vickyrock
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मनीष भाई कभी कभी हम खुद ऐसा कर देते हैं जिसे जीवन में दूसरी बार करना असम्भव हो जाता हैमैं भी यही समझता हूं
मनीष भाई कभी कभी हम खुद ऐसा कर देते हैं जिसे जीवन में दूसरी बार करना असम्भव हो जाता हैमैं भी यही समझता हूं
Mast update fauji bhai as always#47
“क्या था ये ” रीना ने अपने कपडे झाड़ते हुए कहा
मैं- जल्दी ही जान जाएगी तू
मैंने अपने जख्म पर रीना की चुन्नी को बाँध लिया पर दर्द बढ़ते ही जा रहा था. तभी चाची बैध को ले आई उसने तुरंत अपनी कार्यवाही की और जख्म को साफ़ करके सिल दिया.
“कच्चे जख्मो संग जोर आजमाइश नहीं करना चाहिए, ये तो शुक्र की अन्दर मवाद नहीं पड़ी वर्ना परेशानी की बात होती , और ये दवाई दे रहा हूँ दर्द से राहत मिलेगी. ” वैध ने कहा .
“ये रेत कैसे फैली यहाँ पर ” चाची ने कहा
मैं- बाद में बताता हूँ
चाची ने वैध को पैसे दिए और छोड़ने चली गयी . रह गए हम दोनों . रीना ने सारी रेत को परात में डाला और बाहर फेंक आई . मैंने थोडा पानी पिया और लेट गया . थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी .
रीना- मैं जो पुछू सच सच बताना तू
मैं- तुझसे कभी कुछ छिपाया है क्या
रीना- ये क्या चक्कर है , ये रेत कैसे निकली उस बक्से से .
मैं- नहीं जानता पर मालूम कर लूँगा.
रीना-जब से मैं रुदृपुर के मेले से लौटी हूँ ऐसा लगता है की जैसे मैं मैं नहीं रही
मैं- तुझे सदमा लगा है , थोड़े दिन में असर कम हो जायेगा
रीना- वो बात नहीं है
मैं- तो क्या बात है .
रीना- मुझे हर पल ये डर रहता है की तुझे कुछ हो न जाये, जिन लोगो से तूने दुश्मनी ली है वो बहुत खतरनाक है तुझे कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाउंगी.
मैं- पगली, ऐसा क्यों सोचती है तू . जब तक तेरी दुआए मेरे साथ है इस दुनियाको जुती की नोक पर रखु मैं.
रीना- तुझे जब दर्द में तडपते देखती हूँ तो मेरा दिल रोता है
मैं- नादान है तेरा दिल .
बाते करते करते न जाने कब मुझ पर दवाई का असर हो गया और मैं नींद के आगोश में चला गया . पर जब आँख खुली तो मैंने देखा रीना कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो रही थी . मैंने उसके गले में झूलते हुए हीरे को देखा जिसमे अब सुनहरा और चांदी का रंग आपस में घुल गया था . उत्सुकता के कारण मैंने उसे छूना चाहा और मुझे ऐसा तेज झटका लगा की मैंने किसी बिजली के नंगे तार को छू लिया हो.
आखिर ऐसी क्या बात थी जो ये रीना से इतना घुलमिल गया था . इसने मुझे नहीं स्वीकार किया था और उस मासूम के गले में शान से पड़ा था . ये बात मुझे बहुत खाए जा रही थी अन्दर ही अंदर. सुबह मैं चाची के साथ बैठा था ,चाची और मेरे बीच एक ख़ामोशी थी पर हम दोनों जानते थे की हमें एक दुसरे से क्या अपेक्षा थी .
चाची- प्रथ्वी चाहता है की मैं राखी बाँधने रुद्रपुर आऊ
मैं- ये तुम्हारा निजी मामला है बुआ-भतीजे को जो ठीक लगे वो करे.
चाची-मैं बरसों पहले उस बंधन को तोड़ चुकी
मैं- तो मुझसे क्यों पूछती हो. वैसे मेरी दिलचस्पी ये जानने में जरुर है की तुमने अपने पीहर से नाता क्यों तोडा .
