अपडेट -72
यात्रिगण कृपया ध्यान दे दिल्ली से चल के ट्रैन संख्या **** विष रूप पहुंच चुकी है.
सुबह की किरण के साथ ही ट्रैन विष रूप शहर आ चुकी थी.
यात्री ट्रैन से उतरने लगे थे, इसी भीड़ मे बहादुर बड़े बड़े भरी बैग थामे जैसे तैसे ट्रैन से उतर गया था पीछे इंस्पेक्टर काम्या अपने चिर परिचित बेफिक्र अंदाज़ मे बहादुर के पीछे पीछे चल रही थी.
"लगता है कोई विलयती मैम है "
पीछे से आती भीड़ से किसी की कानाफुंसी सुनाई पडी.
"देखो बेशर्म को कैसे कपडे पहने है,नंगी ही आ जाती " दो महिलाये खिसयानी सी हसीं हसती हुई बोली.
कुछ मंचले लड़के "गांड देख साली की "
अंग्रेज़ लोग चले गए अपनी औलादे छोड़ गए.
दूसरा लड़का "काश इसकी नंगी गांड ही देखने को मिल जाये तो जीवन सफल हो जाये "
सबकी निगाहे बलखाती मटकती चाल मे चलती काम्या पे ही थी
तो इस कद्र स्वागत हुआ था काम्या का उस भारत मे जिस के लिए ऐसे परिधान,खुलापन अच्छी बात नहीं समझी जाती थी.
परन्तु काम्या के लिए ये शब्द आम थे उसे मजा आता था अपनी ऐसी तारीफ सुन के,
बहादुर :- मैडम आपके घर से तो कोई लेने ही नहीं आया आपको?
काम्या :- हाँ बहादुर घर पे तार तो भिजवा दी थी ना तूने?
बहादुर :- हाँ मैडम माँ कसम भिजवा दिया था उसी दिन.
बहादुर इतने मासूमपन से बोला की काम्या की हसीं निकल गई.
काम्या :- साले तुझे पुलिस मे किसने रख लिया?
बहादुर काम्या को हसता देखता ही रह गया "कितनी खूबसूरत है मैडम "
मैडम वो मेरी माँ एक साहेब के काम करती थी तो उन्होंने ही जुगाड़ कर के.....
"बस बस रहने दे अपनी माँ की कहानी तू हज़ार बार सुना चूका जा, जा के तांगा ले के आ " काम्या ने बहादुर को बीच मे ही टोकते हुए बोला.
काम्या मन ही मन सोचने लगी "पापा आये क्यों नहीं माँ भी नहीं आई?
पापा के ट्रांसफर के बाद पहली बार विष रूप आई हूँ "
घर कैसे जायेंगे? घर कौनसा है ये तो पता ही नहीं है?
की तभी बहादुर तांगा ले आया.
तांगेवाला:- कहिये बीबी जी कहाँ जाना है?
काम्या :- शहर मे जो पुलिस कॉलोनी बनी है वही.
चलिए 2rs लूंगा पुरे मंजूर हो तो बताओ. तांगेवाला काम्या को ऊपर से लगाई नीचे तक घूरते हुए बोला.
बहादुर सामान रख खुद बैठ गया.
काम्या :- साले अपने ससुराल आया है क्या?
बहादुर को अपनी गलती का अहसास होता है.
"वो...वो....मैडम.....वो..माफ़ करना हीहीही...
तांगा चल पड़ता है..
इधर मंगूस भी हवेली के बाहर निकल चाय की दुकान पे बैठा था उसे समझ नहीं आ रहा था की कामरूपा उर्फ़ भूरी काकी को कहाँ और कैसे ढूंढे?
"यार बिल्लू कल तो मजा ही आ गया " हेहेहे....
बिल्लू,कालू,रामु भी चाय की दुकान की और ही आ रहे थे,
कालू :- 3चाय ला बे नींद आ रही है
चायवाला :- जी मालिक
"मालिक बुरा ना मैने तो बात पुछु?" मंगूस ने बीच मे ही टोकते हुए पूछा
तीनो ने नजर उठाई सामने मैला कुचला सा लड़का बैठा था.
बिल्लू :- क्यों बे लल्ले क्या तकलीफ है?
मंगूस :- मालिक भूरी काकी से काम था?
रामु :- तू कौन? और क्या काम है काकी का?
मंगूस :- मालिक ठाकुर साहेब के खेतो पे काम करता हूँ,काकी से कुछ रुपये उधार लिए थे तो वही वापस करने आया हूँ.
