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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#25



“मेरे होश तो उसी दिन से उड़े हुए है जब से माँ का संदेसा आया है , मैं तुझे बता नहीं सकती क्या हाल है तब से मेरा ”उसने कहा

मैं- तू उसकी चिंता मत कर , जब तक मैं हूँ तुझे कहीं जाने नहीं दूंगा मैं

रीना-पर मुझे जाना होगा , मेरी मजबुरिया है

मैं- कोई मज़बूरी नहीं तेरी , तू मत सोच इस बारे में . तेरी माँ जब यहाँ आएगी मैं बात कर लूँगा उनसे.

रीना- भला क्या बात करेगा तू उससे

मैं- वो तू मुझ पर छोड़ दे.

रीना- बातो में तो तुझसे कोई नहीं जीत सकता . पर आजकल तू किन बातो में उलझा हुआ है तू मुझसे ही छिपाने लगा है .

मैं- जिंदगी की किताब के बिखरे पन्ने तेरे हाथो में है और तू कहती है की तुझसे छिपाने लगा हूँ, इल्जाम लगाना है तो कुछ ढंग का तो लगा न .

रीना- फिलहाल तो मैं चलती हूँ , रात को चोबारे की छत पर मिलेंगे

मैं - तू चल मैं आता हु थोड़ी देर में .

ठंडी पवन संग लहराती चुन्नी उसकी, हमेशा वो बड़े सलीके से कपडे पहनती थी . उसकी बात ही निराली थी . जब वो साथ होती थी मुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं होती थी , मुझे मुझसे जायदा वो समझती थी . पर आज फिर उसने वो बात छेड़ी थी जिसे सुनकर मैं घबरा गया था . मेरे सीने में तेज दर्द हो गया था जुदाई की बात सोच कर. वो कैसे हालात होंगे .

“हे नियति, ये जुल्म मत करना मेरे जो थे सब तो तूने छीन लिए कम से कम इसे तो मेरे भाग में रहने देना .” मैंने देवता के आगे माथा झुकाया.

घर पर आया तो देखा की ताई आँगन में ही बैठी थी.

“आया नहीं तू, ” ताई ने कहा

मैं- किसी काम में उलझा था

ताई- तेरी ये उलझने , न जाने किस उधेड़बुन में लगा रहता है

मैं-तुम तो कुछ बताती नहीं , तो मैं तो कोशिश करूँगा ही न .

ताई- मेरे पास छिपाने को भी तो कुछ नहीं

मैं- जानता हु की चाची ने सब कुछ दबा लिया है , पर तूने कभी अपना हिस्सा क्यों नहीं माँगा, तू इस घर की बड़ी बहु है . तूने ये राह क्यों चुनी .

ताई- शायद यही मेरी नियति थी . वैसे भी इन्सान के साथ कुछ नहीं जाता, राजा हो या रंक सबकी दो मुट्ठी राख ही बनती है, सेठ हो या मजदुर शमशान में साथ ही होते है सब.

मैं- फिर भी तूने माँगा क्यों नहीं हक़ जो तेरा है तुझे मिलना चाहिए. मैंने सोचा है कल चाचा से बात करूँगा.

ताई- तुझे क्या लगता है की मेरी क्या चाहत है . नियति ने जो लिखा है वो होता है, नियति के विधान को आज तक कोई बदल पाया है क्या.

मैं- पर तुझे तेरा सुख कहाँ मिला.

ताई- मेरा सुख मेरे सामने बैठा है . दुनिया मुझे पीठ पीछे न जाने क्या क्या कहती है निपूती, बाँझ पर मैंने कभी किसी की बात दिल पर नहीं ली क्योंकि मेरा वंश, मेरा कुल मेरे सामने बैठा है , हम हमेशा तेरे क्षमाप्रार्थी रहेंगे , तेरी परवरिश हम उस तरह से नहीं कर पाए जैसी होनी चाहिए थी .

“ये धन, दौलत, ये जमीने लेकर मैं करती भी क्या . हमारी सबसे अनमोल दौलत तो तुम हो , ” ताई ने कहा

मैं- फिर भी मैं चाहता हूँ

“मुझे कुछ नहीं चाहिए ,” ताई ने मेरी बात काट दी.

फिर मैंने भी कुछ नहीं कहा . ताई अपना काम करने लगी, मैं चारपाई पर पड़े पड़े बस उसे ही निहारता रहा . इस औरत से मेरा न जाने ये कैसा रिश्ता था , मैं इसे माँ के रूप में भी देखता था, अपने मन की बात भी इस से करता था किसी दोस्त के जैसे और इसके साथ सोने की हसरत भी थी मेरी.

रात को एक बार फिर मैं रीना के साथ चोबारे की छत पर बैठा था .

“ये चाँद कितना खूबसूरत है न ” उसने कहा

मैं- हाँ , पर तुमसे जायदा नहीं

रीना- हाँ, बाबा हाँ, वैसे ये कुछ जायदा ही तारीफ नहीं कर दी तुमने .

मैं- सच ही तो कहा , तेरे रोशन चेहरे के आगे ऐसे सौ चाँद भी बेकार है .

रीना- बता मुझको तुझे कैसी मैं लगती हूँ .

मैं- कैसे बताऊ.

रीना- जैसे बताते है वैसे बता.

मैं- तू क्या सुनना चाहती है मुझसे

रीना- जो तू कहना नहीं चाहता

मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- ये चाँद, ये रात , ये तेरा साथ , ये तेरी छुअन , ये होंठो की कंपकंपाहट , ये तेरी बिखरी जुल्फे,लहराता आँचल, ये तेरी शोर मचाती धड़कने ये सब तो जानती है ,

रीना- ये जानती है तो मुझसे क्यों नहीं कहती

मैं- कहने की जरुरत ही नहीं

रीना- हर पल हर लम्हा , हर घडी मैं बेक़रार क्यों रहती हूँ , आजकल बिना बात मैं हंसती रहती हूँ, खुद से बाते करती रहती हूँ .

