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Incest चोरी का माल

Lutgaya

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Lutgaya

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Awesome superb and laajawab update
अपना साथ यूं ही बनाए रखें
धन्यवाद मित्र
 

Lutgaya

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तीन पत्ती गुलाब भाग -4
इस भयंकर प्रेमयुद्ध के बाद सुबह उठने में देर तो होनी ही थी। मधुर ने चाय बनाकर मुझे जगाया और खुद बाथरूम में घुस गयी। आज उसे अपनी मुनिया की सफाई करनी थी सो उसे पूरा एक घंटा लगने वाला था।
मैं बाहर हाल में बैठकर चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अखबार पढ़ रहा था। आज गौरी नज़र नहीं आ रही थी अलबत्ता एक थोड़े साँवले से रंग की लड़की रसोई से सफाई की बाल्टी और झाड़ू पौंछा लेकर आती दिखाई दी।
ओह … यह तो गुलाबो की दूसरी लड़की थी। मुझे फिर कुछ आशंका सी हुई? गौरी क्यों नहीं आई? क्या बात हो सकती है? पता नहीं कल के वाक़ये (घटनाक्रम) के बाद उसने फ़ैसला कर लिया हो कि अब उसे यहाँ काम नहीं करना? पर मधुर तो उसे यहाँ स्थायी तौर पर ही रखने का कह रही थी … फिर क्या बात हो सकती है?

हे लिंग देव कहीं तकदीर में फिर से लौड़े तो नहीं लग गये?

अब मेरी नज़र उस लड़की पर पड़ी। वो नीचे बैठकर पौंछा लगा रही थी। उसने हल्के आसमानी रंग की कुर्ती और जांघिया पहन रखा था। पौंछा लगाते समय वो घुटनों के बल होकर आगे झुक रही थी। झुकने के कारण उसके छोटे-छोटे चीकुओं की झलक कभी-कभी दिख रही थी। गेहुंए रंग के दो बड़े से चीकू हों जैसे। एरोला ऊपर से फूला हुआ शायद निप्पल अभी पूरी तरह नहीं बने थे। ऐसे लग रहे थे जैसे चीकू पर जामुन का मोटा सा दाना रख दिया हो।

हे भगवान … क्या रसगुल्ले हैं। उसकी छाती का उठान भरपूर लग रहा था। बायाँ उरोज थोड़ा सा बड़ा लग रहा था। अभी उसे ब्रा पहनने की सुध कहाँ होगी। मुझे लगा मेरा लंड अंगड़ाई सी लेने लगा है।
जब से सुहाना को देखा है उसके टेनिस की बॉल जैसे उरोजों को नग्न देखने की मेरी कितनी तीव्र इच्छा होती होगी आप अंदाज़ा लगा सकते हैं।

मैं भला यह मौका हाथ से कैसे निकल जाने देता। मैं टकटकी लगाए उसके उन नन्हे परिंदों को ही देख रहा था। काश वक़्त थम जाए और यह इसी तरह थोड़ी झुकी हुई रहे और मैं इस दृश्य को निहारता रहूँ।

मुझे अचानक ख्याल आया अगर मैं इसे बातों में लगा लूँ तो वो जिस प्रकार पौंछा लगा रही है बहुत देर तक उसके इन नन्हे परिंदों की हिलजुल देखकर अपनी आँखों को तृप्त कर सकता हूँ।
“अंकल आप अपने पैल थोड़े ऊपल कल लो.” अचानक एक मीठी सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।
लगता है यह भी गौरी की तरह ‘र’ को ‘ल’ बोलती है।

“ओह … हाँ …” हालांकि मुझे उसका अंकल संबोधन अच्छा तो नहीं लगा पर मैंने चुपचाप अपने पैर ऊपर सोफे पर रख लिए. अलबत्ता मेरी नज़रें उसकी झीनी कुर्ती के अंदर ही लगी रही।
“क्या नाम है तुम्हारा?”
“मेला नाम?” उसने हैरानी से इधर उधर देखते हुए पूछा जैसे उसे यह उम्मीद नहीं थी कि मैं उस से बात करूंगा।
हे भगवान इसकी काली आँखें तो सुहाना (मेरी बंगाली पड़ोसन की युवा बेटी) से भी ज्यादा बड़ी और खूबसूरत हैं।

“हाँ तुम्हारा ही तो पूछ रहा हूँ?”
“मेला नाम सानिया मिलजा है” (सानिया मिर्ज़ा)
मुझे नाम कुछ अज़ीब सा लगा पर मैंने मुस्कुराते हुए कहा- बहुत खूबसूरत नाम है.
वह हैरान हुई मेरी ओर देखने लगी।

उसे लगा होगा उसका अज़ीब सा नाम सुनकर मैं शायद कोई अन्यथा टिप्पणी करूंगा। मुझे थोड़ा-थोड़ा याद पड़ता है एक दो बार अनार या अंगूर ने इसका जिक्र तो किया था पर उन्होंने तो इसका नाम मीठी बाई बताया था. मधुर ने एक बार हँसते हुए बताया था कि जिस दिन यह पैदा हुई थी, सानिया मिर्ज़ा ने टेनिस में शायद कोई बड़ा खिताब जीता था तो गुलाबो ने इस नये कॅलेंडर का नाम सानिया मिर्ज़ा ही रख दिया था।
खैर नाम जो भी हो इसके चीकू तो कमाल के हैं।

मैं उसे बातों में लगाए रखना चाहता था- वो आज गौरी क्यों नहीं आई?
“कौन गौली?” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
“अरे वो तुम्हारी बड़ी बहन है ना?”
“ओह … अच्छा … तोते दीदी?”
“हाँ हाँ!”

गौरी ‘क’ और ‘र’ का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाती इसीलिए घर वालों ने शायद उसे ‘तोते’ नाम से बुलाना शुरू कर दिया होगा। कई बार बचपन में अंगूठा चूसने वाले बच्चों के साथ या अनचाहे बच्चे जिनकी परवरिश ठीक से ना हुई हो उनके साथ अक्सर ऐसा होता है। यह एक प्रकार का मेंटल डिस-ऑर्डर (दिमागी असंतुलन) होता है या फिर कई बार जीभ में लचीलापन कम होने की वजह से भी ऐसा होता है।
ओह … मैं भी क्या बेहूदा बातें ले बैठा।

“उस पल आज छिपकली गिल गई.”
“छिपकली? कमाल है छिपकली कैसे गिर गई?”
“मुझे क्या मालूम?”
“ओह!”
“उस पल तो हल महीने गिलती है?”

ओह … मैं भी निरा उल्लू ही हूँ। यह तो माहवारी का जिक्र कर रही थी। मुझे थोड़ी हंसी सी आ गई। एक बार तो मेरे मन में आया उसे भी पूछ लूँ कि कभी उस पर छिपकली गिरी या नहीं? पर ऐसा करना ठीक नहीं था।

सानिया मेरे से कोई एक कदम की दूरी पर उकड़ू सी बैठी थी। अब मेरी नज़र उसकी जांघों के बीच चली गयी। पट्टेदार जांघिया उसकी पिक्की के बीच की लकीर में धंसा हुआ सा था। याल्लाह … !!! उसके पपोटे तो किसी जवान लड़की की तरह लग रहे थे।
उसकी जांघों का ऊपरी हिस्सा अन्य हिस्सों के बजाए कुछ गोरा नज़र आ रहा था। उम्र के हिसाब से उसकी जांघें भी थोड़ी भारी लग रही थी। नितम्ब भी गोल गोल खरबूजे जैसे ही तो थे। बस कुछ समय बाद तो यह मीठी बाई छप्पन छुरी बन जाएगी।

मैं मन्त्र मुग्ध हुआ इस नज़ारे को अपनी आंकों में कैद कर लेना चाहता था। काश वक़्त थम जाए और मैं इस मीठी कचोरी को ऐसे ही देखता रहूँ।
“तुम किस क्लास में पढ़ती हो?”
“मैं?” उसे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि मैं इतना बड़ा आदमी (उसकी नज़र में) उस से इस प्रकार घुलमिल कर बात कर रहा हूँ।

“मम्मी स्कूल भेजती ही नहीं?”
“ओह … क्या तुम पढ़ना चाहती हो?” मैंने पूछा।
“हाँ मैं तो बहुत पढ़ना चाहती हूँ औल बड़ी होकल पुलिस बनाना चाहती हूँ?”
“अरे वाह! ठीक है मैं तुम्हारी मधुर दीदी से बोलूँगा तुम्हारी मम्मी को समझाएगी और तुम्हें पढ़ने स्कूल जरूर भेजेगी।

“सच्ची में?” उसे शायद मेरी बातों का यकीन ही नहीं हो रहा था।
“हाँ पक्का! अच्छा तुम्हारा जन्मदिन कब आता है?”
“पता नहीं? … क्यों?” उसने हैरान होते पूछा।
“क्या घरवाले तुम्हारा जन्मदिन नहीं मनाते?
“किच्च … कभी नहीं मनाया.” उसने बड़े उदास स्वर में कहा।

“ओह … चलो कोई बात नहीं … तुम्हें मधुर के जन्मदिन पर बढ़िया गिफ़्ट दिलवाएँगे.”
“अच्छा?” उसकी आँखों की चमक तो ऐसे थी जैसे किसी अंधे को आँखें मिलने वाली हो।
“तुमने आज नाश्ते में क्या खाया?”
“कुछ नहीं.” उसने अपनी मुंडी नीचे कर ली।

हे भगवान कैसे माँ-बाप हैं बेचारी को बिना खिलाये पिलाए ही काम पर भेज दिया।
“चलो तुम भी चाय और बिस्किट ले लो.” मैंने कहा.
“ना … दीदी गुस्सा होंगी, उनसे पूछ कल ही लूँगी.” उसने बड़ी मासूमियत से कहा।

