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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

motaalund

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My favourite post from JKG English version the climax.

Actually there were strong reasons for me for not letting him have her tonight.
I had plans for tomorrow. It will bring a new dawn for both of us.
I wanted him to relax and recuperate. A luxurious aromatic bath, gentle massage and siesta….that was my plan for him.
I am going to wine and dine them …it will include Gin seng, British asparagus, good amount of celery, drum sticks…from breakfast to evening tea. For dinner I had my own ideas. Red burgundy wine, mixed with ginger, cinnamon, cloves vanilla and sugar will be he beginning. I will prepare with my own hands, and for him, two balls of he goat, fried in very slow heat with honey and shillajeet…I had heard about and then read it in a Mughal Period treatise…it was supposed to be very effective, mom has told me and I read to that an aged man partook it and he was able to not only satisfy an experienced courtesan but fucked her 6 times in the night till she accepted her defeat. Mom has told me not to use it as even mother of four feel like virgin and cry when a man fed by this go to fuck them and here she was young teen virgin. And he was too was a well endowed young man. But in this case I was not going to heed her advice. And to make matters more potent I would add, albeit in homeopathic quantity, cantharides as garnish.
And for her I had decided to serve her with Absinthe after the dinner.
Their night will start early…after dinner may be 30-40 minutes break ( to have potions full effect) and then I will bid them bye Yes I will not be there but I will be there, watching them on my TV.
Mom had asked me how you want your sister in law to be deflowered, softy or brutally and I took no time in answering, brutally.
There was a dhaba and we decided to break for tea.
“Hey get som tea for us…” I told her and she came out. As he was trying to follow her, a stern look of my eyes was enough to halt him in the track.
I was looking at her chootar, swinging, moving in a rytham , her school skirt was unable to conatin her…and I thought female pelvis is designed like that, to be alluring , to recive male thrusts but more importantly to rear.
There were truck drivers, drinking…some village ruffians on paan shop, but except a few comments directed towards her, “ hey chamia aa ke baith jaa meri goad main…kya mast chootar hain…ek go chumaa de da ho jaani” nothing untoward happened.
But it was right time for her to get used to be all this.
And when we started our onward journey, her hips were in my mind and sudenly a promise mom made to him came to my mind.
“You will be father of 8 children in 6 years” she had blessed him.
But how …I was not in the mood for that task…and yes now mystry was solved, when I looked back. Mom had not blessed me, she had blessed him. So why not…I had given her pill…and I intend to keep her on pill till she comes back from mom, a fortnight later. But then Pill can be changed to a placebo after her next period….yes he can impregnate her…Manju Bai and Geeta were always taunting him, hey why don’t you…usako gabhinkar dena phir chahe jitta doodh piyo…may be those jokes…once she misses may be I can convince her for a month and then second time a doctor…and after that it will be inevitable….but for those things there are lot of time.
I was thinking, kink to straighten kink, that’s what I had proposed in the paper. My suggestion was that a crooked thing will look even at a straight thing as crooked. So perspective matters and there is nothing wrong in using sex for corrective measures. It is better to use love than violence. Somebody has told Power is an ability to influence decision.
And like scenes of film I went into flash back mode
At the time of vidai, my mother whispered last words of advice in my ears,
“You must try to change him and change him significantly from he was before marriage to after marriage. If he would have been a smoker make him a non smoker and vice versa. Let your impact on him be known to the entire world esp. his maikavalas.”
“Yes …” I nodded, taking care of my pallu
Sure, I was having that power now. I looked back at him, her and realize how much we had traveled.
City lights were fast approaching. My home was only 10 KM more.
And I was in the driving seat, firmly in the saddle, looking ahead.
The End.
Preserved....
 

