bantoo
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Ek Buddha...jawanअभी तो मैं जवान हूँ...
KD-47
To kabir ko bolo ghus jaye usne bhaiवो छेद ही तो जड़ है तमाम घटनाक्रम की
बस अब अंत नजदीक ही है
अंजू और अभिमानु में भाई बहन का रिश्ता है भाभी कभी कभी तो सही बाते बताती हैं लेकिन कभी कभी पर भी शक चला जाता है जब वो बातो को गोल गोल घुमा देती है भाभी के अनुसार भैया को सब कुछ पता है राय साहब चाचा इनके बारे में वो अपने परिवार को जोड़े हुए हैं भाभी ने ये तो सच कहा है कि भईया ने अपने विद्रोही तेवर दबा दिए ये बात भैया ने भी कही थी कबीर से ।सच में सब के कारनामे पता होने के बाद भी अपने परिवार को एक धागे में बांधे रखना बहुत बड़ी बात है भैया महान है जो परिवार के लिए खुद की इच्छाओं का गला घोंटा है#95
भाभी- क्योंकि अंजू इस दुनिया की सबसे खुशनसीब बहन है , उसके सर पर अभिमानु ठाकुर का हाथ है. अभिमानु ठाकुर वो नाम है जिसने इस घर को थाम कर रखा है . अंजू की ढाल है तुम्हारे भैया.
भाभी की बात ने हम दोनों के बीच एक गहरी ख़ामोशी पैदा कर दी. ऐसी ख़ामोशी जो चीख रही थी .
मैं- तो फिर भैया क्यों नहीं बताते मुझे अतीत के बारे में क्यों ढो रहे है अपने मन के बोझ को वो अकेले.
भाभी- क्योकि वो बड़े है , बड़ा भाई छोटो के लिए बाप समान होता है , जो काम बाप नहीं कर पाया वो अभिमानु कर रहे है . तुम्हे चाहे लाख शिकायते होंगी उनसे पर उन्होंने सबकी गलतिया माफ़ की है , तुमने उन्हें बस बड़े भाई के रूप में देखा है मैंने उन्हें एक साथी के रूप में जाना है वो साथी जो तनहा है , वो साथी जो हर रोज टूटता है और अगले दिन फिर इस परिवार के लिए उठ खड़ा होता है . क्या लगता है की उनको अपने बाप की हरकते मालूम नहीं है पर इस घर को घर बनाये रखने के लिए वो घुट गए अपने ही अन्दर. तुमको क्या लगता है की ये विद्रोही तेवर तुम्हारे अन्दर ही उबाल मार रहे है , अभिमानु ने बरसो पहले अपने इस उबाल को ठंडा कर दिया. तुम अक्सर पूछते हो न की तुम्हारे भैया की कोई इच्छा क्यों नहीं , क्यों उन्होंने अपनी तमाम इच्छाओ को छोड़ दिया. इस घर के लिए, रिश्तो की जिस डोर को तुम बेताब हो तोड़ने के लिए. उस डोर को अभिमानु ने अपने खून से सींचा है.
मैंने भाभी से फिर कुछ नहीं कहा रसोई से बाहर निकल गया. भाभी ने मेरे दिल पर ऐसा पत्थर रख दिया था जिसके बोझ से मैं धरती में धंसने लगा था . कम्बल ओढ़े मैं गहरी सोच में डूब गया था आखिर ऐसी क्या वजह थी की अंजू को अपनाया था अभिमानु भैया ने.
“कबीर चाय ” चंपा की आवाज ने मेरा ध्यान वापिस लाया.
उसने जैसे ही कप पास में रखा मैंने खींच कर एक थप्पड़ जड दिया उसके गाल पर. एक और फिर एक और .
