#23
“तुम जानती हो ये किसका है ” मैंने फिर पूछा
“मुझे नहीं मालूम , ” ताई ने कहा
मैं- तुम जानती हो
ताई- तू जा यहाँ से ,
मैं- बताओ ये किसका है
“मैंने कहा न तू जा यहाँ से ” ताई ने इस बार थोड़े गुस्से से बोला
मैं- जा रहा हूँ, मत बताओ पर मुझे मालूम है तुम जानती हो ये किसका है
मैं नीम के निचे चबूतरे पर जाकर बैठ गया और सोचने लगा की ताई ने इस धागे को पहले भी देखा है वो जानती है , आँखों के सामने उस हीरे को देख रहा था जिसकी गर्मी अब थोड़ी कम हो गयी थी पर वो गर्म था . जैसे उसमे आग जल रही हो. सफ़ेद हीरे का रंग केसरिया हो गया था . जब कुछ न सोचा तो मैं चबूतरे पर लेट गया और थोड़ी देर के लिए आँखों को मूँद लिया.
न जाने कितनी देर मेरी आँख लगी होगी पर अचानक से कुत्तो के भोंकने की आवाज से मैं जागा तो मैंने देखा की बिजली नहीं थी, पूरा गाँव अँधेरे में डूबा हुआ था .
“ये साले कुत्ते क्यों इतना भोंक रहे है ” मैंने उनको गाली दी. पर तभी पायल की आवाज से मुझे महसूस हुआ की गली में कोई है, कोई औरत है . काले अँधेरे में काले कपडे पहले वो आबनूस सी तेजी से जा रही थी . न जाने मुझे क्या हुआ . मैं भी उसी दिशा में चल पड़ा.
छम छम करती वो औरत बस चली जा रही थी , गाँव पीछे बहुत पीछे रह गया था . मुझे उस से कुछ लेना देना नहीं था पर चुल थी की इतनी रात गए ये कौन है , कहाँ जा रही है .अचानक से एक मोड़ पर वो रुक गयी . उसे जैसे किसी का इंतज़ार था .
कुछ देर बाद वहां पर एक आदमी और आ गया . मैं थोडा सा और आगे हुआ ताकि जान सकू ये कौन थे .
“बात मेरे काबू से बाहर निकल चुकी है , उसकी रगों में खून उबाल मार रहा है , मैं चाह कर भी उसे नहीं रोक पाउँगा जो उसे करना है वो करके ही रहेगा ” आदमी ने कहा
“पर इसका अंजाम कौन भुगतेगा , ” औरत ने कहा
मैं आवाज को पहचानने की कोशिश करने लगा.
“तो मैं क्या करू , कुछ भी तो नहीं समझ आ रहा ” आदमी ने कहा .
उसकी आवाज जानी पहचानी तो लग रही थी पर शब्द लडखडा रहे थे उसके शायद नशे में था तो समझ नहीं आ रहा था .
“उसे बाहर भेजने का इंतजाम कर दिया है पर वो मानता नहीं ” जब उसने ये बात कही तो मैं समझ गया ये मेरे बारे में थी और ये आदमी चाचा था . पर ये औरत कौन थी जिस से मिलने के लिए उसे इतनी दूर आना पड़ा था .
“मुझे चिंता ये नहीं है, उसने लालाजी से भी तो पंगा ले लिया है, ऊपर से लाला के आदमियों को कोई पेल रहा है , लाला को शक है ” औरत ने कहा
चाचा- पर मेरे भतीजे का लाला के आदमियों से कोई लेना देना नहीं
औरत- जानती हूँ, लाला के शक की वजह कोई और ही है , मैंने कोशिश भी की थी पर उसने खुल कर कुछ नहीं बताया . कुछ तो ऐसी बात है जो लाला के दिल की गहराई में दफ़न है.
चाचा- मनीष की तरफ अगर लाला ने बुरी नजर डाली तो मैं चुप नहीं बैठूँगा
“जानती हूँ, पर तुम्हारे भतीजे को भी थोडा देखना चाहिए था न , लाला को थप्पड़ मार दिया उसने ” औरत ने कहा
चाचा- जानता हूँ उसकी गलती है , पर लाला को भी भाई का जिक्र नहीं करना था पूरा गाँव जानता है लाल और भाई की कभी बनी नहीं आपस में. मनीष की जगह कोई और भी होता तो वो ये ही करता .
