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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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“मैं उसी अर्जुन का बेटा हूँ बाबा ” मैंने कहा

उस बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा पर उसकी आँखों के चमक बहुत कुछ कह रही थी. रुद्रपुर से मैं सीधा अपनी बंजर जमीन पर आया, बावड़ी की सीढियों की मरम्मत हो चुकी थी , अन्दर से सफाई हो चुकी थी बस अब इसे पानी से भरना था . बरसात गिर पड़ती तो मैं उसके बाद इस जमीन पर ट्रक्टर चलाना चाहता था . दिमाग में लाखो ख्याल थे,पर मैं थका था मैंने पेड़ो के निचे चारपाई लगाई और कुछ देर के लिए सो गया.



मेरी नींद टूटी तो हल्का हल्का अँधेरा हुआ पड़ा था . टूटे बदन को सँभालते मैंने आँखे खोली की सामने देख कर आँखों को एक बार जैसे यकीन ही नहीं हुआ. मेरे सामने मिटटी के डोले पर मीता बैठी हुई थी.



“कहाँ थी तू, कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा तुझे और वहां मिटटी में क्यों बैठी है ” मैंने कहा

मीता- अब तूने याद ही इतनी शिद्दत से किया की मुझे आना पड़ा और ये मिटटी , जो सुख इसकी पनाह में है वो और कहाँ भला.

मैं- बात तो सही कही पर तू थी कहाँ कितने दिन हुए तुझे देखे हुए,

मीता- और भला कहाँ जाना , कभी इधर कभी उधर. चाचा की तबियत ख़राब थी उसे शहर में हॉस्पिटल में दाखिल करवाया था तो वहीँ रुकना पड़ा.

मैं- मुझे तो बता सकती थी न .

मीता- तुझे परेशानी होती.

मैं- परेशानी वो भी तुझसे , हद करती है तू भी .

मीता- और बता क्या चल रहा है

मैं- कुछ नहीं बस तेरी याद आ रही थी .

मीता- यादो का क्या है, यादे तो आणि जानी है

मैं- और तू

मीता- मैं भी यादो जैसी ही हूँ. मैंने तुझे मना किया था न रुद्रपुर में धक्के मत खाना

मैं- मेरी नियति मुझे वहां बार बार ले जाती है

वो- वहां तुझे कुछ नहीं मिलेगा.

मैं- तू तो मिली न

वो- मेरा मिलना न मिलना एक सा ही है

मैं- अभी तो मिली न मुझे तू

मीता ने झोले से एक डिब्बा निकाला और मुझे दिया.

मैं- क्या है इसमें

वो- शहर से लायी हूँ तेरे लिए.

मैने डिब्बा खोला उसमे जलेबिया थी .

“तुझे पसंद है न ” उसने कहा

मैं- तुझे कैसे मालूम

वो- उस दिन हलवाई की दूकान पर तूने जलेबी ही तो खिलाई थी .

मैं मुस्कुरा दिया और जलेबी खाने लगा.

“तेरे बिना सब सूना सूना सा लगता है ” मैंने कहा

वो- अभी तेरे साथ हूँ कौन सा बहारे आ गयी

मैं- काश तुझे बता सकता .

वो- बताने की जरुरत नहीं

मैं- तेरे गाँव में मेला लगने वाला है , मिलेगी न वहां पर

वो- तू आएगा वहां

मैं- मुझे तो आना ही है , इसी बहाने तेरे साथ वक्त गुजारने का मौका मिलेगा

वो- बड़ी हिम्मत है तुम्हारी, मेरे गाँव में मेरा हाथ पकड़ कर घूमना चाहता है

मैं- इतना तो हक़ है मेरा और फिर क्या तेरा क्या मेरा

मीता- इस दोस्ती की शर्ते भूल गया क्या तू

मैं- वो दोस्ती ही क्या जिसमे शर्ते हो

वो मुस्कुरा पड़ी. अँधेरा थोडा और घना होने लगा.

मैं- सावन शुरू हो जाए तो फिर कुछ करे इधर

मीता- दिन तो पुरे हो गए है , देखो कब झड़ी लगती है

मैं- दिल कहता है ये सावन अनोखा होगा. तू बता तेरे सितारे क्या कहते है

मीता- सितारों की क्या बात करनी, बात तो तेरी मेरी चल रही है .

