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Serious ज़रा मुलाहिजा फरमाइये,,,,,

Niks96

A professional writer is amateur who didn't quit
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मेरी नाज़नीं तुम मुझे भूल जाना,
मुझे तुमसे मिलने न देगा ज़माना।

कभी हम मिले थे किसी एक शहर में,
कभी हम मिले थे गुलों की डगर में।
समझना कि था ख़्वाब कोई सुहाना,
मेरी नाज़नीं तुम मुझे भूल जाना।।

जुदाई के सदमों को हँस हँस के सहना,
मेरे गीत सुनना तो ख़ामोश रहना।
कभी इनको सुन के न आँसू बहाना,
मेरी नाज़नीं तुम मुझे भूल जाना।।

सुना है किसी की दुल्हन तुम बनोगी,
किसी गैर की अंजुमन तुम बनोगी।
कभी राज़-ए-उल्फ़त लबों पर न लाना,
मेरी नाज़नीं तुम मुझे भूल जाना।।

________'क़तील' शिफ़ाई
गायक:- अहमद हुसैन, मोहम्मद हुसैन
तुम ने भूले से कभी ये नहीं सोचा होगा।
हम जो बिछड़ेंगे तो क्या हाल हमारा होगा।।

आ गए हो तो उजाला है मिरी दुनिया में,
जाओगे तुम तो अंधेरा ही अंधेरा होगा।।

ये न कहिए कि मिरी आँख से टपका आँसू,
छोड़िए भी कोई टूटा हुआ तारा होगा।।

क्या ख़बर थी की तिरे शहर से पहले ऐ दोस्त,
रात आ जाएगी और राह में दरिया होगा।।

ख़्वाब लब ख़्वाब जबीं ख़्वाब अदा ख़्वाब हया,
इतने ख़्वाबों में कोई ख़्वाब तो सच्चा होगा।।

दिल के आईने में कर अक्स-ए-तमन्ना न तलाश,
तू मुक़ाबिल है तो हैरत के सिवा क्या होगा।।

पैकर-ए-इश्क़ तो फ़रहाद भी था मजनूँ भी,
और वो शख़्स कि तू ने जिसे चाहा होगा।।

आज तो ख़ुश हूँ बहुत ख़ुश हूँ बहुत ही ख़ुश हूँ,
इस तसव्वुर में मैं काँप उठता हूँ कल क्या होगा।।

एक वो हैं जिन्हें ख़ल्वत में भी लुत्फ़-ए-जल्वत,
हाए वो शख़्स जो महफ़िल में भी तन्हा होगा।।

फ़िक्र अंजाम-ए-मोहब्बत की है तौहीन ऐ 'लैस'
वही होगा मिरी क़िस्मत में जो लिक्खा होगा।।

__________'लैस' क़ुरैशी
:applause:
 

TheBlackBlood

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ख़ुद अपनी राह की दीवार कर दिया गया हूँ।
ये किस अज़ाब से दो-चार कर दिया गया हूँ।।

वो चश्म थी उसे बीनाई ले गई अपनी,
मैं आइना था सो ज़ंगार कर दिया गया हूँ।।

मैं एक राज़ था मख़्फ़ी था ख़ाक में अपने,
अभी अभी ही मैं इज़हार कर दिया गया हूँ।।

वो दिन भी दूर नहीं दोस्त ये कहेंगे मियाँ,
कि मैं तो और भी दुश्वार कर दिया गया हूँ।।

तमाम आँखें मुझे देखने को आती हैं,
अजब तरह से नुमूदार कर दिया गया हूँ।।

तो क्या दिखाना है सब को ही रास्ता हक़ का,
तो क्या मैं क़ाफ़िला-सालार कर दिया गया हूँ।।

मिरे मज़ार की ये ख़ाक छान ले दुनिया,
कि तेरे हाथ में मैं मार कर दिया गया हूँ।।

ये इश्क़ है या कोई रम्ज़ है नहीं मा'लूम,
बदन से रूह से सरशार कर दिया गया हूँ।।

बहुत ग़ुरूर था मुझ को वजूद पर 'जावेद'
इसी लिए तो निगूँ-सार कर दिया गया हूँ।।

________सय्यद 'जावेद'
 

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कहा है मैं ने ये कब माहताब मिल जाए।
मुझे तो बस मिरी आँखों का ख़्वाब मिल जाए।।

मैं इस गली से यही सोच कर गुज़रता हूँ,
किताब-ए-ज़ीस्त का गुम-गश्ता बाब मिल जाए।।

सभी गुनाह मैं हँस कर क़ुबूल कर लूँगा,
फ़क़ीह-ए-शहर का तुझ को ख़िताब मिल जाए।।

मिले फ़क़त मिरे हिस्से की रौशनी मुझ को,
तलब कहाँ है कोई आफ़्ताब मिल जाए।।

ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ ही गरचे सवाल है मेरा,
अजब नहीं कि मुझे बे-हिसाब मिल जाए।।

मैं बहर-ए-फ़िक्र में हूँ ग़र्क़ इस लिए 'नायाब'
गुहर मुझे भी कोई ज़ेर-ए-आब मिल जाए।।

________जहाॅगीर 'नायाब'
 

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मोहब्बत ही अगर तुझ को न रास आई तो क्या होगा।
तिरे ग़म में तबीअत मेरी घबराई तो क्या होगा।।

तुझे पाने की ख़ातिर किस क़दर बेचैन रहता हूँ,
तुझे पा कर भी गर तस्कीं नहीं पाई तो क्या होगा।।