चाची- अतीत में झाँकने का क्या फायदा
मैं- तो फिर भविष्य का हाथ थाम लो. तुम्हारे भतीजे से बुलाया है तो तुम्हे जाना चाहिए
चाची- तुम चलोगे मेरे साथ
मैं- तुम जानती हो मेरा वहां जाना माहौल में तल्खी पैदा कर देगा.
चाची- तल्खी तो मेरे साथ भी रहेगी
मैं- ठीक है मैं चलूँगा पर अगर तुम मुझे ये बताओगी की तुमने पीहर से नाता क्यों तोडा
चाची- ठीक है , पर वापसी में
मैं- मंजूर.
चाची- तो तुम्हारी तलाश कहाँ तक पहुंची
मैं- कहीं तक नहीं , पर मैं अपने पिता को जरुर तलाश कर लूँगा.
चाची- मुझे उम्मीद है
मैं- मुझे नहीं पता तुमसे ये बात कहनी चाहिए या नहीं पर मुझे लगता है की चाचा तुमको धोखा दे रहा है .
चाची- और तुम्हे ऐसा क्यों लगता है
मैं- बस ऐसे ही
चाची- तो फिर इस ख्याल को दिल से निकाल दो
मैं- तुम जानो . मैं चला बाहर
चाची- जख्म हरा है तुम्हारा, आराम करो
मैं- किसे परवाह है
मैं सीधा ताई के घर गया और जाकर उसे अपनी बाँहों में भर लिया
ताई- क्या बात है
मैं- बस तुम्हे प्यार करने का दिल कर रहा है
ताई- ये झूठी बातो से न बहला मुझे
मैं- मुझ पर शक कर रही हो
ताई- मैं देख रही हूँ आजकल मेरी तारफ ध्यान नहीं है तेरा.
मैं- ये बनावटी बाते क्यों करती हो हम दोनों जानते है इनका कोई मोल नहीं
मैंने ताई के चेहरे को अपनी हथेलियों में लिया और ताई के गुलाबी होंठो को चूमने लगा. एक बेहतरीन किस के बाद मैंने ताई को छोड़ दिया.
मैं- मुझे एक बात खटक रही है की चाची के पीहर वाले इतनी सालो बाद उस पर मेहरबान क्यों हो रहे है
ताई- बात तो मुझे भी खटक रही है पर क्या कहूँ
मैं-आज लेने का मन है मेरा
ताई- जब तेरी हालत बिलकुल ठीक हो जाएगी तब करुँगी तेरी मनचाही
मैं- बस एक बार करने दो
ताई- नहीं, बिलकुल नहीं
मैं- ताई, एक बात पूछना चाहता हूँ सच बताएगी न
ताई- तुझसे कभी कुछ छुपाया है मैंने
मैं- ताऊ ने तुझे किसके साथ देखा था जो तुझसे इतना दूर हो गया .
ताई- हमारा वो मसला नहीं है
मैं- इतना नादाँ मैं भी नहीं जो समझ ना सकू , मैं कोशिश कर रहा हूँ की ताऊ तुझे फिर से अपनाले और तुम दोनों एक हो जाओ. मेरा थोडा तो साथ दे.
ताई- तो फिर हमें जैसे है वैसे ही रहने दे. गड़े मुर्दे उखड़े तो कुछ हासिल नहीं होगा सिवाय दुर्गन्ध के.
मैंने ताई पर ज्यादा जोर नहीं दिया . शाम ढले मैं अपनी जमीन की तरफ चल दिया. दिन में बारिश हुई थी तो अँधेरा थोडा जल्दी हो गया था . जब मैं वहां पहुंचा तो देखा की एक आदमी मेरी जमीन पर इधर उधर घूम रहा था फिर वो बैठ गया .
“कौन है वहां , क्या कर रहे हो तुम मेरी जमीन पर ” मैंने चिल्ला कर पूछा. जब से जब्बर के आदमी की लाश इधर मिली थी , तब से मैं अतिरिक्त सावधान हो गया था .