“ऐसी क्या वजह थी जो राय साहब से गांड मरवानी पड़ी तुझे. ऐसा क्या चाहिए था तुझे , मैं था न यहाँ पर मुझसे एक बार कहा तो होता तूने. आज सारे जहाँ में रुसवा खड़ा हूँ मैं पर मुझे परवाह नहीं पर तू , मेरे बचपन की साथी तू , तूने छला मुझे . खुद से ज्यादा तुझ पर नाज था मुझे और तू ..... क्यों किया तूने ऐसा ” मेरे अन्दर का गुस्सा आज चंपा पर फट ही पड़ा.
चंपा- मैं बस इस घर के अहसानों की कीमत चुका रही थी . जो अहसान इस घर ने मुझे पालने के लिए किये उनकी छोटी सी कीमत है ये. जिस राय साहब की वजह से मैं आज मेरा परिवार सुख में है उस सुख की थोड़ी कीमत मैंने चुका दी तो क्या हुआ .
मैंने एक थप्पड़ और मारा उसके गाल पर .
मैं- किस अहसान की बात करती है तू . ये घर तुझ पर अहसान करेगा. तूने कही कैसे ये बात. इस घर की नौकरानी नहीं है तू, न कभी थी . तू इस घर में इसलिए नहीं है की तेरे माँ-बाप हमारे यहाँ काम करते है तू इस घर में है क्योंकि तू मेरी दोस्त है . जितना ये घर मेरा है उतना ही तेरा. और अपने ही घर में कैसा अहसान , इस घर की बेटी रही तू सदा. मेरे बाप ने तुझे कहा और तू मान गयी, मैं मर थोड़ी न गया था , तू क्यों नहीं आई मेरे पास .मुझ पर भरोसा तो किया होता पर तूने इतना हक़ दिया ही नहीं .
चंपा ने एक गहरी साँस ली और बोली- जितना था मैंने तुझे बता दिया .जीवन में कभी कभी कुछ समझौते करने पड़ते है तू आज नहीं समझेगा मेरी बात पर समझ जायेगा.
मैं- ये बहाने कमजोर है तू अगर न चाहती तो राय साहब की क्या मजाल थी जो तुझे हाथ भी लगा देते मैं देखता
चंपा-इसलिए ही तो नहीं कह पाई तुझसे. मेरी वजह से बाप-बेटे में तकरार होती ,मैं जानती हूँ तेरे गुस्से को इसलिए चुप रही .
मैं- फिर भी क्या तू छिपा पाई मुझसे. और मंगू इस बहनचोद ने अपनी ही बहन पर हाथ साफ़ कर दिया. साले दोस्ती के नाम पर तुम कलंक मिले हो मुझ को . दिल तो करता है तुम दोनों का वो हाल करू की याद रखो तुम सारी उम्र.
चंपा- मंगू को देनी पड़ी राय साहब की वजह से , राय साहब ने मुझसे खुद कहा था की मंगू से भी कर ले. और वो नीच , उसने एक पल भी न सोचा की कैसे चढ़ रहा है अपनी बहन पर . जब वो गिर गया तो मैं तो पहले से ही गिरी हुई थी . तू भी कर ले अपने मन की, तेरी नाराजगी भी मंजूर मुझे. कबीर मेरा दिल जानता है उस दिल में तेरे लिए कितनी जगह है.
मैं- दूर हो जा मेरी नजरो से . कबीर मर गया तेरे लिए आज इसी पल से.
शाम को मैं मलिकपुर गया रमा से मिलने के लिए पर एक बार फिर ताला लगा था उसकी दुकान और कमरे पर . हरामजादी न जाने कहाँ गायब थी. मैंने सोच लिया था की रमा की खाल उतार कर ही अपने सवालो के जवाब मांगूंगा अब तो. मलिकपुर से लौटते समय मेरे दिमाग में वो बात आई जो इस टेंशन में भूल सी गयी थी .
रात होते होते मैं सुनैना की समाधी पर था. अंजू ने कहा था की उसने सोने को अंतिम बार यही पर देखा था . मैंने समाधी पर अपना शीश नवा कर माफ़ी मांगी और समाधी को तोड़ दिया. खोदने लगा निचे और करीब ६-7 फीट खुदाई के बाद मेरी आँखों के सामने जो आया. मैं वही पर बैठ गया अपना सर पकड़ कर. इस चक्रव्यू ने निचोड़ ही लिया था मुझे................ मेरे सामने, मेरे सामने...............................
