#18
वो मुझसे बस थोड़ी ही दूर थी, इतना की मैं बस हाथ आगे बढ़ा कर उन मादकता से भरे नितम्बो को सह्ला सकता था . मेरे होंठो पर थूक सूख गया, हाथ कांपने लगे. मैं बता नहीं सकता की उस लम्हे में मैं न जाने क्या कर जाता.
“इतना धीरे क्यों चल रहा है ” ताई ने फिर पीछे मुडके कहा .
मैं- कहाँ धीरे चल रहा हूँ
मैंने कहा और ताई के कदमो से कदम मिला लिए. थोड़ी देर में हम लोग खेत पर पहुँच गए, बिजली आ रही थी तो मैंने पानी की हौदी पूरी भर दी. कुवे से निकला ताजा पानी एकदम ठंडा था, मैंने कुछ छींटे मुह पर मारे और थोड़ी मस्ती करते हुए ताई की तरफ भी मग्गा भर के फेक दिया.
“क्या करता है , भिगो दी न मुझे ” ताई ने झल्लाते हुए कहा .
“भीगना तो था ही वैसे भी , कपडे धोने जो है ” मैंने कहा
ताई कुछ कहती उससे पहले ही मैंने कपडे उतारे और हौदी में कूद गया . ताई ने बाल्टी भरी, अपने लहंगे को थोडा सा ऊँचा उठाया, उसकी गोरी मांसल पिंडलिया देख कर एक बार फिर हसरतो का पंछी अरमानो के बादलो में उड़ने लगा. कपडे धोती ताई की बजती चूडिया बड़ी अच्छी लग रही थी, गीले ब्लाउज से दिखती ताई की काली ब्रा गजब ढा रही थी.
“क्या देख रहा है ऐसे ” अचानक से ताई ने मुझसे पूछा
मैं- कुछ नहीं
ताई- कुछ तो देख रहा है
मैं- तुम्हे क्या लगता है
ताई- नजरो को पढने का हुनर है मुझमे
ताई ने कहा और हौदी पर अपनी कोहनिया टिका कर खड़ी हो गयी, उस अवस्था में ब्लाउज से झांकती चुचिया मुझे जैसे कह रही थी कौन रोक रहा है तुझे आ थाम ले हमें और निचोड़ ले सारे रस को.
“तो क्या पढ़ा मेरी नजरो में तुमने ” मैंने ताई के मन को टटोला
ताई- कपडे सूख जाये तब तक मैं थोडा आराम कर लेती हूँ तू दो बालटी पानी पीछे की तरफ रख दे मैं बाद में नहा लुंगी,वैसे भी आधी तो भीग ही गयी हूँ उफ़ मेरी कमर .
मैं- पीछे क्यों यही नहा लो. हौदी भरी तो हैं
“यहाँ कैसे, मतलब तू भी तो है यहाँ पर ” ताई ने कहा
“ मैं चला जाता हूँ वैसे भी मेरा हो ही गया है “ मैंने कहा
और हौदी से निकल ही रहा था की ताई ने कहा- रहने दे , मैं यही नहा लेती हूँ, नहाना होगा तब तक दुसरे कपडे सूख जायेंगे वो पहन लुंगी फिर “
मैंने कंधे उचकाए और वापिस हौदी में घुस गया. बेशक ठंडा पानी मेरे बदन को राहत दे रहा था पर अंदर से काम वासना जला रही थी मुझे. ताई ने डिब्बे में पानी लिया और अपने बदन पर गिराने लगी. भीगा बदन किसी क़यामत से कम नहीं था, ताई का लहंगा उसकी जांघो से चिपक गया था जिस से उसकी गदराई जांघे और सुडौल लगने लगी थी .
ताई को निहारते हुए मैंने पास रखी साबुन उठाई और अपने बदन पर मलने लगा. तो ताई ने मुझे टोका- अरे बाहर आकर साबुन लगा, सारा पानी ख़राब हो जायेगा.
तो मैं हौदी से बाहर आया. मेरे बदन पर बस एक कच्छा था जिसमे मेरा अर्ध उत्तेजित लिंग फडफडा रहा था. ताई ने मेरे उस हिस्से पर भरपूर नजर डाली और बोली- थोडा साबुन मेरी पीठ पर भी लगा दे..
न जाने क्यों मुझे बहुत ख़ुशी हुई. मैं तुरंत ताई के पीछे आया इतना पीछे के मेरा अगला हिस्सा ताई के नितम्बो से टकराने लगा. पहली बार ताई की गांड को अपने बदन पर महसूस किया मैंने और मेरा लिंग तुरंत ही उत्तेजित होकर ताई के कुल्हो से रगड़ खाने लगा.
मैंने साबुन ली और ताई की गर्दन के पीछे लगाने लगा.