मैं- तो ये बता हमारे सितारे क्या कहते है .

मीता- क्या ही कहना है कुछ दुःख तेरे, कुछ दर्द मेरे

मैं- किसी ने मुझसे कहा की दो बर्बाद मिलकर एक आबाद दुनिया बसा सकते है .

मीता- इतना आगे की क्या सोचना, आज की बात कर

मैं- मेरा आज मेरी आँखों के सामने बैठा है .

मीता- चल मैं चलती हूँ,

मैं- थोड़ी देर तो रुक , बड़े दिनों बाद तो मिली है

मीता- रात काली हो रही है

मैं- होने दे. या तो तू वादा कर की रोज मिलेगी या आज यही रुक जा

मीता-वादा तोड़ कर ही तो आई हूँ तेरे पास

मैं- रुक जा न , क्या मुझ पर भरोसा नहीं

मीता- भरोसा है तभी तो आई. खैर अब मैं जो बात पुछू तू सच बताना मुझे

मैं- तुझसे झूठ बोला क्या कभी

मीता- दादा ठाकुर से क्या पंगा हुआ तेरा

मैं- सच कहूँ तो कुछ नहीं , मतलब पंगा गाँव के लडको से हुआ था , दद्दा से एक दो बार मुलाकात हुई मेरी.

मैंने उसे शिवाले वाली घटना बताई.

मीता- ददा ठाकुर बड़ा मीठा है , तू इसके झांसे में बिलकुल मत आना, कब तेरे साथ खेल कर जायेगा तुझे मालूम भी नहीं होगा.

मैं- पर कुछ तो ऐसा है जो वो अपने कलेजे में दबाये बैठा है

मीता- सब के मन में कुछ न कुछ राज़ तो होते ही है.

मैं-तू मेरी मदद करेगी क्या मेरे सवालो के जवाब तलाश करने में

मीता- मुझे कहाँ उलझा रहा है तू.

मैं- एक तू ही तो है जिससे अपने मन की बात कर सकता हूँ मैं

मीता- ये मन बावला होता है मनीष , मन की मत सुनियो

मैं- तो किसकी सुनु

मीता- छोड़ अब ये सब, यही रुकना है तो दो चार ईंटे उठा ले, और कुछ लकडिया मैं चूल्हा सुलगाती हूँ .

मैं- कमरे में कुछ रखा होगा खाने पिने का देखते है

मैंने कमरे का दरवाजा खोला वहां पर मजदूरो के खाना बना ने का सामान था , मैंने ईंटे उठाई तब तक मीता ने कुछ लकडिया तोड़ ली.

वो- वैसे तुझे खाने में क्या पसंद है

मैं- सच कहूँ तो मीट और उसकी तरी में भीगी हुई रोटिया , खाने पीने का बहुत शौक रहा पर हालात ऐसे थे की मन को समझाना पड़ा

मीता- कोई न अबकी बार तू घर आएगा तो तेरी ये इच्छा मैं पूरी करुँगी. अभी तो इन्ही आलू से काम चला ले.

मैं- चूल्हे की आंच में बड़ी खूबसूरत दिखती है , जी करता है उम्र भर तुझे यूँ देखता रहू. हौले से जुल्फों को संवारना गजब है तेरा.

मीता- ये तारीफों के डोरे तू मुझ पर नहीं डाल पायेगा

मैं- उसकी जरुरत नहीं मुझे

मीता- थाली आगे कर रोटी परोस दू तुझे

मैं- तू बना ले फिर साथ ही खायेंगे, ये मौके फिर मिले न मिले.

मीता- जब तेरा दिल करे , तू मेरे घर आजा खाने के लिए

मैं- मेरा दुश्मन वो ताला हुआ है जो दरवाजे पर लगा है

मीता- ठीक है बाबा , आगे से कहीं भी जाउंगी तो ताला नहीं लगा कर जाउंगी पर मेरा कुछ भी सामान चोरी हुआ तो तुझ से पैसे लुंगी उसके

मैं- मेरा तो सब कुछ तेरा ही है.

