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Incest छोटी – छोटी कहानियां {Hindi Stories Collection}

Which Genre Will You Prefer?


  • Total voters
    119

Evil Spirit

𝚂𝙴𝚃 𝚈𝙾𝚄𝚁𝚂𝙴𝙻𝙵 𝙵𝚁𝙴𝙴!!!
74
327
53
Hello Bhailog. Main ye thread shuru kar raha hoon jispar aapko bahut si chhoti – chhoti kahaniyan milengi. Incest, Adultery, Erotica aur kuchh Romance bhi.

Oopar poll bhi add kar raha hoon. Aap log bataiyega kaunse genre ki kahani aap padhna pasand karenge.

Shukriyaa.
 

vmvish

Banned
290
369
63
Hello Bhailog. Main ye thread shuru kar raha hoon jispar aapko bahut si chhoti – chhoti kahaniyan milengi. Incest, Adultery, Erotica aur kuchh Romance bhi.

Oopar poll bhi add kar raha hoon. Aap log bataiyega kaunse genre ki kahani aap padhna pasand karenge.

Shukriyaa.
Baki Sab toh theek hai Evil Spirit Bhai,

Ek question thha...

Lekin aap apni khud ki original story start karne wale ho, ya kisi aur ki likhi hui kahani ko hi aage badhane wale ho ?

Thanks !!
 

Evil Spirit

𝚂𝙴𝚃 𝚈𝙾𝚄𝚁𝚂𝙴𝙻𝙵 𝙵𝚁𝙴𝙴!!!
74
327
53
Baki Sab toh theek hai Evil Spirit Bhai,

Ek question thha...

Lekin aap apni khud ki original story start karne wale ho, ya kisi aur ki likhi hui kahani ko hi aage badhane wale ho ?

Thanks !!
Bilkul bhai sabhi meri hi likhi huyi kahaniyan hongi. Aap padhiyega aur fir yadi aap same story meri likhi gayi tareekh se pehle kisi aur jagah dikha dete ho main thread close kar dunga.

By the way, ye sawaal aapka hi tha ya kisi aur ka? :whistle:
 
  • Haha
Reactions: vmvish

Evil Spirit

𝚂𝙴𝚃 𝚈𝙾𝚄𝚁𝚂𝙴𝙻𝙵 𝙵𝚁𝙴𝙴!!!
74
327
53
मेरी प्यारी बहन

भाग – 1 [बीती बातें]

मुंबई, यानी मायानगरी, कुछ लोग इसे सपनों की नगरी भी कहते हैं। मैं भी कुछ इसी सोच के साथ यहां इस शहर में आया था। मेरी मां की मृत्यु तो तभी हो गई थी जब मैं कुछ 5–6 साल का था। असल में मेरी छोटी बहन को जन्म देते वक्त आई कुछ परेशानियों की वजह से उन्होंने अपना देह त्याग दिया था और उनकी मृत्य के बाद ही मेरे जीवन में असली परेशानियों ने दस्तक देना आरंभ किया। मां के जाने के बाद मेरी जिंदगी मेरी बहन में ही सिमट कर रह गई थी। मैं उसकी ज़िंदगी को खुशियों से भर देना चाहता था। पर मेरे बाप को कुछ और ही मंज़ूर था।

हुआ यूं की मां के जाने के कुछ पंद्रह दिन बाद ही मेरे बाप ने दूसरी शादी कर ली। मैं काफी छोटा था पर समझदार था। दूसरी शादी का मतलब मैं भली – भांति समझता था और उस दिन मेरे दिल में पहली बार मेरे बाप के खिलाफ कोई विचार पनपा। पर असली खेल तो तब शुरू हुआ जब उनकी नई बीवी हमारे घर में प्रवेश कर गई। उसने पहले ही दिन से मेरे बाप को खुद के पीछे कुत्ते जैसा बना दिया और उन्हें तो वैसे भी बस यौन सुख चाहिए था जो वो औरत उन्हें दे सकती थी। अब क्या ही मतलब रह गया था उन्हें हमसे।

धीरे – धीरे वक्त का पहिया चलता गया और मेरी बहन बड़ी होने लगी। उसे भी हमारे घर का सारा माहौल समझ आने लगा था। कहीं ना कहीं उसने भी इस सबसे एक समझौता सा कर ही लिया था। पर अभी भी उसके पास “मैं” था। जिसे वो अपना भाई, अपना पिता सब कुछ मानती थी। हम दोनो का कमरा एक ही था। वो रात को मुझसे लिपट कर ही सोया करती थी। अब मेरे बाप की नई बीवी को तो हमसे क्या ही मतलब था। हम मरे या जिएं उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। पर मेरी बहन को मुझे एक सुखद जीवन प्रदान करना था।

