- 12,050
- 83,774
- 259
#25
“मेरे होश तो उसी दिन से उड़े हुए है जब से माँ का संदेसा आया है , मैं तुझे बता नहीं सकती क्या हाल है तब से मेरा ”उसने कहा
मैं- तू उसकी चिंता मत कर , जब तक मैं हूँ तुझे कहीं जाने नहीं दूंगा मैं
रीना-पर मुझे जाना होगा , मेरी मजबुरिया है
मैं- कोई मज़बूरी नहीं तेरी , तू मत सोच इस बारे में . तेरी माँ जब यहाँ आएगी मैं बात कर लूँगा उनसे.
रीना- भला क्या बात करेगा तू उससे
मैं- वो तू मुझ पर छोड़ दे.
रीना- बातो में तो तुझसे कोई नहीं जीत सकता . पर आजकल तू किन बातो में उलझा हुआ है तू मुझसे ही छिपाने लगा है .
मैं- जिंदगी की किताब के बिखरे पन्ने तेरे हाथो में है और तू कहती है की तुझसे छिपाने लगा हूँ, इल्जाम लगाना है तो कुछ ढंग का तो लगा न .
रीना- फिलहाल तो मैं चलती हूँ , रात को चोबारे की छत पर मिलेंगे
मैं - तू चल मैं आता हु थोड़ी देर में .
ठंडी पवन संग लहराती चुन्नी उसकी, हमेशा वो बड़े सलीके से कपडे पहनती थी . उसकी बात ही निराली थी . जब वो साथ होती थी मुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं होती थी , मुझे मुझसे जायदा वो समझती थी . पर आज फिर उसने वो बात छेड़ी थी जिसे सुनकर मैं घबरा गया था . मेरे सीने में तेज दर्द हो गया था जुदाई की बात सोच कर. वो कैसे हालात होंगे .
“हे नियति, ये जुल्म मत करना मेरे जो थे सब तो तूने छीन लिए कम से कम इसे तो मेरे भाग में रहने देना .” मैंने देवता के आगे माथा झुकाया.
घर पर आया तो देखा की ताई आँगन में ही बैठी थी.
“आया नहीं तू, ” ताई ने कहा
मैं- किसी काम में उलझा था
ताई- तेरी ये उलझने , न जाने किस उधेड़बुन में लगा रहता है
मैं-तुम तो कुछ बताती नहीं , तो मैं तो कोशिश करूँगा ही न .
ताई- मेरे पास छिपाने को भी तो कुछ नहीं
मैं- जानता हु की चाची ने सब कुछ दबा लिया है , पर तूने कभी अपना हिस्सा क्यों नहीं माँगा, तू इस घर की बड़ी बहु है . तूने ये राह क्यों चुनी .
ताई- शायद यही मेरी नियति थी . वैसे भी इन्सान के साथ कुछ नहीं जाता, राजा हो या रंक सबकी दो मुट्ठी राख ही बनती है, सेठ हो या मजदुर शमशान में साथ ही होते है सब.
मैं- फिर भी तूने माँगा क्यों नहीं हक़ जो तेरा है तुझे मिलना चाहिए. मैंने सोचा है कल चाचा से बात करूँगा.
ताई- तुझे क्या लगता है की मेरी क्या चाहत है . नियति ने जो लिखा है वो होता है, नियति के विधान को आज तक कोई बदल पाया है क्या.
मैं- पर तुझे तेरा सुख कहाँ मिला.
ताई- मेरा सुख मेरे सामने बैठा है . दुनिया मुझे पीठ पीछे न जाने क्या क्या कहती है निपूती, बाँझ पर मैंने कभी किसी की बात दिल पर नहीं ली क्योंकि मेरा वंश, मेरा कुल मेरे सामने बैठा है , हम हमेशा तेरे क्षमाप्रार्थी रहेंगे , तेरी परवरिश हम उस तरह से नहीं कर पाए जैसी होनी चाहिए थी .
“ये धन, दौलत, ये जमीने लेकर मैं करती भी क्या . हमारी सबसे अनमोल दौलत तो तुम हो , ” ताई ने कहा
मैं- फिर भी मैं चाहता हूँ
“मुझे कुछ नहीं चाहिए ,” ताई ने मेरी बात काट दी.
फिर मैंने भी कुछ नहीं कहा . ताई अपना काम करने लगी, मैं चारपाई पर पड़े पड़े बस उसे ही निहारता रहा . इस औरत से मेरा न जाने ये कैसा रिश्ता था , मैं इसे माँ के रूप में भी देखता था, अपने मन की बात भी इस से करता था किसी दोस्त के जैसे और इसके साथ सोने की हसरत भी थी मेरी.
