#19
“क्या किया मैंने , कुछ भी तो नहीं अभी तो बस सो कर उठा हूँ ” मैंने कहा
ताई- झूठ बोलता है, मैंने तुझसे कितनी दफा कहा इस आग से मत खेल पर तू है की मानता ही नहीं , सोलह साल बीत गए है जिन्दगी ऐसी बिखरी की आज तक संवर नहीं पायी और तू कहता है की कुछ भी नहीं किया
मैं- पर मुझे बताओ तो सही ऐसी कौन सी खता हुई है मुझसे जो इतना गुस्सा कर रही हो.
ताई- चल मेरे साथ तू खुद ही देख ले
ताई ने मेरी बाह पकड़ी और लगभग घसीटते हुए मुझे गाँव की चोपाल पर ले आई. और वहां जाकर मुझे मालूम हुआ की वो इतना बिफरी हुई, इतनी घबराई हुई क्यों थी . चौपाल के चबूतरे पर दो लाशे पड़ी थी , जिनके सर काट कर पास में रख दिए गए थे. ये लाशे रंगा और उसके दोस्त की थी . लाशो की आँखे खुली थी, पुतलिया फैली थी , खौफ महसूस किया मैंने भी .
“ये काण्ड कौन कर गया ” उबकाई से बचने के लिए मैंने मुह पर हाथ रखते हुए कहा .
ताई की आँखे मुझे ऐसे घुर रही थी जैसे की मेरा स्कैन कर रही हो,
“कल ही तो तूने इनको धमकी दी थी ” ताई ने मुझे वहा से दूर ले जाते हुए कहा
मैं- वो इसलिए की तू मेरे साथ थी वो तेरे साथ कुछ भी हरकत कर सकते थे . पर तेरी कसम मैंने ये काम नहीं किया, तू अपने दिल पर हाथ रख कर बता, क्या तुझे सच में ऐसा लगता है की मैं किसी को मार सकता हूँ .
“मेरा दिल बहुत घबरा रहा है, सब को मालूम है सुनार से तेरी बोलचाल हुई है, और ये जब्बर के आदमियों का यूँ मरना , तू नहीं जानता राक्षस है वो जीता जागता, थाने - कचहरी , नेता विधायक सबके साथ उठाना बैठना है उसका , तू इन सब पचड़ो से दूर रह .तू कुछ भी छुपा रहा है तो रब्ब के वास्ते मुझे बता दे ” ताई ने कहा
“तेरे सर की कसम मेरा इन दोनों से कोई भी लेना देना नहीं है ” मैंने अपना हाथ ताई के सर पर रखा तो उसका गुस्सा थोडा कम हुआ पर उसके हाव भाव से अभी भी लग रहा था की वो मेरा भरोसा नहीं कर रही थी.
“तो फिर कौन मार गया इनको ” ताई ने धीरे से पूछा
मैं-वो ही जिसने चरण सिंह को मारा था
ताई- तुझे कैसे मालूम
मैं- देख गौर से इन लाशो को , एक दम सफ़ेद है खून की एक बूँद भी नहीं है बदन में और दूसरी बात इन्हें भी कही और मारा गया है , चरण सिंह के जैसे
ताई- मुझे लगता है कातिल कोई और है
मैं- कैसे
ताई- क्योंकि चरण सिंह का सर नहीं काटा गया था उसे फांसी दी गयी थी
ये बात मैं चुक गया था . पर बात सही थी . मतलब दो कातिल हो सकते थे पर क्या ये सिर्फ ताई का अनुमान ही नहीं हो सकता था .
“चल घर चलते है ” मैंने कहा और हम ताई के घर आ गए.
मैंने कुल्ला किया और कुर्सी पर बैठ गया . ताई ने कुछ ही देर में चाय बना ली मैंने कप उठाया ही था की अन्दर से ताऊ आ गया .
मैं- क्या ताऊ, जब से सिनेमा की नौकरी पकड़ी है घर का रास्ता ही भूल गए हो .
