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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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चढती उम्र के जोश मे कि गई ये गलतिया जिनका प्रभाव कहीं ना कहीं तो पड़ेगा ही, पर यकीनन प्राथमिकता मेला है,
मेले वाले भाग को कुछ ऐसे लिखना चाहता हूँ कि वो बरसों बरसों याद किया जाये
Mele wale bhag ko ek hi update me likhna fauji bhai ya fir do update me. Kyoki adha adhura padhne me maza nahi aayega. Bhale hi iske liye update dene me ek do din ka waqt extra le lena :declare:
 

Lutgaya

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छोटा है मगर. अच्छा है।
और बडे की उम्मीद है
 

Tiger 786

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“मैं उसी अर्जुन का बेटा हूँ बाबा ” मैंने कहा

उस बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा पर उसकी आँखों के चमक बहुत कुछ कह रही थी. रुद्रपुर से मैं सीधा अपनी बंजर जमीन पर आया, बावड़ी की सीढियों की मरम्मत हो चुकी थी , अन्दर से सफाई हो चुकी थी बस अब इसे पानी से भरना था . बरसात गिर पड़ती तो मैं उसके बाद इस जमीन पर ट्रक्टर चलाना चाहता था . दिमाग में लाखो ख्याल थे,पर मैं थका था मैंने पेड़ो के निचे चारपाई लगाई और कुछ देर के लिए सो गया.



मेरी नींद टूटी तो हल्का हल्का अँधेरा हुआ पड़ा था . टूटे बदन को सँभालते मैंने आँखे खोली की सामने देख कर आँखों को एक बार जैसे यकीन ही नहीं हुआ. मेरे सामने मिटटी के डोले पर मीता बैठी हुई थी.



“कहाँ थी तू, कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा तुझे और वहां मिटटी में क्यों बैठी है ” मैंने कहा

मीता- अब तूने याद ही इतनी शिद्दत से किया की मुझे आना पड़ा और ये मिटटी , जो सुख इसकी पनाह में है वो और कहाँ भला.

मैं- बात तो सही कही पर तू थी कहाँ कितने दिन हुए तुझे देखे हुए,

मीता- और भला कहाँ जाना , कभी इधर कभी उधर. चाचा की तबियत ख़राब थी उसे शहर में हॉस्पिटल में दाखिल करवाया था तो वहीँ रुकना पड़ा.

मैं- मुझे तो बता सकती थी न .

मीता- तुझे परेशानी होती.

मैं- परेशानी वो भी तुझसे , हद करती है तू भी .

मीता- और बता क्या चल रहा है

मैं- कुछ नहीं बस तेरी याद आ रही थी .

मीता- यादो का क्या है, यादे तो आणि जानी है

मैं- और तू

मीता- मैं भी यादो जैसी ही हूँ. मैंने तुझे मना किया था न रुद्रपुर में धक्के मत खाना

मैं- मेरी नियति मुझे वहां बार बार ले जाती है

वो- वहां तुझे कुछ नहीं मिलेगा.

मैं- तू तो मिली न

वो- मेरा मिलना न मिलना एक सा ही है

मैं- अभी तो मिली न मुझे तू

मीता ने झोले से एक डिब्बा निकाला और मुझे दिया.

मैं- क्या है इसमें

वो- शहर से लायी हूँ तेरे लिए.

मैने डिब्बा खोला उसमे जलेबिया थी .

“तुझे पसंद है न ” उसने कहा

मैं- तुझे कैसे मालूम

वो- उस दिन हलवाई की दूकान पर तूने जलेबी ही तो खिलाई थी .

मैं मुस्कुरा दिया और जलेबी खाने लगा.

“तेरे बिना सब सूना सूना सा लगता है ” मैंने कहा

वो- अभी तेरे साथ हूँ कौन सा बहारे आ गयी

मैं- काश तुझे बता सकता .

वो- बताने की जरुरत नहीं

मैं- तेरे गाँव में मेला लगने वाला है , मिलेगी न वहां पर

वो- तू आएगा वहां

मैं- मुझे तो आना ही है , इसी बहाने तेरे साथ वक्त गुजारने का मौका मिलेगा

वो- बड़ी हिम्मत है तुम्हारी, मेरे गाँव में मेरा हाथ पकड़ कर घूमना चाहता है

मैं- इतना तो हक़ है मेरा और फिर क्या तेरा क्या मेरा

मीता- इस दोस्ती की शर्ते भूल गया क्या तू

मैं- वो दोस्ती ही क्या जिसमे शर्ते हो

वो मुस्कुरा पड़ी. अँधेरा थोडा और घना होने लगा.