बाते करते हुए हम दोनों ने खाना खाया और फिर एक दुसरे के किनारे चारपाई लगा ली . अपनी अपनी चारपाई पर लेटे हुए सितारों को देखते हुए हम हसीं रात का लुत्फ़ ले रहे थे की अचानक आई उस चीख ने हम दोनों के रोंगटे खड़े कर दिए..............................

 

TheBlackBlood

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#32

मैंने नहर को पार किया ही था की तभी एक गाड़ी मेरे सामने आकर रुकी और उस से जो उतरा, उसकी वहां होने की कोई भी उम्मीद नहीं थी मुझे. खाकी वर्दी पहने वो पुलिसवाला मुझे देखे और मैं उसे देखू.

“मनीष चौधरी तेरा ही नाम है क्या छोरे ” उसने पूछा

मैं-ये बात तो तू भी जानता ही है फिर क्यों पूछता है

पुलिसवाला- मेरा नाम दिलेर सिंह है , इस इलाके का थानेदार हूँ मैं

मैं- मुझे क्यों बता रहा है , मेरे पास तेरे लिए एक मिनट का भी समय नहीं है , मेरे रस्ते से हट

दिलेर- रस्ते तो अब टकराते ही रहेंगे हमारे- तुम्हारे, सुना है आजकल बहुत उड़ रहे हो तुम, हमने ऐसी उडती चिड़िया के पंख बहुत काटे है .

मैं- सुन थानेदार, पहली बात तो ये है की तेरा मेरा कोई लेना देना है नहीं, दूसरी बात ये की मैं चिड़िया नहीं बाज़ हूँ, मेरी आजमाइश मत करना और सब से महत्वपूर्ण बात की तू अपनी मर्जी से तो आया नहीं है किसी न किसी ने टुकड़े फेंके होंगे तेरे आगे , तू अपना देख लेना कही टुकड़े महंगे न पड़ जाये.

दिलेर- बित्ती भर का छोकरा है तू और घमंड आसमान तक का पुलिस के दो डंडे तेरा सारा जोश ठंडा कर देंगे.

मैं- तू दुआ कर की काश वो दिन आये जिस दिन तुझे ये मौका मिले.

दिलेर- मैं देख रहा हूँ मामले को मुझे जरा भी लगा की सुनार पर हुए हमले में तेरा हाथ है तो तू दुआ करना अपने लिए.

मैं- माँ चुदाये सुनार

दिलेर- एक बार वो होश में आ जाये.

मैं- सुनार की जाने दे, मैं मेले के बाद सीधा जब्बर की गर्दन पकडूँगा मेरी जमीन जो उसने कब्जाई है छुड़ाने जाऊँगा, तेरा जोर हो तो रोक लेना

दिलेर- जब्बर मेरा बहनोई है बात फिर पर्सनल हो जाएगी

मैं- बात पर्सनल हो चुकीहै , शुरू उसने की थी ख़तम मैं करूँगा. पर तू मेरे पास आया है तो मैं तुझे खाली हाथ नहीं जाने दूंगा, मैं तुझसे वादा करता हूँ मेरी जमीन शांति से मुझे वापिस दिला दे, मैं भी जबान देता हूँ जब्बर से कोई लेना देना नहीं रखूँगा,

दिलेर-जानता भी है तू क्या कह रहा है

मैं- जब्बर जानता है मैंने उस से क्या कहा था , अगर वो नहीं जानता तो तुझे मेरे पास नहीं भेजता.

मैंने बिना उसके जवाब का इंतज़ार किये अपने कदम आगे बढ़ा दिए. आज मैं हर हाल में मीता से मिलना चाहता था, मैं चाहता था की एक बार फिर से वो मेरे सितारों को पढ़े, उनसे मेरे सवालो के जवाब पूछे. पर मेरी किस्मत भी न ,एक बार फिर उसके घर पर ताला लगा था . ऐसा लगा की जैसे ये ताला ही इस जहाँ में मेरा सबसे बड़ा दुश्मन था . अब मैं कहाः तलाश करूँ उसकी.

