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#17
ख्यालो में मीता का अहसास लिए मैं रुद्रपुर के बाजार में थोड़ी देर रुक गया , एक दूकान पर मैं गन्ने का रस पी ही रहा था की मैंने अपनी ओर दो लडको को आते देखा, जिसमे से एक वो ही था जिसने मुझे उस दिन रोका था .
“तू फिर आ गया , ” उसने कहा
मैं- कोई मनाही है क्या, या तूने खरीद रखा है इस गाँव को जो हर कोई तेरी मर्ज़ी से आएगा जायेगा.
वो- मेरी मर्जी तो तुझे बता देता उसी दिन अगर दद्दा ठाकुर ने मुझे नहीं रोका होता.
मैं- आज तो नहीं है न दद्दा ठाकुर यहाँ पर ,
वो- साले, तू खुद को समझता क्या है तुझे होश भी नहीं है की पल भर में तेरे साथ क्या से क्या हो सकता है , आसपास देख जरा और समझ तू किसके इलाके में है .
मैं- किसी ने तुझे बताया नहीं की इलाके कुत्तो के होते है , इंसानों के नहीं वैसे तेरा नाम बता जरा
वो- जोरावर नाम है मेरा.
उसका नाम सुनते ही मुझे इतनी तेज हंसी आ गयी .
“क्या हुआ तुझे , ” उसने हिकारत से पूछा
मैं- तूने वो कहावत सुनी तो होगी ही नाम फतेहसिंह शक्ल चुतिया ,बस तेरा नाम जानकार याद आ गयी .
“हरामजादे तेरी ये हिम्मत तूने जोरावर की बेइज्जती की ” उसने मेरा गिरेबान पकड़ लिया.
मैंने अपना घुटना उसकी टांगो के बीच मारा और उसके सर को गन्ने की रेहड़ी पर दे मारा.पर अगले ही पल मेरी गलती का अहसास हुआ मुझे एक ये काम ही नहीं करना था मुझे . मैंने जोरावर को उठाया .
“सुन चूतिये, मैं नहीं जानता तू किसके ऊपर कूदता है , मुझे जानना भी नहीं है और घंटा फरक भी नहीं पड़ता , ये गाँव ये रास्ता किसी का भी हो, मेरा जब जी करेगा जब मैं आऊंगा. मैं नहीं जानता तेरी दिक्कत क्या है और न मैं तेरी दिक्कत का इलाज करना चाहता हूँ तू अपने काम से काम रख “मैंने उसके कपडे झाड़ते हुए कहा.
क्या मालूम उसे मेरी बात समझ आई या नहीं पर मैं ये इस टाइप के लफड़े बिलकुल नहीं चाहता था , क्योंकि मेरी जिन्दगी वैसे ही बहुत उलझी पड़ी थी, ये नया चुतियापा मैं नहीं चाहता था. खासकर जब मुझे अब मीता से मिलने आते जाते रहना ही था. अपने ख्यालो में गुम कब मैं गाँव आ गया मालूम ही नहीं हुआ.
मैं सीधा ताई के घर गया . वो झुक कर झाड़ू लगा रही थी आँगन में, मेरी नजर उसकी चुचियो की घाटी पर पड़ी और फुर्सत से मैंने ताई की चुचियो के दर्शन किये. दिल ने एक बार फिर कहा की एक बार जिक्र कर ये दे देगी. पर दिल की कौन माने . ताई ने मुझे बैठने को कहा और कुछ देर में मेरे पास आ गयी .
“”ये तेरे दिमाग में क्या चल रहा है तूने लाला को थप्पड़ मार दिया. जानता है न तू उसे ” ताई ने शंकित स्वर में कहा .
मैं- मुझे परवाह नहीं साला मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था थप्पड़ नहीं मारता तो क्या करता
ताई- अभी तू इस लायक नहीं है की ऐसे पंगे ले सके. खासकर तब जब पहले जैसा कुछ नहीं रहा .
मैं- मुझे जरा भी परवाह नहीं है की पहले क्या था अब क्या है ,मैं अपनी ही परेशानियों में घिरा हुआ हूँ,
ताई- मैं समझती हूँ
मैं- तुम नहीं समझती, एक तो उस दद्दा ठाकुर के पिल्ले से पंगा हो गया आज मेरा , घर जाऊ तो चाची ने जीना हराम किया हुआ है . करू तो क्या करू .
ताई- दद्दा ठाकुर, तू कब मिला उस से , क्या कहा उसने तुझसे .
मैं- क्या कहेगा चुतिया . मैं रुद्रपुर गया था तो टकरा गया उस से .
ताई न अपने मुह पर हाथ रखा और बोली- तुझे नहीं जाना था वहां पर , नहीं जाना था .
