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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २५६ पृष्ठ १६०७

अब मेरी बारी


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जोरू का गुलाम भाग २५६

अब मेरी बारी
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(किस्से का पिछला हिस्सा भाग २५५ गुड्डी की आवाज में था और अब फिर मैं सुनाऊँगी आगे की बात_)
और अब बाउंसर ने एक दूसरे स्टड को बुलाया, कोई पठान लग रहा था, और अब एक बार फिर से ऊँगली बाहर जेली का नोजल अंदर

वहां कोई कैमरा लगा था जिसे मेरे पिछवाड़े का सीन एक स्क्रीन पे बड़ा बड़ा आ रहा था, और दूसरे ने अपना अजगर बाहर निकाला

चींटी की बिल में एक नहीं दो अजगर,
मैं तड़प रही थी, छटपटा रही थी लेकिन दोनों बाउंसर कस कस मेरी पीठ दबोचे थे

और दूसरा पेलता रहा धकेलता रहा हालांकि आधे से थोड़ा ज्यादा, करीब ६-७ इंच धकेल के रुक गया, फिर दो दो इंजन एक ही पटरी पर दौड़ने लगे,

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मेरी आँखों में से आंसू छलक रहे थे लेकीन थोड़ी देर में इस नए मजे का मैं मजा लेने लगी, कभी सिकोड़ कभी ढीली कर देती कभी धक्के का जवाब धक्के से देती

बहुत तेज दर्द हो रहा था, लेकिन एक नया मजा आ रहा था

पुच्च

और एक ने खूंटा निकाल दिया, कोरियोग्राफर तो बाउंसर ही थी, जिस ब्लैक स्टड ने मुंह में रखा था अब वो 'डबल ट्रबुल ; में शामिल हो गया ा

पर खूंटो की कमी नहीं थी, जिसे मैं मुट्ठी में पकड़े थी वो मुंह में, जो चुनमुनिया में डबल रोल में था अब सीधे गोलकुंडा के अंदर

पीछे एक साथ तीन तीन

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और अब चारो पिस्टन साथ साथ चले भी पानी भी निकला और बाकी दो थे वो फिर एक साथ अंदर घुसे, चुनमुनिया में

-----

सच में गुड्डी की बातों से न सिर्फ वो गरमा गए थे, बल्कि मैं भी,

और मान गयी मैं अपनी ननदिया को,
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मुश्किल से तीन चार महीने हुए थे, उसे पटाये, यहाँ लाये हुए और उसे चुदते हुए, हाँ ये बात जरूर है की तीन महीनों में डेढ़ दो सौ बार तो चुदी ही होगी, जितनी नयी दुलहिनिया साल छह महीने में चुदती है उससे भी ज्यादा.


अभी दिन ही कितना हुआ जब मैंने बाजी जीती थी। इनके मायके में न सिर्फ गुड्डी के और इनकी छिनार भौजाई के सामने इनकी बचपन की चिढ आम खिलाया,

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वो भी गुड्डी के हाथों और इनके हाथों से गुड्डी को, सामने बैठी इनकी भौजाई की झांटे जल के राख हो गयीं, और फिर इनके पप्पू को वहीँ डाइनिंग टेबल पे ही मुट्ठ मार के झाड़ के इनकी सारी मलाई, आम की बड़ी सी फांक पे, निकाल के सीधे वो आम गुड्डी रानी के मुंह में, और वो बाजी में जो जीती तो, फिर तो,

लेकिन ये तो मेरे भी मन में नहीं आया था की सच में मेरी ननदिया, इनकी बहिनिया इतनी बड़ी लंड खोर बन गयी है, १२ घंटे तक नान स्टॉप, और सिर्फ एक नहीं, एक साथ दो दो , तीन तीन, एक से एक छिनारों को हराया उसने, और जावेद ऐसा जिसका बित्ता नहीं पूरा हाथ था, असली बांस और सिर्फ जावेद नहीं, बंटू ऐसा मोटू, उस्मान, और पता नहीं कितने,



लेकिन उस स्साली का असली यार तो मेरा वाला ही था,

उस बहन के यार की बहन की चुदाई की हाल सुन सुन के हालत खराब थी, झंडा खड़ा, देह मस्ती से चूर, और मैं अपने यार के गले लग के सीने पे उसके अपनी ऊँगली से खुरच रही थी और उसके कान की लर को हलके से काट के, कान में बोलीं,

" यार स्साली तेरी बहन तो सच्ची चुदक्क्ड़ निकली, एक रात में दर्जन भर से ऊपर घोंट लिया और तू स्साले तीन महीने पहले कह रहा था, अभी छोटी है, अभी बच्ची है, अरे वो स्साली अब बच्ची जनने लायक हो गयी है। सच में तुम सब रंडियों के खानदान से हो, पक्का, मम्मी कहती थीं , लेकिन अब मुझे पक्का विशवास हो गया है। माल तो मस्त है ही, चुदवाने में भी नम्बरी, "

और उसे चिढ़ाते हुए मैंने कचकचा के गाल काट लिया,

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लेकिन मेरा साजन, मेरी माँ का दामाद, अब एकदम अपनी सास का सिखाया हो गया था, मुस्करा के मेरे जानम ने सूद ब्याज समेत लौटा दिया, बोले ये,

" आखिर ननद,.... किस भौजाई की है "।

मैं बड़ी जोर से मुस्करायी, स्साली, मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊं,

लेकिन जोर से उनके मेल टिट्स को लम्बे नाख़ून से खरोंच के बोली,

" स्साले, लगता है आज तुझ गाँड़ मरवाने का मन कर रहा है, जो इतना चहक रहा है, अभी बताती हूँ, तुझे कैसी है तेरी,... रंडी छाप बहिनिया की भौजाई "
 
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komaalrani

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और अब मेरी बारी ---फेम डॉम का भूत

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और मैं बिस्तर से उठ गयी, आज मेरे ऊपर वो पुराना फेम डॉम वाला भूत सवार हो गया था, एक तो पहले दिन में भी एक दो राउंड हो जाता था, लंच पे ये आता था और लंड खिला के जाता था, लेकिन पहले मेरी रसमालयी बिना नागा खाता था, पर अब न इसे ऑफिस से फुर्सत है और न मुझे लेडीज क्लब के चक्कर से, और जब से ये तीन दिन का दिल्ली बंबई का चक्कर लगा तब से और, और आज तो जांघ के बीच में ऐसी आग लगी है की,



पर आज बताती हूँ उसे की उसकी सास की बेटी कैसी है,

मैं सच में आज जबरदस्त गरमाई थी, और ऐसी वैसी नहीं आग लगी थी जाँघों के बीच, बल्कि पूरे तन मन में



एक तो अपनी ननद की दास्तान ननद के मुंह से सुन के और यही तो मैं चाहती थी, सिर्फ छिनार नहीं बल्कि पक्की रंडी बने और रंडीपने का किस्सा खुल के अपने भैया को खशी से सुनाये, उन्ही भैया को जो अपनी इसी बहन को 'सीधी साधी ' समझते थे, 'अभी छोटी है ' कहते थे

और वो एक बिल में दो दो

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लंड घोंट गयी, और मैं उसके साथ भी नहीं थी की कोई कहे की भाभी ने उकसाया,



और अपनी बहन की कहानी सुन के गरमाये ये भी थे,

खूंटा जबरदस्त खड़ा और वो देख के और आग लग रही थी, एक ओर मन कर रहा था की चढ़ के चोद दूँ स्साले को, दूसरे मन कर रहा था तड़पाने को



तड़पाने को, इसलिए की ये भी तो तीन दिन कम्पनी के काम से बिना बताये बम्बई भाग गया था बिना सोचे की तीन दिन मेरा काम कैसे चलेगा और उन्ही तीन दिनों में एक दिन इनकी छिनार बहिनिया ने जाकर एक रात में ही दर्जन भर से ज्यादा मोटे मोटे खूंटे घोंटे और में करवट बदलती रही

इसलिए तड़पाना भी था, तंग भी करना था और सजा भी देनी थी और जबरदस्त



ज्यादा आग लगने का कारण एक और था, ये कैमरे, पहले तो ये सोच के की कोई और भी देख रहा है, कोई रिकार्ड कर रहा है, पता नहीं कौन कौन देखेगा, थोड़ी झिझक, थोड़ी हिचक लगती थी, लेकिन अब और मजा आता ये ये सब सोच के। अबे सालों देख लो, आँखे फाड़ फाड़ के