Shabashi bhaiक्या मिल जाएगी
Oh ho to anju ko shaq h ki surajbhan ne mara h parkash ko.#97
भाभी- कितना चाहते हो उसे.
मैं- जितना तुम भैया को.
भाभी ने मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया और बोली- निभा पाओगे उस से. उम्र के जिस दौर से तुम गुजर रहे हो कल को तुम्हारा मन बदल गया तो. मोहब्बत करना अलग बात है कबीर और मोहब्बत को निभाना अलग. तुम जिसे मंजिल समझ रहे हो वो ऐसा रास्ता है जिस पर जिन्दगी भर बस चलते ही रहना होगा. कभी सोचा है की किया होगा जब तुम्हारे भैया को मालूम होगा, जब राय साहब को मालूम होगा.
मैं- भैया को मैं मना लूँगा, और राय साहब को मैं कुछ समझता नहीं
भाभी- अच्छा जी , इतने तेवर बढ़ गए है , डाकन का ऐसा रंग चढ़ा है क्या.
मैं- जो है अब वो ही है .
भाभी- पुजारी से पूछा था मैंने कहता है कोई योग नहीं
मैं- उसके हाथो की लकीरों में मेरा नाम लिखा है , और कितना योग चाहिए पुजारी को .
भाभी- पर मेरा दिल नहीं मानता
मैं- दिल को मना लेंगे भाभी ,
“दिल ही तो नहीं मानता देवर जी ” भाभी ने अपनी गर्म सांसे मेरे गालो पर छोड़ते हुए कहा
मैं- भूख लगी है , कुछ दे दो खाने को .
भाभी- भैया को बुला लाओ मैं परोसती हूँ.
भाभी रसोई की तरफ बढ़ गयी मैं ऊपर चल दिया भैया के कमरे की तरफ. देखा भैया कुर्सी पर बैठे थे.
मैं- खाना नहीं खाना क्या
भैया- आ बैठ मेरे पास जरा
मैं वही कालीन पर बैठ गया .
मैं- क्या आप को मालूम है की सुनैना अंजू के लिए कितना सोना छोड़ कर गयी है .
भैया- क्या तू जानता है की मेरा छोटा भाई, जिसके कदमो में मैं दुनिया को रख दू, वो खेतो पर पसीना क्यों बहाता है .
मैं- क्योंकि मेरे पसीने की रोटी खा कर मुझे सकून मिलता है . मेरी मेहनत मुझे अहसास करवाती है की मैं एक आम आदमी हूँ , ये पसीना मुझे बताता है की मेरे पास वो है जो दुनिया में बहुत लोगो के पास नहीं है .
भैया- अंजू समझती है की वो सोना उसका नहीं है , वो जानती है की वो सोना अंजू को कभी नहीं फलेगा.
मैं-तो उस सोने की क्या नियति है फिर.
भैया- माटी है वो समझदारो के लिए और माटी का मोल मेरे भाई से ज्यादा कौन जाने है
मैं- दो बाते कहते हो भैया
भैया- सुन छोटे, कल से तू ज्यादा समय घर पर ही देना, ब्याह में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए .बरसों बाद हम कोई कारण कर रहे है .
मैं- जो आप कहे, पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ
भैया- हा,
मैं- ब्याह की रात पूनम की रात है
मैंने जान कर के बात अधूरी छोड़ दी.
भैया - तू उसकी चिंता मत कर , तेरा भाई अभी है . चल खाना खाते है भूख बहुत लगी है .