साली यह मधुर भी एकता कपूर की तरह पूरी हिटलर-तानाशाह बनी रहती है। मज़ाल है उसकी मर्ज़ी के बिना कोई चूं भी कर दे।

खैर मैं तो उसे बातों में उलझाए जून महीने के अन्तिम दिनों की गर्मी में पसीने में भीगे उसके कमसिन और मासूम सौंदर्य का रसास्वादन कर रहा था कि अचानक बेडरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई।
मधुर नहाकर आ गई थी; मैंने फिर से अखबार में अपनी आँखें गड़ा दी।

आप सोच रहे होंगे कि किसी कमसिन लड़की के बारे में ऐसे ख्याल रखना तो मेरे जैसे पढ़े लिखे और तथाकथित सामाजिक प्राणी के लिए और वैसे भी अगर नैतिक दृष्टि से भी देखा जाए तो कतई शोभा नहीं देता। ठीक है! मैं आपसे पूछता हूँ मैंने किया क्या है? मैंने तो एक कुशल भंवरे की तरह अपने बावरे नयनों से केवल इस नाज़ुक कली के अछूते सौंदर्य का दीदार या उसके कमसिन बदन की थोड़ी सी खुशबू अपने नथुनों में भर ली है और वो भी बिना उसकी कोमल भावनाओं को कोई ठेश पहुँचाए। आप बेवजह हो हल्ला मचा रहे हैं।
दोस्तो, आप कुछ भी कहें या सोचें मैं अपने अंदर के रावण को तो मार सकता हूँ पर अपने अंदर के इमरान हाशमी को कभी मरने नहीं दूंगा।

गौरी 4 दिनों के बाद के बाद आज सुबह आई है। कहने को तो बस 4 दिन थे पर मेरे लिए यह इंतज़ार जैसे 4 वर्षों के समान था। गौरी अपने साथ कुछ कपड़े लत्ते और छोटा-मोटा सामान भी लेकर आई है। लगता अब तो यह परमानेंट यही रहेगी। मधुर ने उसके लिए स्टडी रूम में एक फोल्डिंग बेड लगा दिया है। मधुर ने उसे शायद कपड़े भी पहनने के लिए दे दिए हैं। पटियाला सलवार और कुर्ती पहने गौरी किसी पंजाबी मुटियार से कम नहीं लग रही है। इसे देख कर तो बस मुँह से यही निकलेगा … ओए होये … क्या पटियाला पैग है।

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ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद आज से मधुर का स्कूल जाना शुरू हो गया है। उसे सुबह 8 बजे से पहले ही स्कूल जाना होता है। गौरी ने उसके लिए नाश्ता बना दिया था। मैं हॉल में सोफे पर बैठे हुए अखबार पढ़ने का नाटक कर रहा था अलबत्ता मेरे कान रसोई में ही लगे थे।

गौरी रसोई घर के दरवाजे के पास खड़ी थी। मधुर जरा जल्दी में थी और उसे समझा रही थी- साहब ने चाय तो पी ली है. उनके लिए नाश्ते में पोहे बना देना और लंच का तुम्हें बता ही दिया है। तू भी खा पी लेना और हाँ … मिर्चें कम डालना.
“हओ.”

“और सुन आज कपड़े धोकर प्रेस कर लेना दिन में। मैं दो बजे तक आ जाऊँगी आज से तुम्हारी नियमित रूप से पढ़ाई शुरू करनी है बहुत छुट्टी मार ली तुमने!”
“हओ.” गौरी ने चिर परिचित अंदाज़ में अपनी मुंडी हाँ में हिलाई।

मधुर ने बाहर जाते समय मेरे ऊपर एक उड़ती सी नज़र सी डाली तो मैंने अखबार की ओट से उसे एक हवाई किस दे दिया। मधुर मुस्कुराते हुए चली गयी। कसकर बाँधी हुई साड़ी में उसके नितम्ब आज बहुत कातिल लग रहे थे।

मैं अभी अपने आगे के प्लान के बारे में सोच ही रहा था कि गौरी रसोई से बाहर आई और थोड़ी दूर से ही उसने पूछा- आपते लिए नाश्ता बना दूँ?
“ना … अभी नहीं, मैं नहा लेता हूँ फिर नाश्ता करूंगा … अभी तो बस एक कप कड़क कॉफी पिला दो.”
गौरी अपने चिर परिचित अंदाज़ में ‘हओ’ बोलते हुए वापस रसोई में चली गयी।

मैं सोफे पर बैठा उसी के बारे में सोचने लगा। दिल के किसी कोने से फिर आवाज़ आई गुरु देर मत करो गौरी फ़तेह अभियान शुरू कर दो। लंड फिर से ठुमकने लगा था।

थोड़ी देर में गौरी ट्रे में कॉफी का कप लेकर आ गयी।
“सल तोफी” (सर कॉफी) गौरी ने कॉफी का कप टेबल पर रखते हुए कहा। उसने अपनी मुंडी नीचे ही कर रखी थी। मधुर ने शायद उसे मेरे लिए ‘सर’ और अपने लिए ‘मैडम’ का संबोधन गौरी को बताया होगा तभी उसने ‘सर’ कहा था।
“थैंक यू गौरी” मैंने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा।

वह खाली ट्रे उठाकर रसोई में वापस जाने के लिए मुड़ने ही वाली थी कि मैंने पूछा- गौरी, मुझे तुमसे एक जरूरी बात करनी है.
“अब मैंने त्या तिया?” उसने हैरानी से डरते हुए मेरी ओर देखा.
“अरे बाबा तुमने कुछ नहीं किया … मुझे तुमसे माफी मांगनी है.”
“तीस बात ते लिए?”
“ओह … वो उस दिन मैंने तुम्हें गलती से पकड़ लिया था ना?”
“तोई बात नहीं.”
“ना … ऐसे नहीं”
“तो?” उसने सवालिया निगाहों से मेरी ओर देखा।

“तुम्हें बाकायदा मुझे माफ करना होगा.”
“हओ … माफ तल दिया”
“ना ऐसे नहीं?”
“तो फिल तैसे?”
“तुम्हें बोलना होगा कि मैंने आपको माफ कर दिया”
गौरी कुछ सोचने लगी और फिर उसने रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा- मैंने आपतो माफ तल दिया.” गौरी के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गयी और मेरी भी हंसी निकल गयी।
“थैंक यू गौरी.”

“वो दरअसल मुझे लगा मधुर होगी? इसलिए सब गड़बड़ हो गयी.”
“तोई इतना जोल से दबाता है त्या? पता है आपने तितना जोर से दबा दिया था मेले तो 3-4 दिन दल्द होता लहा?” उसने उलाहना देते हुए अपने हाथों से अपने दोनों कबूतरों को सहलाते हुए कहा।
“सॉरी … यार … गलती हो गयी। अब देखो मैं इसलिए तो तुमसे माफी माँग रहा हूँ ना?’
“ठीत है.”
“मैं तो डर रहा था कहीं तुम यह बात मधुर को ना बता दो?”
“हट!!! ऐसी बातें तीसी तो बताई थोड़े ही जाती हैं, मुझे शलम नहीं आती त्या?”
उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं कोई चिड़िमार हूँ। हाए मेरी तोते जान परी मैं मर जावां …

“वैसे गौरी एक बात तो है?”
“त्या?”
“तुम ब्यूटी विद ब्रेन हो.”
“मतलब?” उसने हैरानी से मेरी ओर देखा। उसे शायद इसका अर्थ समझ नहीं आया होगा।
“इसका मतलब है तुम खूबसूरत ही नहीं साथ में बहुत अक्लमंद (समझदार) भी हो. इसे सुंदरता और समझदारी का संगम कहते हैं”
मैं तो आज पूरा 100 ग्राम मक्खन लगाने के मूड में था।

“हूँ.” गौरी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी, उसे अपनी तारीफ अच्छी लगी थी।
“अक्सर खूबसूरत लड़कियाँ दिमाग से पैदल ही होती हैं पर तुम्हारे मामले में उल्टा है। लगता है भगवान ने झोली भरकर तुम्हें खूबसूरती और समझदारी दी है। जैसे खूबसूरती के खजाने के सारे ताले तोड़ कर तुम्हें हुश्न से नवाजा है। क्यों सच कहा ना मैंने?”
“हा … हा …” गौरी अब जोर जोर से हंसने लगी थी।

वैसे मेरे प्रेमजाल की भूमिका ठीक से शुरू हो गयी थी और अब आगे की रूपरेखा तो शीशे की तरह मेरे दिमाग में बिल्कुल साफ थी। चिड़िया के उड़ जाने का अब कोई खतरा और डर नहीं था। अब तो इसे मेरे प्रेमजाल में फंसाना ही होगा।
“अरे हाँ गौरी … तुमने मूव या आयोडेक्स वगेरह कुछ लगाया था या नहीं?”
“किच्च?” उसने अपनी जीभ से किच्च की आवाज़ निकालकर मना किया। हे भगवान ये जब मना करने के अंदाज़ में ‘किच्च’ की आवाज़ निकालती है तो इसके गालों में पड़ने वाले डिंपल तो दिल में धमाल नहीं दंगल ही मचा देते हैं।

“कहो तो मैं लगा देता हूँ?”
“हट …” अब तो उसकी मुस्कान जानलेवा ही लगने लगी थी।
मैंने अब कॉफी के कप पर नज़र डालते हुए कहा- गौरी! तुमने अपने लिए भी कॉफी नहीं बनाई या नहीं?
“किच्च”
“क्यों?”
“मैं तो तोफी पीती ही नहीं”
“अरे??? वो क्यों?”
“वो … वो म … मौसी मना तलती है.”
“कमाल है मौसी मना क्यों करती है भला?”
“वो तहती है यह बहुत गलम होती है.”
“हाँ ठीक ही तो है कॉफी का मज़ा तो गर्म-गर्म ही पीने में आता है?”