मैंने पड़ोस की एक अम्मा से खाना बनाना सीख लिया था और रोज नए – नए व्यंजन बनाकर अपनी जान को खिलाया करता था। में उसे “गुड़िया” कहकर पुकारता था। वह भी सब कुछ समझती थी और मेरे मन में जो प्रेम उसके लिए भरा था वो उस से भी अंजान ना थी। फिर जब उसके स्कूल जाने की बारी आई। मेरी पढ़ाई भी उस औरत के राज में कबकी बंद हो गई होती परंतु मैं पढ़ाई में शुरू से ही अच्छा था इस कारण मेरे स्कूल की फीस माफ हो चुकी थी। पर मेरी बहन तो अभी स्कूल जाना शुरू करने वाली थी। उस औरत ने मेरे बाप या कहूं के चूत के भूखे बाप के कान भर दिए थे और उस आदमी ने साफ कह दिया के लड़की है पढ़कर क्या करेगी। एक दिन तो चूल्हा – चौका ही करना है। उस दिन पहली बार मेरे मन के एक कोने से मेरे बाप के लिए बद्दुआ निकली।

उस दिन गुडिया बहुत दुखी थी। वो अपनी से ज्यादा उम्र के बच्चों को स्कूल जाता देख, खासकर मुझे, हमेशा से स्कूल जाना चाहती थी। पर वो सब बातें उसने भी सुन ली थी। वो हमारे कमरे में बिस्तर पर लेटी रो रही थी जब मैं उसके पास पहुँचा। उसे यूं रोता देख कर बहुत ज्यादा दर्द मेरे सीने में हुआ। मैंने उसे उठाया और अपने गले से लगा लिया। वो भी मुझसे बेल की तरह लिपट गई। मैने उसके फूले – फूले गालों को प्यार से चूमा और फिर एक चुम्बन उसके माथे पर अंकित कर दिया। मैंने एक बार फिर उसे अपने आगोश में लिया और उसके कान में कहा,

में : रोते नही मेरी परी। मैं हूं ना, आपका भाई आपको स्कूल भेजेगा।

ना जाने कैसे मैं वो बोल गया। मेरी उम्र अभी बहुत कम थी पर उसके लिए मेरा प्रेम समुंदर जैसा ही था। यही कारण था इन शब्दों को जो मेरे मुख से फूटे थे। उसके चेहरे पर भी रौनक लौट आई थी। वो खिलखिलाती हुई बोली,

गुड़िया : सच्ची भईयू मुझको स्कूल भेजेगो आप?

मैंने बस हां में सर हिला दिया। और एक बार फिर उसकी जगमग आंखों में खुशी लौट आई। बस फिर क्या था मैंने हमारे पड़ोस में रहने वाले एक रहीम चाचा जोकि मेरी मां को अपनी बहन माना करते थे, उनसे बात की। वो भी खुशी से पैसे देने को तैयार थे। पर मुझे ये गवारा ना था। मेरी गुड़िया की खुशी मैं खुद जुटाना चाहता था। मुझसे प्रभावित होकर उन्होंने भी मेरी बात मान ली और हमारे गांव से कुछ दूर बनी एक कपड़ा फैक्ट्री में मुझे लगवा दिया। वहां खतरा भी कम था, केमिकल फैक्ट्री के मुकाबले और पैसे भी ठीक थे।

बस फिर मैने गुड़िया का दाखिला अपने ही स्कूल में करवा दिया। हेडमास्टर साहब मेरे पढ़ाई और खेल – कूद में अव्वल होने के कारण मुझसे बेहद अच्छा व्यवहार करते थे। तो वो भी खुश थे और कुछ फीस में रियायत भी कर दी थी उन्होंने। बस इस घटना ने कहीं ना कहीं गुड़िया के मन मंदिर में मुझे काफी ऊंचा स्थान दे दिया था। वो मुझसे और भी अधिक प्रेम पूर्वक बर्ताव करने लगी थी और मुझे बस यही चाहिए था, उसकी खुशी।

इस तरह समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता गया। गुड़िया ने 12वीं की परीक्षा बेहद अच्छे अंकों से पास कर ली थी। वो 18 वर्ष की हो चुकी थी। वहीं मैं 24 का हो चला था और मैंने पास के ही शहर के एक कॉलेज से एम.बी.ए की डिग्री हासिल कर ली थी। पर इन बीते सालों में गुड़िया के मन में मेरे लिए प्रेम बहुत बढ़ चुका था। वो सदैव मेरे साथ ही रहती थी, खाना – पीना, सोना – जागना या पढ़ना हर काम वो मेरे सानिध्य में रहकर ही करती थी। पर इन सालों में एक चीज नही बदली, मेरे बाप और उनकी बीवी का हम दोनो के प्रति बर्ताव। अब तो उनका खुद का एक बेटा और एक बेटी भी थे। दोनो का ही दाखिला मेरे बाप ने शहर के उच्चतम स्कूल में करवाया था।

