• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Sanju@

Well-Known Member
5,007
20,093
188
#46

मैं जानता था की दोनों के बीच जो भी हुआ है मंदिर में वो आने वाले वक्त में मेरे लिए मुश्किलें पैदा करेगा. वहां से मैं सीधा नहर पर पहुंचा जहाँ भैया पहले से मोजूद थे और टूटे हिस्से की पक्की मरम्मत करवा रहे थे. मैंने पाया की मेरी सब्जियों में पानी भर गया था . सरसों भी नुक्सान में थी . मेरी आँखों में आंसू भर आये. किसान की मेहनत उसकी फसल होती है जो उसके सपने पूरी करती है . और हमारी फसल फिलहाल तो बर्बाद ही समझो .

गुस्सा था पर किस पर जोर चलाते . मैं खड़ा खड़ा सोच रहा था की अब क्या करेंगे की भैया को देखा मेरी तरफ आते हुए .

भैया- क्या सोच रहा है छोटे

मैं- अपनी बर्बादी देख रहा हूँ

भैया- दिल छोटा मत. सब ठीक होगा

मैं- उम्मीद कर सकता हूँ पर एक बात समझ नहीं आई की अचानक से नहर टूटी कैसे.

भैया- मैं भी यही सोच रहा हूँ . फिलहाल पानी सूखने का इंतज़ार करते है . सुबह से काम करते करते अकड़ हो गयी है पीठ में तू चल रहा है या रुकेगा .

मैं- यही रहूँगा

भैया के जाने के बाद मैंने चारपाई निकाली और उस पर लेट गया. मन में अजीब ख्याल आ रहे थे . आँख खुली तो आसमान में काला अँधेरा छाया हुआ था .झींगुरो की आवाजे आ रही थी . मैंने ठण्ड महसूस की देखा की मैं बिना किसी कम्बल, रजाई के ही सोया हुआ था . उठ कर मैंने मुह धोया . और वहां से चल दिया.

चलते चलते मैं दोराहे पर पहुंचा जहाँ से एक रास्ता निशा की तरफ जाता था और एक गाँव की तरफ . कायदे से मुझे गाँव जाना चाहिए था पर मेरे पैर काले मंदिर की तरफ बढ़ गए. घने पेड़ो- झाड़ियो के बीच उस ठिकाने को पहली नजर में देखना अपने आप में अनोखा ही था . ऊपर से आज अँधेरा भी कुछ ज्यादा ही था .

खैर, जब मैं वहां पहुंचा तो देखा की आंच जल रही थी निशा मांस के टुकड़े भून रही थी . मुझे देख कर उसने पास आने का इशारा किया

निशा- सही समय पर आया तू, ताजा खरगोश का मजा ले

मैं- रहने दे .

निशा- बैठ तो सही .

निशा ने कुछ टुकड़े मुझे दिए मैंने एक दो मुह में भर लिए

निशा- कच्चे कलेजे का तो मजा ही अलग है

मैं- क्या बात हुई आज भाभी से

मैंने निशा के मन को टटोला

निशा- कुछ नहीं .तेरी भाभी चाहती है की मैं तेरा साथ छोड़ दू.

मैं- तूने क्या कहा फिर

निशा- मैं क्या कहती , मैंने कभी किया ही नहीं तेरा साथ .

मैं- अच्छा जी . तो तेरे मेरे बीच कुछ नहीं है

निशा- एक डाकन और मानस के बीच क्या कुछ हो सकता है कबीर

मैं- कम से कम हम दोस्त तो है

निशा- दोस्त.... मैं बहुत सोचती हूँ इस बारे में .

मैं- और तेरी सोच क्या कहती है

निशा- कबीर. वैसे तेरी भाभी सच ही तो कहती है तेरी मेरी दोस्ती कैसे हो .

मैं- ये तो नसीब जाने अपना . तू मिली मैं मिला सिलसिला हुआ मुलाकातों का

निशा- यही तो सोचती हूँ की तुझे अब दूर कैसे करू

मैं- दूर करने की जरूरत नहीं

निशा- पास भी तो नहीं आ सकती

मैं-शायद तक़दीर ने हमारे भाग में यही लिखा हो. उसका शायद यही इशारा हो .