हम दोनों निचे आ गए. खाना खाते समय मैंने महसूस किया की भैया के मन में द्वंद है , शायद वो मेरी बात की वजह से थोड़े परेशान हो गए थे. मैं भी समझता था इस बात को . उस रात परेशानी होनी ही थी मुझको . पर मैंने सोच लिया था की मैं दिन भर रहूँगा और रात को खेतो पर चला जाऊंगा, यही एकमात्र उपाय था मेरे पास.
खाना खाने के बाद मैं चाची के पास आ गया . मैंने बिस्तर लगाया और रजाई में घुस गया . थोड़ी देर बाद चाची भी आ गयी . और मेरे सीने पर सर रख कर लेट गयी .
चाची - क्या सोच रहा है कबीर
मैं- राय साहब के कमरे में कोई औरत आती है रात को उसी के बारे में की कौन हो सकती है
चाची- शर्म कर , क्या बोल रहा है तू अपने पिता के बारे में
मैं - पिता है तो क्या उसे चूत की जरूरत नहीं
चाची- कुछ भी बोलेगा तू
मैं- मैंने देखा है पिताजी को उस औरत को चोदते हुए
चाची- बता फिर कौन है वो
मैं- चेहरा नहीं देख पाया.
मैंने झूठ बोला.
चाची- घर में इतना कुछ हो रहा है और मुझे मालूम नहीं
मैं- पता नहीं तेरा ध्यान किधर रहता है.
मैंने चाची का हाथ पकड़ा और निचे ले जाकर अपने लंड पर रख दिया.चाची ने मेरे पायजामे में हाथ डाल दिया और अपने खिलोने से खेलने लगी. मैंने चाची के चेहरे को अपनी तरफ किया और उसके होंठ चूसने लगा. आज की रात चाची की ही लेने वाला था मैं पर नसीब देखिये, बाहर से दरवाजा पीटा जाने लगा ये भाभी थी जो रंग में भंग डालने आ पहुंची थी .
हम अलग हुए और चाची ने दरवाजा खोला भाभी अन्दर आई और बोली- चाची , अभिमानु कही बाहर गए है मैं आपके पास ही सोने वाली हूँ. मैंने मन ही मन भाभी को कुछ कुछ कहा .मैं बिस्तर से उठा और बाहर जाने लगा.
भाभी- तुम कहाँ चले
मैं- कुवे पर ही सो जाऊंगा. वैसे भी अब इधर नींद कम ही आती है मुझे.
मैंने कम्बल ओढा और बाहर निकल गया चूत से ज्यादा मैं ये जानना चाहता था की भैया रात में कहा गए. मैंने एक नजर बाप के कमरे पर डाली जिसमे अँधेरा छाया हुआ था , सवाल ये भी था की बाप चुतिया कहा रहता था रातो को .
सोचते सोचते मैं पैदल ही खेतो की तरफ जा रहा था . पैर कुवे की तरफ मुड गए थे पर थोडा आगे जाकर मैंने रास्ता बदल दिया मैंने खंडहर पर जाने का सोचा. हवा की वजह से ठण्ड और तेज लगने लगी थी . मैंने कम्बल कस कर ओढा और आगे बढ़ा. थोडा और आगे जंगल में घुसने पर मुझे कुछ आवाजे आई. आवाज एक औरत और आदमी की थी . इस जंगल में इतना कुछ देख लिया था की अब ये सब हैरान नहीं करता था.
झाड़ियो की ओट लिए मैं उस तरफ और बढ़ा. आवाजे अब मैं आराम से सुन पा रहा था .
“मुझे जो चाहिए मैं लेकर ही मानूंगा, तुम लाख कोशिश कर लो रोक नहीं पाओगी मुझे ”
“मुझे रोकने की जरुरत नहीं तुमको, तुम्हारे कर्म ही तुमको रोकेंगे. ” औरत ने कहा
इस आवाज को मैंने तुरंत पहचान लिया ये अंजू थी पर दूसरा कौन था ये समझ नहीं आया फिर भी मैंने कान लगाये रखे.
