#94
अन्दर के नज़ारे को देख कर मेरे साथ साथ सरला की भी आँखे फटी की फटी रह गयी.
“अयाशी खून में दौड़ती है ” मेरे कानो में नंदिनी भाभी की आवाज गूँज रही थी .
“ये तो .............. ” मैंने सरला के मुह पर हाथ रखा और उसे चुप रहने को कहा. जरा सी आवाज भी काम बिगाड़ सकती थी. अन्दर कमरे में बिस्तर पर रमा नंगी होकर राय साहब की गोद में बैठी थी , रमा के गले में सोने की चेन, कमर पर तगड़ी और हाथो में चुडिया थी,एक विधवा को सजा कर अपनी ख्वाहिश पूरी करने वाले थे राय साहब. बाप का ये रूप देख कर मियन समझ गया था की भाभी ने सच कहा था चंपा को भी चोदता है ये.
मैं और सरला आँखे फाड़े राय साहब और रमा की चुदाई देख रहे थे, तभी मेरी नजर मंगू पर पड़ी जो वही एक कोने में बैठा था . खुद चुदाई करना और किसी दुसरे को चुदाई करते हुए देखना अपने आप में अलग सी फीलिंग थी . पर मैं खिड़की से हटा नहीं , बेशर्मो की तरफ अपने बाप की रासलीला देखता रहा .
जब राय साहब का मन भर गया तो वो बिस्तर से उठे और रमा के हाथ में नोटों की गड्डी देकर वहां से चले गए. उनके जाते ही मंगू ने अपनी धोती खोली और रमा पर चढ़ गया . रमा ने जरा भी प्रतिकार नहीं किया मंगू का और मैं खिड़की से हट गया. ऊपर दिमाग में दर्द हो गया था निचे लंड में ,
आखिरकार सरला ने चुप्पी को तोडा.
सरला- कुंवर, ये तो मामला ही उल्टा हो गया .
मैं- तूने जो भी देखा ये बात बाहर नहीं जानी चाहिए.
सरला- भरोसा रखिये.
मैं- मंगू पिताजी के लिए काम कर रहा है , उसे तोडना जरुरी होगा .
सरला- मैं पूरी कोशिश करुँगी उस से बाते निकलवाने की
मैं- रमा को प्रकाश भी चोद रहा था पिताजी भी . कुछ तो गहराई की बात है .
मेरे दिमाग में अचानक से ही बहुत सवाल उभर आये थे पर सरला के सामने जाहिर नहीं करना चाहता था. पेड़ो के झुरमुट के पास बैठे हम दोनों अपने अपने दिमाग में सवालो का ताना बुन रहे थे .
मैं- तुझे घर छोड़ आता हूँ
सरला- घर कैसे जाउंगी, घर पर तो कह आई न की छोटी ठकुराइन के पास रुकुंगी आज.
मैं- कुवे पर चलते है फिर.
वहां पहुँचने के बाद , हम दोनों बिस्तर में घुस गए. बेशक मैं नहीं करना चाहता था पर ठण्ड की रात में सरला जैसी गदराई औरत मेरी रजाई में थी जो खुद भी चुदना चाहती थी . सरला ने अपना हाथ मेरे लंड पर रखा और उसे सहलाने लगी.
मैं- सो जा न
सरला- अब मौका मिला है तो कर लो न कुंवर.
मुझे चाचा पर गुस्सा आता था की भोसड़ी वाले ने इन औरतो में इतनी हवस भर दी थी की क्या ही कहे. खैर नजाकत तो ये ही थी . मैंने सरला के होंठ चूमने शुरू किये तो वो भी गीली होने लगी. जल्दी ही हम दोनों नंगे थे और मेरा लंड सरला के मुह में था . थूक से सनी जीभ को जब वो मेरे सुपाडे पर रगडती तो मैं ठण्ड को आने जिस्म में घुसने से रोक ही नहीं पाया.
उसके सर को अपने लंड पर दबाते हुए मैं पूरी तल्लीनता से इस अजीब सुख का आनंद उठा रहा था . सरला की ये बात मुझे बेहद पसंद थी की वो जब चुदती थी तो हद टूट कर चुदती थी .मेरे ऊपर चढ़ कर जब वो अपनी गांड को हिलाते हुए ऊपर निचे हो रही थी . मेरे सीने पर फिरते उसके हाथ उफ्फ्फ क्या गर्म अहसास दे रहे थे. सरला की आँखों की खुमारी बता रही थी की वो भी रमा और राय शाब की चुदाई देख कर पागल हो गयी थी.
