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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#39

पर मैं ये भूल गया था की अभी मेरी हालत ठीक नहीं है , ये तो शुक्र है की ताई ने वक्त पर थाम लिया मुझे वर्ना और चोट लग जानी थी .

“क्या कर रहा है तू, ” ताई ने मुझे डांटा और वापिस बेड पर ला पटका. ताई के तानो से ज्यादा मेरा ध्यान उस आदमी पर था , वो भागा क्यों. रात भर मैं ये ही सोचता रहा .

सुबह नर्स पट्टी बदलने आई तो मुझे मालूम हुआ की सर पर बारह टाँके आये थे और पसलियों को बहुत जायदा नुक्सान हुआ था , जिसकी भरपाई ना जाने कब तक होगी, होगी या नहीं होगी. मैं रीना का इंतज़ार करता रहा पर वो आई नहीं, शाम होने को आई थी , मीता भी नहीं आई. कुछ दिन ऐसे ही बीते , हालत में थोडा सुधार महसूस होने लगा था . इस बीच मैंने नोटिस किया की चाची मुझे देखने नहीं आई थी , सिर्फ ताई ही थी जो दिन रात मेरे पास रहती थी . मैं रीना के बारे में पूछता पर वो ये ही कहती की वो ठीक है , जल्दी ही आयेगी.

मैं बस बरसते सावन को देखता रहता था, मैंने सोचा तो था की इस बार का सावन अनोखा होगा, जिसमे मोहब्बत की बारिश होगी और भेगेंगे मैं और रीना . बेशक मेरी हालत ठीक नहीं थी पर अब मुझे कोफ़्त होने लगी थी इस हॉस्पिटल के कमरे से . और एक ऐसी ही रात, मैंने पाया की ताई गहरी नींद में पड़ी थी, पास की कुर्सी पर चाचा ऊंघ रहा था. मैं हौले से उठा और दोनों को चेक किया. मैंने टेबल से चाचा की गाड़ी की चाबी उठाई और धीरे धीरे कमरे से बाहर खिसक गया. भोर का समय नजदीक था पर बारिश घनघोर थी .

कमजोर कदमो से चलते हुए मैं खुद को बारिश से बचाते हुए मैं चाचा की गाड़ी तक आया और उसे उड़ा ले चला. मैं बस उस चेहरे का दीदार करना चाहता था जिसके बिना मैं कुछ नहीं था . भोर की पहली किरण और चमकती बरसात अपने आप में गजब ढा रही थी . मैंने गाड़ी रोकी , और सर पर हाथ रखते हुए , मनदिर की सीढिया चढ़ने लगा.

बाबा के आगे दिया जलाये , शांत बैठी थी वो. इतनी शांत की दिल किया ये वक्त थम जाये उसके और मेरे लिए. अम्रता प्रीतम ने कहा था की उसे देखा ऐसा जैसे कोई मजदुर के हाथ में उसकी रोज़ी रख दे. मेरा हाल भी कुछ वैसा ही था .

“कैसी है ,मेरी सरकार ” मैंने हौले से उसे पुकारा.

आहिस्ता से उसने अपनी आँखे खोली. नजरो से नजरे मिली. उसकी आँखों से जो आंसू टपके वो धरती पर नहीं सीधा मेरे कलेजे पर आकर गिरे.

“आ गया मैं ” मैंने उस से कहा.

वो मरजानी कुछ नहीं बोली, बस आकार चुपचाप मेरे सीने से लग गई. मेरे माथे पर चुम्बन अंकित किया उसने.

“बस कर, ये आंसू बड़े कीमती है इन्हें मुझ जैसे के लिए बर्बाद मत कर.” मैंने उस से कहा.

रीना- मेरा सब कुछ तुझसे है . तेरे बिना ये दिन कैसे बीते है मुझ पर मैं जानती हूँ या मेरा रब जानता है.

मैं- और मेरा क्या, कितना इंतज़ार किया था तेरा मैंने .

रीना- संध्या मामी ने मना किया था हॉस्पिटल आने को, बोली की तुझे उस हालत में देख नहीं पाउंगी. और मेरे दिल पर भी बोझ था

मैं-कैसा बोझ

रीना- सब मेरी गलती है , मैं वहां नहीं जाती तो ये सब होता ही नहीं

मैं- तेरी कोई गलती नहीं थी उसमे, तू मेरा मान है , मेरे होते किसकी मजाल जो आँख भी उठा सके मेरी सरकार की तरफ

रीना- तुझे कुछ हो जाता तो.

