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“कहने को तो ये दुनिया मेरे कदमो में है , पर पीठ पीछे लोगो की बाते मेरे कलेजे को छलनी करती है ,आत्मा पर उस बोझ का भार लेकर जीना बहुत मुश्किल है , ” ददा ठाकुर ने कहा .
मैं- तुम मेरे पिता को कैसे जानते थे , क्या तुम दोनों दोस्त थे .
ददा- दोस्त और हम, तुम्हे भला ऐसा क्यों लगता है
मैं- क्योंकि तुम्हारा स्वभाव मेरे प्रति नरम है ,
ददा- छोड़ो इन बातो को ,
दद्दा ठाकुर वहां से उठा और बाहर को आगया . मैंने उसके पीछे पीछे आया.
“मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ, देवता को उसका श्रृंगार वापिस मिलना ही चाहिए ” मैंने कहा .
दद्दा की गोल आँखे ऊपर से निचे को मुझे जैसे स्कैन कर रही थी .
मैं- मेरा यकींन करो , मेरी भी कुछ उलझाने है जो तुम्हारी उलझनो संग उलझी है.
ददा- मेरे जाने का समय हो गया है , पर मैं इतना जरुर कहूँगा की तुम जितना हो सके रुद्रपुर से दूर रहो. तुम्हे लगता है तुम अर्जुन के बेटे हो , इसलिए खास हो पर ये दुनिया गोल है .वो एक दौर था जिसमे अर्जुन था वो दौर बीत गया . वक्त की धरा मुड रही है, जितना यहाँ से दूर रहोगे सुखी रहोगे, रही बात देवता और मेरी, देवता जानता है मेरे सच को.
ददा ठाकुर के जाने के बाद मैं वहीँ पर बैठा रहा सोचता रहा की इस गोल दुनिया में मैं उस सच के बहुत करीब हूँ, जिसके महीन धागे से ये सब एक दुसरे से उलझे है , इन तमाम लोगो की जिन्दगी में एक ही नाम बड़ा महत्वपूर्ण था अर्जुन चौधरी. पर आखिर क्या कहानी थी अर्जुन सिंह की.
आते आते मुझे थोड़ी देर हो गयी थी बिना बात के, खेत पर ताई के सिवा और कोई नहीं था . जब मैं उसके पास पहुंचा तो वो हाथ मुह धो रही थी .
मैं- अभी तक हो यहाँ
ताई- हाँ, देर हो गयी अच्छा हुआ तू आ गया साथ ही चलते है घर पर .
मैं- चलेंगे थोडा रुक कर. बैठते है थोडा.
मैं ताई के पास ही बैठ गया .
“चाचा नहीं दिख रहा आजकल कहीं गया है क्या ” मैंने कहा .
ताई- क्या मालूम, मेरी बातचीत कम ही होती है उस से
मैं- दोनों पति-पत्नी ही चूतिये है .
ताई- ऐसा मत बोल
मैं- सुनार की कोई खबर आई क्या, जिन्दा है या निकल लिया
ताई- अभी कुछ खबर नहीं, सुना है बड़ा गहरा घाव है उसका.
मैं- तुझे क्या लगता है किसने हमला किया होगा उस पर
ताई- मैं क्या जानू, मैं तो तेरे साथ थी न.
“मैंने सोचा है की रुद्रपुर के शिवाले में कुछ योगदान दूँ उसे दुबारा सवांरने में मदद करूँ.” मैंने कहा
ताई- और वो तेरी मदद लेंगे, तूने सोचा भी कैसे.
मैं- बाप के कर्जे बेटे को ही चुकाने पड़ते है . जो हुआ मैं उसे वापिस तो नहीं कर सकता पर एक नयी शुरुआत तो कर सकते है न .
ताई- इन पचड़ो से दूर रह , सुनहरा कल तेरे सामने है , अपनी विरासत को संभाल .
मैं- मैंने चाची से वादा किया है की सब उसका ही रहेगा सिवाय इस बंजर जमीन के, मैंने मेरे लिए इसे ही चुना है .
ताई-ये सब बेकार की बाते है ,कुछ तो हसरत होगी तुम्हारी
मैं- सच कहूँ तो मेरी हसरत तुम हो .
ताई- मुझमे ऐसा क्या है
“मुझे बताने की जरुरत नहीं ” मैंने कहा
ताई- तो क्या रोकता है तुमको
मैं- वो बारीक़ डोर, जो टूटी तो सब बदल जाएगा.
ताई- फिर ये बेकरारी क्यों, ये हसरत क्यों
मैं- शायद मेरे नसीब का लेख है ये
ताई- तो फिर इसे नसीब पर ही छोड़ दो
मैं- मेरे नसीब में कुछ नहीं लिखा सिवाय बर्बादी के. मेरा सुनहरा कल कभी नहीं आयेगा. मेरे कल में बहते रक्त और दर्द के सिवा कुछ नहीं .
