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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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83,847
259
#17

ख्यालो में मीता का अहसास लिए मैं रुद्रपुर के बाजार में थोड़ी देर रुक गया , एक दूकान पर मैं गन्ने का रस पी ही रहा था की मैंने अपनी ओर दो लडको को आते देखा, जिसमे से एक वो ही था जिसने मुझे उस दिन रोका था .

“तू फिर आ गया , ” उसने कहा

मैं- कोई मनाही है क्या, या तूने खरीद रखा है इस गाँव को जो हर कोई तेरी मर्ज़ी से आएगा जायेगा.

वो- मेरी मर्जी तो तुझे बता देता उसी दिन अगर दद्दा ठाकुर ने मुझे नहीं रोका होता.

मैं- आज तो नहीं है न दद्दा ठाकुर यहाँ पर ,

वो- साले, तू खुद को समझता क्या है तुझे होश भी नहीं है की पल भर में तेरे साथ क्या से क्या हो सकता है , आसपास देख जरा और समझ तू किसके इलाके में है .

मैं- किसी ने तुझे बताया नहीं की इलाके कुत्तो के होते है , इंसानों के नहीं वैसे तेरा नाम बता जरा

वो- जोरावर नाम है मेरा.

उसका नाम सुनते ही मुझे इतनी तेज हंसी आ गयी .

“क्या हुआ तुझे , ” उसने हिकारत से पूछा

मैं- तूने वो कहावत सुनी तो होगी ही नाम फतेहसिंह शक्ल चुतिया ,बस तेरा नाम जानकार याद आ गयी .

“हरामजादे तेरी ये हिम्मत तूने जोरावर की बेइज्जती की ” उसने मेरा गिरेबान पकड़ लिया.

मैंने अपना घुटना उसकी टांगो के बीच मारा और उसके सर को गन्ने की रेहड़ी पर दे मारा.पर अगले ही पल मेरी गलती का अहसास हुआ मुझे एक ये काम ही नहीं करना था मुझे . मैंने जोरावर को उठाया .

“सुन चूतिये, मैं नहीं जानता तू किसके ऊपर कूदता है , मुझे जानना भी नहीं है और घंटा फरक भी नहीं पड़ता , ये गाँव ये रास्ता किसी का भी हो, मेरा जब जी करेगा जब मैं आऊंगा. मैं नहीं जानता तेरी दिक्कत क्या है और न मैं तेरी दिक्कत का इलाज करना चाहता हूँ तू अपने काम से काम रख “मैंने उसके कपडे झाड़ते हुए कहा.

क्या मालूम उसे मेरी बात समझ आई या नहीं पर मैं ये इस टाइप के लफड़े बिलकुल नहीं चाहता था , क्योंकि मेरी जिन्दगी वैसे ही बहुत उलझी पड़ी थी, ये नया चुतियापा मैं नहीं चाहता था. खासकर जब मुझे अब मीता से मिलने आते जाते रहना ही था. अपने ख्यालो में गुम कब मैं गाँव आ गया मालूम ही नहीं हुआ.

मैं सीधा ताई के घर गया . वो झुक कर झाड़ू लगा रही थी आँगन में, मेरी नजर उसकी चुचियो की घाटी पर पड़ी और फुर्सत से मैंने ताई की चुचियो के दर्शन किये. दिल ने एक बार फिर कहा की एक बार जिक्र कर ये दे देगी. पर दिल की कौन माने . ताई ने मुझे बैठने को कहा और कुछ देर में मेरे पास आ गयी .

“”ये तेरे दिमाग में क्या चल रहा है तूने लाला को थप्पड़ मार दिया. जानता है न तू उसे ” ताई ने शंकित स्वर में कहा .

मैं- मुझे परवाह नहीं साला मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था थप्पड़ नहीं मारता तो क्या करता

ताई- अभी तू इस लायक नहीं है की ऐसे पंगे ले सके. खासकर तब जब पहले जैसा कुछ नहीं रहा .

मैं- मुझे जरा भी परवाह नहीं है की पहले क्या था अब क्या है ,मैं अपनी ही परेशानियों में घिरा हुआ हूँ,

ताई- मैं समझती हूँ

मैं- तुम नहीं समझती, एक तो उस दद्दा ठाकुर के पिल्ले से पंगा हो गया आज मेरा , घर जाऊ तो चाची ने जीना हराम किया हुआ है . करू तो क्या करू .

ताई- दद्दा ठाकुर, तू कब मिला उस से , क्या कहा उसने तुझसे .

मैं- क्या कहेगा चुतिया . मैं रुद्रपुर गया था तो टकरा गया उस से .

ताई न अपने मुह पर हाथ रखा और बोली- तुझे नहीं जाना था वहां पर , नहीं जाना था .

मैं- पर क्यों , हर कोई ये ही कहता है की नहीं जाना , पर क्यों नहीं जाना ये कोई नहीं बताता.

ताई- क्योंकि दद्दा ठाकुर से दुश्मनी है हमारी, तेरे दादा को उसी ने मरवाया था .

मैं- ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई तुमने

ताई- क्योंकि ये एक उडती सी खबर है , इसका कभी कोई सबूत नहीं मिला , सब का अंदाजा है ये क्योंकि तेरे दादा की लाश रुद्रपुर में मिली थी .

मैं- दद्दा ठाकुर से दुश्मनी क्यों हुई

ताई- ये एक राज़ है , ऐसा राज जो न जाने किसके सीने में दफ़न है .

मैं- अगली बार दद्दा ठाकुर मिलेगा तो उसी से पूछ लूँगा.

ताई- तू उस से दुबारा मिलने की गलती बिलकुल मत करना.

मैं- ताई तू मेरे पिता को कितना जानती थी .

ताई- जितना उसे कोई नहीं जानता

अचानक ताई के शब्द रुक गए , उसने तुरंत बदलते हुए कहा- मैं ही क्या सारा गाँव उसे जानता था , मानता था . अर्जुन गाँव के हर किसान का कन्धा था , हर माँ का बेटा जब तक की वो हवेली .....

मैं- हवेली क्या ..

ताई- कुछ नहीं , तू अब जा मुझे कुछ काम है तू फिर आना .

मैं- तू कुछ छिपा रही है मुझसे ताई .