मैं- तू खुद को जानने लगी है , पहचानने लगी है खुद को .

रीना- और मैं क्या हूँ.

मैं-सावन की पहली बारिश है तू, सौंधी मिटटी को पहली खुशबु है तू, अलसाई भोर की ओस है तू. मैं कुछ कहूँ या न कहू मेरा ताज है तू

वो मेरे पास आई , उसकी गर्म सांसे मेरे होंठो पर गिर रही थी , उसके बदन की तपिश को महसूस किया मैंने. उसने हौले से मेरे माथे को चूमा और फिर अलग हो गयी.

“काश ये रात थम जाये यु ही ” उसने कहा

मैं- काश तू रुक जाये मेरे साथ यु ही

इस से पहले की वो और कुछ कहती , निचे मोहल्ले में अचानक से ही चीख पुकार मच गयी . शोर होने लगा तो हम दोनों भाग कर गए और जाकर देखा की ..................................
 

Lutgaya

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Tiger 786

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#22

मैं मीता को जाते हुए देखता रहा, मैं चाहता तो उसे रोक सकता था . मेरा यहाँ आने का मकसद ही था उसके साथ वक्त बिताना . उसकी सांवली सूरत मेरी नजरो से हटती ही नहीं थी , उसका दीदार करना ठीक ऐसा ही था जैसे किसी मजदुर को टाइम पर उसकी रोज़ी मिल जाना. जब वो नजरो से ओझल हो गयी तो मैं बावड़ी की तरफ बढ़ा . काफी समय से किसी ने इसकी सफाई नहीं की थी जिस वजह से पानी भी ख़राब था. मैंने इसकी मरम्मत करवाने की सोची .

इस जमीन को हरीभरी करना ही अब मेरा लक्ष्य था . मीता के जाने के बाद मेरा वहां पर रुकना जायज नहीं था तो मैं वापिस गाँव आ गया . शाम को पनघट पर रीना पानी भरने आई. लाल चुनरिया ओढ़े , माथे पर टीका लगाये बड़ी खूबसूरत लग रही थी . उसने मटका साइड में रखा और मेरे पास आकर बैठ गयी .

“ठंडी रेट पर बैठे डूबते सूरज को देखना भी अनोखा है न ” उसने कहा

मैं- बड़ी बात ये नहीं है बड़ी बात है इन शामो में तेरे साथ बैठना

रीना- पर कभी न कभी वो दिन भी आयंगे जब ये शामे तो होंगी पर मैं न रहूंगी.

उसने मेरी आँखों में देखा.

मैं- तू हमेशा रहेगी मेरे साथ .

रीना- कभी कभी सोचती हूँ

मैं- क्या सोचती है

रीना- कुछ नहीं , तू भी न कैसी बाते लेकर बैठ गया है मैंने सुना की तूने सुनार से पंगा कर लिया , आखिर तुझे क्या जरुरत थी ऐसे लोगो के मुह लगने की .

मैं- वो मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था .

रीना- दुनिया तो कुछ न कुछ कहती ही है , अगर हम भी उनके जैसे हो गए तो हममे और उनमे क्या फर्क रहेगा. और तू भला कब से ऐसा गुस्सा करने वाला हो गया .

मैं- तू कहती है तो गुस्सा नहीं करता बस . मैं गुस्सा करना भी नहीं चाहता पर तू तो जानती है न मेरी परेशानियों को घर पर चाची के ताने सहे नहीं जाते और बाहर ये दुनिया वाले करू तो क्या करू.



रीना- तू कुछ मत कर सब तक़दीर पर छोड़ दे, कब तक दुःख के बादल रहेंगे, कभी तो सुख की बरसात होगी न

मैं- कब आयेंगे वो दिन

रीना- आयेंगे,सब का भाग पलटता है तेरा भी पलटेगा तू बस भरोसा रख .

मैंने उसका हाथ थाम लिया और बोला- तू कहती है तो मान लेता हूँ , कल तू कहे तो तुझे कही ले चलू

रीना- कहाँ

मैं- ऐसी जगह , जो कभी जन्नत होती थी.

रीना- जहाँ तेरी मर्जी वहां ले चल , पर तेरी खटारा साईकिल पर न बैठूंगी

मैं- हाँ बाबा मत बैठना

वो- चल फिर चलते है , मामी टोकेगी और देर की तो .

मैं- तुझे कब से परवाह हुई टोकने की .

रीना- बस कुछ दिनों से .

उसने मटका भरा और हम साथ साथ ही मोहल्ले में आ गए. उसकी लहराती जुल्फे, रोशन आँखे , मंद मुस्कान जी करता था बस उसे देखता ही रहू और देखता ही रहता अगर गली में आती चाची ने मुझे टोक न दिया होता- अब क्या घर छोड़ कर आएगा उसे, मैं देख रही हूँ तेवर बदले हुए है तुम्हारे, नाम रोशन करोगे हमारा

मैं- तुम्हारा ना सही किसी न किसी का तो करूँगा ही .

चाची- बेहूदगी, बद्त्मिजिया बहुत बढ़ गयी है तुम्हारी .

मैं- मेरी छोड़ो तुम. मेरी जिन्दगी किसी की गुलाम नहीं है इस जिन्दगी को कैसे जीना है ये मैं देख लूँगा. और मैं आज तुमसे कहता हूँ उस खूबसूरत जिन्दगी में तुम नहीं होगी.

“क्या कहा तूने ,” चाची मुझे मारने को को हाथ आगे किया पर फिर हाथ को रोक लिया .

