Bus kuch mahine or phir guddi bhi bache janegi.जोरू का गुलाम भाग २५६
अब मेरी बारी
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(किस्से का पिछला हिस्सा भाग २५५ गुड्डी की आवाज में था और अब फिर मैं सुनाऊँगी आगे की बात_)
और अब बाउंसर ने एक दूसरे स्टड को बुलाया, कोई पठान लग रहा था, और अब एक बार फिर से ऊँगली बाहर जेली का नोजल अंदर
वहां कोई कैमरा लगा था जिसे मेरे पिछवाड़े का सीन एक स्क्रीन पे बड़ा बड़ा आ रहा था, और दूसरे ने अपना अजगर बाहर निकाला
चींटी की बिल में एक नहीं दो अजगर,
मैं तड़प रही थी, छटपटा रही थी लेकिन दोनों बाउंसर कस कस मेरी पीठ दबोचे थे
और दूसरा पेलता रहा धकेलता रहा हालांकि आधे से थोड़ा ज्यादा, करीब ६-७ इंच धकेल के रुक गया, फिर दो दो इंजन एक ही पटरी पर दौड़ने लगे,
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मेरी आँखों में से आंसू छलक रहे थे लेकीन थोड़ी देर में इस नए मजे का मैं मजा लेने लगी, कभी सिकोड़ कभी ढीली कर देती कभी धक्के का जवाब धक्के से देती
बहुत तेज दर्द हो रहा था, लेकिन एक नया मजा आ रहा था
पुच्च
और एक ने खूंटा निकाल दिया, कोरियोग्राफर तो बाउंसर ही थी, जिस ब्लैक स्टड ने मुंह में रखा था अब वो 'डबल ट्रबुल ; में शामिल हो गया ा
पर खूंटो की कमी नहीं थी, जिसे मैं मुट्ठी में पकड़े थी वो मुंह में, जो चुनमुनिया में डबल रोल में था अब सीधे गोलकुंडा के अंदर
पीछे एक साथ तीन तीन
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और अब चारो पिस्टन साथ साथ चले भी पानी भी निकला और बाकी दो थे वो फिर एक साथ अंदर घुसे, चुनमुनिया में
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सच में गुड्डी की बातों से न सिर्फ वो गरमा गए थे, बल्कि मैं भी,
और मान गयी मैं अपनी ननदिया को,
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मुश्किल से तीन चार महीने हुए थे, उसे पटाये, यहाँ लाये हुए और उसे चुदते हुए, हाँ ये बात जरूर है की तीन महीनों में डेढ़ दो सौ बार तो चुदी ही होगी, जितनी नयी दुलहिनिया साल छह महीने में चुदती है उससे भी ज्यादा.
अभी दिन ही कितना हुआ जब मैंने बाजी जीती थी। इनके मायके में न सिर्फ गुड्डी के और इनकी छिनार भौजाई के सामने इनकी बचपन की चिढ आम खिलाया,
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वो भी गुड्डी के हाथों और इनके हाथों से गुड्डी को, सामने बैठी इनकी भौजाई की झांटे जल के राख हो गयीं, और फिर इनके पप्पू को वहीँ डाइनिंग टेबल पे ही मुट्ठ मार के झाड़ के इनकी सारी मलाई, आम की बड़ी सी फांक पे, निकाल के सीधे वो आम गुड्डी रानी के मुंह में, और वो बाजी में जो जीती तो, फिर तो,
लेकिन ये तो मेरे भी मन में नहीं आया था की सच में मेरी ननदिया, इनकी बहिनिया इतनी बड़ी लंड खोर बन गयी है, १२ घंटे तक नान स्टॉप, और सिर्फ एक नहीं, एक साथ दो दो , तीन तीन, एक से एक छिनारों को हराया उसने, और जावेद ऐसा जिसका बित्ता नहीं पूरा हाथ था, असली बांस और सिर्फ जावेद नहीं, बंटू ऐसा मोटू, उस्मान, और पता नहीं कितने,
लेकिन उस स्साली का असली यार तो मेरा वाला ही था,
उस बहन के यार की बहन की चुदाई की हाल सुन सुन के हालत खराब थी, झंडा खड़ा, देह मस्ती से चूर, और मैं अपने यार के गले लग के सीने पे उसके अपनी ऊँगली से खुरच रही थी और उसके कान की लर को हलके से काट के, कान में बोलीं,
" यार स्साली तेरी बहन तो सच्ची चुदक्क्ड़ निकली, एक रात में दर्जन भर से ऊपर घोंट लिया और तू स्साले तीन महीने पहले कह रहा था, अभी छोटी है, अभी बच्ची है, अरे वो स्साली अब बच्ची जनने लायक हो गयी है। सच में तुम सब रंडियों के खानदान से हो, पक्का, मम्मी कहती थीं , लेकिन अब मुझे पक्का विशवास हो गया है। माल तो मस्त है ही, चुदवाने में भी नम्बरी, "
और उसे चिढ़ाते हुए मैंने कचकचा के गाल काट लिया,
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लेकिन मेरा साजन, मेरी माँ का दामाद, अब एकदम अपनी सास का सिखाया हो गया था, मुस्करा के मेरे जानम ने सूद ब्याज समेत लौटा दिया, बोले ये,
" आखिर ननद,.... किस भौजाई की है "।
मैं बड़ी जोर से मुस्करायी, स्साली, मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊं,
लेकिन जोर से उनके मेल टिट्स को लम्बे नाख़ून से खरोंच के बोली,
" स्साले, लगता है आज तुझ गाँड़ मरवाने का मन कर रहा है, जो इतना चहक रहा है, अभी बताती हूँ, तुझे कैसी है तेरी,... रंडी छाप बहिनिया की भौजाई "