जब मैंने 12वीं कक्षा उत्तीर्ण की थी तब रहीम चाचा की मदद से में एक फैक्टरी में सुपरवाइजर की नौकरी पर लग गया था। तनख्वाह भी अच्छी थी। इस बीच गुड़िया भी अपनी पढ़ाई में अव्वल ही आती रही और उसकी फीस भी माफ हो गई थी। मैं अब वो सारे पैसे उसके लिए सभी सुख – सुविधा की चीजें लाने में लगा दिया करता था। जब मैं पहली दफा उसके लिए एक ड्रेस खरीदकर लाया तब उसकी खुशी देखते ही बनती थी। अब मैं अक्सर उसके लिए नए कपड़े, मेक – अप का सामान, अच्छी – अच्छी मिठाइयां और भी पता नहीं क्या – क्या ले जाया करता था। जब वो 9वीं कक्षा में थी तब एक दिन मैं कमरे में बैठा पढ़ रहा था। तभी मुझे कमरे से ही जुड़े बाथरूम से उसके चीखने की आवाज आई। में डरकर अंदर भागा तो पाया वो कमोड पर बैठी रो रही थी। उसका लोवर उसके पैरों में था। अर्थात उसके शरीर पर मात्र एक कमीज़ थी।

मैंने उसके नजदीक जाकर उसे गले लगा लिया। और उसके सर पर हाथ फेरने लगा।

में : क्या हुआ मेरी गुड़िया। क्यों रो रहे हो आप?

गुड़िया : भईयू मे... मेरी ना सूसू में से खून आ रहा है।

में समझ गया के उसका मेंस्ट्रुअल साइकिल आरंभ हो गया था। और अचानक ही मेरी आंखों में पानी के कतरे उभर आए। कल की ही तो बात थी, जब मां उसे मुझ अबोध बालक की गोद में छोड़ गई थी। और आज वो जवानी की दहलीज पर क़दम रख चुकी थी। सचमें लड़कियां बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं। मैने उसे प्यार से चुप करवाया और इस सबकी पूरी जानकारी दी। मेरे मुंह से ये सब सुनकर वो काफी शर्मा रही थी पर वो जानती थी कि उसका भाई ही उसकी पिता था और उसकी मां भी।

बस उस दिन के बाद वो सचमें मुझसे काफी खुल सी गई। वो मुझे अपने स्कूल की, अपनी सहेलियों के साथ हुई बातें, शाम को खेल के वक्त की बातें, सब बता दिया करती थी। उसे कोई भी परेशानी होती तो बेझिझक मुझे बोला करती थी। ख़ैर, अब मैं 24 का हो गया था और वो 18 की। जिस दिन हम उसका 12वीं का नतीजा लेकर घर पहुंचे उस दिन ही हमारा जीवन एक नए मोड़ पर पहुंच गया था। हमारे घर पर गांव का सेठ बैठा हुआ था। वो एक 35 – 36 वर्ष का भद्दा सा आदमी था। उसकी शादी कई साल पहले हो गई थी फिर एक दिन सुनने में आया के गैस स्टोव फटने से उसकी बीवी की मौत हो गई। पर कहने वाले तो ये भी कहते थे के वो अपनी बीवी को अपने फायदे के लिए दूसरों के नीचे लेटा देता था और उसने ही अपनी बीवी की हत्या भी की थी। खैर, उसका एक बेटा भी था जो फिलहाल स्कूल जाया करता था। जब मैं और गुड़िया वहां पहुंचे तब जो मैने सुना वो सुनकर मेरे क्रोध की ज्वाला धधक पड़ी। वो कमीना गुड़िया का हाथ मांगने आए था अपने लिए और मेरे बाप ने सहमति भी दे दी थी क्योंकि वो मेरे बाप को कुछ जमीन दे रहा था।

मैने गुड़िया की तरफ देखा तो पाया के उसकी आंखें भीगी हुई थी, उस दिन पहली बार मैंने अपने बाप को खींच के एक थप्पड़ मारा। बस अब वहां एक पल भी रुकना मेरे ज़मीर को गवारा ना था। मैने गुड़िया का हाथ पकड़ा और अपने और उसके जरूरी कागजात लेकर वो घर छोड़कर निकल गया। मुझे नहीं पता था के मैं उसे कहां ले जा रहा था पर इतना पता था के उसे मैं दुनिया की सारी खुशियां जरूर दूंगा। खैर, मैंने मुंबई जाने का निश्चय किया और गुड़िया के साथ ही ट्रेन में बैठ गया। वो मुझे बेहद हैरत भरी नज़रों से ताकती रही। पहले उस आदमी को थप्पड़ मारना जो हमारा बाप था, उस सेठ की धुलाई करना, और फिर उसे यूं घर से ले आना। असल में मैं समझ रहा था के वो मुझपर वारी – वारी जा रही थी। खैर, यहीं से शुरू हुआ उसका और मेरा नया सफर जिसकी गवाह ये मायानगरी मुंबई बनने वाली थी।


अरे हां मैंने अपना नाम तो बताया ही नहीं। मैं – अरमान और मेरी गुड़िया – आरोही।
 
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