“तुम कर्मो की बात करती हो , हमारे खानदान की होकर भी तुमने एक नौकर का बिस्तर गर्म किया , घिन्न आती है तुम पर मुझे ”
“जुबान संभाल कर सूरज , ” अंजू ने कहा.
तो दूसरी तरफ सूरजभान था जो अपनी बहन से लड़ रहा था .
सूरजभान- शुक्र करो काबू रखा है खुद पर वर्ना न जाने क्या कर बैठता
अंजू- क्या करेगा तू मारेगा मुझे, है हिम्मत तुजमे तू मारेगा मुझे. आ न फिर किसने रोका है तुझे .
सूरज- मारना होता तो कब का मार देता पर तुम्हारे गंदे खून से मैं अपने हाथ क्यों ख़राब करू.
अंजू- मेरा सब्र टूट रहा है सूरज. मुझे मजबूर मत कर की मैं भूल जाऊ की तू मेरा भाई है .
सूरज- तुम हमारी बहन नहीं हो. कभी नहीं थी तुम हमारी, तुम बस हमारे बाप की वो गलती हो जिसे हम छिपा नहीं सकते.
तड़क थप्पड़ की आवाज ने बता दिया था की सूरजभान का गाल लाल हो गया होगा.
अंजू- तेरी तमाम गुस्ताखियों को आज तक मैंने माफ़ किया, पर आज इसी पल से तेरा मेरा रिश्ता ख़तम करती हूँ मैं. और मेरा वादा है तुझसे, अगर मेरा शक सही हुआ तो तेरी जिन्दगी के थोड़े ही दिन बाकी रह गए है. दुआ करना की तू शामिल ना हो मेरे दर्द में .
कुछ देर ख़ामोशी छाई रही और फिर मैंने गाड़ी चालू होते देखि . मैं तुरंत झाड़ियो में अन्दर को हो गया की कही रौशनी में मुझे न देख लिया जाए. कुछ देर मैं खामोश खड़ा सोचता रहा की अंजू के सामने जाऊ या नहीं .
ये बात अच्छी नहीं है भाई ऐसा मत करना आपके लिखते रहने से आपका साथ बना रहेगाइसके बाद मैं और प्रयास नहीं करूंगा बेशक मैं चाहता था कि मेरी अंतिम कहानी हवेलि हो पर शायद किस्मत मे नही उसे लिखना मैं दिल से चाहता था कि रूपाली की कहानी एक बार और ईन फोरम पर पढ़ी जाए
पर कहते है ना कि सब कुछ हमारे चाहने से थोड़ी ना होता है
Behtreen update#97
भाभी- कितना चाहते हो उसे.
मैं- जितना तुम भैया को.
भाभी ने मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया और बोली- निभा पाओगे उस से. उम्र के जिस दौर से तुम गुजर रहे हो कल को तुम्हारा मन बदल गया तो. मोहब्बत करना अलग बात है कबीर और मोहब्बत को निभाना अलग. तुम जिसे मंजिल समझ रहे हो वो ऐसा रास्ता है जिस पर जिन्दगी भर बस चलते ही रहना होगा. कभी सोचा है की किया होगा जब तुम्हारे भैया को मालूम होगा, जब राय साहब को मालूम होगा.
मैं- भैया को मैं मना लूँगा, और राय साहब को मैं कुछ समझता नहीं
भाभी- अच्छा जी , इतने तेवर बढ़ गए है , डाकन का ऐसा रंग चढ़ा है क्या.
मैं- जो है अब वो ही है .
भाभी- पुजारी से पूछा था मैंने कहता है कोई योग नहीं
मैं- उसके हाथो की लकीरों में मेरा नाम लिखा है , और कितना योग चाहिए पुजारी को .
भाभी- पर मेरा दिल नहीं मानता
मैं- दिल को मना लेंगे भाभी ,
“दिल ही तो नहीं मानता देवर जी ” भाभी ने अपनी गर्म सांसे मेरे गालो पर छोड़ते हुए कहा
मैं- भूख लगी है , कुछ दे दो खाने को .