ताई- मैंने कहा न तू जा अभी .

ताई ने लगभग मुझे घर से बाहर ही कर दिया और दरवाजा बंद कर लिया. कुछ तो ऐसा था जो ताई मुझसे छिपा रही थी . अतीत के आखिर ऐसे कौन से पन्ने थे जो पलटने से मुझे रोका जा रहा था, ऐसी कौन सी कहानी थी जिसका किरदार मुझे नहीं बनना देना चाहते थे ये लोग.

रात को बड़ी देर तक मैं अपने माता- पिता की तस्वीर देखता रहा . सफ़ेद पगड़ी पहने मेरे पिता मुझे गोद में लिए खड़े थे . मेरी माँ पास में ही बैठी थी .

मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी जो मैंने सुनार से चुराया था . मैंने उसे खोला वो धागा वैसे ही पड़ा था जैसे मैंने उसे छोड़ा था . पर अचानक से मेरा ध्यान एक खास बात पर गया मैंने तुरंत अपनी जेब में हाथ दिया और वो हीरे वाला धागा निकाला दोनों धागों को एक ही तरीके से गूंथा गया था .मतलब साफ था इनको बनाने वाला कोई एक ही था पर कौन ये सवाल और मेरे लिए खड़ा हो गया था .

सुबह मैं ताई के साथ खेत पर जा रहा था की रस्ते में मुझे जब्बर के दो आदमियों ने रोक लिया. ताई घबरा गयी पर मैंने उसे शांत रहने को कहा .

“सुन छोरे , आज के आज जाकर सुनार के पैर पकड़ कर माफ़ी मांग ले. ” उनमे से एक ने कहा

मैं- और माफ़ी न मांगू तो

“तो तुझे दुबारा समझाने न आयेंगे ” उसने कहा .

दिल तो किया था की उसी पल उलझ जाऊ उनसे पर मेरे साथ ताई थी तो मैंने सब्र कर लिया और बोला- जाकर कह देना लाला से कल उसको मेरा संदेसा मिल जायेगा .

“संभल कर रहियो वर्ना अंजाम ऐसा होगा की तूने सोचा न होगा.” उसने धमकी दी.

मैं- नाम क्या है तेरा

वो- रंगा

मैं- रंगा, एक बार जरा साइड में आ

मैं उसे साइड में लेके गया और बोला- आज तो तूने मेरा रास्ता रोक लिया वो भी जब मेरे साथ मेरे घर के लोग है, दुबारा ये गलती मत करना वर्ना तू कभी अपने घर नहीं जा पायेगा, और इसे मेरी चेतावनी मत समझना , मैं अभी कोई तमाशा नहीं चाहता तू निकल और लाला को जाकर कह देना की अपनी गांड संभाल ले, ऐसी रेल बना दूंगा उसकी की फिर कोई स्टेशन नहीं मिलेगा.

मैंने ताई को साथ लिया और खेतो की तरफ चल पड़ा. गुस्से से लाल पीली हुई ताई मेरे आगे चल रही थी , मेरी नजरे एक बार फिर ताई की मटकती गांड पर जम गयी . दिल में बड़ी जोर से इच्छा हुई की अभी के अभी ताई के कुलहो को थाम कर मसल दू. उस पल मैंने सोचा की कैसे भी करके ताई की लेनी ही है .
 

Lutgaya

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#17

ख्यालो में मीता का अहसास लिए मैं रुद्रपुर के बाजार में थोड़ी देर रुक गया , एक दूकान पर मैं गन्ने का रस पी ही रहा था की मैंने अपनी ओर दो लडको को आते देखा, जिसमे से एक वो ही था जिसने मुझे उस दिन रोका था .

“तू फिर आ गया , ” उसने कहा

मैं- कोई मनाही है क्या, या तूने खरीद रखा है इस गाँव को जो हर कोई तेरी मर्ज़ी से आएगा जायेगा.

वो- मेरी मर्जी तो तुझे बता देता उसी दिन अगर दद्दा ठाकुर ने मुझे नहीं रोका होता.

मैं- आज तो नहीं है न दद्दा ठाकुर यहाँ पर ,

वो- साले, तू खुद को समझता क्या है तुझे होश भी नहीं है की पल भर में तेरे साथ क्या से क्या हो सकता है , आसपास देख जरा और समझ तू किसके इलाके में है .

मैं- किसी ने तुझे बताया नहीं की इलाके कुत्तो के होते है , इंसानों के नहीं वैसे तेरा नाम बता जरा

वो- जोरावर नाम है मेरा.

उसका नाम सुनते ही मुझे इतनी तेज हंसी आ गयी .

“क्या हुआ तुझे , ” उसने हिकारत से पूछा

मैं- तूने वो कहावत सुनी तो होगी ही नाम फतेहसिंह शक्ल चुतिया ,बस तेरा नाम जानकार याद आ गयी .

“हरामजादे तेरी ये हिम्मत तूने जोरावर की बेइज्जती की ” उसने मेरा गिरेबान पकड़ लिया.

मैंने अपना घुटना उसकी टांगो के बीच मारा और उसके सर को गन्ने की रेहड़ी पर दे मारा.पर अगले ही पल मेरी गलती का अहसास हुआ मुझे एक ये काम ही नहीं करना था मुझे . मैंने जोरावर को उठाया .

“सुन चूतिये, मैं नहीं जानता तू किसके ऊपर कूदता है , मुझे जानना भी नहीं है और घंटा फरक भी नहीं पड़ता , ये गाँव ये रास्ता किसी का भी हो, मेरा जब जी करेगा जब मैं आऊंगा. मैं नहीं जानता तेरी दिक्कत क्या है और न मैं तेरी दिक्कत का इलाज करना चाहता हूँ तू अपने काम से काम रख “मैंने उसके कपडे झाड़ते हुए कहा.

क्या मालूम उसे मेरी बात समझ आई या नहीं पर मैं ये इस टाइप के लफड़े बिलकुल नहीं चाहता था , क्योंकि मेरी जिन्दगी वैसे ही बहुत उलझी पड़ी थी, ये नया चुतियापा मैं नहीं चाहता था. खासकर जब मुझे अब मीता से मिलने आते जाते रहना ही था. अपने ख्यालो में गुम कब मैं गाँव आ गया मालूम ही नहीं हुआ.