निशा- हम दोनों की सीमाए है . और फिर ये जो नज्दिकिया बढ़ रही है न ये हानिकारक साबित होंगी हम दोनों के लिए . मन बड़ा चंचल होता है कबीर, मन तमाम दुखो का कारण है . मैं मेरी तनहइयो में तुझे सोचती हूँ . तू मेरा ख्याल करता होगा. जिस तरह से हम एक दुसरे की परवाह करने लगे है मुझे डर है कबीर.

मैं- कैसा डर

निशा- यही की एक दिन तू मेरे सामने आकर खड़ा हो जायेगा कहेगा की तू इस डाकन से प्रेम करने लगा है .

निशा ने जब ये कहा तो मेरा दिल किया की आज अभी मैं उसे बता दू की मैं करने लगा हूँ प्रेम उस से

मैं- तब की तब देखेंगे निशा

निशा- ये वक्त अपनी स्याही से न जाने क्या लिख रहा है पर इतना जानती हूँ की आने वाले तूफान को रोकना होगा.

मैं- तू खुद को मुझसे जुदा नहीं कर सकती मैं करने ही नहीं दूंगा

निशा- तू समझ तो सही

मैं- तू समझ निशा, ये आंच जो तेरे मेरे दरमियान जल रही है . कहते है अग्नि से पवित्र कुछ नहीं मैं इसे ही साक्षी मान कर कहता हूँ कोई भी , ये दुनिया ये नियम मुझे तुझसे जुदा नहीं कर पायेंगे. जब तक तू मेरा हाथ थामे रहेगी मैं लड़ जाऊंगा इस ज़माने से . कितने ही पहरे लगे तेरा मेरा रिश्ता और गहरा होता जायेगा.

निशा- तू समझता क्यों नहीं तेरा मेरा साथ असंभव है

मैं- तू वो ही निशा है न जो भाभी के सामने इतनी बड़ी बड़ी बाते कर रही थी मेरे लिए तो फिर मेरे सामने इस सच को क्यों नहीं मानती

निशा- क्योंकि मैं उस पथ पर नहीं चल पाउंगी जिसकी मंजिल के तू सपने संजो रहा है .

मैं- तो मत सोच इस बारे में . दोस्त है दोस्ती का हक़ तो दे मुझे कभी तेरा दिल मोहब्बत के लिए धडके तो बताना वर्ना नसीब के सहारे तो है ही

मेरी बात सुन कर निशा मुस्कुरा पड़ी.

निशा- एक डाकन से मोहब्बत करने की सोच रहा है तू .

मैंने निशा की कमर में हाथ डाला और उसको अपने सीने से लगा लिया.

“मोहब्बत करने लगा हूँ तुझसे ” मैंने कहा और अपने होंठ निशा के लबो पर रख दिए.

“छोड़, छोड़ मुझे ” पहली बार मैंने निशा की आवाज को लरजते हुए महसूस किया .

निशा- मत दिखा मुझे ये सपने . रहने दे मुझे इन अंधियारों में . इस डाकन , इस जोगन के लिए कोई मायने नहीं है इन सपनो के

मैं- मैं कोई सपना नहीं हूँ जाना, मैं वो हकीकत हूँ जो तू देख रही है .

निशा- मैं आज के बाद नहीं आउंगी यहाँ पर छोड़ जाउंगी इस जगह को

मैं- बिलकुल ऐसा कर सकती है तू , पर जहाँ भी जायेगी मेरे दिल का एक हिस्सा अपने साथ ले जाएगी . तू मुझे अपनी नजरो से दूर कर सकती है पर मेरे ख्याल को कैसे निकालेगी अपने दिल से . मैं हर पल तुझे याद आऊंगा.

निशा- यही तो मैं नहीं चाहती. तू मुझसे वादा कर की बस दोस्ती ही रहेगी मोहब्बत नहीं होगी .

मैं- मोहब्बत हो चुकी है जाना, तुझसे मोहब्बत हो चुकी है .

