अपडेट -70
जरुरत से ज्यादा हवस कामवासना दरोगा और उसकी बीवी को जान ले चुकी थी.
परन्तु ये हवस ठाकुर की हवेली मे चारो तरफ फैली थी.
बिल्लू कालू और रामु को तो आज खजाना मिल गया था वो रतिवती पे पिले पड़े थे कभी कोई मुँह मे लंड डाल देता तो कभी गांड मे तो कभी कोई चुत मे.
आज रतिवती पूरी तरह से तृप्त थी उसके सभी छेद भरे पड़े थे.
कई बार दो लंड एक साथ चुत मे भी चले जाते और एक गांड मे मजाल की रतिवती उफ़ भी कर दे वो तो इस उन्माद का पूरी तरह मजा उठा रही थी ना जाने कितनी बार उसकी चुत से पानी छलका होगा.
यहाँ हवस चरम पे थी वही हवेली के अंदर डॉ.असलम भी रुखसाना के कामुक बदन को देख आपा खो चूका था उसका लंड उसके सुन्दर गोल स्तन को देख के ही थिरकने लगा था.
रुखसाना असलम के सामने अर्धनग्न लेटी थी.
असलम :- बता साली क्या करने आई है यहाँ? और उस दिन मेरे दावखाने मे आने का क्या मकसद था तेरा?
रुखसाना खामोश थी उसे कुछ सूझ नहीं रहा था की क्या बोले
की तभी असलम अपनी लुंगी उतार फेंकता है उसका काला मुसल लंड रुखसाना के सामने नाचने लगता है.
रुखसाना अभी गरम ही थी ठाकुर का वीर्य निकालने के चक्कर मे वो खुद हवस की भट्टी मे अपनी चुत दे बैठी थी.
रुखसाना को अब एक ही उपाय सूझ रहा था की कैसे वो अपने बदन का इस्तेमाल कर सकती है.
रुखसाना तुरंत पलट के अपनी गांड ऊँची कर देती है,उसका छोटा सा लहनेगा ऊपर हो चूका था गांड की दरार साफ दिखने लगी थी और यही निमंत्रण था असलम को.
पल भर के लिए असलम अपने सवाल भूल गया,वो आगे बड़ा और सूखे लंड को एक ही झटके मे गांड मे उतरता चला गया.
"आआहहहहह.....डॉ.असलम मार दिया"
असलम :- बता साली क्या करने आई थी क्या मकसद है तेरा?
बोल के एक के बाद एक झटके सुखी गांड मे मरने लगता है,रुखसाना खूब चुदी थी परन्तु ऐसे नहीं उसकी तो जान पे बन आई गांड की चमड़ी सिकुड़ के अंदर जाती कभी बाहर आती.
आअह्ह्हह्ह्ह्हम.....बताती हूँ...बताती हूँ..थोड़ा आराम से.
वो मुझे सर्पटा से बदला लेने के लिए शक्तियां चाहिए
और ठाकुर का वीर्य मुझे वो शक्ति देगा.
असलम तो हैरान था की ये क्या चक्कर है कौन सर्पटा कौन सा बदला?
एक जोरदार चोट और मारता है टट्टे चुत से जा टकराते है लंड पूरा गांड मे धस चूका था.
असलम :- अब जब तक तू पूरी बात नहीं बताती वो भी सच तब तक ये खूंटा बाहर नहीं निकलेगा,असलम लंड अंदर गाड़े रुखसाना के बाल पीछे से पकड़ के उसकी गर्दन पीछे खिंच लेता है
रुखसाना के पास अब कोई चारा नहीं था उसे सुबह से पहले यहाँ से निकलना था असलम को सच बताना ही पड़ेगा.
सर्पटा एक इच्छाधारी सांप है उसने मेरे पति परवेज खान को मारा था,
रंगा बिल्ला,कामगंज,मौलवी सब बताती चली जाती है रुखसाना.