भाभी- भैया को बुला लाओ मैं परोसती हूँ.
भाभी रसोई की तरफ बढ़ गयी मैं ऊपर चल दिया भैया के कमरे की तरफ. देखा भैया कुर्सी पर बैठे थे.
मैं- खाना नहीं खाना क्या
भैया- आ बैठ मेरे पास जरा
मैं वही कालीन पर बैठ गया .
मैं- क्या आप को मालूम है की सुनैना अंजू के लिए कितना सोना छोड़ कर गयी है .
भैया- क्या तू जानता है की मेरा छोटा भाई, जिसके कदमो में मैं दुनिया को रख दू, वो खेतो पर पसीना क्यों बहाता है .
मैं- क्योंकि मेरे पसीने की रोटी खा कर मुझे सकून मिलता है . मेरी मेहनत मुझे अहसास करवाती है की मैं एक आम आदमी हूँ , ये पसीना मुझे बताता है की मेरे पास वो है जो दुनिया में बहुत लोगो के पास नहीं है .
भैया- अंजू समझती है की वो सोना उसका नहीं है , वो जानती है की वो सोना अंजू को कभी नहीं फलेगा.
मैं-तो उस सोने की क्या नियति है फिर.
भैया- माटी है वो समझदारो के लिए और माटी का मोल मेरे भाई से ज्यादा कौन जाने है
मैं- दो बाते कहते हो भैया
भैया- सुन छोटे, कल से तू ज्यादा समय घर पर ही देना, ब्याह में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए .बरसों बाद हम कोई कारण कर रहे है .
मैं- जो आप कहे, पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ
भैया- हा,
मैं- ब्याह की रात पूनम की रात है
मैंने जान कर के बात अधूरी छोड़ दी.
भैया - तू उसकी चिंता मत कर , तेरा भाई अभी है . चल खाना खाते है भूख बहुत लगी है .
हम दोनों निचे आ गए. खाना खाते समय मैंने महसूस किया की भैया के मन में द्वंद है , शायद वो मेरी बात की वजह से थोड़े परेशान हो गए थे. मैं भी समझता था इस बात को . उस रात परेशानी होनी ही थी मुझको . पर मैंने सोच लिया था की मैं दिन भर रहूँगा और रात को खेतो पर चला जाऊंगा, यही एकमात्र उपाय था मेरे पास.
खाना खाने के बाद मैं चाची के पास आ गया . मैंने बिस्तर लगाया और रजाई में घुस गया . थोड़ी देर बाद चाची भी आ गयी . और मेरे सीने पर सर रख कर लेट गयी .
चाची - क्या सोच रहा है कबीर
मैं- राय साहब के कमरे में कोई औरत आती है रात को उसी के बारे में की कौन हो सकती है
चाची- शर्म कर , क्या बोल रहा है तू अपने पिता के बारे में
मैं - पिता है तो क्या उसे चूत की जरूरत नहीं
चाची- कुछ भी बोलेगा तू
मैं- मैंने देखा है पिताजी को उस औरत को चोदते हुए
चाची- बता फिर कौन है वो
मैं- चेहरा नहीं देख पाया.
मैंने झूठ बोला.
चाची- घर में इतना कुछ हो रहा है और मुझे मालूम नहीं
मैं- पता नहीं तेरा ध्यान किधर रहता है.
मैंने चाची का हाथ पकड़ा और निचे ले जाकर अपने लंड पर रख दिया.चाची ने मेरे पायजामे में हाथ डाल दिया और अपने खिलोने से खेलने लगी. मैंने चाची के चेहरे को अपनी तरफ किया और उसके होंठ चूसने लगा. आज की रात चाची की ही लेने वाला था मैं पर नसीब देखिये, बाहर से दरवाजा पीटा जाने लगा ये भाभी थी जो रंग में भंग डालने आ पहुंची थी .