“ठीक ही तो कहा तूने, ये तेरी जिन्दगी है , ठीक कहा तूने ” चाची मुझसे दूर हो गयी .

मैं ताई के घर चला गया . ताई अपने कमरे में बैठी थी. मैं भी उसके पास जाकर बैठ गया .

“क्या हुआ तुझे ” उसने पूछा

मैं- कुछ भी तो नहीं

ताई- फिर चेहरा क्यों उतरा हुआ है .

मैं- ताई मैं कह रहा था की क्यों न हम सिनेमा देखने चले.

ताई- तेरा ताऊ वहीँ पर गाली बकने लगेगा मुझे.

मैं- कुछ न करेगा वो ऐसा . चल न इसी बहाने सहर घूम आयेंगे.

ताई- न , मुझसे न होगा ये

मैं- ठीक है , पर कल के कल ही कुछ जरुरी काम करने है

ताई- क्या

मैं- कुछ मजदूरो को लेकर तू सुबह ही बावड़ी पर चली जाना , उसकी सफाई करवाना . वहां पर जो भी मरम्मत करवानी है वो करवाओ. मैंने सोच लिया है की मुझे मेरा घर वहीँ पर बनाना है .

ताई- अब ये क्या नयी खुराफात है तुम्हारी

मैं- तुम नहीं समझोगी.चाची के साथ नहीं रहना चाहता मैं

ताई- कितनी बार कहाँ है की ये भी तुम्हारा ही घर है तुम यहाँ रह लो

मैं- यहाँ भी नहीं रह सकता

ताई- क्यों भला

मैं- उसका कारण तुम हो, तुम जानती हो मैं तुम्हे पसंद करता हूँ. तुम्हारे साथ रहा तो कहीं मुझसे कुछ गलत न हो जाये.

ताई- क्या गलत करना चाहते हो तूम

मैंने ताई के चेहरे को अपने हाथो में लिया और बोला- मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ तुम्हारे इन लबो को चूमना चाहता हूँ . मैं जानता हूँ ये गलत है , ये पाप है . पर ये पाप करना चाहता हूँ मैं . जब से मैंने तुम्हारे उस रूप को देखा है मैंने , मैं बार बार तुम्हे उसी रूप में देखना चाहता हूँ, हर पल मैंने तुम्हे पाने की कोशिश की है , हर पल मैंने खुद को रोका है

इस से पहले की मेरी बात पूरी हो पाती, ताई ने आगे बढ़ कर मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. गीले होंठो का स्पर्श मुझे अन्दर तक भिगो गया . बहुत देर तक ताई और मैं एक दुसरे को चुमते रहे , एक दुसरे को बार बार चूमा हमने. पर बात इस से पहले की और आगे बढ़ पाती, मेरी किस्मत एक बार मुझे धोखा दे गयी.

मुझे ऐसे लगा की मेरी जांघो में गर्मी बहुत बढ़ गयी है , जैसे वो जल उठी है . मैं झटके से ताई से अलग हुआ और जेब में हाथ दिया. वो हीरा जो धागे में पिरोया हुआ था वो बड़ी तेजी से चमक रहा था , जैसे की कोई बल्ब जल रहा हो. वो इतना गर्म हो गया था की मुझे उसे बिस्तर पर फेंक देना पड़ा.

“ये तुम्हे कहा मिला ” ताई ने पूछा

मैं- तुम जानती हो ये किसका है ...........
Superb update
 

Tiger 786

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मैं मीता को जाते हुए देखता रहा, मैं चाहता तो उसे रोक सकता था . मेरा यहाँ आने का मकसद ही था उसके साथ वक्त बिताना . उसकी सांवली सूरत मेरी नजरो से हटती ही नहीं थी , उसका दीदार करना ठीक ऐसा ही था जैसे किसी मजदुर को टाइम पर उसकी रोज़ी मिल जाना. जब वो नजरो से ओझल हो गयी तो मैं बावड़ी की तरफ बढ़ा . काफी समय से किसी ने इसकी सफाई नहीं की थी जिस वजह से पानी भी ख़राब था. मैंने इसकी मरम्मत करवाने की सोची .

इस जमीन को हरीभरी करना ही अब मेरा लक्ष्य था . मीता के जाने के बाद मेरा वहां पर रुकना जायज नहीं था तो मैं वापिस गाँव आ गया . शाम को पनघट पर रीना पानी भरने आई. लाल चुनरिया ओढ़े , माथे पर टीका लगाये बड़ी खूबसूरत लग रही थी . उसने मटका साइड में रखा और मेरे पास आकर बैठ गयी .

“ठंडी रेट पर बैठे डूबते सूरज को देखना भी अनोखा है न ” उसने कहा

मैं- बड़ी बात ये नहीं है बड़ी बात है इन शामो में तेरे साथ बैठना

रीना- पर कभी न कभी वो दिन भी आयंगे जब ये शामे तो होंगी पर मैं न रहूंगी.

उसने मेरी आँखों में देखा.

मैं- तू हमेशा रहेगी मेरे साथ .

रीना- कभी कभी सोचती हूँ

मैं- क्या सोचती है

रीना- कुछ नहीं , तू भी न कैसी बाते लेकर बैठ गया है मैंने सुना की तूने सुनार से पंगा कर लिया , आखिर तुझे क्या जरुरत थी ऐसे लोगो के मुह लगने की .

मैं- वो मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था .

रीना- दुनिया तो कुछ न कुछ कहती ही है , अगर हम भी उनके जैसे हो गए तो हममे और उनमे क्या फर्क रहेगा. और तू भला कब से ऐसा गुस्सा करने वाला हो गया .