मैं- सावन शुरू हो जाए तो फिर कुछ करे इधर

मीता- दिन तो पुरे हो गए है , देखो कब झड़ी लगती है

मैं- दिल कहता है ये सावन अनोखा होगा. तू बता तेरे सितारे क्या कहते है

मीता- सितारों की क्या बात करनी, बात तो तेरी मेरी चल रही है .

मैं- तो ये बता हमारे सितारे क्या कहते है .

मीता- क्या ही कहना है कुछ दुःख तेरे, कुछ दर्द मेरे

मैं- किसी ने मुझसे कहा की दो बर्बाद मिलकर एक आबाद दुनिया बसा सकते है .

मीता- इतना आगे की क्या सोचना, आज की बात कर

मैं- मेरा आज मेरी आँखों के सामने बैठा है .

मीता- चल मैं चलती हूँ,

मैं- थोड़ी देर तो रुक , बड़े दिनों बाद तो मिली है

मीता- रात काली हो रही है

मैं- होने दे. या तो तू वादा कर की रोज मिलेगी या आज यही रुक जा

मीता-वादा तोड़ कर ही तो आई हूँ तेरे पास

मैं- रुक जा न , क्या मुझ पर भरोसा नहीं

मीता- भरोसा है तभी तो आई. खैर अब मैं जो बात पुछू तू सच बताना मुझे

मैं- तुझसे झूठ बोला क्या कभी

मीता- दादा ठाकुर से क्या पंगा हुआ तेरा

मैं- सच कहूँ तो कुछ नहीं , मतलब पंगा गाँव के लडको से हुआ था , दद्दा से एक दो बार मुलाकात हुई मेरी.

मैंने उसे शिवाले वाली घटना बताई.

मीता- ददा ठाकुर बड़ा मीठा है , तू इसके झांसे में बिलकुल मत आना, कब तेरे साथ खेल कर जायेगा तुझे मालूम भी नहीं होगा.

मैं- पर कुछ तो ऐसा है जो वो अपने कलेजे में दबाये बैठा है

मीता- सब के मन में कुछ न कुछ राज़ तो होते ही है.

मैं-तू मेरी मदद करेगी क्या मेरे सवालो के जवाब तलाश करने में

मीता- मुझे कहाँ उलझा रहा है तू.

मैं- एक तू ही तो है जिससे अपने मन की बात कर सकता हूँ मैं

मीता- ये मन बावला होता है मनीष , मन की मत सुनियो

मैं- तो किसकी सुनु

मीता- छोड़ अब ये सब, यही रुकना है तो दो चार ईंटे उठा ले, और कुछ लकडिया मैं चूल्हा सुलगाती हूँ .

मैं- कमरे में कुछ रखा होगा खाने पिने का देखते है

मैंने कमरे का दरवाजा खोला वहां पर मजदूरो के खाना बना ने का सामान था , मैंने ईंटे उठाई तब तक मीता ने कुछ लकडिया तोड़ ली.

वो- वैसे तुझे खाने में क्या पसंद है

मैं- सच कहूँ तो मीट और उसकी तरी में भीगी हुई रोटिया , खाने पीने का बहुत शौक रहा पर हालात ऐसे थे की मन को समझाना पड़ा

मीता- कोई न अबकी बार तू घर आएगा तो तेरी ये इच्छा मैं पूरी करुँगी. अभी तो इन्ही आलू से काम चला ले.

मैं- चूल्हे की आंच में बड़ी खूबसूरत दिखती है , जी करता है उम्र भर तुझे यूँ देखता रहू. हौले से जुल्फों को संवारना गजब है तेरा.

मीता- ये तारीफों के डोरे तू मुझ पर नहीं डाल पायेगा

मैं- उसकी जरुरत नहीं मुझे

मीता- थाली आगे कर रोटी परोस दू तुझे

मैं- तू बना ले फिर साथ ही खायेंगे, ये मौके फिर मिले न मिले.

मीता- जब तेरा दिल करे , तू मेरे घर आजा खाने के लिए

मैं- मेरा दुश्मन वो ताला हुआ है जो दरवाजे पर लगा है

मीता- ठीक है बाबा , आगे से कहीं भी जाउंगी तो ताला नहीं लगा कर जाउंगी पर मेरा कुछ भी सामान चोरी हुआ तो तुझ से पैसे लुंगी उसके

मैं- मेरा तो सब कुछ तेरा ही है.

बाते करते हुए हम दोनों ने खाना खाया और फिर एक दुसरे के किनारे चारपाई लगा ली . अपनी अपनी चारपाई पर लेटे हुए सितारों को देखते हुए हम हसीं रात का लुत्फ़ ले रहे थे की अचानक आई उस चीख ने हम दोनों के रोंगटे खड़े कर दिए..............................
Behtreen lazwaab update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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मैं- कुछ नहीं बस तेरी याद आ रही थी .

