#34
हम दोनों के होश उड़ गए उस चीख को सुनकर, अब किसने अपनी माँ चुदवा ली थी, मैंने मन ही मन कहा. बड़ी मुश्किल से ये घडी आई थी जब मैं मीता के इतने करीब था, किस ने मेरी हसीं रात ख़राब की थी .
मीता- चल देखते है , क्या मालूम कोई मुसीबत में है
मैं - तू इधर ही रुक मैं देखता हूँ
मीता- मैं भी चलूंगी साथ
हम दोनों दौड़ कर खेतो की परली तरफ गए. मैंने टोर्च जला ली थी. और टोर्च की रौशनी में मैंने देखा की एक आदमी खून से लथपथ धरती पर पड़ा है और पास में चाची खड़ी थी . मीता ने उस आदमी को टटोल कर देखा और बोली- निकल लिया ये तो
मैं- चाची, तुझे क्या जरुरत थी इसे मारने की
चाची- मैंने इसे नहीं मारा, भला मैं क्यों करुँगी ऐसा काम
मैं- ये धरती पर पड़ा है और इसके पास तू है , इतने बेवकूफ तो हम भी नहीं है .
चाची ने एक नजर मीता पर डाली और बोली-चाहे मेरा यकीन करो या न करो मैंने इसे नहीं मारा. ये बस संयोग की बात है इसका मरना और मेरा यहाँ होना
मिता - अजीब संयोग है
चाची ने खा जाने वाली नजरो से मीता को देखा और बोली- तुझे क्या लेना देना है , मनीष कौन है ये लड़की
मैं- मेरी दोस्त है और क्या गलत पूछा है इसने तुम इतनी रात को इस संयोग में क्या कर रही थी .
चाची- तेरे चाचा को तलाश करने आई थी , पिछले कई दिनों से वो घर पर नहीं आये है
मैं- ये बात मुझे क्यों नहीं बताई
चाची- तू घर पर रहता ही कब है ,
मीता- चलो मान लेते है पर अभी इस लाश का क्या करना है , सुबह ये तुम्हारे खेतो पर ही पड़ा मिलेगा तो तुम्हारे लिए मुसीबत होगी वैसे भी दिलेर सिंह तो ताक में ही है .
चाची- कौन दिलेर सिंह
मैं- चाची तू थोड़ी देर शांत रह और मुझे कुछ सोचने दे. मैं समझ रहा हटा की हो न हो ये जब्बर का आदमी ही होगा.
पर क्या ये मेरी जासूसी कर रहा था ,हालाँकि मुझे चाची की बात पर जरा भी विश्वास नहीं था क्योंकि उस रात जिस तरह से उसने मुझे दिखाया था मुझे लगा था की ये औरत आर पार है . पर अभी मैं कुछ कहने की हालत में नहीं था . मीता की बात में वजन था , दिलेर सिंह को ऐसे ही मौके की तलाश थी मेरी रेल बनाने के लिए.
मैं- चाची तू घर जा , हम थोड़ी देर में आयेंगे इसका कुछ करके
पर उस औरत ने अकेले जाने से मना कर दिया. थोड़ी देर विचार करने के बाद मैंने और मीता ने मिलकर गड्ढा खोदा और उसमे लाश पाट दी.
मीता- अब क्या
मैं- फिलहाल ये जगह सुरक्षित नहीं है , क्या मालूम ये आदमी कब से हमारे पीछे हो . मेरी वजह से तुझे कोई दिक्कत हो ये मुझे मंजूर नहीं
मीता- तू फ़िक्र न कर, इतनी कमजोर नहीं मैं
मैं- हम अभी घर चलेंगे.
मीता- ठीक है तुम जाओ मैं भी जाती हूँ
मैं- पागल हुई है क्या , तुझे अकेले जाने दूंगा क्या मैं तू भी मेरे घर चलेगी,
मीता- पर मैं कैसे, मेरा मतलब
मैं- कुछ मतलब नहीं, वो भी तेरा ही घर है
मैंने चाची की तरफ देखा, उसने कुछ नहीं कहा. हम तीनो घर के लिए चल पड़े. घर आने के बाद हमने हाथ मुह धोये और बैठ गए, मीता मेरे घर को देखने लगी, चाची चाय बना लाई. पर एक बात जो मुझे बेचैन कर रही थी वो ये थी की थोड़ी देर पहले एक आदमी मरा था , चाची का व्यवहार ऐसा था की जैसे उसे कुछ फर्क पड़ा ही नहीं था . ऐसा कैसे हो सकता था .