motaalund

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It's been a very busy and tormenting one month ,have not been able to read story way I wanted . All I can say in brief is "Best of the best " for both stories viz JKG and Chutki... But As I have requested many times over many forums I"am still interested in your सास and बुआसास . Unki peldgaadi aur aapki badi nanad ke चौथी me aapke saiyya ka kaand.
me too.
 

motaalund

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दो बातें गड़बड़ है इस बात में

पहली बात, देह का यह ज्ञान उन अर्थों में ' किताबी ' नहीं है, जिन अर्थों में हम आजकल 'किताबी' शब्द का प्रयोग करते हैं, यौन-अभिलाषा और उस की मान्यता, मिथकों से होकर रीति -रिवाजों, लोकगीतों और संस्कारों का हिस्सा हैं, जिन्हे सम्पादित कराने वालियां अक्सर गाँव की नाउन या बड़ी बुजुर्ग औरतें होती थीं जो उन परम्पराओं की अवगाहिका थीं, जैसे मंडप में हल के फाल का क्या फर्टिलिटी सिम्बॉलिज्म है या ये तोते मंडप में अनंग को दर्शाते हैं शायद उन्हें न मालूम हो,... पर उस के महत्व से वो वाकिफ थीं, फिर अनंग रंग या इस प्रकार पुस्तकें,... बहुत कुछ तकनीक से जुडी थीं,

दूसरी बात, यह और इस प्रकार की पोस्टें मेरी कहानियों में गुम्फित रहती हैं और इस पोस्ट के बारे में, एक पोस्ट पूर्व पीठिका की तरह पोस्ट कर चुकी हूँ , कृपया उसे पढ़े ( Page 464 post 4637)

पर मैं आपके विचार से पूरी तरह सहमत हूँ और एक बार हाथ जला चुकी हूँ , अगली बार शायद मॉडरेटर गण कान पकड़ के फोरम से बाहर निकाल दें।


मेरी मित्र डाक्टर साहिबा ने बसंत पंचमी के बारे में एक पोस्ट पोस्ट की , लाउंज में,...

और मैंने सोचा की पुष्पधन्वा को याद करने का यह सही समय है , मैंने हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रसिद्ध निबंध, अशोक के फूल के कुछ अंश पोस्ट किये, और कामदेव के पांच शर, अरविन्द, नीलोत्पल, अशोक, आम्रमंजरी और मल्लिका के पुष्पों का स्मरण किया कालिदास को याद किया कुमार सम्भव के रूप में .

हिम्मत कर के एक दो और पोस्ट्स कामदेव के बारे में मैंने पोस्ट की और दो चार दिन बाद सब कुछ डिलीट कर दिया, क्यंकि किसी को लगा या कोई बॉट होगा जिसने धर्म शब्द के नाम से कामदेव को फिर से भस्म कर दिया , और मेरी जितनी पोस्टें लाउंज में थीं , बिहारी सतसई से लेकर मीर तकी मीर तक को , कान पकड़ के लाउंज से बाहर 'अदर डिस्कशन ' में धकेल दिया , और मुझे बताने की भी किसी ने जहमत नहीं की , तब से मैंने इस प्रकार की पोस्टों के लिए थ्रेड के बारे में सोचने से तोबा कर ली।
Agree.. In online posts it is better to be safe than sorry later on....
 

raniaayush

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दो बातें गड़बड़ है इस बात में

पहली बात, देह का यह ज्ञान उन अर्थों में ' किताबी ' नहीं है, जिन अर्थों में हम आजकल 'किताबी' शब्द का प्रयोग करते हैं, यौन-अभिलाषा और उस की मान्यता, मिथकों से होकर रीति -रिवाजों, लोकगीतों और संस्कारों का हिस्सा हैं, जिन्हे सम्पादित कराने वालियां अक्सर गाँव की नाउन या बड़ी बुजुर्ग औरतें होती थीं जो उन परम्पराओं की अवगाहिका थीं, जैसे मंडप में हल के फाल का क्या फर्टिलिटी सिम्बॉलिज्म है या ये तोते मंडप में अनंग को दर्शाते हैं शायद उन्हें न मालूम हो,... पर उस के महत्व से वो वाकिफ थीं, फिर अनंग रंग या इस प्रकार पुस्तकें,... बहुत कुछ तकनीक से जुडी थीं,