मैं- पर क्यों , हर कोई ये ही कहता है की नहीं जाना , पर क्यों नहीं जाना ये कोई नहीं बताता.
ताई- क्योंकि दद्दा ठाकुर से दुश्मनी है हमारी, तेरे दादा को उसी ने मरवाया था .
मैं- ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई तुमने
ताई- क्योंकि ये एक उडती सी खबर है , इसका कभी कोई सबूत नहीं मिला , सब का अंदाजा है ये क्योंकि तेरे दादा की लाश रुद्रपुर में मिली थी .
मैं- दद्दा ठाकुर से दुश्मनी क्यों हुई
ताई- ये एक राज़ है , ऐसा राज जो न जाने किसके सीने में दफ़न है .
मैं- अगली बार दद्दा ठाकुर मिलेगा तो उसी से पूछ लूँगा.
ताई- तू उस से दुबारा मिलने की गलती बिलकुल मत करना.
मैं- ताई तू मेरे पिता को कितना जानती थी .
ताई- जितना उसे कोई नहीं जानता
अचानक ताई के शब्द रुक गए , उसने तुरंत बदलते हुए कहा- मैं ही क्या सारा गाँव उसे जानता था , मानता था . अर्जुन गाँव के हर किसान का कन्धा था , हर माँ का बेटा जब तक की वो हवेली .....
मैं- हवेली क्या ..
ताई- कुछ नहीं , तू अब जा मुझे कुछ काम है तू फिर आना .
मैं- तू कुछ छिपा रही है मुझसे ताई .
ताई- मैंने कहा न तू जा अभी .
ताई ने लगभग मुझे घर से बाहर ही कर दिया और दरवाजा बंद कर लिया. कुछ तो ऐसा था जो ताई मुझसे छिपा रही थी . अतीत के आखिर ऐसे कौन से पन्ने थे जो पलटने से मुझे रोका जा रहा था, ऐसी कौन सी कहानी थी जिसका किरदार मुझे नहीं बनना देना चाहते थे ये लोग.
रात को बड़ी देर तक मैं अपने माता- पिता की तस्वीर देखता रहा . सफ़ेद पगड़ी पहने मेरे पिता मुझे गोद में लिए खड़े थे . मेरी माँ पास में ही बैठी थी .
मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी जो मैंने सुनार से चुराया था . मैंने उसे खोला वो धागा वैसे ही पड़ा था जैसे मैंने उसे छोड़ा था . पर अचानक से मेरा ध्यान एक खास बात पर गया मैंने तुरंत अपनी जेब में हाथ दिया और वो हीरे वाला धागा निकाला दोनों धागों को एक ही तरीके से गूंथा गया था .मतलब साफ था इनको बनाने वाला कोई एक ही था पर कौन ये सवाल और मेरे लिए खड़ा हो गया था .
सुबह मैं ताई के साथ खेत पर जा रहा था की रस्ते में मुझे जब्बर के दो आदमियों ने रोक लिया. ताई घबरा गयी पर मैंने उसे शांत रहने को कहा .
“सुन छोरे , आज के आज जाकर सुनार के पैर पकड़ कर माफ़ी मांग ले. ” उनमे से एक ने कहा
मैं- और माफ़ी न मांगू तो
“तो तुझे दुबारा समझाने न आयेंगे ” उसने कहा .
दिल तो किया था की उसी पल उलझ जाऊ उनसे पर मेरे साथ ताई थी तो मैंने सब्र कर लिया और बोला- जाकर कह देना लाला से कल उसको मेरा संदेसा मिल जायेगा .
“संभल कर रहियो वर्ना अंजाम ऐसा होगा की तूने सोचा न होगा.” उसने धमकी दी.
मैं- नाम क्या है तेरा
वो- रंगा
मैं- रंगा, एक बार जरा साइड में आ
मैं उसे साइड में लेके गया और बोला- आज तो तूने मेरा रास्ता रोक लिया वो भी जब मेरे साथ मेरे घर के लोग है, दुबारा ये गलती मत करना वर्ना तू कभी अपने घर नहीं जा पायेगा, और इसे मेरी चेतावनी मत समझना , मैं अभी कोई तमाशा नहीं चाहता तू निकल और लाला को जाकर कह देना की अपनी गांड संभाल ले, ऐसी रेल बना दूंगा उसकी की फिर कोई स्टेशन नहीं मिलेगा.
मैंने ताई को साथ लिया और खेतो की तरफ चल पड़ा. गुस्से से लाल पीली हुई ताई मेरे आगे चल रही थी , मेरी नजरे एक बार फिर ताई की मटकती गांड पर जम गयी . दिल में बड़ी जोर से इच्छा हुई की अभी के अभी ताई के कुलहो को थाम कर मसल दू. उस पल मैंने सोचा की कैसे भी करके ताई की लेनी ही है .