बहुत देर उसके दरवाजे पर ही इंतज़ार किया उसका पर वो ना आई, हार कर मैंने फिर शिवाले की राह पकड़ी. वहां पर भी वो न मिली . मेले की तैयारिया बदस्तूर जारी थी . एक आदमी प्राचीर बाँध रहा था मुझे देख कर वो मेरे पास आया.

मैंने उसे मीता का हुलिया बताया और पूछा की ऐसी कोई लड़की आई थी क्या उसने मुझे मना किया .

“आप तो यहाँ तक़रीबन ही आते जाते रहते होंगे बाबा ” मैंने कहा

वो- तक़रीबन तो नहीं पर कभी कभार इधर से आ निकलता हूँ , सोलह साल से ये जगह खामोश थी, वक्त से बिछड़ी हुई अभी मेले की वजह से थोड़ी रौनक हुई है .

मैं-बाबा, आपकी तो उम्र बीती है इस शिवाले को देखते हुए,मेरे मन में एक दो बाते है क्या आप बता सकते हो

बाबा- बेटा, मैं इस गाँव का नहीं हूँ, पर इस शिवाले से मेरा नाता है, जब जब मेला लगा है मेरे काबिले के लोगो ने ही इसे सजाया है , किसी ज़माने में हमारा बहुत मान था यहाँ पर , यहां से खूब इनाम-बक्शीश लेकर जाते थे हम लोग, पर फिर वक्त बदला. सोलह साल बाद फिर से हमें बुलावा भेजा गया . काबिले से तो लोगो ने आने से मना कर दिया , पर मैं जिदंगी के उस पड़ाव पर हूँ जहाँ न जाने कब डोर कट जाये तो सोचा की एक आखिरी बार देवता के दर्शन कर लू तो आ गया.

मैं- बाबा इस शिवाले की क्या कहानी है बताओ मुझे.

बाबा- बस इतनी कहानी की जो भी यहाँ पर आया इसका होकर रह गया. इसकी लगन जो लगी फिर सब प्रीत छुटी .कोई खाली हाथ नहीं गया यहाँ से . ऐसी कोई दुआ नहीं जो यहाँ कबूल नहीं हुई. पर फिर सब रूठ गया . सब टूट गया.

मैं- क्या हुआ था बाबा ऐसा

बाबा- वो मेला , वो मेला , उस मेले में कुछ ऐसा हुआ था की जो अच्छा भी था और बुरा भी , मेले में बरसो से रीत चली आ रही थी की दोनों गाँव से एक एक लोग जोर करते थे और हारने वाले के सर को देवता को अर्पित किया जाता था, वो चौधरी अर्जुन थे जिन्होंने इस खुनी प्रथा को रोका था . उन्होंने समाज को समझाया था की देवता कभी खुश नहीं होंगे रक्त से. और उनकी बात का मान रखा भी दोनों ही गाँवो के लोगो ने, प्रथा बंद की गयी, मिठाई बांटी गयी. चारो तरफ हर्ष था उल्लास था, पर उसी रात चौधरी अर्जुन ने अपने ही वचन को तोड़ दिया. जिस चुनोती को उन्होंने दिन में नकार दिया था उसी रात उन्होंने एक दो नहीं बल्कि पुरे ग्यारह लोगो से जोर किया और उनके सर देवता को अर्पित किये.

मैंने वो नर संहार अपनी आँखों से देखा था . उस रात सावन शुरू हुआ था , पूरा रुद्रपुर रोया था , चौधरी अर्जुन रोये थे , ऐसा विलाप उनका की धरती फट जाए, मैं नहीं जानता उस रात बरसा सावन किसके लिए रोया था , चौधरी के लिए , उन ग्यारह लोगो के लिए या फिर देवता के लिए पर जो भी था वो ठीक नहीं था .

मैं- आप के कबीले वालो ने इस बार आने से मना क्यों कर दिया.

बाबा- जैसा मैंने बताया मेले की तयारी से लेकर देवता के श्रृंगार तक की जिम्मेवारी हमारी रही है, उस दिन क्या मालूम क्या हुआ, देवता का श्रृंगार चोरी हो गया , मेरे कबीले के कुछ लोगो को शक के बिनाह पर मार दिया गया .

मैं- पर मैंने सुना की काफी सामान मिल गया था वापिस, अभी भी तो देवता के कमरे में पड़ा है कितना सारा हीरा-जवाहरात

मेरी बात सुनकर उस बाबा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी .

मैं- क्या हुआ बाबा क्या कुछ गलत कहा मैंने

बाबा- देवता को भला इन चीजों का क्या मोह

मैं- तो क्या ये चीजे श्रृंगार का हिस्सा नहीं थी .

बाबा- तुमने देवता को देखा ही नहीं है फिर

मैं- तुम दिखा दो फिर बाबा.

बाबा- अर्जुन के बेटे ने कपाट खोले है , देवता की मर्जी होगी तो मिलेंगे उस से .

मैं- बाबा आप अर्जुन सिंह को जानते थे न,

बाबा- उनको सब जानते थे

मैं- कैसे थे वो क्रूर, अहंकारी , घमंडी जमींदार

बाबा- उसके बारे में पूछना है तो मुझसे मत पूछ उनसे पूछ जिनका बेटा था वो. उन किसानो से पूछ जिनके बैल बीमार होने पर खुद के कंधो से हल जोता था उसने. उसके बारे में मुझसे मत पूछ इन हवाओ से पूछ ये तुझे यहाँ तक ले आई है तो उसके किस्से भी बता देंगे.

मैं- बाबा क्बाया नाम बताया था आपने अपने कबीले का

बाबा- यहाँ से उत्तर में पन्द्रह कोस दूर , कानबेलियो का डेरा है हमारा

मैं-अलख के बारे में कुछ जानते है क्या आप

बाबा ने घुर कर मुझे देखा और बोले- काम बहुत बाकी है मेरा , समय रहते निपटाना है मुझे

मैं- किसी ने मुझसे कहा है की वो मुझे अलख के पार मिलेगी.

बाबा- अलख देवता की आग है जो बरसो पहले बुझा दी गयी .

मैं- किसने बुझाई

बाबा- चौधरी अर्जुन ने


मैं वहां से उठा और अपने रस्ते पर चल दिया, कुछ दूर चला ही था की मैं पलटा और कहा- ......................................
Manish ke tewar to sach me asmaan chhu rahe hain aaj kal. Aakhir achanak se uske bartaav me itna badlaav kaise ho gaya hai jabki shuruaat me uska swabhaav aisa nahi tha. Inspector se seedhe muh baat na karna maujooda waqt me uchit nahi tha, tab to shayad bilkul bhi nahi jab ye pata chal gaya ho ki Jabbar aur inspector ka aapas me gahra rishta ho. Ek tarah se Manish ne us police wale se bhi bair mol le liya hai :dazed:
Manish ko meeta ki zarurat hai lekin har baar ki tarah wo kahi gayab hai. Yu to uska kirdaar shuruaat se hi rahasyamayi tha kintu maujooda waqt me uska is tarah gayab hona yakeenan kisi khaas sabab se hoga. Udhar mele ki taiyariya ho rahi hain. Us buddhe se Manish ko itna to pata chala ki uska baap Arjun Singh ne ateet me kya kiya tha aur log uske bare kya kahte the. Sawal hai ki agar Arjun Singh itna hi achha tha ki usne manav Bali dena band karwa diya tha to usi raat usne 11 logo ki berahmi se hatya kyo ki thi? :hmm2:

Raaz gahre hain aur sawaal bhi kayi saare hain. Well dekhte hain aage kya hota hai :waiting:
 

Ouseph

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शानदार एवं रोमांस से परिपूर्ण अपडेट। मीता और मनीष की ये रहस्यमय बातें दिल में एक अलग ही गुदगुदी पीड़ा करती हैं। ये मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत पसंद है। इस प्रकार की प्रस्तुति के लिए बहुत धन्यवाद।
 

A.A.G.

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#24

“मनीष, उधर क्या कर रहा है , इधर आ मेरे पास ” पिछे से ताई ने मुझे आवाज लगाईं

इसे भी अभी ही आना था .

“आ रहा हूँ दो मिनट में ” मैंने जवाब दिया

ताई- मैंने कहा न अभी के अभी आ.

खीजते हुए मैं ताई के पास गया .

मैं- क्या हुआ

ताई- सुनार से क्या बात कर रहा था तू.