दूसरी बात, यह और इस प्रकार की पोस्टें मेरी कहानियों में गुम्फित रहती हैं और इस पोस्ट के बारे में, एक पोस्ट पूर्व पीठिका की तरह पोस्ट कर चुकी हूँ , कृपया उसे पढ़े ( Page 464 post 4637)

पर मैं आपके विचार से पूरी तरह सहमत हूँ और एक बार हाथ जला चुकी हूँ , अगली बार शायद मॉडरेटर गण कान पकड़ के फोरम से बाहर निकाल दें।


मेरी मित्र डाक्टर साहिबा ने बसंत पंचमी के बारे में एक पोस्ट पोस्ट की , लाउंज में,...

और मैंने सोचा की पुष्पधन्वा को याद करने का यह सही समय है , मैंने हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रसिद्ध निबंध, अशोक के फूल के कुछ अंश पोस्ट किये, और कामदेव के पांच शर, अरविन्द, नीलोत्पल, अशोक, आम्रमंजरी और मल्लिका के पुष्पों का स्मरण किया कालिदास को याद किया कुमार सम्भव के रूप में .

हिम्मत कर के एक दो और पोस्ट्स कामदेव के बारे में मैंने पोस्ट की और दो चार दिन बाद सब कुछ डिलीट कर दिया, क्यंकि किसी को लगा या कोई बॉट होगा जिसने धर्म शब्द के नाम से कामदेव को फिर से भस्म कर दिया , और मेरी जितनी पोस्टें लाउंज में थीं , बिहारी सतसई से लेकर मीर तकी मीर तक को , कान पकड़ के लाउंज से बाहर 'अदर डिस्कशन ' में धकेल दिया , और मुझे बताने की भी किसी ने जहमत नहीं की , तब से मैंने इस प्रकार की पोस्टों के लिए थ्रेड के बारे में सोचने से तोबा कर ली।
किताबी शब्द के प्रयोग के लिए क्षमा चाहता हूं । लेकिन आपकी बातों की गहराई मुझे अच्छी लगती है...कभी सोचता हूँ मनुष्यों ने अपनी बात के सृजन से ले कर भाषा और वृहत व्याकरण भी बना ली है संगीत शास्त्र जो कि मेरे लिए अद्भुत है कि आखिर कैसे इसका सृजन हुआ होगा.... लेकिन जब आपके कहानियों के माध्यम से स्त्री देह की गहनता समृद्धि और रहस्य का आवरण उतरता है तो लगता है....वाह क्या बात है.... आपके उद्धरण और सन्दर्भ सोने पर सुहागा का कार्य करते हैं।
आपकी समस्याएं न बढ़ें इस लिए केवल पुस्तकों का ही सन्दभ देती रहें....पढ़ने की कोशिश करूंगा।
 

komaalrani

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किताबी शब्द के प्रयोग के लिए क्षमा चाहता हूं । लेकिन आपकी बातों की गहराई मुझे अच्छी लगती है...कभी सोचता हूँ मनुष्यों ने अपनी बात के सृजन से ले कर भाषा और वृहत व्याकरण भी बना ली है संगीत शास्त्र जो कि मेरे लिए अद्भुत है कि आखिर कैसे इसका सृजन हुआ होगा.... लेकिन जब आपके कहानियों के माध्यम से स्त्री देह की गहनता समृद्धि और रहस्य का आवरण उतरता है तो लगता है....वाह क्या बात है.... आपके उद्धरण और सन्दर्भ सोने पर सुहागा का कार्य करते हैं।
आपकी समस्याएं न बढ़ें इस लिए केवल पुस्तकों का ही सन्दभ देती रहें....पढ़ने की कोशिश करूंगा।
आभार, धन्यवाद,