मैं सीधा ताई के घर गया . वो झुक कर झाड़ू लगा रही थी आँगन में, मेरी नजर उसकी चुचियो की घाटी पर पड़ी और फुर्सत से मैंने ताई की चुचियो के दर्शन किये. दिल ने एक बार फिर कहा की एक बार जिक्र कर ये दे देगी. पर दिल की कौन माने . ताई ने मुझे बैठने को कहा और कुछ देर में मेरे पास आ गयी .

“”ये तेरे दिमाग में क्या चल रहा है तूने लाला को थप्पड़ मार दिया. जानता है न तू उसे ” ताई ने शंकित स्वर में कहा .

मैं- मुझे परवाह नहीं साला मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था थप्पड़ नहीं मारता तो क्या करता

ताई- अभी तू इस लायक नहीं है की ऐसे पंगे ले सके. खासकर तब जब पहले जैसा कुछ नहीं रहा .

मैं- मुझे जरा भी परवाह नहीं है की पहले क्या था अब क्या है ,मैं अपनी ही परेशानियों में घिरा हुआ हूँ,

ताई- मैं समझती हूँ

मैं- तुम नहीं समझती, एक तो उस दद्दा ठाकुर के पिल्ले से पंगा हो गया आज मेरा , घर जाऊ तो चाची ने जीना हराम किया हुआ है . करू तो क्या करू .

ताई- दद्दा ठाकुर, तू कब मिला उस से , क्या कहा उसने तुझसे .

मैं- क्या कहेगा चुतिया . मैं रुद्रपुर गया था तो टकरा गया उस से .

ताई न अपने मुह पर हाथ रखा और बोली- तुझे नहीं जाना था वहां पर , नहीं जाना था .

मैं- पर क्यों , हर कोई ये ही कहता है की नहीं जाना , पर क्यों नहीं जाना ये कोई नहीं बताता.

ताई- क्योंकि दद्दा ठाकुर से दुश्मनी है हमारी, तेरे दादा को उसी ने मरवाया था .

मैं- ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई तुमने

ताई- क्योंकि ये एक उडती सी खबर है , इसका कभी कोई सबूत नहीं मिला , सब का अंदाजा है ये क्योंकि तेरे दादा की लाश रुद्रपुर में मिली थी .

मैं- दद्दा ठाकुर से दुश्मनी क्यों हुई

ताई- ये एक राज़ है , ऐसा राज जो न जाने किसके सीने में दफ़न है .

मैं- अगली बार दद्दा ठाकुर मिलेगा तो उसी से पूछ लूँगा.

ताई- तू उस से दुबारा मिलने की गलती बिलकुल मत करना.

मैं- ताई तू मेरे पिता को कितना जानती थी .

ताई- जितना उसे कोई नहीं जानता

अचानक ताई के शब्द रुक गए , उसने तुरंत बदलते हुए कहा- मैं ही क्या सारा गाँव उसे जानता था , मानता था . अर्जुन गाँव के हर किसान का कन्धा था , हर माँ का बेटा जब तक की वो हवेली .....

मैं- हवेली क्या ..

ताई- कुछ नहीं , तू अब जा मुझे कुछ काम है तू फिर आना .

मैं- तू कुछ छिपा रही है मुझसे ताई .

ताई- मैंने कहा न तू जा अभी .

ताई ने लगभग मुझे घर से बाहर ही कर दिया और दरवाजा बंद कर लिया. कुछ तो ऐसा था जो ताई मुझसे छिपा रही थी . अतीत के आखिर ऐसे कौन से पन्ने थे जो पलटने से मुझे रोका जा रहा था, ऐसी कौन सी कहानी थी जिसका किरदार मुझे नहीं बनना देना चाहते थे ये लोग.

रात को बड़ी देर तक मैं अपने माता- पिता की तस्वीर देखता रहा . सफ़ेद पगड़ी पहने मेरे पिता मुझे गोद में लिए खड़े थे . मेरी माँ पास में ही बैठी थी .

मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी जो मैंने सुनार से चुराया था . मैंने उसे खोला वो धागा वैसे ही पड़ा था जैसे मैंने उसे छोड़ा था . पर अचानक से मेरा ध्यान एक खास बात पर गया मैंने तुरंत अपनी जेब में हाथ दिया और वो हीरे वाला धागा निकाला दोनों धागों को एक ही तरीके से गूंथा गया था .मतलब साफ था इनको बनाने वाला कोई एक ही था पर कौन ये सवाल और मेरे लिए खड़ा हो गया था .

सुबह मैं ताई के साथ खेत पर जा रहा था की रस्ते में मुझे जब्बर के दो आदमियों ने रोक लिया. ताई घबरा गयी पर मैंने उसे शांत रहने को कहा .

“सुन छोरे , आज के आज जाकर सुनार के पैर पकड़ कर माफ़ी मांग ले. ” उनमे से एक ने कहा

मैं- और माफ़ी न मांगू तो

“तो तुझे दुबारा समझाने न आयेंगे ” उसने कहा .

दिल तो किया था की उसी पल उलझ जाऊ उनसे पर मेरे साथ ताई थी तो मैंने सब्र कर लिया और बोला- जाकर कह देना लाला से कल उसको मेरा संदेसा मिल जायेगा .

“संभल कर रहियो वर्ना अंजाम ऐसा होगा की तूने सोचा न होगा.” उसने धमकी दी.

मैं- नाम क्या है तेरा

वो- रंगा

मैं- रंगा, एक बार जरा साइड में आ

मैं उसे साइड में लेके गया और बोला- आज तो तूने मेरा रास्ता रोक लिया वो भी जब मेरे साथ मेरे घर के लोग है, दुबारा ये गलती मत करना वर्ना तू कभी अपने घर नहीं जा पायेगा, और इसे मेरी चेतावनी मत समझना , मैं अभी कोई तमाशा नहीं चाहता तू निकल और लाला को जाकर कह देना की अपनी गांड संभाल ले, ऐसी रेल बना दूंगा उसकी की फिर कोई स्टेशन नहीं मिलेगा.


