#41
“क्या सुना था तूने ” मैंने कहा
मीता- यही की संध्या इस शादी से खुश नहीं थी , शादी के बाद फिर कभी वो रुद्रपुर नहीं गई .
मेरे मन में वो ख्याल आया जब चाची चाचा से कह रही थी की तुमसे होता ही नहीं, शायद इसी बात से वो खुश नहीं थी
मीता- कहाँ खो गए.
मैं- कोई तो डोर है जिससे ये सब लोग बंधे है बस वो डोर मुझे दिखाई नहीं दे रही .
मीता- लगता है मेह फिर आएगा. मुझे चलना चाहिए, इस बार सावन बड़ा तेज बरस रहा है
मैं- ऐसे कैसे जाएगी. एक बारिश भी तेरे साथ देखि नही मैंने. ठहर जरा, बरसने दे इस घटा को .
मीता- तू ऐसा कैसे है
मैं- ऐसा कैसे
मीता- मतलब इतना सरल कैसे हो सकता है कोई
मैं- छोड़ न तू भी क्या, ये बता रुद्रपुर में क्या चल रहा है
मीता- शांत है , सन्नाटा पसरा है फिज़ाओ में और यही सन्नाटा सच कहूँ तो खाए जा रहा है , जैसे कह रहा हो की कोई तूफ़ान आने को है .
मैं- जानता हूँ , जो हुआ नहीं होना चाहिए था
मीता- उस लड़की को इतना चाहता है न तू
मैं - नहीं रे, बस दोस्त है वो मेरी बचपन से, जब कोई नहीं था मेरे साथ वो थी .
मीता- मुझसे झूठ बोल सकता है तू खुद से नहीं , इतना जूनून , कोई इस हद तक आ जाये की अपनी सांसो की परवाह भी नहीं करे, ये तो प्यारे बस इश्क में ही हो सकता है .
मैं- तूने ही तो कहा था मेरे हाथ की लकीरों में कुछ नहीं सिवाय बर्बादी के तो फिर मोहब्बत कैसे होगी.
मीता- मोहब्बत अपना रस्ता खुद तय कर लेती है . नियति ने तेरी तक़दीर में सुख का पन्ना भी लिखा होगा.
मैं- नियति ने मुझे तुझसे भी तो मिलाया है न
मीता- तेरे मेरे रिश्ते में एक शर्त है दोस्ती की . हमने एक रेखा खींची है
मैं- नियति अगर उस रेखा को नहीं माने तो
मीता- मुझे पाना ऐसा है जैसे की एक मुट्ठी रेत को हथेली पर रख कर फूंक मार देना. और अगर तेरी बात मान भी लू तो एक दिन आयेगा जब तुझे चुनाव करना होगा. तब क्या करेगा तू. मुझे तेरे और उस लड़की के रिश्ते से कोई परेशानी नहीं है क्योंकि तुझ पर पहला हक़ उसका है . और मैं बंधी हूँ अपनी हदों के दायरे में . पर मैं तुझसे इतना कहूँगी की आशिकी इम्तेहान लेती है , नंगे पैर तलवार पर चलने जैसा होता है मोहब्बत करना , पाँव के घाव सह सके तो करना मोहब्बत.
मैंने मीता का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- सब कुछ रब्ब के हाथ में छोड़ दिया है, उसके हाथ में डोरी है .
मीता- अब जाने दे मुझे .
मैं- मुझे शिवाले की कहानी जाननी है
मीता- तुझे पता है
मैं- तू बता
मीता- मुझे बस इतना पता है की शिवाले का मतलब मंदिर नहीं होता, शिवाले का मतलब होता है वो भूमि जहाँ शिव का धुना होता है ,
मीता ने बड़ी गहरी बात कही थी जिसे समझने में कुछ थोड़ी देर लगी.
मैं- इसका मतलब ,
मीता- हाँ उसका वही मतलब है . अब जाती हूँ मैं
मैं- चलता हूँ थोड़ी दूर तेरे संग
मीता- नहीं बिलकुल नहीं
मैं- बस थोडा सा दूर
मीता-ये जिद किस काम की
मैं उठ खड़ा हुआ और हम दोनों हौले हौले जमीन को पार करते हुए रुद्रपुर की तरफ चल दिए. उसकी पायजेब की झंकार, दूर कही कूकती कोयल की आवाज को ताल दे रही थी . माथे पर पड़ती हलकी बूंदे उसके सांवले चेहरे पर गजब लग रही थी .