निशा- मैं इस लायक नहीं हूँ . मैं नहीं चल पाऊँगी तेरे साथ इस सफ़र पर .

निशा ने मेरे माथे को चूमा . उसकी आँखों से कुछ आंसू मेरे चेहरे पर गिरे.

निशा ने मेरे जख्म को देखा और बोली- आज अमावस की रात है , कल से चांदनी शुरू होगी . कुछ दिन बड़े मुश्किल होंगे और पूनम के चाँद को तू यहाँ आ जाना पूरी रात यही रहना रात मुश्किल होगी पर बीत जायेगी. जब जोर न चले तो इस तालाब का आसरा लेना . पर इस हद में ही रहना . एक खूबसूरत ख्वाब समझ कर भुला देना मुझे.

निशा ने आंच बुझाई और बोली- मुझे जाना होगा कबीर.

मैं- तू छोड़ कर जा रही है मुझे

निशा- जाना पड़ेगा मेरे दोस्त

मैंने दौड़ कर निशा को गले लगा लिया. मैं रोने लगा . वो आहिस्ता से मेरे आगोश से निकल गयी .

निशा- ये ठिकाना तेरे हवाले छोड़ कर जा रही हूँ . देख करना इसकी

मैं- मत जा

वो मुड़ी , मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई और अंधेरो की तरफ बढ़ गयी . बहुत देर तक मैं वही बैठे रहा और जब मैं वापिस गाँव के लिए चला तो दिल का एक टुकड़ा कम सा लगा मुझे.
नहर के टूटने से कबीर की साल भर की मेहनत खराब हो गई है एक किसान जो अपनी पूरी मेहनत लगाकर खेती करता है और अगर वही खेती अच्छी होती हैं तो उसे बहुत खुशी होती हैं लेकिन अगर उसकी फ़सल खराब हो जाए तो बहुत दुःख होता है
कबीर ने निशा को बता दिया की उसको प्यार हो गया है प्यार अपनी राह खुद चुन लेता है उसपर किसी का जोर नही चलता है ये मन चंचल होता है इसे समझाना आसान नहीं है आज इजहार हुआ इकरार भी होगा आज चाहे निशा कबीर को छोड़कर चली गई है लेकिन उसे लौट कर आना ही होगा तब तक इंतजार करते हैं वक्त का.....

images-1
 
Last edited:

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
20,899
44,581
259
की तभी गजब हो गया. बिजली की रौशनी से मेरी आँखे चुंधिया गयी. और उसी एक पल में उस हमलावर ने मुझे धक्का दिया और ऐसे गायब हो गया जैसे की वो था ही नहीं. एक बार फिर मैं खाली हाथ रह गया. गुस्से से मैंने धरती पर लात मारी . पर ये अपनी खीज मिटाना ही था . इस बार मैंने लगभग पकड़ ही लिया था उसको.

“कब तक बचेगा तू ” मैंने खुद को दिलासा दिया. और एक महत्वपूर्ण बात और मेरे मन में आई की आज वो कुछ कमजोर सा लगा मुझे. खैर, सुबह मुझ शहर जाना था चंपा के साथ. मैं तैयार हो रहा था की मंगू आ गया. मैंने देखा वो कुछ लंगडाकर चल रहा था .

मैं- क्या हुआ बे

मंगू- भाई कल छप्पर की छत बाँध रहा था तभी गिर गया तो चोट लग आगयी

मैंने गौर किया जब मैंने उस हमलावर को बैलगाड़ी के पहिये पर फेंका था तो उसे भी ऐसी ही चोट लगी थी. तो क्या मंगू हो सकता था वो . मेरे दिमाग में शक सा होने लगा था .

मैं- तो रात को किसने कहा था छत बाँधने के लिए

मंगू- रात को कहा मैं तो दोपहर में कर रहा था ये काम

हो सकता था की वो झूठ बोल रहा हो . हम बात कर ही रहे थे की मैंने देखा भैया-भाभी कही जा रहे थे .