रात को एक बार फिर मैं रीना के साथ चोबारे की छत पर बैठा था .
“ये चाँद कितना खूबसूरत है न ” उसने कहा
मैं- हाँ , पर तुमसे जायदा नहीं
रीना- हाँ, बाबा हाँ, वैसे ये कुछ जायदा ही तारीफ नहीं कर दी तुमने .
मैं- सच ही तो कहा , तेरे रोशन चेहरे के आगे ऐसे सौ चाँद भी बेकार है .
रीना- बता मुझको तुझे कैसी मैं लगती हूँ .
मैं- कैसे बताऊ.
रीना- जैसे बताते है वैसे बता.
मैं- तू क्या सुनना चाहती है मुझसे
रीना- जो तू कहना नहीं चाहता
मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- ये चाँद, ये रात , ये तेरा साथ , ये तेरी छुअन , ये होंठो की कंपकंपाहट , ये तेरी बिखरी जुल्फे,लहराता आँचल, ये तेरी शोर मचाती धड़कने ये सब तो जानती है ,
रीना- ये जानती है तो मुझसे क्यों नहीं कहती
मैं- कहने की जरुरत ही नहीं
रीना- हर पल हर लम्हा , हर घडी मैं बेक़रार क्यों रहती हूँ , आजकल बिना बात मैं हंसती रहती हूँ, खुद से बाते करती रहती हूँ .
मैं- तू खुद को जानने लगी है , पहचानने लगी है खुद को .
रीना- और मैं क्या हूँ.
मैं-सावन की पहली बारिश है तू, सौंधी मिटटी को पहली खुशबु है तू, अलसाई भोर की ओस है तू. मैं कुछ कहूँ या न कहू मेरा ताज है तू
वो मेरे पास आई , उसकी गर्म सांसे मेरे होंठो पर गिर रही थी , उसके बदन की तपिश को महसूस किया मैंने. उसने हौले से मेरे माथे को चूमा और फिर अलग हो गयी.
“काश ये रात थम जाये यु ही ” उसने कहा
मैं- काश तू रुक जाये मेरे साथ यु ही
इस से पहले की वो और कुछ कहती , निचे मोहल्ले में अचानक से ही चीख पुकार मच गयी . शोर होने लगा तो हम दोनों भाग कर गए और जाकर देखा की ..................................
“मेरे होश तो उसी दिन से उड़े हुए है जब से माँ का संदेसा आया है , मैं तुझे बता नहीं सकती क्या हाल है तब से मेरा ”उसने कहा
मैं- तू उसकी चिंता मत कर , जब तक मैं हूँ तुझे कहीं जाने नहीं दूंगा मैं
रीना-पर मुझे जाना होगा , मेरी मजबुरिया है
मैं- कोई मज़बूरी नहीं तेरी , तू मत सोच इस बारे में . तेरी माँ जब यहाँ आएगी मैं बात कर लूँगा उनसे.
रीना- भला क्या बात करेगा तू उससे
मैं- वो तू मुझ पर छोड़ दे.
रीना- बातो में तो तुझसे कोई नहीं जीत सकता . पर आजकल तू किन बातो में उलझा हुआ है तू मुझसे ही छिपाने लगा है .
मैं- जिंदगी की किताब के बिखरे पन्ने तेरे हाथो में है और तू कहती है की तुझसे छिपाने लगा हूँ, इल्जाम लगाना है तो कुछ ढंग का तो लगा न .
रीना- फिलहाल तो मैं चलती हूँ , रात को चोबारे की छत पर मिलेंगे
मैं - तू चल मैं आता हु थोड़ी देर में .
ठंडी पवन संग लहराती चुन्नी उसकी, हमेशा वो बड़े सलीके से कपडे पहनती थी . उसकी बात ही निराली थी . जब वो साथ होती थी मुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं होती थी , मुझे मुझसे जायदा वो समझती थी . पर आज फिर उसने वो बात छेड़ी थी जिसे सुनकर मैं घबरा गया था . मेरे सीने में तेज दर्द हो गया था जुदाई की बात सोच कर. वो कैसे हालात होंगे .
“हे नियति, ये जुल्म मत करना मेरे जो थे सब तो तूने छीन लिए कम से कम इसे तो मेरे भाग में रहने देना .” मैंने देवता के आगे माथा झुकाया.
घर पर आया तो देखा की ताई आँगन में ही बैठी थी.
“आया नहीं तू, ” ताई ने कहा
मैं- किसी काम में उलझा था
ताई- तेरी ये उलझने , न जाने किस उधेड़बुन में लगा रहता है
मैं-तुम तो कुछ बताती नहीं , तो मैं तो कोशिश करूँगा ही न .
