सुबह सबेरे
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लेकिन ननद भौजाई हों और बदमाशी न हो, बस मैंने एक हाथ से नन्द के जोबन सहलाने शुरू कर दिए और दूसरे हाथ से इनका हाथ पकड़ के इनकी बहन के उभार पे और अब हम दोनों, ननद के उभारों का मजा लेरहे थे।
ननद सोने का नाटक कर रही थीं। लेकिन मैंने उनका एक हाथ पकड़ के अपने मरद के थोड़े सोये थोड़े जागे खूंटे पर रख दिया और कौन बहन होगी जब हाथ में भाई का खूंटा आ जाए तो वो छोड़ देगी, बिना पकड़े, बिना मसले। वो मेरे मरद का मजा ले रही थी मैं उसका, मेरी हथेली ननद की चुनमुनिया पे
थोड़ी देर में ननद और ननद के भाई दोनों गरमा गए, और वैसे ही लेटे लेटे साइड से ही खेल चालू हो गया। ननद के भैया, पीछे, ननद मेरी आगे, और पीछे से ही मेरे मरद ने खूंटा ठोंक दिया।

अबकी मैं एकदम अलग थी। बस थोड़ी देर में भोर होने वाली थी और मैं जानती थी, सास नहीं है, ये भाई बहन तो मस्ती के मूड में तो सब सुबह का काम मुझे ी देखना पडेगा तो बस मैं अलसाये उन लोगों का खेल देख रही थी।
पांचवा राउंड जब ख़त्म हुआ तो चिड़िया चहचहांने लगी थीं।
बाहर पौ फूट रही थी, गाँव में सुबह जल्द ही होती है। मैं तो उठ गयी लेकिन भाई बहिन एक दूसरे से चिपके, इनकी मलाई ननद रानी के जांघों पर कुछ अभी भी बहती, कुछ जम के थक्का हो गयी थी।
सुबह काम भी बहुत होता है, रसोई का, घर का और आज मुझे दस बजे के पहले बाग़ में पहुँचना था, नाश्ते खाने का भी इंतजाम उसके पहले,
ननद रानी तो आज उठने वाली नहीं थी, ... रसोई का आधा काम कर के मैं बाहर निकली, बाहर ग्वालिन भौजी, गाय भैंस दुह रही थीं, दो बाल्टी दूध रोज निकलता था।
कमरे के बाहर से निकलते मैं ठिठक गयी, अपने कमरे के सामने से। दरवाजा आधा खुला था, सुबह तो सब मरदो का खड़ा होता है।
ये पीछे से ननद को पकड़ के सो रहे थे,... लेकिन खड़ा होने के बाद,... बस जरा सा इन्होने चूँची पकड के रगड़ा, ननद ने खुद ही टाँगे उठा दी, बस पीछे से पहले सटाया, फिर धँसाया, खेल चालू।
मैं ग्वालिन भौजी से दूध की बाल्टी ले रही थी, तभी ननद की जोर से सिसकी सुनाई पड़ी,... और फिर चीख और हल्की सी आवाज
" भैया धीरे से करो, सारी रात रगड़ के रख दिया,... हाँ ऐसे ही धीमे धीमे,... कहाँ भागी जा रही हूँ "
मैं और ग्वालिन भौजी दोनों मुस्कराये।
ननद के सिसकने की आवाज खुल कर आ रही थी, तभी इनकी धीमी से आवाज आयी, " बहिनिया, ज़रा निहुर जाओ न "
" नहीं भैया, कमर टूट रही है, इत्ते कस कस के धक्के मारे हैं तूने, तू ऊपर आ जा न " ननद की थकी थकी आवाज आ रही थी ,
और फिर थोड़ी देर में सिसकिया, कभी चीख,
मैंने ग्वालिन भाभी की ओर देखते हुए दरवाजा ठीक से उठँगा दिया, और मैं और भौजी एक दूसरे को देख के मुस्करा दिए,

लेकिन मैं समझ गयी की दोपहर तक मेरे मरद मेरे नन्दोई बन गए, ये बात सारे गाँव में फ़ैल जायेगी।
ननद को दोपहर में अपनी सहेलियों के पास जाना था था दिन भर वहीँ गप्प गोष्ठी और शाम को गाँव से बाहर छावनी में , रात में वही , कल शाम को लौटना था।
इनको भी अपने दोस्तों के पास
और मुझे बाग़ में ननद देवरो की गाँठ जुड़वाने,... लेकिन उसका हाल तो पहले ही बता चुकी हूँ। पहले मैं निकली, घंटे भर बाद वो दोनों लोग भी।
ननद आज रात बाहर रहने वाली थीं, अपने सहेलियों के संग,
जैसे कल मेरी सास नहीं थी तो बस, मैं मेरी ननद और वो, मेरा मरद।
आज रात ननद बाहर रहेंगी, सास लौट आएँगी तो बस गुजरी रात की तरह बस मैं , मेरी सास और वो , मेरा मरद
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और वो किस्सा अगले पोस्ट में, मेरी सास का ।
लेकिन मैं समझ गयी की दोपहर तक मेरे मरद मेरे नन्दोई बन गए, ये बात सारे गाँव में फ़ैल जायेगी।
ओहो .. ये ग्वालिन भौजी तो गाँव की BBC निकली...
फिर तो सास के कानों में भी कल के रात की पूरी कहानी....
और आज की रात... सास की भी बारी... तो बेटे के औजार का दम-खम भी परख लेगी..
मतलब साजन का मादरचोद बनना तय है...