मैं- सुन मंगू . मुझे मालूम हो गया है की नहर की पुलिया कैसे टूटी थी . आगे से हमें इंतजाम करना होगा की यदि ऐसी कोई भी घटना हो तो पानी खेतो तक न आ सके.

मंगू- हम क्या कर सकते है . इतने पानी को कैसे रोका जाए

मैं कुछ न कुछ तो उपाय होगा ही .

मंगू- भाई. मैं देख रहा हूँ की पिछले कुछ दिनों से तू कुछ उखड़ा उखड़ा सा रहता है . मुझसे भी ठीक से बात नहीं करता . क्या कोई भूल हुई मुझसे

मैं- मंगू तूने मुझे बताया नहीं कविता के बारे में .

मेरी बात सुन कर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया .उसने एक गहरी साँस ली और बोला- भाई . मैं क्या बताता तुझे. कैसे बताता . लाली का हाल हम सबने देखा ही था न. किसी को भी अगर मालूम हो जाता तो मुझे और कविता को भी ऐसे ही लटका दिया जाता.

मैं- क्या तूने अपने भाई को इस लायक भी नहीं समझा

मंगू- अपनी जान से ज्यादा तुझे मानता हु इसलिए तुझसे छिपाई क्योंकि जानता हु जो लाली जो हमारी कुछ नहीं लगती थी उसके लिए गाँव के सामने अड़ गया मेरे लिए न जाने तू क्या कर जाता. इसी डर से मैं तुझे नहीं बताया भाई .

मुझे समझ नही आ रहा था की मैं मंगू की बात को सही समझू या फिर चंपा की बात को . आख़िरकार मैंने भांडा फोड़ने का निर्णय कर ही लिया .

मैं- कुछ और ऐसा है जो तुझे लगता है की मुझे बताना चाइये

मंगू कुछ नहीं बोला उसने अपना सर झुका लिया. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- तू मेरा भाई है . मेरा दोस्त मेरा सब कुछ है तू . एक बात हमेशा याद रखना तेरे साथ हमेशा मैं खड़ा हूँ . खड़ा रहूँगा.

मंगू मेरे गले लग गया और बोला- मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी कबीर

मैं- जानता हु ,और यही समय है भूल को सुधारने का जो हुआ उसे वापिस नहीं किया जा सकता पर आगे से वैसा न हो तो ही हम सब के लिए बेहतर होगा. फिलहाल खेतो के लिए मजदूरो का इंतजाम कर जितने मिले उतने बेहतर . दिन में ही काम के लिए तैयार करना उनको. मुझे खेत तैयार चाहिए जल्दी से जल्दी .

मंगू ने हाँ में सर हिलाया. उसके बाद हम दोनों ने खाना खाया और फिर मैं चंपा के साथ शहर के लिए निकल गया. वहां हम उसी डॉक्टर के पास गए . चूँकि वो जानता था मुझे इसलिए पैसो के जोर से मैंने उसे चंपा के गर्भपात के लिए मना लिया. उसने अपना काम कर दिया और चंपा को कुछ बेहद जरुरी हिदायते भी दी. जब हम वहां से निकल रहे थे की अचानक से भाभी वहां आ टपकी. उसके पीछे पीछे भैया भी थे.

भाभी भी हम लोगो को वहां देख कर चौंक गयी.

भाभी- तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो .

चंपा भाभी को देख कर बुरी तरह से घबरा गयी . चूँकि उसने अभी अभी गर्भपात करवाया था कमजोरी थी और फिर एक औरत दूसरी को भांप ही लेती है .

मैं- शहर आये थे . मैंने सोचा की डॉक्टर साहब से अपना कन्धा भी दिखा देता हूँ.

भैया- ये अच्छा किया तुमने. वैसे यहाँ आने का इरादा था तो हमारे साथ ही आ जाते.

भाभी की नजरे चंपा पर ही जमी थी .पर भैया की वजह से वो कुछ कह नहीं पा रही थी .

भैया- तुम लोग बाहर बैठो हम डॉक्टर से मिलके आते है फिर साथ ही चलेंगे

मेरे लिए एक नयी मुसीबत हो गयी थी . खैर हम बाहर आये.