कुछ दिनों से काकी खेतो पे भी नहीं आई?तो सोचा हवेली ही आ जाऊ.
बिल्लू :- लल्ले तूने ठीक किया लेकिन भूरी काकी हवेली मे भी नहीं है.
कालू :- ला पैसे हमें दे दे हम दे देंगे उसे
मंगूस :- नहीं मालिक मै उन्हें ही दूंगा आप बता दे की कहाँ गई है वो?
रामु :- पता नहीं बे कहाँ मर गई?
मंगूस :- मतलब?
रामु :- बिल्लू ने उसे कल शाम जंगल मे देखा था फिर आगे पता नहीं...
"अच्छा " मंगूस सोच मे पड़ जाता है.
"अच्छा मालिक चलता हूँ " मंगूस निकल पड़ता है उसे अपना रास्ता दिख गया था.
बिल्लू :- और सुन बे मिल जाये तो हवेली भी ले आना उसे हाहाहाहाहा....
"जी...जी...मालिक "
मंगूस अपने लक्ष्य की और बढ़ चला था.
इंस्पेक्टर काम्या और बहादुर भी पुलिस कॉलोनी पहुंच गए थे.
बहादुर :- कौनसा घर है मैडम आपका?
काम्या :- पता नहीं पिताजी के ट्रांसफर के बाद मै खुद पहली बार आई हूँ.
अंदर चल के पूछ लेंगे.
बहादुर सामान लिए आगे बढ़ चला.
दोनों जैसे ही आगे बड़े तो एक मकान के बाहर खूब भीड़ जमा थी खुसफुस्स हो रही थी.
"बताओ इतने नेक और शरीफ आदमी को कितनी बेदर्दी से मारा है "
कुछ आदमी औरत आपस मे फुसफुसा रहे थे.
काम्या भी भीड़ की और बढ़ चली उसके दिल मे कुछ अजीब होने लगा की जैसे कुछ टूट गया हो.
अनजानी सी आशंका उसे घेरने लगी.
काम्या भीड़ को चिरती हुई आगे बड़ी सामने सफ़ेद कफन मे लिपटी दो लाश पडी थी.
कुछ पुलिस हवलदार आस पास खड़े थे एक लड़का उन लाशो को देख देख रोये जा रहा था...
काम्या :- हवलदार साहेब क्या हुआ है यहाँ? कौन है ये लोग
ना जाने क्यों ये सवाल पूछते हुए काम्या का दिल लराज जा रहा था हलक सूखता सा महसूस हो रहा था.
की तभी एक हवा का झोंका आता है और दोनों लाशो से लगभग कफन हट जाता है.
वातावरण मे एक जोरदार चीख गूंज उठती है.माँ....माँ......मममम्मा.....पापा....पापाआआआआ.....
काम्या चीखती हुई दोनों लाशो मे धाराशाई हो गई उसके आँसू फुट पड़े चीख चीख के रोने लगी.
सभी लोग हैरान थे,उस रुन्दन को सुन,नजारा देख वहा खड़े सभी लोगो की आँखों मे आँसू आ गए.
बहादुर :- मैडम सम्भालिये खुद को सम्भालिये....
पास खड़ा हवलदार रामलखन "आप ही है दरोगा वीरप्रताप की बेटी?"
काम्या आँखों मे आँसू लिए मुँह ऊपर करती है खूबसूरत काम्या का चेहरा विक्रत हो गया था.
"हाँ मै ही हूँ काम्या आज सालो बाद लौटी तो अपने माँ बाप को देख भी ना सकी?"
किसने किया? कैसे हुआ ये सब?
पास बैठा सुलेमान काम्या के पास आया और सारी कहानी कहता चला गया.
कैसे दरोगा ने रंगा बिल्ला को पकड़ा था और कैसे रंगा बिल्ला ने बदला लिया..
"हे भगवान....हे भगवान.....ये कैसी लीला है तेरी इसका मतलब मुझे मेरे ही बाप की नाकामी को पूरा करने भेजा था.
मेरे पिता ही विष रूप के थानेदार थे "
बस और दुख बर्दास्त ना कर सकी काम्या अपने माँ बाप की लाश के ऊपर ही बेहोश हो गई.
बहादुर और सुलेमान काम्या घर के अंदर ले चले बाहर राम लखन और बाकि हवलदार दरोगा और कालावती के अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे.
कथा जारी है....