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Shayari गुफ्तगू

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तुझे फुर्सत ही न मिली मुझे पढ़ने की वरना,
हम तेरे शहर में बिकते रहे किताबों की तरह...
?


जिन्‍दों की फुर्सत किसे, मुर्दे भी बिकते हैं यहां,
मुझे तो ये शहर इक शमशान सा लगता है।


zindo'n ki fursat kise, murde bhi hain bikte yahaan,
mujhe to yeh sehar ek shamshaan sablagta hai.
 
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दामन-ऐ-दिल से लिपट जाते हैं यादों के जुगनू अक्सर,
कुछ लोग ऐसे भी हैं ज़िन्दगी में जो भुलाए नहीं जाते।
 
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दुश्मनों के खेमे में चल रही थी मेरे क़त्ल की साज़िश,
मैं पहुंचा तो वो बोले यार तेरी उम्र बहुत लम्बी हो।
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है।
रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है।।

जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने,
तू ने दिल इतने सताए हैं कि जी जानता है।।

तुम नहीं जानते अब तक ये तुम्हारे अंदाज़,
वो मिरे दिल में समाए हैं कि जी जानता है।।

इन्हीं क़दमों ने तुम्हारे इन्हीं क़दमों की क़सम,
ख़ाक में इतने मिलाए हैं कि जी जानता है।।

दोस्ती में तिरी दर-पर्दा हमारे दुश्मन,
इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है।।
 

VIKRANT

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लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है।
रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है।।

जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने,
तू ने दिल इतने सताए हैं कि जी जानता है।।

तुम नहीं जानते अब तक ये तुम्हारे अंदाज़,
वो मिरे दिल में समाए हैं कि जी जानता है।।

इन्हीं क़दमों ने तुम्हारे इन्हीं क़दमों की क़सम,
ख़ाक में इतने मिलाए हैं कि जी जानता है।।

दोस्ती में तिरी दर-पर्दा हमारे दुश्मन,
इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है।।
Greattt bro. Such a mind blowing poetry. :applause: :applause: :applause:
 
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