ताई- निष्ठा सच्ची हो तो लेख खुद लिख लेता है इन्सान
मैं- मेरे सितारे ये नहीं मानते.
ताई- तो तू भी मत मान उनकी
मैं- आखिर ऐसा क्या है उस शिवाले में , क्यों खींचता है वो मुझे अपनी और. मेरा नसीब क्यों नहीं मानता की ये कहानी मनीष की है ,
ताई- बेशक ये तेरी कहानी है , इसका हर पन्ना तुझे खुद ही लिखना है.
हल्का हल्का अँधेरा होने लगा था पर दिल की गहराई में एक लौ जल रही थी . उस रोशन होती रात में मैं दोराहे पर खड़ा था , दिल कह रहा था की ये हुस्न जो तेरे सामने है तेरे आगोश में पिघलने को बेताब है, इस हुस्न के रस को अभी पी जा. और दूसरी तरफ मेरा दिमाग था जो कह रहा था की पतन के इस रस्ते पर तू बढ़ तो जायेगा पर जब तू लौटने को देखेगा तो कोई राह नहीं मिलेगी तुझे.
मैं- कुछ नहीं घर चलते है .
मैं ताई को लेकर घर आ गया . गर्मी बहुत थी ऊपर से बिजली भी नहीं थी तो मैं बाहर नीम के निचे चबूतरे पर बैठ गया . की तभी रीना भी आ निकली मेरी तरफ .
मैं- कहाँ जा रही है .
रीना- बस तेरे पास ही आ रही थी .
मैं- आजा बैठ
रीना- आज जब मैं पानी भरने गयी तो वहां पर कुछ औरते कह रही थी की तूने हमला किया है सुनार पर .
मैं- पर तू तो सच जानती है न
रीना- पर मुझे बुरा लगा , गाँव में तेरे बारे में तरह तरह की बाते हो रही है .
मैं- होने दे अपने को क्या फर्क पड़ता है
रीना- अच्छी भली जिंदगी चल रही थी न जाने किसकी नजर लगी है , किस बुरी घडी में तू उलझ गया इस झमेले में .
मैं- सब सही हो जायेगा, तू फ़िक्र मत कर .
रीना- एक तेरी ही तो फ़िक्र है मुझे
मैं- तू साथ है मेरे भला मुझे क्या चिंता , वैसे भी मैंने तुझसे कह तो दिया है की मैं ऐसा वैसा कुछ नहीं करूँगा.
रीना- जानती हूँ पर फिर भी लोगो की बाते
मैं- लोगो का काम है कुछ न कुछ कहना , वो अपना काम करेंगे हम अपना काम करते रहेंगे.
हम बात कर ही रहे थे की तभी दो बाते एक साथ हुई, एक तो बिजली आ गयी और दूसरा ताई ने मुझे आवाज लगाई खाना खाने के लिए.
मैं- रीना तू भी चल
रीना- न बाबा न, थोड़ी देर पहले ही खाना खाया था मैंने
मैं- चल फिर मिलते है .
मैं घर आया . ताई ने खाना परोस रखा था .
“मैं जरा नहा कर आ रही हूँ तू खाना खा ले तब तक. ” ताई ने कहा
मैंने हाँ में सर हिलाया. पर मेरी नजर ताई की मटकती गांड से हट ही नहीं रही थी . मैंने दरवाजे की कुण्डी लगाई और बाथरूम की तरफ चल दिया. जिसे करने को मिअने अब तक खुद को रोका था वो आज शायद होकर ही रहना था.
मैंने देखा बाथरूम का दरवाजा बंद नहीं था , ताई की पीठ मेरी तरफ थी , ब्रा-पेंटी में ताई का गदराया बदन , उसने बस अभी अभी ही कपडे उतारे होंगे. मैंने आगे बढ़ कर ताई को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके सीने को मसलते हुए ताई की गर्दन को चूमने लगा.
एक पल को ताई चोंकी पर मेरे अहसास को महसूस करते ही वो नार्मल हो गयी.
ताई- क्या कर रहा है
मैं- वाही जो मुझे पहले ही कर देना चाहिए था .
ताई- क्या कर देना चाहिए था तुझे पहले ही
मैं- तेरी ले लेनी चाहिए थी .
ताई- क्या लेनी थी
मैं- चूत, आज चाहे कुछ भी हो जाए बस तू और मैं . ये रात गवाह बनेगी हमारे प्यार की .
मैंने ताई की ब्रा को उतार कर फेंक दिया.