मैंने ताई को साथ लिया और खेतो की तरफ चल पड़ा. गुस्से से लाल पीली हुई ताई मेरे आगे चल रही थी , मेरी नजरे एक बार फिर ताई की मटकती गांड पर जम गयी . दिल में बड़ी जोर से इच्छा हुई की अभी के अभी ताई के कुलहो को थाम कर मसल दू. उस पल मैंने सोचा की कैसे भी करके ताई की लेनी ही है .
दिला दो ताई की
क्यूं तडपा रहे हो भाई
शानदार अपडेट
 

A.A.G.

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173
#16

दिल इतना बेताब कभी नहीं हुआ था , न जाने कैसी ये कसक थी . बैंक से निकल कर मैंने रुद्रपुर का रास्ता लिया ही थी की साइकिल धोखा दे गयी , इस कमबख्त को भी अभी पंक्चर होना था . मैंने साइकिल को दुकान पर खड़ी की और पैदल ही चल दिया. घंटे भर बाद मैं रुद्रपुर की सीम में दाखिल हो गए. मई के अंतिम दिनों की दुपहरी इतना गर्म थी की जैसे बदन से खाल को उतार कर ही मानेगी. एक चरवाहे से मांग कर मैंने थोडा पानी पिया और उन कतार में लगे पीपलो में से एक के निचे जाकर बैठ गया. छाँव मिली तो जी को थोडा करार मिला.

दूर दूर तक कोई दिख नहीं रहा था , सिवाय झुलसती धुप के , आज वो बुजुर्ग लोग भी ताश नहीं खेल रहे थे . कुछ देर मैंने उसका इंतज़ार किया और फिर पेड़ से कमर लगा कर तौलिया मुह पर डाल कर आँखे मूँद ली. हलकी सी नींद में ही गया था की किसी ने झिंझोड़ दिया मुझे . झट से मैंने आँखे खोली . मेरे सामने वो बैठी थी .

“हाँ, तू कब आई ” मैंने उबासी लेते हुए उस से कहा .

वो- बस अभी अभी .

“जब जब तुझे देखता हूँ , दिल करता है तू बस मेरे सामने बैठी ही रहे , ”मैंने कहा

वो- कल को तेरा दिल न जाने क्या कहेगा.

मैं- तू सुन लेना जो भी वो कहे.

वो- यही बकवास करनी है क्या तुझे .

मैं- तू ही बता फिर क्या बात करूँ मैं .

वो- तो कभी तो सिरियस हुआ कर

मैं- सारी जिन्दगी ही रहा हूँ , अब तलाश है कुछ लम्हों की जो मैं जी सकू.

वो- मैंने मालूम किया है तेरे बारे में .

मैं- जासूस है तू

वो- जो मेरे पीछे पड़ा है उसके बारे में जानकारी तो होनी चाहिए न

मैं- तो क्या मालूम हुआ तुझे

वो- यही की तू अमीर है , गाँव में नाम है तुम्हारे परिवार का .

मैं- ये तो तुझे दुनिया ने बताया, तेरे मन ने जो बताया वो बता

वो- मैं दुनिया से अलग हूँ क्या

मैं- उस रात तूने मेरा हाथ देखा था , तो मेरा हाल भी देख ही लिया होगा. तू सितारे पढ़ती है , तूने मेरा मन भी पढ़ा होगा.

वो- मैं एक मुसफ़िर हूँ, मेरी मंजिल का कोई पता नहीं

मैं- मैं बंजर टुकड़ा हूँ, मुझे बरसात की चाह नहीं

वो - मैं लहराता आँचल हूँ ,

मैं- मैं थाम लूँगा

वो- मैं बहती लहर हूँ मेरा साथ तुझे डगमगा देगा .

मैं- तेरा हाथ पकड लूँगा.

वो- मैं गिरी हुई आन हूँ

मैं- तुझे मान बना कर माथे पर लगा लूँगा.

वो- मैं बिखरी हुई राख हूँ

मैं- मै उसे तिलक बना लूँगा.

वो- मेरा साथ तुझे बर्बाद कर देगा.

मैं- मैं बर्बाद होना चाहता हूँ

उसने माथे पर घिरी पसीने से भीगी लटो को पीछे की ओर किया और बोली- चाय पिएगा.

मैं- रोटी खाऊंगा,

“आ फिर संग मेरे ” उसने अपना झोला उठाया और मैं उसके साथ साथ चल पड़ा. पता नहीं क्यों वो बार बार मुस्कुरा रही थी , और ये पहली बार था जब मैंने उसे मुस्कुराते हुए देखा था . चलते चलते हम लोग रुद्रपुर के बाजार में आ गए थे . मैं बस उसके कदमो को देख रहा था , गाँव के साइड से होते हुए हम लोग चल रहे थे तभी मेरी नजर उस सफ़ेद संगमरमर से बनी ईमारत पर पड़ी. मैंने देखा कुछ पलो के लिए मेरी दोस्त के कदम लडखडाये पर फिर उसने अपना मुह दूसरी तरफ फेर लिया. मैं कुछ देर उस तीन मंजिला चमचमाती ईमारत को निहारता रहा .

“आओ भी ” उसने कुछ झुंझला कर कहा . थोडा और चलने पर रस्ता ख़त्म होने लगा. इक्के दुक्के मकान पीछे छूटने लगे और फिर वो रुक गयी . हमारे सामने एक पुराना मकान था जो मरम्मत मांग रहा था . उसने जेब से चाबी निकाल कर उस पुराने ताले को खोला और हम अन्दर आ गए. उसने दरवाजा बंद किया.

आँगन में मिटटी का लेप लगा था, पास में ही एक हैंडपंप था , दो कमरे थे , .

मैंने पास रखे मटके से दो गिलास पानी पिया कुछ छींटे मुह पर मारे और फिर चारपाई पर बैठ गया . उसने झोला खूँटी पर टांका और बोली- बोल क्या खायेगा.

मैं- रोटी .

वो- रोटी किसी के साथ तो खायेगा न ,

मैं- जो है दे दे

वो- बैठ जरा

उसने चूल्हा जलाया और रोटी बनाने लगी.

“थोडा बुरा है पर यही है मेरा घर ” उसने कहा

मैं- घर का क्या बुरा . कमसेकम तेरे पास खुद का घर तो है .मुझे देख मेरे पास तो खुद की झोपडी भी नहीं .