ताई- अच्छे से लगा
मैं- इतना ही लगेगा.ब्लाउज में ताई ने ब्लाउज के हुको को खोला और उसे एक झटके में उतार दिया. मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी. ताई की पीठ पूरी तरह मेरी आँखों के सामने थी. मैंने ताई की ब्रा की पट्टी को छोड़ कर पूरी पीठ पर साबुन मला. फिर मैं ताई के पेट पर साबुन लगाने लगा. उफ्फ्फ क्या नर्म अहसास था वो मेरे लिए. पसलियों से जरा सा ऊपर जब मेरी उंगलियों ने ताई की चुचियो को छुआ तो कसम से क्या ही मजा आया.
मैंने बिना कुछ कहे ताई की ब्रा को खोल दिया .
“ये क्या कर रहा है तू ” ताई ने हौले से कहा
“साबुन लगा रहा हूँ ” मैंने ताई की चुचियो पर साबुन रगड़ते हुए कहा . साबुन तो बहाना था मैं अब खुल के ताई के उभारो को दबा रहा था . ताई की गांड बिलकुल मेरे लिंग पर सेट हो चुकी थी . लम्बे लम्बे सांस लेते हुए ताई अपनी चुचिया मसलवा रही थी . मैंने ताई के निप्पलस को कड़क होते महसूस किया. मेरा दिल किया की मैं ताई के गाल चूम लू . अब मैंने ताई को घुमा कर अपनी तरफ किया वो आँखे मूंदे खड़ी थी. बहुत गौर से, जी भर कर मैंने ताई की छातियो का नजारा देखा. मैंने ताई का हाथ ऊपर किया और बगलों में साबुन लगाई.
मेरी हिम्मत बढ़ी, मैंने ताई के लहंगे के नादे में उंगलिया घुमाई और उसे खींच दिया. ताई अब सिर्फ काले रंग की कच्छी में मेरी आँखों के सामने खड़ी थी . उसका हाहाकारी जिस्म मुझे पागल कर गया था. मैंने कांपते हाथ उसकी गोरी जांघो पर रखे और जांघो पर साबुन लगाने लगा. जांघो में थिरकन को साफ़ महसूस किया मैंने. गीली कच्छी जांघो पर बहुत टाइट थी तो चूत की वी शेप पूरी तरह से नुमाया हो रही थी , हलकी सी फूली हुई वो चीज जिसे पा लेना ही अब मेरी हसरत थी. जैसे ही मैंने अपने हाथ से चूत को छुआ, ताई ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कांपते हुए बोली- बस लग गयी साबुन, फटाफट से पानी डाल लेते है कोई आ निकलेगा इस तरफ तो मुसीबत होगी.
वो मेरे सामने कच्छी में खड़ी थी , मैं उसे उसी समय चोदना चाहता था.
मैंने ताई को अपनी बाँहों में उठाया और पानी की हौदी में डाल दिया ,
“मत कर ” ताई ने कहा
“कुछ भी तो नहीं कर रहा मैं ” मैंने ताई के कान में कहा और उसके बदन से चिपक गया .
ताई- क्या करना चाहता है तू
मैं- कुछ नहीं ,
ताई- कोई हमें इस हालत में देखेगा तो क्या सोचेगा, बदनामी होगी.
मैं- किसी गैर के साथ तो नहीं तुम
वो- मेरा नाता कुछ और है
मैं-क्या मेरा हक़ नहीं तुम पर
ताई- मैं तुम्हारी ही तो हूँ
मैंने ताई के चेहरे को अपने हाथो में लिया और उसकी आँखों में देखने लगा.
“मैं नहीं जानता की ये सही है या गलत है पर अगर आज अभी इसी पल मैंने अपने मन की बात तुम्हे नहीं बताई तो सारी उम्र मुझे इसका मलाल रहेगा, मैं नहीं जानता की मेरी बात सुनकर तुम क्या कहोगी. पर मैं आज तुमसे कहता हूँ की मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ, तुम्हे अपनी बनाना चाहता हूँ, ” मैंने कहा .
मेरी बात सुनकर ताई मुझसे अलग हो गयी और बोली- ये डोर जो तुम बांधना चाह रहे हो ये बड़ी कच्ची है, ये रिश्ता जो तुम मुझसे जोड़ना चाहते हो इसमें तुम्हे और मुझे कुछ नहीं मिलेगा सिवाय बदनामी के, जिल्लत के , जिस दिन ये बात खुलेगी परिवार का एक हिस्सा और टूट जायेगा.
मैं- फिर भी मुझे ये साथ चाहिए
ताई- मुझे सोचने दे,थोडा वक्त दे मुझे.
ताई हौदी से बाहर आई और बदन पर तौलिया लपेट कर दूसरी तरफ चली गयी. वापसी में हम दोनों के दरमियान एक खामोशी रही, न उसने कुछ कहा न मैंने कुछ . बाकी का दिन मेरा घर पर ही बीता. मैं चाची से कुछ बात करना चाहता था पर उसने मुझे मौका नहीं दिया. रात भी मेरी ऐसे ही कटी , अगली सुबह उठ कर मैं गली में दातुन कर ही रहा था की दनदनाती हुई ताई मेरे पास आई और बोली- ये तूने क्या कर दिया........... ये नहीं करना था तुझे, ...............