“कौन हो तुम और यहाँ क्या कर रहे हो ” मैंने उसके पास जाकर पूछा.
nice update..!!#46
दोपहर बाद खेत में जमीन को खोदते हुए मेरे दिमाग में बस ये ही चल रहा था की पृथ्वी का अचानक संध्या चाची से मिलने आना, केवल बुआ-भतीजे का स्नेह नहीं हो सकता. बरसों से टूटी हुई रिश्तेदारी को अचानक से दुबारा जोड़ने की कोशिश में स्वार्थ न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता. हो सकता था की ये बस मेरी कल्पना हो पर दिल गवाही नहीं दे रहा था.
कुदाल छोड़ कर मैंने जमीन का एक चक्कर लगाया और बावड़ी की तरफ जा निकला. मैंने बावड़ी की रहबरी पर पीठ लगाई और लेट गया. पसलियों में दर्द सा हो रहा था , सारे जख्म भर गए थे पर ये दर्द जा ही नहीं रहा था . मैंने एक नजर आसमान पर डाली, जिसमे काली घटाए लहरा रही थी . अच्छा ही था जो बारिश हो जाती. मुझे नहाने का भी मन था . मैंने शर्ट उतारी और बावड़ी में कूदने ही जा रहा था की ,
मैंने एक गाडी मेरी तरफ आते देखि तो मैं रुक गया. गाड़ी मेरे से थोड़ी दुरी पर रुक गयी और गाड़ी से उतरा जब्बर .
“ये साला इधर क्यों आया ” मैंने सोचा .
जब्बर मेरे पास आया .
मैं- मेरे दर पर कैसे
जब्बर- तुझे एक आखिरी बार समझाने आया हूँ की बुझे हुए तंदूर के शोलो को मत सुलगा वर्ना उसी तंदूर में भुना जायेगा तू.
मैं- ये फ़िल्मी डायलोग तेरे. मेरे कान पक गए है
जब्बर- मैं जानता हूँ दिलेर को तूने मारा है
मैं- तो फिर ये भी जानता होगा की क्यों मारा उसे
जब्बर- जानता हूँ, इसीलिए थाने के मामले को दबा दिया मैंने ताकि तुझे भी जला सकू. चाहू तो तुझे एक मिनट में मसल दू, पर नहीं तुझे तडपाना है , इतना की तू खुद भीख मांगे मौत की . उस रात चौपाल पर मैंने सब्र का घूँट इसलिए पी लिया की बरसो बाद एक काबिल दुश्मन मिला है , और दुश्मनी का मजा झटके में नहीं हलाल में है . तुझे झटके में मारने में वो मजा कहाँ , मैं तलाश कर रहा हूँ उसको जो थाने में तेरे साथ थी,
मैं- मैंने तुझसे कहा था दुश्मनी तेरे मेरे बीच है , पर अगर तेरी यही इच्छा है तो ये भी कर के देख ले तू. पर इतना याद रखना परिवार तो तेरा भी है , मेरे किसी भी चाहने वाले के एक खरोंच भी आई तो तेरे परिवार का ख्याल कर लेना तू पर मैं तुझे माफ़ कर सकता हूँ अगर तू मुझे ये बता दे की उस सुनहरे बक्से का क्या झोल है
जब्बर - तू बस इतना समझ ले वो किसी की अमानत है और वो अपने आप तलाश लेगी उसे.
मैं- उस धागे में ऐसा क्या खास है .
जब्बर- अगर तू पैर पकड़ कर गिदगिड़ाये , तो मैं शायद तुझे बता भी दू.
मैं- पैर तो तू मेरे पकड़ेगा, जिस दिन मैं अपनी जमीन छुड़ाने आऊंगा .
जब्बर- तेरी ये बेबाकी, ये गुस्ताखियाँ तेरी मौत बनेगी जब तू मरेगा तो तुझे आभास होगा की जिन्दगी का मोल क्या होता है .
मैं- मौत तो आनी जानी है ,
जब्बर- बस देखना है तेरी कब आएगी.
मैं- बता भी दे, कुछ तो बात है वर्ना सोलह साल तक तूने और सुनार ने चुतड लाल नहीं करवाए उस बक्से के पीछे . . चल एक सौदा करते है तू मुझे बता ये राज और मैं तुझे सोना दूंगा.