अरे ऊपर से लिखवा के लायी हूँ, मेरा मरद मेरी मर्जी, जिसको मिर्ची लगती है लगे,



तो बस मैंने तय किया था की आज रगडूंगी और कस के रगडूंगी अपने मरद को,

अरे अपनी बहिनिया को चोद चूका है, अभी बहिनिया की कहानी सुन चूका है,

अपनी भौजाई की हचक के गांड मर चुका है

तो बस एक बची है, खाली , इनकी सास की समधन, मेरी सास बस अगले हफ्ते आ भी रही हैं,


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पहले मैं सोच रही थी, कैमरे का चक्कर ख़तम हो जाए तो आएं वो । क्या पता बेटे के मन में झिझक आये कैमरे की सोच के, फिर मैंने आज तय कर लिया रहेंगे कैमरे तो रहे, मादरचोद तो मादरचोद ही होगा, भले कैमरे के सामने हो रिकार्ड भी रहेगा, मेरे पास।

और फेम डॉम के लिए विनाइल की टाइट ड्रेस, हाईहील , कोड़ा या केन और हाथ में दस्ताना होना ही जरूरी नहीं , हालांकि वो सब है मेरे पास और इन पे इस्तेमाल भी कर चुकी हैं



मेरा मरद तो उसकी फैंटेसी मैं नहीं पूरी करुँगी तो कौन करेगा, और मेरे मरद के लिए सही गलत कुछ नहीं, बस जो उसका मन करे, जो बातें मन में उन्होंने दबा के रखी थी वो सब कुरेद कुरेद के मैंने पता किया और सब फैंटेसी पूरी की मैंने


लेकिन फेम डॉम में हाईहील, कोड़ा केन न भी हो, तो भी बॉन्डेज तो चाहिए, हाथ तो बांधना ही पड़ेगा और आँख और मुंह भी चलिए बाद में मुंह खोल दूंगी लेकिन हाथ बांधना ही पड़ेगा



और उसके लिए कोई जरूरी नहीं है महंगे हैंडकफ हो, बॉन्डेज टूल हो मुझे मालूम है इस बदमाश का हाथ, आंख मुंह कैसे बांधना है

उठ के मैंने पहले तो वही किया जो हरदम करती हूँ, दो छोटे छोटे चुम्बन उसकी आँखों पे, सबसे बदमाश तो वही दोनों हैं, जयमाल के समय ही जिस तरह से देखा उसने, लजाते, झिझकते, मुश्किल से पलकें उठीं, गिर गयी और फिर

मन तो किया एक जनम नहीं सात जनम इस लड़के के नाम लिख दूँ,

और मैंने लिख दिया,

और माला डालने के पहले ही मैं समझ गयी की मेरे इसके बीच में कोई नहीं आ सकता, कोई नहीं मतलब कोई नहीं,

लेकिन हाँ है ये थोड़ा बुद्धू, और ज्यादा लालची,

और मैंने तय कर लिया, किसी ने इस बुद्धू के ऊपर आँख भी उठायी तो ये लड़की, उसके हाथ, पैर सब तोड़ के उसके टूटे हाथ में रख देगी



और चुंबन से आँखे चिपका के मैं बोली,


अंडी, मंडी, शंडी, जिसने आँख खोली, उसकी माँ बहन सब रंडी।



और बाहर,
 
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बहिनिया की ब्रा


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और पांच मिनट बाद जब मैं कमरे में घुसी, एकदम दबे पाँव तो बेचारे की आँखे बंद थी, कस के भींचे थे ये और लौंड़ा एकदम टनटनाया, फनफनाया, हवा में खड़ा, मोटा सुपाड़ा खुला, भूखा,



किसी का लौंड़ा एकदम खड़ा हो, बीबी भी गरमाई हो, चूत एकदम भट्ठी हो रही हो, लेकिन चुम्मी लेकर चली जाए, बोल के बस अभी आयी, तो जो हालत होगी, किसी पति की बस वैसे ही, बल्कि उससे भी १०० गुना ज्यादा बेताब, बेसबरे,

और मेरे एक हाथ में दो तीन ब्रा थीं, ३२ सी साइज की, और किसकी, इनकी बहिनिया की, गुड्डी की, और दूसरे हाथ में पैंटी, मैं लांड्री बास्केट से निकाल के लायी थी, सब पहनी हुयी, वो भी थोड़ी देर की नहीं, एक दो दिन से ज्यादा,

असल में गुड्डी के आने के बाद धीरे धीरे सब काम मैंने उसको पकड़ा दिया, कौन से कपडे मशीन में जाएंगे, कौन से हैण्ड वाश में जाएंगे, सिर्फ उसके अपने नहीं मेरे भी, और इनके भी, कभी गीता देर सबेर आयी तो वो सब काम भी,

तो बस गुड्डी के जाने के बाद से, ये सब पड़े रह गए थे, और पैंटी तो मैंने जान बुझ के उसे उतराने नहीं दी थी, दो दिन पार्टी के, गैंग बैंग के पहले और फिर गैंग बैंग के बाद भी, दिल्ली जाने के पहले तक

में पहले से तैयारी कर के गयी थी,

जब गुड्डी की पार्टी के बाद मुझे उसे पिकअप करना था, वो बोलने की हालत में नहीं थी, एकदम थेथर, बिल धक्के धक्के खा के लाल हो गयी थी, एकदम फैली और पता नहीं कितनों की मलाई अंदर भरी थी ऊपर भी कम से कम चार पांच लेयर थक्के पड़े थे, जमे, जांघ पे भी,

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बस मैं एक कॉटन की पैंटी ले गयी थी और वही उसे पहना दी और एक ब्रा.
और रेनकोट जो पहन के वो पार्टी में गयी थी वो मिल गयी तो बस उस ब्रा और पैंटी के ऊपर

और जब तक वो गयी नहीं,... वो पैंटी मैंने उतारने नहीं दी,

बल्कि कभी मैं पैंटी के ऊपर से रगड़ के चूस चूस के मैं पानी निकाल देती तो कभी उसे कह के, गुड्डी खुद पैंटी के ऊपर से रगड़ के अपना पानी झाड़ देती उसी पैंटी में तो जब तक वो बूट कैम्प में नहीं गयी दो दिन का उसका हर तरह का देह रस उस पैंटी में सोखा हुआ था

तो उस ब्रा और पैंटी में इनकी टीनेजर बहिनिया की देह गंध अच्छी तरह रची बसी थी।



बगल में बैठ के एक ब्रा से मैंने इनके चेहरे पे सहलाया, और फिर लहराते हुए पहले इनके सीने पर और फिर खूंटे पर,


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और जैसे कोई रस्सी से बांध के मथानी रगड़े,

वो भी समझ रहे थे उनकी बहिनिया की ब्रा है, उनके बचपन के माल की, अनारकली ऑफ़ आजमगढ़,

और मस्ती से उनकी हालत खराब हो रही थी, चूतड़ पटक रहे थे, लेकिन उनके और मस्त होने के पहले उन्हें बांधना छानना जरुरी था, तो बस उसी ब्रा से उनके दोनों हाथ कस के बांध दिए, मैं प्रेजिडेंट गाइड थी, १८ तरह की गांठे जानती थी, तो एक के बाद एक चार गांठे लगा दी, अब छटपटाते रहो, अब पता चलेगा की मेरी ननदिया की भौजाई कैसी है।



अगली ब्रा से उनकी आँखे बाँध दी, तगड़ा ब्लाइंडफोल्ड।


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बाजार में तरह तरह के ब्लाइंडफोल्ड मिलते हैं, मम्मी लायी भी थीं,

लेकिन मैं मानती हूँ की बहिनिया की ब्रा से अच्छा कोई ब्लाइंडफोल्ड कुछ नहीं, जो उसकी छोटी छोटी चूँची कस के दबाये रहता है, वही भाई की आँखों पर।

हाँ मैं मानती हूँ बहिनिया की ब्रा से अच्छी सिर्फ एक चीज हो सकती है, महतारी की ब्रा,

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बचपन से अलगनी पे टंगे टंगे देख के इनका मन डोलता रहा होगा, तो मैंने अपनी सास से बोल दिया था बहुत पहले अब कोई घिसी ब्रा, पैंटी इधर उधर नहीं, सब, जब आइयेगा, अपने मुन्ना के लिए, और यहाँ तो मैं उन्हें दो तीन दिन तक पैंटी बदलने नहीं दूंगी और वो सब बिना धुले,

