन की, तेरी नाराजगी भी मंजूर मुझे. कबीर मेरा दिल जानता है उस दिल में तेरे लिए कितनी जगह है.

मैं- दूर हो जा मेरी नजरो से . कबीर मर गया तेरे लिए आज इसी पल से.

शाम को मैं मलिकपुर गया रमा से मिलने के लिए पर एक बार फिर ताला लगा था उसकी दुकान और कमरे पर . हरामजादी न जाने कहाँ गायब थी. मैंने सोच लिया था की रमा की खाल उतार कर ही अपने सवालो के जवाब मांगूंगा अब तो. मलिकपुर से लौटते समय मेरे दिमाग में वो बात आई जो इस टेंशन में भूल सी गयी थी .

रात होते होते मैं सुनैना की समाधी पर था. अंजू ने कहा था की उसने सोने को अंतिम बार यही पर देखा था . मैंने समाधी पर अपना शीश नवा कर माफ़ी मांगी और समाधी को तोड़ दिया. खोदने लगा निचे और करीब ६-7 फीट खुदाई के बाद मेरी आँखों के सामने जो आया. मैं वही पर बैठ गया अपना सर पकड़ कर. इस चक्रव्यू ने निचोड़ ही लिया था मुझे................ मेरे सामने, मेरे सामने...............................
Sai itna to Bermuda triangle bhi na ghuma sake jitna aap ghumaye ho :wooow:
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,235
6,761
159
#



धरती की गहराई में मेरे सामने एक बेहद पुराना गड्ढा था जो ईंटो से बनवाया गया था मेहराबदार जैसे की छोटा कुवा हो. उसकी गहराई तो मैं नहीं जानता था पर इतना जरुर था की वो चाहे जितना गहरा हो . उसमे जो सामान था उसकी कीमत बहुत थी . वो गड्ढा ऊपर तक सिर्फ और सिर्फ सोने से भरा था .मैंने अनुमान लगाया यदि ये गड्ढा पांच-छ फूट गहरा भी हुआ तो भी हद, मतलब हद से जायदा सोना था यहाँ पर .



मेरा दिमाग और घूम गया . जंगल में जगह जगह सोना बिखरा हुआ था और दुनिया बहन की लौड़ी चूत के चक्कर में जंगल नाप रही थी . उस दिन मैंने जाना की सबसे बड़ा लालच इस दुनिया में चूत का ही है . बाकी सब उसके बाद . यहाँ पड़े सोने ने अंजू की बात की तस्दीक कर दी थी . पर मेरे सामने एक ऐसा यक्ष प्रशन खड़ा हो गया था की क्या पाने में पड़ा सोना इसका ही हिस्सा था या फिर दो अलग अलग खजाने थे .



मैंने गड्ढे को बंद किया और सुनैना की समाधी के टुकडो पर अपना सर रख कर इस कार्य के लिए माफ़ी मांगी .

“जब यहाँ तक आ ही पहुंचे तो फिर रुक क्यों गए . सोना सामने है ले क्यों नहीं जाते. ”

मैंने पलट कर देखा , राय सहाब खड़े थे.

मैं- ये सोना दुर्भाग्य है , अगर ये शुभ होता तो मुझसे पहले ही कई दावेदार थे न इसके, सुनैना की समाधी के लिए मैं शर्मिंदा हूँ , बाकि ये सोना न पहले मेरा था न आज है जिसका है वो ले जाये .

मैंने राय साहब की आँखों में आँखे मिला कर कहा.

पिताजी- अगर तुम्हे इसकी चाह नहीं तो फिर क्या चाहते हो तुम

मैं- जो मैं चाहता हूँ जल्दी ही ये सारा जमाना जान जायेगा. पर आज अभी इसकी वक्त मैं राय साहब ने जो मुखोटा ओढा हुआ है उस नकाब के पीछे क्या है वो जरुर जानना चाहूँगा.

पिताजी- लफ्जों पर लगाम लगाओ बरखुरदार

मैं- आपने रिश्तो को तार तार कर दिया , हमारे लफ्जों पर भी काबू ये तो नाइंसाफी है राय साहब.

पिताजी- हमारा बेटा हमारी ही आँखों में आँखे डाल कर खड़ा है , जिसके आगे दुनिया झुकती है तुम उस से आँखे मिला रहे हो.

मैं- दुनिया कहाँ जानती है की गरीबो का मसीहा , गरीबो की इज्जत अपने बिस्तर पर लूट रहा है . चंपा के साथ आपने जो भी किया न , मैं कभी नहीं भूलूंगा. आप जानते थे चंपा क्या है मेरे लिए इस घर में केवल दो बेटे ही नहीं थे ,एक बेटी भी थी जिसका नाम चंपा था और उसी बेटी के साथ आपने जो किया न मुझे शर्म है की मैं इस घटिया आदमी का खून हूँ .



“घर में चंपा, बाहर रमा और न जाने कितनी उसके जैसी औरतो ने आपके बिस्तर की शोभा बढाई होगी. जिस चाचा को आपने ये सब करने से रोका था आप भी उसके ही नक़्शे कदम पर चल निकले क्या फर्क रह गया . अरे मैं भी फर्क कैसे होगा, खून तो शुरू से ही गन्दा रहा है हमारा ” मैंने कहा .