“अले आप समझे नहीं?”
“क्या?”
“वो … वो …” गौरी कुछ बोलते हुए शर्मा सी रही थी।
“वो … वो क्या? प्लीज साफ बोलो ना?”
“वो … मुझे शलम आती है?”
“कमाल है कॉफी पीने में शर्म की क्या बात है?”
“ओहो … पीने में नहीं?”
“तो फिर?”
“वो मौसी तहती हैं तुवारी लड़तियों तो तोफी नहीं पीनी चाहिए.” उसने शर्माकर अपनी मुंडी नीचे कर ली।
“अरे … ??? वो क्यों? इसमें क्या बुराई है?”
“नहीं … मुझे बताते शलम आ रही है.” गौरी की शक्ल अब देखने लायक थी।
“प्लीज बोलो ना?”
“वो … वो..” उसने अपना गला साफ करते हुए बड़ी मुश्किल से मरियल सी आवाज़ में कहा- तोफी पीने से सु-सु में जलन होने लगती है.
मारे शर्म के गौरी तो दोहरी ही हो गयी।

ईसस्स् स्स्स्स… हाए मैं मर जावां।

उसका पूरा चेहरा सुर्ख (लाल) सा हो गया था और अधर जैसे कंपकपाने लगे थे। उसके माथे और कनपटी पर जैसे पसीना सा झलकने लगा था। अब मुझे समझ आया वो मेरे सामने सु-सु का नाम लेने में शर्मा रही थी। मैं मन में सोच रहा था साली अब भी इसे सु-सु ही बोलती है। अब तो यह पूरी भोस (बुर) बन चुकी होगी। इसे तो पूरे लंड की मलाई भी घोंट जाने में जलन नहीं हो सकती यह तो कॉफी है।

“अरे यह सब बकचोदी (बकवास) है?” मेरे मुंह से अचानक निकल गया।
गौरी ने मेरी ओर हैरानी से देखा। उसे बकचोदी शब्द शायद अटपटा लगा होगा। पर मैं चाहता था वह इन लफ्जों को सुनने की आदि हो जाए और उसे झिझक या शर्म महसूस ना हो।
“ऐसा कुछ नहीं होता … निरी बकवास और चुतियापे वाली बात है यह!” मैंने उसे समझाते हुए कहा- देखो! मैं और मधुर तो अक्सर साथ-साथ कॉफी पीते हैं उसे तो कभी सु-सु में जलन नहीं हुई.
“पल मैंने तो पहले तभी नहीं पी.”
“कोई बात नहीं आज तुम भी पहली बार पीकर तो देखो … कई चीजें जिंदगी में पहली बार करने में बड़ा मज़ा आता है.” मैंने हँसते हुए कहा।

उसने कुछ कहा तो नहीं लेकिन मैं उसके मन में चल रही उथल-पुथल का अनुमान अच्छी तरह लगा सकता था।
“अरे भई मैंने कहा ना डरो मत … कुछ नहीं होगा. और अगर सु-सु में जलन हुई भी तो उसमें कोल्ड क्रीम लगा लेना … बस.” मैंने उसे यकीन दिलवाने की कोशिश की।

मैंने उसकी उलझन खत्म करने के लिहाज़ से कहा- अरे … यह कॉफी तो बातों-बातों में ठंडी हो गयी, अब तुम फटाफट दो कप कड़क कॉफी और बना लाओ फिर साथ साथ पीते हैं.
उसे कॉफी का कप पकड़ाते हुए मैंने कहा।

अब उस बेचारी के पास कॉफी बनाकर लाने के अलावा और कोई रास्ता कहाँ बचा था।
वह कॉफी का कप उठाकर धीरे धीरे रसोई की ओर जाने लगी।

हे भगवान इसके नितम्ब तो कमाल के लग रहे हैं। जब यह चलती है तो जिस अंदाज़ में ये गोल गोल घूमते हैं दिल पर जैसे छुर्रियाँ ही चलने लगती हैं। दिल तो कहता है गुरु इसने तो मुझे हलाल ही कर दिया। पता नहीं कब इनको करीब से नग्न देखने और मसलने का मौका मिलेगा। मेरा तो मन करता है इसे घोड़ी बनाकर इसके नितंबों पर जोर जोर से थप्पड़ लगाकर लाल कर दूँ और फिर प्यार से इन पर अपनी जीभ फिराऊँ और फिर अपने पप्पू पर थूक लगाकर उसे गहराई तक इसकी मखमली गांड में उतार दूँ और फिर आधे घंटे तक हमारा यह घमासान दंगल चलता रहे।

मैं इन ख्यालों में डूबा हुआ था कि गौरी कॉफी बनाकर ले आई। मेरे लिए उसने मग में कॉफी डाली थी और अपने लिए गिलास में। उसने कॉफी का कप मुझे पकड़ा दिया और खुद गिलास लेकर नीचे फर्श पर बैठने लगी तो मैंने उसे कहा- अरे नीचे क्यों बैठती हो, चलो उस टी टेबल पर बैठ जाओ.
मैंने सोफे और सेंट्रल टेबल के पास रखी स्टूल (टी टेबल) की ओर इशारा करते हुए कहा।

मेरा मन तो कर रहा था इसे अपने पास सोफे पर नहीं बल्कि अपनी गोद में ही बैठा लूँ पर वक़्त की नज़ाकत थी अभी यह सब बोलने का या करने का माकूल समय नहीं आया था।

गौरी एक हाथ से उस स्टूल को थोड़ा सा खिसकाकर उस पर बैठ गयी। उसके गोल-गोल नितम्ब शायद उस स्टूल पर पूरे नहीं आ रहे होंगे तो सुविधा के लिए उसने अपनी एक टांग दूसरे पर रख ली। ऐसा करने से उसकी मांसल पुष्ट जांघें और उनके बीच पहनी पैंटी की आउटलाइन्स साफ दिखने लगी थी।

हे भगवान! उसकी सु-सु तो बस एक बिलांद के फ़ासले पर ही होगी। पता नहीं उसे देखने का मौका मेरे नसीब में कब आएगा।
मुझे लगता है उसकी बुर पर हल्के मुलायम बालों का पहरा होगा। बीच की दरार तो रस से भरी होगी और उसकी भीनी भीनी खुशबू तो दिलफरेब ही होगी।

मैं टकटकी लगाए उसकी जांघों के संधि स्थल को ही निहार रहा था। गौरी ने मुझे ऐसे करते हुए शायद देख लिया था तो उसने अपनी कुर्ती को थोड़ा सा खींचकर अपनी जांघों पर कर लिया। भेनचोद ये लड़कियाँ भी आदमी की नज़रों को कितनी जल्दी पकड़ लेती हैं? काश मेरे मन की बात भी समझ जाए!

मुझे अब कॉफी की याद आई। मैंने एक चुस्की ली। कॉफी ठीक ठाक ही बनी थी पर मुझे तो गौरी को इंप्रेस (प्रभावित) करना था। कॉफी की तारीफ करना तो बहुत लाज़मी बन गया था अब। और यह सब तो मेरे प्लान का ही हिस्सा था।
“वाह …” मेरे मुँह से निकाला।
गौरी ने चौंककर मेरी ओर देखा।
“वाह … गौरी तुमने तो बहुत बढ़िया कॉफी बनाई है?”
“अच्छी बनी है?” उसने आश्चर्य मिश्रित खुशी के साथ पूछा।
“अरे अच्छी नहीं … लाजवाब कहो बहुत ही मस्त बनी है.”
गौरी मंद मंद मुस्कुराने लगी थी।

“गौरी तुम्हारे हाथों में तो जादू है यार … बहुत ही मस्त कॉफी बनाती हो.” इस बार मैंने ‘मस्त’ शब्द पर ज्यादा ही जोर दिया था।

अब बेचारी गौरी क्या बोलती अपनी तारीफ सुनकर उसके पास सिवाय मुस्कुराने के क्या बचा था। मेरी कोशिश थी मैं उसके दिमाग में यह बैठा दूँ कि वह बहुत ही खास (स्पेशल) है और साथ ही उसे यह अहसास भी करवा दूँ कि वह बहुत ही खूबसूरत भी है।
उसे रंगीन सपने दिखाना बहुत ही जरूरी था। मैं चाहता था कि उसकी कल्पनाओं को पंख लग जाएँ और वह ख्वाबों की हसीन दुनिया में उड़ना सीख ले तो मेरा काम अपने आप बन जाएगा।

“मेरा तो मन करता है गौरी तुम्हारे इन हाथों को ही चूम लूं?” मैंने हँसते हुए कहा।
“अले ना बाबा … ना?” गौरी ने थोड़ा सा डरने और पीछे हटने का नाटक सा किया।
“मैं सच कह रहा हूँ?”
“ना आपता तोई भलोशा नहीं है? त्या पता छूते-छूते मेली अंगुलियाँ ही खा जाओ?” कहकर उसने तिरछी नज़रों से मुझे देखा और हँसने लगी।
“अरे मैं तो मज़ाक कर रहा हूँ” मैंने हँसते हुए कहा।

“अरे तुम भी पीओ ना?”
“हओ” गौरी ने कुछ झिझकते हुए कॉफी का गिलास हाथ में पकड़ लिया।
“आप दीदी तो नहीं बताओगे ना?”
“क्या?”
“तोफी पीने ते बारे में?”
“प्रॉमिस … पक्का … देखो तुमने भी तो हमारी वो बात मधुर को नहीं बताई तो भला मैं कैसे बता सकता हूँ?”
“ठीत है.” अब उसने एक चुस्की सी लगाई, उसने थोड़ा सा मुँह बनाया शायद कॉफी कुछ कड़वी लगी होगी।

“क्यों है ना मस्त?”
“थोड़ी तड़वी सी है?”
“अरे तुम पहली बार पी रही हो ना इसलिए ऐसा लग रहा है। जब इसकी आदत पड़ जाएगी तो बहुत मज़ा आएगा.”
“अच्छा?”