मैं- तू कहती है तो गुस्सा नहीं करता बस . मैं गुस्सा करना भी नहीं चाहता पर तू तो जानती है न मेरी परेशानियों को घर पर चाची के ताने सहे नहीं जाते और बाहर ये दुनिया वाले करू तो क्या करू.



रीना- तू कुछ मत कर सब तक़दीर पर छोड़ दे, कब तक दुःख के बादल रहेंगे, कभी तो सुख की बरसात होगी न

मैं- कब आयेंगे वो दिन

रीना- आयेंगे,सब का भाग पलटता है तेरा भी पलटेगा तू बस भरोसा रख .

मैंने उसका हाथ थाम लिया और बोला- तू कहती है तो मान लेता हूँ , कल तू कहे तो तुझे कही ले चलू

रीना- कहाँ

मैं- ऐसी जगह , जो कभी जन्नत होती थी.

रीना- जहाँ तेरी मर्जी वहां ले चल , पर तेरी खटारा साईकिल पर न बैठूंगी

मैं- हाँ बाबा मत बैठना

वो- चल फिर चलते है , मामी टोकेगी और देर की तो .

मैं- तुझे कब से परवाह हुई टोकने की .

रीना- बस कुछ दिनों से .

उसने मटका भरा और हम साथ साथ ही मोहल्ले में आ गए. उसकी लहराती जुल्फे, रोशन आँखे , मंद मुस्कान जी करता था बस उसे देखता ही रहू और देखता ही रहता अगर गली में आती चाची ने मुझे टोक न दिया होता- अब क्या घर छोड़ कर आएगा उसे, मैं देख रही हूँ तेवर बदले हुए है तुम्हारे, नाम रोशन करोगे हमारा

मैं- तुम्हारा ना सही किसी न किसी का तो करूँगा ही .

चाची- बेहूदगी, बद्त्मिजिया बहुत बढ़ गयी है तुम्हारी .

मैं- मेरी छोड़ो तुम. मेरी जिन्दगी किसी की गुलाम नहीं है इस जिन्दगी को कैसे जीना है ये मैं देख लूँगा. और मैं आज तुमसे कहता हूँ उस खूबसूरत जिन्दगी में तुम नहीं होगी.

“क्या कहा तूने ,” चाची मुझे मारने को को हाथ आगे किया पर फिर हाथ को रोक लिया .

“ठीक ही तो कहा तूने, ये तेरी जिन्दगी है , ठीक कहा तूने ” चाची मुझसे दूर हो गयी .

मैं ताई के घर चला गया . ताई अपने कमरे में बैठी थी. मैं भी उसके पास जाकर बैठ गया .

“क्या हुआ तुझे ” उसने पूछा

मैं- कुछ भी तो नहीं

ताई- फिर चेहरा क्यों उतरा हुआ है .

मैं- ताई मैं कह रहा था की क्यों न हम सिनेमा देखने चले.

ताई- तेरा ताऊ वहीँ पर गाली बकने लगेगा मुझे.

मैं- कुछ न करेगा वो ऐसा . चल न इसी बहाने सहर घूम आयेंगे.

ताई- न , मुझसे न होगा ये

मैं- ठीक है , पर कल के कल ही कुछ जरुरी काम करने है

ताई- क्या

मैं- कुछ मजदूरो को लेकर तू सुबह ही बावड़ी पर चली जाना , उसकी सफाई करवाना . वहां पर जो भी मरम्मत करवानी है वो करवाओ. मैंने सोच लिया है की मुझे मेरा घर वहीँ पर बनाना है .

ताई- अब ये क्या नयी खुराफात है तुम्हारी

मैं- तुम नहीं समझोगी.चाची के साथ नहीं रहना चाहता मैं

ताई- कितनी बार कहाँ है की ये भी तुम्हारा ही घर है तुम यहाँ रह लो

मैं- यहाँ भी नहीं रह सकता

ताई- क्यों भला

मैं- उसका कारण तुम हो, तुम जानती हो मैं तुम्हे पसंद करता हूँ. तुम्हारे साथ रहा तो कहीं मुझसे कुछ गलत न हो जाये.

ताई- क्या गलत करना चाहते हो तूम

मैंने ताई के चेहरे को अपने हाथो में लिया और बोला- मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ तुम्हारे इन लबो को चूमना चाहता हूँ . मैं जानता हूँ ये गलत है , ये पाप है . पर ये पाप करना चाहता हूँ मैं . जब से मैंने तुम्हारे उस रूप को देखा है मैंने , मैं बार बार तुम्हे उसी रूप में देखना चाहता हूँ, हर पल मैंने तुम्हे पाने की कोशिश की है , हर पल मैंने खुद को रोका है

इस से पहले की मेरी बात पूरी हो पाती, ताई ने आगे बढ़ कर मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. गीले होंठो का स्पर्श मुझे अन्दर तक भिगो गया . बहुत देर तक ताई और मैं एक दुसरे को चुमते रहे , एक दुसरे को बार बार चूमा हमने. पर बात इस से पहले की और आगे बढ़ पाती, मेरी किस्मत एक बार मुझे धोखा दे गयी.

मुझे ऐसे लगा की मेरी जांघो में गर्मी बहुत बढ़ गयी है , जैसे वो जल उठी है . मैं झटके से ताई से अलग हुआ और जेब में हाथ दिया. वो हीरा जो धागे में पिरोया हुआ था वो बड़ी तेजी से चमक रहा था , जैसे की कोई बल्ब जल रहा हो. वो इतना गर्म हो गया था की मुझे उसे बिस्तर पर फेंक देना पड़ा.