मैं- कुछ हुआ तो नहीं न . थोड़ी बहुत चोट है देर सबेर ठीक हो ही जानी है . और अब से तू अकेले कहीं नहीं आयेगी-जाएगी तेरी सुरक्षा की व्यवस्था मैं जल्दी ही करूँगा.

रीना- उस दिन के बाद से हमेशा कोई न कोई होता है मेरे साथ .

मैं- पर अभी तू अकेली ही थी न यहाँ पर

रीना- अभी नहीं हूँ अकेली.

मैंने देखा दिन निकल आया था बारिश थोड़ी मंद पड़ने लगी थी . मैंने रीना को साथ लिया और घर आ गए. चाची ने मुझे देखा और खूब गुस्सा किया, उसके अनुसार मुझे हॉस्पिटल से ऐसे ही नहीं आना चाहिए था . मैं सुनता रहा उसकी .

“चाची तुमने कभी बताया नहीं तुम दद्दा ठाकुर की बेटी हो ” मैंने कहा

चाची- हर कोई किसी न किसी की बेटी होती ही हैं ये कोई विशेष बात नहीं

मैं- मुझे तुमसे कुछ बात करनी है

चाची ने एक नजर रीना की तरफ डाली और बोली- अभी नहीं , तुम लोग बैठो, मैं मिलती हूँ बाद में .

उसका यूँ जाना मुझे ठीक नहीं लगा. मैं बिस्तर पर लेट गया . रीना मेरे पास बैठ गयी .

मैं- बोल कुछ ऐसे खामोश क्यों है.

रीना- आजकल ख़ामोशी से दोस्ती सी हो गई है मेरी .

मैं- कहा न तुझसे, उस बात का मलाल मत रख , तुझसे किसी ने कुछ कहा क्या

रीना- नहीं, पर लोगो की नजरे सवाल करती है मुझ से

मैं- लोगो को मैं देख लूँगा.

रीना- मुझे बस तुम्हारी फ़िक्र है .

मैं- और मुझे तेरी . प्यास सी लगी है थोडा पानी पिला जरा

रीना उठी और झुक कर मटके से पानी भरने लगी तभी मेरी नजर उसके गले पर पड़ी, और मैं हैरान रह गया . उसके गले में वो ही हीरे वाला थागा था . हीरे का रंग उसके गेहुंगे रंग में जैसे घुल सा गया था . लाल-काले डोरे में गूंथा हुआ हीरा रीना के गले में बड़ा प्यारा लग रहा था.

“पानी ” उसने कहा .

मैंने उसके हाथ से गिलास लिया और घूँट भरे.

रीना- ऐसे क्या देख रहा है .

मैं- ये डोरा अच्छा लग रहा है तुझ पर

रीना- तेरी निशानी, उस दिन बेहोश होने से पहले तूने ही तो इसे मेरे हाथ पर रखा था . रुक अभी उतार कर देती हूँ तुझे

मैं- नहीं रे, पहने रख जंच रहा है तुझ पर .

तभी रीना को किसी ने बाहर से आवाज दी और वो चली गयी . पर मेरे लिए सवाल छोड़ गयी. जिस डोरे को मैं नहीं पहन पाया. उसे बड़ी आसानी से अपने गले में सजा रखा था रीना ने, मेरी आँखों के सामने उस कागज़ पर लिखे शब्द घूम रहे थे जिस पर लिखा था , इसका बोझ उठाना बड़ा मुश्किल है .

पर जो मेरे लिए मुश्किल था वो रीना के लिए आसान कैसे . सोचते सोचते कुछ देर के लिए मेरी आँखे बंद हो गयी.
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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हम दोनों बात कर ही रहे थे की तभी मुझे ऐसा लगा की थोड़ी दूर एक शक्श कम्बल ओढ़े खड़ा हमें ही घुर रहा हो. हो सकता था की ये मेरा वहम हो. पर इस मौसम में कम्बल ओढना थोडा अजीब था. एक पल को मेरी आँखे उसकी आँखों से मिली और वो दूसरी तरफ मुड कर जाने लगा. मेरा शक यकीन में बदल गया .