ताई- मेरे पास छिपाने को भी तो कुछ नहीं
मैं- जानता हु की चाची ने सब कुछ दबा लिया है , पर तूने कभी अपना हिस्सा क्यों नहीं माँगा, तू इस घर की बड़ी बहु है . तूने ये राह क्यों चुनी .
ताई- शायद यही मेरी नियति थी . वैसे भी इन्सान के साथ कुछ नहीं जाता, राजा हो या रंक सबकी दो मुट्ठी राख ही बनती है, सेठ हो या मजदुर शमशान में साथ ही होते है सब.
मैं- फिर भी तूने माँगा क्यों नहीं हक़ जो तेरा है तुझे मिलना चाहिए. मैंने सोचा है कल चाचा से बात करूँगा.
ताई- तुझे क्या लगता है की मेरी क्या चाहत है . नियति ने जो लिखा है वो होता है, नियति के विधान को आज तक कोई बदल पाया है क्या.
मैं- पर तुझे तेरा सुख कहाँ मिला.
ताई- मेरा सुख मेरे सामने बैठा है . दुनिया मुझे पीठ पीछे न जाने क्या क्या कहती है निपूती, बाँझ पर मैंने कभी किसी की बात दिल पर नहीं ली क्योंकि मेरा वंश, मेरा कुल मेरे सामने बैठा है , हम हमेशा तेरे क्षमाप्रार्थी रहेंगे , तेरी परवरिश हम उस तरह से नहीं कर पाए जैसी होनी चाहिए थी .
“ये धन, दौलत, ये जमीने लेकर मैं करती भी क्या . हमारी सबसे अनमोल दौलत तो तुम हो , ” ताई ने कहा
मैं- फिर भी मैं चाहता हूँ
“मुझे कुछ नहीं चाहिए ,” ताई ने मेरी बात काट दी.
फिर मैंने भी कुछ नहीं कहा . ताई अपना काम करने लगी, मैं चारपाई पर पड़े पड़े बस उसे ही निहारता रहा . इस औरत से मेरा न जाने ये कैसा रिश्ता था , मैं इसे माँ के रूप में भी देखता था, अपने मन की बात भी इस से करता था किसी दोस्त के जैसे और इसके साथ सोने की हसरत भी थी मेरी.
रात को एक बार फिर मैं रीना के साथ चोबारे की छत पर बैठा था .
“ये चाँद कितना खूबसूरत है न ” उसने कहा
मैं- हाँ , पर तुमसे जायदा नहीं
रीना- हाँ, बाबा हाँ, वैसे ये कुछ जायदा ही तारीफ नहीं कर दी तुमने .
मैं- सच ही तो कहा , तेरे रोशन चेहरे के आगे ऐसे सौ चाँद भी बेकार है .
रीना- बता मुझको तुझे कैसी मैं लगती हूँ .
मैं- कैसे बताऊ.
रीना- जैसे बताते है वैसे बता.
मैं- तू क्या सुनना चाहती है मुझसे
रीना- जो तू कहना नहीं चाहता
मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- ये चाँद, ये रात , ये तेरा साथ , ये तेरी छुअन , ये होंठो की कंपकंपाहट , ये तेरी बिखरी जुल्फे,लहराता आँचल, ये तेरी शोर मचाती धड़कने ये सब तो जानती है ,
रीना- ये जानती है तो मुझसे क्यों नहीं कहती
मैं- कहने की जरुरत ही नहीं
रीना- हर पल हर लम्हा , हर घडी मैं बेक़रार क्यों रहती हूँ , आजकल बिना बात मैं हंसती रहती हूँ, खुद से बाते करती रहती हूँ .
मैं- तू खुद को जानने लगी है , पहचानने लगी है खुद को .
रीना- और मैं क्या हूँ.
मैं-सावन की पहली बारिश है तू, सौंधी मिटटी को पहली खुशबु है तू, अलसाई भोर की ओस है तू. मैं कुछ कहूँ या न कहू मेरा ताज है तू
वो मेरे पास आई , उसकी गर्म सांसे मेरे होंठो पर गिर रही थी , उसके बदन की तपिश को महसूस किया मैंने. उसने हौले से मेरे माथे को चूमा और फिर अलग हो गयी.
“काश ये रात थम जाये यु ही ” उसने कहा
मैं- काश तू रुक जाये मेरे साथ यु ही
इस से पहले की वो और कुछ कहती , निचे मोहल्ले में अचानक से ही चीख पुकार मच गयी . शोर होने लगा तो हम दोनों भाग कर गए और जाकर देखा की ..................................