औरत- पर लाला घाघ है
चाचा- परवाह नहीं मुझे. अपनी अगली पीढ़ी के लिए मैं कुछ भी कर जाऊँगा
औरत- अलख के बारे में क्या सोचा, मेले के थोड़े दिन बचे है , मनीष को बताया तुमने
चाचा- कोई जरुरत नहीं उसे बताने की
औरत-अर्जुन का भार कौन उतारेगा , काश वो होता
चाचा- भाई नहीं है तो क्या हुआ मैं तो हूँ, मैं जाऊंगा वहां .
औरत- तुम जानते हो , तुम अलग हो इन सब बातो का बोझ तुम नहीं उठा सकते .
चाचा- अपने परिवार का बोझ तो उठा सकता हूँ न, चाहे मुझे जान देनी पड़े पर मैं मेरे भतीजे को इन सब में शामिल नहीं करूँगा. मेरे जीते जी कुल का दीपक ही बुझ गया तो मेरे जीने का क्या फायदा .
उस औरत ने चाचा का हाथ अपने हाथ में पकड लिया.
“काश ये दुनिया तुम्हे समझ पाती ” उसने कहा
चाचा- तुम तो समझती हो न मुझे.
चाचा ने उस औरत की गोद में अपना सर रख दिया. और मैं सोचने लगा की ये औरत कौन है , चाचा के इतनी नजदीक है तो मैं इसे जरुरर जानता हूँ . मैं वहां उन्हें छोड़ तो आया था पर मेरा ध्यान बस फिर इसी बात पर अटक गया था .
अगले दिन मैंने ताई को कुछ पैसे दिए और खेतो का काम याद दिलाया. उसके बाद मैं रीना से मिला तो मालूम हुआ की वो शहर निकल गयी . मुझे बहुत जरुरी बात करनी थी पर अब तो उसका इंतज़ार ही कर सकते थे . मैं कुछ सोच ही रहा था की तभी मुझे सुनार आता दिखा. वैसे तो वो गाड़ी में ही चलता था पर न जाने आज क्यों छतरी लिए पैदल ही जा रहा था . मैं उसके पास गया .
“और लाला कैसा है ” मैंने उससे कहा
“पुरे इलाके में लोग हाथ जोड़कर अदब से सेठ जी कहते है मुझे ” उसने कहा
मैं- पुरे इलाके में पीठ पीछे तुझे न जाने क्या क्या कहते है लोग
लाला- तेरी हिम्मत की दाद देता हूँ मैं आग से खेलने का बहुत शौक है तुझे
मैं- मैं खुद एक आग हूँ लाला तपिश तो गाल पर महसूस होती ही होगी न तुझे
लाला- जिस दिन तू झुलसेगा न तपिश क्या होती है तब समझेगा तू
मैं- पहले मेरे बाप ने तेरी गांड तोड़ी थी अब मैं तोडूंगा . क्या लाला तेरे तो नसीब ही चुतिया है .
लाला- तेरे बाप को भी यही घमंड था
“खैर लाला , उस दिन तूने मुझसे कहा था की माल तुझे बेच दू, सुन मेरे पास एक ऐसी चीज है जिसमे तेरी दिलचस्पी हो सकती है ” मैंने कहा
लाला ने अपनी सुनहरी ऐनक को उतार कर जेब में रखा और बोला- इतना चुतिया नहीं है तू जितना दुनिया तुझे समझती है , सीधा मुद्दे पर आ .
अब जो मैं करने वाला था , मैं जानता था की मैं मेरे ऊपर एक ऐसी मुसीबत ले रहा हूँ जो मुझे बहुत दिनों तक सताने वाली थी . पर मैं वो दांव खेलने जा रहा था जो इस खेल के ऐसे पत्ते मेरे सामने खोल देता जिस से की बाज़ी खुल जाती .