मैं- चंपा सुन. भाभी को शक हो गया है चाहे कुछ भी हो जाये तू ये मत कबूल करना की हम यहाँ किसलिए आये थे . वर्ना ऐसा तूफान आएगा जो सब कुछ बर्बाद कर देगा.

चंपा- किस्मत ही फूटी है कबीर.

मैं- माँ चुदाय किस्मत . मैं बोल रहा हूँ वो समझ घर जाते ही वो तेरा रिमांड लेगी. वो तुझको तंग करेगी क्योंकि अभी तू कमजोरी महसूस कर रही है वो तुझसे भारी काम करवाएगी. जितना मैं उसे समझता हूँ तुझे देखते ही वो जान गयी है की हम यहाँ किसलिए आई है . और अगर तू टूट भी जाए तो तू अपने बचाव के लिए भाभी के आगे सारा दोष मुझ पर डाल देना. जब कोई रास्ता न बचे तो तू कहना की मैंने जबरदस्ती की थी तेरे साथ .

चंपा- इतनी बेगैरत नहीं हूँ मैं की तेरा यूँ इस्तेमाल करू मैं

मैं- समझ जा . क्या मालूम ये घडी टल जाए वर्ना तेरा हाल भी लाली जैसा ही होगा.



मैं जानता था की भाभी पक्का यही सोचेंगे की मैंने चंपा को पेल दिया . क्योंकि वो शक में इतनी अंधी हो चुकी थी . खैर उन दोनों के आने के बाद हम लोग भैया की गाड़ी में बैठे और घर आ गए. पर भाभी ने वैसा कुछ भी नहीं किया जो मैं सोच रहा था . शाम तक सब ठीक ही था . शाम को चाची ने मुझसे कहा की बहुरानी तुझे बुला रही है , अपने कमरे में .

मैं- मुझसे क्या काम है

चाची- वो ही जाने

मैं उठ कर भाभी के कमरे में गया .

भाभी- चोट कैसी है तुम्हारी

मैं- जी ठीक है

भाभी- मेरे प्यारे देवर जी , चंपा को ऐसा कौन सा रोग हो गया था की तुम उसे सीधा बड़े डॉक्टर के पास लेकर गए .

मैं- ये सवाल जवाब किस लिए भाभी , हम दोनों जानते है इस बात को

भाभी- उफ्फ्फ ये बेशर्मी तुम्हारी जानते हो मैंने अगर तुम्हारे भैया को बता दिया तो क्या होगा

मैं- हम को किसी का डर नहीं

भाभी- तुम डर की बात करते हो मैं चाहूंगी न तो तू थर थर कांप जाओगे.

मैं- चाहे भैया को बता दो. पिताजी को बता दो चाहे सारे गाँव में ढोल बजा दो

अगले ही पल भाभी की उंगलिया मेरे गाल पर छप गयी.

भाभी- उसको तो मैं क्या दोष दू जब हमारा ही खून गन्दा है . मेरी नजरो में गिर गए हो तुम लोग . अरे तुमको अपनी औलाद जैसे पाला मैंने और तुम मेरे ही घर में कचरा फैला रहे हो. जवानी इतनी ही मचल रही थी तो एक बार मुझसे कह तो दिया होता ब्याह करवा देती तुम्हारा . पर ये मत समझना की इस बात को मैं दबा दूंगी. तुम दोनों की खाल उतारूंगी मैं.

“मैं हाजिर हूँ मोहब्बत की सजा पाने को ” मैंने कहा और अगले ही पल भाभी ने भैया की बेल्ट उठाई और मारने लगी मुझे......................
भाभी तो बड़ी अविश्वासी निकली, अपनी ही परवरिश पर भरोसा उठ गया? वो भी तब जब उसने अपने दिल का हाल तक बता ही नही निशा से मिलवा भी दिया।

वैसे कबीर की चुप्पी उस पर भरी पड़ रही है, और उसको अब इससे निजात पानी चाहिए।

चंपा, मंगू कोई भी विश्वास के काबिल नही है। मुझे तो लगता है अभिमन्यु ही कुछ कर सकता है अब, क्योंकि जैसा भी है वो कम से कम कबीर पर पूरा विश्वास करता है।
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,914
15,064
159
Dono hi updates behad umda he Fauzi Bhai,

Katil hath to aaya fir bhi Kabir use pakad na saka........ Mangu ka character kaisa bhi ho lekin wo katil nahi he, ye mera sochna he.......