“अन्दर से घी की डोली ले आ.” उसने कहा

मैं अन्दर गया , कमरे से हर चीज़ बड़े करीने से रखी हुई थी . सामने मुहे डोली दिखी तो मैं ले आया उसने थाली में रोटी रखी घी में डुबो कर , कटोरी ने दाल और गिलास में लस्सी.

“अभी तो ये ही है , मालूम होता तो कुछ और बनाती ” उसने कहा .

“मेरे लिए तो ये ही दावत है , न जाने कब आखिरी बार गरम रोटी खाई थी “मैंने निवाला मुह में रखते हुए उसे कहा.

वो मुस्कुरा पड़ी. भरपेट भोजन किया मैंने .

“तेरा बहुत आभार, ” मैंने उस से कहा .

“और कुछ , ” उसने कहा

मैं- हाँ एक गिलास पानी .

“अब ये तेरा घर भी है , दोस्त का जो कुछ है वो तेरा भी है और अपने घर में हुक्म नहीं चलाते जो चाहिए होता है ले लेते है ” उसने कहा

मैं- तूने कब कहा की तूने हा कहदी

वो- कुछ बाते कहीं नहीं जाती बस समझी जाती है . और तुझे भी कुछ बाते समझनी होंगी,

मैं -जैसे की

वो- जैसे की तुम कभी भी यहाँ नहीं आ सकते,

मैं- अभी तो कह रही थी की दोस्त का घर तेरा घर है

वो- मैं अपने चाचा के साथ रहती हूँ , आज वो काम से शहर गया है इसलिए तुजे ले आई , जब वो यहाँ होगा तब तू आ सकता है बाकि हम बाहर कहीं मिलेंगे.

मैं- जो तेरी मर्जी.

वो- ठीक है फिर

मैं- क्या ठीक है

वो- अब तू चल.

मैं- फिर कब मिलेगी.

वो- जब किस्मत में होगा.

मैं- और किस्मत में कब होगा.

वो- जब मैं चाहूंगी.

मैं- सुन , तेरे गाँव की सीम पर ही मेरी बंजर जमीन है , अगर तू चाहे तो हम उधर मिल सकते है .

वो- सोच कर बताउंगी.

मैं- ठीक है मैं चलता हूँ

जी भर कर उसे देखने के बाद मैं दरवाजे तक पहुंचा ही था की मुझे कुछ याद आया .

मैं- सुन जरा

वो- क्या

मैं- तूने नाम नहीं बताया.

वो- मीता, मीता नाम है मेरा.


“मीता,” मेरे होंठो ने कहा और मैं अपने रस्ते चल पड़ा. वापसी में मैंने उसी सफ़ेद ईमारत को देखा. बनाने वाले ने भी क्या खूब कारीगरी की थी , सफ़ेद संगमरमर पर क्या नक्काशी थी , ईमारत की चारदीवारी के बाहर सफ़ेद खम्बे थे जिनपर दो सांप आपस में लिपटे हुए थे. मैं ईमारत को निहारने में इतना मशगूल था की मुझे अचानक से रस्ते से हटना पड़ा, ईमारत से एक के बाद एक गाडिया निकलने लगी और उस खुली जीप में मैंने चश्मा लगाये दद्दा ठाकुर को देखा....... एक पल को हमारी नजरे मिली, कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा और फिर जीप आगे बढ़ गयी धुल उड़ाते हुए.
nice update..!!
toh akhirkar woh usse mil hi liya aur uska naam meeta hai yeh pata bhi kar liya..!!
 

A.A.G.

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20,022
173
#17

ख्यालो में मीता का अहसास लिए मैं रुद्रपुर के बाजार में थोड़ी देर रुक गया , एक दूकान पर मैं गन्ने का रस पी ही रहा था की मैंने अपनी ओर दो लडको को आते देखा, जिसमे से एक वो ही था जिसने मुझे उस दिन रोका था .

“तू फिर आ गया , ” उसने कहा

मैं- कोई मनाही है क्या, या तूने खरीद रखा है इस गाँव को जो हर कोई तेरी मर्ज़ी से आएगा जायेगा.

वो- मेरी मर्जी तो तुझे बता देता उसी दिन अगर दद्दा ठाकुर ने मुझे नहीं रोका होता.

मैं- आज तो नहीं है न दद्दा ठाकुर यहाँ पर ,

वो- साले, तू खुद को समझता क्या है तुझे होश भी नहीं है की पल भर में तेरे साथ क्या से क्या हो सकता है , आसपास देख जरा और समझ तू किसके इलाके में है .

मैं- किसी ने तुझे बताया नहीं की इलाके कुत्तो के होते है , इंसानों के नहीं वैसे तेरा नाम बता जरा

वो- जोरावर नाम है मेरा.

उसका नाम सुनते ही मुझे इतनी तेज हंसी आ गयी .

“क्या हुआ तुझे , ” उसने हिकारत से पूछा

मैं- तूने वो कहावत सुनी तो होगी ही नाम फतेहसिंह शक्ल चुतिया ,बस तेरा नाम जानकार याद आ गयी .

“हरामजादे तेरी ये हिम्मत तूने जोरावर की बेइज्जती की ” उसने मेरा गिरेबान पकड़ लिया.

मैंने अपना घुटना उसकी टांगो के बीच मारा और उसके सर को गन्ने की रेहड़ी पर दे मारा.पर अगले ही पल मेरी गलती का अहसास हुआ मुझे एक ये काम ही नहीं करना था मुझे . मैंने जोरावर को उठाया .

“सुन चूतिये, मैं नहीं जानता तू किसके ऊपर कूदता है , मुझे जानना भी नहीं है और घंटा फरक भी नहीं पड़ता , ये गाँव ये रास्ता किसी का भी हो, मेरा जब जी करेगा जब मैं आऊंगा. मैं नहीं जानता तेरी दिक्कत क्या है और न मैं तेरी दिक्कत का इलाज करना चाहता हूँ तू अपने काम से काम रख “मैंने उसके कपडे झाड़ते हुए कहा.