जब्बर- गांड में डाल ले अपने सोने को . अगर तू उस लड़की को मुझे सौंप दे तो मैं कुछ कहूँ इस बारे में
जब्बर की बात सुन कर मुझे गुस्सा आ गया - जुबान संभाल कर बोल जब्बर, खींच दी जायेगी ये जुबान.
जब्बर- सौदे की शर्त यही रहेगी, मुझे वो लड़की ला दे, मैं तुझे सब कुछ बता दूंगा.
मैं- वो लड़की मेरी सरपरस्ती में है जब्बर. तू भूलना मत इस बात को . इस वक्त तू मेरी जमीन पर खड़ा है और मैं इसे गन्दी नहीं करना चता वर्ना इस गुस्ताखी के लिए तेरा सर काट देता मैं.
जब्बर- मेरा वादा है तेरी इसी जमीन पर दिलेर की मौत का बदला लिया जायेगा.
मैं- इंतजार रहेगा उस दिन का
जब्बर ने सर हिलाया और अपनी जीप की तरफ चल पड़ा. मेरे आसपास एक बिसात बिछाई जा रही थी , एक साजिश रची जा रही थी कौन अपना था कौन पराया ये कहना मुश्किल था . पर जब्बर की धमकी से मैं थोडा विचलित हो गया था , रीना के साथ हुई घटना ने मुझे झकझोर दिया था. मीता की सुरक्षा के लिए मुझे कुछ न कुछ करना ही था . सोचते सोचते मैं घर आया तब तक बारिश शुरू हो गयी थी.
हल्का सा भीगते हुए मैं चोबारे में गया तो देखा की चाची खिड़की के पास कुर्सी डाले बैठी थी और उसके हाथ में वो सुनहरा बक्सा था . जिस पर वो उंगलिया फेर रही थी .
“ये मेरा है ” मैंने चाची से कहा
चाची- झूठ , ये तुम्हारा नहीं है ,
मैं- तुम इस पर अपना अधिकार नहीं जाता सकती , मुझे वापिस दो ये
चाची- मैंने कब कहा ये मेरा है , मैंने कहा की ये तुम्हारा नहीं है
मैं- तो बताओ किसका है ये
चाची-ये तो तुम्हे बताना चाहिए मुझे, इतना महंगा सोने का बक्सा तुम्हारे पास कहाँ से आया, क्या तुमने चोरी की है .
मैं थोडा विचलित हो गया , एक पल को मुझे लगा की वो जानती है उसके बारे में
मैं- ये मुझे जंगल में पड़ा मिला था . मैं इसे यहाँ ले आया. तुम इसे वापिस वही रख दो जहाँ से इसे लिया था .
चाची कुछ कहती इस से पहले ही मेरे सीने के निचे मरोड़ शुरू हो गई . मैं दर्द से दोहरा हो गया . और बिस्तर पर गिर पड़ा.
चाची- क्या हुआ मनीष
मैं- दर्द, मेरी पसलिया फट रही है.
मैंने पसलियों पर हाथ रख लिया और दर्द को सहने की कोशिश करने लगा पर वो अचानक से इतना बढ़ गया था , की आँखों में आंसू निकलने लगे .
चाची-- मुझे देखने दे
चाची ने मेरी शर्ट के बटन खोले और मेरे जख्म को देखा जिसमे से खून रिसने लगा था .
चाची- टांका फट गया है, क्या किया था तुमने
मैं- कुछ नहीं किया आह्ह्ह्ह मैं मरा
चाची ने टेबल से रुई उठाई और जख्म पर रखते हुए बोली- दबा के रख इसे मैं वैध को बुला कर लाती हूँ .
चाची दौड़ पड़ी निचे को और मैं तड़पने लगा. ये जख्म अचानक से कैसे खुल गया था . इसी बीच मैं बिस्तर से निचे गिर पड़ा. मैं टेबल का सहारा लेकर उठ ही रहा था की खून से सने मेरे हाथ उस बक्से पर पड़े और वो जलने लगा. मुझे हैरत हुई पर मेरी हालत उस हैरत पर भारी पड़ रही थी .