इस लिए जो कुछ भी मन में उपजता है, सोचती हूँ , कहानी से ही जोड़ के,... एकदम अच्छा प्रश्न उठाया आपने , ... वाणी के संदर्भ में मैंने एक पोस्ट मोहे रंग दे में की थी, और एक बनारस के किस्से में जिसको अंश के रूप में मैंने मोहे रंग दे में पोस्ट किया था , हो सकेगा और पाठको को विषयांतर नहीं लगेगा तो उसे आप सब से यही शेयर करुँगी ,

मेरी लिए कहानी कहने के साथ बतकही करने का भी ये फोरम है,... हाँ लेकिन कहानी से जुडी बातों पर ही,... एक पत्रिका में छपी कहानी और फोरम में पोस्ट होने का एक अंतर, पढ़ने वालों की भागीदारी का भी है, एक बार फिर से धन्यवाद।
 

komaalrani

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किताबी शब्द के प्रयोग के लिए क्षमा चाहता हूं । लेकिन आपकी बातों की गहराई मुझे अच्छी लगती है...कभी सोचता हूँ मनुष्यों ने अपनी बात के सृजन से ले कर भाषा और वृहत व्याकरण भी बना ली है संगीत शास्त्र जो कि मेरे लिए अद्भुत है कि आखिर कैसे इसका सृजन हुआ होगा.... लेकिन जब आपके कहानियों के माध्यम से स्त्री देह की गहनता समृद्धि और रहस्य का आवरण उतरता है तो लगता है....वाह क्या बात है.... आपके उद्धरण और सन्दर्भ सोने पर सुहागा का कार्य करते हैं।
आपकी समस्याएं न बढ़ें इस लिए केवल पुस्तकों का ही सन्दभ देती रहें....पढ़ने की कोशिश करूंगा।
आपने भाषा की बात की उससे जुडी मैं दो पोस्ट्स शेयर कर रहीं , जिन्हे विषयानतर लगे उनसे अग्रिम क्षमा,

पहली पोस्ट मोहे रंग दे की है , पृष्ठ १६६ पोस्ट संख्या १ ६५८ , और दूसरी भी एक आने वाली कहानी की है जिसकी जड़ें मोहे रंग दें में ही है और वहीँ मैंने शेयर भी किया था इसे और अगली दो पोस्टें वही और उन पर अपना अभिमत जरूर दीजियेगा।
 

komaalrani

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कोमल तुम्हारा नाम क्या है। "

मैं मारने के लिए कोई चीज ढूंढती उसके पहले उन्होंने दूसरा सवाल दाग दिया , जो थोड़ा मुश्किल था ,

" अच्छा चल तेरे नाम का पहला अक्षर क है न , तो ये बताओ अक्षर क्या है , और क्यों हैं ? "

मैंने थोड़ा सर खुजलाया , इनकी माँ बहन को गाली दी मन ही मन, लेकिन मैं भी बनारस की , मैंने सोच कर बोल दिया ," अक्षर, मतलब भाषा का बिल्डिंग ब्लाक, सबसे बेसिक यूनिट,... "



पर इन्हे संतुष्ट करना आसान नहीं था , उन्होंने ना ना में सर हिलाया और फिर पूछा ,

" नहीं नहीं , जैसे क , तो ये लिखा जाता है की बोला जाता है , ... "

पर जो बात बतायीं उन्होनी , सच बताऊँ , किसी से बताइयेगा नहीं , कोमल के दिमाग में भी कभी नहीं आयी थी , ...