“कहने को तो ये दुनिया मेरे कदमो में है , पर पीठ पीछे लोगो की बाते मेरे कलेजे को छलनी करती है ,आत्मा पर उस बोझ का भार लेकर जीना बहुत मुश्किल है , ” ददा ठाकुर ने कहा .
मैं- तुम मेरे पिता को कैसे जानते थे , क्या तुम दोनों दोस्त थे .
ददा- दोस्त और हम, तुम्हे भला ऐसा क्यों लगता है
मैं- क्योंकि तुम्हारा स्वभाव मेरे प्रति नरम है ,
ददा- छोड़ो इन बातो को ,
दद्दा ठाकुर वहां से उठा और बाहर को आगया . मैंने उसके पीछे पीछे आया.
“मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ, देवता को उसका श्रृंगार वापिस मिलना ही चाहिए ” मैंने कहा .
दद्दा की गोल आँखे ऊपर से निचे को मुझे जैसे स्कैन कर रही थी .
मैं- मेरा यकींन करो , मेरी भी कुछ उलझाने है जो तुम्हारी उलझनो संग उलझी है.
ददा- मेरे जाने का समय हो गया है , पर मैं इतना जरुर कहूँगा की तुम जितना हो सके रुद्रपुर से दूर रहो. तुम्हे लगता है तुम अर्जुन के बेटे हो , इसलिए खास हो पर ये दुनिया गोल है .वो एक दौर था जिसमे अर्जुन था वो दौर बीत गया . वक्त की धरा मुड रही है, जितना यहाँ से दूर रहोगे सुखी रहोगे, रही बात देवता और मेरी, देवता जानता है मेरे सच को.
ददा ठाकुर के जाने के बाद मैं वहीँ पर बैठा रहा सोचता रहा की इस गोल दुनिया में मैं उस सच के बहुत करीब हूँ, जिसके महीन धागे से ये सब एक दुसरे से उलझे है , इन तमाम लोगो की जिन्दगी में एक ही नाम बड़ा महत्वपूर्ण था अर्जुन चौधरी. पर आखिर क्या कहानी थी अर्जुन सिंह की.
आते आते मुझे थोड़ी देर हो गयी थी बिना बात के, खेत पर ताई के सिवा और कोई नहीं था . जब मैं उसके पास पहुंचा तो वो हाथ मुह धो रही थी .
मैं- अभी तक हो यहाँ
ताई- हाँ, देर हो गयी अच्छा हुआ तू आ गया साथ ही चलते है घर पर .
मैं- चलेंगे थोडा रुक कर. बैठते है थोडा.
मैं ताई के पास ही बैठ गया .
“चाचा नहीं दिख रहा आजकल कहीं गया है क्या ” मैंने कहा .
ताई- क्या मालूम, मेरी बातचीत कम ही होती है उस से
मैं- दोनों पति-पत्नी ही चूतिये है .
ताई- ऐसा मत बोल
मैं- सुनार की कोई खबर आई क्या, जिन्दा है या निकल लिया
ताई- अभी कुछ खबर नहीं, सुना है बड़ा गहरा घाव है उसका.
मैं- तुझे क्या लगता है किसने हमला किया होगा उस पर
ताई- मैं क्या जानू, मैं तो तेरे साथ थी न.
“मैंने सोचा है की रुद्रपुर के शिवाले में कुछ योगदान दूँ उसे दुबारा सवांरने में मदद करूँ.” मैंने कहा
ताई- और वो तेरी मदद लेंगे, तूने सोचा भी कैसे.
मैं- बाप के कर्जे बेटे को ही चुकाने पड़ते है . जो हुआ मैं उसे वापिस तो नहीं कर सकता पर एक नयी शुरुआत तो कर सकते है न .
ताई- इन पचड़ो से दूर रह , सुनहरा कल तेरे सामने है , अपनी विरासत को संभाल .
मैं- मैंने चाची से वादा किया है की सब उसका ही रहेगा सिवाय इस बंजर जमीन के, मैंने मेरे लिए इसे ही चुना है .
ताई-ये सब बेकार की बाते है ,कुछ तो हसरत होगी तुम्हारी
मैं- सच कहूँ तो मेरी हसरत तुम हो .
ताई- मुझमे ऐसा क्या है
“मुझे बताने की जरुरत नहीं ” मैंने कहा
ताई- तो क्या रोकता है तुमको
मैं- वो बारीक़ डोर, जो टूटी तो सब बदल जाएगा.
ताई- फिर ये बेकरारी क्यों, ये हसरत क्यों
मैं- शायद मेरे नसीब का लेख है ये
ताई- तो फिर इसे नसीब पर ही छोड़ दो
मैं- मेरे नसीब में कुछ नहीं लिखा सिवाय बर्बादी के. मेरा सुनहरा कल कभी नहीं आयेगा. मेरे कल में बहते रक्त और दर्द के सिवा कुछ नहीं .