“मनीष क्या हुआ तुझे ” मैंने देखा चीखते हुए रीना मेरे पास दौड़ते हुए आई और मुझे आगोश में भर लिया. मैं रीना की बाँहों में था और मेरे हाथ में वो जलता हुआ बक्सा जैसे ही मेरा हाथ रीना के बदन से टकराया धप्प की आवाज हुई और हम दोनों के बदन रेत से नहा गए.
nice update..!!#47
“क्या था ये ” रीना ने अपने कपडे झाड़ते हुए कहा
मैं- जल्दी ही जान जाएगी तू
मैंने अपने जख्म पर रीना की चुन्नी को बाँध लिया पर दर्द बढ़ते ही जा रहा था. तभी चाची बैध को ले आई उसने तुरंत अपनी कार्यवाही की और जख्म को साफ़ करके सिल दिया.
“कच्चे जख्मो संग जोर आजमाइश नहीं करना चाहिए, ये तो शुक्र की अन्दर मवाद नहीं पड़ी वर्ना परेशानी की बात होती , और ये दवाई दे रहा हूँ दर्द से राहत मिलेगी. ” वैध ने कहा .
“ये रेत कैसे फैली यहाँ पर ” चाची ने कहा
मैं- बाद में बताता हूँ
चाची ने वैध को पैसे दिए और छोड़ने चली गयी . रह गए हम दोनों . रीना ने सारी रेत को परात में डाला और बाहर फेंक आई . मैंने थोडा पानी पिया और लेट गया . थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी .
रीना- मैं जो पुछू सच सच बताना तू
मैं- तुझसे कभी कुछ छिपाया है क्या
रीना- ये क्या चक्कर है , ये रेत कैसे निकली उस बक्से से .
मैं- नहीं जानता पर मालूम कर लूँगा.
रीना-जब से मैं रुदृपुर के मेले से लौटी हूँ ऐसा लगता है की जैसे मैं मैं नहीं रही
मैं- तुझे सदमा लगा है , थोड़े दिन में असर कम हो जायेगा
रीना- वो बात नहीं है
मैं- तो क्या बात है .
रीना- मुझे हर पल ये डर रहता है की तुझे कुछ हो न जाये, जिन लोगो से तूने दुश्मनी ली है वो बहुत खतरनाक है तुझे कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाउंगी.
मैं- पगली, ऐसा क्यों सोचती है तू . जब तक तेरी दुआए मेरे साथ है इस दुनियाको जुती की नोक पर रखु मैं.
रीना- तुझे जब दर्द में तडपते देखती हूँ तो मेरा दिल रोता है
मैं- नादान है तेरा दिल .
बाते करते करते न जाने कब मुझ पर दवाई का असर हो गया और मैं नींद के आगोश में चला गया . पर जब आँख खुली तो मैंने देखा रीना कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो रही थी . मैंने उसके गले में झूलते हुए हीरे को देखा जिसमे अब सुनहरा और चांदी का रंग आपस में घुल गया था . उत्सुकता के कारण मैंने उसे छूना चाहा और मुझे ऐसा तेज झटका लगा की मैंने किसी बिजली के नंगे तार को छू लिया हो.
आखिर ऐसी क्या बात थी जो ये रीना से इतना घुलमिल गया था . इसने मुझे नहीं स्वीकार किया था और उस मासूम के गले में शान से पड़ा था . ये बात मुझे बहुत खाए जा रही थी अन्दर ही अंदर. सुबह मैं चाची के साथ बैठा था ,चाची और मेरे बीच एक ख़ामोशी थी पर हम दोनों जानते थे की हमें एक दुसरे से क्या अपेक्षा थी .
चाची- प्रथ्वी चाहता है की मैं राखी बाँधने रुद्रपुर आऊ
मैं- ये तुम्हारा निजी मामला है बुआ-भतीजे को जो ठीक लगे वो करे.
चाची-मैं बरसों पहले उस बंधन को तोड़ चुकी
मैं- तो मुझसे क्यों पूछती हो. वैसे मेरी दिलचस्पी ये जानने में जरुर है की तुमने अपने पीहर से नाता क्यों तोडा .