“कम्बल वाले रुक जरा ” मैंने कहा और उसकी तरफ भागा पर मैं ये भूल गया था की............................................
Kaun ho sakta hai ye kambal wala shakhs??? Aisa lagta hai jaise us din ke kaand ke baad se Manish par nazar rakhi ja rahi hai. Kya dadda thakur tha wo ya uska koi aadmi???? :hmm2:
पर जो मेरे लिए मुश्किल था वो रीना के लिए आसान कैसे . सोचते सोचते कुछ देर के लिए मेरी आँखे बंद हो गयी.
Exactly.! Jo cheez itne dino se khud Manish ke liye rahasya bani huyi thi wahi cheez Reena ke gale ki shobha bani huyi thi...sawaal hai kaise ho sakta hai ye chamatkaar??? Abhi tak to meeta hi ek rahasyamay ladki lag rahi thi lekin ab Reena bhi rahasyamay lagne lagi hai. Kaale aur laal dhaage se ghuthe us heero ko wahi pahan sakta hai jo uska bojh utha sake...zaahir hai Reena se uska koi gahra connection hai. Well dekhte hain aage kya hota hai. Sawaal kayi saare abhi bhi hain lekin filhaal Manish ke liye behtar yahi hai ki wo apni sehat ka dhyaan rakhe....dono hi update shandaar the fauji bhai. Aage ka intzaar rahega :waiting:
 

Studxyz

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वाह भाई जबरदस्त अपडेट मुसाफिर अपना हीरो है बागी ही अस्पताल से भी भाग आया और ये भी नहीं सोचा के ताई और चाचा क्या अब पैदल आएंगे ?

हीरे वाले धागे का ताना बाना तो रीना से निकला पर लगता था की इसके गुथी मीता ही सुलझा पायेगी | कहानी बहुत ही रोचक अंदाज़ में बढ़ रही है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#40

आँख खुली तो दोपहर बाद का समय था ,मैं कमरे से बाहर आया तो देखा की ताई और चाचा भी आ चुके थे , पर उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं बोला. शायद चाची ने उन्हें मना किया हो. पर मुझे चैन नहीं था , उस हीरे की गुत्थी ने मुझे जैसे पागल कर दिया था चाची ने मेरी बात को पकड़ लिया और पूछा- क्या परेशानी है तुम्हे

मैं- तुमसे बात करनी है

चाची- मेरे पास तुम्हारे सावालो के जवाब नहीं है

मैं- तो ठीक है फिर, मैं अपने जवाब तलाश कर ही लूँगा.

चाची- ये तेरी जिद है न , तुझे ले डूबेगी एक दिन

मैं- क्या फर्क पड़ता है .तुम दद्दा ठाकुर की बेटी हो तुम छिपा सकती हो , तो मैं भी अपनी जिद संग रह लूँगा

चाची- पुरे गाँव को मालूम है मैं दद्दा ठाकुर की बेटी हूँ अब तुझे ही नहीं मालूम तो मेरा दोष नहीं. और अब ये बीती बात हुई मुझे रुद्रपुर छोड़े एक जमाना हुआ.

मैं- क्यों छोड़ा आपने रुद्रपुर

चाची- कभी कभी मुझे लगता है सारे चूतिये मेरी ही तक़दीर में है, मेरी शादी हुई थी तेरे चाचा से तो रुद्रपुर छोड़ना ही था मुझे .

मैं- मेरी दिलचस्पी उस राज में है की आखिर क्या वो बात थी जिसके कारन मेरे पिता ने वो काण्ड किया.

चाची- तेरी क्या मज़बूरी थी जो तूने जोरावर को मारा, हर दिन कोई न कोई लड़की कहीं न कहीं तो छिड ही रही होती है न. हर कोई जिसे भी मौका मिलता है वो औरत को मसलने के लिए तैयार ही होता है न . इसमें कोई नयी बात नहीं है . और मेरी एक बात को अच्छे से समझ ले कुछ चीजे बस हो जाती है , उन पर किसी का जोर नहीं होता. और गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ नहीं मिलता सिवाय सड़ांध के

मैं- तुम मेरे पिता के बारे में कुछ जानती थी न

चाची- सारी दुनिया जानती थी जेठ जी के बारे में

मैं- क्या उन्होंने तुमसे ऐसा कुछ कहा था जो तुम्हे ठीक नहीं लगा हो

चाची- हां,

मैं- क्या बताओ मुझे

चाची- यही की मेरा लड़का बड़ा होकर चुतिया बनेगा , तुम्हे इसका चुतियापा ठीक करना है .