मीता- यादो का क्या है, यादे तो आणि जानी है

मैं- और तू

मीता- मैं भी यादो जैसी ही हूँ.


bahut khoob manish bhai grea story writing superb

मैं- चूल्हे की आंच में बड़ी खूबसूरत दिखती है , जी करता है उम्र भर तुझे यूँ देखता रहू. हौले से जुल्फों को संवारना गजब है तेरा.

मीता- ये तारीफों के डोरे तू मुझ पर नहीं डाल पायेगा


amazing romantic update full of entertainment and heartily pleasure, story mein meeta ke aane se jaan si pad gyi hai
इस कहानी मे किरदारों के नाम मीता और मनीष रखने के पीछे मेरी यादे थी, कहानी मे ऐसी बहुत सी बातों की झलक मिलेगी जो हमारे दरमियान हुई थी मीता का मेरी जिन्दगी मे होना किसी नेमत से कम नहीं था
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Iski ma ka ..... ab Ye kon cheekh pada.

Foji bhai yar ye suspense Bohot chodte ho aap.
Waise great Story With awesome Writing Skills
सस्पेंस नहीं होगा तो कहानी मे मजा नहीं आएगा भाई, यही उत्सुकता तो पाठकों को प्रेरित करती है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#34

हम दोनों के होश उड़ गए उस चीख को सुनकर, अब किसने अपनी माँ चुदवा ली थी, मैंने मन ही मन कहा. बड़ी मुश्किल से ये घडी आई थी जब मैं मीता के इतने करीब था, किस ने मेरी हसीं रात ख़राब की थी .

मीता- चल देखते है , क्या मालूम कोई मुसीबत में है

मैं - तू इधर ही रुक मैं देखता हूँ

मीता- मैं भी चलूंगी साथ

हम दोनों दौड़ कर खेतो की परली तरफ गए. मैंने टोर्च जला ली थी. और टोर्च की रौशनी में मैंने देखा की एक आदमी खून से लथपथ धरती पर पड़ा है और पास में चाची खड़ी थी . मीता ने उस आदमी को टटोल कर देखा और बोली- निकल लिया ये तो

मैं- चाची, तुझे क्या जरुरत थी इसे मारने की

चाची- मैंने इसे नहीं मारा, भला मैं क्यों करुँगी ऐसा काम

मैं- ये धरती पर पड़ा है और इसके पास तू है , इतने बेवकूफ तो हम भी नहीं है .

चाची ने एक नजर मीता पर डाली और बोली-चाहे मेरा यकीन करो या न करो मैंने इसे नहीं मारा. ये बस संयोग की बात है इसका मरना और मेरा यहाँ होना

मिता - अजीब संयोग है

चाची ने खा जाने वाली नजरो से मीता को देखा और बोली- तुझे क्या लेना देना है , मनीष कौन है ये लड़की

मैं- मेरी दोस्त है और क्या गलत पूछा है इसने तुम इतनी रात को इस संयोग में क्या कर रही थी .

चाची- तेरे चाचा को तलाश करने आई थी , पिछले कई दिनों से वो घर पर नहीं आये है

मैं- ये बात मुझे क्यों नहीं बताई

चाची- तू घर पर रहता ही कब है ,

मीता- चलो मान लेते है पर अभी इस लाश का क्या करना है , सुबह ये तुम्हारे खेतो पर ही पड़ा मिलेगा तो तुम्हारे लिए मुसीबत होगी वैसे भी दिलेर सिंह तो ताक में ही है .

चाची- कौन दिलेर सिंह

मैं- चाची तू थोड़ी देर शांत रह और मुझे कुछ सोचने दे. मैं समझ रहा हटा की हो न हो ये जब्बर का आदमी ही होगा.



पर क्या ये मेरी जासूसी कर रहा था ,हालाँकि मुझे चाची की बात पर जरा भी विश्वास नहीं था क्योंकि उस रात जिस तरह से उसने मुझे दिखाया था मुझे लगा था की ये औरत आर पार है . पर अभी मैं कुछ कहने की हालत में नहीं था . मीता की बात में वजन था , दिलेर सिंह को ऐसे ही मौके की तलाश थी मेरी रेल बनाने के लिए.

मैं- चाची तू घर जा , हम थोड़ी देर में आयेंगे इसका कुछ करके

पर उस औरत ने अकेले जाने से मना कर दिया. थोड़ी देर विचार करने के बाद मैंने और मीता ने मिलकर गड्ढा खोदा और उसमे लाश पाट दी.

मीता- अब क्या

मैं- फिलहाल ये जगह सुरक्षित नहीं है , क्या मालूम ये आदमी कब से हमारे पीछे हो . मेरी वजह से तुझे कोई दिक्कत हो ये मुझे मंजूर नहीं

मीता- तू फ़िक्र न कर, इतनी कमजोर नहीं मैं

मैं- हम अभी घर चलेंगे.