“ये तुम्हे कहा मिला ” ताई ने पूछा

मैं- तुम जानती हो ये किसका है ...........
Su
#23

“तुम जानती हो ये किसका है ” मैंने फिर पूछा

“मुझे नहीं मालूम , ” ताई ने कहा

मैं- तुम जानती हो

ताई- तू जा यहाँ से ,

मैं- बताओ ये किसका है

“मैंने कहा न तू जा यहाँ से ” ताई ने इस बार थोड़े गुस्से से बोला

मैं- जा रहा हूँ, मत बताओ पर मुझे मालूम है तुम जानती हो ये किसका है

मैं नीम के निचे चबूतरे पर जाकर बैठ गया और सोचने लगा की ताई ने इस धागे को पहले भी देखा है वो जानती है , आँखों के सामने उस हीरे को देख रहा था जिसकी गर्मी अब थोड़ी कम हो गयी थी पर वो गर्म था . जैसे उसमे आग जल रही हो. सफ़ेद हीरे का रंग केसरिया हो गया था . जब कुछ न सोचा तो मैं चबूतरे पर लेट गया और थोड़ी देर के लिए आँखों को मूँद लिया.

न जाने कितनी देर मेरी आँख लगी होगी पर अचानक से कुत्तो के भोंकने की आवाज से मैं जागा तो मैंने देखा की बिजली नहीं थी, पूरा गाँव अँधेरे में डूबा हुआ था .

“ये साले कुत्ते क्यों इतना भोंक रहे है ” मैंने उनको गाली दी. पर तभी पायल की आवाज से मुझे महसूस हुआ की गली में कोई है, कोई औरत है . काले अँधेरे में काले कपडे पहले वो आबनूस सी तेजी से जा रही थी . न जाने मुझे क्या हुआ . मैं भी उसी दिशा में चल पड़ा.

छम छम करती वो औरत बस चली जा रही थी , गाँव पीछे बहुत पीछे रह गया था . मुझे उस से कुछ लेना देना नहीं था पर चुल थी की इतनी रात गए ये कौन है , कहाँ जा रही है .अचानक से एक मोड़ पर वो रुक गयी . उसे जैसे किसी का इंतज़ार था .

कुछ देर बाद वहां पर एक आदमी और आ गया . मैं थोडा सा और आगे हुआ ताकि जान सकू ये कौन थे .

“बात मेरे काबू से बाहर निकल चुकी है , उसकी रगों में खून उबाल मार रहा है , मैं चाह कर भी उसे नहीं रोक पाउँगा जो उसे करना है वो करके ही रहेगा ” आदमी ने कहा

“पर इसका अंजाम कौन भुगतेगा , ” औरत ने कहा

मैं आवाज को पहचानने की कोशिश करने लगा.

“तो मैं क्या करू , कुछ भी तो नहीं समझ आ रहा ” आदमी ने कहा .

उसकी आवाज जानी पहचानी तो लग रही थी पर शब्द लडखडा रहे थे उसके शायद नशे में था तो समझ नहीं आ रहा था .

“उसे बाहर भेजने का इंतजाम कर दिया है पर वो मानता नहीं ” जब उसने ये बात कही तो मैं समझ गया ये मेरे बारे में थी और ये आदमी चाचा था . पर ये औरत कौन थी जिस से मिलने के लिए उसे इतनी दूर आना पड़ा था .

“मुझे चिंता ये नहीं है, उसने लालाजी से भी तो पंगा ले लिया है, ऊपर से लाला के आदमियों को कोई पेल रहा है , लाला को शक है ” औरत ने कहा

चाचा- पर मेरे भतीजे का लाला के आदमियों से कोई लेना देना नहीं

औरत- जानती हूँ, लाला के शक की वजह कोई और ही है , मैंने कोशिश भी की थी पर उसने खुल कर कुछ नहीं बताया . कुछ तो ऐसी बात है जो लाला के दिल की गहराई में दफ़न है.

चाचा- मनीष की तरफ अगर लाला ने बुरी नजर डाली तो मैं चुप नहीं बैठूँगा

“जानती हूँ, पर तुम्हारे भतीजे को भी थोडा देखना चाहिए था न , लाला को थप्पड़ मार दिया उसने ” औरत ने कहा

चाचा- जानता हूँ उसकी गलती है , पर लाला को भी भाई का जिक्र नहीं करना था पूरा गाँव जानता है लाल और भाई की कभी बनी नहीं आपस में. मनीष की जगह कोई और भी होता तो वो ये ही करता .

औरत- पर लाला घाघ है

चाचा- परवाह नहीं मुझे. अपनी अगली पीढ़ी के लिए मैं कुछ भी कर जाऊँगा

औरत- अलख के बारे में क्या सोचा, मेले के थोड़े दिन बचे है , मनीष को बताया तुमने

चाचा- कोई जरुरत नहीं उसे बताने की

औरत-अर्जुन का भार कौन उतारेगा , काश वो होता

चाचा- भाई नहीं है तो क्या हुआ मैं तो हूँ, मैं जाऊंगा वहां .

औरत- तुम जानते हो , तुम अलग हो इन सब बातो का बोझ तुम नहीं उठा सकते .

चाचा- अपने परिवार का बोझ तो उठा सकता हूँ न, चाहे मुझे जान देनी पड़े पर मैं मेरे भतीजे को इन सब में शामिल नहीं करूँगा. मेरे जीते जी कुल का दीपक ही बुझ गया तो मेरे जीने का क्या फायदा .

उस औरत ने चाचा का हाथ अपने हाथ में पकड लिया.

“काश ये दुनिया तुम्हे समझ पाती ” उसने कहा

चाचा- तुम तो समझती हो न मुझे.

चाचा ने उस औरत की गोद में अपना सर रख दिया. और मैं सोचने लगा की ये औरत कौन है , चाचा के इतनी नजदीक है तो मैं इसे जरुरर जानता हूँ . मैं वहां उन्हें छोड़ तो आया था पर मेरा ध्यान बस फिर इसी बात पर अटक गया था .