मैंने गुस्से से घूरा चाची को .

चाची- और क्या कहूँ फिर , मान ले तुझे अगर मालूम भी हो गया की जेठ जी ने उन लोगो की हत्या क्यों की थी तो तू क्या कर लेगा, क्या तू उन परिवारों के दुखो पर मरहम लगा पायेगा. नहीं, न . बल्कि तूने तो और गहरी खाई खोद दी.

मैं- जोरावर ने रीना पर हाथ डाला था .

चाची- तो क्या दुनिया में एक ही रीना है , और किसी की बहन -बेटी भी रीना जैसी ही होंगी न उनके लिए. क्या मालूम जेठ जी ने भी रुद्रपुर में कोई ओछी हरकत की हो.

मैं- ये नहीं हो सकता

चाची- क्यों नहीं हो सकता, दुनिया भर के मर्दों के पायजामे की गांठे बड़ी कच्ची होती है , तराजू को बराबरी पर लाकर देख दुनिया को . ये दुनिया वैसी नहीं जैसी हम सोचते है .

मैं- मेरे पिता ऐसे नहीं हो सकते

चाची- क्यों नहीं हो सकते,

मैं- क्योंकि मैं कह रहा हूँ

चाची- और कौन है तू. मुझे हैरानी होती है किस घमंड में जी रहा है तू, तेरी खाल उतार लेनी थी दद्दा ठाकुर ने, अगर मैं वहां नहीं पहुँचती तो . बित्ते भर का छोकरा गाँव से पंगा लेगा. अरे देख खुद को , क्या औकात है तेरी , जब देखो अर्जुन का बेटा अर्जुन का बेटा. कोई महानता की बात नहीं है ये, वैसे भी लोग जो अपने बाप का नाम साथ लेकर जीते है कुछ खास कर नहीं पाते जिन्दगी में, तेरे चाचा को ही देख ले. तू मनीष है, मनीष बन कर जी .

चाची की बाते मुझे बड़ी गहरी चोट पहुंचा रही थी .

चाची- मैं तेरी दुश्मन नहीं हूँ, तू चाहे जो भी सोच मेरे बारे में, तुझे कठोरता से पालना मेरी जरुरत थी ताकि तू एक मजबूत इन्सान बने, तू हर उस चीज़ का मोल समझे जो तेरे पास है . बेशक तुझे जनम नहीं दिया पर मेरा खुदा जानता है मेरी ममता की असलियत, इसलिए तुझे बार बार कहती हूँ की गड़े मुर्दे मत उखाड़, आने वाले कल के उजाले को देख.

चाची ने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया था . पर मेरे दिमाग में कुछ और ही चल रहा था . न जाने क्यों मेरा मन कह रहा था की चाची पर विशवास करना गलती होगी. ऐसे ही उधेड़बुन में थोडा वक्त और बीता, हर शाम, दोपहर मैं रीना के साथ होता. मेरी हालत में भी काफी सुधार था ज़ख्म भरने लगे थे बस पसलियों को छोड़कर.

इस बीच मीता एक बार भी नहीं आई थी मुझसे मिलने. या शायद उसने घर पर आना उचित नहीं समझा था . पर ऐसी ही तो थी वो अपनी मर्ज़ी की मालिक. हवा के झोंके सी . मैं बार बार रीना के गले में झूलते उस हीरे को देखता , जैसे वो मुझे चिढ़ा रहा हो. इस बीच मुझे उस जमीन का ध्यान आया जिस पर मैं फसल उगाना चाहता था . यही सोच कर मैं उस दोपहर को जमीन की तरफ निकल गया .

बारिस के कारण कीचड फैला हुआ था .गाड़ी से उतरने के बाद मैं आराम से चलते हुए जमीन पर पहुंचा, देखा की वहां पर एक कमरा और बनवा दिया गया था , शायद ये ताई का काम था . ठंडी हवा चल रही थी जिस से गीली मिटटी की खुशबु दूर दूर तक फैली हुई थी . मेरा दिल तो कर रहा था की अभी के अभी रुद्रपुर जाकर मीता से मिल लू. पर फिलहाल इस ख्याल को टाल देना ही ठीक था.घूमते घूमते मैं बावड़ी पर गया . जो पानी से लबालब भरी थी .