चाची- अतीत में झाँकने का क्या फायदा
मैं- तो फिर भविष्य का हाथ थाम लो. तुम्हारे भतीजे से बुलाया है तो तुम्हे जाना चाहिए
चाची- तुम चलोगे मेरे साथ
मैं- तुम जानती हो मेरा वहां जाना माहौल में तल्खी पैदा कर देगा.
चाची- तल्खी तो मेरे साथ भी रहेगी
मैं- ठीक है मैं चलूँगा पर अगर तुम मुझे ये बताओगी की तुमने पीहर से नाता क्यों तोडा
चाची- ठीक है , पर वापसी में
मैं- मंजूर.
चाची- तो तुम्हारी तलाश कहाँ तक पहुंची
मैं- कहीं तक नहीं , पर मैं अपने पिता को जरुर तलाश कर लूँगा.
चाची- मुझे उम्मीद है
मैं- मुझे नहीं पता तुमसे ये बात कहनी चाहिए या नहीं पर मुझे लगता है की चाचा तुमको धोखा दे रहा है .
चाची- और तुम्हे ऐसा क्यों लगता है
मैं- बस ऐसे ही
चाची- तो फिर इस ख्याल को दिल से निकाल दो
मैं- तुम जानो . मैं चला बाहर
चाची- जख्म हरा है तुम्हारा, आराम करो
मैं- किसे परवाह है
मैं सीधा ताई के घर गया और जाकर उसे अपनी बाँहों में भर लिया
ताई- क्या बात है
मैं- बस तुम्हे प्यार करने का दिल कर रहा है
ताई- ये झूठी बातो से न बहला मुझे
मैं- मुझ पर शक कर रही हो
ताई- मैं देख रही हूँ आजकल मेरी तारफ ध्यान नहीं है तेरा.
मैं- ये बनावटी बाते क्यों करती हो हम दोनों जानते है इनका कोई मोल नहीं
मैंने ताई के चेहरे को अपनी हथेलियों में लिया और ताई के गुलाबी होंठो को चूमने लगा. एक बेहतरीन किस के बाद मैंने ताई को छोड़ दिया.
मैं- मुझे एक बात खटक रही है की चाची के पीहर वाले इतनी सालो बाद उस पर मेहरबान क्यों हो रहे है
ताई- बात तो मुझे भी खटक रही है पर क्या कहूँ
मैं-आज लेने का मन है मेरा
ताई- जब तेरी हालत बिलकुल ठीक हो जाएगी तब करुँगी तेरी मनचाही
मैं- बस एक बार करने दो
ताई- नहीं, बिलकुल नहीं
मैं- ताई, एक बात पूछना चाहता हूँ सच बताएगी न
ताई- तुझसे कभी कुछ छुपाया है मैंने
मैं- ताऊ ने तुझे किसके साथ देखा था जो तुझसे इतना दूर हो गया .
ताई- हमारा वो मसला नहीं है
मैं- इतना नादाँ मैं भी नहीं जो समझ ना सकू , मैं कोशिश कर रहा हूँ की ताऊ तुझे फिर से अपनाले और तुम दोनों एक हो जाओ. मेरा थोडा तो साथ दे.
ताई- तो फिर हमें जैसे है वैसे ही रहने दे. गड़े मुर्दे उखड़े तो कुछ हासिल नहीं होगा सिवाय दुर्गन्ध के.
मैंने ताई पर ज्यादा जोर नहीं दिया . शाम ढले मैं अपनी जमीन की तरफ चल दिया. दिन में बारिश हुई थी तो अँधेरा थोडा जल्दी हो गया था . जब मैं वहां पहुंचा तो देखा की एक आदमी मेरी जमीन पर इधर उधर घूम रहा था फिर वो बैठ गया .
“कौन है वहां , क्या कर रहे हो तुम मेरी जमीन पर ” मैंने चिल्ला कर पूछा. जब से जब्बर के आदमी की लाश इधर मिली थी , तब से मैं अतिरिक्त सावधान हो गया था .
“कौन हो तुम और यहाँ क्या कर रहे हो ” मैंने उसके पास जाकर पूछा.