मैंने मन में कहा- हाँ मेरी जान पहली बार बहुत सी चीजें कड़वी और कष्टदायक लगती है बाद में मज़ा देती हैं। आगे आगे देखती जाओ तुम्हें तो मेरे साथ और भी बहुत सी चीजें पहली बार ही करनी हैं।

बाहर रिमझिम बारिश हो रही थी और मेरे तन-मन में शीतल फुहार सी बहने लगी थी। बेकाबू होती अल्हड़ और अंग अंग से फूटती जवानी का बोझ उठाना शायद अब गौरी के लिए बहुत मुश्किल होगा। मेरे आगोश में आने के लिए अब इसकी बेताब जवानी मचलने ही वाली है। बस थोड़ा सा इंतज़ार …

बातें तो और बहुत हो सकती थी पर मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही थी। हम दोनों ने कॉफी खत्म कर ली थी।
“थैंक यू गौरी इतनी मजेदार कॉफी के लिए!”

गौरी कॉफी के कप उठाकर रसोई में चली गयी और मैं बाथरूम में। गौरी फ़तेह अभियान का पहला सबक सफलता पूर्वक पूरा हो चुका था अब मंजिल-ए-मक़सूद ज्यादा मुश्किल और दूर तो नहीं लगती है।

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आपके कमेन्टस का इन्तजार है
कहानी जारी रहेगी।
 
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Lutgaya

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भाग-5
ये साली नौकरी भी जिन्दगी के लिए फजीता ही है। यह अजित नारायण (मेरा बॉस) भोंसले नहीं भोसड़ीवाला लगता है। साला एक नंबर का हरामी है। पिछले 4 सालों से कोई पदोन्नति (प्रमोशन) ही नहीं कर रहा है। आज मैं इससे हिसाब चुकता कर ही लेता हूँ। मैं इंतज़ार कर रहा था कि कब वह आए और मैं उसे बात करूँ।

आज भोंसले ऑफिस में थोड़ी देरी से आया था। मैं उसके कॅबिन में जाने की सोच ही रहा था कि चपरासी ने आकर बताया कि बॉस बुला रहे हैं।
“गुड मॉर्निंग सर!” मैंने कॅबिन में घुसते हुए कहा।
“आओ प्रेम बैठो, तुमसे कुछ बात करनी है.”

बात तो मुझे भी करनी थी पर चलो पहले इसकी सुन लेते हैं मैंने कहा- जी बोलें?
“प्रेम एक खुशखबर है?”
“क … क्या?”
“प्रेम मेरा ट्रांसफर पुणे हो रहा है। दरअसल मैंने ही इसके लिए HRD से रिक्वेस्ट की थी।”
“हूं …”

भोंसले आज बड़ा खुश नज़र आ रहा था वरना तो हर समय उसके चेहरा राऊडी राठोड़ ही बना रहता है।
“वो दरअसल पारू को पुणे में मेडिकल में सीट मिल गयी है.” वह अपनी लड़की (पारुल) के बारे में बात कर रहा था। पारो नाम की यह फुलझड़ी पता नहीं कैसी होगी पर उसका नाम सुनकर तो मुझे लगा मैं इसके लिए देवदास बन जाऊँ तो मज़ा आ जाए।

मुझे विचारों में खोया देखकर भोंसले बोला- क्या सोचने लगे प्रेम?मेरी बीवी ने घर में एक नयी कामवाली रखी.
“क … कुछ नहीं सर … आपको बहुत-बहुत बधाई हो सर!”
“थैंक यू प्रेम!”
“सर, यहाँ अब कौन आएगा?”
“यह तो पता नहीं … पर प्रेम मैंने तुम्हारे नाम की सिफारिश कर दी है। प्रमोशन के साथ इनक्रिमेंट भी मिलेगा। मुझे लगता है 2-3 दिन में कन्फर्मेशन का मेल आ जाएगा.”
“थैंक यू सर!”

“प्रेम! लेकिन तुम्हें 3 महीने की ट्रेनिंग पर पहले बंगलूरू हो जाना होगा.”
“ओह?”
“क्या हुआ? कोई दिक्कत?”
“नो सर! ऐसी कोई बात नहीं है पर ट्रेनिंग पर जाना कब होगा?”
“देखो अगर अभी प्लान कर सकते हो तो हफ्ते दस दिन में प्लान कर लो, वरना दीपावली के बाद जा सकते हो। मैं सोचता हूँ अभी आगे त्योहारों का सीज़न आ रहा है तुम्हें अपने टार्गेट्स बहुत अच्छे से पूरे कर लेने चाहिएं। मेरे ख्याल से दीपावली के आसपास ठीक रहेगा?”
“ठीक है सर!”
“प्रेम अभी स्टाफ से इस बारे में कोई बात मत करना। कल सन्डे है तुम घर पर आ जाना वहीं डिटेल डिस्कस करेंगे.”
“ओके सर.”
“ओके गुडलक!”

मैं कॅबिन से बाहर आ गया। भेनचोद यह किस्मत भी जैसे लौड़े हाथ में ही लिए फिरती है। एक हाथ से कुछ देती है दूसरे हाथ से छीन लेती है। एक तरफ प्रमोशन की खुशी है दूसरी तरफ तीन महीने के लिए बाहर जाना होगा। गौरी को किसी तरह अपने जाल में फंसाने के लिए पूरा प्लान बनाया था। चिड़िया दाना चुगने के लिए छटपटाने लगी है और अब अगर ऐसे में बंगलूरू जाना पड़ा तो सब किया धरा गुड़ गोबर हो जाएगा। लग गये लौड़े!!!

शाम को घर जाते समय मैं यह सोच रहा था कि मधुर को इस बारे में कैसे बताऊँ?
जब घर पहुँचा तो गौरी ने दरवाजा खोला। मधुर कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।

मैं सोफे पर बैठ गया; गौरी पानी लेकर आ गयी।
आज गौरी ने हल्के सलेटी रंग का पाजामा और टॉप पहन रखा था। लगता है उसने आज फिर से अंदर ब्रा नहीं पहनी है। मेरी नज़र उसके गोल-गोल रस भरे सिंदूरी आमों के निप्पल पर पड़ी जो मटर के दाने जितने तो जरूर होंगे।

“वो मधुर नहीं दिख रही?”
“मैडम पड़ोस में गुप्ताजी ते यहाँ गयी हैं.”
“कुछ बताकर गयी?”
“हओ … गुप्ताजी ती बेटी ती सगाई हुई है तो उनते यहाँ लेडीज संगीत में गई हैं.”
“ओह … कब तक लौटेंगी?”
“एत घंटे ता बोला है.”
“हम्म” मैं सोच रहा था मधुर तो गीत और डांस का आज कोई मौका नहीं छोड़ने वाली।

“आपते लिए चाय बनाऊँ?”
“ना … थोड़ी देर रूककर पीते हैं.”
‘हओ’ कहकर गौरी रसोई में जाने लगी।

उसका टॉप उसके नितंबों से थोड़ा सा ऊपर था। पाजामा थोड़ा तंग था इसलिए उन कसी हुई दोनों गोलाइयों के बीच की दरार में धंसा हुआ सा था। इसे देखकर तो मेरा लंड फड़फड़ाने ही लगा।
आइलाआआआ …
उसने शायद अंदर पैंटी भी नहीं पहनी थी। इसे किसी तरह बहाने से बातों में लगाकर पास बैठा लूँ तो सु-सु की पूरी रूपरेखा बड़े आराम से देखी जा सकती है।

मैंने उसे टोका- वो तुम्हारी पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है?
“ठीत है.”
“हूँ! आज क्या पढ़ाया मैडम ने?” पढ़ाई करते समय गौरी मधुर को मैडम ही बोलती है तो मैंने भी मधुर के लिए मैडम ही बोला था।
“आज तो मैडम ने मैथ्स पढ़ाया.”

“समझ आया या नहीं?” मैंने हँसते हुए पूछा।
“किच्च …”
“क्यों?”
“बड़ा मुश्तिल लगता है?”
“अरे दिल लगाकर करो तो कोई काम मुश्किल नहीं लगता?”
“मुझे टेबल याद नहीं लहते तो दीदी बड़ा गुस्सा होती हैं.”