मैं-चाची, क्या कोई ई बात है जो मुझसे छुपाई जा रही है .
चची- मुझे कुछ नहीं छुपाना
मैं- तो बताओ वो आदमी वहां पर क्या कर रहा था
चाची - मैं क्या जानू, हो सकता है वो कोई चोर हो
मैं- वहां कौन सा खजाना गडा है
मीता- क्या आप उस आदमी को पहले से जानती थी , हो सकता है की आप उस आदमी से मिलने ही गयी हो वहां पर
चाची- ये लड़की अपनी हद में रह. तू सीधा सीधा मुझ पर लांछन लगा रही है
मैं- मीता का वो मतलब नहीं था
चाची- इसका जो भी मतलब है इसे कह दे अपनी हद में रहे, और वैसे ये है कौन .
मैं- फिलहाल तो यूँ समझ लो की ये घर जितना मेरा है उतना ही इसका .
चाची- तो मैं तुझे कैसे विश्वास दिलाऊ की मैं बस तेरे चाचा को तलाशने गयी थी वहां पर
मैं- वहीँ पर क्यों
चाची- क्योंकि ना जाने तुम लोगो को उस जमीन से क्या लगाव है जब कहीं नहीं मिलते तो वहीं पर मिलते है .
न जाने क्यों चाची की बाते मुझे जम नहीं रही थी पर फिलहाल मैंने उसे कुछ और नहीं कहा और मीता को अपने चौबारे में ले आया.
“बस यही है मेरी दुनिया. ” मैंने बिखरे कपड़ो को एक तरफ रखते हुए कहा
उसने अलमारी में पड़ी कैसेट के ढेर को देखा और बोली- तो ये शौक भी है तुमको
मैं- जब से तुमसे मिला हूँ , इन पर ध्यान गया ही नहीं मेरा.
“और ये किताबे,” उसने कहा
मैं- बस कभी कभी पढता हूँ
वो खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी
मीता- कभी सोचा नहीं था ऐसे अचानक से तेरे घर यूँ आना होगा.
मैं- तू जब चाहे यहाँ आ सकती है
मीता- क्या करुँगी मैं यहाँ आकर
मैं- क्या पता तेरे नसीब में हमेशा यही की होकर रहना हुआ तो .
मीता- मेरा नसीब इतना बुरा भी नहीं है .
मैं- रात बहुत हुई तू आराम कर सो जा यहाँ मैं बाहर हूँ, किसी चीज़ की जरुरत हो तो आवाज दे न
मीता- तू यही रह मुझे कोई दिक्कत नहीं है .
कितनी सादगी थी इस लड़की में, इसे फर्क ही नहीं पड़ता था , इसका और मेरा एक जैसा ही था , उसे देखते हुए न जाने कब नींद ने मुझे आगोश में ले लिया.
सुबह मेरी आँख खुली तो मीता नहीं थी . मैं निचे आया तो चाची ने कहा की वो सुबह सुबह ही चली गयी . उसका यूँ जाना अच्छा तो नहीं लगा पर वो ऐसी ही थी . मैं सीधा ताई के पास गया .
मैं- मुझे कुछ पूछना था तुमसे
ताई- हाँ
मैं- चाची के बारे में तुम जो भी जानती हो सब का सब बताना मुझे.
ताई-अब क्या बात हो गयी
मैं- बस यूँ ही
ताई- यूँ ही कुछ नहीं होता
मैं- मुझे वो ठीक नहीं लगती, मुझे लगता है की वो किसी से सेट है , किसी से चक्कर चल रहा है उसका.
इस से पहले की मेरी बात होती ताई का थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा और मैं हैरत से उसे देखता रह गया.