Kabir ne Champa ka abortion to karwa diya..... lekin Abhimanyu aur Bhabhi bhi usi doctor ke pass pachuch gaye.........

Kabir ka tyag aur Champa ke sath dosti ka samarpan gazab ka he............. itna bada ilazam apne sar par le liya ek baar bhi bina soche.......

Bhabhi bhi alag hi chutiyape ki shikar he............. har bar yahi kehti he ki Kabir mene tujhe apni aulad ki tarah pala he......... ek Maa ki tarah......... phir bhi ye apne bachce ko itna bhi nahi janti ki wo aisa kaam kabhi bhi nahi kar sakta..... har baat par shaq.........

Keep posting bhai
 

brego4

Well-Known Member
2,857
11,147
158
story me kabir ke liye sabhi rsate close hi nazar aa raha hai and above all bhabhi bhi uske peeche padi hai

mangu might have accepted his past unethical relations but still he is not out of doubt

most curious role is of bhabhi except some inititial few updates uska role bahut intriguing type hai always coming in the way of even if its her love for kabir this looks too much obsessive

Nisha jaisa interest kisi aur chrachter mein nahi rehta this is highlight of this story may be because such love story we are reading for the first time
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,587
88,519
259
कहानी में हीरो फिर से कमज़ोर बेबस है अगर सजा बेक़सूर को मिलनी है तो क़सूरवार को क्यों नहीं ?

सुखी चुत वाली भाभी का रोल बहुत नकरात्मक है उसे अपने रिश्ते पर कोई विश्वास नहीं आँखों देखा हमेशा सच नहीं होता
बेबस नहीं है भाई अगले अपडेट मे बहुत कुछ clear होगा
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,587
88,519
259
चम्पा का किरदार अब कुछ लंबे समय के लिए संदेह के घेरे में रहने वाला है। यदि कोई इंसान एक दफा असत्य का दामन थाम ले तो बाद में उसके द्वारा कहा गया सत्य भी स्वीकार्य नहीं होता। चम्पा ने जो इल्ज़ाम मंगू पर लगाया, वो भी सत्य था या नहीं, कोई नहीं जानता। सर्वप्रथम, चम्पा एक लंबे समय तक कबीर से छुपाती रही की उसके अपने ही सगे भाई से अनैतिक संबंध हैं (यदि सचमें हैं तो), फिर अचानक ही बिना किसी बात के उसने कबीर से ये कह भी दिया। कोई छोटी – मोटी बात तो थी नहीं ये, हां यदि कबीर उसे रंगे हाथों पकड़ लेता तो बात अलग होती, परंतु यहां ऐसा कुछ भी नहीं था।

खैर, फिर जब चम्पा पर हमला हुआ, तब भी उसने कबीर से असत्य कहा की वो मंगू के पीछे गई थी। अंत में उसका गर्भवती होने का खुलासा, यदि ये बात खुली तो सीज तौर पर इस अजन्मे बच्चे का बाप, कबीर को घोषित कर दिया जाएगा, भाभी की कृपा से। मुझे इसपर भी संदेह है की ये बच्चा मंगू का है भी या नहीं, चम्पा का क्या पता और किस – किस से नाता हो, और जाने कितने ही रहस्य वो छुपाए हुए हो? परंतु एक बात तो पक्की है की चम्पा भी भरोसे के काबिल नहीं है, और निशा की वो बात “तू सबका, तेरा कोई नहीं", वो बिलकुल ही सत्य है, ऐसा प्रतीत हो रहा है।