“तो एक काम किया कर?”
“त्या?”
“तुम रोज़ कॉफी पिया करो” मैंने कुछ संजीदा (गंभीर) लहजे में कहा।
“उससे त्या होगा?”
“इससे तुम्हारी याददास्त बहुत तेज हो जाएगी.”
“अच्छा?” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा कहीं मैं उसे ऊल्लू तो नहीं बना रहा।
“हाँ भई सच में। अच्छा वो सुबह कॉफी पीने के बाद तुम्हारी सु-सु में कोई जलन तो नहीं हुई ना?” मैंने हँसते हुए पूछा।
“हट … तैसी बात तलते हो?” गौरी तो अब गुलज़ार ही हो गयी।
इस्स्स … उसके शर्माने की अदा तो मेरे कलेजे का जैसे चीरहरण ही कर लिया।

मुझे लगा गौरी शर्माकर रसोई में भाग जाएगी। वह वहीं खड़ी रही। उसे मेरी इन बातों का उसे कतई बुरा नहीं लग रहा था और मैं भी तो उसे बातों में लगाए रखना चाहता था। मैंने बात का विषय बदलने के लिहाज़ से पूछा- गौरी तुमने तो बताया ही नहीं?
“हट!”
“क्या हट?”
“मुझे ऐसी बातों से शलम आती है?”
“अरे बाबा मैं तुम्हारी सु-सु की नहीं … कोई और बात पूछ रहा हूँ?”
“त्या?” उसने आश्चर्य से मेरी और देखा।
“वो मधुर के साथ तुम उस दिन बाज़ार गयी थी तो क्या-क्या खरीदा?”
“ओह … अच्छा वो …?”
“हाँ?
“तपड़े और तिताबें खरीदे” (कपड़े और किताबें खरीदे)
“क्या-क्या लिया पूरी बात बताओ ना?”
“दो सूट, एक जीन पैंट-टॉप, जूते, चप्पल औल दो जुलाब जोड़ी, त्लीम, बैंगल्स, एत लंगीन चश्मा औल एत पायल ती जोड़ी।

कमाल है? मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी साली कंजूस मधुमक्खी एक पुराना फटा कपड़ा किसी को नहीं देती गौरी के ऊपर इस तरह मेहरबान कैसे हो गयी है?

“अरे वाह! तुम्हारे तो मज़े हो गये? लगता है मधु तुम्हारे ऊपर बहुत ही मेहरबान हो गयी है?”
“हाँ, दीदी मुझे बहुत प्याल तलती हैं.” गौरी हँसने लगी थी।
“हाँ, यह तो मुझे भी मालूम है.”

“पता है दीदी त्या बोलती है?” उसने अपनी आँखें चौड़ी करते हुए कहा।
“क्या?” मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
“वो बोलती हैं : मेरा बस चले तो जिंदगी भर तुम्हें यहीं रख लूँ.”

मैं तो इस फ़िकरे का मतलब कई देर तक ही नहीं अलबत्ता कई दिनों तक बाद में भी सोचता रहा।

“गौरी देखो मधुर ने तुम्हें इतने चीजें और कपड़े दिलवाए और तुमने तो हमें पहनकर भी नहीं दिखाए?” मैंने उलाहना देते हुए कहा।
“वो सब मैं दीदी ते जनम दिन पल पहनूँगी.”
“ओह … पर उसमें तो एक महीना बाकी है.”
“हओ”

“गौरी वैसे जीन पैंट और टॉप में तुम बहुत खूबसूरत लगोगी.” गौरी के चहरे पर लंबी मुस्कान फ़ैल गयी।
“तुम ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ देखती हो ना?”
“हओ … वो तो मैं तभी मिस नहीं कलती हूँ? आपने त्यों पूछा?”
“उसमें भिड़े की जो लड़की है ना? पता नहीं क्या नाम है?”
“उसता नाम सोनू है.” गौरी जल्दी से बोल पड़ी।

“पता है उसे देखकर मेरा मन क्या करता है?”
“त्या?”
“इसको खूँटी से लटकाकर इसकी टांगें पकड़कर खींच कर लम्बा थोड़ा लम्बा कर दूं?”
“हा.. हा … हा … वो बेचाली तो मल ही जायेगी?”
“अरे नहीं यह थोड़ी लम्बी होकर बिल्कुल तुम्हारी तरह बहुत ही खूबसूरत लगेगी.”

सोनू के साथ अपनी तुलना सुनकर गौरी को शायद अच्छा लगा रहा था इसीलिए वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी।

“एक बात और भी है?”
गौरी अपनी सुन्दरता के ख्यालों मे डूबी हुयी थी। वह कुछ बोली तो नहीं पर उसने रसीली मुस्कान के साथ मेरी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा।
“गौरी सच कहता हूँ तुम अगर जीन पैंट पहन लो तो बिल्कुल वैसी ही खूबसूरत लगोगी.”

ईसस्स्स … अब तो गौरी जैसे रूपगर्विता ही बन गयी थी वह मंद-मंद मुस्कुराए जा रही थी। उसके चहरे पर जैसे लाली सी बिखर गयी थी। उसकी तेज होती साँसों के साथ उसके ऊपर नीचे होते उरोजों को देख कर उसके दिल की धड़कन का अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता था।

उसने कुछ सोचते हुए कहा- आपतो एत बात बताऊं?
“क्या?”
“आप दीदी से तो नहीं तहोगे ना?”
“किच्च …” मैंने भी गौरी के अंदाज़ में ना करने के अंदाज़ में अपनी जीभ से ‘किच्च’ की आवाज़ निकालते हुए कहा “देखो! तुम भी हमारी सारी बातें मधुर को थोड़े ही बताती तो फिर मैं भला कैसे बता सकता हूँ? बोलो?”
“फिल ठीत है.”

वो थोड़ा सा रुकी और फिर कुछ सोचते हुए बोली- दीदी ने तल मुझे साड़ी पहनना सिखाया था.
गौरी अब थोड़ा लजा सी रही थी।
“ओए होये … क्या बात है? जरूर लाल रंग की होगी?”
“आपतो तैसे पता? दीदी ने बताया?”
“अरे नहीं! मैंने तो अंदाज़ा ही लगाया है?”
“हूँ”
“गौरी तुम तो उसमें बहुत ही खूबसूरत लगी होगी?”

“हओ … पता है दीदी ने त्या बोला?”
“क्या?”
वो बोली- ‘तुम तो इस साड़ी में पूरी दुल्हन सी लग रही हो.’ फिर उन्होने मेले गालों पल ताजल ता टीता लगाते हुए तहा ‘गौरी तुम बहुत ही मासूम और सुंदर हो तिसी ती नज़र ना लग जाए!’

“हाँ गौरी, यह बात तो सोलह आने सच है। तुम सुंदर ही नहीं बहुत हसीन और खूबसूरत भी हो.” बेचारी गौरी के पास अब रूपगर्विता मुस्कान के सिवा और क्या बचा था।

मैंने बातों का सिलसिला जारी रखते हुए कहा- गौरी, तुमने कोई सैल्फी ली या नहीं?
“मेले पास मोबाइल थोड़े ही है तैसे लेती? हाँ दीदी ने अपने साथ मेली 4-5 सैल्फी जलूल ली थी.”
“हूँ” ये साली मधुर भी कई बातें बताती ही नहीं है।

अचानक मेरे दिमाग में एक जबरदस्त आइडिया ऐसे आया जैसे किसी हसीन कन्या को देखकर लंड उछलकर कच्छे में खड़ा हो कर सलाम बोलने लग जाता है। क्यों ना गौरी को कोई पुराना मोबाइल दे दिया जाए। फिर तो मैं उसे अपनी सैल्फी लेना और वाट्स-एप्प चलाना भी सिखा दूंगा। फिर तो मज़े से वह और भी बहुत कुछ देख और दिखा सकती है। मैंने और मधुर ने पिछले साल 4जी सेट ले लिया था तो पुराने मोबाइल तो बेकार ही पड़े हैं। चलो आज रात को किसी बहाने से मधुर को बोलता हूँ गौरी को कोई पुराना मोबाइल दे दे।

“गौरी एक बात तो है?”
“त्या?”
“तुम्हारी शादी जिसके साथ होगी वो कितना भाग्यशाली होगा. लगता है उसने इस जन्म में या पिछले जन्म में जरूर लाख मोती दान किए होंगे.” कहकर मैं हँसने लगा।
अब गौरी भी जोर-जोर से हँसने लगी थी। मैं यही तो चाहता था कि उसे अपनी खूबसूरती पर नाज़ हो जाए।
गौरी असमंजस भरी निगाहों से मुझे ताकती रही। उसे कोई जवाब जैसे सूझ ही नहीं रहा था।

“पता नहीं वह भाग्यशाली कौन होगा? काश हमारी भी किस्मत ऐसी होती?”
“तैसी?”
“तुम्हारे जैसी?”
गौरी कुछ नहीं बोली। वो कुछ सोचने लगी थी। पता नहीं गौरी को कुछ समझ आया या नहीं पर इतना तो तय है उसे मेरी इन बातों से कतई बुरा नहीं लग रहा था अलबत्ता वो मेरे साथ और बातें करने के लिए बेजार (उत्सुक) नज़र आ रही थी।

“पल दीदी तो खुद इतनी सुन्दल हैं। आप भी तो बड़ी तिस्मत वाले हो? फिल आप ऐसा त्यों बोलते हो?” गौरी ने अचानक कई सवाल कर दिए थे। साली दिखने में लॉल लगती है पर इन मामलों में पूरी एलीबाई है। कोई बात नहीं देखते हैं।
“हाँ … मधुर भी तुम्हारी तरह सुंदर तो है।”
“दीदी ने आपते बाले में भी एत बात बताई थी.” उसने रहस्यमय ढंग से मुस्कुराते हुए कहा।

जिस अंदाज़ में वो मंद-मंद मुस्कुरा रही थी मुझे लगा कहीं मधुर ने कुछ गड़बड़ तो नहीं कर दी? मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था।
हे भगवान! कहीं फिर से लौड़े तो नहीं लग गये?
“क … क्या बताया?” मैंने हकलाते से पूछा।
मेरी इस हालत पर अब गौरी मज़े ले रही थी।

इतने में गेट पर मधुर के आने की आहट सुनाई दी। गौरी दौड़कर रसोई में भाग गयी और मैं जल्दी से कपड़े बदलने बाथरूम में। भेनचोद ये मधुमक्खी (मधुर) भी खलनायक की तरह हमेशा गलत मौके पर ही एंट्री मारती है।