हम अलग हुए और चाची ने दरवाजा खोला भाभी अन्दर आई और बोली- चाची , अभिमानु कही बाहर गए है मैं आपके पास ही सोने वाली हूँ. मैंने मन ही मन भाभी को कुछ कुछ कहा .मैं बिस्तर से उठा और बाहर जाने लगा.
भाभी- तुम कहाँ चले
मैं- कुवे पर ही सो जाऊंगा. वैसे भी अब इधर नींद कम ही आती है मुझे.
मैंने कम्बल ओढा और बाहर निकल गया चूत से ज्यादा मैं ये जानना चाहता था की भैया रात में कहा गए. मैंने एक नजर बाप के कमरे पर डाली जिसमे अँधेरा छाया हुआ था , सवाल ये भी था की बाप चुतिया कहा रहता था रातो को .
सोचते सोचते मैं पैदल ही खेतो की तरफ जा रहा था . पैर कुवे की तरफ मुड गए थे पर थोडा आगे जाकर मैंने रास्ता बदल दिया मैंने खंडहर पर जाने का सोचा. हवा की वजह से ठण्ड और तेज लगने लगी थी . मैंने कम्बल कस कर ओढा और आगे बढ़ा. थोडा और आगे जंगल में घुसने पर मुझे कुछ आवाजे आई. आवाज एक औरत और आदमी की थी . इस जंगल में इतना कुछ देख लिया था की अब ये सब हैरान नहीं करता था.
झाड़ियो की ओट लिए मैं उस तरफ और बढ़ा. आवाजे अब मैं आराम से सुन पा रहा था .
“मुझे जो चाहिए मैं लेकर ही मानूंगा, तुम लाख कोशिश कर लो रोक नहीं पाओगी मुझे ”
“मुझे रोकने की जरुरत नहीं तुमको, तुम्हारे कर्म ही तुमको रोकेंगे. ” औरत ने कहा
इस आवाज को मैंने तुरंत पहचान लिया ये अंजू थी पर दूसरा कौन था ये समझ नहीं आया फिर भी मैंने कान लगाये रखे.
“तुम कर्मो की बात करती हो , हमारे खानदान की होकर भी तुमने एक नौकर का बिस्तर गर्म किया , घिन्न आती है तुम पर मुझे ”
“जुबान संभाल कर सूरज , ” अंजू ने कहा.
तो दूसरी तरफ सूरजभान था जो अपनी बहन से लड़ रहा था .
सूरजभान- शुक्र करो काबू रखा है खुद पर वर्ना न जाने क्या कर बैठता
अंजू- क्या करेगा तू मारेगा मुझे, है हिम्मत तुजमे तू मारेगा मुझे. आ न फिर किसने रोका है तुझे .
सूरज- मारना होता तो कब का मार देता पर तुम्हारे गंदे खून से मैं अपने हाथ क्यों ख़राब करू.
अंजू- मेरा सब्र टूट रहा है सूरज. मुझे मजबूर मत कर की मैं भूल जाऊ की तू मेरा भाई है .
सूरज- तुम हमारी बहन नहीं हो. कभी नहीं थी तुम हमारी, तुम बस हमारे बाप की वो गलती हो जिसे हम छिपा नहीं सकते.
तड़क थप्पड़ की आवाज ने बता दिया था की सूरजभान का गाल लाल हो गया होगा.
अंजू- तेरी तमाम गुस्ताखियों को आज तक मैंने माफ़ किया, पर आज इसी पल से तेरा मेरा रिश्ता ख़तम करती हूँ मैं. और मेरा वादा है तुझसे, अगर मेरा शक सही हुआ तो तेरी जिन्दगी के थोड़े ही दिन बाकी रह गए है. दुआ करना की तू शामिल ना हो मेरे दर्द में .
कुछ देर ख़ामोशी छाई रही और फिर मैंने गाड़ी चालू होते देखि . मैं तुरंत झाड़ियो में अन्दर को हो गया की कही रौशनी में मुझे न देख लिया जाए. कुछ देर मैं खामोश खड़ा सोचता रहा की अंजू के सामने जाऊ या नहीं .