क्या मालूम उसे मेरी बात समझ आई या नहीं पर मैं ये इस टाइप के लफड़े बिलकुल नहीं चाहता था , क्योंकि मेरी जिन्दगी वैसे ही बहुत उलझी पड़ी थी, ये नया चुतियापा मैं नहीं चाहता था. खासकर जब मुझे अब मीता से मिलने आते जाते रहना ही था. अपने ख्यालो में गुम कब मैं गाँव आ गया मालूम ही नहीं हुआ.

मैं सीधा ताई के घर गया . वो झुक कर झाड़ू लगा रही थी आँगन में, मेरी नजर उसकी चुचियो की घाटी पर पड़ी और फुर्सत से मैंने ताई की चुचियो के दर्शन किये. दिल ने एक बार फिर कहा की एक बार जिक्र कर ये दे देगी. पर दिल की कौन माने . ताई ने मुझे बैठने को कहा और कुछ देर में मेरे पास आ गयी .

“”ये तेरे दिमाग में क्या चल रहा है तूने लाला को थप्पड़ मार दिया. जानता है न तू उसे ” ताई ने शंकित स्वर में कहा .

मैं- मुझे परवाह नहीं साला मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था थप्पड़ नहीं मारता तो क्या करता

ताई- अभी तू इस लायक नहीं है की ऐसे पंगे ले सके. खासकर तब जब पहले जैसा कुछ नहीं रहा .

मैं- मुझे जरा भी परवाह नहीं है की पहले क्या था अब क्या है ,मैं अपनी ही परेशानियों में घिरा हुआ हूँ,

ताई- मैं समझती हूँ

मैं- तुम नहीं समझती, एक तो उस दद्दा ठाकुर के पिल्ले से पंगा हो गया आज मेरा , घर जाऊ तो चाची ने जीना हराम किया हुआ है . करू तो क्या करू .

ताई- दद्दा ठाकुर, तू कब मिला उस से , क्या कहा उसने तुझसे .

मैं- क्या कहेगा चुतिया . मैं रुद्रपुर गया था तो टकरा गया उस से .

ताई न अपने मुह पर हाथ रखा और बोली- तुझे नहीं जाना था वहां पर , नहीं जाना था .

मैं- पर क्यों , हर कोई ये ही कहता है की नहीं जाना , पर क्यों नहीं जाना ये कोई नहीं बताता.

ताई- क्योंकि दद्दा ठाकुर से दुश्मनी है हमारी, तेरे दादा को उसी ने मरवाया था .

मैं- ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई तुमने

ताई- क्योंकि ये एक उडती सी खबर है , इसका कभी कोई सबूत नहीं मिला , सब का अंदाजा है ये क्योंकि तेरे दादा की लाश रुद्रपुर में मिली थी .

मैं- दद्दा ठाकुर से दुश्मनी क्यों हुई

ताई- ये एक राज़ है , ऐसा राज जो न जाने किसके सीने में दफ़न है .

मैं- अगली बार दद्दा ठाकुर मिलेगा तो उसी से पूछ लूँगा.

ताई- तू उस से दुबारा मिलने की गलती बिलकुल मत करना.

मैं- ताई तू मेरे पिता को कितना जानती थी .

ताई- जितना उसे कोई नहीं जानता

अचानक ताई के शब्द रुक गए , उसने तुरंत बदलते हुए कहा- मैं ही क्या सारा गाँव उसे जानता था , मानता था . अर्जुन गाँव के हर किसान का कन्धा था , हर माँ का बेटा जब तक की वो हवेली .....

मैं- हवेली क्या ..

ताई- कुछ नहीं , तू अब जा मुझे कुछ काम है तू फिर आना .

मैं- तू कुछ छिपा रही है मुझसे ताई .

ताई- मैंने कहा न तू जा अभी .

ताई ने लगभग मुझे घर से बाहर ही कर दिया और दरवाजा बंद कर लिया. कुछ तो ऐसा था जो ताई मुझसे छिपा रही थी . अतीत के आखिर ऐसे कौन से पन्ने थे जो पलटने से मुझे रोका जा रहा था, ऐसी कौन सी कहानी थी जिसका किरदार मुझे नहीं बनना देना चाहते थे ये लोग.

रात को बड़ी देर तक मैं अपने माता- पिता की तस्वीर देखता रहा . सफ़ेद पगड़ी पहने मेरे पिता मुझे गोद में लिए खड़े थे . मेरी माँ पास में ही बैठी थी .

मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी जो मैंने सुनार से चुराया था . मैंने उसे खोला वो धागा वैसे ही पड़ा था जैसे मैंने उसे छोड़ा था . पर अचानक से मेरा ध्यान एक खास बात पर गया मैंने तुरंत अपनी जेब में हाथ दिया और वो हीरे वाला धागा निकाला दोनों धागों को एक ही तरीके से गूंथा गया था .मतलब साफ था इनको बनाने वाला कोई एक ही था पर कौन ये सवाल और मेरे लिए खड़ा हो गया था .

सुबह मैं ताई के साथ खेत पर जा रहा था की रस्ते में मुझे जब्बर के दो आदमियों ने रोक लिया. ताई घबरा गयी पर मैंने उसे शांत रहने को कहा .

“सुन छोरे , आज के आज जाकर सुनार के पैर पकड़ कर माफ़ी मांग ले. ” उनमे से एक ने कहा

मैं- और माफ़ी न मांगू तो

“तो तुझे दुबारा समझाने न आयेंगे ” उसने कहा .

दिल तो किया था की उसी पल उलझ जाऊ उनसे पर मेरे साथ ताई थी तो मैंने सब्र कर लिया और बोला- जाकर कह देना लाला से कल उसको मेरा संदेसा मिल जायेगा .

“संभल कर रहियो वर्ना अंजाम ऐसा होगा की तूने सोचा न होगा.” उसने धमकी दी.

मैं- नाम क्या है तेरा

वो- रंगा

मैं- रंगा, एक बार जरा साइड में आ

मैं उसे साइड में लेके गया और बोला- आज तो तूने मेरा रास्ता रोक लिया वो भी जब मेरे साथ मेरे घर के लोग है, दुबारा ये गलती मत करना वर्ना तू कभी अपने घर नहीं जा पायेगा, और इसे मेरी चेतावनी मत समझना , मैं अभी कोई तमाशा नहीं चाहता तू निकल और लाला को जाकर कह देना की अपनी गांड संभाल ले, ऐसी रेल बना दूंगा उसकी की फिर कोई स्टेशन नहीं मिलेगा.


