#40
आँख खुली तो दोपहर बाद का समय था ,मैं कमरे से बाहर आया तो देखा की ताई और चाचा भी आ चुके थे , पर उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं बोला. शायद चाची ने उन्हें मना किया हो. पर मुझे चैन नहीं था , उस हीरे की गुत्थी ने मुझे जैसे पागल कर दिया था चाची ने मेरी बात को पकड़ लिया और पूछा- क्या परेशानी है तुम्हे
मैं- तुमसे बात करनी है
चाची- मेरे पास तुम्हारे सावालो के जवाब नहीं है
मैं- तो ठीक है फिर, मैं अपने जवाब तलाश कर ही लूँगा.
चाची- ये तेरी जिद है न , तुझे ले डूबेगी एक दिन
मैं- क्या फर्क पड़ता है .तुम दद्दा ठाकुर की बेटी हो तुम छिपा सकती हो , तो मैं भी अपनी जिद संग रह लूँगा
चाची- पुरे गाँव को मालूम है मैं दद्दा ठाकुर की बेटी हूँ अब तुझे ही नहीं मालूम तो मेरा दोष नहीं. और अब ये बीती बात हुई मुझे रुद्रपुर छोड़े एक जमाना हुआ.
मैं- क्यों छोड़ा आपने रुद्रपुर
चाची- कभी कभी मुझे लगता है सारे चूतिये मेरी ही तक़दीर में है, मेरी शादी हुई थी तेरे चाचा से तो रुद्रपुर छोड़ना ही था मुझे .
मैं- मेरी दिलचस्पी उस राज में है की आखिर क्या वो बात थी जिसके कारन मेरे पिता ने वो काण्ड किया.
चाची- तेरी क्या मज़बूरी थी जो तूने जोरावर को मारा, हर दिन कोई न कोई लड़की कहीं न कहीं तो छिड ही रही होती है न. हर कोई जिसे भी मौका मिलता है वो औरत को मसलने के लिए तैयार ही होता है न . इसमें कोई नयी बात नहीं है . और मेरी एक बात को अच्छे से समझ ले कुछ चीजे बस हो जाती है , उन पर किसी का जोर नहीं होता. और गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ नहीं मिलता सिवाय सड़ांध के
मैं- तुम मेरे पिता के बारे में कुछ जानती थी न
चाची- सारी दुनिया जानती थी जेठ जी के बारे में
मैं- क्या उन्होंने तुमसे ऐसा कुछ कहा था जो तुम्हे ठीक नहीं लगा हो
चाची- हां,
मैं- क्या बताओ मुझे
चाची- यही की मेरा लड़का बड़ा होकर चुतिया बनेगा , तुम्हे इसका चुतियापा ठीक करना है .
मैंने गुस्से से घूरा चाची को .
चाची- और क्या कहूँ फिर , मान ले तुझे अगर मालूम भी हो गया की जेठ जी ने उन लोगो की हत्या क्यों की थी तो तू क्या कर लेगा, क्या तू उन परिवारों के दुखो पर मरहम लगा पायेगा. नहीं, न . बल्कि तूने तो और गहरी खाई खोद दी.
मैं- जोरावर ने रीना पर हाथ डाला था .
चाची- तो क्या दुनिया में एक ही रीना है , और किसी की बहन -बेटी भी रीना जैसी ही होंगी न उनके लिए. क्या मालूम जेठ जी ने भी रुद्रपुर में कोई ओछी हरकत की हो.
मैं- ये नहीं हो सकता
चाची- क्यों नहीं हो सकता, दुनिया भर के मर्दों के पायजामे की गांठे बड़ी कच्ची होती है , तराजू को बराबरी पर लाकर देख दुनिया को . ये दुनिया वैसी नहीं जैसी हम सोचते है .
मैं- मेरे पिता ऐसे नहीं हो सकते
चाची- क्यों नहीं हो सकते,
मैं- क्योंकि मैं कह रहा हूँ
चाची- और कौन है तू. मुझे हैरानी होती है किस घमंड में जी रहा है तू, तेरी खाल उतार लेनी थी दद्दा ठाकुर ने, अगर मैं वहां नहीं पहुँचती तो . बित्ते भर का छोकरा गाँव से पंगा लेगा. अरे देख खुद को , क्या औकात है तेरी , जब देखो अर्जुन का बेटा अर्जुन का बेटा. कोई महानता की बात नहीं है ये, वैसे भी लोग जो अपने बाप का नाम साथ लेकर जीते है कुछ खास कर नहीं पाते जिन्दगी में, तेरे चाचा को ही देख ले. तू मनीष है, मनीष बन कर जी .
चाची की बाते मुझे बड़ी गहरी चोट पहुंचा रही थी .
चाची- मैं तेरी दुश्मन नहीं हूँ, तू चाहे जो भी सोच मेरे बारे में, तुझे कठोरता से पालना मेरी जरुरत थी ताकि तू एक मजबूत इन्सान बने, तू हर उस चीज़ का मोल समझे जो तेरे पास है . बेशक तुझे जनम नहीं दिया पर मेरा खुदा जानता है मेरी ममता की असलियत, इसलिए तुझे बार बार कहती हूँ की गड़े मुर्दे मत उखाड़, आने वाले कल के उजाले को देख.