मैं- अब तुम तो मुझे कुछ बता नहीं रही तो मैंने सोचा उसी से पूछ लू

मेरी बात सुनकर ताई को गुस्सा आ गया .

ताई- जी तो करता है दो चार थप्पड़ लगा दू तुझे , पर मेरा बस नहीं चलता

मैं- बस तो मेरा भी कहाँ चलता है ,

ताई- सुनार से दूर रह,

मैं- नहीं जाऊँगा, पर तुम्हे बताना होगा ये किसका है

ताई- मैं जानती हूँ मेरा तुझ पर कोई जोर नहीं है और तू मेरी सुनेगा भी नहीं

मैं- एक मामूली धागे के लिए इतनी पंचायत कर रही हो

ताई- आम और खास कुछ नहीं होता इस दुनिया में . खाना बना दिया है खा लेना मैं खेत पर जा रही हूँ

मैं- सुन तो सही मेरी बात.

ताई- तू सुन मेरी बात , देवर जी ने तेरा बड़े शहर में पढाई लिखाई का इंतजाम कर दिया है तू वहां चला जा, मेरी ये बात मान जा. तेरी मन चाही कर दूंगी मैं, तू कहे तो तेरे साथ भी चल पडूँगी

ताई ने सीधा सीधा कह दिया की वो चूत देने को तैयार है मुझे.

“मैं तुझे चाहता हूँ , तुजसे प्यार करता हूँ पर ये हमारे बीच कोई सौदा नहीं है , मैं तेरा इस्तेमाल नहीं करना चाहता . मैं यही रहूँगा ये धरती मेरी है इसे छोड़ कर कहाँ जाऊंगा मैं. ” मैंने ताई से कहा



“मैं जा रही हूँ ” ताई ने कहा और पीठ मोड़ कर चली गयी .

“दोपहर में खेतो पर ही मिलते है “ मैंने कहा

जितना मैं सोच सकता था मैंने उस धागे में लटके हीरे के बारे में सोचा. वो खास था ये तो मैं जानता था पर जबसे उसने रंग बदला था , उसकी वो गर्माहट मेरे दिमाग में चढ़ गयी थी . मैं मीता से मिलना चाहता था पर उसकी हिदायत थी की वो खुद ही मिलेगी, मैं रुद्रपुर न जाऊ. तो अब मैं क्या करू.

“अरे मनीष वहां खड़ा क्या कर रहा है , इधर आ जरा ” किसी ने मुझे पुकारा तो मेरा ध्यान भंग हुआ .मैंने देखा ये रीना की मामी खड़ी थी .

मैं- हाँ अभी आया

मैं उसके पास गया .

“क्या हुआ ” मैंने पूछा

मामी- सबके घर बिजली आ रही है हमारे घर नहीं आ रही देख जरा क्या हुआ है .

मैं- हाँ देखते है .

मैं रीना के घर आ गया . देखा की एक जगह दोनों तार आपस में उलझ गए थे , जिसकी वजह से शार्ट सर्किट हुआ पड़ा था .

मैं- क्या काकी, ये तार कितने पुराने हुए है अब तो बदल दो इन्हें

काकी- तेरे काका से कह कह कर थक गयी हूँ मैं , पूरी छुट्टी इधर उधर टाइम पास करके ही बिता देते है अब आयेंगे तीन चार महीने में तभी कहूँगी.

मैं-काका कम से कम आ तो जाते है , मेरे पिता जो एक बार ड्यूटी गए लौटे ही नहीं .

काकी - तू क्यों उदास होता है , हम सब भी तो तेरा ही परिवार है न .

मैं- काकी वैसे फौज में से कितने दिनों में छुट्टी मिलती है

काकी- कभी तीन चार महीने तो कभी छ महीने में तो आ ही जाते है .

तभी मेरे दिमाग में वो बात आई , जिसपर मुझे शायद सब से पहले गौर करना चाहिए था .

मैं- काकी, मुझे काका से बात करनी है कुछ पूछना है . कैसे बात हो उनसे .