मैंने ताई को साथ लिया और खेतो की तरफ चल पड़ा. गुस्से से लाल पीली हुई ताई मेरे आगे चल रही थी , मेरी नजरे एक बार फिर ताई की मटकती गांड पर जम गयी . दिल में बड़ी जोर से इच्छा हुई की अभी के अभी ताई के कुलहो को थाम कर मसल दू. उस पल मैंने सोचा की कैसे भी करके ताई की लेनी ही है .
nice update..!!
hero rudrapur me joravar se hi ulajh gaya..lekin tayi kuchh janti hai hero ke baap ke bare me..tayi ke jarur hero ke baap arjun ke sath bahot najdik sambandh the jo woh chhupa rahi hai..ab lala bhi shaant baithne ko tayyar nahi hai..!! bhai ab time aagaya hai tayi ki chudayi karne ka..!!
 

sunoanuj

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Bahut hi behtarin kahani hai yeh… aisa lagta jaise usi samay khand mein pahunch gae ho or sab kuch samne ho raha … time travel ka ahsaas … jadui lekhni hai Fauji bhai aapki …
 

akash.12

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#17

ख्यालो में मीता का अहसास लिए मैं रुद्रपुर के बाजार में थोड़ी देर रुक गया , एक दूकान पर मैं गन्ने का रस पी ही रहा था की मैंने अपनी ओर दो लडको को आते देखा, जिसमे से एक वो ही था जिसने मुझे उस दिन रोका था .

“तू फिर आ गया , ” उसने कहा

मैं- कोई मनाही है क्या, या तूने खरीद रखा है इस गाँव को जो हर कोई तेरी मर्ज़ी से आएगा जायेगा.

वो- मेरी मर्जी तो तुझे बता देता उसी दिन अगर दद्दा ठाकुर ने मुझे नहीं रोका होता.

मैं- आज तो नहीं है न दद्दा ठाकुर यहाँ पर ,

वो- साले, तू खुद को समझता क्या है तुझे होश भी नहीं है की पल भर में तेरे साथ क्या से क्या हो सकता है , आसपास देख जरा और समझ तू किसके इलाके में है .

मैं- किसी ने तुझे बताया नहीं की इलाके कुत्तो के होते है , इंसानों के नहीं वैसे तेरा नाम बता जरा

वो- जोरावर नाम है मेरा.

उसका नाम सुनते ही मुझे इतनी तेज हंसी आ गयी .

“क्या हुआ तुझे , ” उसने हिकारत से पूछा

मैं- तूने वो कहावत सुनी तो होगी ही नाम फतेहसिंह शक्ल चुतिया ,बस तेरा नाम जानकार याद आ गयी .

“हरामजादे तेरी ये हिम्मत तूने जोरावर की बेइज्जती की ” उसने मेरा गिरेबान पकड़ लिया.

मैंने अपना घुटना उसकी टांगो के बीच मारा और उसके सर को गन्ने की रेहड़ी पर दे मारा.पर अगले ही पल मेरी गलती का अहसास हुआ मुझे एक ये काम ही नहीं करना था मुझे . मैंने जोरावर को उठाया .

“सुन चूतिये, मैं नहीं जानता तू किसके ऊपर कूदता है , मुझे जानना भी नहीं है और घंटा फरक भी नहीं पड़ता , ये गाँव ये रास्ता किसी का भी हो, मेरा जब जी करेगा जब मैं आऊंगा. मैं नहीं जानता तेरी दिक्कत क्या है और न मैं तेरी दिक्कत का इलाज करना चाहता हूँ तू अपने काम से काम रख “मैंने उसके कपडे झाड़ते हुए कहा.

क्या मालूम उसे मेरी बात समझ आई या नहीं पर मैं ये इस टाइप के लफड़े बिलकुल नहीं चाहता था , क्योंकि मेरी जिन्दगी वैसे ही बहुत उलझी पड़ी थी, ये नया चुतियापा मैं नहीं चाहता था. खासकर जब मुझे अब मीता से मिलने आते जाते रहना ही था. अपने ख्यालो में गुम कब मैं गाँव आ गया मालूम ही नहीं हुआ.

मैं सीधा ताई के घर गया . वो झुक कर झाड़ू लगा रही थी आँगन में, मेरी नजर उसकी चुचियो की घाटी पर पड़ी और फुर्सत से मैंने ताई की चुचियो के दर्शन किये. दिल ने एक बार फिर कहा की एक बार जिक्र कर ये दे देगी. पर दिल की कौन माने . ताई ने मुझे बैठने को कहा और कुछ देर में मेरे पास आ गयी .

“”ये तेरे दिमाग में क्या चल रहा है तूने लाला को थप्पड़ मार दिया. जानता है न तू उसे ” ताई ने शंकित स्वर में कहा .

मैं- मुझे परवाह नहीं साला मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था थप्पड़ नहीं मारता तो क्या करता

ताई- अभी तू इस लायक नहीं है की ऐसे पंगे ले सके. खासकर तब जब पहले जैसा कुछ नहीं रहा .

मैं- मुझे जरा भी परवाह नहीं है की पहले क्या था अब क्या है ,मैं अपनी ही परेशानियों में घिरा हुआ हूँ,

ताई- मैं समझती हूँ

मैं- तुम नहीं समझती, एक तो उस दद्दा ठाकुर के पिल्ले से पंगा हो गया आज मेरा , घर जाऊ तो चाची ने जीना हराम किया हुआ है . करू तो क्या करू .

ताई- दद्दा ठाकुर, तू कब मिला उस से , क्या कहा उसने तुझसे .

मैं- क्या कहेगा चुतिया . मैं रुद्रपुर गया था तो टकरा गया उस से .

ताई न अपने मुह पर हाथ रखा और बोली- तुझे नहीं जाना था वहां पर , नहीं जाना था .

मैं- पर क्यों , हर कोई ये ही कहता है की नहीं जाना , पर क्यों नहीं जाना ये कोई नहीं बताता.

ताई- क्योंकि दद्दा ठाकुर से दुश्मनी है हमारी, तेरे दादा को उसी ने मरवाया था .