मीता- ठीक है तुम जाओ मैं भी जाती हूँ

मैं- पागल हुई है क्या , तुझे अकेले जाने दूंगा क्या मैं तू भी मेरे घर चलेगी,

मीता- पर मैं कैसे, मेरा मतलब

मैं- कुछ मतलब नहीं, वो भी तेरा ही घर है

मैंने चाची की तरफ देखा, उसने कुछ नहीं कहा. हम तीनो घर के लिए चल पड़े. घर आने के बाद हमने हाथ मुह धोये और बैठ गए, मीता मेरे घर को देखने लगी, चाची चाय बना लाई. पर एक बात जो मुझे बेचैन कर रही थी वो ये थी की थोड़ी देर पहले एक आदमी मरा था , चाची का व्यवहार ऐसा था की जैसे उसे कुछ फर्क पड़ा ही नहीं था . ऐसा कैसे हो सकता था .

मैं-चाची, क्या कोई ई बात है जो मुझसे छुपाई जा रही है .

चची- मुझे कुछ नहीं छुपाना

मैं- तो बताओ वो आदमी वहां पर क्या कर रहा था

चाची - मैं क्या जानू, हो सकता है वो कोई चोर हो

मैं- वहां कौन सा खजाना गडा है

मीता- क्या आप उस आदमी को पहले से जानती थी , हो सकता है की आप उस आदमी से मिलने ही गयी हो वहां पर

चाची- ये लड़की अपनी हद में रह. तू सीधा सीधा मुझ पर लांछन लगा रही है

मैं- मीता का वो मतलब नहीं था

चाची- इसका जो भी मतलब है इसे कह दे अपनी हद में रहे, और वैसे ये है कौन .

मैं- फिलहाल तो यूँ समझ लो की ये घर जितना मेरा है उतना ही इसका .

चाची- तो मैं तुझे कैसे विश्वास दिलाऊ की मैं बस तेरे चाचा को तलाशने गयी थी वहां पर

मैं- वहीँ पर क्यों

चाची- क्योंकि ना जाने तुम लोगो को उस जमीन से क्या लगाव है जब कहीं नहीं मिलते तो वहीं पर मिलते है .

न जाने क्यों चाची की बाते मुझे जम नहीं रही थी पर फिलहाल मैंने उसे कुछ और नहीं कहा और मीता को अपने चौबारे में ले आया.

“बस यही है मेरी दुनिया. ” मैंने बिखरे कपड़ो को एक तरफ रखते हुए कहा

उसने अलमारी में पड़ी कैसेट के ढेर को देखा और बोली- तो ये शौक भी है तुमको

मैं- जब से तुमसे मिला हूँ , इन पर ध्यान गया ही नहीं मेरा.

“और ये किताबे,” उसने कहा

मैं- बस कभी कभी पढता हूँ

वो खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी

मीता- कभी सोचा नहीं था ऐसे अचानक से तेरे घर यूँ आना होगा.

मैं- तू जब चाहे यहाँ आ सकती है

मीता- क्या करुँगी मैं यहाँ आकर

मैं- क्या पता तेरे नसीब में हमेशा यही की होकर रहना हुआ तो .

मीता- मेरा नसीब इतना बुरा भी नहीं है .

मैं- रात बहुत हुई तू आराम कर सो जा यहाँ मैं बाहर हूँ, किसी चीज़ की जरुरत हो तो आवाज दे न

मीता- तू यही रह मुझे कोई दिक्कत नहीं है .

कितनी सादगी थी इस लड़की में, इसे फर्क ही नहीं पड़ता था , इसका और मेरा एक जैसा ही था , उसे देखते हुए न जाने कब नींद ने मुझे आगोश में ले लिया.

सुबह मेरी आँख खुली तो मीता नहीं थी . मैं निचे आया तो चाची ने कहा की वो सुबह सुबह ही चली गयी . उसका यूँ जाना अच्छा तो नहीं लगा पर वो ऐसी ही थी . मैं सीधा ताई के पास गया .

मैं- मुझे कुछ पूछना था तुमसे

ताई- हाँ

मैं- चाची के बारे में तुम जो भी जानती हो सब का सब बताना मुझे.

ताई-अब क्या बात हो गयी

मैं- बस यूँ ही

ताई- यूँ ही कुछ नहीं होता

मैं- मुझे वो ठीक नहीं लगती, मुझे लगता है की वो किसी से सेट है , किसी से चक्कर चल रहा है उसका.

इस से पहले की मेरी बात होती ताई का थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा और मैं हैरत से उसे देखता रह गया.
 
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