ख्यालो में मीता का अहसास लिए मैं रुद्रपुर के बाजार में थोड़ी देर रुक गया , एक दूकान पर मैं गन्ने का रस पी ही रहा था की मैंने अपनी ओर दो लडको को आते देखा, जिसमे से एक वो ही था जिसने मुझे उस दिन रोका था .
“तू फिर आ गया , ” उसने कहा
मैं- कोई मनाही है क्या, या तूने खरीद रखा है इस गाँव को जो हर कोई तेरी मर्ज़ी से आएगा जायेगा.
वो- मेरी मर्जी तो तुझे बता देता उसी दिन अगर दद्दा ठाकुर ने मुझे नहीं रोका होता.
मैं- आज तो नहीं है न दद्दा ठाकुर यहाँ पर ,
वो- साले, तू खुद को समझता क्या है तुझे होश भी नहीं है की पल भर में तेरे साथ क्या से क्या हो सकता है , आसपास देख जरा और समझ तू किसके इलाके में है .
मैं- किसी ने तुझे बताया नहीं की इलाके कुत्तो के होते है , इंसानों के नहीं वैसे तेरा नाम बता जरा
वो- जोरावर नाम है मेरा.
उसका नाम सुनते ही मुझे इतनी तेज हंसी आ गयी .
“क्या हुआ तुझे , ” उसने हिकारत से पूछा
मैं- तूने वो कहावत सुनी तो होगी ही नाम फतेहसिंह शक्ल चुतिया ,बस तेरा नाम जानकार याद आ गयी .
“हरामजादे तेरी ये हिम्मत तूने जोरावर की बेइज्जती की ” उसने मेरा गिरेबान पकड़ लिया.
मैंने अपना घुटना उसकी टांगो के बीच मारा और उसके सर को गन्ने की रेहड़ी पर दे मारा.पर अगले ही पल मेरी गलती का अहसास हुआ मुझे एक ये काम ही नहीं करना था मुझे . मैंने जोरावर को उठाया .
“सुन चूतिये, मैं नहीं जानता तू किसके ऊपर कूदता है , मुझे जानना भी नहीं है और घंटा फरक भी नहीं पड़ता , ये गाँव ये रास्ता किसी का भी हो, मेरा जब जी करेगा जब मैं आऊंगा. मैं नहीं जानता तेरी दिक्कत क्या है और न मैं तेरी दिक्कत का इलाज करना चाहता हूँ तू अपने काम से काम रख “मैंने उसके कपडे झाड़ते हुए कहा.
क्या मालूम उसे मेरी बात समझ आई या नहीं पर मैं ये इस टाइप के लफड़े बिलकुल नहीं चाहता था , क्योंकि मेरी जिन्दगी वैसे ही बहुत उलझी पड़ी थी, ये नया चुतियापा मैं नहीं चाहता था. खासकर जब मुझे अब मीता से मिलने आते जाते रहना ही था. अपने ख्यालो में गुम कब मैं गाँव आ गया मालूम ही नहीं हुआ.
मैं सीधा ताई के घर गया . वो झुक कर झाड़ू लगा रही थी आँगन में, मेरी नजर उसकी चुचियो की घाटी पर पड़ी और फुर्सत से मैंने ताई की चुचियो के दर्शन किये. दिल ने एक बार फिर कहा की एक बार जिक्र कर ये दे देगी. पर दिल की कौन माने . ताई ने मुझे बैठने को कहा और कुछ देर में मेरे पास आ गयी .
“”ये तेरे दिमाग में क्या चल रहा है तूने लाला को थप्पड़ मार दिया. जानता है न तू उसे ” ताई ने शंकित स्वर में कहा .
मैं- मुझे परवाह नहीं साला मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था थप्पड़ नहीं मारता तो क्या करता
ताई- अभी तू इस लायक नहीं है की ऐसे पंगे ले सके. खासकर तब जब पहले जैसा कुछ नहीं रहा .
मैं- मुझे जरा भी परवाह नहीं है की पहले क्या था अब क्या है ,मैं अपनी ही परेशानियों में घिरा हुआ हूँ,
ताई- मैं समझती हूँ
मैं- तुम नहीं समझती, एक तो उस दद्दा ठाकुर के पिल्ले से पंगा हो गया आज मेरा , घर जाऊ तो चाची ने जीना हराम किया हुआ है . करू तो क्या करू .
ताई- दद्दा ठाकुर, तू कब मिला उस से , क्या कहा उसने तुझसे .
मैं- क्या कहेगा चुतिया . मैं रुद्रपुर गया था तो टकरा गया उस से .
ताई न अपने मुह पर हाथ रखा और बोली- तुझे नहीं जाना था वहां पर , नहीं जाना था .