राय साहब खामोश खड़े रहे .

मैं- ये ख़ामोशी कमजोरी की निशानी है राय साहब . मैं नहीं जानता आप किस रिश्ते को थाम रहे है किसको छोड़ रहे है पर मैं इतना जानता हूँ किसी भी रिश्ते को आपने इमानदारी से नहीं निभाया . सुनैना से लेकर रमा तक सबको आपने छला है . जो इन्सान खुद राते काली रहा है वो पंचायत में लाली को फांसी की सजा देता है , धूर्तता का चरम इस से ज्यादा क्या होगा.

पिताजी- उस पंचायत में ही हमने तुम्हारे अन्दर के विद्रोह को देख लिया था .हम जान गए थे की आने वाला वक्त मुश्किलों से भरा होगा. हम जो भी कर रहे है , हमने जो भी क्या उसके पूर्ण जिम्मेदार हम है सिर्फ हम और हमें नहीं लगता की हमें तुम्हे या किसी और को सफाई देने की जरूरत है .

मैं- सफाई नहीं मांग रहा मैं, बता रहा हूँ आपको की यदि आज के बाद मुझे भनक भी लगी न की आपने चंपा की तरफ नजर भी उठाई तो मेरा यकीं मानिए वो नजर, नजर नहीं रहेगी फिर.

पिताजी- अपनी औकात मत भूलो कबीर,

पिताजी जैसे दहाड़ उठे.

मैं- ये खोखला रुतबा मैं नहीं डरता इस से. मेरे शब्द अपने कानो में घोल लीजिये . वो दिन कभी नहीं आना चाहिए की मुझे अपने बाप का प्रतिकार करना पड़े.

“कबीर,,,, ” पिताजी ने अपना हाथ उठा लिया गुस्से से पर मारा नहीं मुझे , हल्का सा धक्का दिया और फिर वापिस मुड गए. मैं जान गया था की चोट गहरी लगी है बाप को . पर मैं कितना टालता इस दिन को ये आना ही था .

वहां से आने के बाद मैं सीधा रमा के पुराने घर गया पर वहां भी कोई नहीं था . मैं अन्दर गया . सब कुछ वैसा ही था . अलमारी में मुझे सोने के वो गहने मिले जो कल रात वो पहने हुई थी, पास में ही नोटों की गड्डी पड़ी थी. ये साला हो क्या रहा था इस गाँव में बहनचोद किसी को भी सोने से लगाव नहीं था . और जब जमीन , पैसे, गहनों का लालच न हो तो कारन सिर्फ एक ही हो सकता था नफरत या फिर मोहब्बत.

घर गया तो देखा की पुजारी आया हुआ था . मैंने उसे नमस्ते की और उसके पास बैठ गया .

भैया-भाभी-चाची सब कोई बैठे थे.मैं सोच रहा था की ये रात को क्यों आया था . मालूम हुआ की पुजारी फेरो में लगने वाला सामान लिखवाने आया था . तमाम चुतियापे के बीच मैं भूल ही गया था की ब्याह सर पर है . थोड़ी देर बाद पुजारी चला गया भैया ने मुझसे कहा की दो पेग लेगा पर मैंने मना किया .

“इतनी गहराई से क्या सोच रहे हो ” भाभी ने मेरे हाथ में खाने को कुछ दिया और मेरे पास ही बैठ गयी.

मैं- सोच रहा हूँ की इतने मेहमान आयेंगे शादी में , एक मेहमान मैं भी बुला लू क्या.

भाभी- वो नहीं आएगी

मैं- आप आज्ञा दे तो मैं ले आऊंगा उसे

भाभी- ठीक है , आती है तो ले आ. पर सिर्फ मेहमान की हसियत से. पर दुनिया से क्या कहोगे किस हक़ से लाओगे उसे यहाँ पर .

मैं- आप पूछ रही है ये. उसका हक़ नहीं तो फिर किसका हक़ . वो नहीं तो फिर और कौन . मैं आप से पूछता हूँ, आप हसियत की बात करती है उसे आने के लिए किसी हक़ की क्या जरुरत. वो जिन्दगी है मेरी .

भाभी ने अपना सर मेरे काँधे पर टिकाया और बोली- ले आना उसे, मेरी तरफ से न्योता देना उसे.

मेरी नजर आसमान में धुंध से आँख-मिचोली खेलते चाँद पर गयी. सीने में न जाने क्यों बेचैनी से बढ़ गयी....................
मेरा दिमाग और घूम गया . जंगल में जगह जगह सोना बिखरा हुआ था और दुनिया बहन की लौड़ी चूत के चक्कर में जंगल नाप रही थी . उस दिन मैंने जाना की सबसे बड़ा लालच इस दुनिया में चूत का ही है . बाकी सब उसके बाद .
Ye baat :laugh: sari duniya ek taraf aur chodampatti ek taraf :sex:
 
Top