नहीं पीता न पी ज़ाहिद मगर ये तो समझ लेता,
अगर साक़ी ने मय आँखों से बरसाई तो क्या होगा।।

हम उस के दर पे जाने की जो रुस्वाई है सह लेंगे,
तलाश उस की जो दर पे ग़ैर के लाई तो क्या होगा।।

किए वा'दे भी तुम ने और दी मुझ को तसल्ली भी,
न तुम आए शब-ए-फ़ुर्क़त न नींद आई तो क्या होगा।।

ख़िज़ाँ के दौर में देखी बहुत गुलशन की बर्बादी,
मगर अब मौसम-ए-गुल में ख़िज़ाँ आई तो क्या होगा।।

'हबीब' इस घर को ग़ैर आए जलाने को तो क्या ग़म है,
सुलगती आग यारों ने जो भड़काई तो क्या होगा।।

__________जयकृष्ण चौधरी 'हबीब'
 

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मुस्कुरा सकता नहीं आँसू बहा सकता नहीं।
ज़िंदगी अब मैं तिरे एहसाँ उठा सकता नहीं।।

जो शिकस्त-ए-आरज़ू पर मुस्कुरा सकता नहीं,
ज़िंदगी की अज़्मतों का राज़ पा सकता नहीं।।

तालिबान-ए-रंग-ओ-बू काँटों से दामन-कश न हों,
शाख़-ए-गुल तक यूँ किसी का हाथ जा सकता नहीं।।

तुझ से मिल कर जाने क्यूँ होता है ये मुझ को गुमाँ,
तुझ को खो सकता हूँ लेकिन तुझ को पा सकता नहीं।।

मुतमइन हूँ मैं कि ज़िंदा है मिरी तब-ए-ग़यूर,
मेरी ख़ुद्दारी पे कोई हर्फ़ आ सकता नहीं।।

शम-ए-गिर्यां को भला क्या अज़मत-ए-ग़म की ख़बर,
कोई परवाना कभी आँसू बहा सकता नहीं।।

तुझ से मिलने की तमन्ना है कि तुझ से रह के दूर,
ए'तिबार-ए-हस्ती-ए-मौहूम आ सकता नहीं।।

'लैस' मैं रखता हूँ पहलू में दिल-ए-दर्द-आश्ना,
भूल कर भी मैं किसी का दिल दुखा सकता नहीं।।

__________'लैस' क़ुरैशी
 

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मैं ने वीराने को गुलज़ार बना रक्खा है।
क्या बुरा है जो हक़ीक़त को छुपा रक्खा है।।

दौर-ए-हाज़िर में कोई काश ज़मीं से पूछे,
आज इंसान कहाँ तू ने छुपा रक्खा है।।

वो तो ख़ुद-ग़र्ज़ी है लालच है हवस है जिन का,
नाम इस दौर के इंसाँ ने वफ़ा रक्खा है।।

वो मिरे सहन में बरसेगा कभी तो खुल कर,
मैं ने ख़्वाहिश का शजर कब से लगा रक्खा है।।

मैं तो मुश्ताक़ हूँ आँधी में भी उड़ने के लिए,
मैं ने ये शौक़ अजब दिल को लगा रक्खा है।।

मैं कि औरत हूँ मिरी शर्म है मेरा ज़ेवर,
बस तख़ल्लुस इसी बाइ'स तो 'हया' रक्खा है।।

________लता 'हया'
 

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मैं ने वीराने को गुलज़ार बना रक्खा है।
क्या बुरा है जो हक़ीक़त को छुपा रक्खा है।।

दौर-ए-हाज़िर में कोई काश ज़मीं से पूछे,
आज इंसान कहाँ तू ने छुपा रक्खा है।।

वो तो ख़ुद-ग़र्ज़ी है लालच है हवस है जिन का,
नाम इस दौर के इंसाँ ने वफ़ा रक्खा है।।

वो मिरे सहन में बरसेगा कभी तो खुल कर,
मैं ने ख़्वाहिश का शजर कब से लगा रक्खा है।।

मैं तो मुश्ताक़ हूँ आँधी में भी उड़ने के लिए,
मैं ने ये शौक़ अजब दिल को लगा रक्खा है।।

मैं कि औरत हूँ मिरी शर्म है मेरा ज़ेवर,
बस तख़ल्लुस इसी बाइ'स तो 'हया' रक्खा है।।

________लता 'हया'
Greattt shubham bro. Such a mind blowing poetries. :applause::applause::applause:
 

TheBlackBlood

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इस दिल को अगर तेरा सहारा नहीं मिलता।
क़िस्मत को कोई चाँद सितारा नहीं मिलता।।

घेरा है किसी ख़ौफ़ ने इस तरह से दिल को,
मिलता है जो इक बार दोबारा नहीं मिलता।।

कुछ तुम भी मोहब्बत में हो तक़दीर के क़ाएल,
कुछ मुझ को भी चलने का इशारा नहीं मिलता।।

यूँ डूब गया हूँ तिरी आँखों के भँवर में,
अब मेरे सफ़ीने को किनारा नहीं मिलता।।

किरदार हैं तब्दील कहानी तो वही है,
अफ़्साने में अब नाम हमारा नहीं मिलता।।

दीपक की तरह शाम से हम जलने लगे हैं,
इस आग का पर कोई शरारा नहीं मिलता।।

'शाकिर' तिरी क़िस्मत में हैं बे-कार सदाएँ,
जिस शख़्स को भी तू ने पुकारा नहीं मिलता।।

________मोहम्मद उस्मान 'शाकिर'
 
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