जीभ, तालू , होंठ के संयोग से जो हवा मुंह से निकलती है , वो एक आवाज होती है , लेकिन हर आवाज अक्षर , या शब्द नहीं होती। उसी तरह हम लाइने , कुछ ज्यामितीय आकृतियां उकेरते हैं , लेकिन हर बार उस का भी अर्थ नहीं होता , लेकिन जब दोनों को मिलाकर, जैसे हमने एक लाइन , गोला , पूँछ ( ाजिसे स्कूल में मास्टर जी सिखाते हैं क लिखने के लिए ) और उसको एक ख़ास अंदाज में बोलते हैं , तो ये दोनों का कन्वर्जेंस अक्षर होता है , और उसी के साथ जुड़ा होता है एक सोशल सैंक्शन , सभी लोग एक इलाके के , जो साथ साथ रहते हैं यह मान लेते हैं की इस ज्यामितीय आकृति के लिए यह जो आवाज निकल रही है वह क होता है ,

मैं चुपचाप सुनती रही , ये बात कभी मैंने सोची भी नहीं थी , कितनी बार क ख ग लिखा पर , पर मेरी आदत चुप रहने की नहीं थी तो मैं बोल पड़ी ,

" और उसी को जोड़ कर शब्द बनते हैं ,... "

ज्यादातर इनकी हिम्मत नहीं होती थी मेरी बात काटने की , माँ बहन सब की ऐसी की तैसी कर देती मैं , और उपवास का डर अलग, लेकिन आज बात काटी तो नहीं लेकिन थोड़ी कैंची जरूर चलायी।

" हाँ और नहीं , कई ट्राइबल सोसायटी में रिटेन लैंग्वेज अभी भी नहीं है , पर शब्द हैं गीत हैं कहानियां है , तो एकदम नैरो सेन्स में हम उन्हें लिटरेट नहीं मानते , लेकिन उनका अपना लिटरेचर अलग तरीके का है , लेकिन लिखने का फायदा है की सम्प्रेषण आसान हो जाता है , समय और स्थान के बंधन से हट कर , जो अशोक ने शिलालेख पर लिखा, वो हजारों साल बाद भी पढ़ कर उस समय के बारे में , पता चल जाता है , ... फिर जो यहाँ लिखा है उसे हजारो किलोमीटर दूर भी भेजा जा सकता है , तो कोई भी जीव, समाज , सभ्यता, संस्कृति अपने को प्रिजर्व करना चाहती है , तो लिखित भाषा उसमें सहायक होती है , ... "

मेरा भी दिमाग अब काम करने लगा था , मैंने जोड़ा और साहित्य ,

" एकदम लेकिन उसके पहले व्याकरण , और फिर वही बात सामाजिक स्वीकृत की , मान्यता की और बदलाव की भी , संस्कृत ऐसी भाषा भी , व्याकरण के नियम , शब्दों के अर्थ सब बदलते हैं , लेकिन हर अक्षर जिसमें अर्थ छिपा रहता है एक डाटा है , अच्छा चलो ये बताओ ढेर सारा डाटा एक साथ कब पहली बार संग्रहित किया गया होगा ,

मैंने झट से जवाब दिया और जल्दी के चक्कर में गलत जवाब दिया , कंप्यूटर पर उन्होंने तुरतं बड़ी हिम्मत कर के मेरी बात काटी ,

नहीं किताब ,और समझाया भी , जब शिलालेख पर , गुफाओं में कुछ उकेरते थे तो समय और स्थान की सीमा रहती थी पर किताब के एक पन्ने पर कितनी लाइनें , कितने शब्द , फिर जो एक के बाद एक पन्ने को जोड़ कर रखने की तरकीब निकली तो कितनी बातें एक साथ एक जगह और भाषा के साहित्य में बदलने में किताबों का बड़ा रोल था , ,





मोहे रंग दे पेज १६६ पोस्ट १६५८
 

komaalrani

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लेकिन फिर एक बात मन में उठी, अपनी कोई बात मैंने नहीं कही थी, लेकिन मेरे बिना कहे उन्होंने सुन भी लिया, समझ भी लिया और और मुझे आशीष भी, और उनके भी होंठ नहीं हिल रहे थे, लेकिन मैं साफ़ साफ़ सुन रहा था, जैसे आवाजों को देख रहा होऊं,...