मैं- ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई तुमने

ताई- क्योंकि ये एक उडती सी खबर है , इसका कभी कोई सबूत नहीं मिला , सब का अंदाजा है ये क्योंकि तेरे दादा की लाश रुद्रपुर में मिली थी .

मैं- दद्दा ठाकुर से दुश्मनी क्यों हुई

ताई- ये एक राज़ है , ऐसा राज जो न जाने किसके सीने में दफ़न है .

मैं- अगली बार दद्दा ठाकुर मिलेगा तो उसी से पूछ लूँगा.

ताई- तू उस से दुबारा मिलने की गलती बिलकुल मत करना.

मैं- ताई तू मेरे पिता को कितना जानती थी .

ताई- जितना उसे कोई नहीं जानता

अचानक ताई के शब्द रुक गए , उसने तुरंत बदलते हुए कहा- मैं ही क्या सारा गाँव उसे जानता था , मानता था . अर्जुन गाँव के हर किसान का कन्धा था , हर माँ का बेटा जब तक की वो हवेली .....

मैं- हवेली क्या ..

ताई- कुछ नहीं , तू अब जा मुझे कुछ काम है तू फिर आना .

मैं- तू कुछ छिपा रही है मुझसे ताई .

ताई- मैंने कहा न तू जा अभी .

ताई ने लगभग मुझे घर से बाहर ही कर दिया और दरवाजा बंद कर लिया. कुछ तो ऐसा था जो ताई मुझसे छिपा रही थी . अतीत के आखिर ऐसे कौन से पन्ने थे जो पलटने से मुझे रोका जा रहा था, ऐसी कौन सी कहानी थी जिसका किरदार मुझे नहीं बनना देना चाहते थे ये लोग.

रात को बड़ी देर तक मैं अपने माता- पिता की तस्वीर देखता रहा . सफ़ेद पगड़ी पहने मेरे पिता मुझे गोद में लिए खड़े थे . मेरी माँ पास में ही बैठी थी .

मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी जो मैंने सुनार से चुराया था . मैंने उसे खोला वो धागा वैसे ही पड़ा था जैसे मैंने उसे छोड़ा था . पर अचानक से मेरा ध्यान एक खास बात पर गया मैंने तुरंत अपनी जेब में हाथ दिया और वो हीरे वाला धागा निकाला दोनों धागों को एक ही तरीके से गूंथा गया था .मतलब साफ था इनको बनाने वाला कोई एक ही था पर कौन ये सवाल और मेरे लिए खड़ा हो गया था .

सुबह मैं ताई के साथ खेत पर जा रहा था की रस्ते में मुझे जब्बर के दो आदमियों ने रोक लिया. ताई घबरा गयी पर मैंने उसे शांत रहने को कहा .

“सुन छोरे , आज के आज जाकर सुनार के पैर पकड़ कर माफ़ी मांग ले. ” उनमे से एक ने कहा

मैं- और माफ़ी न मांगू तो

“तो तुझे दुबारा समझाने न आयेंगे ” उसने कहा .

दिल तो किया था की उसी पल उलझ जाऊ उनसे पर मेरे साथ ताई थी तो मैंने सब्र कर लिया और बोला- जाकर कह देना लाला से कल उसको मेरा संदेसा मिल जायेगा .

“संभल कर रहियो वर्ना अंजाम ऐसा होगा की तूने सोचा न होगा.” उसने धमकी दी.

मैं- नाम क्या है तेरा

वो- रंगा

मैं- रंगा, एक बार जरा साइड में आ

मैं उसे साइड में लेके गया और बोला- आज तो तूने मेरा रास्ता रोक लिया वो भी जब मेरे साथ मेरे घर के लोग है, दुबारा ये गलती मत करना वर्ना तू कभी अपने घर नहीं जा पायेगा, और इसे मेरी चेतावनी मत समझना , मैं अभी कोई तमाशा नहीं चाहता तू निकल और लाला को जाकर कह देना की अपनी गांड संभाल ले, ऐसी रेल बना दूंगा उसकी की फिर कोई स्टेशन नहीं मिलेगा.


मैंने ताई को साथ लिया और खेतो की तरफ चल पड़ा. गुस्से से लाल पीली हुई ताई मेरे आगे चल रही थी , मेरी नजरे एक बार फिर ताई की मटकती गांड पर जम गयी . दिल में बड़ी जोर से इच्छा हुई की अभी के अभी ताई के कुलहो को थाम कर मसल दू. उस पल मैंने सोचा की कैसे भी करके ताई की लेनी ही है .

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति है भाई
:perfect::perfect:

मनीष की एक और बार जोरावर से झड़प अवश्य ही दद्दा ठाकुर तक पहुंच जाएगी..... और देखना ये होगा की उसका असर कितनी दूर तक जाता है

आखिर ऐसी क्या वजह रही जिसके कारण कोई भी मनीष को अभी तक उसके माता पिता और दादा के बारे में
खुल कर नही बताता है न उसके चाचा और न ही उसकी ताई

और ताई को ठाकुर अर्जुन सिंह के इतने गहरे राज कैसे पता है..... क्या उनके बीच भी कोई गहरा रिश्ता रहा होगा... जैसा अभी मनीष ताई के साथ बनाना चाहता है

और अब जब्बर के आदमियों को भेजने के बाद मनीष और लाला के बीच क्या क्या होता है ये देखना भी रोमांचित रहेगा.....
अगले भाग की प्रतिक्षा रहेगी..
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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nice update..!!
hero rudrapur me joravar se hi ulajh gaya..lekin tayi kuchh janti hai hero ke baap ke bare me..tayi ke jarur hero ke baap arjun ke sath bahot najdik sambandh the jo woh chhupa rahi hai..ab lala bhi shaant baithne ko tayyar nahi hai..!! bhai ab time aagaya hai tayi ki chudayi karne ka..!!धीरे-धीरे सब कुछ हो ही जाना है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Bahut hi behtarin kahani hai yeh… aisa lagta jaise usi samay khand mein pahunch gae ho or sab kuch samne ho raha … time travel ka ahsaas … jadui lekhni hai Fauji bhai aapki …
इतनी तारीफ लायक नहीं हूं मैं, ये तो आप सब पाठकों का स्नेह है जो ये सब लिख पाता हूं
 
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