बाते सुनते सुनते असलम का दिल ख़ुश होता चला जाता है उसके मन मे तो पहले ही पाप घर चूका था ऊपर से इच्छाधारी सांप होते है ये बात सुन के उसे भी असीम ताकत प्राप्त करने के खुवाब दिखने लगे.
उसे कामवती अपनी बीवी दिखने लगी ये गांव ये हवेली का मालिक वो होगा.
अब उसका लंड और दिमाग़ एक साथ चलने लगे लंड गांड मार रहा था और दिमाग़ अपने दोस्त को मार रहा रहा
घोर पाप,मित्रघात का बीज पूरी तरह रोपित हो गया था उसके सपनो मे.
सब कुछ शांत हो चूका था,किसी की हवस उसे मौत दे गई,किसी का लालच बरकरारा था,तो किसी के मन मे पाप जग गया था.
भूतकाल
इन सब के बीच कामवती अपने कमरे मे सोते हुए भी बेचैन लग रही थी उसका स्मृति पटल उसे बार बार कुछ दिखा रहा था,
कामवती बेचैन सी नदी किनारे बैठी थी,
लगता था जैसे उसे किसी का इंतज़ार है उसकी आँखों मे दो जवान मर्दो की तस्वीर छपी थी,इस तस्वीर ने उसे आंख बंद करने ही नहीं दिया
रात भर करवट बदलते ही निकल गई. आज सुबह सुबह ही वो उसी नदी किनारे पहुंच गई थी जहाँ उसे डूबने से बचाया गया था.
की तभी पीछे से किसी के सरसराहट की आवाज़ आति है
"सुंदरी कामवती तुम सुबह सुबह यहाँ?!
कामवती चौंक के पीछे पलटती है तो उसके दिल को करार आता है, पीछे सुंदर सा नौजवान गोरा सुडोल कद काठी लिए कोमल नागेंद्र खड़ा था.
हालांकि वो भी इसी आस मे आया था की कामवती को देख सके मिल सके आखिर उसे अपने अंतहीन जीवन का उजाला जो दिखा था कामवती मे.
नागेंद्र :- हाँ सुंदरी मै!
कामवती :- ये क्या सुंदरी सुंदरी बोल रहे हो मै कोई सुंदरी नहीं कामवती नाम है मेरा.
नागेंद्र :- नाम से भी ज्यादा सुन्दर हो तुम.ऐसा बोल नागेंद्र कामवती के पास बैठ जाता है
कामवती का दिल जोर जोर से धड़क रहा था जिस पुरुष के ख्याल ने उसे रात भर सोने ना दिया वो उसके करीब बैठा था.
कामवती थोड़ा कसमसाने लगी उसे समझ ही नहीं आ रहा था की क्या बोले क्या करे.
"नाम क्या है तुम्हारा?" जो निकला यही निकला कामवती के मुख से.
नागेंद्र जो की इतने पास से पहली बार दीदार कर रहा था कामवती के हालांकि उसे बचाते वक़्त कामवती के अंगों को छूने का मौका जरूर मिला था परन्तु ये अहसास अलग था आज इस अहसास मे प्यार था चाहत थी.
"नागेंद्र नाम है मेरा पास के गांव विष रूप मे ही रहता हूँ "
नागेंद्र से बड़ी सफाई से खुद को आम आदमी की तरह ही पेश किया,परन्तु था तो जहरीला ही ना, उसके शरीर से आति गंध लहर कामवती के दिमाग़ को झकझोर रही थी.
उसे लग रहा था जैसे आंखे भारी हो रही है, परन्तु उसे मन का अहसास समझें कामवती नजरअंदाज़ करती रही.
"तुम्हारे घर मै कौन कौन है?"