काकी- बात कहा होती है बस चिट्ठी ही आती है ,

ये बात सुनकर मुझे बड़ी हताशा हुई . पर मेरे दिमाग में जो बात आई थी उसने मेरे लिए एक रास्ता खोल दिया था. मैं वहां से चलने को ही था की तभी काकी बोल पड़ी- एक मिनट, याद आया कभी कभी पोस्ट आफिस में फ़ोन आता है तेरे काका का ,

मैं बता नहीं सकता मुझे कितनी ख़ुशी हुई थी ये बात सुनकर . मैं लगभग दौड़ ही पड़ा था .मैं सीधा पहुंचा पोस्टमॉस्टर के पास .

“बाबु साहब एक मदद चाहिए आप से ” मैंने कहा

उसने बात पूछी .

मैंने उसे बताई.

“कभी कभी फौजियों के फ़ोन तो आते है पर किस नम्बर से आते है ऐसा बताने की सुविधा तो अपने पास है नहीं ” उसने कहा

मैं- बाबु साहब, तो कैसे मालूम हो मुझे

बाबू- भैया,फौजियों के बारे में तो जानकारी फौज के सेंटर पर ही मिल सकती है .

रीना का मामा कुछ दिन पहले ही छुट्टी काट कर गया था. काश मुझे ये विचार पहले आया होता तो पर तभी मेरा ध्यान गया की हमारे गाँव में कई फौजी और है , शायद वो मेरी मदद कर सके . पूरा दिन मैंने इसी गुना भाग में लगा दिया पर मेरी बदकिस्मती देखो उनमे से एक भी छुट्टी नहीं आया हुआ था . पर एक बुजुर्ग बाबा ने मुझे ये जरूर बताया की जहाँ से कोई फौजी भर्ती होता है वहां के सेंटर पर उसका रिकॉर्ड जरुर रखते है . मेरे लिए ये भी बड़ी राहत की बात थी की चलो कुछ तो मिला.

सांझ ढले एक बार फिर मैं रीना के साथ बैठा था पनघट पर .

“मैं अपने पिता को ढूंढने जाऊंगा ” मैंने कहा .

रीना- पर कहाँ जायेगा तू .

मैंने उसे अपनी योजना बताई तो वो भी खुश हो गयी .

रीना- तुझे वो मिल जायेंगे इस से बढ़िया भला और क्या होगा. पर तू फिर उन्हें यही पर ले आना, कितने साल हो गए है कहना की अब घर चलो.

मैं- तुझे बता नहीं सकता की क्या या कहना है , बस एक बार वो मिल जाए मुझे.

रीना- समझती हूँ मैं,

मैं- ये बता तू मुझे शहर क्यों नहीं लेकर गयी

रीना- तेरी चाची ने कहा की तू घर पर नहीं है .

मैं- पर मैं तो घर पर ही था उसने ऐसा क्यों कहा

रीना- वो जाने. उस से बात करना ही सजा है , पता नहीं किस बात का घमंड रहता है उसे.

मैं- छोड़ न उसको , क्या बात करनी उसकी

रीना- आज गाँव में न सांग दिखाने वाले आये है , तू आएगा रात को .

मैं- आ जाऊंगा

रीना- न जाने क्यों आजकल तेरे साथ वक्त बिताना अच्छा लगने लगा है .

मैं- इसमें क्या नया है , बचपन से हम साथ ही वक्त बिताते आये है .वैसे तू कल मेरे साथ बैंक चलना तुझे कुछ दिखाना है

रीना- ऐसा क्या है बैंक में


मैं- कुछ ऐसा जिसे देख कर तेरे होश उड़ जायेंगे .
nice update..!!
yeh tai sab janti hai lekin batayegi nahi..ab foujiyon se jankari lega manish..!! reena aur manisha ka bond bhi zabardast hai..lekin iss chachi ka kuchh samajh nahi aata..!!
 

Studxyz

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आज तो फौजी भाई दिल खुश हो गया मीता व् मनीष की खट्टी मिट्ठी दिल लगी भरी गुफ्तगू पढ़ कर ऐसी ज़िंदगी के रंगों से भरपूर लेखनी ऐसा अहसास बिरला ही पढ़ने को मिलता है

अब आखिर में किस की गांड फ़टी जो चीखने की आवाज़ आयी कहीं कोई ताज़ी चुदी ताई को तो नहीं टपका गया ?
 
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