अगले दिन मैंने ताई को कुछ पैसे दिए और खेतो का काम याद दिलाया. उसके बाद मैं रीना से मिला तो मालूम हुआ की वो शहर निकल गयी . मुझे बहुत जरुरी बात करनी थी पर अब तो उसका इंतज़ार ही कर सकते थे . मैं कुछ सोच ही रहा था की तभी मुझे सुनार आता दिखा. वैसे तो वो गाड़ी में ही चलता था पर न जाने आज क्यों छतरी लिए पैदल ही जा रहा था . मैं उसके पास गया .

“और लाला कैसा है ” मैंने उससे कहा

“पुरे इलाके में लोग हाथ जोड़कर अदब से सेठ जी कहते है मुझे ” उसने कहा

मैं- पुरे इलाके में पीठ पीछे तुझे न जाने क्या क्या कहते है लोग

लाला- तेरी हिम्मत की दाद देता हूँ मैं आग से खेलने का बहुत शौक है तुझे

मैं- मैं खुद एक आग हूँ लाला तपिश तो गाल पर महसूस होती ही होगी न तुझे

लाला- जिस दिन तू झुलसेगा न तपिश क्या होती है तब समझेगा तू

मैं- पहले मेरे बाप ने तेरी गांड तोड़ी थी अब मैं तोडूंगा . क्या लाला तेरे तो नसीब ही चुतिया है .

लाला- तेरे बाप को भी यही घमंड था

“खैर लाला , उस दिन तूने मुझसे कहा था की माल तुझे बेच दू, सुन मेरे पास एक ऐसी चीज है जिसमे तेरी दिलचस्पी हो सकती है ” मैंने कहा

लाला ने अपनी सुनहरी ऐनक को उतार कर जेब में रखा और बोला- इतना चुतिया नहीं है तू जितना दुनिया तुझे समझती है , सीधा मुद्दे पर आ .


अब जो मैं करने वाला था , मैं जानता था की मैं मेरे ऊपर एक ऐसी मुसीबत ले रहा हूँ जो मुझे बहुत दिनों तक सताने वाली थी . पर मैं वो दांव खेलने जा रहा था जो इस खेल के ऐसे पत्ते मेरे सामने खोल देता जिस से की बाज़ी खुल जाती .
Behtreen update
 

Tiger 786

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#24

“मनीष, उधर क्या कर रहा है , इधर आ मेरे पास ” पिछे से ताई ने मुझे आवाज लगाईं

इसे भी अभी ही आना था .

“आ रहा हूँ दो मिनट में ” मैंने जवाब दिया

ताई- मैंने कहा न अभी के अभी आ.

खीजते हुए मैं ताई के पास गया .

मैं- क्या हुआ

ताई- सुनार से क्या बात कर रहा था तू.

मैं- अब तुम तो मुझे कुछ बता नहीं रही तो मैंने सोचा उसी से पूछ लू

मेरी बात सुनकर ताई को गुस्सा आ गया .

ताई- जी तो करता है दो चार थप्पड़ लगा दू तुझे , पर मेरा बस नहीं चलता

मैं- बस तो मेरा भी कहाँ चलता है ,

ताई- सुनार से दूर रह,

मैं- नहीं जाऊँगा, पर तुम्हे बताना होगा ये किसका है

ताई- मैं जानती हूँ मेरा तुझ पर कोई जोर नहीं है और तू मेरी सुनेगा भी नहीं

मैं- एक मामूली धागे के लिए इतनी पंचायत कर रही हो

ताई- आम और खास कुछ नहीं होता इस दुनिया में . खाना बना दिया है खा लेना मैं खेत पर जा रही हूँ

मैं- सुन तो सही मेरी बात.

ताई- तू सुन मेरी बात , देवर जी ने तेरा बड़े शहर में पढाई लिखाई का इंतजाम कर दिया है तू वहां चला जा, मेरी ये बात मान जा. तेरी मन चाही कर दूंगी मैं, तू कहे तो तेरे साथ भी चल पडूँगी

ताई ने सीधा सीधा कह दिया की वो चूत देने को तैयार है मुझे.

“मैं तुझे चाहता हूँ , तुजसे प्यार करता हूँ पर ये हमारे बीच कोई सौदा नहीं है , मैं तेरा इस्तेमाल नहीं करना चाहता . मैं यही रहूँगा ये धरती मेरी है इसे छोड़ कर कहाँ जाऊंगा मैं. ” मैंने ताई से कहा



“मैं जा रही हूँ ” ताई ने कहा और पीठ मोड़ कर चली गयी .

“दोपहर में खेतो पर ही मिलते है “ मैंने कहा

जितना मैं सोच सकता था मैंने उस धागे में लटके हीरे के बारे में सोचा. वो खास था ये तो मैं जानता था पर जबसे उसने रंग बदला था , उसकी वो गर्माहट मेरे दिमाग में चढ़ गयी थी . मैं मीता से मिलना चाहता था पर उसकी हिदायत थी की वो खुद ही मिलेगी, मैं रुद्रपुर न जाऊ. तो अब मैं क्या करू.

“अरे मनीष वहां खड़ा क्या कर रहा है , इधर आ जरा ” किसी ने मुझे पुकारा तो मेरा ध्यान भंग हुआ .मैंने देखा ये रीना की मामी खड़ी थी .

मैं- हाँ अभी आया

मैं उसके पास गया .

“क्या हुआ ” मैंने पूछा

मामी- सबके घर बिजली आ रही है हमारे घर नहीं आ रही देख जरा क्या हुआ है .

मैं- हाँ देखते है .

मैं रीना के घर आ गया . देखा की एक जगह दोनों तार आपस में उलझ गए थे , जिसकी वजह से शार्ट सर्किट हुआ पड़ा था .