ताई- निष्ठा सच्ची हो तो लेख खुद लिख लेता है इन्सान
मैं- मेरे सितारे ये नहीं मानते.
ताई- तो तू भी मत मान उनकी
मैं- आखिर ऐसा क्या है उस शिवाले में , क्यों खींचता है वो मुझे अपनी और. मेरा नसीब क्यों नहीं मानता की ये कहानी मनीष की है ,
ताई- बेशक ये तेरी कहानी है , इसका हर पन्ना तुझे खुद ही लिखना है.
हल्का हल्का अँधेरा होने लगा था पर दिल की गहराई में एक लौ जल रही थी . उस रोशन होती रात में मैं दोराहे पर खड़ा था , दिल कह रहा था की ये हुस्न जो तेरे सामने है तेरे आगोश में पिघलने को बेताब है, इस हुस्न के रस को अभी पी जा. और दूसरी तरफ मेरा दिमाग था जो कह रहा था की पतन के इस रस्ते पर तू बढ़ तो जायेगा पर जब तू लौटने को देखेगा तो कोई राह नहीं मिलेगी तुझे.
मैं- कुछ नहीं घर चलते है .
मैं ताई को लेकर घर आ गया . गर्मी बहुत थी ऊपर से बिजली भी नहीं थी तो मैं बाहर नीम के निचे चबूतरे पर बैठ गया . की तभी रीना भी आ निकली मेरी तरफ .
मैं- कहाँ जा रही है .
रीना- बस तेरे पास ही आ रही थी .
मैं- आजा बैठ
रीना- आज जब मैं पानी भरने गयी तो वहां पर कुछ औरते कह रही थी की तूने हमला किया है सुनार पर .
मैं- पर तू तो सच जानती है न
रीना- पर मुझे बुरा लगा , गाँव में तेरे बारे में तरह तरह की बाते हो रही है .
मैं- होने दे अपने को क्या फर्क पड़ता है
रीना- अच्छी भली जिंदगी चल रही थी न जाने किसकी नजर लगी है , किस बुरी घडी में तू उलझ गया इस झमेले में .
मैं- सब सही हो जायेगा, तू फ़िक्र मत कर .
रीना- एक तेरी ही तो फ़िक्र है मुझे
मैं- तू साथ है मेरे भला मुझे क्या चिंता , वैसे भी मैंने तुझसे कह तो दिया है की मैं ऐसा वैसा कुछ नहीं करूँगा.
रीना- जानती हूँ पर फिर भी लोगो की बाते
मैं- लोगो का काम है कुछ न कुछ कहना , वो अपना काम करेंगे हम अपना काम करते रहेंगे.
हम बात कर ही रहे थे की तभी दो बाते एक साथ हुई, एक तो बिजली आ गयी और दूसरा ताई ने मुझे आवाज लगाई खाना खाने के लिए.
मैं- रीना तू भी चल
रीना- न बाबा न, थोड़ी देर पहले ही खाना खाया था मैंने
मैं- चल फिर मिलते है .
मैं घर आया . ताई ने खाना परोस रखा था .
“मैं जरा नहा कर आ रही हूँ तू खाना खा ले तब तक. ” ताई ने कहा
मैंने हाँ में सर हिलाया. पर मेरी नजर ताई की मटकती गांड से हट ही नहीं रही थी . मैंने दरवाजे की कुण्डी लगाई और बाथरूम की तरफ चल दिया. जिसे करने को मिअने अब तक खुद को रोका था वो आज शायद होकर ही रहना था.
मैंने देखा बाथरूम का दरवाजा बंद नहीं था , ताई की पीठ मेरी तरफ थी , ब्रा-पेंटी में ताई का गदराया बदन , उसने बस अभी अभी ही कपडे उतारे होंगे. मैंने आगे बढ़ कर ताई को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके सीने को मसलते हुए ताई की गर्दन को चूमने लगा.
एक पल को ताई चोंकी पर मेरे अहसास को महसूस करते ही वो नार्मल हो गयी.
ताई- क्या कर रहा है
मैं- वाही जो मुझे पहले ही कर देना चाहिए था .
ताई- क्या कर देना चाहिए था तुझे पहले ही
मैं- तेरी ले लेनी चाहिए थी .
ताई- क्या लेनी थी
मैं- चूत, आज चाहे कुछ भी हो जाए बस तू और मैं . ये रात गवाह बनेगी हमारे प्यार की .
मैंने ताई की ब्रा को उतार कर फेंक दिया.