कामवती जैसे होश मे आई "वो...वो...मम्मी पापा और मै " बोलती हुई कामवती ने अपना चेहरा नागेंद्र की और घुमा दिया
दोनी की नजरें मिल गई,कामवती ने जैसे ही नागेंद्र की आँखों मे देखा उसे अजीब सा सम्मोहन हुआ वो नागेंद्र से पहले ही आकर्षित थी परन्तु अब तो जैसे मौसम ही रूहाना लगने लगा दिल की धड़कन थमने लगी.
इस वक़्त नागेंद्र दुनिया का सबसे कामुक पुरुष मालूम होता था.
कामवती ने इतना सुन्दर पुरुष कभी नहीं देखा था वो उन आँखों मे खोने ही लगी की
"कम्मो...ओह..कम्मो...कामवती कहाँ है तू?"
नागेंद्र ने पलट के देखा तो गांव से कुछ लड़किया नदी की ओर ही चली आ रही थी.
"अच्छा कामवती मे चलता हूँ कल फिर यही मिलूंगा "
कामवती को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था वो सिर्फ हूउउ...ही बोल पाई वो एक टक जाते नागेंद्र को देखती ही रह गई.
"कामवती....ऐ कामवती..इतनी सुबह नदी क्यों आ गई?"
विमला ने कामवती को लगभग झंझोड़ते हुए पूछा.
विमला कामवती की खास सहेली है
कामवती जैसे नींद से जागी हो.."वो...वो....कुछ नहीं आज आंख जल्दी खुल गई तो नित्य कर्म के चली आई "
तुम लोग निपटो मै चलती हूँ.
बोल कामवती तुरंत उठ के चल पडी अपने घर की ओर
आज उसका मन दिमाग़ कुछ भी उसके हाथ मे नहीं था उसकी आंखे जैसे पथरा गई थी उसके सामने सिर्फ नागेंद्र की खूबसूरत गहरी आंखे थी.
"कौन है ये नागेंद्र कैसा जादू कर दिया है इसने मुझे पे? कैसे हलचल मची है मुझमे "
कामवती इसी सोच मे डूबी चलती जा रही थी
कामगंज जाने के लिए बीच रास्ते मे छोटा सा जंगल सा पड़ता था कामवती चली जा रही थी धीरे धीरे कुछ सोचती हुई...
की तभी उसका हाथ किसी मजबूत चीज ने पकड़ लिया.
"कामवती यहाँ क्या कर रही हो?"
कामवती एक झटके मे ही अपने ख्यालो से बाहर आई ओर पीछे को पलटी तो पाया की एक मजबूत कद काठी चौड़ी छाती के मर्द ने उसका हाथ पकड़ा हुआ है.
बालो से भरी हुई छाती
एक सच्चा मर्द खड़ा था कामवती के आँखों के सामने
"तत...त...तुम?" कामवती ऐसे कामुक बलशाली मर्द को अपने इतना नजदीक पा के कांप उठी उसकी आवाज़ हलक से कांपती हुई निकली
"हां मै वीरा....तुम्हे अकेले जाता देखा तो सोचा कुछ बात चीत कर लू."
कामवती की तो बंन्छे ही खिल गई आज उसका हसीन दिन था पहले नागेंद्र जैसा कोमल प्यार के अहसास से भरे मर्द से मिली फिर ये वीरा से जो सम्पूर्ण कठोर मर्दानगी से भरपूर था.
दोनों ही उसके नींद के चोर थे.
कामवती :- अच्छा जी तो मेरा पीछा कर रहे हो तुम?
वीरा :- नहीं कामवती मै तो जंगल घूमने आया था तुम जाती दिखी मैंने आवाज़ भी दी लेकिन पता नहीं कहाँ खोई थी तुम?
सुना ही नहीं मज़बूरी मे तुम्हारा हाथ पकड़ना पडा.
कामवती का ध्यान वीरा के हाथ पे जाता है कितना मजबूत और बड़ा हाथ था कितनी मजबूती से पकड़ा हुआ था.
"हाथ तो छोडो तोड़ोगे क्या?"