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हफ्ता भर और,बस हफ्ते भर में मेरी सास आएँगी और फिर उनकी बिन धुली ब्रा पैंटी सब उनके मुन्ने के लिए

अब जब मुझे पता चल गया की ये लड़का न देख सकता है न अपने हाथ से मुझे रोक सकता है, तो इनके सीने पे चढ़ के , वो इनकी बहिनिया की गुड्डी की दो तीन तक पहनी पैंटी सीधे इनके नाक पे,

और क्या जोर से सुंघा उन्होंने,

कौन ऐसा मरद होगा जिसकी बहन की चूत की महक से हालत न ख़राब हो जाए और जो अपनी बहन की चूत की महक सोते जागते न पहचान ले, अगर कोई ऐसा है तो या तो वो मरद नहीं या भाई नहीं,

और ये तो दोनों, बल्कि पक्के बहनचोद भाई, इनकी हालत खराब, और यही तो मैं चाहती थी, अच्छे घर न्यौता दिया था इन्होने, मुझे छेड़ के

इनकी हालत जितनी ख़राब हो, जितना तड़पें, घर में न माँ न बहन, तड़पाने वाली भी मैं तड़प बुझाने वाली भी मैं

और गुड्डी की बुरिया के रस से भीगी, पैंटी मैंने कस के इनके नाक पे रगड़ दी,


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देख ये सकते नहीं थे,

लेकिन सूंघ, सकते थे, स्वाद ले सकते थे, सुन सकते थे और चमड़े का मजा तो ले ही सकते थे। तो बस दोनों गाल दबा के मुंह खोल के के वही पैंटी इनके मुंह में भी डाल दी अंदर तक,
ले चाट साले, ....बहिनिया नहीं है तो उसकी बुर का रस ही चाट ले



मैंने इन्हे और उकसाया,

क्या कोई रसमलाई चाटेगा, चपड़ चपड़, एक बार तो मैंने सोचा वही पैंटी इनके मुंह में ठूंस के तीसरी ब्रा से इनका मुंह बंद कर दूँ लेकिन अभी तो इनकी चीखे सुननी थीं, इसी मुंह से इनसे इनकी महतारी को गन्दी गन्दी गालियां दिलवानी थीं और रिकार्ड करके कल सुबह सुबह अपनी सास को सुनानी थी,


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की उनका मुन्ना उन्हें कैसे याद कर रहा है, जल्द आ जाए और किस माँ को अपने मुन्ने की आवाज अच्छी नहीं लगती, लेकिन सबसे बड़ी बात वो हैकर सब, जो कैमरे में सुन रहे थे रिकार्ड कर रहे थे, वो भी जान जाएँ की कितना ठरकी है ये बहन को तो छोड़ा नहीं अब माँ पर भी


और मैंने उनके मुंह से पैंटी निकाल ली उनकी बहिनिया की,…

और अपने काम पे लग गयी।

….

जैसे कोई हवाई हमला होनेवाला होुता है दुश्मन का तो जिस देश पर हमला होने की आशंका होती है वो सब जहाज हैंगर में छुपा देता है, सोचता है कहाँ हमला होगा, और फिर काउंटर काउंटर अटैक, राडार से पता कर के, अपने फाइटर प्लेन उड़ाता है और कुछ नहीं तो एंटी एयरक्राफ्ट गण ही सही,



पर वो बेचारे क्या काउंटर अटैक करते, हाथ भी बंधे थे गुड्डी की ब्रा से और आँखें भी मुंदी थीं, बहिनिया की ब्रा से, न देख सकते थे मैं क्या करने वाली हूँ , न रोक सकते थे अपने हाथ से,



और मैं दो मिनट चुपचाप बैठी रही, उन्हें सुलगते देखती रही, और फिर हमला हुआ तो जहाँ वो कभी सोच भी नहीं सकते थे,

न मेरे होंठों ने उनके पगलाए, भूखे मोटे सुपाड़े पर धावा बोला, न मेरी जीभ उस खड़े कड़े चर्म दंड के बेस पर गयी,

जीभ की टिप, बस टिप सीधे उनके बॉल्स पे, और बस छुआ, सहलाया, कुछ मेरी जीभ ने फुसफुसाया,
 
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मुख रस रसगुल्लों का

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और दो मिनट तक तड़पाने के बाद सपड़ सपड़ चाटने लगी दोनों रसगुल्लों को, फिर बारी बारी से एक एक को मुंह में लेकर चूसने लगी

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और पांच मिनट में मेरी उँगलियाँ भी मैदान में आ गयी थी, लेकिन वो मोटा परेशान फनफनया लंड, अभी भी उसे न मेरी जीभका स्पर्श मिला न उँगलियों का

उँगलियाँ बस उनके जाँघों के ऊपरी हिस्से को छूती रही, सहलाती रहीं जस्ट फेदर टच, फिर अचानक, लम्बे नाख़ून मेरे धस गए, गड गए और मैने पूरी ताकत से खरौंच लिया


उईईई उईईईईई वो जोर से चीखे, कुछ दर्द से कुछ मजे से, और चूतड़ बित्ते भर उछल गए,

और मैंने उनके दोनों चूतङो को उठा के दो मोटे मोटे तकिये, बिस्तर से कम से कम ९ इंच से ज्यादा ऊपर उठा था, और टाँगे दोनों अच्छी तरह फैला दीं, जैसे कोई कच्ची कुँवारी कली को चोदने के लिए तैयार कर रहा हो,


लेकिन इतना मोटा रसीला गन्ना सामने हो तो बिना चूसे रहा भी नहीं जाता, और मैं भी नहीं रोक पायी और बस जीभ से सुपाड़े को सपड़ सपड़ चाटने लगी ,


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फिर सुपाड़े के छेद पे, पेशाब वाले छेद पे जीभ की टिप से सुरसूरी

वो तड़प रहे थे, मचल रहे थे, और अगर मैंने चार चार गांठ न लगाई होती तो शायद हाथ छुड़ा भी लेते,

और वो मान गए, बेचारे करते भी क्या, एक तो मज़बूरी और दूसरे इतनी तगड़ी घूस का मैंने वादा किया था,

मज़बूरी ये की हाथ पैर तो कस के मैंने बाँध दिए थे और वो भी उनकी बहनिया की ब्रा का इस्तेमाल किया, आँखे भी बहिनिया की ब्रा से वो भी चार चार दिन की पहनी हुयी गुड्डी के जोबन के रस से पसीने से भरी,

और खूंटा खड़ा था, रसमलाई मांग रहा था,



और घूस में मैंने उनकी नयी बनी छोटी साली,...निधि को दिलवाने का वायदा किया था,
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उस बेचारे को क्या मालूम उस की नयी साली,...निधि उस पे कितनी लुभाई थी,

और २४ घंटों का उसने टाइम दिया था, अगर २४ घण्टे में इन्होने उसके जीजू ने न ली अपनी साली की, तो वो खड़े खड़े उन्हें रेप कर देगी, वो भी मेरे सामने।

और मन तो इनका भी कर रहा था, बेचारे, और निधि सुन्दर भी थी।

सुन्दर तो गुड्डी भी बहुत थी, लेकिन निधि सुन्दर और हॉट होने के साथ अपने एक एक अंग का इस्तेमाल जानती थी, किस उम्र के लौंडो को क्या चीज पागल करेगी उसे मालूम था, इसीलिए १४ से ५४ तक सब का उसका देख के फड़फड़ाने लगता था, लेकिन निधि अभी थी नहीं।

आज से उसका कालेज शुरू हुआ था और किसी सहेली के यहाँ थी, यही छोड़ के आये थे, इतने दिनों के क्लास के नोट्स लेने थे उसे, दो महीने बाद ही प्री बोर्ड था और मैं चाहती थी की पढ़ाई में वो पीछे न रहे। निधि ने बोला था की अगर देर ज्यादा हो गयी तो वो सहेली के यहाँ रुक जायेगी और वैसे भी मैंने उस बाहर के गेट की चाभी दे दी थी, की आ के अगर हम लोग सो रहे हों तो सीधे अपने कमरे में घुस जाए।

और उसके इतना नौटंकी करने का एक ही कारण था,

उसकी माँ, मेरी सास, और मैंने कान में बोला था, रोल प्ले के लिए मैं माँ और वो बेटा, और पहले भी हम लोग कई बार कर चुके थे, और एकदम खुल के, लेकिन जिस लिए वो हिचक रहे थे मैं समझ रही थी और उसी लिए मैं जिद्द पर अड़ी थी,