“ऐसे क्या देख रहा है ” पूछा उसने
मैं- बस तुम्हे
मीता- इतनी भी सुन्दर नहीं मैं
मैं- मेरी नजर से देख कभी खुद को
मीता ने अपनी उंगलिया मेरी उंगलियों से अलग की और बोली- बस , यहाँ से आगे मैं अकेले जाउंगी.मैंने उसका हाथ छोड़ दिया. शाम को मैं गाँव में आया तो मालूम हुआ की सुनार वापिस गाँव में लौट आया है .बेशक मेरा उस से छत्तीस का आंकड़ा था पर , ये मेरी गरज थी तो मैं उसके घर चला गया उस से मिलने के लिए.
लाला की हालत कोई खास बढ़िया नहीं थी , उसका एक साइड का शरीर जैसे सूख गया था .मुझे देख कर उसकी आँखों में नफरत आ गयी पर वो कुछ नहीं बोला.
मैं- कैसे हो लाला , तबियत कैसी है तुम्हारी
लाला चुप रहा .
मैं- अब बोल भी दे लाला.क्या मालूम कब जिन्दगी की शाम हो जाये, आत्मा पर इतना बोझ लेकर तू कैसे जायेगा. वैसे भी मैंने हमला करवाया नहीं था तुझ पर.
लाला- तेरी औकात भी नहीं इतनी
मैं- जे बात लाला. देख, माना की अपनी दुश्मनी है पर हजार नालायक दोस्तों से एक सच्चा दुश्मन भला होता है , हैं न, तो हम आपस में सौदा कर सकते है
लाला- कैसा सौदा
मैं- मेरे कुछ सवाल है उनका जवाब दे, बदले मैं तुझे थोडा सोना दूंगा
लाला- क्या सवाल है तेरे
मैं- उस बक्से में ऐसा क्या था जिसकी हिफाजत तूने सोलह साल तक की.
लाला- तूने खोल कर देख तो लिया ही होगा न
मैं- उस धागे में ऐसी क्या खास बात है लाला
लाला- तू जा यहाँ से
मैं- मुझे बता दे लाला. तू कहे तो मैं अभी के अभी सारा सोना तुझे लाकर देता हूँ
लाला- माँ चुदाने गया सोना, भोसड़ी के तू अभी के अभी निकल जा यहाँ से और दुबारा दिखना मत मुझे. वर्ना तेरा ऐसा हाल करूँगा की तूने सोचा नहीं होगा.
मैं- लोडू लाला मेरे सब्र का इम्तिहान मत ले,मैं क्या कर सकता हूँ इसकी खबर तुझे हो तो गयी ही होगी .
कुछ तो ऐसा राज था लाला के सीने में दफ़न जो लाला मरने को तैयार था पर बताने को नहीं. मैं घर आया तो देखा की चाची अकेली थी घर पर.
“कुछ बना दू तुम्हारे लिए ” उसने पूछा मेरे से
मुझे थोडा अजीब सा लगा फिर मैंने मना किया. और चोबारे में चला गया कुछ देर बाद चाची भी वहां पर आ गयी .
“अबकी बार झड़ी अच्छी लगी है , पानी रुक ही नहीं रहा है ” उसने कहा
मैं- हाँ, ऐसा सावन मैंने देखा नहीं कभी पहले. मैं कुछ दिनों के लिए कही बाहर जाना चाहता हूँ
चाची- कहाँ
मैं- वो सोचा नहीं है पर यहाँ से दूर
चाची- अब क्या खुराफात आई मन में
मैं- इसमें क्या खुराफात होगी भला.
चाची- जैसे मैं तो जानती ही नहीं न तुझे,
मैं- काश तुम मुझे जान पाती.
चाची ने एक गहरी साँस ली और खिड़की के पार देखने लगी. उसकी पीठ मेरी तरफ थी, ब्लाउज से झांकती पीठ पर जो निशान था उसने मेरा ध्यान खींचा.
“ये तुम्हारी पीठ पर कैसा निशान है चाची ” मैंने कहा
“दर्द का रुसवाई का ” अचानक से उसके मुह से निकल गया .