मैंने कपडे उतारे और बावड़ी में घुस गया. इतना शीतल अहसास मुझे बरसो बाद ही मिला हो शायद. मैंने दूर झाड़ियो के बीच से मीता को आते हुए देखा.हमेशा के जैसे बगल में झोला टाँके. उसने भी मुझे देख लिया था , चाल में आई तेजी ने बता दिया था मुझे. कुछ ही देर में वो बावड़ी पर थी.

मैं- कितने दिन हुए , तू आई नहीं मिलने.

मीता- अभी आई तो सही.

मैं- घर पर आ सकती थी न

मीता- वैसे ही नहीं आई

मैं- किसी ने कुछ कहा क्या तुझसे

मीता- नहीं तो , ऐसी बात होती तो मै यहाँ रोज थोड़ी न आती .

मैं- रोज़

मीता- यहाँ आकर ऐसा लगता है की जैसे तुझसे मिल लिया हो.थोड़ी बाते तेरी ताई से कर जाती हूँ . जी लगा रहता है.

मैं- कम से कम ताई ही बता देती मुझे.

मीता- मैंने ही मना किया था क्योंकि फिर तू रोज़ यहाँ आने की जिद करता, मैं चाहती थी की पहले तू ठीक हो जाये.

मैं- इतनी फ़िक्र किसलिए

मीता- दोस्ती की है, निभानी तो पड़ेगी न. और तू भी निकल पानी से , जखम अभी भरे नहीं है और हरकते देखो

मैं- तू भी आजा पानी में , पानी में आग लग जाएगी

मीता- कहीं और न लग जाए आग.

मैं- आजा न

मीता- फिर कभी , चाय बनाती हु आजा तब तक.

जब तक मैं पहुंचा मीता ने चूल्हा सिलगा लिया था . मैंने चारपाई बाहर निकाल ली

मैं- तू कहे तो इधर तार बंदी करवा दू.

मीता- खेत-खलिहान खुले ही ठीक लगते है , और फिर हमें भला किसका डर

मैं- बस सुरक्षा के लिए

मीता- जो होना है वो होकर ही रहेगा, नसीब में लिखे को कौन टाल सकता है , और फिर तू साथ है तो कोई फ़िक्र कैसे हो सकती है.

मैं- सो तो है

उसने चाय दी मुझे और बगल में आकर बैठ गयी.उसके बदन की खुशबु मुझे अच्छी लग रही थी .

मैं- मुझे लगता है की संध्या चाची कुछ न कुछ छिपा रही है मुझसे

मीता- क्या भला

मैंने मीता को अपने मन की बात बताई.

मीता- ठीक ही तो कहती है, गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा.

मैं- मीता मुझे तेरी मदद चाहिए. मैं जानता हूँ की तुझे खाली सितारे पढने ही नहीं आते, बल्कि और कुछ भी आता है . मेरी एक मुश्किल आसान कर दे

मीता- क्या

मैं- ऐसा क्या बोझ हो जिसे हम अंगूठी, चेन , पायजेब आदि में रख सके.

मीता- क्या बोला तू

मैंने अपने शब्द फिर से दोहराए.

मीता- बात समझ नही आई पर तूने कही है तो गहरी ही होगी.

मैं- क्या संध्या चाची की वजह से हमारे परिवारों में दुश्मनी हुई थी

मीता- नहीं रे, बल्कि शादी तो बड़ी धूमधाम से हुई थी ऐसा सुना मैंने .पर एक बात और सुनी थी मैंने

मैं- क्या. ..................................
 

Studxyz

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बहुत बढ़िया कहानी एक रोमांच से दुसरे रोमांच की और जा रही है और मनीष इन सब के बीच हीचकोले खा रहा है कभी चाची के राज़, कभी अर्जुन सिंह का माझी क्या था और अब हीरे वाला धागा रीना को कैसे भा गया और फिर अंत में ये मीता भी कोई आम लड़की नहीं है ये भी कोई पहुंची हुई ख़ास आइटम है और इन सब के लिंक एक दूसरे से भी ज़रूर जुड़े हैं शायद अर्जुन सिंह व् चाची की वजह से

चाची बेचारी बहुत प्यासी है और उसने मनीष की ज़िंदगी भी बचाई अब मनीष को ये अहसान उतरना तो पड़ेगा लेकिन चाची है पक्की पुतलीबाई डाकुनि के जैसे कही दांव उल्टा ना पड़ ना जाये
 
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