वीरा :- ओह माफ़ करना आओ तुम्हे जंगल के बाहर तक छोड़ दू.
कामवती का हाथ तो छूट गया, पर गर्माहट का अहसास नहीं गया " कितने गरम हाथ है इस वीरा के "
कामवती :- अच्छा वीरा तुम कहाँ रहते हो?
वीरा :- यही पास मे घुड़ मे
"अच्छा....की तभी कामवती आगे रखे पत्थर से टकरा गई ओर गिरने ही लगी थी की फिर दो जोड़ी मजबूत कठोर हाथो ने उसे थाम लिया.
वीरा के हाथ पीछे से कामवती को थामे हुए थे "कहाँ ध्यान है तुम्हारा "
वीरा थोड़ा सम्भलता है तो पाता है की उसके हाथ पीछे से कामवती के बड़े बड़े स्तन को भींचे हुए थे उसके कठोर हाथो मे मुलायम अहसास हो रहा था.
और कामवती जो पूरी तरह से आगे को लटक गई थी अपनी छाती इस कदर दबने से सिसक उठी...आअह्ह्ह....वीरा.
वीरा ने स्तन पकडे ही वापस कामवती को पीछे खिंच लिया.
छाती पे पड़ता लगातार दबाव कामवती के बदन मे सिहरन पैदा कर रहा था ना चाहते हुए भी उसके स्तन से निकलता विधुत का झटका सीधा चुत तक गया.
कामवासना के लिए ललायित रहने वाली कामवती को आज पहली बार किसी मर्द के कठोर हाथ से चुत से पानी बहने का अहसास हुआ.
"वो....वो...माफ़..माफ करना गलती से पकड़ लिया "
कामवती तो ये सुन शर्मा गई उसके पास कोई जवाब नहीं था..वो बिना कुछ बोले दौड़ चली...
पीछे वीरा उसकी लहराती बड़ी गांड को देख ही रहा था की कामवती पीछे पलट के एक पल के लिए वीरा को देख मुस्कुरा दी...कामवती बालो से भरी चौड़ी छाती को नजर भर देख लेने के बाद पलट के भाग चली अपने गांव की ओर.
उसके दिल मे प्यार और चुत मे पानी था जिंदगी मे ये अहसास पहली बार था.
प्यार और कामवासना का संचार एक साथ जन्म ले रहा था.
"कामवती....ओह कम्मो...कब तक सोयेगी चल उठ जा"
कामवती कसमसा के आंखे खोल देती है सामने उसकी माँ रतिवती उसे उठा रही थी.
"देख सुबह हो गई है,ठाकुर साहेब भी आ गए है " रतिवती बोल के कमरे से बाहर निकल जाती है.
कामवती अभी भी खोई हुई थी
"ये कैसा सपना था,ये कैसा अहसास था? बिलकुल सच लग रहा था.
तभी उसका ध्यान अपनी जांघो के बीच होती खुजली पे जाता है उसे कुछ अजीब सा गिलापन लगता है वहा.
"ये मेरी योनि गीली कैसे हो गई?"
वो सुन्दर युवक कौन था जिसके आँखों मे देखते ही मुझे ये दुनिया खूबसूरत लगने लगी थी और जंगल मे मिला वो लम्बा चौड़ा आदमी जिसकी एक स्पर्श से ही मेरी योनि गीली हो गई थी?
सुबह हो चुकी थी सब तरफ सब सामन्य था.
रतिवती रात भर चुदी थी तो जल्दी ही नहाने चली गई.
रुखसाना हवेली से जा चुकी थी.
असलम अपनी योजना के साथ सो चूका था रात भर उसने मेहनत की थी.
ठाकुर साहेब अभी भी नंगे ही अपने कमरे मे सोये पड़े थे.
कामवती के मन मे हज़ारो सवाल और कामवासना उठ रही थी जिसका जवाब उसे ढूंढना था.
बने रहिये....कथा जारी है..