मधुर आज खुश नज़र आ रही थी। मुझे लगता है आज मधुर ने खूब ठुमके लगाए होंगे। खुले बाल और लाल रंग की नाभिदर्शना साड़ी … उफफ्फ … पता नहीं गौरी को यही साड़ी पहनाई थी या कोई दूसरी पर कुछ भी कहो मधुर इस समय बाजीराव की मस्तानी ही लग रही थी। मधुर रसोई में घुस गयी। वो शायद गौरी को रात के खाने के बारे में समझा रही थी।

मैं हाथ मुँह धोकर कपड़े बदलकर बाहर आकर टीवी देखने लगा। आज शनिवार था तो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ तो आने वाला था नहीं मैं कॉमेडी शो देखने लग गया।
कहानी जारी रहेगी
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Lutgaya

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भाग -6
मधुर आज खुश नज़र आ रही थी। मुझे लगता है आज मधुर ने खूब ठुमके लगाए होंगे। खुले बाल और लाल रंग की नाभिदर्शना साड़ी … उफफ्फ … पता नहीं गौरी को यही साड़ी पहनाई थी या कोई दूसरी! पर कुछ भी कहो मधुर इस समय बाजीराव की मस्तानी ही लग रही थी।

मधुर रसोई में घुस गयी। वो शायद गौरी को रात के खाने के बारे में समझा रही थी।
मैं हाथ मुँह धोकर कपड़े बदलकर बाहर आकर टीवी देखने लगा। आज शनिवार था तो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ तो आने वाला था नहीं … मैं कॉमेडी शो देखने लग गया।

खाना निपटाने के बाद हम अपने कमरे में आ गये। मधुर शीशे के सामने खड़ी होकर अपने आप को निहार रही थी।
“मधुर आज तो गुप्ताजी के यहाँ पार्टी में तुमने खूब रंग जमाया होगा?”
“ना बस थोड़ा सा ही डांस किया.”
“वैसे तुम इस साड़ी में बहुत ही खूबसूरत लगती हो.”
मधुर ने कोई जवाब नहीं दिया वो बाथरूम में घुस गयी।

मैंने अपने पाजामे का नाड़ा खोल दिया था और अपने अंगड़ाई लेते पप्पू को हाथ से सहलाने लगा। कोई 15 मिनट के बाद वो बाथरूम से बाहर आई और फिर बिस्तर पर मेरी ओर करवट लेकर लेट गयी। उसने ढीला सा गाउन पहन रखा था। उसने बालों की चोटी नहीं बनाई थी बाल खुले थे।

अब उसने एक हाथ से मेरे पप्पू को पकड़ लिया और सहलाने लगी। उसने मेरे होठों पर एक चुम्बन लिया और फिर मेरी आँखों में झांकते हुए बोली- प्रेम!
“हूं …” मैं भी उसे अब अपनी बांहों में भर लेना चाहा।
“वो आज गुलाबो फिर आई थी?”
“पर तुमने उसे उस दिन 8-10 हज़ार रुपये दे तो दिए थे? अब और क्या चाहिए उसे?”
“ओहो … तुम्हें तो आजकल कुछ याद ही नहीं रहता? वो मैंने तुम्हें बताया था ना?”
“भई अब मुझे क्या पता तुमने कब और किस बारे में बताया था?” मेरा मूड कुछ उखड़ सा गया था। ये मधुर भी कब की बात कब करती है पता ही नहीं चलता।

“वो दरअसल उन लोगों ने नगर परिषद में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के अंतर्गत गरीब परिवार वालों को घर में शौचालय (टॉयलेट) बनाने के लिए मिलने वाले अनुदान के लिए अप्लिकेशन लगा रखी है। तुम्हारा वो एक फ्रेंड अकाउंटेंट है ना नगर परिषद में?”
“हाँ तो?”
“वो निर्मल निर्मल करके कोई है ना?”
“हाँ निर्मल कुशवाहा? क्या हुआ उसे?”
“अरे उसे कुछ नहीं हुआ गुलाबो की फाइल उसी के पास पेंडिंग पड़ी है। तुम कहकर बेचारी का यह काम करवा दो ना प्लीज?”

मधुर मेरे ऊपर थोड़ा सा झुक सी गयी थी और उसने मेरे सिर को हाथों में पकड़कर अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे से टकराने लगी थी। अब उसने अपनी एक मांसल जांघ मेरे दोनों पैरों के बीच फंसा ली थी। मधुर को जब कोई काम करवाना होता है तो वो इसी प्रकार मेरे ऊपर आ जाती है और फिर हम विपरीत आसन में (जिसमें पुरुष नीचे और स्त्री ऊपर रहती है) खूब चुदाई का मज़ा लेते हैं।

“तो क्या गुलाबो के यहाँ टॉयलेट नहीं है?” मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी।
“यही तो बात है? तुम जरा सोचो बेचारों को कितनी बड़ी परेशानी होगी? जवान बहू बेटियों को भी बाहर खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है.”

आईलाआआ … ! क्या गौरी भी खुले में सु-सु करने जाती है?
ओह … उस बेचारी को तो बड़ी शर्म आती होगी?
ईसस्स्स्स … !
वो शर्म के मारे सु-सु करने से पहले इधर उधर जरूर देखती होगी … फिर अपनी आँखें झुकाए हुए धीरे धीरे अपनी पैंटी नीचे करती होगी और उकड़ू बैठ कर अपनी खूबसूरत मखमली बुर से
सु-सु की पतली सी धार निकालती होगी.

याल्ला … इसे देखकर तो लोगों के लंड खड़े हो जाते होंगे … और फिर वो सभी मुट्ठ मारने लग जाते होंगे!
ये तो सरासर गलत बात है जी … बेहूदगी है ये तो … इससे तो हर जगह गंदगी फ़ैल जाएगी और सरकार के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की तो … ?

“क्या हुआ?” मधुर की आवाज़ से मैं चौंका।
“ओह … हाँ बहुत खूबसूरत?”
“क्या बहुत खूबसूरत?” मधुर ने फिर टोका।
मैं तो गौरी की सु-सु की मधुर आवाज़ की कल्पना में ही में डूबा था मैं बेख्याली में पता नहीं क्या बोल गया।

मैंने बात सँवारी- हाँ … मेरा मतलब था बहुत सुन्दर विचार है मैं उससे बात करूँगा … तुम निश्चिन्त रहो समझो उसका काम हो गया.
“थैंक यू प्रेम!” कहकर मधुर ने मेरे ऊपर आकर अपनी चूत में मेरे लंड को घोंट लिया। और फिर आधे घंटे तक उसने अपनी चूत और नितम्बों से खूब ठुमके लगाए। मुझे आश्चर्य हो रहा था आज मधुर ने डॉगी स्टाइल में करने को क्यों नहीं कहा। आज तो वह खालिश घुड़सवारी के मूड में थी।

काश कभी ऐसा हो कि गौरी भी इसी तरह मेरे ऊपर आकर घुड़सवारी करने को कहे तो मैं झट से मान जाऊँ। फिर तो उसके नितम्बों पर थपकी लगाता रहूँ और उसकी मस्त गांड के छेद में भी अपनी अंगुली डालकर उसे और भी प्रेमातुर कर दूँ।

इन्हीं ख्यालों में खोया मैं मधुर की पीठ, कमर और बालों में हाथ फिराता रहा। पता नहीं कब हमारा स्खलन हुआ और कब नींद आ गई।

सुबह कोई 8 बजे मधुर ने मुझे जगाया। मधुर नहा कर तैयार हो चुकी थी। मुझे लगा कि वह कहीं जाने वाली है। पर आज तो सन्डे था? फिर मधुर आज इतनी जल्दी कैसे तैयार हो गयी?
“प्रेम! आज मुझे आश्रम जाना है। तुम भी चलोगे क्या?”

ओह … तो मधुर मैडम आज आश्रम जाने वाली हैं। मेरे लिए गौरी के साथ समय बिताने का बहुत अच्छा मौक़ा था।
मैंने बहाना बनाया- ओह … सॉरी जान! मुझे आज बॉस के घर जाना है, मैं नहीं चल पाऊंगा।
“तुम्हें तो बस कोई ना कोई बहाना ही चाहिए?”
“अरे नहीं यार वो आज भोंसले से प्रमोशन के बारे में बात करनी है उसने ही बुलाया है।”
“ठीक है.” कहकर मधुर रसोई की ओर चली गई और मैं बाथरूम में।

गौरी चाय बना कर ले आई थी। मधुर और मैं चाय पीने लगे। मैं सोच रहा था ये मधुर भी इन बाबाओं के चक्कर में पड़ी रहती है। चलो धार्मिक होना अपनी जगह अच्छी बात पर है आजकल इन बाबाओं के दिन अच्छे नहीं चल रहे। किसी दिन किसी बाबा राम या रहीम ने ठोक-ठाक कर इस पर सारी कृपा बरसा दी तो यह फिर मधु की जगह हनी (हनीप्रीत) बन जायेगी।

इतने में बाहर गाड़ी के हॉर्न की आवाज आई।
“अच्छा प्रेम मैं जाती हूँ वो मोहल्ले की सारी लेडीज भी आज आश्रम जा रही हैं। आज गुरूजी का जन्मोत्सव है। हम लोग दोपहर तक लौट आयेंगे।”
“अरे कुछ खा-पीकर तो जाओ?”
“नहीं … वहाँ आरती और भजन के बाद नाश्ता-भोजन आदि की सारी व्यवस्था की हुई है। तुम्हारे नाश्ते और लंच के लिए मैंने गौरी को बता दिया है।”
इतने में फिर हॉर्न की आवाज आई। ओहो … क्या मुसीबत है … ‘आईईईई … ‘ बोलते हुए मधुर बाहर लपकी।