मैं- पर क्यों , हर कोई ये ही कहता है की नहीं जाना , पर क्यों नहीं जाना ये कोई नहीं बताता.
ताई- क्योंकि दद्दा ठाकुर से दुश्मनी है हमारी, तेरे दादा को उसी ने मरवाया था .
मैं- ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई तुमने
ताई- क्योंकि ये एक उडती सी खबर है , इसका कभी कोई सबूत नहीं मिला , सब का अंदाजा है ये क्योंकि तेरे दादा की लाश रुद्रपुर में मिली थी .
मैं- दद्दा ठाकुर से दुश्मनी क्यों हुई
ताई- ये एक राज़ है , ऐसा राज जो न जाने किसके सीने में दफ़न है .
मैं- अगली बार दद्दा ठाकुर मिलेगा तो उसी से पूछ लूँगा.
ताई- तू उस से दुबारा मिलने की गलती बिलकुल मत करना.
मैं- ताई तू मेरे पिता को कितना जानती थी .
ताई- जितना उसे कोई नहीं जानता
अचानक ताई के शब्द रुक गए , उसने तुरंत बदलते हुए कहा- मैं ही क्या सारा गाँव उसे जानता था , मानता था . अर्जुन गाँव के हर किसान का कन्धा था , हर माँ का बेटा जब तक की वो हवेली .....
मैं- हवेली क्या ..
ताई- कुछ नहीं , तू अब जा मुझे कुछ काम है तू फिर आना .
मैं- तू कुछ छिपा रही है मुझसे ताई .
ताई- मैंने कहा न तू जा अभी .
ताई ने लगभग मुझे घर से बाहर ही कर दिया और दरवाजा बंद कर लिया. कुछ तो ऐसा था जो ताई मुझसे छिपा रही थी . अतीत के आखिर ऐसे कौन से पन्ने थे जो पलटने से मुझे रोका जा रहा था, ऐसी कौन सी कहानी थी जिसका किरदार मुझे नहीं बनना देना चाहते थे ये लोग.
रात को बड़ी देर तक मैं अपने माता- पिता की तस्वीर देखता रहा . सफ़ेद पगड़ी पहने मेरे पिता मुझे गोद में लिए खड़े थे . मेरी माँ पास में ही बैठी थी .
मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी जो मैंने सुनार से चुराया था . मैंने उसे खोला वो धागा वैसे ही पड़ा था जैसे मैंने उसे छोड़ा था . पर अचानक से मेरा ध्यान एक खास बात पर गया मैंने तुरंत अपनी जेब में हाथ दिया और वो हीरे वाला धागा निकाला दोनों धागों को एक ही तरीके से गूंथा गया था .मतलब साफ था इनको बनाने वाला कोई एक ही था पर कौन ये सवाल और मेरे लिए खड़ा हो गया था .
सुबह मैं ताई के साथ खेत पर जा रहा था की रस्ते में मुझे जब्बर के दो आदमियों ने रोक लिया. ताई घबरा गयी पर मैंने उसे शांत रहने को कहा .
“सुन छोरे , आज के आज जाकर सुनार के पैर पकड़ कर माफ़ी मांग ले. ” उनमे से एक ने कहा
मैं- और माफ़ी न मांगू तो
“तो तुझे दुबारा समझाने न आयेंगे ” उसने कहा .
दिल तो किया था की उसी पल उलझ जाऊ उनसे पर मेरे साथ ताई थी तो मैंने सब्र कर लिया और बोला- जाकर कह देना लाला से कल उसको मेरा संदेसा मिल जायेगा .
“संभल कर रहियो वर्ना अंजाम ऐसा होगा की तूने सोचा न होगा.” उसने धमकी दी.
मैं- नाम क्या है तेरा
वो- रंगा
मैं- रंगा, एक बार जरा साइड में आ
मैं उसे साइड में लेके गया और बोला- आज तो तूने मेरा रास्ता रोक लिया वो भी जब मेरे साथ मेरे घर के लोग है, दुबारा ये गलती मत करना वर्ना तू कभी अपने घर नहीं जा पायेगा, और इसे मेरी चेतावनी मत समझना , मैं अभी कोई तमाशा नहीं चाहता तू निकल और लाला को जाकर कह देना की अपनी गांड संभाल ले, ऐसी रेल बना दूंगा उसकी की फिर कोई स्टेशन नहीं मिलेगा.
मैंने ताई को साथ लिया और खेतो की तरफ चल पड़ा. गुस्से से लाल पीली हुई ताई मेरे आगे चल रही थी , मेरी नजरे एक बार फिर ताई की मटकती गांड पर जम गयी . दिल में बड़ी जोर से इच्छा हुई की अभी के अभी ताई के कुलहो को थाम कर मसल दू. उस पल मैंने सोचा की कैसे भी करके ताई की लेनी ही है .