कैमरे के लिए,



वो झिझक रहे थे, जो बो बोलेंगे, वो सब जो उस हैकर ने कमरे लगाए हैं जगह जगह सब रिकार्ड होगा और वही बचपन का डर, 'लोग क्या सोचेंगे।

पता नहीं कहाँ कहाँ तक बात जायेगी, और सब लोग, क्या उन के बारे में सोचेंगे, मैंने और मम्मी ने मिल के यही, लोग क्या सोचेंगे वाला डर उन के मन से करीब करीब निकाल दिया था लेकिन कहीं न कहीं, मन के कोने में वो रह गया था, और वो भी उन को माँ को लेकर,


लेकिन मैं इसी लिए पीछे पड़ी थी की कैमरे वाले देखें की स्साला, अपनी माँ को भी नहीं छोड़ेगा अगर मौका मिलेगा।


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रिपोर्ट में तो यही लिखा था की ये ठरकी हैं इसलिए इन पर शक कम है और हम सब का काम था इन्हे कैमरे के सामने महा ठरकी सिद्ध करना, जिससे वो शक ख़तम हो जाए और बाहर जो २४ घंटे, गाजर वाला निगाह रखता है, अंदर कैमरे हैं उनसे पीछे छूटे,

और इसलिए भले ही फैंटेसी में सही, रोल प्ले में ही मैं उन्हें पक्का मादरचोद बनाये नहीं छोड़ना चाहती थी, और एक बात और थी, माँ के नाम से उनका फनफनाता बहुत कस के था और वो रगड़ के मेरी की पांच मिनट में मेरा पानी छूट जाता था,



और असल में भी मैं उन्हें मादरचोद तो बनाना चाहती थी लेकिन, जब तक सास नहीं आतीं तो रोल प्ले सही और


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कैमरे के सामने तो मैं असल में जबरदस्त थ्री सम करना चाहती थी, दो लड़कियां एक वो और तभी वो स्साले कैमरे वाले मानते की ये आदमी ठरकी नहीं महा ठरकी है और जासूसी वासुसी इसके बस की बात नहीं।

हम लोग खुल के मस्ती करते थे लेकिन कैमरे में तो यही जा रहा था की बड़े हॉट कपल है, और जो मैं इनकी बहनो के लिए बात कर्त थी या गुड्डी ने बोला, गैंग बैंग, वो ये भी सोच सकते थे की बढ़ा चढ़ा के बोल रही होगी, फिर उसमे इनका तो कोई रोल था नहीं इसलिए इनका किसी और माल पे इन कैमरों के सामने चुदना जरूरी था, और थ्री सम हो तो पक्का ठरकी,

और तबतक मादरचोद होना कबूल करना कैमरों के सामने जरूरी था, वो सोच रहे थे मैं कुछ करुँगी, तड़प रहे थे, फड़फड़फा रहे थे, चूतड़ पटक रहे थे, आह उन्ह कर रहे थे और सब कैमरों में ज्यूँ का त्यूं जा रहा था,



और उस से ज्यादा चूतड़ पटकने से ज्यादा वो कुछ कर भी नहीं सकता था, उनकी बहन, बचपन के माल की कच्ची अमियों वाली ब्रा से मैंने उसकी मशकें इतनी कस के बाँधी थीं की लोहे की हथकड़ी झूठ.

हाथ हिला भी नहीं सकते थे और वही हालत आँखों की भी थीं,
 
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इनकी माँ --मेरी सास
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अंत में उस बेचारे ने ही शुरू किया, " माँ,… छोडो न "

मैं खिलखिलाते हुए एकदम अपनी सास की आवाज और अंदाज में बोलीं,

" काहें छोडूं, बहुत बदमाश हो गया है अभी तो तो तेरी पिट्टी पिट्टीभी करुँगी "

और एक हल्का सा चांटा मैंने उनके गाल पे लगाया और नाक पकड़ के हिलाते बोलीं,

" बोलो मुन्ने किस चीज से तेरा हाथ बाँधा है "

" वो आपने, अपनी आपकी, " हकलाते हुए, किसी तरह उनके मुंह स निकला,

"आपकी ब्रा से "

मैं कस के मुस्करायी, और उनके खड़े लंड पर हलकी सी प्यार भरी चपत मारती हुयी एकदम अपनी सास की आवाज में बोली, " अच्छा तो अब ये भी बता दे, मेरी ब्रा की साइज क्या है "


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" ३६ नहीं ३८ " और कुछ झिझकते हुए उन्होंने बात पूरी की, " ३८ डी डी "

" तुझे मेरी ब्रा अच्छी लगती है, बोल सच नहीं तो बहुत पिटेगा " और एक दुलार भरा चांटा मैंने उनके गाल पे लगा भी दिया,



" ओह, हाँ माँ, सच में बहुत अच्छी, बलाउज में जब झाकती है न,स सफ़ेद ब्लाउज पे जब काली वाली ब्रा पहनती थी न तो एकदम, " अब उनकी हालत खराब हो रही थी,

" सिर्फ, ब्रा ही या ब्रा के अंदर वाली भी, अरे लजा क्यों रहा है लौंडियो की तरह तेरी सब बदमाशी मुझे मालूम है, बोल " एकदम उनकी माँ की आवाज

" अंदर भी, " वो झिझकते हुए, घिघियाते बोले,

" अबे तो अंदर वाले का नाम क्यों नहीं लेता, अब तो बड़ा हो गया है तू बोल न खुल के "

" चूँची " थूक गटकते हुए किसी तरह उनके मुंह से निकला

" कैसे देख ली तूने मेरी चूँची ? " उनकी माँ की आवाज ने पूछा

" वो वो असल में आप एक दिन नहा के निकली तो बिना ब्रा के आपने सफ़ेद वाला ब्लाउज पहन लिया था और देह आपकी एकदम गीली थी तो वो चिपक गया था, साफ़ साफ़ दिख रहा था " रुकते रुकते वो बोले


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" स्साले, बदमाश " मैं जोर से हंसी फिर कबूला की वो तो उन्हें दिखाने ललचाने के लिए ही पहना था फिर असली सवाल पूछ लिया



" अच्छा ये बता तूने मेरी ब्रा में मुट्ठ मारना कब शुरू किया " एकदम कड़क आवाज में बेचारे हड़क गए,

" वो एक दो बार, कभी कभी, वो क्लास नाइंथ में " हिचक के बोले और एक चांटा कस के पड़ा उनके गाल पे

और उन्होंने सच उगल दिया

" क्लास, वो,...वो दर्जा आठ में पहली बार आपकी ब्रा में मुट्ठ, "
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" स्साले मुट्ठ मारने में शर्म नहीं और चूँची बोलने में गांड फट रही है, अब अगर साफ़ साफ़ नहीं बोला तो चूतड़ लाल कर दूंगी"
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मुर्गा फड़फड़ा रहा था, एकदम कड़ा, खड़ा, मन तो कर रहा था मुंह में ले लूँ,

ऊपर चढ़ के कार्यक्रम शुरू करूँ,

लेकिन स्साले को तड़पाना भी था, और कोई दिन होता तो मैं रूकती नहीं, लेकिन सामने कैमरे थे और मैं चाहती थी, उनके मुंह से निकली एक एक बात रिकार्ड हो और सात समुंदर पार जो भी सुनना चाहता है, वो गूगल ट्रांसलेट से ट्रांसलेशन करा के सुने, और मैंने अबकी उस खड़े खूंटे पे एक कस के चपत मारी, और थोड़ा गुस्से में बोली, एकदम जैसे उनकी माँ गुस्से में बोलती थीं, उनसे

अब वो थोड़ा घबड़ाये, रुक के, हिचक के बोले,

" वो वो, लेकिन आप को कैसे, मतलब वो तो धुलने वाले कपड़ों में, रोज नहीं कभी कभी, मन करता था "

अबकी खड़े खूंटे पे चपत और कस के पड़ी, " फिर झूठ, रोज नहीं करता था, मैं देखती नहीं थी क्या, " मैं उनकी माँ की एकदम नक़ल कर के बोली।

" आप तो बहुत गुस्सा होंगीं " वो घबड़ा के हलकी आवाज में बोले

बेचारा बहुत डर गया था, तो अब मैं खिलखिला के, एकदम उनकी माँ की खखनाती हंसी, और बोली,

" अरे गुस्सा क्यों होउंगी, मैं तो बिना धोये उसे पहन लेती थी, मेरे मुन्ना की मलाई " और प्यार से खूंटे को पकड़ के सहलाने लगी, फिर चिढ़ाया, " इतनी ढेर सारी मलाई मेरी ब्रा मे छोड़ता था, अब भी उतनी ही मलाई निकलती है क्या ?"