चाची ने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया था . पर मेरे दिमाग में कुछ और ही चल रहा था . न जाने क्यों मेरा मन कह रहा था की चाची पर विशवास करना गलती होगी. ऐसे ही उधेड़बुन में थोडा वक्त और बीता, हर शाम, दोपहर मैं रीना के साथ होता. मेरी हालत में भी काफी सुधार था ज़ख्म भरने लगे थे बस पसलियों को छोड़कर.
इस बीच मीता एक बार भी नहीं आई थी मुझसे मिलने. या शायद उसने घर पर आना उचित नहीं समझा था . पर ऐसी ही तो थी वो अपनी मर्ज़ी की मालिक. हवा के झोंके सी . मैं बार बार रीना के गले में झूलते उस हीरे को देखता , जैसे वो मुझे चिढ़ा रहा हो. इस बीच मुझे उस जमीन का ध्यान आया जिस पर मैं फसल उगाना चाहता था . यही सोच कर मैं उस दोपहर को जमीन की तरफ निकल गया .
बारिस के कारण कीचड फैला हुआ था .गाड़ी से उतरने के बाद मैं आराम से चलते हुए जमीन पर पहुंचा, देखा की वहां पर एक कमरा और बनवा दिया गया था , शायद ये ताई का काम था . ठंडी हवा चल रही थी जिस से गीली मिटटी की खुशबु दूर दूर तक फैली हुई थी . मेरा दिल तो कर रहा था की अभी के अभी रुद्रपुर जाकर मीता से मिल लू. पर फिलहाल इस ख्याल को टाल देना ही ठीक था.घूमते घूमते मैं बावड़ी पर गया . जो पानी से लबालब भरी थी .
मैंने कपडे उतारे और बावड़ी में घुस गया. इतना शीतल अहसास मुझे बरसो बाद ही मिला हो शायद. मैंने दूर झाड़ियो के बीच से मीता को आते हुए देखा.हमेशा के जैसे बगल में झोला टाँके. उसने भी मुझे देख लिया था , चाल में आई तेजी ने बता दिया था मुझे. कुछ ही देर में वो बावड़ी पर थी.
मैं- कितने दिन हुए , तू आई नहीं मिलने.
मीता- अभी आई तो सही.
मैं- घर पर आ सकती थी न
मीता- वैसे ही नहीं आई
मैं- किसी ने कुछ कहा क्या तुझसे
मीता- नहीं तो , ऐसी बात होती तो मै यहाँ रोज थोड़ी न आती .
मैं- रोज़
मीता- यहाँ आकर ऐसा लगता है की जैसे तुझसे मिल लिया हो.थोड़ी बाते तेरी ताई से कर जाती हूँ . जी लगा रहता है.
मैं- कम से कम ताई ही बता देती मुझे.
मीता- मैंने ही मना किया था क्योंकि फिर तू रोज़ यहाँ आने की जिद करता, मैं चाहती थी की पहले तू ठीक हो जाये.
मैं- इतनी फ़िक्र किसलिए
मीता- दोस्ती की है, निभानी तो पड़ेगी न. और तू भी निकल पानी से , जखम अभी भरे नहीं है और हरकते देखो
मैं- तू भी आजा पानी में , पानी में आग लग जाएगी
मीता- कहीं और न लग जाए आग.
मैं- आजा न
मीता- फिर कभी , चाय बनाती हु आजा तब तक.
जब तक मैं पहुंचा मीता ने चूल्हा सिलगा लिया था . मैंने चारपाई बाहर निकाल ली
मैं- तू कहे तो इधर तार बंदी करवा दू.
मीता- खेत-खलिहान खुले ही ठीक लगते है , और फिर हमें भला किसका डर
मैं- बस सुरक्षा के लिए
मीता- जो होना है वो होकर ही रहेगा, नसीब में लिखे को कौन टाल सकता है , और फिर तू साथ है तो कोई फ़िक्र कैसे हो सकती है.
मैं- सो तो है
उसने चाय दी मुझे और बगल में आकर बैठ गयी.उसके बदन की खुशबु मुझे अच्छी लग रही थी .
मैं- मुझे लगता है की संध्या चाची कुछ न कुछ छिपा रही है मुझसे
मीता- क्या भला
मैंने मीता को अपने मन की बात बताई.
मीता- ठीक ही तो कहती है, गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा.
मैं- मीता मुझे तेरी मदद चाहिए. मैं जानता हूँ की तुझे खाली सितारे पढने ही नहीं आते, बल्कि और कुछ भी आता है . मेरी एक मुश्किल आसान कर दे
मीता- क्या
मैं- ऐसा क्या बोझ हो जिसे हम अंगूठी, चेन , पायजेब आदि में रख सके.
मीता- क्या बोला तू
मैंने अपने शब्द फिर से दोहराए.
मीता- बात समझ नही आई पर तूने कही है तो गहरी ही होगी.
मैं- क्या संध्या चाची की वजह से हमारे परिवारों में दुश्मनी हुई थी
मीता- नहीं रे, बल्कि शादी तो बड़ी धूमधाम से हुई थी ऐसा सुना मैंने .पर एक बात और सुनी थी मैंने
मैं- क्या. ..................................