मधुर के जाते ही गौरी रसोई से बाहर आ गई।
आज गौरी ने गोल गले की टी-शर्ट के नीचे लेगीज पहन रखी थी। काले रंग की लेगीज में कसे हुए नितम्ब देख कर तो मेरा लंड उछलने ही लगा था। किसी तरह उसे पाजामें में सेट किया। साली ये गौरी भी आजकल इतनी अदा से अपने नितम्बों को जानबूझकर लचकाते हुए चलती है कि इंसान क्या फरिश्ते का भी मन डोल जाए।

“आपते लिए नाश्ते में त्या बनाऊँ?”
“मधुर ने बताया होगा?”
“दीदी ने तो सैंडविच बनाने को बोला है पल आपतो तुछ औल पसंद हो तो वो बना देती हूँ?” रहस्यमई ढंग से मुस्कुराते हुए गौरी ने पूछा।
मैंने मन में सोचा मेरी जान मेरा मन तो बहुत कुछ खाने पीने और पिलाने का करता है। बस एक बार हाँ कर दो फिर देखो क्या-क्या खाता और खिलाता हूँ।
पर मैंने कहा “नहीं आज सैंडविच ही बना लो। तुम्हें भी तो पसंद हैं ना?”
“हओ.”
“तुम्हें सैंडविच बनाना तो आता है ना?”
“हओ … दीदी ने सिखाया है”
“ठीक है पर जरा कड़क बनाना। कड़क और टाईट चीजों में ज्यादा मज़ा आता है.”
“वो ब्लेड लानी पलेगी.” गौरी मुस्कुराकर मेरी देखते हुए बोली।
“तुम बाहर मिठाई लाल की दुकान से जाकर ब्रेड ले आओ फिर हम दोनों मिलकर सैंडविच बनाकर खाते हैं।”

गौरी ब्रेड लाने पड़ोस में बनी दुकान पर चली गयी। जाते समय जिस अंदाज़ से वह अपनी कमर को लचका रही थी मुझे लगता है कल उसके सौंदर्य की जो प्रशंसा की थी यह उसी का असर है।

उसके जाने के बाद मैं बाथरूम में घुस गया। मैं अक्सर सन्डे या छुट्टी के दिन सेव नहीं बनता पर आज मैंने नहाने से पहले शेव भी की और अच्छा परफ्यूम भी लगा लगाया।

जब मैं बाथरूम से बाहर आया तो देखा गौरी अभी ब्रेड लेकर नहीं आई है। कमाल है ब्रेड लाने में कोई आधा घंटा थोड़े ही लगता है। ये भी कहीं गप्पे लगाने में लग गयी होगी? इतने में गौरी हाथ में ब्रेड और कुछ सब्जियाँ हाथ पकड़े आ गई।

“गौरी.. बहुत देर लगा दी? कहाँ रह गयी थी?
“वो … संजीवनी आंटी?”
“कौन संजीवनी?”
“वो … सामने वाली बंगालन आंटी!”
“ओह … क्या हुआ उसे?”
“हुआ तुछ नहीं.”
“तो?”
“उसने मुझे लोक लिया था.”
“क्यों?” मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी।
“वो … वो मुझे घल पल ताम तलने ता पूछ लही थी.”
“फिर?”
“मैंने मना तल दिया.”
“क्यों?”
“अले आपतो पता नहीं वो एत नंबल ती लुच्ची है.”
“लुच्ची? क्या मतलब … कैसे? ऐसा क्या हुआ?” मैंने हकलाते हुए से पूछा।

“आपतो पता है वो … वो … ” गौरी बोलते बोलते रूक गयी। उसका पूरा चेहरा लाल हो गया और उसने अपनी मोटी-मोटी आँखें ऐसे फैलाई जैसे वो राफेल जैसा कोई बड़ा घोटाला उजागर करने जा रही है। अब आप मेरी उत्सुकता का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
“वो … वो क्या … ?? साफ बताओ ना?” मेरे दिल की धड़कन और उत्सुकता दोनों ही प्राइस इंडेक्स की तरह बढ़ती जा रही थी।
“वो … वो … तुत्ते से तलवाती है.”
“तुत्ते … ?? क्या मतलब?? तुत्ते क्या होता है?” मुझे लगा शायद वो डिल्डो (लिंग के आकार का एक सेक्स टॉय) की बात कर रही होगी। फिर भी मैं अनजान बनते हुए हैरानी से उसकी ओर देखता रहा।
“ओहो … आप भी … ना … … वो तुत्ता नहीं होता???” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा जैसे मैं कोई विलुप्त होने के कगार पर पहुंची प्रजाति का कोई जीव हूँ और फिर उसने दोनों हाथों से इशारा करते हुए कहा- वो … भों … भों …

और फिर हम दोनों की हंसी एक साथ छूट पड़ी।
हाय मेरी तोते जान!!!
मेरी जान तो उसकी इस अदा पर निसार ही हो गयी। उसकी बातें सुनकर मेरा लंड तो खूंटे की तरह खड़ा हो गया था।
मेरा मन तो उसे जोर से अपनी बांहों भरकर चूम लेने को करने लगा। पर इससे पहले कि मैं ऐसा कर पाता गौरी मुँह में दुपट्टा दबाकर रसोई में भाग गई। उसे शायद अब अहसास हुआ कि वो अनजाने में क्या बोल गई है।

मैं उसके पीछे रसोई में चला आया। शर्म के मारे उसने अपना सर झुका रखा था। उसके चहरे का रंग लाल सा हो गया था और साँसें तेज चलने लगी थी।
“अरे क्या हुआ?”
“किच्च …” उसने ना करने के अंदाज़ में अपनी मुंडी हिलाते हुए अपने मुंह से आवाज निकाली।
“तो फिर रसोई में क्यों भाग आई?”
“वो … वो … आप बाहल बैठो, मैं नाश्ता बना तल लाती हूँ”

“गौरी यह तो गलत बात है?”
“त्या?”
“एक तो तुम बात-बात में शर्माती बहुत हो?”
गौरी ने अपनी निगाहें अब भी झुका रखी थी।
“आओ हॉल में बैठ कर सैंडविच के लिए तैयारी मिलकर करते हैं तुम सारा सामान लेकर हॉल में आ जाओ.”
“हओ”

थोड़ी देर बाद गौरी ट्रे में ब्रेड, प्याज, हरि मिर्च, धनिया, उबले आलू आदि लेकर हॉल में आ गई। उसने सामान टेबल पर रख दिया और स्टूल पर बैठ गई। मुझे लगा गौरी कुछ गंभीर सी लग रही है। मैं चाहता था वो सामान्य हो जाए। इसके लिए उसके साथ कुछ सामान्य बातें करना जरुरी था।

मैंने बातों का सिलसिला शुरू किया- गौरी एक काम कर?
“हओ?”
“मैं प्याज, टमाटर, हरी मिर्च और धनिया काट देता हूँ और तुम जल्दी से आलू छील लो.”
“हओ.”
हम दोनों अपने काम में लग गए।

साला ये प्याज काटना भी सब के बस के बात नहीं। जैसे सभी औरतें छिपकली से डरती हैं उसी तरह ज्यादातर आदमी प्याज काटने से डरते हैं। मैंने पहले 3-4 हरी मिर्च काटी और फिर प्याज छीलकर काटने लगा। ऐसा करते समय गलती से मेरा हाथ आँख के पास लग गया।
लग गए लौड़े!
एक तो प्याज की तीखी गंध और ऊपर से हरी मिर्च? थोड़ी जलन सी होने लगी और आँखों में आंसू भी निकल आये। मेरी नाक से सुं-सुं की आवाज निकलने लगी।

“ओहो … क्या मुसीबत है?” मैंने रुमाल से अपनी नाक साफ़ करते हुए कहा.
अब गौरी का ध्यान मेरी ओर गया। उसे हँसते हुए मेरी ओर देखा।

“मैंने आपतो बोला था मैं तर लूंगी आप मानते ही नहीं?”
“ओहो … मुझे क्या पता था प्याज काटना इतना मुश्किल काम है? मैंने 2-3 बार फिर नाक से सुं-सुं किया। आँखों और नाक से पानी अब भी निकल रहा था।
“आप जल्दी से हाथ धोकल ठन्डे पानी ते छींटे मालो”
“ओह … हाँ … मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और फिर अंदाजे से वाश बेसिन की ओर जाने लगा।

इतने में मैं पास रखी स्टूल से टकराते-टकराते बचा। गौरी सब देख रही थी। वह उठी और मेरा बाजू पकड़ कर वाश बेसिन की ओर ले जाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी। उसकी कोमल कलाइयों का स्पर्श मुझे रोमांचित किये जा रहा था। आज पहली बार उसमें मुझे छुआ था।
“आप जल्दी से साबुन से हाथ धोओ मैं, ठन्डे पानी ती बोतल लाती हूँ.” कहकर गौरी रसोई की ओर भागी।
मैं गूंगे लंड की तरह वहीं खड़ा रहा।

इतने में गौरी ठन्डे पानी की बोतल लेकर आ गई।
“अले आपने हाथ धोये नहीं?”
“मेरी तो आँखें ही नहीं खुल रही हाथ कैसे धोऊँ?”
“ओहो … आप लुको” कहकर उसने एक हाथ से मेरी मुंडी थोड़ी नीचे की और फिर बोतल से ठंडा पानी हाथ में लेकर मेरी आँखों और चहरे पर डालने लगी।

उसके कोमल हाथों का स्पर्श और उसके बदन से आती जवान जिस्म की खुशबू मेरे-अंग अंग में एक शीतलता का अहसास दिलाने लगी।
हालांकि अब जलन तो नहीं हो रही थी पर मैंने नाटक जारी रखते हुए कहा- ओहो … थोड़ा पानी और डालो आराम मिल रहा है.
“हओ.”