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उन्हें एकदम लग रहा था की उनकी माँ का हाथ उनके मुसल पे है, आँख तो बंद थी और आवाज मेरी एकदम मेरी सास जैसे मैंने बना ली थी

और वो मजे से काँप रहे थे, सिसक रहे थे। खुश हो के बोले, " माँ, अरे अब उससे भी ज्यादा,.... आप बस आ जाओ, जल्दी आओ ना "



रोल प्ले की ये सब बातें सच थीं, सरासर सच, ऐसे ही एक बार उन्होंने मुझे कभी पूरा नहीं बस जरा सा हिंट दिया था, ऐसे ही एक रोल प्ले में और मैंने ये बात उनकी सास से बोली, और फिर उन्होंने मेरी सास अपनी समधन को चिढ़ाया, स्पीकर फोन ऑन था,



और सब सच था,



ये और हमेशा मेरी सास के नहाने के बाद, बाथरूम में जहँ मेरी सास के कपडे होते थे वो बाद में धोती थी तो वहीँ उन्हें ब्रा उनकी एक दिन गीली गीली मिली और वो समझ गयीं, किसका माल है, फिर बिना सोचे उन्होंने उसे पहन लिया छप्प से उभार पर लगा, और वो गिनगीना गयीं, तब से ये रोज का खेल हो गया, वो समझ गयीं थीं की उनका लड़का उनकी ब्रा में मुट्ठ मारता है, लेकिन उन्होंने कहा नहीं



और मैं दोनों समधन की बात सुन के समझ गयी, मुझे क्या करना है,

जो साजन मन भावे



उनकी माँ का रोल करते मैंने हलके हाथ से फनफनाते खूंटे को सहलाया, और फिर कस के दबा के पुछा, " बोल क्या करना चाहते थे मेरे सतह, मेरी ब्रा के अंदर का तुझे अच्छा लगता था ?"
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" वो मैं, हाँ बहुत अच्छा लगता था, है वो मैं "

किसी तरह उनके बोल फूटे, और अब मैं सीधे एक्शन पर चली गयी,

और क्या जबरदस्त टिट फक किया मैंने, उनका, उनकी माँ बन के
 
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इनकी माँ --मेरी सास -टिट फक

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टिट फक उन्हें बहुत पसंद था, और मुझे भी, हफ्ते में एक दो बार तो मस्ट, लेकिन आज कुछ बात ही अलग थी,

एक तो मैं उनकी माँ बनी, उनकी फैंटेसी पूरी कर रही थी और

दूसरे ये सब मैं आज पहली बार कैमरे के लिए कर रही थी। मुझे मालूम था की कमरे में कितने कैमरे हैं और कहाँ कहना लगे है तो जैसे ट्रिपल एक्स फिल्मो में, भले ही लड़के लड़की को कितनी मशक्कत करनी पड़ रही हो, टेढ़े तिरछे पोज में बिलकुल मजा न आ रहा हो लेकिन अंग विशेष एकदम कैमरे की नजर में रहना चाहिए, जिससे देखने वाले को लगे की वो बिस्तर के बगल में बैठ के शो देख रहा है।

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" हे यही चाहता था न तू मुन्ना ? " उनकी माँ बनी मैंने उन्हें छेड़ा,

"हाँ हाँ यही एकदम यही, " चूतड़ उठाते उचकते वो अपने टीनेज में वापस जाते, वो बोले,

" अबे साफ़ साफ बोल न की मेरी चूँची चोदना चाहते थे , मेरी चूँची है ही ऐसी" हंस के मैं बोली और फिर चालू हो गयी

अब मेरी सास की ३८ डीडी का मुकाबला मेरी ३४ सी कहाँ कर सकती थी, फिर भी मैंने एकदम उसी तरह, पहले अपने कड़े खड़े निपल को उनके मोटे मांसल फूले हुए सुपाड़े की आँख पे, पेशाब के छेद पे रगड़ा, सुरसुरी की,
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फिर धीरे धीरे मांसल फुले हुए बड़े सुपाड़े पर,

वो गिनगीना रहे थे, चूतड़ पटक रहे थे, सी सी कर रहे थे

फिर निपल की नोक उनके चर्म दंड पर, नीचे के रसगुल्लों तक,



करो न, करो ना " बेचारे की हालत खराब थी और और मैंने अब कस के अपनी चूँचियों के बीच में दबा के उस मूसलचंद की रगड़ाई करनी शुरू कर दी।



कहते हैं न दो पाटों के बीच में फंस के बचा न कोय

तो जो बहुत अकड़ू खा बनता है, बोलता है चोद के रख दूंगा, फाड़ दूंगा,



जब वह चूत की दो फांको के बीच फंसता है न

या दो चूँचियों के बीच


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बस रगड़ के, पीस के दबा के निचोड़ के थोड़ी देर में उसे शेर से बकरी बना देती है और अपना मुंह लेके लौट जाता है वो

तो बस उसी तरह मैं रगड़ रही , कस के पूरी ताकत से और मजा मुझे भी आ रहा था जो उनका मोटा मूसल कड़ा कड़ा मेरी चूँचियों में रगड़ खा रहा था, थोड़ी देर मैं चुपचाप चूँचियों के बीच ले के रगड़ती थी, उन्हें चढाती थी, गरियाती थी, उनकी माँ बनी, एकदम उन्ही की आवाज में, उन की माँ की ही तरह और वो समझ भी वही रहे थे



" का मुन्ना, इहे मन करत रहा, महतारी क चूँची चोदने क "

" और वो लजाते शर्माते कबूल करते, " हाँ माँ "

" अबे, खाली चूँची चोदने का मन कर रहा था की कुछ और बोल न साफ़ साफ़, जब मेरी ब्रा में मुट्ठ मारते थे तो खाली चूँची चोदने को सोचते थे , सच बोल " और अब मैं हड़का लेती थी, ये स्साला इस की शरम जा नहीं रही थी, इसकी बहन चुद चुद के रंडी हो गयी, एक रात में बारह लौंडो को चढ़वा लिया अपने ऊपर और ये अभी भी गौने की दुल्हिन बना,

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" तुमको, आपको, तुझे चोदने का मन कर रहा था, जब से हाईस्कूल में था तब से " शर्माते कबूला उन्होंने और मैं एकदम हर्षा गयी



यही तो कन्फेशन मैं सुनना चाहती थी और अपने कानों के लिए नहीं, उन कैमरों के लिए जो एक एक बात रिकार्ड कर रहे थे, सचित्र और दूर समुंदर पार न जाने कहाँ कहाँ पहुंचा रहे थे। सुने वो सब मेरे मरद की असलियत, यही जानना चाहते थे न की ये ठरकी है की नहीं, और अगर ठरकी है तो उनका शक ख़तम हो जाएगा, तो ये अभी का नहीं पैदायशी बचपन का ठरकी है, कोई भी सुनने वाला, देखने वाला बोलेगा



और खुस होक मैंने अपनी सास के मुन्ना को इनाम दे दिया, लंड का टोपा माँ के मुंह में और चुसूर चुसूर,.... लगी कस कस के चूसने, बेचारे चूतड़ पटक रहे थे। पटकें मुझे क्या लेकिन मेरी चूँचियों ने लंड की रगड़ाई कम नहीं की

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लेकिन अब मेरी चुनमुनिया शिकायत कर रही थी और मैंने गीयर चेंज कर दिया

" : मुन्ना तेरा बहुत मन कर रहा था न माँ की बुर का मजा लेने का, चल बस हिलना मत "
 
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माँ - वोमेन ऑन टॉप

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और में ऊपर थी, वोमेन ऑन टॉप, विपरीत रति, लेकिन रति क्रिया शुरू करने के पहले मैंने उनकी ऐसी की तैसी कर दी, दस अगली उनकी माँ बहन को दिलवाई, ऊपर चढ़ के सुपाड़ा फंसा के मैं बस थोड़ी देर बिना धक्का मारे मजा ले रही थी, उसे दबा पिचका रही थी, झुक के अपना जोबन उनके सीने पे रगड़ रही थी, और वो बेचारा नीचे से चिल्ला रहा था, " माँ कर न "