उस रात मैंने और सरला ने दो बार एक दुसरे के जिस्मो की प्यास बुझाई. पर मेरे मन में एक सवाल घर जरुर कर गया था की अगर रमा को राय सहाब चोदते थे तो फिर जरुर वो कबिता और सरला को भी पेलते होंगे.
मैं- क्या राय साहब ने तुझे भी चोदा है भाभी
सरला- नहीं . मुझे तो आज ही मालूम हुआ की राय सहाब भी ऐसे शौक करते है .
राय साहब सीधा ही चले गए थे रमा को चोद कर कुछ बातचीत करते उस से तो शायद कुछ सुन लेता मैं.
मै- कल से तू पूरा ध्यान मंगू पर रख भाभी, उस से कैसे भी करके रमा और राय साहब के बीच ये सम्बन्ध कैसे बने उगलवा ले.
सरला- तुम्हारे लिए कुछ भी करुँगी कुंवर.
मैं- कहीं राय साहब और चाचा के बीच झगडा इस बात को लेकर तो नहीं था की चाचा को मालूम हो गया हो की उनकी प्रेमिकाओ का भोग पिताजी भी लगाना चाहते थे .
सरला- नहीं ये नहीं हो सकता , चूत के लिए दोनों भाई क्यों लड़ेंगे, और राय साहब का ये रूप सिर्फ मैंने और तुमने देखा है , ये मत भूलो की गाँव में और इलाके में राय साहब को कैसे पूजते है लोग. उनके दर से कोई खाली हाथ नहीं जाता. सबके सुख दुःख में शामिल होने वाले राय साहब की छवि बहुत महान है .
मैं- पर असली छवि तेरे सामने थी
सरला- अगर मैंने देखा नहीं होता तो मैं मानती ही नहीं इस बात को.
एक बात तो माननी थी की चाचा ने इन तीन औरतो को कुछ सोच कर ही पसंद किया होगा तीनो हद खूबसूरत थी, जिस्मो की संरचना ऐसी की चोदने वाले को पागल ही कर दे. कविता, रमा और सरला हुस्न का ऐसा नशा को चढ़े जो उतरे ना.
खैर, सुबह समय से ही हम लोग गाँव पहुँच गए. घर पर आने के बाद मैंने हाथ मुह धोये और देखा की भाभी रसोई में थी मैं वहीं पर पहुँच गया .
मैं- जरुरी बात करनी है
भाभी- हाँ
मैं- आपने सही कहा था पिताजी और चंपा के बारे में
भाभी- मुझे गलत बता कर मिलता भी क्या
मैं-समय आ गया है की अब आप बिना किसी लाग लपेट के इस घर का काला सच मुझे बताये.
भाभी- बताया तो सही की राय साहब और चंपा का रिश्ता अनितिक है
मैं- सिर्फ ये नहीं और भी बहुत कुछ बताना है आपको
भाभी- और क्या
मैं- मेरे शब्दों के लिए माफ़ी चाहूँगा भाभी , पर ये मुह से निकल कर ही रहेंगे.
भाभी देखने लगी मुझे.
मैं- जंगल में मैंने प्रकाश को एक औरत के साथ चुदाई करते हुए देखा. फिर अंजू मुझे मिली अपने कुवे वाले कमरे पर , अंजू ने कहा की वो ही थी परकाश के साथ , पर सच में उस रात रमा थी प्रकाश के साथ ,
चुदाई सुन कर भाभी के गाल लाल हो गए थे. मैंने उनको तमाम बात बताई की कैसे पिताजी कल रात रमा को चोद रहे थे फिर मंगू ने चोदा उसे.
मेरी बात सुनकर भाभी गहरी सोच में डूब गयी .
मैं - कुछ तो बोलो सरकार,
भाभी- सारी बाते एक तरफ पर अंजू और राय साहब के भी अनैतिक सम्बन्ध होंगे ये नहीं मान सकती मैं .
मैं- क्यों भाभी,
भाभी- क्योंकि................................