मैं- क्या काकी, ये तार कितने पुराने हुए है अब तो बदल दो इन्हें

काकी- तेरे काका से कह कह कर थक गयी हूँ मैं , पूरी छुट्टी इधर उधर टाइम पास करके ही बिता देते है अब आयेंगे तीन चार महीने में तभी कहूँगी.

मैं-काका कम से कम आ तो जाते है , मेरे पिता जो एक बार ड्यूटी गए लौटे ही नहीं .

काकी - तू क्यों उदास होता है , हम सब भी तो तेरा ही परिवार है न .

मैं- काकी वैसे फौज में से कितने दिनों में छुट्टी मिलती है

काकी- कभी तीन चार महीने तो कभी छ महीने में तो आ ही जाते है .

तभी मेरे दिमाग में वो बात आई , जिसपर मुझे शायद सब से पहले गौर करना चाहिए था .

मैं- काकी, मुझे काका से बात करनी है कुछ पूछना है . कैसे बात हो उनसे .

काकी- बात कहा होती है बस चिट्ठी ही आती है ,

ये बात सुनकर मुझे बड़ी हताशा हुई . पर मेरे दिमाग में जो बात आई थी उसने मेरे लिए एक रास्ता खोल दिया था. मैं वहां से चलने को ही था की तभी काकी बोल पड़ी- एक मिनट, याद आया कभी कभी पोस्ट आफिस में फ़ोन आता है तेरे काका का ,

मैं बता नहीं सकता मुझे कितनी ख़ुशी हुई थी ये बात सुनकर . मैं लगभग दौड़ ही पड़ा था .मैं सीधा पहुंचा पोस्टमॉस्टर के पास .

“बाबु साहब एक मदद चाहिए आप से ” मैंने कहा

उसने बात पूछी .

मैंने उसे बताई.

“कभी कभी फौजियों के फ़ोन तो आते है पर किस नम्बर से आते है ऐसा बताने की सुविधा तो अपने पास है नहीं ” उसने कहा

मैं- बाबु साहब, तो कैसे मालूम हो मुझे

बाबू- भैया,फौजियों के बारे में तो जानकारी फौज के सेंटर पर ही मिल सकती है .

रीना का मामा कुछ दिन पहले ही छुट्टी काट कर गया था. काश मुझे ये विचार पहले आया होता तो पर तभी मेरा ध्यान गया की हमारे गाँव में कई फौजी और है , शायद वो मेरी मदद कर सके . पूरा दिन मैंने इसी गुना भाग में लगा दिया पर मेरी बदकिस्मती देखो उनमे से एक भी छुट्टी नहीं आया हुआ था . पर एक बुजुर्ग बाबा ने मुझे ये जरूर बताया की जहाँ से कोई फौजी भर्ती होता है वहां के सेंटर पर उसका रिकॉर्ड जरुर रखते है . मेरे लिए ये भी बड़ी राहत की बात थी की चलो कुछ तो मिला.

सांझ ढले एक बार फिर मैं रीना के साथ बैठा था पनघट पर .

“मैं अपने पिता को ढूंढने जाऊंगा ” मैंने कहा .

रीना- पर कहाँ जायेगा तू .

मैंने उसे अपनी योजना बताई तो वो भी खुश हो गयी .

रीना- तुझे वो मिल जायेंगे इस से बढ़िया भला और क्या होगा. पर तू फिर उन्हें यही पर ले आना, कितने साल हो गए है कहना की अब घर चलो.

मैं- तुझे बता नहीं सकता की क्या या कहना है , बस एक बार वो मिल जाए मुझे.

रीना- समझती हूँ मैं,

मैं- ये बता तू मुझे शहर क्यों नहीं लेकर गयी

रीना- तेरी चाची ने कहा की तू घर पर नहीं है .

मैं- पर मैं तो घर पर ही था उसने ऐसा क्यों कहा

रीना- वो जाने. उस से बात करना ही सजा है , पता नहीं किस बात का घमंड रहता है उसे.

मैं- छोड़ न उसको , क्या बात करनी उसकी

रीना- आज गाँव में न सांग दिखाने वाले आये है , तू आएगा रात को .

मैं- आ जाऊंगा

रीना- न जाने क्यों आजकल तेरे साथ वक्त बिताना अच्छा लगने लगा है .

मैं- इसमें क्या नया है , बचपन से हम साथ ही वक्त बिताते आये है .वैसे तू कल मेरे साथ बैंक चलना तुझे कुछ दिखाना है

रीना- ऐसा क्या है बैंक में


मैं- कुछ ऐसा जिसे देख कर तेरे होश उड़ जायेंगे .
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“मेरे होश तो उसी दिन से उड़े हुए है जब से माँ का संदेसा आया है , मैं तुझे बता नहीं सकती क्या हाल है तब से मेरा ”उसने कहा

मैं- तू उसकी चिंता मत कर , जब तक मैं हूँ तुझे कहीं जाने नहीं दूंगा मैं

रीना-पर मुझे जाना होगा , मेरी मजबुरिया है

मैं- कोई मज़बूरी नहीं तेरी , तू मत सोच इस बारे में . तेरी माँ जब यहाँ आएगी मैं बात कर लूँगा उनसे.

रीना- भला क्या बात करेगा तू उससे

मैं- वो तू मुझ पर छोड़ दे.

रीना- बातो में तो तुझसे कोई नहीं जीत सकता . पर आजकल तू किन बातो में उलझा हुआ है तू मुझसे ही छिपाने लगा है .

मैं- जिंदगी की किताब के बिखरे पन्ने तेरे हाथो में है और तू कहती है की तुझसे छिपाने लगा हूँ, इल्जाम लगाना है तो कुछ ढंग का तो लगा न .