और मैं उनसे सब कबुलवा लिया,


मेरी सास आएँगी तो क्या करेंगे वो,

अगवाड़ा,... पिछवाड़ा,...तीन बात काबुल करवाया मैंने उनसे, अपनी माँ की गाँड़ भी मारेंगे हचक हचक के, और महतारी की गाँड़ मारने के बाद चटवाएंगे, चुसवाएंगे भी . अरे इतना चौड़ा चौड़ा चूतड़ हैं इनकी माई का ऐसे मस्त चूतड़ मटका के चलती हैं, गाँड़ नहीं मारने से पाप लगेगा न।
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और ये भी माना उन्होंने की अपनी महतारी को मेरे, मंजू और गीता के सामने ही निहुरा के चोदेगे
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और वो नहीं भी करते तो हम सब हैं न,... मंजू के साथ मैंने पहले तैयारी कर ली थी, मैं मंजू और गीता मिल के,

असल में आइडिया ये इनकी सास का था,

मेरी मम्मी का इन्हे इनकी माँ पर चढाने का और वो अकेली सास नहीं थी जो ऐसा चाहती थीं।

आखिर हर ननद जिस दिन बिदाई के बाद घूँघट खोल के अपनी किसी कुँवारी ननद को देखती है उसके दिमाग में पहला सवाल आता है इस पे अपने किस देवर को चढ़ाये, बल्कि हो सके तो अपने मरद को ही चढ़ा दे।

जो पहली रात के बाद ही चिढ़ाती है, छेड़ती है, सवाल पूछती है, भाभी दर्द तो नहीं हुआ, भाभी कितना बड़ा था, ज्यादा खून तो नहीं निकला ?

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बस सब सवाल का जवाब मिल जाएगा,....अगर गर्मायी कच्ची कली पर उसका कोई भाई चढ़ जाए, और दबोच के कचर दे

और मैंने वो कर भी दिया, कोई सगा चचेरा देवर तो था नहीं, तो सीधे अपने मरद को अपनी ननद पे चढ़ा दिया। तो अगर मैंने अपने मरद को उसकी बहन पे चढ़ा दिया तो वो मेरे मरद को उसकी महतारी पे चढ़ाना चाहती हैं तो क्या गलत है।

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असल में हर समधन कुछ मजाक में कुछ सच में अपनी समधन को अपनी ससुराल या मायके के मर्दो के नीचे लिटाना चाहती है और जोरदार समधन हो तो सीधे अपनी समधन को अपने दामाद के नीच। और मेरी मम्मी से जोरदार तो दुनिया में कोई नहीं है इसलिए जैसे मैंने इनके एम् आई एल ऍफ़ ( मदर आई लव टू फक ) वाले शौक के बारे में बताया तो वो झट से बोलीं,

" तो चुदवा काहें नहीं देती , अपनी सास को अपने मरद से, छोटी सी चीज के लिए मेरे बेचारे दामाद को तड़पा रही है, और मेरी समधन का भी फायदा, पता नहीं कब से अपनी बुलबुल पेटीकोट में बंद किये पड़ी हैं बेचारी। "



और उनका चरखा चालू हो गया

और मम्मी के चक्कर से कोई शातिर से शातिर नहीं बच सकता था और ये मेरा वाला तो एकदम बुद्धू, और मम्मी का चमचा नंबर १, उनकी बात तो सपने में भी नहीं टाल सकते ये, तो बस आज कल हर फोरम पे माँ बेटे वाली कहानियां भरी पड़ी रहती हैं वो कहानियां मम्मी ने इन्हे पढानी शुरू की और ये भी की सोचो बेटे की जगह तुम हो, और फिर जब आयीं तो मेरे मरद के सामने उनकी माँ से अपनी समधन से खुल के बातें, एकदम गाली गलोज वाली, और मम्मी की समधन भी ऐसी वैसी बाते करें में पीछे नहीं थीं बल्कि वो गाँव की बैकग्राउंड की तो उन्हें मजा भी आता था ऐसी बातों में और स्पीकर फोन हरदम आन और ये न सिर्फ बैठे रहते थे समाने बल्कि इनका मूसलचंद भी पाजामे से बाहर फनफनाया,



मेरी सास गंगा नहाने जा रही थीं जेठ जी के साथ और हम दोनों को इनके मायके जाना था, तो बस मम्मी ने अपनी समधन को फोन पे बोला,




" अरे ये तो बहुत अच्छा है। फिर तो आपका पुराना किया धरा सब साफ़ हो जाएगा , लौटते ही नए यारों का खाता खोल दीजिये। आप गंगा में डुबकी लगा के लौटिए, और यहाँ कोई तैयार बैठा है आपकी पोखर में डुबकी लगाने के लिए। "
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और इसके साथ ही मम्मी ने इनके खूंटे को बाहर निकाल के खुल के मुठियाना शुरू कर दिया ,और फिर एक तगड़ा झटका दिया तो इनका लीची ऐसा सुपाड़ा बाहर, मम्मी उसे अपने अंगूठे से रगड़ रही थीं।



बस तुरंत ही वो टनाटन।

" कौन बैठा है वहां, लगता है आप उसका खूब ट्राई कर चुकी हैं इसलिए ऐसा कह रही हैं, आप भी न सुबह सुबह "

खिलखिलाते हुए मेरी सास वहां से बोलीं और स्पीकर फोन ऑन था ये भी अपनी माँ की बातें सुन रहे थे , मम्मी ने मुझे इशारा किया, और मैंने उस मस्त खड़े खूंटे का एक क्लोज अप, इन्ही के मोबाइल से खींच कर अपनी सास के फोन पे इन्ही के फोन से भेज दिया।
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मम्मी इनका खूंटा मुठियाते हुए इन्ही के सामने इन की माँ से बोलीं

" " एकदम पत्थर है पत्थर ,तीन पानी झाड़ के झड़ेगा ,रात भर , आपको गौने की रात की याद दिला देगा। "

उधर से फिर मेरी सास की खिलखिलाने की आवाज आयी ,



" लगता है आपने ट्राई कर लिया है , अरे इस उम्र में कौन ,... और मैं बड़ों बड़ों का निचोड़ के रख देती हूँ ,मजाक करने के लिए मैं ही मिली थी क्या "


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और मम्मी ने उन की माँ से खुल के तीन बार हाँ करवाई और कहा चलिए इस ख़ुशी में एक बार और आप देख लीजिये और और मैंने फोन वीडियो काल पर करके सीधे उनके मुन्ना की ओर फिर मुन्ना के मुन्ना की ओर, और एक बार उनके मुन्ने के फोन से ही मुन्ने की और मुन्ने के मुन्ने की फोटो मुन्ने की माई के पास।

और उस दिन से तो कोई दिन नागा नहीं गया, जब दोनों समधन खुल के बात करेंगे और मम्मी इन का जिक्र न लाएँ

लेकिन लेवल आगे बढ़ा जब मम्मी ने अपनी टीम में शामिल कर लिया मंजू और गीता को

मंजू का प्लान बड़ा पक्का था, जब इनकी माँ आएं, मेरी मम्मी हो न हों, बस हम तीनो, मैं और मंजू और गीता मिल के उनका चीरहरण ही नहीं करेंगे बल्कि सारे कपडे जब्त, और जब ये लौट के आएंगे आफिस से तो गीता इनकी मुंहबोली बहन आँखों पर इनके पट्टी बाँध देगी, फर्श पर लिटा के चूस के खड़ा करेगी और हम दोनों मिल के माँ को बेटे के ऊपर चढ़ा देंगे, बेटे के आँख पे पट्टी और माँ के मुंह पे, हाँ जब झड़ने वाले होंगे तो दोनों के आँखों की पट्टी खुलेगी, और झड़ते समय कौन निकालता है,

तो रात भर बेटा माँ की सेवा करेगा बहू के सामने और दिन में बहू, मंजू और गीता के साथ मिल के तीनो छेदो की एक साथ, न डिलडो की कमी, न स्टैप ऑन की, और गीता ने तो ये भी कहा की बाकी टाइम गाजर, लौकी बैगन मूली सब सास के अंदर