पश्यन्ती,

एक बार फिर मन में वही उथल पुथल,...

वाक् भले ही होंठो, जिह्वा तालू और कंठ के संयोजन से निकलता हो, समझी जाने वाली ध्वनियों, शब्दों का रूप लेता हो , अर्थ के साथ हम तक पहुंचता हो, लेकिन उपजता तो वह विचार के रूप में है , हमारे चैतन्य होने का प्रमाण भी है और सम्प्रेषण का साधन भी, ...

और वह जन्म लेता है मूलाधार चक्र से,

ध्वनि के चार रूप हैं , जो हम सुनते हैं , जिसके जरिये बातचीत करते हैं, वह है वैखरी, ध्वनि का भौतिक और सबसे स्थूल रूप,

लेकिन जो विचार या चेतना के रूप में, सबसे बीज रूप में जब यह जन्म लेती है तो उसका रूप परा है, पर वह अति सूक्ष्म होती है ,

उसके बाद है पश्यन्ती। यदि यह जागृत है, शब्द रूप लेने से पहले ही हम उसे देख सकते हैं , और यह नाभि के स्तर पर जब विचार पहुंचता है उस समय, यानी क्या कहना है उसका मन में तो जन्म होगया पर अभी वह शब्दों का रूप अभी नहीं ले पाया है.



और शब्दों की एक सीमा है, वह विचारों को अभिव्यक्त तो करते हैं पर उसे सीमित भी करते हैं और कई बार अर्थ और विचार में अंतर् भी हो जाता है।

पश्यन्ति और वाक् के बीच मध्यमा का स्थान है, हृदय स्थल पर।


पश्यन्ती की स्थिति में शब्द और उसके अर्थ में कोई अंतर् नहीं होता और विचार का आशय, तत्वर और सहज होता है। इसमें क्या कहने योग्य है, क्या नैतिकता के आवरण में छिपा लें , ऐसा कुछ भी नहीं होता वह शुद्ध रूप में मन की बात होती है, यह वाक् स्फोट का एक सीधा साक्षात्कार होता है, जो कोई कहना चाहता है वह सब सुनाई पड़ता है। और उस स्तर तक विचारों में बुद्धि का हस्तक्षेप, सही गलत का अवरोध नहीं होता है , कामना सीधे सीधे अभिव्यक्त होती है,

और मैं भी उनकी बात सुन पा रहा था , इसका सीधा अर्थ है , ... पश्यन्ति का गुण उनके अंदर तो था ही,वाक् की इस स्थिति को सुनने, समझने की शक्ति उनके आशीष से मेरे अंदर भी बिन कहे सुनने की, सीधे मन से मेरे मन तक पल बना के पहुंचने का रास्ता बन गया था।

दूर किसी घाट से गंगा आरती की हलकी हलकी आवाज गूँज रही थी, नाव नदी के बीचोबीच बस मध्धम गति से चल रही थी, रात हो चली थी इसलिए और कोई नाव भी आसपास नहीं दिख रही थी, हाँ किसी घाट पर जरूर कुछ कुछ लोग नज़र आ रहे थे, मंदिरों के शिखर, घंटो की आवाजें, चढ़ती हुयी रात के धुँधलके में दिख रहे थे. आज आसमान एकदम साफ़ था और चाँद भी पूरे जोबन पर,... कभी मैं आसमान में छिटके तारों को देखता कभी नदी में नहाती चांदनी को , मस्त फगुनहाटी बयार चल रही थी, हवा में फगुनाहट घुली थी, और मेरे मन तन पर भी,



बनारस के किस्से - एक आने वाली कहानी और मोहे रंग दें में उद्धृत
 
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