रीना- फिलहाल तो मैं चलती हूँ , रात को चोबारे की छत पर मिलेंगे

मैं - तू चल मैं आता हु थोड़ी देर में .

ठंडी पवन संग लहराती चुन्नी उसकी, हमेशा वो बड़े सलीके से कपडे पहनती थी . उसकी बात ही निराली थी . जब वो साथ होती थी मुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं होती थी , मुझे मुझसे जायदा वो समझती थी . पर आज फिर उसने वो बात छेड़ी थी जिसे सुनकर मैं घबरा गया था . मेरे सीने में तेज दर्द हो गया था जुदाई की बात सोच कर. वो कैसे हालात होंगे .

“हे नियति, ये जुल्म मत करना मेरे जो थे सब तो तूने छीन लिए कम से कम इसे तो मेरे भाग में रहने देना .” मैंने देवता के आगे माथा झुकाया.

घर पर आया तो देखा की ताई आँगन में ही बैठी थी.

“आया नहीं तू, ” ताई ने कहा

मैं- किसी काम में उलझा था

ताई- तेरी ये उलझने , न जाने किस उधेड़बुन में लगा रहता है

मैं-तुम तो कुछ बताती नहीं , तो मैं तो कोशिश करूँगा ही न .

ताई- मेरे पास छिपाने को भी तो कुछ नहीं

मैं- जानता हु की चाची ने सब कुछ दबा लिया है , पर तूने कभी अपना हिस्सा क्यों नहीं माँगा, तू इस घर की बड़ी बहु है . तूने ये राह क्यों चुनी .

ताई- शायद यही मेरी नियति थी . वैसे भी इन्सान के साथ कुछ नहीं जाता, राजा हो या रंक सबकी दो मुट्ठी राख ही बनती है, सेठ हो या मजदुर शमशान में साथ ही होते है सब.

मैं- फिर भी तूने माँगा क्यों नहीं हक़ जो तेरा है तुझे मिलना चाहिए. मैंने सोचा है कल चाचा से बात करूँगा.

ताई- तुझे क्या लगता है की मेरी क्या चाहत है . नियति ने जो लिखा है वो होता है, नियति के विधान को आज तक कोई बदल पाया है क्या.

मैं- पर तुझे तेरा सुख कहाँ मिला.

ताई- मेरा सुख मेरे सामने बैठा है . दुनिया मुझे पीठ पीछे न जाने क्या क्या कहती है निपूती, बाँझ पर मैंने कभी किसी की बात दिल पर नहीं ली क्योंकि मेरा वंश, मेरा कुल मेरे सामने बैठा है , हम हमेशा तेरे क्षमाप्रार्थी रहेंगे , तेरी परवरिश हम उस तरह से नहीं कर पाए जैसी होनी चाहिए थी .

“ये धन, दौलत, ये जमीने लेकर मैं करती भी क्या . हमारी सबसे अनमोल दौलत तो तुम हो , ” ताई ने कहा

मैं- फिर भी मैं चाहता हूँ

“मुझे कुछ नहीं चाहिए ,” ताई ने मेरी बात काट दी.

फिर मैंने भी कुछ नहीं कहा . ताई अपना काम करने लगी, मैं चारपाई पर पड़े पड़े बस उसे ही निहारता रहा . इस औरत से मेरा न जाने ये कैसा रिश्ता था , मैं इसे माँ के रूप में भी देखता था, अपने मन की बात भी इस से करता था किसी दोस्त के जैसे और इसके साथ सोने की हसरत भी थी मेरी.

रात को एक बार फिर मैं रीना के साथ चोबारे की छत पर बैठा था .

“ये चाँद कितना खूबसूरत है न ” उसने कहा

मैं- हाँ , पर तुमसे जायदा नहीं

रीना- हाँ, बाबा हाँ, वैसे ये कुछ जायदा ही तारीफ नहीं कर दी तुमने .

मैं- सच ही तो कहा , तेरे रोशन चेहरे के आगे ऐसे सौ चाँद भी बेकार है .

रीना- बता मुझको तुझे कैसी मैं लगती हूँ .

मैं- कैसे बताऊ.

रीना- जैसे बताते है वैसे बता.

मैं- तू क्या सुनना चाहती है मुझसे

रीना- जो तू कहना नहीं चाहता

मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- ये चाँद, ये रात , ये तेरा साथ , ये तेरी छुअन , ये होंठो की कंपकंपाहट , ये तेरी बिखरी जुल्फे,लहराता आँचल, ये तेरी शोर मचाती धड़कने ये सब तो जानती है ,

रीना- ये जानती है तो मुझसे क्यों नहीं कहती

मैं- कहने की जरुरत ही नहीं

रीना- हर पल हर लम्हा , हर घडी मैं बेक़रार क्यों रहती हूँ , आजकल बिना बात मैं हंसती रहती हूँ, खुद से बाते करती रहती हूँ .

मैं- तू खुद को जानने लगी है , पहचानने लगी है खुद को .

रीना- और मैं क्या हूँ.

मैं-सावन की पहली बारिश है तू, सौंधी मिटटी को पहली खुशबु है तू, अलसाई भोर की ओस है तू. मैं कुछ कहूँ या न कहू मेरा ताज है तू

वो मेरे पास आई , उसकी गर्म सांसे मेरे होंठो पर गिर रही थी , उसके बदन की तपिश को महसूस किया मैंने. उसने हौले से मेरे माथे को चूमा और फिर अलग हो गयी.

“काश ये रात थम जाये यु ही ” उसने कहा

मैं- काश तू रुक जाये मेरे साथ यु ही


इस से पहले की वो और कुछ कहती , निचे मोहल्ले में अचानक से ही चीख पुकार मच गयी . शोर होने लगा तो हम दोनों भाग कर गए और जाकर देखा की ..................................
Awesome
 
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