और रात को माँ प्यार से वही सब बना के अपने बेटे को खिलाएंगी।


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तो ये तय था की अब बेटे जो मादरचोद बनाना है बस एक बाधा थी, गुड्डी। लेकिन अब उसका फोन आ गया की उसकी कोचिंग का कैम्प एक महीने का हो गया है तो बस, अब वो प्रॉब्लम भी साल्व, और मेरी सास को तो आने के लिए चींटे काट रहे हैं तो बस अगले हफ्ते



लेकिन अभी मेरी हालत खराब हो रही थी।



मन तो मेरा भी कर रहा था पूरा मजा लेने का तो बस दो चार धक्को में पूरा मूसल अंदर,

स्साला बहुत ही मोटा है, लगता है किसी ने मुट्ठी घुसेड़ दी , और ऊपर से गीता के पहलौठी के दूध ने उसे लोहे ऐसा कड़ा कर दिया है और घोड़े ऐसा लम्बा, मोटा। दर्द होता है लेकिन मजा भी आता है



और एक बार जब घुस गया तो मेरे बाकी अंग चालु हो गए , कभी चुम्मा लेती तो कभी कचकचा के गाल काट लेती। अब साजन के हाथ बंधे हो तो कौन सजनी फायदा नहीं उठाएगी और मैं तो नकलची बिल्ली थी, कॉपी कैट, जो जो वो मेरे ऊपर चढ़ के करते थे वो सब मैं कर रही थी और उसके अलावा अपने जोबन को कभी उनके सीने पे रगड़ती, कभी उन्होंने होंठों से छुला के दूर हटा लेती तो कभी मुंह पे प्यार से तमाचा मार के होंठ खुला के अपनी चूँची पूरी ताकत से उनके मुंह में पेल देती



खूंटा पूरा अंदर घुसा था, लेकिन बजाय धक्का मारने के, मैं अपनी चूत को कस कस के निचोड़ के, सिकोड़ के उनके लंड की ऐसी की तैसी कर रही थी और फिर बजाय ऊपर नीचे होने के, आगे पीछे हो के, कभी अपनी पतली कमरिया को गोल गोल घुमा के पूरा मजा ले रही थी



ओह्ह उह्ह्ह नहीं हाँ वो नीचे से सिसक रहे थे , हाथ तो उनके मैंने पहले ही उनकी जाने जाना बचपन की मोहबब्त से अनारकली ऑफ़ आजमगढ़ की ब्रा से बाँध दिए थे और आँख पे भी वही, वरना मसल मसल के अब तक मेरी चूँचियों का रस सब निकाल चुके होते , कमर पकड़ के धक्के दे रहे होते



लेकिन मैंने भी ज्यादा नहीं तड़पाया, बस पांच छह मिनट के बाद कस के धक्के ऊपर नीचे



लेकिन हम दोनों अभी भी रोल में थे, उनकी माँ बनी मैं चिढ़ा रही थी, उकसा रही थी, " क्यों मजा आ रहा है माँ के साथ अरे तब भी मांग लेता तो मैं मना थोड़े करती, इत्ती मलाई बेकार क। खैर बेकार नहीं हुयी गयी तो मेरे जोबन पे "

हसंते हुए मैं बोली और ह्च्चक के पेलना शुरू किया



लेकिन जिसका काज उसी को साधे, जिस लिए मेरी माँ ने शादी की थी, वो काम तो उनका था और मेरा मन भी तभी भरता था जब मेरा मरद मेरे ऊपर चढ़ के कस कस के कचरे, रगड़ के रख दे।



मैंने सिर्फ हाथ की ब्रा खोली, आँख की नहीं और वो मेरे ऊपर लेकिन रोल प्ले अभी भी जारी था।

लेकिन न रोल से मैं बाहर गयी न वो, बल्कि वो एकदम अपनी फंतासी में डूबे, और हरा मरद की एम् आई एल ऍफ़ वाली होती है, इसलिए जितना एम् आई एल ऍफ़ ( मदर आई लव टू फक यू ) वाली फिल्मे चलती हैं उतनी टीन्स की भी नहीं और ये तो एकदम फैन थे ऊपर से इनकी सास ने इन्हे माँ बेटे के इन्सेस्ट की कहनियां पढ़ा पढ़ा के बल्कि अपने सामने इनसे बोल बोल के पढ़वाती थीं, तो ये तो एकदम, लेकिन बोली मैं ही पहले



" तुझे बचपन में मुन्ना बहुत दूध पिलाया है अब चल जवानी में पिलाती हूँ, देखती हूँ मेरा दूध पी के कितनी ताकत आयी है " मैंने उनकी माँ के आवाज में चिढ़ाया और वो चिढ भी गए,

" माँ दिखाता हुईं तुझे तेरे बेटे की ताकत आज " और उन्होंने दोनों टाँगे कंधे पे लेकिन मैं भी आग में पेट्रोल डालने पे तुली थी, दोनों समधन तो खुल के मजाक करती थीं, बिना गाली गलौज के बात हो तो संधान का रिश्ता बेकार, और वो भी स्पीकर फोन ऑन कर के इनके सामने, तो मैंने फिर छेड़ा,

" तेरी उस छिनार सास ने कुछ सिखाया विखाया है की नहीं आज देखती हूँ "

बस ये तो एकदम आग।

सब को गाली दे दो, इनकी माँ की बिना गाली सुने, जब तक उन की माँ पे मैं दो चार गदहे घोड़े न चढ़ाऊँ, न इनको खाने का कौर उतरता था न घोडा दौड़ता था, बस उन्होंने वो काम किया जो मेरी जेठानी के साथ किया था, जबरदस्त रफ रगड़ के चुदाई की तैयारी,



भले ही आँख पे पट्टी थी, गुड्डी की ब्रा की,

लेकिन उन्होंने पलंग के सारे तकिये निकाल के मेरे चूतड़ के नीचे, कम से कम एक बित्ता मेरा चूतड़ पलंग के ऊपर, और लंड अपना सीधे मेरी बुर की फांको पे रगड़ना शुरू किया, और ये तरकीब उनकी सास ने ही सिखाई थी, ' पेलने के पहले लौंडिया को पागल कर दो, खुद हाथ जोड़े, गोड़ पड़े, चुदवाने के लिए, तोहार लौंड़ा घोंटने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो, तब पेलना नाक रगड़वा के,



और सच में मेरी यही हालत हो रही थी, लेकिन मैं तो उनकी माँ के रोल में थी तो उनकी सास को, अपनी समधन को बिना गरियाये कैसे छोड़तीं तो मैं एकदम उनकी माँ की तरह बोली,

" अरे का कर रहे हो,.... ऐसे न जाए। तोहरी सास के भोंसडे की तरह ताल पोखरा नहीं है जिसमे नौ नौ हाथी रोज नहाते हैं, जिसमे तोहार पूरी बरात टिकी थी "

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komaalrani

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साजन चढ़ा सजनी के ऊपर

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बस क्या धक्का मारा उन्होंने, एकदम कस के दरेररता हुआ, रगड़ता, चीरता फाड़ता अंदर घुसा,

ऐसा दर्द तो पहली रात को भी नहीं हुआ था तब तो, कितना सम्हाल सम्हाल के डरते डरते की कहीं मुझे दर्द न हो और आज



उईईई मैं जोर से चीखी, और कस के चादर पकड़ लिया,

और चीख का जवाब उन्होंने अगले धक्के से दिया और साथ में अब एक हाथ कस के मेरी पतली कमर को दबोचे और दूसरा मेरी चूची पे और क्या कस के मेरी चूची मसली, सच में जो कहते हैं मरद वो जो औरत की चूसनी को दबा के पिसान ( आटा ) कर दे, दर्द के मारे मेरी हालत खराब था और दूसरे धक्के ने तो हालत ख़राब कर दी पता नहीं कितनी जगह छील छील के वो मोटू घुस रहा था। उन्होंने इतनी कस के मेरी टाँगे सिकोड़ रखी थीं, की जैसे एकदम कुवारी चूत की तरह संकरी हो गयी
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चार पांच धक्को के बाद जब वो बच्चेदानी से टकराया तो मैं जोर से चीखी, लगा जैसे किसी ने हथौड़े से बच्चेदानी में ठोंक दिया हो

दर्द की ऐसी लहर वहीँ से शुरू होकर मेरी देह में दौड़ी की मारे दर्द के दर्द से चीख भी नहीं पायी।