मनीष की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी शरीर चाहे टूटा हो पर हिम्मत नहीं, रीना और धागे में ऐसा क्या संबंध है जो वो उसे स्वीकार रहा हैं परंतु मनीष को नहीं, वैसे असली राज तो तब खुलेंगे जब मनीष चाची के साथ रुद्रपुर जायेगा ,#47
“क्या था ये ” रीना ने अपने कपडे झाड़ते हुए कहा
मैं- जल्दी ही जान जाएगी तू
मैंने अपने जख्म पर रीना की चुन्नी को बाँध लिया पर दर्द बढ़ते ही जा रहा था. तभी चाची बैध को ले आई उसने तुरंत अपनी कार्यवाही की और जख्म को साफ़ करके सिल दिया.
“कच्चे जख्मो संग जोर आजमाइश नहीं करना चाहिए, ये तो शुक्र की अन्दर मवाद नहीं पड़ी वर्ना परेशानी की बात होती , और ये दवाई दे रहा हूँ दर्द से राहत मिलेगी. ” वैध ने कहा .
“ये रेत कैसे फैली यहाँ पर ” चाची ने कहा
मैं- बाद में बताता हूँ
चाची ने वैध को पैसे दिए और छोड़ने चली गयी . रह गए हम दोनों . रीना ने सारी रेत को परात में डाला और बाहर फेंक आई . मैंने थोडा पानी पिया और लेट गया . थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी .
रीना- मैं जो पुछू सच सच बताना तू
मैं- तुझसे कभी कुछ छिपाया है क्या
रीना- ये क्या चक्कर है , ये रेत कैसे निकली उस बक्से से .
मैं- नहीं जानता पर मालूम कर लूँगा.
रीना-जब से मैं रुदृपुर के मेले से लौटी हूँ ऐसा लगता है की जैसे मैं मैं नहीं रही
मैं- तुझे सदमा लगा है , थोड़े दिन में असर कम हो जायेगा
रीना- वो बात नहीं है
मैं- तो क्या बात है .
रीना- मुझे हर पल ये डर रहता है की तुझे कुछ हो न जाये, जिन लोगो से तूने दुश्मनी ली है वो बहुत खतरनाक है तुझे कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाउंगी.
मैं- पगली, ऐसा क्यों सोचती है तू . जब तक तेरी दुआए मेरे साथ है इस दुनियाको जुती की नोक पर रखु मैं.
रीना- तुझे जब दर्द में तडपते देखती हूँ तो मेरा दिल रोता है
मैं- नादान है तेरा दिल .
बाते करते करते न जाने कब मुझ पर दवाई का असर हो गया और मैं नींद के आगोश में चला गया . पर जब आँख खुली तो मैंने देखा रीना कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो रही थी . मैंने उसके गले में झूलते हुए हीरे को देखा जिसमे अब सुनहरा और चांदी का रंग आपस में घुल गया था . उत्सुकता के कारण मैंने उसे छूना चाहा और मुझे ऐसा तेज झटका लगा की मैंने किसी बिजली के नंगे तार को छू लिया हो.
आखिर ऐसी क्या बात थी जो ये रीना से इतना घुलमिल गया था . इसने मुझे नहीं स्वीकार किया था और उस मासूम के गले में शान से पड़ा था . ये बात मुझे बहुत खाए जा रही थी अन्दर ही अंदर. सुबह मैं चाची के साथ बैठा था ,चाची और मेरे बीच एक ख़ामोशी थी पर हम दोनों जानते थे की हमें एक दुसरे से क्या अपेक्षा थी .
चाची- प्रथ्वी चाहता है की मैं राखी बाँधने रुद्रपुर आऊ
मैं- ये तुम्हारा निजी मामला है बुआ-भतीजे को जो ठीक लगे वो करे.
चाची-मैं बरसों पहले उस बंधन को तोड़ चुकी
मैं- तो मुझसे क्यों पूछती हो. वैसे मेरी दिलचस्पी ये जानने में जरुर है की तुमने अपने पीहर से नाता क्यों तोडा .