और फिर गौरी ने मेरी आँखों और चहरे पर पानी के थोड़े छींटे और डाले।
मेरा मन तो कर रहा था काश! गौरी मेरे चहरे पर इसी तरह अपनी नाजुक हथेली और अँगुलियों को फिराती रहे और मैं अभिभूत हुआ इसी तरह उसकी नाजुकी को महसूस करता रहूँ।
“लाओ आपते हाथ भी धो देती हूँ.”

मैंने आँखें बंद किये अपने हाथ उसके हाथों में दे दिए। गौरी ने साबुन पकड़ाई और वाश बेसिन की नल खोल दी। मैं तो चाह रहा था गौरी खुद ही मेरे हाथों को भी धो दे पर फिर मैंने साबुन से अपने हाथ धो लिए। फिर गौरी ने हैंगर पर टंगा तौलिया उतार कर मेरे चहरे को पौंछ दिया।

शादी के शुरू-शुरू के दिनों में मधुर कई बार इस प्रकार मेरे चहरे पर आये पसीने को रुमाल या अपने दुपट्टे से पौंछा करती थी। और फिर मैं उसे अपनी बांहों में भरकर जोर से चूम लिया करता था। इन्ही ख्यालों में मेरा लंड फिर से खड़ा होकर उछलने लगा था। शायद उसे भी गौरी के नाजुक हाथों का स्पर्श महसूस करने का मन हो रहा था।
“अब आँखें खोलो?”
मैंने एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह एक आँख खोली और फिर बंद कर ली।

गौरी मेरी इस हरकत को देख कर हंसने लगी।
“गौरी अगर तुम आज नहीं होती तो मेरी तो हालत ही खराब हो जाती! थैंक यू।”
“मैंने आपतो बोला था मैं तल लुंगी पर आप मानते ही नहीं? गौरी ने उलाहना सा दिया।

मैंने मन में सोचा ‘मेरी जान! मैं ऐसा नहीं करता तो तुम्हारे इन नाजुक हाथों का स्पर्श कैसे अनुभव कर पाता?’

“आप भी एत नंबल ते अनाड़ी हो? ऐसे मिल्ची (मिर्ची) वाले हाथ तोई चहरे पर थोड़े लगता है? अनाड़ी ता खेलना औल खेल ता सत्यानाश?” कह कर गौरी हंसने लगी।

साली ने किस प्रकार कहावत की ही बहनचोदी कर दी थी। मेरा मन तो कर रहा था उसे असली कहावत ही सुना दूं ‘अनाड़ी का चोदना और चूत का सत्यानाश’
पर अभी सही समय नहीं था। इसकी चूत का कल्याण या सत्यानाश होगा तो मेरे इस लंड से ही होगा।

“कोई बात नहीं, मैं अनाड़ी सही पर तुमने समय पर अपने हाथों के जादू से इस मुसीबत को दूर कर दिया।”
अब गौरी के पास मंद-मंद मुस्कुराने के सिवा और क्या विकल्प बचा था।

अब हम वापस आकर बैठ गए थे। गौरी ने बचा हुआ प्याज काटा और फिर धनिया लहसुन आदि काट कर प्लेट में रख लिया और उठकर रसोई की ओर जाने का उपक्रम करने लगी।
मैं गौरी का साथ नहीं छोड़ना चाहता था तो मैं भी उसके पीछे-पीछे रसोई में चला आया।
“मैं नाश्ता तैयार तलती हूँ आप नहा लो और चहले पल सलसों का तेल या त्लीम लगा लो”
“तुम ही लगा दो ना?”
“हट!”

“गौरी आज नाश्ता करने के बाद नहाऊंगा। मैं आज तुम्हारी सैंडविच बनाने की जादूगरी देखना चाहता हूँ कि तुम किस प्रकार सैंडविच बनाती हो?”
“इसमें त्या ख़ास है? आप देखते जाओ बस.”
और फिर गौरी ने उबले आलू और मसाले आदि को तेल में भूना और फिर ब्रेड के बीच में लगाकर टोस्टर ऑन कर दिया।
“साथ में चाय बनाऊं या तोफ़ी (कॉफ़ी)?”
“आज तो चाय ही पियेंगे। क्या पता कॉफ़ी पीकर फिर से जलन ना होने लग जाए?” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
“हट!” आजकल गौरी ने इन बातों से शर्माना थोड़ा कम तो कर दिया है।

10 मिनट में उसने 5-6 सैंडविच तैयार कर लिए और साथ में चाय भी बना ली।
“गौरी एक काम कर?”
“हओ”
“यह सब बाहर हॉल में ले चलो वहीं सोफे पर बैठकर इत्मीनान से दोनों नाश्ते का मजा लेंगे.”

हम दोनों नाश्ते की ट्रे, प्लेट और चाय का थर्मस लेकर बाहर आ गए।

गौरी स्टूल पर बैठने लगी तो मैंने कहा- यार अब यह तकलुफ्फ़ छोड़ो!
गौरी ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
मैंने उसे कहा- तुम भी स्टूल के बजाय सोफे पर ही बैठ जाओ ना … आराम से खायेंगे.
गौरी असमंजस की स्थिति में थी।
“ओहो … बैठ जाओ ना सर्व करने और नाश्ता करने में आसानी रहेगी.”

गौरी ने कुछ बोला तो नहीं पर कुछ सोचते हुए मेरे पास वाले सिंगल सोफे पर बैठ गई। मैं तो चाहता था वो मेरे वाले सोफे पर ही साथ में बैठ जाए पर चलो आज साथ वाले सोफे पर बैठी है कल मेरे बगल में बैठेगी और फिर मेरी गोद में। लंड महाराज तो बैठने के बजाय और ज्यादा अकड़ गए।

गौरी ने मेरे लिए एक प्लेट में प्लेट में सैंडविच रख दिए और ऊपर सॉस डाल कर मुझे पकड़ा दिया।
“तुम भी तो लो?”
“मैं बाद में ले लूंगी.”
“तुम भी कमाल करती हो? साथ का मतलब साथ खाना होता है। लो पकड़ो प्लेट!” मैंने अपने वाली प्लेट उसे थमा दी। और फिर दूसरी प्लेट में अपने लिए एक सैंडविच लेकर ऊपर चटनी दाल ली।

“गौरी आज चाय गिलास में पियेंगे. मुझे कप में चाय पीने में बिल्कुल मजा नहीं आता.”
मेरी इस बात पर गौरी हंसने लगी।
“मुझे भी गिलास में ही पीना पसंद है।”
“अरे वाह! देखो हमारी पसंद कितनी मिलती है?”
और फिर हम दोनों हंसने लगे।

सैंडविच स्वादिष्ट बने थे। जैसे ही मैंने दांतों से एक कौर तोड़ा तो मेरे मुंह से निकल गया- लाजवाब मस्त!
गौरी ने इस बार मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा। उसे शायद इसी बात के उम्मीद थी कि मैं जरूर उसकी तारीफ़ करूँगा।
“विश्वास नहीं हो तो खाकर देखो?”

अब गौरी ने भी खाना शुरू कर दिया। उसने कुछ कहा तो नहीं पर उसके चहरे से झलकती मुस्कान ने बिना कहे बहुत कुछ कह दिया था।
“गौरी गिलास में चाय भी डाल लो!”
चिर परिचित अंदाज में गौरी ने “हओ” कहा और थर्मस से दो गिलास में चाय डाल ली।

मैंने पहले चाय की एक चुस्की ली। चाय का स्वाद अजीब सा था शायद गौरी चाय में चीनी डालना भूल गई थी।
“वाह चाय तो लाजवाब है पर …” मैंने बात अधूरी छोड़ दी।
गौरी ने हैरानी से मेरी ओर देखा- त्या हुआ?
“लगता है तुम चीनी डालना भूल गई?”
“ओह … सॉली (सॉरी) में अभी चीनी लाती हूँ.”

“गौरी एक काम करो?”
“त्या?”
“तुम इस गिलास को अपने होंठों से छू लो तुम्हारे होंठों की मिठास ही इसे मीठा कर देगी.” कहकर मैं जोर जोर से हंसने लगा।
गौरी को पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया पर बाद में वो ‘हट’ कहते हुए शर्मा कर रसोई में चीनी लाने चली गई।

उसने चीनी के दो चम्मच मेरे गिलास में डाल कर उसे हिलाया और फिर उसी चम्मच से अपने गिलास में भी चीनी डाल कर उसे हिलाने लगी।
“अरे मेरी जूठी चाय वाली चम्मच से ही तुमने अपने गिलास में भी चीनी मिला ली?”
“तो त्या हुआ? अपनो में तोई जूठा थोड़े ही होता है.”

इस फिकरे का अर्थ मेरी समझ में नहीं आ रहा था। पता नहीं गौरी मेरे बारे में क्या सोचती होगी? क्या पता उसे मेरी मेरी इन भावनाओं का पता है भी या नहीं? पर मुझे नहीं लगता वो इतनी नासमझ होगी कि मेरे इरादों का उसे थोड़ा इल्म (ज्ञान) ना हो। खैर इतना तो पक्का है अब वो मेरी छोटी-मोटी चुहल से ना तो इतना शर्माती है और ना ही बुरा मानती है।
कहानी जारी रहेगी
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