लेकिन दर्द से उबरी भी नहीं थी की मजे की एक लहर, मेरे शरीर में दौड़ रही थी, जैसे लग रहा था, बिजली के झटके लग रहे हों देह ऐसे कांप रही थी, जैसे तूफ़ान में कोई पत्ता, चूत के एकदम अंदरूनी हिस्से से वो लहर निकलती थी और फिर पूरी देह को पागल कर देती थी, मेरी चूत बार बार कस के निचोड़ रही थी उनके लंड को



ओह्ह हाँ क्या, नहीं उफ्फ्फ



मैं सिसक रही थी और मैं अब और रोल प्ले नहीं कर सकती थी,


मैं अपने रूप में और मेरा साजन भी, हाथ तो मैंने उनके खोल ही दिए थे आँख की पट्टी उन्होंने खुद और मुझे कस के पकड़ के भींच लिया,

हम दोनों एक मन एक तन हो गए थे, दूध में मक्खन की तरह घुले और उनके हलके हलके चुंबनों ने मुंझे वापस ला दिया, मैंने भी हलके हलके चुम्बन का जवाब चुम्बन से दिया, कस के उस बदमाश को भींच लिया, नाख़ून उनके कंधे पे गड़ा दिए और जवाब उनकी उँगलियों ने सहला के दिया और मेरे उभार फिर से पथराने लगे। उस बदमाश की एक एक ऊँगली को मेरी देह के तिलस्म के हर राज मालुम थे, कौन सा खटका दबाने पर कब कौन दरवाजा खुलेगा और बस हलके से उन्होंने मेरे निप्स को छू भर दिया, फिर धीरे धीरे फ्लिक करने लगे,


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मेरी योनि अब जोश में आ गयी कस कस के उनके लिंग को दबोचने लगी, और उन्होंने पहले तो कुछ देर अपने खूंटे के बेस से मेरी पगलाई क्लिट को रगड़ा, फिर हलके हलके धक्के लगाने लगे,



लेकिन मैं भी जानती थी ये लड़का क्या चाहता है और वो बोल नहीं रहे थे पर मन उनका वही कर रहा था, और जैसे ही उन्होंने खूंटा बाहर



मैं खुद पलंग से उतर के, पलंग पकड़ के निहुर गयी और साजन सजनी की असली चुदाई अब चालु हुयी


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देख्ने कैमरे वाले,

पूरे आधे घंटे, तक धक्के का जवाब धक्के से और अबकी जब मैं झड़ी तो साथ में वो भी, सफ़ेद रंग से मेरी जाँघे रंग गयी


और फिर हम दोनों पलंग पे बिन बोले एक दूसरे को पकडे



तभी दरवजा खुला धड़ाक से,



"दीदी, अकेले अकेले,"

निधि थी


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और जब तक मैं कुछ कहती उसके कपडे फर्श पर थे और वो हम दोनों के साथ पलंग पे, अपने जीजू को चिपकाए।
 
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Chalakmanus

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जोरू का गुलाम भाग २५६

अब मेरी बारी
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(किस्से का पिछला हिस्सा भाग २५५ गुड्डी की आवाज में था और अब फिर मैं सुनाऊँगी आगे की बात_)
और अब बाउंसर ने एक दूसरे स्टड को बुलाया, कोई पठान लग रहा था, और अब एक बार फिर से ऊँगली बाहर जेली का नोजल अंदर

वहां कोई कैमरा लगा था जिसे मेरे पिछवाड़े का सीन एक स्क्रीन पे बड़ा बड़ा आ रहा था, और दूसरे ने अपना अजगर बाहर निकाला

चींटी की बिल में एक नहीं दो अजगर,
मैं तड़प रही थी, छटपटा रही थी लेकिन दोनों बाउंसर कस कस मेरी पीठ दबोचे थे

और दूसरा पेलता रहा धकेलता रहा हालांकि आधे से थोड़ा ज्यादा, करीब ६-७ इंच धकेल के रुक गया, फिर दो दो इंजन एक ही पटरी पर दौड़ने लगे,

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मेरी आँखों में से आंसू छलक रहे थे लेकीन थोड़ी देर में इस नए मजे का मैं मजा लेने लगी, कभी सिकोड़ कभी ढीली कर देती कभी धक्के का जवाब धक्के से देती

बहुत तेज दर्द हो रहा था, लेकिन एक नया मजा आ रहा था

पुच्च

और एक ने खूंटा निकाल दिया, कोरियोग्राफर तो बाउंसर ही थी, जिस ब्लैक स्टड ने मुंह में रखा था अब वो 'डबल ट्रबुल ; में शामिल हो गया ा

पर खूंटो की कमी नहीं थी, जिसे मैं मुट्ठी में पकड़े थी वो मुंह में, जो चुनमुनिया में डबल रोल में था अब सीधे गोलकुंडा के अंदर

पीछे एक साथ तीन तीन

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और अब चारो पिस्टन साथ साथ चले भी पानी भी निकला और बाकी दो थे वो फिर एक साथ अंदर घुसे, चुनमुनिया में

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सच में गुड्डी की बातों से न सिर्फ वो गरमा गए थे, बल्कि मैं भी,

और मान गयी मैं अपनी ननदिया को,
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मुश्किल से तीन चार महीने हुए थे, उसे पटाये, यहाँ लाये हुए और उसे चुदते हुए, हाँ ये बात जरूर है की तीन महीनों में डेढ़ दो सौ बार तो चुदी ही होगी, जितनी नयी दुलहिनिया साल छह महीने में चुदती है उससे भी ज्यादा.


अभी दिन ही कितना हुआ जब मैंने बाजी जीती थी। इनके मायके में न सिर्फ गुड्डी के और इनकी छिनार भौजाई के सामने इनकी बचपन की चिढ आम खिलाया,

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वो भी गुड्डी के हाथों और इनके हाथों से गुड्डी को, सामने बैठी इनकी भौजाई की झांटे जल के राख हो गयीं, और फिर इनके पप्पू को वहीँ डाइनिंग टेबल पे ही मुट्ठ मार के झाड़ के इनकी सारी मलाई, आम की बड़ी सी फांक पे, निकाल के सीधे वो आम गुड्डी रानी के मुंह में, और वो बाजी में जो जीती तो, फिर तो,

लेकिन ये तो मेरे भी मन में नहीं आया था की सच में मेरी ननदिया, इनकी बहिनिया इतनी बड़ी लंड खोर बन गयी है, १२ घंटे तक नान स्टॉप, और सिर्फ एक नहीं, एक साथ दो दो , तीन तीन, एक से एक छिनारों को हराया उसने, और जावेद ऐसा जिसका बित्ता नहीं पूरा हाथ था, असली बांस और सिर्फ जावेद नहीं, बंटू ऐसा मोटू, उस्मान, और पता नहीं कितने,



लेकिन उस स्साली का असली यार तो मेरा वाला ही था,

उस बहन के यार की बहन की चुदाई की हाल सुन सुन के हालत खराब थी, झंडा खड़ा, देह मस्ती से चूर, और मैं अपने यार के गले लग के सीने पे उसके अपनी ऊँगली से खुरच रही थी और उसके कान की लर को हलके से काट के, कान में बोलीं,

" यार स्साली तेरी बहन तो सच्ची चुदक्क्ड़ निकली, एक रात में दर्जन भर से ऊपर घोंट लिया और तू स्साले तीन महीने पहले कह रहा था, अभी छोटी है, अभी बच्ची है, अरे वो स्साली अब बच्ची जनने लायक हो गयी है। सच में तुम सब रंडियों के खानदान से हो, पक्का, मम्मी कहती थीं , लेकिन अब मुझे पक्का विशवास हो गया है। माल तो मस्त है ही, चुदवाने में भी नम्बरी, "

और उसे चिढ़ाते हुए मैंने कचकचा के गाल काट लिया,

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लेकिन मेरा साजन, मेरी माँ का दामाद, अब एकदम अपनी सास का सिखाया हो गया था, मुस्करा के मेरे जानम ने सूद ब्याज समेत लौटा दिया, बोले ये,

" आखिर ननद,.... किस भौजाई की है "।

मैं बड़ी जोर से मुस्करायी, स्साली, मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊं,

लेकिन जोर से उनके मेल टिट्स को लम्बे नाख़ून से खरोंच के बोली,

" स्साले, लगता है आज तुझ गाँड़ मरवाने का मन कर रहा है, जो इतना चहक रहा है, अभी बताती हूँ, तुझे कैसी है तेरी,... रंडी छाप बहिनिया की भौजाई "
Bus kuch mahine or phir guddi bhi bache janegi.
 
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