चाची- अतीत में झाँकने का क्या फायदा
मैं- तो फिर भविष्य का हाथ थाम लो. तुम्हारे भतीजे से बुलाया है तो तुम्हे जाना चाहिए
चाची- तुम चलोगे मेरे साथ
मैं- तुम जानती हो मेरा वहां जाना माहौल में तल्खी पैदा कर देगा.
चाची- तल्खी तो मेरे साथ भी रहेगी
मैं- ठीक है मैं चलूँगा पर अगर तुम मुझे ये बताओगी की तुमने पीहर से नाता क्यों तोडा
चाची- ठीक है , पर वापसी में
मैं- मंजूर.
चाची- तो तुम्हारी तलाश कहाँ तक पहुंची
मैं- कहीं तक नहीं , पर मैं अपने पिता को जरुर तलाश कर लूँगा.
चाची- मुझे उम्मीद है
मैं- मुझे नहीं पता तुमसे ये बात कहनी चाहिए या नहीं पर मुझे लगता है की चाचा तुमको धोखा दे रहा है .
चाची- और तुम्हे ऐसा क्यों लगता है
मैं- बस ऐसे ही
चाची- तो फिर इस ख्याल को दिल से निकाल दो
मैं- तुम जानो . मैं चला बाहर
चाची- जख्म हरा है तुम्हारा, आराम करो
मैं- किसे परवाह है
मैं सीधा ताई के घर गया और जाकर उसे अपनी बाँहों में भर लिया
ताई- क्या बात है
मैं- बस तुम्हे प्यार करने का दिल कर रहा है
ताई- ये झूठी बातो से न बहला मुझे
मैं- मुझ पर शक कर रही हो
ताई- मैं देख रही हूँ आजकल मेरी तारफ ध्यान नहीं है तेरा.
मैं- ये बनावटी बाते क्यों करती हो हम दोनों जानते है इनका कोई मोल नहीं
मैंने ताई के चेहरे को अपनी हथेलियों में लिया और ताई के गुलाबी होंठो को चूमने लगा. एक बेहतरीन किस के बाद मैंने ताई को छोड़ दिया.
मैं- मुझे एक बात खटक रही है की चाची के पीहर वाले इतनी सालो बाद उस पर मेहरबान क्यों हो रहे है
ताई- बात तो मुझे भी खटक रही है पर क्या कहूँ
मैं-आज लेने का मन है मेरा
ताई- जब तेरी हालत बिलकुल ठीक हो जाएगी तब करुँगी तेरी मनचाही
मैं- बस एक बार करने दो
ताई- नहीं, बिलकुल नहीं
मैं- ताई, एक बात पूछना चाहता हूँ सच बताएगी न
ताई- तुझसे कभी कुछ छुपाया है मैंने
मैं- ताऊ ने तुझे किसके साथ देखा था जो तुझसे इतना दूर हो गया .
ताई- हमारा वो मसला नहीं है
मैं- इतना नादाँ मैं भी नहीं जो समझ ना सकू , मैं कोशिश कर रहा हूँ की ताऊ तुझे फिर से अपनाले और तुम दोनों एक हो जाओ. मेरा थोडा तो साथ दे.
ताई- तो फिर हमें जैसे है वैसे ही रहने दे. गड़े मुर्दे उखड़े तो कुछ हासिल नहीं होगा सिवाय दुर्गन्ध के.
मैंने ताई पर ज्यादा जोर नहीं दिया . शाम ढले मैं अपनी जमीन की तरफ चल दिया. दिन में बारिश हुई थी तो अँधेरा थोडा जल्दी हो गया था . जब मैं वहां पहुंचा तो देखा की एक आदमी मेरी जमीन पर इधर उधर घूम रहा था फिर वो बैठ गया .
“कौन है वहां , क्या कर रहे हो तुम मेरी जमीन पर ” मैंने चिल्ला कर पूछा. जब से जब्बर के आदमी की लाश इधर मिली थी , तब से मैं अतिरिक्त सावधान हो गया था .
“कौन हो तुम और यहाँ क्या कर रहे हो ” मैंने उसके पास जाकर पूछा.
ThanksBohot hi emotional update fauji bhai❤❤