ताऊ- उधर सही है मुफ्त का खाना पीना है, पास ही ठेका है और फिर क्या फर्क पड़ता है सोना ही तो है इधर सोये या उधर क्या फर्क पड़ता वैसे भी इस रांड से जितना दूर रहे उतना ही सही है .
मैं- ताऊ, आखिर क्यों ताई को आप जब देखो गालिया बकते रहते हो. आप ही इसकी कदर नहीं करोगे तो दुनिया भी दो बाते कहेगी.
ताऊ- तू नहीं जानता बेटे इस छिनाल को ये किसी की भी नहीं है, आज तू मेरी बात नहीं समझेगा पर जिसदिन इसकी असलियत तेरे सामने आएगी उस दिन तू मेरी कही बात याद करेगा . तुझे भी लगता होगा की ताऊ दो पैसे की दारू पीकर माहौल ख़राब करते रहता है पर मैं जानता हूँ मैं कैसे जिन्दा हूँ , ये कीड़े-मकोड़े की जिन्दगी जो मैं जी रहा हूँ अपने जमीर को मार कर जी रहा हूँ .
मुझे लगा की ताऊ कहीं सुबह सुबह ही ताई के साथ कलेश करना शुरू न कर दे तो मैंने बात बदलने की कोशिश की .
मैं-कभी मुझे फिलम दिखा दो , अबतो फुल चलती है आपकी
ताऊ- ये भी कोई कहने की बात है तेरा जी करे तू आ जा
मैं- हाँ पक्का, एक दो दिन में ही आता हूँ वैसे भी शहर गए बहुत दिन हो गए है . ठीक है अब मैं चलता हूँ
ताऊ- बहार तक चलते है साथ, मेरा भी जाने का समय हो गया है , हर हफ्ते एक ही छुट्टी मिलती है मुझे न वो मेरा झोला ले आ जरा
मैंने ताऊ का झोला उठाया और हम दरवाजे के बाहर आ गए . मैंने झोला साइकिल पर टांगा , ताऊ ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोला- देख बेटे, मेरी बात को ध्यान से समझना जब बेटे के पाँव बड़ो की जूतियो में आने लगते है तो बेटे बेटे नहीं रहते वो दोस्त बन जाते है ये बात मैं तुझे बेटा समझ कर नहीं बल्कि दोस्त समझ कर कह रहा हूँ , मेरे पीछे से घर का ध्यान रखना .
मैंने हाँ में बस सर हिला दिया ताऊ ने जो बात बस एक लफ्ज़ में कही थी उसका बोझ बहुत बड़ा था , घर आकर मैं चाचा से मिला जो आँगन में ही बैठे थे , न जाने क्यों मुझे लगा की चाचा की तबियत ठीक नहीं है , चेहरे पर अजीब सा पीलापन था . मैं चोबारे की तरफ जाने लगा तो उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया.
मैं-जी
चाचा- तुम रुद्रपुर गए थे क्या
मैं- हाँ
चाचा- और क्या हुआ वहां पर
मैं- कुछ नहीं चाचा
वो- तुमने जोरावर को मारा
मैं- नहीं, बस हमारी बोलचाल हुई थी .
चाचा- मैंने इंतजाम किया है तुम्हे बड़े शहर भेजने का
मैं- पर क्यों
चाचा- वहां पर बढ़िया कालेज है , वहां पढोगे अफसर बनोगे , नौकरी करो गे , यहाँ क्या है इन खेतो के सिवा, मैं बस जमींदार बनके रह गया कुनबे में कोई अफसर बनेगा तो इलाके में हमारा भी मान बढेगा
मैं- मेरे बाप ने की थी नौकरी, एक बार गया फिर कभी लौट कर आया ही नहीं . मैं कही नहीं जाने वाला यही रहूँगा, अपनी जमीनों को पसीने से सीन्चुन्गा , किसानी करूँगा.
इस से पहले की चाचा कुछ कह पाता आँगन में पायल की आवाज गूंजी और पलटते ही मैं मुस्कुरा पड़ा. ..................