कबीर ने अभिमानु से नोटों की गड्डी ली है, भाभी को जब इस बारे में पता चलेगा, निश्चित ही उसका शक भी कबीर पर और बढ़ जाएगा। खैर, अब चम्पा की बेवकूफी अथवा मंगू के वहशीपन का नतीजा उस निर्दोष को भोगना होगा जो अभी तक संसार में आया भी नहीं है। बहरहाल, क्या ये सब जो हो रहा है, वो शेखर के साथ अन्याय नहीं? वैसे तो मुझे नहीं लगता की चम्पा का ब्याह हो पाएगा शेखर के साथ, परंतु यदि होता है तो भविष्य में हम शेखर को भी एक खलनायक के रूप में खड़ा देखेंगे।

भाभी का किरदार मेरी समझ से परे है। कबीर की परवरिश की है, उसे मां की तरह पाला है, उसपर अपना हक भी समझती है, परंतु कबीर पर विश्वास नहीं है। गांव में हो रही हत्याओं से बेशक कबीर जुड़ा ही रहा है, कभी उसका किसी की लाश के पास होना, तो कभी उसके सामने ही हत्या होना, परंतु यदि भाभी को अपनी ही परवरिश और संस्कारों पर एतबार नहीं है, तो मुझे नहीं लगता की उन बातों का कोई भी तात्पर्य है, को उसने निशा से कही। अवश्य ही भाभी से जुड़ा कोई रहस्य भी भविष्य में हमारे सामने आ सकता है।

अभिमानु का सूरजभान से माफी मांगना भी हैरान कर गया, देखना होगा की कबीर इस बात का सत्य कैसे ढूंढेगा। सूरजभान को अब समझ आ गया होगा की दारा की हत्या कबीर ने ही की था, परंतु लगता नहीं की वो अपने झूठे अहंकार से निकल पाएगा। अवश्य ही वो पुनः कबीर से पंगा लेने का प्रयास करेगा, और तब क्या होता है, ये देखना रोचक रहेगा। वैसे तो कबीर की फसल बर्बाद कर वो अपनी कब्र खोद ही चुका है।

निशा का जाना हैरान कर गया, परंतु इस बार को लेकर मैं आश्वस्त हूं की वो भाभी के कटु वचनों की वजह से नहीं गई है। पूर्णमासी की रात निकट है, और शायद तब निशा का आगमन दोबारा होगा कहानी में, देखते हैं की उसके अचानक से चले जाने का क्या प्रयोजन है। रही बात उस आदमखोर की तो अब इंसानों को छोड़ वो मवेशियों के पीछे पड़ चुका है, कबीर के हत्थे तो चढ़ गया है वो परंतु लगता है की एक बार फिर कबीर के हाथ कुछ नहीं लगने वाला।

निशा का जाना, भाभी की बातें, राय साहब की फटकार, चम्पा के खुलासे, फसल का बर्बाद होना और अब सूरजभान... कबीर पर चारों तरफ से परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ा है, देखना रोचक रहेगा की वो कैसे खुद को इस भंवर से बाहर निकालेगा, और क्या वो इस रहस्य से पर्दा उठा भी पाएगा या नहीं।

सभी भाग बहुत ही खूबसूरत थे भाई। कहानी निरंतरता के साथ आगे बढ़ रही है, कहीं भी लय खोटी हुई तो नहीं दिखाई दी है अभी तक। कहानी के नायक के सामने अनेकों विपरीत परिस्थितियां खड़ी हो गईं हैं, और निसंदेह, ऐसे ही समय में मनुष्य का असली बल पता चलता है।

अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
उम्मीद है कि अगली कड़ी मे कुछ ऐसा होगा जिस से कहानी को वो दिशा मिलेगी कि कबीर भी हैरान रह जाएगा और एक नई राह पर चलेगा जहां उसे ऐसा साथी मिलेगा जिसे वो समझ नहीं पाया अभी तक
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,587
88,519
259
Ab bhabhi apni had paar kr rhi hai... Kyu kr rhi hai itna julm kabir par... Kya unka bharosa uth gya hai apne devar se... Jisse sabse jyada pyar krti hai wo... Negative role... Aisa kyu fauji bhai... Kab tak hero yu hi glt sabit hota rhega...???
गलत साबित नहीं होगा मेरा विश्वास रखे
 
Top